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Sunday, December 17, 2017

किछु ने फुरैए

प्रस्तुत अछि, छिआनबेअम सगर राति दीप जरयमे पठित पहिल कथा-

किछु ने फुरैए

अढ़ाइ मासपर गोपीलाल इलाज करा कऽ पटनासँ घुमल छल। पटनाक इलाज सुनि अचरजो लागल आ खुशियो भेल। अचरज ई जे पटना सन शहरमे अढ़ाइ मास तक रहि, गामक एकटा अदना आदमी अपन शरीरक इलाज करौलक। मुदा ई तँ गामक उपलब्धि भेबे कएल तँए खुशी भेल। जे गोपीलाल दू पीढ़ीसँ, अंग्रेजक जमानासँ लऽ कऽ आइ धरि गामक चौकीदारक रूपमे जिनगी बितौलक ओ आइ केतए अछि, तँए कनी बुझैक जिज्ञासा सेहो भेल। तैसंग ईहो भेल जे समाजक रूपमे अपनो किछु दायित्व बनैए। गोपीलालसँ भेँट करए, पटनासँ एलाक दोसर दिन गेलौं।

गोपीलालकेँ भीतघर। ओना, दरबज्जो भीतेक अछि, बड़ सुन्नर, बड़ बेस, दस गोरेक बैइसैबला। दरबज्जा खाली देख मन झुड़झुड़ा गेल। झुड़झुड़ा ई गेल जे भरिसक गोपीलाल बेमारी लइये कऽ घुमल अछि, जँ दऽ कऽ घुमल रहैत तँ दरबज्जापर रहितए। मुदा जखन भेँट करए एलौं, तखन बिनु भेँट केने घुमबो केहेन हएत। तहूमे जँ अढ़ाइ मासमे रोग आरो मोटा गेल होइ तखन तँ आरो जरूरी भेँट करब भाइये जाइए। फेर भेल जे डॉक्टर लग रहि रोग मोटा जाएत, तँ ऐमे डॉक्टरक कोन दोख। ओना, अपनो दोख नहियेँ। जेते चीनी देबै तेते ने मीठ हेतइ। आ जँ नहियेँ देबै, आकि थोड़े-थाड़ चीनी देबै आकि नूनू मिला देबै ई तँ अपन भेल किने। दस रंगक दवाइ जहिना दस रंग काज करैए, तइमे कोनो जरूरी छइ जे मलेटरी जकाँ कतार बन्दी चलए। तीर्थ स्थानक मेला छी, लोकक भीड़ रहबे करत, तइमे ऍंड़ी-दौड़ी लगबे करत किने। तहूमे डॉक्टर रोग छोड़बैबला दवाइ तँ नहि छी, तखन दोखे किए...। तैबीच जीबछ भायकेँ देखलयैन जे गोपीलालक भेँट करए ओहो आबि रहला अछि।

जीबछ भायकेँ देख मनमे आरो हूबा भेल। फरिक्केसँ बजलौं-

“गोर लगै छी जीबछ भाय।”

दरबज्जेपर ठाढ़ रही, पारखी जीबछ भाय बुझि गेला। कहलैन-

“ऐठाम किए ठाढ़ छह?”

कहलयैन-

“दरबज्जा देख धकमका गेलौं?”

रेहल-खेहल जीबछ भाय छथिये, धड़धड़ाइत आँगन दिस बढ़ैत बजला-

“अखन अँगने ने दरबज्जो बनि गेल अछि। तखन तँ एतबे परहेज करब जे चारि डेग पाछूए-सँ हिया कऽ देख लेब जे कोन गप केकरा मुहेँ केहेन चलि रहल अछि, तइ अनुकूल अपनाकेँ समाहित करब।”

जीबछ भाइक विचार नीक लागल। पाछू-पाछू विदा भेलौं। अँगनाक मुहसँ चारि डेग पाछुए रही कि पुबरिया घरक ओसारक एक भागक चौकीपर बैसल गोपीलालकेँ देखलयैन आ दोसर भागमे आठ-दसटा बैसल स्त्रीगण। बेसीकाल सँ बैसल स्त्रीगण सबहक दरबारमे गोपीलालक बेमारीक विचार तर पड़ि गेल छल आ अपन-अपन जिनगीक गप चलि रहल छल।

