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Friday, March 24, 2017

गामक कटान

गामक कटान
ओना गामशब्‍दक अर्थ भौगोलिक नजरिये अछि। जइमे खेत-पथार बान्‍ह-सड़क, पोखैर झॉंखैर, धार-धुर, गाछ-बिरीछ इत्‍यादि अछि। मुदा ऐठामजे चलनियोँमे अछि आ विचारोमेगामक अर्थ गामवासी वा समाजसँ अछि। कोनो गाममे नमहर भोज भेने बेसी आने गामक पंच[1] रहै छैथ जेकर गणना गामेक कोटिमे होइए। 
भोरक पँचबजिया बस पकैड़ मधुबनी विदा भेलौं। सबेरगरे ऐ दुआरे विदा भेलौं जे कोर्टमे खाली हाजरीए-टा नइ देब छल जे अबेरो गेलासँ सम्‍हैर जाइत, बहसपर केस चढ़ल अछि तँए आन-आन आँफिसक नक़लो लेनाइ आ ओकीलो साहैबसँ राय-विचार केनाइ छल जे सबेर-सकाल नहि गेने काज नहि सम्‍हरैत, तँए छअ बजैत-बजैत मधुबनी पहुँचैक छल।
काजक संजोग नीक बनल, जहिना ओकील साहैब ब्रशे करैकाल भेट गेला तहिना मुंशियोजी बजारसँ तरकारी कीनि घुमल रहैथ। सभ काजक गप तीनू गोरेक बीच भऽ गेल। सभ अपन-अपन काज दिस झुकि गेलौं। तीन बजैत-बजैत सभ काज निपैट गेल।  
ओना, समए दुआरे नहा नहियेँ भेल मुदा सबेर-सकाल होटलमे खा जरूर नेने छेलौं। बिनु नहेनौं बैशाख-जेठ जकाँ देहो आ मनो भरियाएल नहियेँ बुझि पड़ै छल, किएक तँ पूस मास छी किने। पूसे मास ने ओ मास छी जइमे एको दिन–तिलासकराँतिक दिन–नहेने मासो दिनक मिनहा भाइए जाइए।
काज निपटला पछाइत मनमे भेल जे ओकील साहैबसँ भेँट करैत निकलिये जाएब नीक हएत। एक तँ जाड़क मास छी, दोसर भोरक जाड़मे घरसँ निकलल छेलौं, जँ सौंझुको जाड़ एतै पकड़ा लेब सेहो नीक नहियेँ हएत। अनेरे जे गपो-सप्‍पमे आ घुमैयो-फिड़ैमे समए खटिया लेब आ बसमे सिरसिराइत रस्‍ता काटब तइसँ नीक ने रौद-मुहेँ गाम पहुँच जाएब। रौतुका घूरोक ओरियान करैक समए जँ भेट जाएत तैयो अधहा दिन नीक जकाँ कटैक ओरियान काइए लेब। ऐठाम दिनक माने भेल चौबीस घन्‍टा, दिन-राति मिला कऽ। दिनेक हिसाबमे रातियो अछि, जँ से नइ अछि तँ रेलबे किए बारह बजे अधरतियेसँ दिनक मिनहा करए लगैए आ ऋृषि-मुनि किए दिनक पहिल पहर तीन बजे भोरसँ मिनहा करै छैथ। ओना, दस बजेक चढ़न्‍त राति हौउ आकि दू बजे भोरक राति हौउ, जँ सन्‍तानक उत्‍पत्ति होइए तँ ओ रातिक मिनहाकेँ काटि दिनेक हिसाब पकैड़ लइए।
लहसैत दिने गामक सीमानपर पहुँच गेलौं। पएरे बस पकड़ैले तीन किलोमीटर जाइते छी, तँए पएरे घुमलो रही। पाछूसँ लबड़दौर भाय सेहो साइकिलसँ अबैत सीमानक कातेमे पकैड़ लेलैन। देखते पाछूए-सँ टोकैत बजला-
राधेश्‍याम, केतौ बाहरसँ अबै छह?”
