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Wednesday, July 5, 2017

भूतलग्‍गू आकि भविसलग्‍गू

जेठ मास। पाँच बजे बेरुका समय। मधुबनीसँ अबिते रही कि गामक कातेमे नेबुआवाली भौजी भेटली। बिस्‍टौल हाट जाइ छेली। सोम आ शुक्र दिनकेँ हाट लगैए। आइ शुक्र छी। भेटते बजली-
कनी साइकिल ठाढ़ करू।
ओना साइकिल नीक जकाँ ठाढ़ नइ केलौं मुदा जखने भौजी नजैरपर पड़ली तखनेसँ साइकिलक चालि थोड़ेक असथिर काइये देने छेलिऐ। बजलौं-
साइकिल ठाढ़ करैले किए कहलौं?”
साइकिलेपर चढ़ल रहलौं मुदा एकटा पएर रोपि ठाढ़ भेलौं। ठाढ़ होइते भौजी बजली-
घरवालीकेँ भूत लगल अछि आ अपने साइकिलपर चढ़ि छिरहारा खेलाइ छी!”
ओना, नेबुआवाली भैजीकेँ नइ बुझल छेलैन जे मधुबनीसँ अबै छी। किए तँ जहिना गाम-घरमे धोती-कुर्ता पहिरने आ कान्‍हपर तौनी रखै छी, तहिना झंझारपुरो-मधुबनी जाइ छी तँ रहैए, तँए भरिसक भौजी नहि बुझि पेली जे मधुबनीसँ अबै छी। ओना एक तँ साइकिलोक चालिसँ आ दोसर समैयोक हिसाबे देह-हाथ नइ घमाएल छल आकि चाइनपर सँ पसेनाक धार नइ बहै छल सेहो बात नहि, बहिते छल। मुदा तैपर भौजीक नजैर ऐ दुआरे नइ गेलैन जे रौदक चालिमे अपनो देह घमाएले छेलैन।
भिनसुरका कोर्ट चलैए, चारि बजे भोरे उठि तैयार भऽ मधुबनी गेल छेलौं। आ कोर्ट उसरला पछाइत अढ़ाइ बजेमे ऐगला तारीख लैत मुंशीजी सँ गप-सप्‍प करैत तीन बाजि गेल छल। सबा तीन बजे मधुबनीसँ विदा भेल छेलौं। ओना, कोर्टक काज ढीले-ढाल चलैए तँए मनमे कोनो तरहक तेहेन बातो नहियेँ छल जे मन केम्‍हरो घुसकैत-फुसकैत। असथिर छेलौंहे। ओना मनो घुसकै-फुसकैक कारण होइए जे कोर्टेसँ केकरो धनो भेटै छै आ केकरो जीवनो जाइते छै, मुदा से नहि अपन पैंतीस साल पुरान अगिलग्‍गी (436) केस अछि। जइ समैमे केस भेल ओइ समए खेत-पथारक झंझट गाम-गाममे पसरल छल। ओना, खेत-पथारक झंझट अखनो नइ अछि सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। अखनो अछिए, जँ से नहि अछि तँ जे छेहा गरीब अछिमाने जेकरा एको धुर अपना नामे जमीन नइ छैओकरा सरकारी घरो कहाँ छइ।
आने गाम जकाँ हमरो गाममे बहरबैया जमीनदारक जमीनपर झंझट भेल। दखल-दिहानीक दौड़मे अगिलग्‍गी केस भेल। जमीनमे टाट-फरक ठाढ़ कए जमीनदारक लगुआ-भगुआक द्वारा आगि लगौल गेल छल, जइ लगबैमे हम-सभ फँसौल गेल छेलौं। तीस आदमीक ऊपर केस भेल छल। तइ बीच जमीनक सभ दशा सेहो भेल। मुदा केस कचहरीमे लटकले अछि। सालमे दू बेर तारीख लइ छी आ मधुबनी जाइ-अबै छी। ओना, मधुबनी गेलापर बहुत बात मन पड़ैए। मन पड़ैए टीशन कातक होटल, मन पड़ैए कोर्टसँ जहल आ जहलसँ कोर्ट अबै-जाइ काल गाड़ीमे सिपाहीक पहरा, मन पड़ैए जही कोर्टसँ जहल जाइ छेलौं तेही कोर्टसँ छुटि कऽ अबितो छेलौं...।