जीबछ भाय आगूमे ठमैक कऽ ठाढ़ होइत आँखिक इशारासँ हमरा सचेत केलैन। भोजपुरवाली आ सुपौलवालीक बीच अपन-अपन मातृभूमिक बड़ाइ दुनू गोरे अपना-अपना ढंगे करैत छेली, जइ बीच भाषा आबि झगड़ा ठाढ़ केने छल। छुच्छे मुँहक गप झूठो भऽ सकैए मुदा जे लिखितमे अछि ओ केना झूठ हएत। दुनूकेँ अपन-अपन पढ़ल रहबे करैन। जखने भाषा औत तखने भोजन औत आ जखने भोजन औत तखने ओकर सुआद सेहो एबे करत। सुआद अबिते भोजपुरवाली बजली-

“मिरचाइक सुआदक जेवरात ओकर तीतपन छिऐ।”

सुपौलवालीकेँ अनसोहाँत लगलैन। अनसोहाँत ई लगलैन जे जँ मिरचाइक सुआदकेँ ‘तीत’ कहबै तँ करैलाक सुआदकेँ की कहबै? बजली-

“अपना मनक मौजी आ बौहकेँ कहलौं भौजी..! अहींटा केँ कहलासँ नइ ने हएत।”

ओना, कहा-कहीमे आठो-दसो स्त्रीगण दस दिस छिड़ियाल तँए अपना बेथे सभ बेथाएल। जइसँ चुपा-चुपी पसरले छल, मुदा ई दुनू[1] अपन राग-तान तँ पकड़नहि छेली...।

खखास करैत जीबछ भाय अँगना पहुँचला, आ बिनु खसासे जीबछ भाइक पीठपर अपनो पहुँचलौं।

आठो-दसो स्त्रीगणकेँ बैसल देख बजलौं-

“जीबछ भाय, लोकमे काफी जागरूकता आबि गेल। एना जँ बर-बेमारीमे जिगेसा-बात हुअए तँ तेलोसँ चिक्कन हएत किने?”

‘तेल’क नाओं सुनि तिलियाइत जीबछ भाय बजला-

“कोन तेलसँ केते चिक्कन हएत से कहाँ कहलह, जे खाइबला तेलसँ चिक्कन हएत कि पीबैबलासँ, आकि मालिस करैबला तेलसँ हएत कि देह-हाथमे सभदिन लइबलासँ। मुदा अखन एकरा छोड़ह।”

चामक मुँह छीहे बजबजा गेल। ओना, चामोक मुँह चान सन सेहो अछि मुदा से नहि, बजा गेल-

“जीबछ भाय, जँ सोझे महककेँ एना छोड़ैत जेबै, सेहो नीक नहियेँ।”

हमर बातसँ जीबछ भायकेँ कुवाथ नइ भेलैन। मुस्की दैत बजला-

“सभ दिन तोहू अनाड़ी-के-अनाड़ीए रहि गेलह..!”

जीबछ भाइक मुहेँ ‘अनाड़ी’ सुनि मनमे परपन शुरू भेल। मन हरियाए लगल, खुशियाए लगल। जइसँ जेहने खुशी मनमे खुशियाएल तेहने ठोरसँ निकलल-

“दुनियाँमे जेते ढोल अछि भाय, ओते तँ बजौनिहारो ने अछि।”

ओना, जहिना बहैत धारमे सड़लसँ पाकल धरि सभ-पानि एकेगतिये भँसियाइत चलैए तहिना सड़लसँ पाकल धरि सबहक रस्तो नमहर अछि किने। तँए, सभकेँ एक्के गुण-धरम मानल जाएत..?

बजैत-बजैत जीबछ भाय बिच्चे धारमे रूकि गेला। पाछूसँ धकियबैत बजलौं-

“भाय साहैब, बिच्चे पाँतरमे किए रूकि गेलौं, गाड़ीक पेट्रोल सठि गेल?”

