Pages

Thursday, March 16, 2017

स्‍मृति शेष

कथाक सत्तैर-



स्‍मृति शेष/8
मनकेँ फुसलबै छी/17
पकिया चेला/22
कान फुटल कप/31
वर्थ डे/38
जानक मोल/49
गामक कटान/63
कर्ज/78
बेटीक लिलसा/94
कथा लेखन क्रम : 2014-17/106


















स्‍मृति शेष
तीस दिसम्‍बर, शुक्र दिन। 2016 इस्‍वी। साँझक सात बजे ब्रह्मानन्‍द बाबा बीतैत दिनक साँझ आ ऐगला दिनक पैछला साँझमे अपन अराम-विश्राम करैबला जगहपर असगरे शोकाकुल बैसल छला। दिनुका पहिल उखड़ाहामे जे दूटा रोटी जलखैक रूपमे खेने छला, बस् ओतबे आइ दिन भरिक अहार भेटल छेलैन। नित्‍य एगारह बजेमे नहेनिहार आइ तीन बजेमे नहेला, जखन बच्‍चाक पार्थिव शरीरकेँ असमसान पहुँचौल गेल। ओना, दिनक भानस परिवारमे भऽ चुकल छेलैन, मुदा तेहेन बेर ओ घटना भेल जे ओ भानस कएल भोजन बरतनेमे पड़ल छल।
नहेला पछाइत खेबाक इच्‍छा ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ जरूर भेलैन मुदा भोजन रोकबा-ले तेतेक दूत-भूत मनक चारूकातसँ ऐ रूपे घेर लइ छेलैन जे मनक इच्‍छा मनेमे घुरिया-फिरिया जानि, मुदा मुहसँ निकालैक साहसे ने होइन। साहसो केना होइतैन, एक दिस परिवारमे सभसँ ऊपर–उमेरो आ खाढ़ियोमे– होइक नाते जँ वएह नइ सहि सकता तँ दोसर केना सहि सकत। मुदा सहबो तँ सहब छी, एक अन्न-पानिक सहब भेल, दोसर बात-विचारक संग सुख-दुखक। तहूमे परिवारक रूदन आ समाजक जिज्ञासु रूदनक धार बहिये रहल छेलैन।
चौकीपर बैसल ब्रह्मानन्‍द बाबा अपन बीतल, बीतैत आ अबैबला काल्‍हिक संध्‍या-बन्‍धन कऽ रहल छला, मुदा बान्‍हे कुबान्‍ह भऽ जाइन। कुबान्‍ह ई जे बीतल नअ घन्‍टा शोके-शोक, दुखे-दुखमे बीतल छेलैन आ अबैबला बीतैत रातिक भोजनक आशा सेहो नहियेँ छेलैन। काल्‍हिक एहेन कठिन समए पार कऽ सकब की नहि, से मने-मन ब्रह्मानन्‍द बाबा विचारि रहल छला। माने ई जे राति भरिक साहित्‍यिक कार्यक्रममे जवाबदेहक रूपमे पार करब छेलैन। जवाबदेही एहेन जे कहीं कार्यक्रमे ने भँसिया जाए। एहेन भार निमाहैले तँ कन्‍हो मजगूत चाही जे भोजनेसँ शरीरकेँ भेटत, सएह हेरा गेल अछि।
गणितीय दौड़मे दुनू दिस ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ बाधा बाधित कैये रहल छेलैन। तैपर मन कुदि-कुदि अपन स्‍मृति दिस दौड़-दौड़ जाइन। जेकरा ब्रह्मानन्‍द बाबा शरीरान्‍त बुझि टारि कऽ बहटारए चाहै छला, वएह  छिड़िया-छिड़िया मनकेँ चारूभरसँ घेर लैत रहैन।