पाछूक टोक छल, चलब रोकि ठाढ़ भेलौं। ताबे लबड़दौरो भाय दहिना भाग दिस साइकिल रोकलैन, दुनू गोरे गप-सप्‍प करैत गाम दिस बढ़लौं।
ओना, लबड़दौर भायकेँ भीतरसँ चिन्‍है छिऐन जे गामक कुटनी करैमे दु:शासने सन महारथ छैथ। एक दिन दुनू गोरेक बीच तेहेन मुहाँ-मुहीं भेल जे ओइ दिनसँ आगूसँ टोकब परहेज कऽ नेने छी, मुदा लबड़दौर भाय तँ से नहि छैथ। हुनका जिनगीक खेल बुझू कि गमैया राजनीति आकि गामक कटान करैबला महानायक, से तँ छथिए। खाएर जे छैथ, मुदा जखन आगू भऽ टोकि देलैन तखन चुपो तँ नहियेँ रहल जा सकैए। बजलौं-
हँ, भोरे मधुबनी गेल छेलौं।
हमर बात सुनि लबड़दौर भाय पाशा बदलैत बजला-
जीतू तँ गाममे आगि लगा देलक!”
जीतू काकाक नाओं सुनिते हदास उड़ि गेल। उड़ि ई गेल जे केहेन विसाइन समाचार कहि रहला अछि। मुदा मनकेँ थीर केलौं। थीर ई केलौं जे कोनो समस्‍या वा कोनो घटनाकेँ पहिल भेल शीर्षक रूपमे सुनब आ दोसर भेल व्‍याख्‍या रूपमे बुझब। अपनो विचार यएह भेल जे शीर्षक रूपमे लबड़दौर भाइक विचार मनमे रखि, केवल सुनब आ हुँहकारीसँ इशारा देब नीक हएत। फेर भेल जे हुँहकारियो आ इशारो तँ बेदाग नहियेँ अछि। इशारोपर जघन्‍य-सँ-जघन्‍य घटना होइते रहै छइ। तहिना हुँहकारियोपर तँ केतए-सँ-केतए लोक भाँसियो जाइए आ हेलबो तँ करिते अछि।
आगू-पाछू होइत मन बीचमे पहुँचल। बीचमे पहुँचते उठल जे जँ लबड़दौर भाइक विचारमे हुँहकारी भरब तँ बाल-बोध जकाँ चौक-चौराहापर बेचि पान खा लेता, तइसँ नीक हएत जे किछु बजबे ने करब। ओहो बुझता जे नीपल पाटी बुझू कि सिलेट आकि सादा कागज, अंकित होइतो अंकित ताबे तक नहि बनैए जाबे तक ओइपर रोशनाइ-कलमसँ आकि पथलखरीसँ लिखल नइ जाइए।
मुँह उठा लबड़दौर भाइक मुँहपर देइते चिड़ै-चुनमुनीक लोल जकाँ मिलानी तँ भाइए गेल। मिलानी होइते लबड़दौर भाय बकए लगला। की बजला की नहि बजला से मोनो ने अछि। चुपचाप सुनैत रहलौं। जहिना मइटुग्गर बच्‍चा दोसर बच्‍चाक संग अपने भाए जकाँ खुशीसँ खुशिया-खुशिया हँसैत-कनैत-खेलैत रहैए तहिना मने-मन अपनो हुअए। मुदा आगूमे पहाड़ जकाँ प्रश्‍न तँ ठाढ़े छल जे गामक समस्‍या छी, तँए जाबे अपनाकेँ थितगर नहि बना लेब ताबे किछु बाजब कम-बेसी भाइए जाएत।
परती खेत पेब जहिना सुढ़िगर कोदरवाह मन-माफित खेत तमैए, कखनो मनमे ई नइ होइ छै जे काजक कमी अछि तहिना लबड़दौर भायकेँ भेलैन। धाराप्रवाह मार्क्‍सवाद, गाँधीवादसँ लऽ कऽ दुनियाँक जेते वाद अछि ओ सभटा पाँचे मिनटमे पढ़ा देलैन।