जहिना हम धकियौने छेलिऐन तहिना ओहो धकियबैत बजला-

“अपन एकटा बात बीचमे आबि गेल से पहिने कहै छिअ। पैछला बातकेँ ताबे पराग्राफ बना थामह। एक दिन कानमे टनकी उठल। हहाइत-फुहाइत जा ओछाइपर पड़ि रहलौं। पड़ल देख पत्नी जोरसँ बजली- ‘की भेल?’ बगले घरक दोसर गोरे रस्तेपर ठाढ़ सुनली, ओहो कनी जोर लगा बजली। सौंसे टोल समाचार पसैर गेल। काने टनक छल। एके-दुइये सतरहटा जनानी जिगेसा करए पहुँचली। पुरुख सुनला कि नहि, मुदा एको गोरे नइ पहुँचला। अपन जिगेसा छल तँए सबहक बातक संग विचारो सुनए पड़त। सतरहो गोरे सतरह रंगक दवाइ बता देलैन। तखन बुझि पड़ल जे दुनियाँमे कोनो साइंस बढ़ल तँ ओ मेडिकल साइंस बढ़ल। जेते मनुख तेते डॉक्टर..! बता तँ देलैन मुदा एकटा भेटत हिमालय पहाड़मे आ दोसर भेटत जगरनाथ लगहक समुद्रमे, मुदा आनत के? लंकासँ जे हनुमानजी आमक आँठी-सभ फेकलैन, से रोपने के केते अछि..!”

जीबछ भाइक बात सुनि जेना अपनो मनमे भेल जे दुनियाँक साए बेबकूफमे एकटा हमहूँ छी, जे एलौं हेन गोपीलालक बीमारीक जिगेसा करए आ सुनि रहल छी मौग-मेहरीक इलाज..!

ओना, सौंसे ओसार भरल लोक छल तँए किछु बजलौं नहि, तैबीच जीबछ भाय गोपीलालकेँ पुछलखिन-

“गोपी, रोगक की हाल?”

गोपीलालक मन रोगसँ रोगियाएल छल आकि लोक देख मन सोगियाएल छल से तँ गोपीलाल जानए। मुदा अनजानमे आकि जानि कऽ गोपीलाल बाजल-

“भाय साहैब, किछु ने फुरैए..!”

गोपीलालक बात सुनि जीबछ भाय चौंकला। मनमे फुटलैन- ‘अरे बाप! ई तँ परती खेतक भाँजमे पड़ि गेलौं! ओ हमर अगुताइ मानत..?’

जीबछ भाय बजला-

“गोपी, अखन अपनो चैन नइ छी आ बहुत लोक बैसलो छैथ, तँए अखन छुट्टी दएह। काल्हि तँ कनी मधबनी जाएब, परसू भिनसुरके पहर आबि सभ गप करब।”

जीबछ भाय तँ कनछी काटि कौल्हुका भॉंज मेटा लेलैन मुदा असगरे जीबछ भाय नइ ने छैथ, अपनो छी किने। मनमे उठल- एक तँ जिगेसा करए एलौं, सेहो जँ नीक जकाँ नहि कऽ पेलौं तखन एबे किए केलौं। गोपीलालकेँ की कहबै? मुदा लगले फेर भेल जे जखन जिगेसा करए एलौं, तखन जँ जिज्ञासु मनमे बिनु धाराक धारक चहटी जकाँ प्रवाहे रूकि जाएत तखन धरियाएत केना? बजलौं-

“गोपीलाल, जीबछ भाइक परसुका भाँज भेलैन आ हमर कौल्हुका रहल।”

दुनू हाथ जोड़ने गोपीलाल ओसारपर ठाढ़े रहल दुनू गोरे विदा भेलौं।

आँगनसँ निकैलते जीबछ भाय बजला-

“श्याम, गोपीलालक वंशक खेरहा केते बुझल छह?”

