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Tuesday, November 20, 2018

झूठ सपना


झूठ सपना (कथाकार : श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)
मिथिलाक रूप-रंगक भीतर भवनगर गाम, जइ गाममे सुनीता सुचिता, सुशीला आ सुलेखा।
मिथिला तँ मिथिला छी तहूमे गामक मिथिला आ गामोमे भवनगर गाम। अदौक गाम भवनगर, किए तँ त्रेता जुगमे जखन राम धनुष तोड़ए एला तखन भवनगरक देखनिहारो आ स्वागत गीत गौनिहारिमे चारि गोरे भवोनगरक छेली। तँए भवनगरक लोककेँ आत्मगौरव छइहे।
जहिना साइयो नदीक बीच बसल मिथिला, तहिना साइयो रंगक माटि-पानिसँ सजल सेहो अछिए। कहब जे माटियो तँ माटि भेल आ पानियो तँ पानियेँ भेल। मुदा से नहि अछि, अछि ई जे धरतीक माटियो साइयो रंगक गुण-धर्मसँ युक्त अछि। जेकर जीवंत-जगंत नमुना अछि जे अनो-फलो-फूलो आ पातोक बढ़बाढ़िमे सहयोगी बनि सहयोगो करैए आ असहयोगी बनि असहयोगो तँ करिते अछि। जँ से नइ अछि तँ एक्के गामक सभ माटिमे एक्के रंग सभ वस्तु किए ने उपजैए। कोनो माटि कोनो वस्तुकेँ[i] उमझबैए आ कोनोकेँ बँझियेबतो तँ अछिए। तहिना पानिक सेहो अछि। गाम-गामक तँ बात छोड़ू जे एको गामक पानि एकरंग नहि अछि। जइ इनार वा चापाकलक पानि पीबै छी, बगलेक दोसर इनार आकि चापेकलक पानि पीने सर्दी-बोखार लगि जाइए। खाएर जे अछि, छी तँ सभ मिथिलेक माटि-पानि।
जहिना आन गाममे बाध-बोनक लहलही रहैए तहिना भवनगरमे सेहो रहिते अछि। अपन-अपन गामक सभकेँ अपन-अपन लहलही आनैक कारण अपन-अपन छैन। तहिना एहनो गाम तँ अछिए जइमे लहलही केकरा कहै छै जे दहदहीमे दहेबो कएल अछि आ अखनो दहाइते अछि। तहिना जड़-जड़ीमे सेहो जरितो आबि रहल अछि आ अखनो जरिते अछि। खाएर जे अछि, सभकेँ अपन-अपन समस्यो अछि आ अपना-अपना ढंगे कल्याणकारी बाट पकैड़ चलबोक अछिए। जा से नइ हएत ता कोनो गाम उठि कऽ अपना भरे ठाढ़ केना हएत। जखन गामक समाज ठाढ़ हएत तखन ने गाम ठाढ़ हएत। जेकरा कहै छिऐ अप्पन घर। अनतए तँ डेरेबला ने कहाएब।
भवनगरबलाकेँ गामक लहलहीक कारण दोसर छैन। दोसर कारण छैन जे अदौक गाम भवनगर रहने जहिना एकदिस अनक बखारी भरैबला बाधक बधबला[ii] अखनो खढ़-पातक घर बना बास करैत अछि आ जहियासँ गाम भेल तहियेसँ पुस्त-दर-पुस्त ओइमे रहैत सेहो आबिये रहल अछि, अखनो अछिए। तँए कि मिथिलामे ओहन घर-दुआर नइ अछि जइमे रहैबला एकसत्तैरमे बैस हजार लोक पंक्तिवद्ध खेनाइ खा नहि सकैए। तेहनो तँ अछिए।  खाएर जे अछि, अछि तँ मिथिलेक माटि पानि, भाषा, संस्कृतिक बीच ने, तँए संचमंच भऽ सभ विचारियो रहबे कएल छैथ आ जे सक लगै छैन से करबो करिते छैथ।
ओना, भवनगरकेँ आन गामबला सभ अनेको नाम देने छैथ, कोनो गामबला कहै छैथ- धनहा गाम’, तँ कोनो कहै छैथ- फलहा गाम’, कोनो कहै छैथ कोइर-कुजराक तरकारी गाम’, तँ कोइ कहै छैथ- चोरहा गाम।ओना, रंग-बिरंगक नाओंसँ भवनगरबला चिन्तित नहि अछि, तेकर कारण ई जे गाम तँ युगानुकूल बढ़बो करैए आ घटबो तँ करिते अछि, तहूमे भवनगरकेँ एते प्रतिष्ठा भेटिये चुकल अछि जे विद्वानक गाम, डॉक्टरक गाम, प्रोफेसरक गाम, मास्टरक गाम, किरानीक गाम इत्यादि चपरासीक गाम इतिहासक पन्नामे नइ कहाएल अछि सेहो बात नहियेँ अछि। तँए सभ किछु अङ्गेजल गामबला छोट-मोट मान-अपमानकेँ बरखा-पानिक बुलबुला जकॉं बुझैए जे जहिना अकाससँ खसल तहिना धरतीमे सोंखा जाएत। तइले अनेरे महाकालीक आराधना छोड़ि बातक बतंगरमे लागब नीक नहि बुझि धियानेसँ निकालि-निकालि कातेमे रखै छैथ।  
मुदा तँए कि ओ–भवनगरबला–अपन ऊपर लगौल अपमान-उपनाम सबहक सफाइ नइ दिअ चाहै छैथ सेहो बात नहियेँ अछि। सबहक सफाइ सार्वजनिक रूपमे दिऐ चाहै छैथ। हृदय खोलि, छाती तानि भवनगरबला सभ सार्वजनिक रूपमे कहै छैथ जे धनहा गाम भवनगर छीहे। आ से ओहिना नइ ने भेल अछि, विद्वानक गाम रहने विद्वतजन गीताकेँ पूजाक पाठ नहि बुझि ऑंगिक क्रिया बुझि अङ्गेज नेने छैथ जइसँ एते विश्वास तँ छैन्हे जे जहिना कृष्ण अर्जुनकेँ कहलखिन जे कर्मक फल ओहने होइ छै जेहेन कर्ताक कर्म रहल। जखने कर्म धर्ममे अबैए तखने अर्जुन सन अर्जन-शक्ति आबिये जाइए। तँए जँ आन गामबला सभ धनहा गाम कहै छैथ तँ एते बधाइक पात्र तँ छथिये जे जहिना अयोध्याक दशरथक दरबारमे बधैया गीत गौनिहार छला...।
दोसर भेल- फलहा गाम। एक तँ विद्वानक गाम भवनगर सभ दिनसँ रहल, तैपर जनकजी सन-सन हर जोतनिहार सभ सभदिनसँ रहले आएल अछि। केना नइ जोतत? मिथिला की जर्मनी, इंग्लैड सन देश जकॉं लोहे-लक्कड़पर ठाढ़ अछि, ओ तँ अपन माटि-पानि, नदी-नाला, बाध-बोन, झरना-पहाड़, गाछ-बिरीछ, जीब-जन्तुसँ तेना भरल अछि जे अपने-आपमे सघन बोन सेहो बनल अछि आ भरल-पुरल सागर सेहो बनले अछि, तैठाम जँ कियो फलहा गामकहै छैथ तँ ओ जरूर देखल-सुनल-बुझल-गमल बाजि रहला अछि, तँए हुनका धनवाद किए देबैन, हुनका फलवादे देब बेसी नीक हएत।
तेसर भेल- कोइर-कुजराक तीमन-तरकारी गाम। भाय, ओहिना नइ ने लोक कहै छैथ, अपन अनुभवसँ कहै छैथ किने जे जाबे धरतीकेँ कोरि-कमाइ नइ जाएत ताबे तीमन केना तरकारी बनैए आ तरकारी केना तीमन बनैए से थोड़े बुझबै।
चारिम भेल- चोरबा गाम। जे कियो भवनगर गामकेँ चोरबा गाम कहै छैथ ओहो कोनो खिसिया कऽ नइ कहै छैथ, जँ खिसिया कऽ कहितैथ तँ दोसर रूप होइत मुदा से नहि, ओ सोल्होअना देखल-बुझल बात कहै छैथ तँए ओ सभसँ बेसी बधाइयोक आ धनवादोक पात्र छथिये। तेतबे नहि, जँ इमनदारीसँ देखल जाए तँ ओहूसँ–माने बधाइयो-धनवादसँ– बेसीक पात्र छैथ ओ, किए तँ ओ भवनगरबलाक सभ किरदानी आइयेसँ नहि, सभ दिनेसँ देखैत आबि रहल छैथ जे केना भवनगरबला अनकर पुस्तकालय देखैत-देखैत पसिनगर किताब चोरा कऽ बैगमे रखि लइ छैथ, तँए जँ ओ कहै छैथ ते कोनो अपराध नहियेँ करै छैथ। तहिना ओ- चोरबा आइयेक भवनगरबलाक चालि बुझै छैथ सेहो बात नहियेँ अछि, सभ दिनसँ देखैतो आ सुनैतो आबिये रहल छैथ जे केना अनतए जा-जा ज्ञान सभ आनि-आनि ओकर चोरी नइ करै छैथ। तहिना आनठामसँ लूरि सभ सेहो चोरा-चोरा अनबे करै छैथ। ई तँ भेल क्लास वन चोर सबहक सूची, दोसर नम्बर फुलवारीक मालिकक लिअ। दरबारक माली बनि जखन आन-आन राज दरबारक फुलवारीसँ ललचगर फूल सबहक बीजो आ गाछो जे किछु देखाइयो कऽ आ किछु नुकाइयो कऽ अनितो रहला अछि आ अखनो आनि-आन फुलवारीमे नइ लगबै छैथ सेहो बात नहियेँ अछि, तँए जँ कियो चोरबा गाम भवनगरकेँ कहै छैन ते भवनगरबलाकेँ मनमे मिसियो भरि दुख किए हेतैन। स्पष्ट हुनका सबहक बुझब छैन जे जँ गोबरखत्तोक फुलाएल कमलक फूल छी तैयो ओ कमले ने भेल।