परिवारमे ओहन घटना भेल जइमे एकटा अचेत बाल-बोधक अन्‍त भेल। चूक केतए भेल ई जँ परिवारक लोक नहि गुणि लेत तँ आगूक गुणाधीश गुणातीत केना भऽ सकैए। मुदा बाबाक मनमे ईहो नचैत रहैन जे अखन ऐ बातकेँ माने ऐ घटनाकेँ विचारबसँ नीक ई हएत जे तत्‍काल वातावरणकेँ पहिने असथिर कएल जाए। जँ विचार-विमर्शक क्रममे कोनो मारूख विचार सोझामे आबि जाए आ चामेक मुँह छी, कहीं ओ विचार मनमे छड़ैप कऽ मुँह होइत निकैल गेल, तखन तँ ओ आरो मारूख हएत! तँए नइ विचारबे बेसी नीक...।
मुदा लगले फेर बाबाक मनमे उठि गेलैन जे अनेको जिज्ञासु जिज्ञासा करए जइ घटनाक लेल आबि रहल छैथ आ घटनाक मर्म स्‍थलकेँ देखिए ने पाबि रहल छैथ, तखन तँ ओ अधे-छिधे जिज्ञासा ने भेल। ..असमंजसमे पड़ल ब्रह्मानन्‍द बाबा निश्चये ने कऽ पाबि रहल छला जे की नीक हएत। आँखिक सोझक जे घटना अछि ओकरा जेते नीक जकाँ अखन विचारि सकै छी, ओते बसियाएलमे थोड़े हएत। तहूमे कौल्‍हुका काज आरो जटिल अछि। एहनो तँ भाइए सकैए जे जहिना आइ परिवारक घटना भेल तहिना काल्‍हि समाजोमे भऽ सकैए, तखन तँ परिवारक विचारकेँ अगुयाएबो  नीक नहियेँ हएत, तँए अखने विचारब बेसी नीक...।
तही बीच ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ समाजक सरोकारी बहिन, जिनकर घर बगलेमे छैन, पहुँचली। अगवास, बाड़ी-झाड़ी खेत-पथार सेहो दुनू गोरेक एक्केठाम छैन। दिन-राति पड़ोसीक रूपमे दुनू आइ सत्तैर बर्खसँ संगे जिनगी जीबैत आबि रहल छैथ। ओना बिन्‍दा चारि मास ब्रह्मानन्‍द बाबासँ जेठ छथिन, मुदा दुनूक बीच वएह रे-टेबला सम्‍बन्‍ध तहियेसँ माने बच्‍चेसँ संगे आबि रहल छैन, जे अखनो पोता-पोतीसँ भरल घर रहितो, ओहने छैन। 
अपना संग बिन्‍दा स्‍टीलक थारीमे दस-बारहटा रोटी आ बाटीमे तरकारी नेने, ई सोचि पहुँचली जे दिनुका भानस ब्रह्मानन्‍दक परिवारमे रान्‍हले रहि गेल, शोकाकुल परिवार रहने अखनो माने रातियोमे भानस नहियेँ हेतैन आ काल्‍हियो कखन हेतैन तेकरो ठेकान नहियेँ अछि। सियान-चेतन सहियो सकैए मुदा परिवारमे जे दूटा बुढ़ आ तीनटा छोट-छोट बच्‍चा अछि ओ केना सहि सकत...।
ओना ब्रह्मानन्‍द बाबा अपन कोठरीक केबाड़ अड़का कऽ असगरे बैसल विचारि रहल छला। तहीकाल बिन्‍दा केबाड़ खोलि कोठरीमे पहुँचली।
अबिते बिन्‍दा परोसल थाड़ी आगू बढ़बैत बजली-
जे दिनक दोख छल से भेल, चिन्‍ता छोड़ह, खा लएह।
बिन्‍दाक मुहसँ खसिते ब्रह्मानन्‍द बाबा फफैक-फफैक कऽ कानए लगला-  
हमर बेल केतए गेल, हमर बेल की भेल..!”