ओना, जइ समए केस भेल छल तइ समैक स्‍थिति आ अखुनका स्‍थितिमे बहुत बदलाउ आबि गेल अछि। माने ई जे ओइ समैमे अगिलग्‍गी केसक बहुत महत छल। मास-मास, तीन-तीन मास केसक जमानत नइ होइ छल आ सेशन केसक रूपमे ओकर तहकीकात सेहो होइ छल मुदा आब से नहि रहल। ने अगिलग्‍गी केसे बेसी होइए आ ने ओइ रूपे ओकर तहकीकाते होइए। समए बदलने आब अपहरण आ राहजनीक घटना बढ़ि गेल अछि। आब एकर महत बढ़ि गेल अछि।
पैंतीस सालक बीच केस सेहो मधुबनी-झंझारपुर तीन केलक। तीन बेर करैक कारण भेल जे झंझारपुरमे कोर्ट बढ़ने (सेशन कोर्ट) मधुबनी कोर्टसँ केस झंझारपुर आबि गेल। मुदा किछुए दिनक पछाइत पुन: केस मधुबनी चलि गेल। तेकर कारण भेल साल भरिसँ सेशन कोर्ट खाली रहल, जजक अनुपस्‍थिति रहल। ओना मधुबनियोँ कोर्टक हालत तेहने रहल। अधिकतर कोर्ट जजक अनुपस्‍थितिमे खालीए रहौ लगल आ अखनो अछिए। मुदा किछु अछि तैयो ने कोर्ट हरदा बाजल अछि आ ने अपने हरदा बजलौं अछि।
नेबुआवाली भौजीक संग सम्‍बन्‍ध[1] बहुत पुरान नहियेँ अछि, हाले-सालक माने आठे-नअ बर्खक अछि। ओना सिंहेश्‍वर भाइक संग भैयारीक सम्‍बन्‍ध बच्‍चेसँ अछि, करीब पचास-पचपन बर्खसँ मुदा जहिया नेबुआवाली भौजी एली (दुरागमनक पछाइत) तहियासँ करीब बीस-पचीस बर्ख तक, दियर-भौजाइक जे सम्‍बन्‍ध अखन बनि गेल अछि, से नहियेँ छल। ओना टोका-टोकी कोनो काजे नइ होइत छल सेहो बात नहियेँ रहल अछि, मुदा ओ परिवारिक काजक अनुकूल रहल। असल दियर-भौजाइक बीच जे बेकता-बेकती सिनेह-सिक्‍त सम्‍बन्‍ध हेबा चाही ओ आठ-नअ बर्खसँ अछि। हुनको देहक समरथाइ निच्‍चाँ मुहेँ उतैर गेल छैन आ अपनो तँ सहजे उतरले अछि।
ओना, आठे-नअ बर्खक सम्‍बन्‍धमे भौजियो हमरा चीन्‍हि नेने छैथ आ हमहूँ हुनका नीक जकॉं चीन्‍हि नेने छिऐन। मुदा ओ अपना जगहपर चिन्‍हारए अछि। बजै-भुकैमे अरबा चाउरक बसिया भात जकॉं नेबुआवाली भौजी कनी बेसी फरहर छथिए। तँए मनमे बेसी झॉंट-बिहाड़ि नहियेँ उठल। माने ई जे नेबुआवाली भौजी जे बजली घरवालीकेँ भूत लगल अछि आ अपने छिड़हारा खेलाइ छी। तँए मन बेसी आगू-पाछू नइ भेल मुदा कनी-मनी झॉंट तँ मनमे लगबे कएल। झॉंट ई लगल जे उपकैर कऽ एना किए नेबुआवाली भौजी बजली? जँ परिवारक बात छी तँ ई ने कहक चाही छेलैन जे केते कालसँ घरसँ बहराएल छी। अनेरे तँ सभ बात सोझहामे आबि जाइत। मुदा घरवालीकेँ भूत लगल अछि, एहेन बात किए बजली? खाएर..। मनकेँ थतमारि बात बदलैत पुछलयैन-
एते रौदमे केतए जाइ छी?”