परिवारक बात छी नहि, गामक बात छी, सुनीता सुचिता, सुशीला आ सुलेखाक जन्म एक्के मुहूर्तमे एक्के दिन भेल। कहब जे जन्म भगवानक देलहा छिऐन तँए ओ असम्भव नहि भेल, मुदा चारूक नामक पहिल अक्षर एक केना भेल आ केना सौंसे गामक दाय-मायकेँ एहेन एकरूपता सुझलैन जे चारू गोरेक नाममे लगा देलैन? मुदा किछु छैथ ते भवनगरक दाय-माय छैथ किने, तँए पोथी-पुराणसँ हटि कऽ थोड़े चलती। भाय, रस्ता दिस कियो विदा हएब आ ई बुझले ने रहत जे केतए जाएब? तखन डेग केम्हर मुहेँ उठत? मुदा से थोड़े भवनगरक दाय-माय छैथ, ओ प्रौढ़, परिपक्व दाय-माय छैथ किने, तँए समयकेँ दू भागमे बॉंटि शुक्ल-कृष्ण दू पक्ष केने छैथ। शुक्ल पक्षमे जन्म भेने चारू गोरेक नामकरण अक्षरसँ केलैन।
शरीर जहिना अनेको गुणो-धर्मक आ अवगुणोक धाम छी तहिना मनो तँ धाम अछिए। अही धामक बीचक गाम भवनगर। चारू वाला- सुनीता, सुचिता, सुशीला आ सुलेखा, गाम भवनगर। बच्चाक बीच जहिना गुण-अवगुण अंकुरावस्थामे रहैए तहिना भवनगरक चारू वालाक सेहो रहल। मिथिलाक गाम तँ भवनगर छीहे, जहिना एक दिस नीतिशास्त्रीयक बोन अछि, तँ दोसर दिस अनीतिशास्त्रक झाड़ सेहो अछिए। खाएर जे अछि, एक तँ ओहुना अपना सबहक दूरभाग रहल जे हजारो बर्खक गुलामीक शिकार रहलौं जइसँ शरीरो आ जिनगियोक खून-पसेनासँ मांस-मांसपेसिया तक चुसा-चबा गेले अछि। पढ़ाइ-लिखाइक जहिना एक दिस दुनियॉंक शीर्षपर मिथिला अछि तहिना ओ समटल रहने आमजनक बीचसँ हजारो कोस दूर रहबे कएल अछि। जँ औझुको हिसाब देखब तँ बुझि पड़त जे पढ़ै-लिखैमे अदहासँ कम अखनो छीहे, तँए मिथिला पछुआ गेल सेहो केना कहल जाएत। एक-सँ-एक योद्धाक पइदायसी स्थल मिथिलाक माटि-पानि आइये नहि, सभ दिनसँ रहैत आबि रहल अछि। जँ से नइ करैत आएल अछि तँ कट्ठा भरि चास-बासमे कियो योद्धा ओहन जिनगी बना बोनमे रहि जीवन भरि ज्ञान जे बँटैत-बिलहैत रहला अछि। तैठाम जँ आइयो मिथिलाक धरती आ मिथिलावासीकेँ हिस्सा लगा देखब तँ ओइ हिसाबे खेते-पथार–माने भूमिये–बेसी अछि। तैठाम जँ उत्तर प्रदेश, पंजाब सन आन प्रदेशमिथिलांचलसँ बाहर जे क्षेत्र बिहार राज्यक अन्तर्गत अछि–तहू सभ राज्यसँ खाइ-पीबैक अनेको वस्तु आबि रहल अछि, ईहो तँ अपने ने देखए पड़त..! मानो तँ मान छी, सबहक छी मुदा स्वमान ने अपन भेल, ईहो देखबै ने।
स्कूलक (विद्यालयक) अभाव आर्थिक तंगीक संग धार-धुरसँ भरल क्षेत्रक भोग आइये नहि, सभ दिनसँ भोगै पड़ल छैन, मुदा तँए एकरा असाध मानि ली सेहो एकैसम सदीक लाजिमी हएत? हँसारतकेँ कियो रोकत? पहिने किछु कम छल, अखन किछु बेसी भऽ गेल अछि, तँए कहब मिथिला क्षेत्रमे लोकक बढ़बारि कम अछि सेहो बात नहियेँ अछि। टुटलो हथिसार तैयो नअ घरक साँगह अछिए। केतबो लोक मिथिलाक धरतीपर सँ किए ने पड़ा जाए, तँए घटबी पूरा नइ हएत सेहो बात नहियेँ अछि। तँए ने बच्चा रोकैक ऑपरेशन धुर-झाड़ चलिये रहल अछि।
एकठाम रहने चारू बच्चा पहिने बहिनक सम्बन्ध सिरजौलक, पछाइत सभ अपनामे बहिना बनि गेल। ता जिनगी बहिन जकॉं निमाहैक निमंत्रण स्वीकार केलक। रस्ता परहक चिक्कन माटिकेँ[iii] घरौदा[iv] बना अपन-अपन अँगना-घरक घरवासो लेलक आ घरवासक भोजो केलक। माटिये-माटि, सभ किछु खाइ-पीबैसँ लऽ कऽ सभ किछु रहइ।
समय बीतल, परिवारक अंग बनैक संग-संग अंग बनब भेल परिवाररूपी गाड़ीक, भलेँ ओ साइकिलक भालटूए जकॉं किए ने हुअए, गामक देवालयक नीपन-बाहरब सभ दिन करए लगल। औझुका जकॉं समय नहि छल, पूजाक फूल पहुँचेबै, जेना- दुर्गापूजामे गामक बाल-बोध सभ भोरे फूल लोढ़ि भगवती स्थान पहुँचैबते अछि, ताधैर ओ अपनाकेँ पूजा करैक अधिकारी नइ बुझैए, ओ बुझैए नरक निवारन चतुर्दशीक उपाससँ लऽ कऽ रामनवमी, कृष्णाष्टमीक उपासक संग सत्-नारायण भगवानक उपास करब, जइसँ पूजाक अधिकारी स्वत: बनि जाइए। उपासक उपरान्त ओ पहिने देव-पूजन करत, पछाइत अपने जलग्रहण करत। नारीक विशेष गुण मिथिलांचलक नारीमे रहल आबि रहल अछि जे पतिक विचारानुकूल संगीक, मुदा आगू कोन रूपे बढ़ब तोहू दिस तँ देखए पड़त।
कनियेँ आगू बाल-विवाह रूकब शुरू भेले छल, दस-बारह बर्खक बीच चारूक बिआह भऽ गेल। जे जेते अगुआ कऽ गाम छोड़लक ओ ओते बेसी कनबो कएल आ कानबो सुनलक। मुदा जे सभसँ पछुआएल ओ कनबे ने कएल। केकरासँ गरदैन जोड़ि कनैत, माए तँ माइये छैथ, हँसू कि कानू, माए माइये जकॉं रहती, तँए सखी-बहिनपाक संग ने कानल आ ने कानब सुनलक, हँसिये-हँसीमे सभ उड़ि गेल। केतए गेल से अपनेटा बुझलक।
समय आगू बढ़ल। तीस बर्खक पछाइत एक-दोसरसँ, मोबाइल भेने सम्पर्क भेल। तैबीच के केतए माने चारू गोरे, रहल से अपने-अपनेटा बुझलक। चारूमे सँ कियो ने केकरो जानि पौलक। सबहक अपन-अपन मन कहै जे हमहींटा जीबै छी, बॉंकी के केतए हेरा-ढेरा गेल तेकर कोनो पतो ने अछि।
चारू गोरेक बीच सम्पर्क-सूत्र बनने नैहरमे भेँट होइक प्रोग्राम बनल। ऐ दुआरे जे जइ धरतीपर बच्चामे चारू जिनगी बहन करैवाली बहिन जकाँ जीबैक संकल्प नेने छी।
चैतक रामनवमी दिनक दिन भेँट होइक ऐ दुआरे बनल जे गाममे ऐबेरक उत्सवमे कम्पीटिशन अछि, तँए देखै-सुनै-जोकर गाम सेहो रहबे करत।
संजोग बनल, चारू गोरे रामनवमी दिन चारू दिससँ पहुँचल। गामक उत्सवक तेहेन हलहोरि चढ़ि गेल जे कोसी-कमला धारसँ बाढ़िक पानि उछलने जहिना गामे फँसि जाइए आ तखुनका जेहेन मन लोकक होइ छै तेहेन तँ नहि, मुदा राम-रमैयाक धुनक बाढ़ि एने गाम-घरक सेखी बदैल तेहेन बनियेँ गेल छल जैबीच सभ अप्पन सभ किछु बिसैर मग्न अछिए। ईहो चारू गोरे अपन-अपन दुख-सुख बिसरिये गेल। किए तँ सबहक नैहरक गाम ने भवनगर छी।
उत्सव समाप्त भेल। चारू अपन-अपन ठौर धड़त। रामनवमीक मेलाक परातक समय छी सभ एकठाम बैस अपन-अपन अतीत जिनगीक गप-सप्प करत। एक तँ ओहुना भवनगर गाम छीहे। सभ अपन अतीत-भविसक विचार केनिहार सभ छथिए, तँए वातावरणमे ओहन विचार बहिये रहल छल, तँए चारूक मन सेहो वातावरणमे मह-महा गेले छल। आन गाम जकॉं भवनगर थोड़े अछि जे बाल विद्यालयमे बच्चा सभकेँ सिखौल जाइए, ‘बौआ सत् बाजब धरम छी’, मुदा सिखौनिहार अपने भरि दिनमे केते निमाहै छैथ से आनकेँ बुझैक कोन खगता छै, मुदा अपनो नइ खगता छैन, सेहो बात तँ नहियेँ अछि।
चारू एकठाम भेल, जिनगीक ऐगला-पैछला सीमा सटि कऽ एकठाम भेल बॉंकी तीस बरख की भेल तेकर ठेकान करैमे बड़ समय लागत तँए बिसरबे नीक। देखते छिऐ जे जे आदमी परिवार-ले भरि दिन रोडपर जिनगी बितबैए। पढ़ले-लिखलटा नहि, जिनगीक अनुभवी रहितो अपन बाल-बच्चाकेँ बुझबै-सुझबैले केते समय कियो पेब रहल अछि, सोचनीय विचार नहि अछि सेहो बात नहि अछि। धनक भरपाइ करैमे सभ जुटल छी, मुदा मनक भरपाइ करैमे किए फुटल छी, से ने बुझब..! खाएर...।
एकठाम होइते सुलेखा बाजल-
भरि जिनगी बहिन जकॉं रहब, से मुदा निमहैत आबि रहल अछि!”