ओना बिन्‍दो अनुमान केली जे बेल पोताकेँ कहै छैथ।
बजली-
किछ ने भेल, जहिना आएल तहिना गेल। ई दुनियॉंक रीति छिऐ, सभकेँ होइत आएल अछि, आगुओ होइत चलैत रहत।
एक बर्ख नअ मासक रोशनक प्राणान्‍त पानिमे कठुआ कऽ भेल। रातियेसँ चलि अबैत शीतलहरी अपन विकराल रूप पकैड़ नेने छल।
भिनसुरका पहर। श्रमशील परिवार रहने परिवारक सभ अपन-अपन काजमे लगि चुकल छला। कियो अँगना-घर काजमे तँ कियो माल-जालक पाछू। ओ बच्‍चा–बेल–जाड़क सभ वस्‍त्र पहीरने–माने जूत्ता-मौजा आ सूती कपड़ासँ लऽ कऽ ऊनी स्‍वीटर, कोट, टोपी सभ किछु पहीरनेहाथमे एकटा गिलास नेने चापाकलक आगू जे पानिक खाधि छै, तइमे गिलासमे पानि लिअ गेल। ओना जाड़ रहौ कि गरमी, थाल-पानिसँ ओइ बच्‍चाकेँ विशेष सिनेह छेलैहे। चंगला बच्‍चा तँए नजैरसँ ओझल होइते छल। गिलास नेने जे ऑंगनसँ निकलल, से दोसरो-तेसरो देखलक। मुदा सभ दिन कोनो-ने-कोनो वस्‍तु नेने निकैलते छल, तँए कियो किए ओहूपर विशेष नजैर दइत। पानि लिअ खाधिमे जखन गेल, भरिसक तहीकाल ओ पिछैड़ कऽ खाधिमे चलि गेल। ओना, खाधियोकेँ बहुत गहींर नहियेँ कहल जा सकैए, मुदा एक-डेढ़ हाथक बच्‍चाक लेल तँ गहींरगर छेलैहे। तहूमे जहिना बर्फ जकाँ समए तहिना पानि सेहो छेलैहे। परिवारजन रहितो कियो ओइ बच्‍चा दिस नइ तकलक। सदिकाल खुर-खुर करिते रहैत छल। तकैक कोनो शंको ने रहइ। दिन-दिनक वृत्ति छेलइ। किछुए कालमे बच्‍चा जाड़सँ तेना आक्रान्‍त भऽ गेल जे प्राणान्‍त भऽ गेलइ! जखन बच्‍चापर नजैर गेल आ ताक-हेर शुरू भेल तखनो ब्रह्मानन्‍द बाबाक मन गबाही दइते रहैन जे भरिसक कियो चोरा कऽ औनाबै दुआरे रखि नेने अछि। बच्‍चाक माइये खाधिसँ मुइल बच्‍चाकेँ निकालि आँगन आबि रखैत बजली-
हमर रोशन..!”
ओना नीको समैमे आ अधलो समैमे तँ निसचिते मतो-पिता, भाइयो-बहिन आ ददो-दादीक नजैर ओइ बच्‍चापर रहिते छल मुदा पाँच दिन पहिने ब्रह्मानन्‍द बाबाक परिवारमे एहेन दुखद घटना भेल छेलैन जे खसैत-खसैत परिवार बँचलैन। मुदा घटनाक एहेन विकराल रूप छल जे मने नहि, केतेको गोरेक शरीरोकेँ नीक जकाँ आक्रान्‍त अखनो केनहि छल। होइतो अहिना छै जे परिवारे आकि समाजेमे जँ कोनो मारूख घटना घटैए तँ परिवारो आ परिवारजनकेँ सेहो झकझोरि दइते अछि। जइसँ परिवारक अनेको जरूरियात काज सभपर सँ नजैर हटिये जाइ छइ। तँए कहलो जाइ छै जे विपत्ति असगरे नइ अबैए, एकक संग अनेको अबिते अछि।
रोशन आ कृष्‍णा दुनू सहोदर भाए, ब्रह्मानन्‍द बाबाक तेसर बेटाक दुनू सन्‍तान। कृष्‍णा जेठ, जे साढ़े तीन बर्खक अछि आ रोशन छोट जे एक बर्ख नअ मासक छल। रोशनक मुँहमे ऊपर छह गोट दाँत आ निच्‍चाँ चारिटा दाँत सेहो जनैम गेल छल। दौड़ैत चलिते छल। बोली तँ साफ नइ भेल छेलै मुदा किछु शब्‍द साफ जरूर भाइए गेल छेलइ। कखनो बा ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ कहै छेलैन, तँ कखनो सिखौलापर बबा सेहो कहै छेलैन।
ब्रह्मानन्‍द बाबा कृष्‍णाकेँ सिनेहसँ बेल नाओं रखने छैथ। मास दिनसँ रोशन सेहो अपनाकेँ बाबाक बेल बुझए लगल छल, तँए बाबाक मुहसँ बेल निकैलते रोशन बाजि उठैत छल-