नेबुआवाली भौजी बजली-
कनी हाटपर जाइ छी। तेहेन ने रौदियाह समए भऽ गेल अछि जे तीमन-तरकारी दुआरे काल्‍हि रातिमे अँचारे संगे रोटी खेलौं।
ओना भौजीक बोल तेलमे डुमल तीन सलिया आमक अँचार जकॉं सोहनगर अखनो बुझि पड़ै छल, मुदा परिवारक बात सुनि मन कनी खसिये रहल छल। बजलौं-
की करबै, समैये जखन एहेन रौदियाह भऽ गेल तखन दोसर उपाइये की अछि।
कहि साइकिल आगू बढ़ेलौं। नेबुआवाली भौजी सेहो उत्तर मुहेँ हाट दिस बढ़ली।
ओना, मनमे कनी-कनी बिनबिनी उठिये रहल छल, जे कनी खरियारि कऽ आरो आगू-पाछूक बात पुछि लितिऐन मुदा चीन्‍हल लोक नेबुआवाली छथिए जे तिलकेँ तार आ झूठकेँ सत्‍ बनबैमे हजार बेर किए ने बोलीक वाणी बदलैक जरूरत पड़ैन, ओ मुहे-मुहीं बदैल लइते छैथ, तँए मनमे जेहेन मर्मक स्‍थिति बनक चाही, से नहियेँ बनल।
लग्‍गी भरि जखन आगू बढ़लौं तखन मनमे उपकल जे एकबेर पाछू उनैट भौजीकेँ आरो बात पुछिऐन, मुदा दोसर मन पहिल मनकेँ रोकलक। रोकलक ई जे जखन भरि दिनक बहराएल छी तइ बीचमे जँ कियो किछु तेहेन बात पत्नीकेँ कहि देने हेतैन आ ओ बजैत-बजैत बताहिक रूप बना नेने हेती, सएह रूप देख जँ नेबुआवाली भौजी बाजल हेती तखन किछु अंशमे सहियो तँ भेबे कएल। ओना विचारक दौड़मे से नहि भेल, किए तँ तत्त्वदर्शी चिन्‍तक क्षणेमे छतपर चढ़ि जाइ छैथ आ पलेमे पताल पहुँच जाइ छैथ...। मने-मन विचारितो रही आ साइकिलो चलिते रहल।
चारि लग्‍गी आगू बढ़ैत-बढ़ैत मन पत्नीक नैहर दिस बढ़ि गेल। नैहर दिस बढ़िते मनमे भेल जे जँ पत्नी भूतलग्‍गू रहितैथ तँ नैहरेसँ लगैत आएल रहितैन। मुदा से कहाँ कहियो लगलैन? लगले भेल जे रौदमे चालीस किलो मीटर साइकिलसँ एलौं हेन, भरिसक तइसँ चेहराक रूप बदैल गेल अछि तँए चिक्कारीमे ने तँ नेबुआवाली भौजी बजली? ओना, चारू दिस नजैर खिड़ाबी जे कोनो दोसरो-तेसरो कारण तँ नइ ने अछि। मुदा से कोनो गरेपर ने चढ़ए।
नैहरसँ पत्नीकेँ सासुर एला कहुना-कहुना तँ तीस-पैंतीस बर्ख भाइये गेल हेतैन, तैबीच जेते धिया-पुता हेबा चाही सेहो भाइये गेलैन। कहियो किछु ने देखलौं। तखन किए नेबुआवाली भौजी कहली..! मन उनटल। उनैटते उठल- समाजमे एहनो लोकक तँ कमी नहियेँ अछि जे चाहे पति-पत्नीक बीच हुअए आकि भाइ-भाइक बीच आकि दियादिनी-दियादिनीक बीच वा बाप-बेटाक बीच झूठ-फूस बात गढ़ि मतभेद नइ पैदा करैए। करिते अछि आ खूब करैए। समाजो तँ समाज छी किने, केकरो मुँह छै तँ नॉंगैर नहि, आ केकरो नॉंगैर छै तँ मुँह नहि, मुदा तैयो घरक धारण नइ केने अछि सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए।
थोड़ेक आगू बढ़लौं कि धक-दे मनमे उठल। जेठ मास छी दशराहा परसुए भेल। भूत-प्रेतक बास गाछी-बिरछीमे होइ छइ। अखन तँ दू माससँ सभ गाछी-बिरछीमे आम-जामुनक ओगरवाह बैसले हएत, तखन तँ भूतो-प्रेत ने ओगरवाहक डरे पड़ा गेल हएत। ओना, जखन आम-जामुन गाछमे लटकल रहैए आ ओगरवाह बीच गाछीमे मचान बना जगलो रहैए आ सुतलो रहैए तखन कहाँ केकरो भूत लगै छइ? जखन आम-जामुन गाछी-बिरछीमे नइ रहल तखन पतखरड़नी सभकेँ कहियो काल बँसबिट्टीमे चुड़ीन-तुड़ीन लगितो अछि, मुदा सेहो मास तँ नहियेँ छी..!