सुलेखापर सुनीता ऑंखि गुरड़ए लागल। मुदा सुचिता ऑंखियेक इशारासँ हँसि देलैन। सुचिताक ऑंखिक हँसीसँ सुनीता बिहुसैत बजली-
बहिन, हँ से तँ अपना-अपना भागक करमे निमहिये गेल  मुदा...।
मुदासुनि सुशीला बाजल-
दीदी, अखन सुलेखेक विचार मानि लियौन। कियो अपना भागक कर्मे जीबैए आकि केकरो आनक कर्मे। सभ अपन-अपन राम-धामकेँ सुमरैत समय बिताइये रहल अछि।
किए सुनीता सुचिता दिस ताकैत आकि सुलेखा दिस अपन विचारकेँ अपना मनेमे गोड़ि आगू जिनगी देखए लागल।
सुलेखाक मोबाइल टनटनाएल। मोबाइलसँ गप-सप्प केला पछाइत सुलेखा बाजल-
हमरा इमरजेंसी भऽ गेल, जाइ छी..!”
चारू गोरे फेर चारि दिस भऽ गेल। भवनगरक जे अखन धरिक गढ़ैन रहल अछि ओ बाल-बोधक भव सदृश्य रहल अछि, जेकरा सियनगर होइमे किछु-ने-किछु समय लगबे करत।
q शब्द संख्या : 2062, तिथि : 15 नवम्बर 2018


[i] अन्न फल इत्यादि
[ii] रखबार
[iii] गरदा माटि
[iv] घर-अँगना

Sunday, October 28, 2018

चटवाह (दिवालीक दीप पोथीसँ)


भोरे बरदकेँ घरसँ निकालि थैरमे बान्हि गाएकेँ घरसँ निकालिते रही कि नागेसर भायकेँ दच्छिन-सँ-उत्तर-मुहेँ अबैत देखलयैन। ओना, नजैर गाएपर छल तँए नगेसर भायपर अझप्पे नजैर पड़ल जइसँ चेहराक रंग-रूप नीक जकाँ नहि देख पेलौं मुदा नागेसर भायकेँ तँ देखबे केलिऐन। हाथसँ गाएकेँ खुट्टामे बन्हैत मुहसँ नागेसर भायकेँ पुछलयैन-
भाय, केतए-सँ भोरे-भोर अबै छी?”
ओना, चारि-पाँच बरख नागेसर भाय जेठ छैथ, तँए समाजिक लोक लाजे भायकहै छिऐन। ने ओ अपन परिवारक छैथ माने वंशगत परिवारक आ ने लतरल लत्ती जकाँ दियादेवाद छैथ मुदा समाजक बीच जे धारा प्रवाहित अछि तइ हिसाबे भायकहै छिऐन। समाजिक धारा ई अछि जे उमेरक हिसाबसँ आनो-आनकेँ, माने जे अपन वंशगत परिवारक नहियोँ छैथ हुनको लोक बाबा, ‘काका’, ‘भैयाइत्यादि कहिते छैन। तही हिसाबसँ हमहूँ हुनका भायकहै छिऐन। गाइयक डोरी बान्हि आगू बढ़लौं कि ताबे नागेसरो भाय रस्तापर सँ उतैर दरबज्जा लग पहुँचला। लग पहुँचते नागेसर भाइक चेहरापर नीक जकाँ नजैर पड़ल। नजैर पड़िते बुझि पड़ल जे अस्सी मन पानि नागेसर भाइक मनपर पड़ल छैन। जेठुआ मेघ जकाँ घोघ लटकल देखलयैन। मिरमिराइत नागेसर भाय बजला-
ओहिना गाममे छिछिआइ छी।
नागेसर भाइक गपक कोनो अरथे ने लागल। तैपर मुहोँ लटकल छेलैन आ चेहरोक रंग उड़ल-उड़ल सन छेलैन जइसँ अनेको प्रश्न मनमे उठि गेल। मुदा एक तँ भोरक समय, यत्र-कुत्र नहियेँ बाजल जा सकैए आ दोसर दरबज्जापर छैथ। हुनकर बातकेँ दहलबैत बजलौं-
भाय, पहिने चौकीपर बैस तमाकू खाउ, पछाइत दुनियाँ-दारीक गप-सप्प हेतइ।
ओना, तरे-तर नागेसर भाइक मन मन्हुआएल रहबे करैन मुदा विचारकेँ पेटेमे दाबि कऽ रखने छला। जँ आनठाम आन गोरे लग रहितैथ तखन प्रभावशाली भाषण करैत अपन प्रभावसँ प्रभावित कऽ नेने रहितैथ मुदा जहिना हम हुनका चिन्है छिऐन तहिना ओहो हमरा चिन्हते छैथ तँए वाणीकेँ समेट मनेमे रखने छला। नागेसर भाइक चेहरासँ अनेको रूप टपैक रहल छेलैन, जेना- लटकल मुँह, भोरे-भोर छिछियाएब, तैपर सँ पैंसैठ  बर्खक टपान टपल गामक एकटा प्रवुद्धजन! गामक अस्सी-सँ-नब्बे प्रतिशत लोक हिनका आदरक नजैरसँ देखते छैन जेकर जीबैत रूप अछि जे नवतुरिया धिया-पुतामे कियो ओझहाबाबा’, तँ कियो भगतबाबा तँ कियो गुनीबाबा कहिते छैन। तैसंग ओइसँ ऊपरका लोक माने चेष्टगर लोक सेहो कियो भगतकाकातँ कियो गुनीकाका सेहो कहिते छैन। जनिजाति तँ सहजे बताहे भेल छैथ जइसँ जिनका जे नीक नाम रूचै छैन से से कहै छैन। तहिना तहूसँ ऊपरक उमरदार आदमी सेहो भगत भाय’, ‘गुनीभायकहिते छैन। मुदा हम तइ सभसँ अलग सोझे भायकहै छिऐन, उमेरक लेहाजसँ।
नागेसर भाइक रूप-रंग देख अनेको प्रश्न मनमे उठि रहल छल जे पुछिऐन मुँह किए लटकल अछि आ ठोरसँ फुफरी किए उड़ैए। मुदा अनेरे किए झूठ-फूसमे झूठा-फूसाक संग अपनो सार्थक समयकेँ निरर्थक बनाबी। कहब जे टोकबे किए केलिऐन, तइमे कनी नजैर मिलानी भऽ गेल। नजैर मिलानी ई भेल जे जहिना गाइयक डोरी पकड़ने रस्ता दिस तकलौं तहिना चटपटाएल नागेसर भाइक मन सेहो गप-सप्प करैले चटपटाइत देखलयैन। जइसँ भोरू पहरक दुआरे मनमे आबि गेल जे भरिसक तमाकू दुआरे दस्त ढील नइ भऽ रहल छैन तँए कछमछा रहल छैथ। तँए कहलयैन, तमाकू खा लिअ। जँ कोनो मुसीबतमे पड़ल छैथ तँ अपने ने मुँह खोलता। ओना, मुसीबतो नीक-बेजाए दुनू होइए। दुनू मानेकेँ अपन-अपन भाँजो होइते अछि। जँ नीक-ले मुसीबत पड़लैन ओकर महत् अलग भेल आ जँ अधला वृत्तिक मुसीबत छैन तँ ओकर महत् अलग भेल। आँखि मुइन सभ मुसीबतकेँ एक्के कसौटीपर तौल बाजब ओ तँ अँखिमूना गुण भेल। ओना, आँखिमुनो गुण दू रंगक अछिए। एकटा अछि नीककेँ आँखि मुइन मानि चलब आ दोसर भेल अधलाकेँ नीक मानि आँखि मुइन मानबो करब आ चलबो करब।