घरसँ कनी पाछूए रही कि दुनू गोरेक आँगनक रस्‍ता फुट भऽ गेल। लबड़दौर भाइक जेते सुनल बात छल सभकेँ, सुतैकाल जहिना लोक ओछाइन-बिछाइन झाड़ैए तहिना झाड़ए लगलौं, तखने आँगनसँ पत्नी देख लेली।
आँगनसँ निकैल पत्नी कनियेँ आगू बढ़ली कि हुनको चेहरापर अपन नजैर पड़ल। देखते मन विसाइन-विसाइन हुअ लगल। जेठ मासक रस्‍तापर उड़ल गरदा-बाउल जकाँ हकासल-पियासल पत्नी बुझि पड़ली। मुदा कि जानि किछु बाजि नै रहल छेली से तँ ओ जानैथ, मुदा अपना बुझि पड़ल जे कोनो तेहेन चोटक दर्द छैन जे बोलती बन्न केने छैन।
अपन रूपकेँ दैनंदिनक जिनगीमे पीअबैत हाथक बैग पत्नीकेँ धड़बैत किछु बजलौं नहि, तेकर कारण छल जे जखने गामक हाल-चाल पुछबैन तखने विचारक बखारीक मुँह खुलि जेतैन, अनधुन बाजए लगती। तँए, तइसँ नीक जे जाबे अपनो मन असथिर हएत ताबे हुनको बहला-फुसला राखबे नीक...। बजलौं-
एक गिलास पानियोँ पीआउ आ गामक हालो-चाल कहू।
ओना, पत्नियोँ एते पतिपाना रखबे केली जे आन स्‍त्रीगण जकाँ पहिने अपन हकिमानी नइ देखा पानि आनए लगले बढ़ि गेली।
पानिक गिलास हाथमे पकड़बैत ताधैर पत्नी चुप रहली जाधैर आधा गिलास पानि कण्‍ठसँ निच्‍चाँ नइ उतैर गेल। ओना, हुनको मन अपन विचार कहैले पेटमे औंढ़ मारैत रहैन, मुदा तेकरा जहिना कियो कोढ़ परक दर्दकेँ हाथसँ ससारबो करैत आ बाकुटसँ पकैड़ असथिरो करैत तहिना बुझि पड़ैत रहए।
तैबीच गिलासक पेनियाएल पानि देख पत्नी दिस आँखि उठेलौं कि पत्नीक आँखिसँ नोरक टघार टघरैत देखलयैन। हाँइ-हाँइ कऽ गिलासक पानि पीब मनकेँ थीर केलौं। ओना, मनमे लबड़दौर भाइक बात ठहैकते रहए, मुदा तेकरा दाबि-दाबि पेटमे ठेलैत पत्नीक नोरक टघार दिस तकैत पुछलयैन-
आँखिमे किछु भेल अछि की?”
जहिना गजेरी गाँजा पीब निशाँएल धुआँकेँ मुँहमे ताबे तक घोंटैत रहैए जाबे तक ओकर रस भेटैत रहै छै तहिना विचारकेँ घोंटैत-घाँटैत पत्नी मुँह खोलली-
जीतू कक्काक..!”
ओना, जीतू कक्काक नाओं लबड़दौर भाइक मुहेँ सुनि नेने छेलौं, मुदा पत्नीक मुँहक रूखि देख बुझि पड़ल जे भादवक ओ अन्‍हार मनमे पसैर गेल छैन, जइमे टप-टप अन्‍हारक संग टप-टप बरखो होइए आ लाल टप-टप ठनको बिजलोकाक इजोतमे खसैले टप-टप करैए। ने पएरे धोने रही आ ने चाहे पीने रही आ ने देहक कोनो कपड़े उतारने रही, मन औनाए लगल।
पुछलयैन-
एना किए चाउरक मुड़ीकट्टा तम्मा जकाँ बजलौं?”
जहिना अपन बेथा-कथाकेँ कियो कानि-कानि दोसरकेँ कहै छै आ जखन ओइ बेथासँ बेथित भऽ सुननिहारोक मनकेँ कननमुँह देख बेथाक सन्‍तरण स्‍वत: हुअ लगै छै जइसँ बेथाक पीड़ा कमए लगै छै तहिना भरिसक पत्नियोंकेँ भेलैन। बजली-
जीतू कक्काक परिवार आइ मेटा जइतैन!”