केतबो मनकेँ असथिर करी तैयो किछु-ने-किछु उपकिये जाए। अपना घरसँ कनी पाछूए रही कि मनमे फेर उठल- जँ कहीं नेबुआवाली भौजी झुठे कहने हेती, तखन? फेर लगले भेल जे भूतो तँ भूत छी, कोनो कि एक्के रंगक आकि एक्केटा अछि। रंग-बिरंगक अछि। मुदा कोन रंगक अछि ओ तँ देखला-बुझला पछातिये फरिछाएत, तइले अनेरे मनकेँ भरियौने छी। मन हल्‍लुक होइते लोकक मनकेँ मन देखए लगल। लोकक मनपर मन पड़िते मन थीर भेल। थीर होइते उठल- कहूसमए ओते आगू बढ़ि गेल जे लोक अँगनाक मड़बासँ ऊपर उठि हवाइये जहाजमे बिआहो करैए, भोजो-भात करैएमुदा गाम-घरमे अखनो भूत-प्रेत लगिते छइ! एक्कैसमियो सदीमे जँ अहिना भूतमे लोक भुतियाइत रहत तखन ओझा-गुनी केतए-सँ औत। मन ठमैक गेल।
ठमैकते मनमे उठल, परसू जेठक दशराहा छल। एक तँ तीन माससँ एको बून पानि नहि पड़ल, ओहिना वायुमण्डल गर्म अछि, तैपर रौदो तेहेन होइए जे माटिक रस तेना चुइस नेने अछि जे रसे-बेरस भऽ गेल छइ। दिनक दसे बजेसँ बाध-बोनमे लू चलए लगै छइ। भऽ सकैए जे कोनो काजे पत्नी बाध दिस गेल हेती आ लू-तू पकैड़ नेने होनि जइसँ मन गरमा गेल होनि आ बताहि जकाँ आकि भूतलग्‍गू जकाँ बोलीक बानि भऽ गेल होनि। किएक तँ मौसमक हिसाबसँ सभ किछु नहियोँ तैयो बहुत किछु तँ बदलियो जाइए। ओना, मौसमो-मौसमोक अपन-अपन चालि-प्रकृति छइ। बरसातक पछाइत जे स्‍वाती नक्षत्र अबैए आ ओकर जे बून छै ओ जँ केराक मुँहपर पड़त तँ कपूर बनत, सिप्‍पीक मुँहपर पड़त तँ मोती बनत आ साँपक मुँहपर पड़त तँ बीखे बनत किने। भलेँ एक्के नक्षत्र आ एक्के बर्खाक बून किए ने हौउ। तहिना ने जाड़क पछातिक मौसमक बून आकि गरमीक पछातिक मौसमक बूनमे सेहो अन्‍तर हेबे करत..?
रंग-रंगक विचार मनमे उठिये रहल छल ता घर लग पहुँच गेलौं आ पत्नीकेँ दलानक आगूमे ठाढ़ देखलयैन। चुप-चाप ठाढ़ छेली तँए बोलक बाइनिक कोनो आभास नहियेँ भेल। ओना, अखन धरिक जिनगीमे दुनू परानीक बीचक जे सम्‍बन्‍ध रहल अछि ओइमे कहियो कोनो खटास नहियेँ आएल अछि जइसँ कोनो छोटो-क्षीण अबिसवास जगैत। ओना, वैचारिक रूपमे कहियो काल विचार-भेद जरूर होइए मुदा ओकर समाधान तँ परिवारक चलैत जिनगीक धारक क्रियाक रूपमे भाइये जाइए।
हमरा देखते पत्नी बजली- 
एते रौदमे किए चललौं। कनीकाल मधबनियेँमे बिलैम जाइतौं से नहि?”