ओना, सँपकट्टा वा छुछुनैरकट्टा जकाँ भीतरे-भीतर नागेसर भाय कछमछाइते छला तँए हुअए जे बफैर कऽ बाजी, मुदा चालीस सालक पैछला जिनगी दुनू गोरेकेँ एते दूरी बनाइये चुकल अछि जे जहिना विषवत रेखा टपला पछाइत लोक बुझैए जे हम उत्तरी ध्रुवक यात्रापर छी आकि दछिनी ध्रुवक। तैबीचक लोक तँ बुझिये ने पबैए जे दुनियाँक दूटा छोरो अछि आ दूटा धुरियो अछि आ अपने कोन छोर पकैड़ चलि रहल छी। बड़ीकालक पछाइत, तैबीच एकबेर तमाकू खा थुकैर सेहो फेक चुकल छेलौं आ दोसरो जूमक तैयारीमे थोपड़ी दऽ तमाकुलक गरदीकेँ उड़ा चुकल छेलौं, नागेसर भाय बजला-
आब जीब कठिन भऽ गेल। सौंसे दुनियाँ एक्के बेर उजैड़ गेल।
आब जीब कठिन भऽ गेल’, नागेसर भाइक ई विचार अपनो नीक लागल जे अपनो जीब तँ कठिन भइये गेल अछि, मुदा एक्के बेर दुनियाँ उजैड़ गेल’, एकर कोनो माने लगबे ने कएल। तहूमे अपने उजड़ब माने अपन परिवारकेँ उजाड़ब आ दुनियाँ उजड़ब, दुनू दू भेल। दुनियाँ ते सदिकाल किछु-ने-किछु उजैड़ते रहैए आ बनिते रहैए, मुदा अपन जिनगी तँ से नइ छी जे सदिकाल बनत आ सदिकाल उजड़त। एकर तँ अपन आधार छै, अपन घाट आ अपन बाट छइ...। बजलौं-
भाय ई की कहलिऐ जे एक्केबेर दुनियाँ उजैड़ गेल? जखन दुनियेँ उजैड़ जाएत तखन रहब केतए?”
जहिना हृदयबेधी वाण लगने लोकक मन थरथरा जाइए, हृदय दलमलित हुअ लगैए तहिना नागेसर भायकेँ सेहो हुअ लगलैन। मन थरथराए लगलैन जइसँ मुँहक बोली बन्न भऽ गेल छेलैन। मुदा जाबे अपने मुहेँ अपन बेथा नइ बजता ताबे बुझब केना। तहूमे ओहन लालबुझक्कर नहियेँ छी जे भुतलग्गु जकाँ अनेरे बड़बड़ाए लगब। मनमे भेल जे दोहरा कऽ फेर पुछिऐन मुदा लगले ईहो भेल जे नइ सुनने रहितैथ तखन ने पुछब उचित होइत मुदा जखन लगमे बैसल छैथ तखन नइ सुनलैन सेहो केना मानल जाएत। भऽ सकैए जे जँ सभ शब्द नहियोँ सुनने रहितैथ तँ उनटाइयो कऽ पुछबे करितैथ। सेहो नहियेँ पुछलैन। तखन किए ने बाजि रहल छैथ? मनमे ईहो हुअए जे भऽ सकैए कोनो एहेन काज भेल हेतैन जइसँ जिनगी तँ प्रभावित होइत हेतैन मुदा लाजक संकोचे नइ बजैत होइथ।
चालिस-पैंतालीस बर्खसँ नागेसर भाय चटवाहक काज करैत आबि रहल छैथ। चालीस कि पैंतालीस बरख तँ डायरीमे लिखि कऽ नइ रखने छी जे निश्तुकी कहब, मुदा अनुमानसँ कहि रहल छी। किए तँ जखन उठैत जुआनी नागेसर भाइक छेलैन तहियेसँ देखैत आबि रहल छी जे नागेसर भाय गामक एक नम्बर चटवाह छैथ, केहनो साँप काटल बीखकेँ चाटीए-सँ उताड़ि दइ दैत रहथिन। तहूमे केकरो ऐठाम जँ सँपकटिया भेल तैठाम ओ खबैर होइते अपनो वा आनोक काजकेँ छोड़ि दौड़ले जाइ छलाह। जाँति-पाँजि, दियाद-वाद किछु ने मानै छला। अपनाकेँ उपकारी कहि उपकार करए पहुँचिये जाइ छला। चलतियो एहेन रहैन जे तीन-तीन, चरि-चरिटा सँपकट्टाक नम्बर लागि जाइ छेलैन।
ओना, जइ गाममे बिसहाराक गहबर छल तइ गामक लोककेँ चटवाह बनब असान छेलइ। किए तँ दसमीमे जखन दसो दुआरि खुजि जाइए तखन बिसहाराक गहवरक भगत[i] सेहो दसमीक पहिले दिनसँ गहवरमे भगतै करए लगै छला। रंग-रंगक डाली पहुँचते छेलैन, केकरो धिया-पुता नइ होइ छल तेकर डाली, तँ केकरो घरमे डाइन-जोगिनक उपद्रव बढ़ि गेल तेकर डाली, तँ केकरो धिया-पुता बहवारि भऽ गेल तेकर डाली इत्यादि-इत्यादि अनेको डाली पहुँचते छेलैन आ साँझू पहर जखन भगत गोसाँइ खेलाइ छला माने देवता दहेपर अबै छेलैन तखन फूल-अच्छत-भूभूतसँ ओकर गुहारि करिते छला। भगत जहिया मरला तहियासँ भगताइयो बन्न भेल आ गहवरो खसल। खाएर जे भेल। गामोक लोक (जे चटवाह बनए चाहै छल) आ आनो अड़ोस-पड़ोसक गामक लोक आबि-आबि चाटी धड़ै छल आ जेकर चाटी उठल (उठल- माने आगू घुसैक चटिवाहि करै छल से) ओ चटवाह बनै छल। नागेसर भाय चनौरा गहवरक सीखि छला। इलाकामे सभसँ जगता-जोर गहवर चनौरा-गहवरकेँ बुझल जाइत छल। महंथानाक गहवर। दुर्गोपूजा आ बिसहरोक गहवर महंथजी बनौने छला। ओना, छोट-मोट[ii] स्वास्थ्य केन्द्र सेहो बनौनहि छला। जइमे एम.बी.बी.एस डॉक्टर तँ नहि छला मुदा एकटा नर्स जरूर रहै छेली। ओना, ओहो तेहेन ट्रेण्ड (ट्रेनिंग कएल) नहियेँ छेली मुदा पित्ती डॉक्टरकेँ रहने बहुत किछु सीखि नेने छेलीहे।  महंथजी महंथेजी छला। बिआह नइ केने छला। ई दीगर भेल जे महंथजी अपने ऐठाम नर्सकेँ रहैक बेवस्था केने छला। आन गामक बेचारी नर्स, तँए डेराक जरूरत रहबे करैन। तैपर सँ महंथानाक अवासमे डेरो भेट गेलैन। मुदा एहेन कहियो ने भेलैन जे कुत्ताक बीख जकाँ लसैर लगलैन।
अनहरिया पखक तृतीया इजोरिया जकाँ गाममे बुधिक चान जरूर उगि चुकल छल मुदा छोट रहने (कम समैयक प्रकाश) गाम अन्हारक अन्हारमे पड़िये जाइ छल। जइसँ जिनगीक सभ खगताक रस्ताक दुआर बाधिक छेलैहे मुदा केतबो लोक पछुआएल छल तँए ओकरा मन-पेट नइ छेलै सेहो तँ नहियेँ मानल जा सकैए। से तँ छेलैहे, तँए अपन विचारो आ विचारक विश्वसनीयता सेहो छेलैहे। ओही जिनगीक जुग छल जइमे ओझा-गुनी, चटवाह, डानि-जोगिन सबहक उत्पैत भेल छल।