ऐँ।
ऐँ कहि दौड़ कऽ लगमे आबि हाथमे जे कोनो औजार वा खाइ-पीबैबला वौस देखै छल ओ छीन लइ छेलैन। खाली वौसेटा नइ छीनै छेलैन, संग लगि बाड़ी-झाड़ीक काज दिस सेहो विदा भऽ जाइ छेलैन।
बच्‍चा पेब ब्रह्मानन्‍द बाबाक मनमे अपन जिनगीक सार्थकता सेहो नचिते रहै छेलैन। जिनगीक सार्थकता ई जे एक समए माने एक क्षण-पल जँ एकसँ ऊपर अनेक क्रियाक संग चलए। से ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ बेल पेब होइ छेलैन। कहलो जाइ छै जे उमरदारक माने बुढ़-बुढ़ानुसक प्रथम काज भेल बाल-बोधक संग रहि किछु सिखाएब। से भेटिये जाइ छेलैन।
ओना ब्रह्मानन्‍द बाबा खेत-पथारमे काज करैबला अपन हथियाएल औजार–हँसुआ, खुरपी, टेंगारी, कुड़हैर, हथौरी, बैसला, आड़ी इत्‍यादि जीवनोपयोगी औजार अपना-ले तँ रखनहि छैथ, मुदा तँए बेल-ले नइ रखने छैथ सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। भोथियाएलो आ आकारोमे छोट अनेको औजार बेल-ले सेहो रखने छैथ। बेल चलि गेल मुदा ओ औजार जे बेलक छल, ओ तँ छैन्‍हे। ओना किछु एहनो तँ ऐछे जे बेल अपन औजार बाबाक हाथमे धड़बैत हुनकर हाथक छीन लइ छेलैन। मुदा ओहन बाल-बोधसँ जँ काज बाधित होइक सम्‍भावना हएत, तखनो तँ दूटा उपाय अछिए, एकटा जे ओइ हाथियारसँ भरिगर काज धड़ा थका दिऐ वा मने फुसला कऽ बहका दिऐ। ..ब्रह्मानन्‍द बाबा सएह करै छला। जखने पोता हाथक औजार छीनै छेलैन कि आड़िपर बैस गमछामे बान्‍हल पानक पोटरी खोलि डकै छला-
के पान खाएत?”
जहिना घर-परिवारसँ हटलो गीत-नाद वा अन्‍य कोनो अवाज बाल-बोध जँ सुनैए तँ अपनो ओही अवाजक अनुकरण करए लगैए, तहिना बेलबो पान सुनिते बाजि उठै छल-
हम।
बेलबाकेँ राजी होइते बाबा बजै छला-
जे सभ पान खाएत ओ सभ एतए औत।
एतए औत सुनिते बेलबा हाथक छीनल हथियार ओतै रखि दौड़ल आबि पानक वौसकेँ उनटबए-पुनटबए लगैत छल। जेना-जेना देखैत तेना-तेना करबो करैत तँए बाबा पहिने पानक पात फाड़ि एक-टुकड़ी दऽ दइ छेलखिन। जखन जरदा बेर अबै छल तखन मुन्ना लगले जर्दाक शीशी मुँहमे झाँड़ि कहै छेलखिन-
आब चलै चलू।
चलै चलू सुनिते बेलबा अपन औजार–खुरपी–पकैड़ आड़िपर खाधि खुनए लगै छल...।
ब्रह्मानन्‍द बाबा चौकी पर बैसल तेते जोड़सँ फफकला जे आँगन तक कानवक अवाज पहुँच गेल। ओसार पर बैसल महिला समुदाय, जे भरि दिनक कानवक विराम नेनहि छेली आ बेलबेक चर्च करै छेली। बाल-बोध बेलबा, अचेत बेलबा, ओ केना जिनगीक मर्मकेँ बुझैत ओ केना बुझैत जे आगि-पानि जीवन दइतो अछि आ लइतो अछि। ओ केना बुझैत जे जहिना बाल-बोध-ले शीतलहरीक शीताएल पानि जनमारा अछि तहिना तँ आगियो अछि किने...।
बाबाक कानवक अवाज सुनि महिला समूहसँ एक बजली-
भरि दिन बुड़हा कनिते रहि गेला!”
दोसर बजली-
कहुन जे पोते लागल अपनो चलि जेता! अहिना सभ दिनसँ होइत एलैए। मेला-ठेलामे जहिना बाल-बोध खेलौना कीनैए आ खेलाइत-खेलाइत रस्‍तेमे फोड़ि लइए, सएह बुझथुन।
मुदा बीचमे बैसल, जे क्षने किछ पहिने मुँह बन्न केने छेली, ओ फफैक उठली-
“आब, बाबाक कागत-पेन के छिनतै..!