बजैत-बजैत पत्नी बताहि जकाँ बड़बड़ए लगली।
पत्नीक बड़बड़ाइत बोल सुनि मन भड़भड़ा गेल। मनकेँ भड़भड़ाइते बजलौं-
जीतू कक्काक परिवारमे कोनो तेहेन अनहोनी नइ ने भेलैन जइसँ से..?”
अधहेपर सँ पत्नी बोल लोकैत बजली-
आइ धर्मक असल परीक्षा भेल। जँ मिसियो भरि जीतू कक्काक मनमे अधरम रहितैन तँ जरूर किछु अनहोनी भाइये जाइत।
पत्नीक विचार सुनिते मनमे उड़ी-बीड़ी लगि गेल। उड़ी-बीड़ी ई लगल जे कखन जीतू कक्काक मुहोँ देखी आ बोलो सुनी।
जीतू काका ऐठाम जाइले विदा होइत बजलौं-
पहिने जीतू काकासँ भेँट करब अछि, पछाइत बुझल जाएत।
विदा होइते पएर जेना दौड़ए चाहए, पत्नी सेहो पाछूसँ रस्‍ता देखैत रहली। अखन तक कोनो एहेन स्‍पष्‍ट विचार कानमे आएले ने छल जे मन थीर भऽ विचार करैत। हरिणक बच्‍चा जकाँ मन चौचंग भाइए गेल छल।
सूर्यास्‍त भऽ गेल छल मुदा दिनुका सभ सिरखार ओहिना छल जेना सूर्यास्‍त होइतकाल रहैए।
दरबज्‍जाक चौकीपर बैसल जीतू कक्काक मुँहक रोहानी ओहने हरियर बुझि पड़ल जेना लड़ाइ जीतला पछाइत लड़निहारकेँ होइए। मुदा अन्‍हार घर साँपे-साँप जहिना बुझि पड़ैत तहिना अपनो मन जीतू कक्काक मुँहक रोहानी, पत्नीक मुँहक रोहैण आ लबड़दौर भाइक मुँहक लाड़ैनक बीच सकपकाइ छल। संजोग नीक बनल, अपने भरि दिन गाममे नइ रही, तहूमे पहिनेसँ किछु बुझलो ने छल, आ ने जीतूए काका किछु कहने छला। कौल्‍हकियो साँझमे दुनू गोरे केतेक काल धरि दुनियाँ-दारीक गप-सप्‍प केनहि छेलौं। जँ कनियोँ भनक लागल रहैत तखन ने कनियोँ दोखी होइतौं, से तँ नहि भेल। मन जेना सक्कत हुअ लगल। बजलौं-
काका, भरि दिन गाममे नइ छेलौं, कनियेँ पहिने मधुबनीसँ एलौं हेन, अबिते-अबिते पत्नी कहलैन। सुनिते दौड़ल एलौं, तँए जाबे सभ बात नइ बुझब ताबे मन थीर नइ हएत।
ओना, हमर बात सुनि जीतूओ काका मने-मन विचार करए लगला जे घटना तँ हमरो जानल नइ छल जे राधेश्‍यामोकेँ जनैबतिऐ। से तँ अचानक भेल।
जीतू काका बजला-
राधेश्‍याम, जे होइए ओ नीके होइए। पहिने चाह पीबह पछाइत सभ बात असथिरसँ करब।
जीतू कक्काक विचार सुनि मन कलशल। कलैशते उठल जे पहिने बिना किछु पुछने जीतूए काकाकेँ बाजए दिऐन। किएक तँ ठेंसल रस्‍ता जहिना लोकक मनक मुड़ियेपर रहै छै तहिना हेतैन।
तही बीच आँगनसँ चाह आबि गेल, दुनू गोरे पीबए लगलौं।
ओना, भीतरे-भीतर मन घटना सुनैले छटपटाइत रहए मुदा जीतू कक्काक निचेनीसँ बुझि पड़ए जे किछु भेबे ने कएल छैन। फेर हुअए जे जँ जीतूए काकाकेँ अपना मने बजैले छोड़ि दिऐन आ जँ कहीं गोटे इतिहासक पन्ना उलैट गेलैन तखन तँ आरो बेसी कछमछैनी औत। तैसंग ईहो तँ ऐछे जे भरि दिन कचहरीक लफड़ामे ऐठाम-सँ-ओइठाम करैमे थाकल छीहे, तहूमे नहेलौं नहि से आरो देह भरिया कऽ भँसियाइत अछि।
बजलौं-
काका, भरि दिन कचहरीक रेवाड़क मारल छी, तँए..?”