भौगौलिक दृष्टिसँ अपना सबहक इलाका केहेन अछि आ केहेन छल से तँ सब भोगिये रहल छी जे गामक फेदार मोरंगक दफेदार बनिते अछि। एकदिस कोसी धारक बाढ़िक पानिक विभीषिका जइमे नेपालक पहाड़ो आ जंगल-झाड़सँ सेहो बाढ़िमे साँप-कीड़ा भँसि-भुँसि आबिये जाइ छल। सतासी (1987) इस्वीक बाढ़िक विभीषिका जकाँ पहिनौं भेल हुअए तँ भेल हुअए मुदा तीन-चारि जेनरेशनसँ नहि भेल छल, जइमे साँपक उपटान नीक जकाँ भेल। मुदा तइसँ पहिने सँपकटियाक संख्या बहुत बेसी छल। वैज्ञानिक ढंग, वैज्ञानिक ढंगक माने भेल जाँचल-परखल ढंग, जे विश्वसनीय अछिए। तेकर बहुत बेसी अभाव छल। ओना, दुनियाँक आन-आन किछु देश अगुआएलो आ किछु पछुआएल सेहो अछिए मुदा अपना सभ हजारो बर्खक गुलामीसँ लगले निकलले छेलौं, तँए अभावे-अभाव सभ कथुक रहबे करत किने।
दोसर उपटान साँपक 1988 इस्वीक भुमकममे भेल। धरती डोलने बिल सभ दबाएल जइसँ बिलमे रहैबला साँप नष्ट भेल। ओना, साँपोक वंशवृद्धि अलग-अलग अछि। किछु साँप बच्चा दइए तँ किछु साँप अण्डा दइए। तैसंग प्रकृत प्रदत्त सेहो अछि। अगता बर्खाक मौसममे साँपक पतौरा धरतीपर अकाससँ खसैए जइमे साइयो साँप निकलैए। नब्बे-बेरानबेक[iii] शीतलहरी विषैला-सँ-विषैला साँप धरिकेँ, खासकए गहुमनकेँ तेना उपटौलक जे बीछा गेल। तैसंग अस्पतालो सभमे आ प्राइवेटो क्लिनीकमे साँपक बीखक इलाज हुअ लगल जइसँ सँपकटिया मृत्युक दर कमल। आजुक आर्थिको दृष्टिसँ आ जरूरतोक दृष्टिसँ लोक सजग भेबे कएल अछि जइसँ साँपक कोन बात जे छुछुनैरो कटलाहा सभ डॉक्टर ऐठाम पहुँचए लगल अछि। साँपे जकाँ पाँखिबला फैनगा-फैनगी सेहो जनमारा अछिए मुदा तोहूसँ लोककेँ आफियत भेटिये रहल अछि।
समय आगू बढ़ल, नागेसर भाय सन-सन केतेको लोकक हाथक काज छीनाएल। जखन हाथक काजे छीना गेल तखन ई हाथ करत की, आ नइ करत ते खाएत की, अही चौबट्टीक मोनिमे नागेसर भाय खसला अछि। खसला पछाइत सुमारक सोभाविके अछि। जइ लूरिक चलैत समाजमे पेटक संग विचारो चलै छल, से जिनगीए उनैट कऽ पुनैट बिलैट गेल, आब केतए रहब? नागेसर भायकेँ सुमारक होइ छैन जे जइ जिनगीमे भैया, काका, बाबा बनि जीबै छेलौं तैठाम कोचिंगक जे छौड़ा सभ अछि सेहो सभ तेना कऽ ताना मारैए जे देह झनझना कऽ तुनतुना-तनतना जाइए मुदा करब की। आब की हमर ओ उमेर अछि जे छौड़ा-सभसँ मुँह लगाएब। सुमारक होइ छैन जे जइ हाथक चाटी-बले ओहन जिनगी बना चलैत आबि रहल छेलौं, तैठाम कोनो पूछ नहि! जइसँ तरे-तर नागेसर भाइक मन मोम जकाँ पिघैल-पिघैल जरि रहल छैन मुदा मनक एते शक्ति नहि जुटा पेब रहल छैथ जे अपन जिनगीक हारकेँ जीत दिस बढ़ौता। अखन तक तँ नीके-नीक जिनगीक बीच ने जीबैत आबि रहल छी तखन बीच रस्तापर ओहन मोनि केना फुटि गेल जे बुझबे ने केलौं! झोंकमे झोंकाइत नागेसर भाय बजला-
रस्तेपर मोनि फुटि गेल!”
ओना, रस्तापर मोनि फुटबक एक माने भेल जे बाढ़िक समय एहेन होइ छै जे धाराक प्रवाहमे रस्ता ढहि-टुटि कऽ धाराक मोड़ सेहो बनैए जइसँ मोनि फुटै छइ। आ दोसर होइए जे चढ़ानसँ निचान माने ऊपरक जमीनसँ नीचरस जमीनमे धाराक धारसँ जे खाधि बनैए ओहो बढ़ैत-बढ़ैत मोनि बनैए जे नम्हरो-गहींरो बनैए आ उथरो-आथर बनिते अछि। मुदा ऐठाम तँ नागेसर भाय अपन जिनगीक गप कऽ रहला अछि, खेत-पथारक रस्ताक मोनि जकाँ ओ मोनि थोड़े हएत, तँए किए ने नागेसरे भायसँ बुझि ली। बजलौं-
की मोनि कहलिऐ भाय?”
हमर बात सुनिते नागेसर भायकेँ मनमे जेना खौंत फेकलकैन तहिना बजला-
अपन मनक मोनि सेहो फुटल आ गामक जे छौड़ा-माड़ेरक विचार सुनै छी ते बुझि पड़ैए जे अपनोसँ बेसी ओकरे सबहक मोनि फुटल छइ। की कहबह!”
नागेसर भाइक जिनगी ओहने बुढ़ाएल माछ जकाँ भऽ गेल छैन जहिना सौभरी ऋृषि यमुना नदीक जलमे तपस्या करैत नदी-माछक गति देखलैन जइसँ जहिना विराग उत्पन्न भेलैन तहिना तँ ने नागेसरो भायकेँ भऽ रहल छैन। फेर लगले मनमे उठल जे सौभरी ऋृषि जकाँ नागेसर भाय जलसमाधि थोड़े नेने छैथ जे विचारसँ वैरागपन औतैन। हिनका तँ गरदैनमे बड़का ढोल बान्हि देबैन तैयो बकार नइ फुतटैन। मन छलैक गेल, विचारक धारा एकाएक धड़धड़ाइत निच्चाँ खसए लगल। मुदा तैयो खसैत-खसैत मन बजिते गेल जे शुरूए-सँ नागेसर भायकेँ मनाही करैत एलौं जे मनुख बनि जखन जन्म लेलौं तखन मनुखक रूप धारण करब तखने ने मानव मनुख कहाएब, से सभ दिन गुरुआइ करैत रहि गेला आ आब कनै छैथ। मनकेँ मारि बजलौं-
भाय, आब अहाँकेँ कोन मतलब ऐ दुनियाँ-दारीसँ अछि, ने रहब ओइ टोल ने सुनब ओकर बोल, बेटासँ खरचा लिअ आ दरबज्जाक ओसारक चौकीपर बैस रस्ता दिस तकैत सीताराम सीताराम राधाकृष्ण राधाकृष्ण करू।
हमर बात सुनिते नागेसर भाइक मन जेना फुटि कऽ छिड़िया गेलैन तहिना बजला-
बौआ, तोरासँ लाथ की। दुनू बेटो मुँह फुला कऽ अपन-अपन बहु-बेटा लऽ कऽ जेतए नौकरी करैए तेतइ चल गेल अछि। दुनू परानी-बुढ़बा-बुढ़िया घरमे छी।
पुछलयैन-
बेटा किए मुँह फुलौने अछि?”
नागेसर भाइक बेइमान मन इमानक धरती पकैड़ लेलकैन, जइसँ विचारमे बदलाव आबिये गेलैन। बजला-
बौआ, इमान-धरमसँ बजै छी, दुनू बेटाक परोछक बात छी, जेठका बेटा साइंस पढ़ने खोंटकर्मा भइये गेल। बेर-बेर ओ मनाही केलक जे अहाँ झूठ-फूसक धन्धा छोड़ू, मनुख छी मनुख जकाँ रहू, मुदा..?”
मुदा कहि नागेसर भाय चुप भऽ गेला। मन मानि गेल जे बेटा लग अपन दोख कबुल नइ करए चाहलैन, बजलौं-
हे जेठका बेटा अपन जेठपन देखौलक, तँए फुलि रहल मुदा छोटका किए फुलल अछि?”