ओना मने नहि देहो-हाथ थकियाएले छल तँए जेहेन उत्तर पत्नीकेँ दिअक चाही से नइ दऽ पेलिऐन। मनमे छल जे कहिऐन- जँ लोक जाड़क डरे आकि रौदक डरे आकि झाँट-पानिक डरे घरसँ निकलबे छोड़ि दिअए तखन ओकर जिनगीक गाड़ी केना चलतै। ओना, ई दीगर अछि जे जखन समय असहज भऽ जाइए तखन ओकर अनुकूल लोक अपन जिनगीकेँ धड़ियबैत चलैए। मुदा से नहि, हारल सिपाही जकाँ अपनाकेँ समरपित करैत कहलयैन-
आब कि कोट-कचहरीमे एको क्षण रहैक मन होइए, तहूमे मधुबनीमे। जेतेकाल काज छल तेतेकाल काजमे हेराएल छेलौं। काज होइते पड़ेलौं।
ओना आन स्‍त्रीगण जकॉं पत्नी गपकेँ बेसी नहि नमरा बजली-
कनी काल छाहैरमे ठंढा लिअ, पछाइत किछु खाइयो-पीब लेब चाहे पहिने नहाइये लेब।
ओना मनमे नेबुआवाली भौजीक गप नचैत रहए। मुदा अगुआ कऽ बाजबो तँ नीक नहियेँ होइत। पत्नीक विचार हुनके मुहेँ किए ने सुनब जे आन स्‍त्रीगणक मुँहक बाते जँ दुनू परानीमे झगड़े भऽ जाए, सेहो केहेन हएत। तँए मनकेँ थतमारि कऽ राखबे नीक बुझलौं। ओना, मनमे ईहो हुअए जे नेबुआवाली भौजी जे भूत लागब कहने छली आ जँ लगल हेतैन तँ बोलिये वाणीसँ ने बुझि जाएब।
कुरता-गंजी निकालि रौदमे दैत पत्नीकेँ कहलयैन-
कनी पंखा नेने आउ।
ऑंगनसँ पंखा आनि पत्नी ठाढ़े-ठाढ़ चलबए लगली। दसे हौंकैनमे मन शान्‍त भऽ गेल। मन शान्‍त होइते बजलौं-
नेहेनाइ तँ अछिए मुदा पहिने पानि पीब, चाह पीब आ पान खाएब तेकर पछाइत बुझल जेतइ।
बड़बढ़ियाँ कहि पत्नी ऑंगन दिस बढ़ि गेली।
ओना, नेबुआवाली भौजीक विचार मुहसँ निकलैले धानक गम्‍हरा जकॉं घोघमे तरतर करैत छल मुदा अपन थकानो आ चालिक गरमियोँसँ गप-सप्‍प करैक इच्‍छा मनमे नइ होइत रहए। ओना पत्नीक मुँहक चुहचुहीसँ बुझि पड़ै छल जे किछु बात पेटमे एहेन छैन जे बजैले लुस-फुसा रहली अछि मुदा हमरा रौदाएल बुझि ऐ दुआरे ओकरा पेटमे थतमारि कऽ रखने छैथ। भऽ सकैए मनमे ई होइत हेतैन जे रौदाएलमे कहने गरमाएलमे जँ कहीं बुझैयेमे तल-विचल भऽ जेतैन आकि अपन बजैयेमे भऽ जाएत तखन तँ ओकर अरथो अनर्थ हएत। जइसँ उत्तरो ओहने हएत। नीक उत्तर तँ तखन भेटैए जखन ओकर चारू कोण समगम रहल। किए तँ अही दुनियॉंमे ने रहैयोक अछि जइ दुनियॉंमे चारू कोणक लोक अछि।
ओना बेसी उमेर भेला पछातियो पत्नीक देहक पानि अखनो ओहने जलजलौ छैन जेहेन एहेन उमेरक हेबा चाही। मोटा-मोटी यएह बुझू जे देहमे आसकैत ओते नइ छैन जेते आन बत-बनौन स्‍त्रीगणमे रहैए।
चुल्‍हिपर चाहक केतली चढ़ा ऑंचकेँ नीक जकॉं लगा लोटामे पानि नेने पत्नी पहुँचली। ओना, अपन मन रहए जे ठेहुनसँ निच्‍चो आ भरि बाँहि पहिने धोइ ली जे थाकैन मारक होइए, मुदा मन असकता गेल। पत्नीक हाथसँ लोटा लऽ दू बेर कुर्रा केलौं आ भरि छॉंक पानि पीलौं। तैबीच पत्नियोँ चाह नेने पहुँचली। एक गिलास चाह पीब पत्नीकेँ चाबस्‍सी दैत बजलौं-
जेहने चाह पीबैक इच्‍छा छल तेहने बनेबो केलौं!”