ओना, बजलौं इशारामे मुदा जीतू काका बुझि गेला। बाजए लगला-
राधेश्‍याम, कोनो घटनाक विवरण ताबे तक नीक जकाँ नइ बुझि सकै छी, जाबे तक घटनाक कारक तत्त्‍व नहि बुझब।
वौआइत मन जीतू कक्काक विचार सुनैले असथिर भाइए गेल छल। मुड़ी डोलबैत बजलौं-
हँ, ऐमे के नइ कहत।
हमर बातमे जीतू काकाकेँ की भेटलैन से तँ ओ जानैथ मुदा साँससँ बुझि पड़ल जे मन सोल्‍होअना चैन छैन। बजला-
ई तँ बुझले छह जे फल्‍लाँ संग फल्‍लाँक बेटीक संग घरसँ पड़ा केतौ चलि गेल। सेहो कियो देखलक नहि।
मुड़ी डोलबैत बजलौं-
हँ, ई तँ सभ बुझैए। रमेश रधियाकेँ फुसला केतौ चलि गेल, आकि रधिये रमेशकेँ फुसला लेलक, से जाबे दुनूक बिसवासू भाँज नहि लगि जाइए, ताबे किछु कहब उचित नहियेँ भेल।
हमर बात सुनि जीतू काका बजला-
सएह ने!”
हमरो जेना सह भेटल। सह भेटते बजलौं-
ईहो तँ नहियेँ बुझिमे अबैए जे दुनू संगे गेल आकि फुट-फुट। ईहो तँ भाइए सकैए जे रमेश केतौ गेल हुअए आ रधिया केतौ।
जीतू काका बजला-
सेहो कोनो असंभव नहियेँ अछि।
बजलौं-
गाममे एहेन ते हवे बहि गेल अछि आ गामे किए कहबै, आनो-आन गाम आ आनो-आन ठाम भाइए रहल अछि।
जीतू काका बजला-
जइ टोलक लड़की रधिया छी ओइ टोलोक लोककेँ आ जेकर लड़की छी तेकरो तेना कऽ गामक किछु अगिलगौन अगिया देलक जे..!”
गामक लोकक नाओं सुनिते मन उड़ि गेल। बजलौं-
काका कनी फरिछा कऽ कहियौ। पाँच बजे भोरे गामसँ निकैल गेल छेलौं।
जीतू काका बजला-
अपना आँखिये तँ किछु देखल नइ अछि मुदा बिसवासू लोकक मुहेँ कानक सुनल तँ अछिए। भेल ई जे भोरेसँ, ओना पैछला कए-दिनसँ गाममे काना-फुसी होइ छल, मुदा तइसँ हमरा की जे अनेरे अपन काज-धंधा छोड़ि ओइ पाछू वौऐतौं।
बजलौं-
हँ, से तँ नीके केलौं किने।
जीतू काका बजला-
गाममे आकि समाजमे सभ रंगक लोको, सभ रंगक काजो आ सभ रंगक बुधियो-विचार अछिए। बेसी लोक ओहने अछि जे गामक कटनियेँ पाछू लगल रहैए।
बजलौं-
की कटनियाँ?”
जीतू काका बजला-
झूठ-फूस बाजियो आ झूठ-फूस गढ़ियो गामक समस्‍याकेँ ओझराएब अपन बुधियारियो आ जीवनो बुझैए। जीवन भेल गमैया राजनीति आ पेट-पूजा। आब तोहीं कहऽ जे दुनू गोरे–रमेश आ रधिया–कौलेजमे पढ़ैए, एक गामक ओहन परिवारक छी जइ दुनू परिवारमे नौत-पिहानसँ लऽ कऽ आएब-जाएब तक, सभ तरहक सम्‍बन्‍धो अछि। तैठाम एहेन विचार उठब नीक भेल जे लड़काबला लड़को आ लड़कियोकेँ ताकि आनि उपस्‍थित करह?”