नागेसर भाय बजला-
जेठके ओकरो तेना कऽ दुइर केलकै जे ओहो ओहिना दुरि भऽ गेल। हमहूँ अड़ि गेलौं, आमदनियोँ छल आ समाजमे पूछो तँ रहबे करए।
बजलौं-
अच्छा आब छोड़ू मायाजालकेँ, बेटासँ खरचा दिया दइ छी। शान्तिसँ रहू।  
q कथाक शीर्षक भगैतिया
शब्द संख्या : 2135, तिथि : 4 अक्टुबर 2018


[i] भगता, पुजेगरी
[ii] ग्रामीण स्तरक
[iii] 1990-92

Tuesday, August 14, 2018

मानसरोवर यात्रा, साभार गपक पिलयाहुल लोक कथा संग्रह


मानसरोवर यात्रा
परिवारक सात भाँइक भैयारीमे वैज्ञानिक भाय–माने जीतनलाल भाय– जेठ छैथ, जे दिसम्बरमे सेवा निवृत्ति भऽ भाभा शोध संस्थानसँ गाम आबि गेला। बच्चेसँ प्रखर बुधिक रहने जीतनलाल भाय गामक स्कूलसँ एम.एस-सी.तक प्रथम स्थान पबैत रहला। ओना, शुरूमे माने हाइ स्कूलसँ कौलेज धरि मनमे यएह विचार रोपने छला जे एम.एस-सी.क पछाइत कौलेजमे नोकरी करब, प्रोफेसर बनब। मुदा एम.एस-सी.क रिजल्ट निकैलते भाभा शोध संस्थानमे भेकेन्सी भेल, जीतनलाल भाय अप्लाइ केलैन आ सलेक्ट भऽ गेला।
अड़तीस बर्खक सेवाक पछाइत वैज्ञानिकजी 5 दिसम्बरकेँ संस्थानसँ सेवा निवृत्ति भेला। जुलाई मासक पहिल सप्ताह, आद्रा नक्षत्र काल्हिये समाप्त भेल। सालक अखन तकक जे मौसम रहल माने बरसातक, ओ अनिश्चित रहल। अनिश्चित भेल जे ऐगला समय माने बरसातक केहेन हएत तेकर अनुमान ठीक-ठीक नइ लागब। जहिना भिनसुरका सुर्ज देखलासँ लोक अनुमान तँ कइये लइ छैथ जे औझुका दिन केहेन हएत। तहिना सालक तीनू मौसमक सेहो अछि। तीन मौसम भेल जाड़, गरमी आ बरसात। कोनो मौसमक, पूर्व पक्ष माने चारि मासक मौसममे शुरूक जे एक-सवा मास होइए, ओकर सीख-लीख पकैड़ लोक अनुमान लगा लइ छैथ जे मौसमक ऐगला रूप केहेन हएत, से नइ भेल। किए तँ अखन तक जे समय बीतल छल ओ ने रौदियाहेक आभास दइ छल आ ने तेहेन विकराल बरसातेक। शुरू जेठमे एकटा नमहर बरखा भेल जइसँ किसान सभ अपन गरमाधानक बीआसँ लऽ कऽ अगहनी-धानक बीआ तक पाड़ि लेलैन। ओना, बीआ पाड़ला पछाइत केते गोरेक मुहसँ निकलल छेलैन जे ऐबेरक समय सवारी हएत जइसँ मौसमो आ समयो नीक रहत। जखन मौसम नीक रहत तखन उपजा-बाड़ी सेहो नीक हेबे करत। संजोगवश जेठ मासक बीच-बीचमे दूटा हाली बरखा भेबो कएल, जइसँ धानक बीआक उपज नीक रहल। शुरू अखाढ़मे माने आद्रा नक्षत्रक पहिल दिन नीक बरखा भेल, जइसँ तीन-चारि दिन धुरझार धनरोपनी चलल, एक चौथाइसँ बेसी खेत अबाद भऽ गेल। मुदा पोखैर-झाँखैर नहि भरल तइसँ केते गोरेक अनुमान ईहो हुअ लगल छेलैन जे जँ आद्रामे भूमि भरल नहि तखन रौदियाहे समय मानल जाएत। ओना, ढेनुआर नक्षत्र सभ पछुआएले अछि, तँए पानिसँ भूमि भरैक सम्भावना समाप्ते भऽ गेल सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। आद्रा नक्षत्रक उतारमे सेहो एकटा बरखा भेल जइसँ दू दिन रोपनी चलल, मुदा पोखैर-झॉंखैर खालीक-खालिये रहि गेल। आद्राक शुरूक बरखामे जेतेक पानि पोखैरमे बेसियाएल छल ओ तेरह दिनक जेठुआ रौदमे सुखि कऽ कमियाइये गेल। ओना, आम-जामुनक सुभर पैदावार भेबे कएल अछि।
रेडियोओ-अखबारो सभसँ मान सरोवरक महात्मक भरपूर प्रचार शुरू भेल। गाम-घरक लोक तँ कम्मो मुदा महनथानो सबहक आ शहरो-बजारक लोक सभ आकर्षित भेबे केला। मानसरोवर जेबा-ले सभ तरहक सुविधो भइये गेल अछि। ओना, हवाई जहाजसँ लऽ कऽ हेलीकेप्टर आकि चरिचकिया गाड़ी सबहक रस्ताक बाबजूदो पएरे सेहो चलइ पड़ैए। मुदा से लोकक मनसँ घसैक गेल अछि। घसकबो केना ने करत, जैठामक विचारमे माघ सन जाड़क समयकेँ एक दिन बीतने लोकक मनमे बिसवास जगिते अछि जे गेल माघ उनतीस दिन बाँकी’, तैठाम जँ आधासँ बेसी रस्ताक सवारीक सुविधा मानसरोवरक लेल भइये गेल अछि। तँए, धापे-धाप पहुँचब असान भइये गेल अछि...।
जीतनलाल भाय मनमे रोपि लेलैन जे ऐबेर मान सरोबरक यात्रा करबे करब। दूरक यात्रा अछि तँए जँ एकटा संगी भऽ जाएत तँ ओ नीक रहत।
सातो भाँइक भैयारीमे जीतनलाल भाय लगा पाँच भाँइ बाहरे-बाहर नोकरी करै छैथ, खाली हम दुनू भाँइ माने हम आ जीवनलाल भाय गाममे रहै छी। हमर कोनो हिसाबे ने अछि, सातो भाँइमे सभसँ छोट रहने छबो पढ़ल-लिखल भाइयो आ वृद्ध पिताजी सेहो पढ़बै-लिखबैपर धियान नै देलैन, अनठा देलैन, जइसँ नामो-गाम आ किताबो पढ़ब तँ सीख लेलौं, मुदा गीता-भागवत पढ़ैक लूरि नहि भेल। ओना, धरमागती पुछी तँ हुनका सबहक दोख नहियेँ छैन। किए तँ अधबेसूए अवस्थामे माइयो मरि गेली आ पिताजी सेहो बिमारीक फेड़मे पड़ि गेला जइसँ हमरा पढ़ै-लिखैपर धियान नहि दऽ सकला। ओना, जेठ भाए सभ सक्षम छला जइसँ पढ़ा-लिखा सकिते छला मुदा ओ सभ कान-बात ऐ दुआरे नइ देलैन जे जखन सभ भाँइ नोकरी करिते छी, नीक कमाइ अछिए तखन घरक ओगरवाहियो-ले आ मातो-पिताक टहल-टिकोरा-ले तँ आदमी चाहबे करी, तइले भने भैयारीमे सातम भाय- सेवालाल अछिए। जखन नोकरी-चाकरी नहियेँ करैक छै तखन अनेरे किए पनरह-बीस बरख तक स्कूल-कौलेज धॉंगत...। तँए हम बौक-बकलेल रहिये गेलौं। ओना, हमरा सन ढेरो लोक गामोमे अछि आ देशोमे अछिए। दुनियाँक तँ कोनो हिसाबे नहि। ओना, जँ बुधिमान आ बौक-बकलेलक जनगणना ठीकसँ हुअए तँ एकोअना लोक बुधिमानक श्रेणीमे नइ औत, पनरहअनासँ बेसीए हमरे सन-सन लोकक अछि।