ओना, चाह आने दिन जकॉं छल मुदा देहक थकानक भूख बढ़ने वस्‍तुक (पीबैक) सुआद सेहो बढ़ाइये देने छल मुदा पत्नीकेँ बातक उन्‍टा अर्थ लागि गेलैन। उन्‍टा अर्थ ई जे हम तँ चाहक सुआद पेब बाजल रही मुदा पत्नीकेँ भेलैन जे व्‍यंग्‍य स्‍वरूप बजला। मुदा लगले ईहो होनि जे जखन सभ दिन अही चुल्‍हीपर अही हाथे चाह बनबैत आबि रहल छी तखन आन दिन की इच्‍छा नइ भरै छेलैन जे एना बजला? मुदा अपन जे विचार पतिकेँ कहैक रहैन ओइ आगू एकरा (माने चाहक गपकेँ) तुच्‍छ बुझलैन तँए मने-मन दबैत बजली-
हाथमे कि पाँचो ओंगरी एके-रंग अछि, तहिना ने पाँच दिनमे पॉंचो रंगक चाह तँ भाइये सकैए। अहाँकेँ केहेन चाह पीबैक मन अछि आ हमरा केहेन चाह बनबैक विचार अछि ओ गुम्‍मा-गुम्‍मीसँ थोड़े काज चलत। जँ सएह छल तँ कहि दइतौं जे कनी बेसी लीकरे आकि कोनो आने वस्‍तु बेसी करि कऽ आकि कम करि कऽ देबइ।
पत्नीक झपटसँ बुझि पड़ल जे जाबे अपनो ओहने नइ बनब ताबे ठीक-ठीक काज चलैबला नहि अछि। चाह पीब पान खा नेने छेलौं। बजलौं-
गामक हाल-चाल नीक अछि किने?”
गामक हाल-चाल सुनि पत्नीक मनमे जेना दुपहरियाक बात नाचि उठलैन। बजली-
नाँहकमे सौंसे गामसँ झगड़ा भऽ गेल!”
पत्नीक बात सुनि मनमे उठल जे कोनो समाजिक बात जरूर अछि। जँ से नहि रहैत तँ एक गोरेसँ ने झगड़ा होइतैन। सौंसे गामसँ किए भऽ गेलैन। मुदा प्रश्‍नक जड़िमे केतौ-ने-केतौ समाजक धारा जरूर छीपल अछि तँए समाजिक धारामे तँ नहि, मुदा मजकियल धारामे बजलौं-
सौंसे गामक लोकसँ झगड़ा केलौं आ झोंट ओहिना देखै छी, तखन झगड़े की भेल?”
खिसिया कऽ पत्नी बजली-
से की?”
सोझरबैत बजलौं-
जाबे स्‍त्रीगण झोंटा-झोंटौबैल नइ केलक ताबे ओकर झगड़ाक कोनो मानि नहि। ओ कोनो खेलक सर्ड़ी भेल।
पत्नीक रूप बदललैन। बजली-
भदुआरवाली कुम्‍हैन आएल छेली, परसू दशराहा रहै, लोक अपन-अपन घोड़ा चढ़ौलक। उधारे लोक एक-एकटा घोड़ा कुम्‍हैन ऐठामसँ लऽ अनलक।
बिच्‍चेमे बजा गेल-
मर्रई की भेल! एहेन तँ सभ साल होइते अछि।  
सम्‍हारैत पत्नी बजली-
सभ दिनसँ घोड़ाक दाम तँइ छल, जइ हिसाबे आन साल दइ छेलखिन।
बजलौं-
ऐ बेर की भेल?”
पत्नी बजली-
भदुआरवाली कुम्‍हैन अरि कऽ ठाढ़ भऽ गेली जे आब सभ किछु महग भऽ गेल, हमरो रंग-टीप करैमे खरच बढ़ि गेल अछि, तँए ओइ हिसाबे घोड़ाक दाम लेब।
पत्नीक बात सुनि मन हूमरल। मनकेँ हुमैरते विचार गुम्‍हरल। बजलौं-
ई तँ उचिते भेल।
उचित सुनि पत्नी छड़ैप कऽ बजली-
हमहूँ तँ सएह कहलिऐ। मुदा एक दिस ठाढ़ीवाली, ननौरवाली आ तमोरियावाली भऽ गेली आ दोसर दिस नेबुआवाली आ धेपुरावाली भऽ गेली। दुनू दिससँ कौआ जकॉं लूझए लगली।
बजलौं-
पछाइत की भेल?”
पत्नी बजली-
तामसमे कहा गेल जे तोरा सभकेँ भूत खिहारने छह, तँए भुतियाएल छह।
पत्नीक बात सुनि मनमे भेल जे भरिसक अहीक उपराग नेबुआवाली देने छेली।
शब्‍द संख्‍या : 2470, तिथि : 23 जून 2017


[1] दियर-भौजाइक

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