बजलौं-
जँ लड़काबला ताकि कऽ आनह तँ लड़कीबला ओइसँ कम दोखी अछि, वएह ने किए ताकि कऽ आनह? एक तँ अखन एहेन प्रश्‍ने नहि उठक चाही, जाबे लड़का-लड़कीक सही जानकारी नइ भऽ जाइए। तैठाम जँ एहेन विचार उठल तँ केतौ-ने-केतौ किछु कारण जरूर अछि।
हमर बात सुनि जीतू काकाकेँ जेना मनसह भेटलैन। मनसह भेटते बजला-
राधेश्‍याम, सभ दिन तँ एकठाम बैस सबहक करनियोँ आ धरनियोँक गप-सप्‍प करिते छी। तँए तोरो बुझले छह जे गाममे केते कुकुरचालिक लोक अछि आ केते साँपचालिक...।
आँखि उठा जखन जीतू कक्काक आँखिपर देलिऐन तँ बुझि पड़ल जे आँखिमे आगिक धधरा धधैक रहल छैन। बजलौं-
से केकरोसँ चोराएल अछि। तखन तँ एहनो निरलज-पतितक कमी गाममे थोड़े अछि, मुदा...।
मुदा सुनि जीतू काका अपन बहैत विचारक धाराकेँ रोकि मुस्‍कियाइत बजला-
ओना सभ गामक लोकक चालि-ढालि एकरंग नहियेँ अछि। जइ गामक लोकक जेहेन आचार-विचारक जीवन अछि तइ गामक तेहेन विचारो बेवस्‍था तँ अछिए। ओना, अधिक गामक लोक ओहने अछि जेकर कोनो ठौरे-ठेकान ने छइ।
ठौर-ठेकान सुनि अपनो मनक विचार उपकल। उपैकते बजलौं-
बेसी गामक बेसी लोक ओहने अछि जे झूठ बाजबकेँ चलाकी आ फसाद बढ़ाएबकेँ राजनीति बुझैए। राजनीतिक समाज ओहन अछि जे झूठकेँ राजनीति कहि पवित्र बना दइए। तैपर तेहेन-तेहेन खिस्‍सा-पिहानी गढ़ि-गढ़ि तेना झूठक दुनियाँ ठाढ़ केने अछि जे सत्‍यक नामे-निशान बदैल देने अछि।
हमर बात सुनि जीतू कक्काक मनमे ठहकलैन। ठहकलैन ई जे राधेश्‍यामो वएह बात-विचार बुझि रहल अछि जे अपना मनमे अछि..!
विचारकेँ आगू बढ़बैत जीतू काका बजला-
राधेश्‍याम, दुनियाँमे एहेन कोनो काज नइ अछि जइमे केनिहारकेँ किछु नहि भेटैए। मुदा की भेटैए आ केते भेटैए से जँ बुझैक अबगैत ओकरा रहतै तखने ने बुझत। जँ से रहबे ने करतै ते बुझत की आ जखन बुझबे ने करत तखन भेटतै की।
मुड़ी डोलबैत समर्थन दैत बजलौं-
हँ, से तँ अछिए।
अपन विचारमे सह पबिते काका बजला-
राधेश्‍याम, तोहूँ भरि दिनक थाकल छह आ हमरो जे दिन बीतल ओ ओहने बीतल, कखनो चैन नहि भेल। मुदा अधखरू बुझने मन औनेतह, तँए संक्षेपेमे जे भेल से कहि दइ छियह।
जीतू कक्काक बढ़ैत विचारकेँ रोकब उचित नहि बुझि बजलौं-
हँ, हँ काका, जखन अहूँ जीबै छी आ हमहूँ जीबै छी तखन जँ कोनो बात बुझैमे नइ औत तँ काल्‍हियो-परसू बुझि लेब। अखन ताबे मूल-मूल बात बुझा दिअ।
जीतू काका बजला-
बेस कहलह। दिन भरिमे जे भेल ओकर समीक्षा अखने करितौं, तइ बिच्‍चेमे तूँ आबि गेलह, तँए समीक्षात्‍मक नहि मुदा जे जेना भेल से कहि दइ छिअ।
जीतू कक्काक सोझराएल विचारो आ बोलियोसँ बुझि पड़ल जे जइले आएल छेलौं से भेटत। तँए दुनू कान ठाढ़ केलौं। कान ठाढ़ होइते मनमे भेल जे कनी आगूसँ चालि देब नीक हएत। बजलौं-
काका, अहूँकेँ भरिगर काज पछुआएले अछि आ हमरो तेहने जकाँ अछि। तँए तेना कऽ बजियौ जे मनो मानि जाए आ बेसी समेओ ने लगए। 
बजला- तोरा ते काल्‍हि कहनहि रहिहह जे काल्‍हि बारह बजे बाहर जाएब।
बुझल बात रहबे करए, तँए मुड़ी डोलबैत बजलौं-
हँ, से तँ कहनहि छेलौं, बुझले अछि।
जीतू काका बजला-
करीब साढ़े दस-एगारह बजेक बात छी। पचास-साठि आदमी बुढ़िया गाछीक बैसारसँ उठि ललकारा दैत आबि चारूकातसँ घरकेँ घेर लेलक।
बिच्‍चेमे टोकलयैन-
बुढ़िया गाछीक बैसार नइ बुझलिऐ?”