परसू वैज्ञानिक भाय मानसरोवरक यात्रापर निकलता। दूरक यात्रा, तँए एकटा संगीक खगता छैन्हे। ओना, अखन तक बहुतो यात्रा वैज्ञानिक भाय कऽ चुकल छैथ आ से देशक संग दुनियोँक, मुदा तइ सभ यात्रामे पत्नी संग दइ छेलैन। मुदा ऐ यात्रामे जीतनलाल भाय पत्नीकेँ संग नहि लऽ जाए चाहै छैथ। नइ लऽ जाइक विचारक पाछू कारण छैन जे एक तँ उमेरोक हिसाबसँ, दोसर अपन तँ फुहराम शरीरो छैन आ सभ दिन जे लोहा-लक्कड़क बीच काज केलैन तइसँ देहमे ताकतो छैन्हे। मुदा भौजी तँ भरि दिन डेरामे रहि खेबो-पीबो खूब करै छेली आ टी.बी., कम्प्यूटरक खेल देखैत-देखैत अथबलो भइये गेल छैथ, माने केतेको बिमारी सेहो पोसि नेने छैथ तँए वैज्ञानिक भायक मनमे शंका छैन जे जँ पत्नीकेँ संग करब तँ अपन मदत कि हएत जे अपने भरि दिन हिनकर टहल-टिकारो करए पड़त, तँए नहियेँ लऽ जाएब नीक। हमरा, ओना हमर नाओंए सेवालाल छी मुदा आब ओते ऊहिये ने रहल जे मानसरोवर सन रस्ताकेँ पार करब। ओहन-ओहन रस्ताक ठेकाने रहत, आकि दिशांसे नइ लागत सेहो ठीक अछि। तँए, जाइने कऽ वैज्ञानिक भाय हमरा नहि कहलैन। हँ, मैझला भाय–जीवनलाल भाय जे गामेमे रहि विद्यालयमे नोकरी करै छैथ। माने गामसँ कोस भरिपर विद्यालय छैन। तहूमे संस्कृत महाविद्यालय, जेकर की स्थिति अछि से केकरोसँ छीपलो नहियेँ अछि। विद्यार्थीसँ बेसी शिक्षके छैथ। जीवनलाल भाय अपन उपस्थिति बना, एक-आध घन्टा संगी सभसँ गप-सप्प करै छैथ आ घुमि कऽ अबै छैथ। यएह हुनकर सभदिना रूटिंग छैन। प्रोफेसरक दरमाहा सेहो पबिते छैथ जइसँ परिवारोक भरण-पोषण नीक जकाँ होइते छैन। तँए, जीवनलाल भाय बेसी उपयुक्त रहतैन। वैज्ञानिक भायकेँ सेहो जीवनलाल उपयुक्त संगी बुझि पड़लैन। जीवनलालकेँ लगमे बजा वैज्ञानिक जीतनलाल भाय कहलखिन-
बौआ, मानसरोवर जाइक विचार मनमे बहुत दिनसँ अछि मुदा समय नइ पबै छेलौं, तँए नहि गेल भेल। ऐबेर समय पेलौं हेन, जेबाक विचार भऽ गेल। दूरक यात्रा छी तँए जँ दुनू भाँइ संगे चलब तँ नीक रहत।
मानसरोवरक जे आध्यात्मिक परिचय अछि ओ जीवनलाल भाय जनै छैथ, तँए जेबाक कोनो तेहेन जिज्ञासा मनमे नहि जगलैन। ओना, नवकबरिये उमेरमे माने तीसे-बत्तीस बर्खक अवस्थामे जीवनलाल भाय मानसरोवरक यात्रासँ भऽ आएल छैथ जइसँ रस्ताक दुर्गमता अखनो ओहिना मनमे नचै छैन। मुदा वैज्ञानिक भाइक मनमे किए एहेन विचार ऐ उमेरमे एलैन ओ मने-मन जीवनलाल भाय विचारए लगला। मानसरोवरक एहेन रस्ता अछि जैठाम जेबा-ले केतबो गाड़ी-सवारीक सुविधा किए ने भेल मुदा पएरे तँ ओहन रस्ता चलै पड़त जइमे माघो मासक शीतलहरीक जाड़सँ बेसी जाड़ अछि। तेतबे नहि, रस्तो तेहेन उभर-खाभर अछि जे केतए पिछैड़ कऽ खसब आकि ठेँस लागत तेकरो ठीक नहियेँ अछि। ओहन जगहपर जँ जीतनलाल भायकेँ जेबाके छेलैन तँ ओइ उमेरमे जइतैथ जइ उमेरमे सभ किछु बरदास करैक शक्ति देहमे छेलैन। आब जखन बुढ़ भेला हेन, साठि बर्खक उमेर भेलैन हेन तखन मानसरोवर जाइले तैयार भेला हेन। एकरा नेनमैत कहब की नहि? मरै बेरमे जँ बुधिक बखारीए माथमे घोंसिया जेतैन तँ ओकरा लइये कऽ की करता? जाबे नियार-भास करता तइ बिच्चेमे जँ बखारी टुटि कऽ खसि पड़तैन तखन? तहूमे रस्तेमे जँ केतौ मरि-हरि गेला तखन तँ सेहो ने पेब सकता जे पबैक विचार मनमे जोर मारने छैन! मुदा जेठ भाय होइक नाते की बाजब से तँ विचार जीवनलाल भाइक मनमे उठिये गेल छेलैन। ओना, मन निर्णित छेलैन जे कोनो हालतमे जेबाक नहि अछि। मुदा जेठ भाय तँ पिता तुल्य होइ छैथ, आदेशो नइ मानब सेहो केहेन हएत। तँए मुँह बन्न केने जीवनलाल भाय मने-मन विचारैत वैज्ञानिक भाइक आगूमे ठाढ़ छला।
जीवनलाल भायकेँ गुम-सुम ठाढ़ भेल देख वैज्ञानिक भाय दोहरबैत बजला-
बौआ, किछु हँ-हूँ नहि बजलह?”
ओना वैज्ञानिको भायकेँ जीवनलालक गुम्मीक माने लगिते छेलैन, मुदा नइ बजैक माने नहियेँ भेल सेहो केना मानल जाए। तहिना जीवनो भाइक मनमे छेलैन्हे जे नइ जाएब कि जाएब से तँ किछु ने बजलौं हेन। ओना, जीवन भाय मने-मन ईहो सोचि रहल छला जे एहेन-एहेन लोहा-लक्कड़क बीच रहैबलाकेँ झूठ बाजि ठकलो जा सकैए, मुदा छैथ तँ जेठ भाय, जँ बुझि जेता तखन अनेरे चान जकाँ मनमे पहाड़क करिया धब्बा बैस जेतैन। से नहि तँ पहिने गैंची माछ जकाँ थालमे नुकाइक कोशिश करी, जँ सुतैर गेल तँ बड़बढ़ियाँ, नहि तँ दोसर रस्ता धड़ब...। जीवनलाल भाय बजला-
भाय साहैब! अखाढ़ मास चलि रहल अछि, गुरु पूर्णिमा आगूमे अछि, केते प्रेम आ मेहनतसँ  आमक कलम लगौने छी से तँ बुझले अछि। देखते छिऐ जे जहिना राइर, तहिना फैजली, तहिना मोहर ठाकुर अछि आ तहिना अम्रपाली सेहो बोनाएल अवस्थामे तरतर करैए, एकरा सभकेँ छोड़ि जाएब नीक हएत।
जीवनलाल भाइक विचारमे वैज्ञानिक भाय जेना बहि गेला तहिना बोहियाइत बजला-
मानसरोवर जाइमे बर बेसी तँ पनरह दिन लागत, तैबीच की सभ आम सठिये जाएत जे मन छह-पाँच करै छह?”
ओना, जीवनलाल भाइक मनमे उठि चुकल छेलैन जे वैज्ञानिक भाय भौतिक विज्ञान जनै छैथ, मुदा जीवन विज्ञान हमरा जकाँ थोड़े जनै छैथ जे हमर बात बुझता। भावातुर भऽ जीवनलाल भाय बजला-
भाय साहैब, प्रश्न जँ आमे खाएबक रहैत तखन अहाँक विचार सोल्होअना मानै-जोकर छल। किए तँ अखन गाछेमे आम लागल अछि। जँ आठ दिनक पछाइत तोड़लो जाएत तैयो पनरह दिन आरो रहबे करत। मुदा से बात तँ अछि नहि।
अपन विचारकेँ खण्डित होइत देख वैज्ञानिक भाय पुछलकैन-
तखन की अछि?”
जीवनलाल भाइक मन मानि लेलकैन जे प्रश्नक ने उत्तर देब अछि। जेठ भाय रहितो तँ प्रश्नकर्त्ते ने भेला। आह्लादित भऽ जीवनलाल भाय बजला-
भाय साहैब, जहिना वृन्दावनमे कृष्णक परोछ भेने राधिका सभ विरहाए लगै छेली, तइसँ की कम प्रेम हमर आमो आ आमक गाछोक प्रति अछि।
जीवनलाल भाइक विचारमे वैज्ञानिक भाय वौआ गेला। पुन: प्रश्न केलैन-
से की?”
सोलहन्नी गोटी लाल होइत देख जीवनलाल भाय बजला-
जहियासँ आमक पीपही रोपलौं तहियेसँ सिनेहक संग प्रेमो आमो आ आमक गाछियो संग बनि गेल अछि। गाछक संग जुआन हारि गेल छी जे जाबे अपने जीबैत रहब ताबे तोरो जीबैत रखबौ! अपने मानसरोवर जाएब, जइमे कमसँ कम पनरह दिन लागत आ तइ बिच्चेमे जँ चोरे-चहार चोरा कऽ आम तोड़ि लिअए तखन ओकर रक्षा कऽ सकलिऐ? जखन चीजे विरहा जाएत तखन ओकरा संग जे प्रेमक वादा केने छिऐ से रहत?”