बेल सिर्फ ब्रह्मानन्‍दे बाबाक नइ छेलैन। परिवारक सबहक छल। माइक रोशन’, बापक लल्‍ला’, दादीक बौआ’, बड़का भाइक वौका इत्‍यादि सबहक अपन-अपन छल। सभ छल नहि, अखनो अछि। मालक घरमे दादीक बौआ ऐं-ऐं करैत गोबर-गोंत बुढ़िया माँकेँ देखैबते अछि, बिसरत ओइ दिन जइ दिन दुनियाँकेँ बिसैर अपने विदा हेती...।
असमृतो तँ असमृति छी, ओ तँ कियो अपने जीता जिनगी धरिक ने गारंटी दऽ सकैए। हँ एहनो स्‍मृति तँ होइते अछि जे महाभारतक अभिमन्‍यु जकाँ बाल-बोधेक रूपमे ठाढ़ अछि। हमरो बेलक मृत्‍यु ओइ परिस्‍थितिमे भेल जइ परिस्‍थितिमे परिवार-समाजक बीच बेवस्‍थाक लड़ाइ फँसल छल। पोने दू बर्खक बेलबा किए माइक दुख बुझैत जे परिवारमे नारीक जिनगी अखन केते भुमकम जकाँ डोलि रहल अछि। मुदा बेलबो तँ बेलबा छी ओ तँ माएकेँ कहबे करत किने जे माए हम अचेत छेलौं जीवन-मरण नइ बुझलौं, तूँ सचेत हो जे भविसमे एहेन नइ हौउ।
विस्‍मित ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ देख बिन्‍दा बजली-
खेलौना बनि आएल छल आ खेलौने जकाँ चलि गेल, तइले एते दुख-पीड़ा केलासँ की हेतह?”
चारि मास जेठ बहिनक बात सुनि ब्रह्मानन्‍द बाबा बजला-
हमर बेलबा खेलौना नइ छल, ओ तँ दुनियाँक खेलक खेलाड़ी छल।
तैबीच ब्रह्मानन्‍द बाबाक पत्नी कृष्‍णाकेँ हाथ पकड़ने पहुँचली। कृष्‍णाक मनमे अपन प्रश्‍न छल आ किशोरीक मनमे अपन विचार छेलैन। तैबीच बिन्‍दा तरकारी-रोटी सजल थारी किशोरी दिस बढ़ौली। किशोरी हाथसँ पकैड़ लेलैन। पकड़िते ब्रह्मानन्‍द बाबा बजला-
पहिने बाल-बोधकेँ दियौ।
निच्‍चाँमे थारी रखि किशोरी एकटा रोटी आ तरकारी कृष्‍णा दिस बढ़ौली। ओना देखा-देखी कृष्‍णो घटनाक पछाइत अन्न नइ खेने छल, माने भात-रोटी नै खेने छल। मुदा बिस्‍कुट आ दोकानक चटपटौआ विन्‍यास खा मनकेँ थीर तँ रखनहि छल। हाथमे रोटी लइसँ पहिने कृष्‍णा बाजल-
बाबा, अपन रोशन बौआ झंझारपुर डाक्टर ऐठाम गेल अछि किने?”
कृष्‍णाक बात सुनि ब्रह्मानन्‍द बाबाक छाती दहैल गेलैन। केना अबोध बच्‍चाक प्रश्‍नकेँ काटता! ओहो तँ बच्‍चाक ओ दृश्‍य–पिताक हाथमे झाँपल बच्‍चा मोटर साइकिलसँ डाक्‍टर ऐठाम लऽ गेल छलदेखने रहए, तेकर पछाइत धिया-पुताक संग खेलेमे लगि गेल छल...।
ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ मनमे उठलैन- अपना संग बच्‍चोकेँ दुख-सन्‍ताप देब नीक नहि, बजला-
हँ, रोशन बौआ झंझारपुर डाक्‍टर ऐठाम गेल अछि। खाधिमे बौआ डुमि गेल छेलै किने..!”
अपन प्रश्‍नक उत्तर पेब बड़का बेलबा माने कृष्‍णा हाथमे रोटी लऽ खाए लगल। कृष्‍णाकेँ खाइत देख किशोरी ब्रह्मानन्‍द बाबाकेँ कहली-
घरक गारजन भऽ अहीं कनबै तखन और लोक चुप रहत। अहाँ मन थीर करू।
थीर होइते ब्रह्मानन्‍द बाबाक मनमे उठलैन- सुग्‍गा उड़ि गेल। आब केकरा पाकल लताम आ बैरक झाड़ परहक पाकल तिलकोर देब..!
शब्‍द संख्‍या : 1941, तिथि : 6 जनवरी 2017

No comments:

Post a Comment