जीतू काका-
जइ जातिक रधिया छी तइ जातिक टोल करीब पचास-साठि घरक अछि। गामक सभ जातिक टोलसँ पढ़ै-लिखैमे पछुआएल अछि। मुदा आर्थिक दृष्‍टिसँ किछु प्रगति केबे केलक अछि। भोरेसँ सौंसे टोलक लोक ताड़ी-दारू पीब अपनाकेँ आक्रामक रूप तैयार कऽ नेने छल। गामक सेहो–आन-आन जातिक–करीब पनरह-बीस आदमी मिलि बैसारमे विचार केलक जे फल्‍लाँक (माने जीतू कक्काक) सभ किछु लूटि लेबाक अछि।
जीतू कक्काक मुहेँ सभ किछु सुनि हदास उड़ि गेल। हदास उड़ैक कारण भेल जे एक तँ जीतू काका झूठ नहि बजै छैथ तैपर सभ किछु कहि देलैन।
बजलौं-
सभ किछु नहि बुझलिऐ।
बिकछबैत जीतू काका बजला-
जहिना आन-आन गामक लोक अछि तेहने ने अपनो गामक अछि। जे केकरो कियो नीक तँ करए नइ चाहैए उनटे अधला करैक पाछू अपनो अधला करैले तैयार रहिते अछि।
बिच्‍चेमे बजा गेल-
हँ, से तँ अछिए।
एकाएक जीतू कक्काक मन जेना कोनो नमहर पाथरक तर दबा गेल होनि तहिना बुझि पड़ल।
बजला-
जेते लोक बुढ़िया गाछीक बैसारमे छल, सबहक विचार रहइ जे जीतूक सभ इज्‍जत-आवरू आइ नष्‍ट कऽ देब।
जीतू कक्काक विचार सुनि मन एकाएक तरपल। तरपल ई जे जँ आइ गाममे रहितौं तँ जरूर लहास खसबे करैत, चाहे जेमहरसँ खसैत। मुदा एहेन घाटपर नइ रहब अवसरक चूक जरूर भेल। मुदा अवसरो अवसरक होइए। जँ बुझल रहैत से आ नइ बुझल रहने अन्‍तर तँ एबे करत...। 
बजलौं-
काका, इज्‍जत-आवरूपर जखन आँच पड़त तखन लोक जीविये कऽ की करत।
हमर बात सुनिते जीतू कक्काक हूबाकेँ हजार गुणा मनसूबा मनमे अनलकैन। मनसुबाइत बजला-
बौआ, जाबे धरि लूटिहारा दुनू पोतो आ दुनू बेटोकेँ मारि कऽ खसा नइ देने छल ताबे तक ठाढ़ भेल देखैत रहलौं। देखैत ई रहलौं जे अखन तक लहास खसैक परिस्‍थिति नइ बनल अछि मुदा जखन दुनू बेटाकेँ खसलपर मारैत देखलिऐ तखन मन बेकाबू भऽ गेल।
बजलौं-
काका, एहेन परिस्‍थितिमे केकरा नइ हएत जे अहाँकेँ नहि होइत।
ओना, जहिना जीतू काका तरे-तर उत्‍साहित होइत रहैथ तहिना अपनो होइते रहए। मुदा दुनू गोरेक बीचक उत्‍साहमे एते कमी तँ रहबे करए जे जैठाम जीतू काका रणभूमिमे रणक्रिया जीत निवृत्त भेल छला तैठाम अपने रणभूमिसँ बाहर छेलौं।
जीतू काका बजला-
बौआ राधेश्‍याम, एक तँ निहत्‍था छेलौं, दोसर ओकरा सभमे किछु निहत्‍थो छल जेकरा सभकेँ फाँइट-मुक्काक अनुभव छेलै, जे शहरी छल, बाँकीक हाथमे कोनो-ने-कोनो हथियार छेलैहे।
जीतू कक्काक बात सुनैत-सुनैत मन बिसमित हुअ लगल। दुनू आँखिसँ नोरक धार टघरए लगल।
पुछलयैन-
काका! तखन?”