भौतिक जुगक भौतिकवादी वैज्ञानिक भाय- जिनक ज्ञान सेवा निवृत्तिक पछाइत जखन विज्ञानक रूपमे लतड़लैन तखन सज्ञानक बाट हुनका मनमे उठलैन। सेवा निवृत्तिक माने काजसँ मुक्त, अर्थात् हाथसँ काज चलि गेल वा छीना गेल। काजुल लोककेँ जखन हाथक काज छीना जाइए तखन अबैबला जिनगी मृतप्राय बनि जाइए। तँए, ओ अपना-जोकर काजक पाछू वौआए लगिते अछि। सएह वैज्ञानिक भायकेँ भेलैन। एक दिस ज्ञान एते प्रखर भऽ गेलैन जे दुनियाँक खोजी बनि गेला। दोसर दिस अपन ज्ञानकेँ विज्ञानक दिशामे बढ़ौलैन आ तेसर दिस विज्ञान, समाज आ शास्त्रक बीचक खाधिमे तेना पड़ला जे मन बबलाकऽ मानसरोवरक यात्राक लहैरमे हेलए चाहि रहल छैन। गणितक गणना करैबला वैज्ञानिक भाय जीवन, समाज आ दुनियाँक जखन गणना करए लगै छैथ तँ हिसाबे गड़बड़ा जाइ छैन। जइसँ कोन हिसाबकेँ सही मानी आ कोन हिसाबकेँ गलत, अही गलत-सहीक बीच मन फँसि गेल छैन। अन्तत: जेकर एकेटा उपाय सुझि रहल छैन जे अपन ऑंखिक देखलकेँ सही मानब। तँए मानसरोवरक यात्रा मनमे गहींर तक धँसि गेल छैन...। वैज्ञानिक भाय बजला-
बौआ जीवन, जेते आम नोकसान हेतह ततेक दाम हम दए देबह।
वैज्ञानिक भाइक विचार सुनि जीवनलाल भायकेँ अपन विचारक रस्ता कटैत बुझि पड़लैन। मने-मन गर अँटबए लगला जे आब की करब। मुदा लगले एकटा जुक्ति फुरलैन। फुरलैन ई जे वैज्ञानिक भाय कि मानसरोवरकेँ शीतल, कोमल, पवित्र हृदय रूपी सरोवर थोड़े बुझि रहला अछि ओ तँ एकटा भौगौलिक स्थान बुझि रहला अछि। ओकरा देखबकेँ काज बुझि रहला अछि। काजकेँ तँ काजेसँ रोकल जा सकैए। से नहि तँ ओहने जब्बर काज जँ आगूमे दिऐन तँ जरूर मन मानि जेतैन आ अपन छुट्टी भऽ जाएत। जखने अपन छुट्टी हएत तखने ने दुनू गोरे छुट्टा भऽ जाएब आ अपना-अपना मने अपन काज सम्हारब, पछाइत अपन विचारता जे केना करब...। जीवनलाल भाय बजला-
भाय साहैब, अहाँ जखन गाम आएलो ने रही तहियेक काज आगूमे सिरचढ़ भऽ गेल अछि, की ओकरा छोड़ि देब उचित हएत?”
वैज्ञानिक भाइक मन कनी ठमकलैन। बजला-
ओ तँ काज-काजपर निर्भर अछि। काजोक तँ अपन माप-तौल अछि। नमहर[i] काजक आगू छोट काजकेँ कम वजन भेल।
जीवनलाल भाइक मनमे खुशी उपैक गेलैन। ओ मने-मन बुझि गेला जे जहिना सत् बात लत्ती जकाँ लतड़ल रहैए तहिना बहानाक लेल झूठोक लत्ती तँ अछिए। मुदा ठाँहि-पठाँहि झूठोक लत्तीकेँ लताड़बसँ नीक जे सामनजस करैत लताड़ी। जीवनलाल भाय बजला-
भाय साहैब, अपनेक संग पूरैमे कनी असोकर्ज भऽ रहल अछि। ने तँ एक संग दू-दूटा महतपूर्ण कर्तव्य अछि तेकरासँ मुँह मोड़ब आकि मुँह घोकचाएब नीक थोड़े भेल?”
नीकक संग अधलो तँ लगले रहैए, वैज्ञानिक भाय सेहो जिनगी भरि यएह ने तर्क करैत सिद्धान्त मनमे रोपने छैथ जे कोनो वस्तुक साक्षेप-निरपेक्ष दुनू होइए। यएह विचार मनमे जगि गेलैन। बजला-
एकरा के नीक कहत?”
एकरा के नीक कहतसुनिते बाढ़िक पानिक पाहिपर चढ़ल रोहु माछ जकाँ जीवनलालकेँ बुझि पड़लैन। मुस्की दैत बजला-
भाय साहैब, जिनगीक कोनो ठेकान अछि जे केते दिन सेवा करैक मौका भेटत। तखन तँ भेल जे जखने सेवा करैक गर लागए कि ओकरा करैत चली, निमाहैत चली मुदा तइमे अपना थोड़ेक खाँच भऽ रहल अछि।
वैज्ञानिक भाय बजला-
बौआ, की खाँच भऽ रहलह हेन?”
मनकेँ मसोसैत मुहकेँ चिकुरियबैत जीवनलाल भाय बजला-
भाय साहैब, छह मास पहिलुके बात छी, एके दिसम्बरकेँ अपना सारिकेँ ऑपरेशन करबए डाक्टर ऐठाम गेल रही। पेटक भीतरक ऑपरेशन रहइ। बिमारीक नाओं बिसैर गेल छी। तेते भीड़ ओइ डाक्टर ऐठाम देखलिऐ, जे की कहूँ। छह-छह मासक नम्बर लगैए। हिनकर नम्बर चारिम दिनक छैन, आब अहीं जे कहब से करब।
वैज्ञानिक भाइक मन मानि गेलैन जे अपने ने घर-दुआर, गाम-समाज छोड़ि बाहर रहलौं, मुदा जीवनलाल तँ सभ दिन गामेमे रहि आर्थिको उपारजन केलक आ समाजक सेवो केलक। तँए, ओकरो अपन जीवनो छै आ जीवनक गतिविधियो तँ छइहे। वैज्ञानिक भाइक मनमे धाँइ-दे खसलैन- केकरो जीवनमे बाधा उत्पन्न करब सभसँ पैघ अपराध छी। तहूमे जँ ऐ सालक (माने जनवरीक पछातिक) काज रहैत तँ ओकरो आगूओ बढ़ाएल जा सकै छल, जेना लोक सराधक (श्राधक) भोजो आ किरियो-कर्म बरखी दिन-ले रखि लइए। मुदा ई तँ जीवन-मृत्युसँ जुड़ल अछि। ओना, जीवन-मृत्युसँ जुड़ल अनेको प्रश्न जुड़ल अछि। मुदा जीवनक प्रति लोकोक तँ अपन-अपन नजैर अछिए। जहिना करोड़ो-अरबो लोक अछि तहिना करोड़ो-अरबो नजैर सेहो अछिए। कियो पानिसँ हल्लुक हवाकेँ आ कियो माटिसँ हल्लुक पानिकेँ तँ कियो पाथरसँ हल्लुक माटिकेँ बुझैए। मुदा अपन-अपन जगहपर सभ भारियो अछि हल्लुको अछिए। पानिक जँ समुद्र छी, माने पानियेँ समुद्र छी तहिना पाथरेक पहाड़ो छी, माने पहाड़े पाथरो छीहे। तही बीच ने झंझटो अछि आ मिलान सेहो अछिए। अफ्रीकाक जंगल कहियौ कि सहाराक मरूभूमि कहियौ आकि रामवन कहियौ कि वृन्दावनक कृष्णवन, सबहक बीच तँ जीवन चलिये रहल अछि..! वैज्ञानिक भाय अपन विचारक अस्तित्वकेँ असथिर कइये ने पेब रहल छैथ। मनक ओजकेँ शरीरक ओजसँ मेल-मिलाप भइये ने रहल छैन। असोथकित होइत वैज्ञानिक भाय बजला-
बौआ, मनमे जखन रोपि नेने छी जे मानसरोवर जेबे करब तखन तँ भेल जे एकटा संगी रहने कने नीक होइ छइ।
वैज्ञानिक भाइक सहमैत विचार देख जीवनलाल भाय बजला-
भाय साहैब, व्यक्तिगत हमर खगता नइ ने अछि, संगी चाही, तइले अहाँ चिन्ता जुनि करू। अखने हम गाम दिस जाइ छी, मानसरोवर चलैक हरविर्ड़ो कऽ देबइ। पुरुख-पातर जँ संगी नहियोँ हेता तैयो दसटा जनीजाति संगी हेबे करती।
ओना, जीवनलाल भाइक विचार सुनि वैज्ञानिक भाइक मन जुड़ेलैन, मुदा शंका ईहो भेलैन जे जँ दसटा जनीजाति संगी भऽ जाएत तखन दसोक हिसाब-बारी लगबैमे दस गुणा काज बढ़िये जाएत...।
सामंजस करैत वैज्ञानिक भाय बजला- जँ दसटा भऽ जाथि तखन तँ सर्वोत्तम भेल। नहि तँ एकोटा जँ भऽ जाथि तैयो एक मानसरोवर कि जे सइयो मानसरोवर जाएब असान भऽ जाएत किने।
जीवनलाल भाय बजला- भाय साहैब, हम ते असगरे गेल रही, कहाँ केतौ भियौन लागल?”
भियौनसुनि वैज्ञानिक भाइक मन सुरखुरेलैन। सुरखुराइते मनमे उठलैन- नारदजीकेँ कोन संगी छेलैन जे चौदहो भुवन आ तीनू लोक घुमै छला..? नारदजीक घुमब मनमे अबिते वैज्ञानिक जीतन भाइक चेहरापर स्वीकारोक्तिक भाव झलकए लगलैन। जेकरा देखते जीवनलाल भाय बजला-
अहाँ अपन तैयारी ठीक राखू संगी भेटबे करत। जखन चोरोकेँ संगी भेटै छै, झूठो बजनिहारकेँ संगी भेटै छै तखन सौध (शुद्ध) केँ किए ने संगी भेटत।
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शब्द संख्या : 2576, तिथि : 31 जुलाई 2018




[i] भारी