निधोख आ निधाइख जीतू काका बजला-
बौआ, जखन लोक अपन जान गमबैले तैयार होइए तखने ने ओकरा जान पबैक शक्तिक सृजन सेहो मनमे होइते छइ।
जीतू कक्काक मुहेँ विचारक नव बात सुनलौं तँए मन कनी विचार करए लगल, जइसँ नजैर निच्‍चाँ उतरल। मुदा जीतू काका तँ रणभूमिसँ विजय पेब आएल छला, ओ केना एको क्षण समैकेँ हाथसँ निकलए दइतैथ। रणभूमि तँ ओ भूमि छी जैठाम क्षणमे छनाक आ पलमे पलैक सकैए। तैठामक धारमे जीतू कक्काक उत्‍साहित मन बहैत रहैन। तँए बजैक क्रम रहबे करैन, बजला-
राधेश्‍याम, जइ परिवारमे अपन इज्‍जत-आवरू-ले लोक अपन जान देत वएह परिवारक इज्‍जत-आवरू ने अपन शान धेने रहि सकैए।
बिच्‍चेमे बजा गेल-
हँ, एकरा के काटत।
उत्‍साहित जीतू काका रहबे करैथ, बजला-
एक गोरेक हाथसँ लाठी छीनलौं। छिनने लाठी तँ हाथ आबि गेल मुदा ओ चलाएब केना? जँ हाथ-पएर दिस चलाब तँ लाठियो छिना जाएत आ जे रूखि अछि ओ जान मारिए देत। मुदा जहिना सौंसे देहक सभ अंग रणभूमिमे उतैर गेल छल तहिना मनो आ विचारो ने उतैर गेल।
मुड़ी डोलबैत बजलौं-
हँ, से तँ उतरिये गेल हएत।
अपन कएल कृत्तिपर जीतू कक्काक मन उतरलैन। बजला-
बौआ, दुनू हाथे लाठीक एक छोर पकैड़ लूटिहाराक कपारपर मारए लगलौं, जइसँ लाठियो सुरक्षित रहल आ खूनक धार सेहो बहब शुरू भेल।
बिच्‍चेमे बजा गेल-
रणभूमि तँ खूनेक धारसँ पटाओले जाइए।
जीतू काका बजला-
पान-छहटाक जखन कपार फुटलै तखन अपन मन विराम लेलक। तैबीच एकाएकी ओ सभ भागए सेहो लगल। धीरे-धीरे चैनक साँस आएल।
जहिना जीतू काकाकेँ चैनक साँस एलैन तहिना अपनो चैनक साँस अनैले बजलौं-
काका, नहाएब तँ अखन नहि मुदा पानिसँ देह-हाथ पोछि जाबे कपड़ा नइ बदलब ताबे ने खाइ-पीबैमे नीक लागत आ ने रातिमे नीकसँ सुति पएब, तँए अखन जाइ छी। निचेनसँ काल्‍हि भोरमे आगूक गप-सप्‍प करब।

शब्‍द संख्‍या : 3115, तिथि : 01 मार्च 2017


[1] भोज खेनिहार

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