जीबछ भाइक बात सुनि दलिदर भीखमंगा जहिना बजैए जे तीन दिनक भूखल छी, तोहूसँ टपैत बजलौं-

“भाय साहैब, गोपीलालकेँ सोझे बुझै छी जे गामक चौकीदारो छी आ घरो गामेमे अछि।”

गोपीलाल गामक चौकीदारक पीढ़ीमे दोसर नम्बरमे छैथ। पहिल नम्बरपर हुनकर पिता रहथिन जे अंग्रेजक हुकूमतक समए नियुक्त भेल छला। निम्न जातिक परिवार, कहैले पनरह रूपैया दरमाहा रहैन मुदा ओ रहै बेठेकान, एक तँ मासे-मास भेटै नहि, दोसर- सरकारी तंत्रसँ जुड़ल सेहो नहि रहै, सर्किलक हिसाबसँ असेसर होइत रहै जे ओइ क्षेत्रक जमीनदार सबहक परिवारसँ जुड़ल रहैत। चौकीदारी टैक्सक रूपमे गामक किसान सभसँ तसीलल जाइत आ चौकीदारकेँ दरमाहाक रूपमे भेटैत छल। पहचानक रूपमे एकटा मुरेठाक कपड़ा सेहो देल जाइत रहइ।

पहिल पीढ़ीक अन्त भेल, देशो अजाद भेल। मुदा ओ ओहिना-के-ओहिना, माने जेहने जिनगी जीबै छल तेहने रहि गेल। ओही चौकीदारक दोसर नम्बरक माने दोसर पीढ़ीक चौकीदार गोपीलाल छी।

स्वतंत्र भेला पछाइत देशमे उथल-पुथल भेबे कएल। किछु ऊपर उठल, किछु निच्चॉं धँसल। मुदा जे भेल, जेतए भेल...।

गोपीलाल जेहने छोट खुट्टीक तेहने देहोक एकहारा तँए जुआनो होइमे देरी लगलैन आ जुआन भेला पछाइत जुआनियोँ बेसी दिन टिकबे केलैन अछि। जँ जन्म-कुण्डली ठीक-ठाक रहितैन तँ आठ बर्ख पहिनहि सेवा-निवृत्ति भऽ गेल रहितैथ, मुदा से नहि, अड़सैठ बर्खमे चलितो गोपीलालक अखन तीन साल नोकरी आरो बाँकी छैन।

दोसर दिन, भिनसुरका पहरक चाह-पान केला पछाइत जखन दिनक रूटिंग मिलेलौं तँ काजक सूचीमे पहिल नम्बर गोपीलालक बेमारीक जिगेसा करब छल। जे उचितो छल। जीवनमे जहिना भोजनकेँ प्रमुखता रहितो बेमारीकेँ प्रमुख मानल जाइए तहिना, बेमार गोपीलालक जिगेसा करबकेँ प्रमुख मानि विदा भेलौं।

संजोग नीक बैसल। महिला जगतकेँ भानस-भात, नोकरी-चाकरी करैक पहर रहने गोपीलालक ऐठाम मेला-ठेला जकाँ भीड़-भार कम छेलैन्हे। अनुकूल मौसम पेब मन खुशी भेल जे भरि पोख गप-सप्प करैक सुसमय भेटल।

जइ चौकीपर गोपीलाल बैसल छल तहीपर जा बैसलौं। ओना, गोपीलालक नातिन कुरसी अनलक, भाय! बेमारीक अवस्थामे जँ डॉक्टर-ओकील जकाँ बैसैक कुरसी तकता तखन तँ भेल रोगक इलाज! ओना, अपना ऐठाम एहनो तँ धारणा बनल ऐछे जे पैघसँ पैघ रोगकेँ छुतहा रोग[2] बुझि लोक रोगी लग जाइसँ परहेज करए चाहैए। चौकीपर बैसिते गोपीलाल बजला-

“भाय साहैब, किछु ने फुरैए..!”

गोपीलालक बात सुनि मन पड़ल जे काल्हियो यएह बात गोपीलाल बाजल छल आ आइयो यएह बात बाजल। जरूर किछु तेहेन विचार रोगक जड़िमे अछि जे बेर-बेर गोपीलालक मनमे अँकुर रहल छइ। ओना, अँकुरो-अँकुरोमे अन्तर अछि। तँए केकरो डिम्ही, केकरो अँकुर, केकरो अँखुआ आ केकरो गाछ कहले जाइए, तँए केकरो केलहा मन पड़ै छै तँ केकरो करैक इच्छा मन पड़ै छै आ केकरो संकल्पित काज पछुआइत देख मन पड़ै छइ। खाएर जे छै, जेतए छइ से तेतए छइ, ऐठाम गोपीलालक बात अछि।

बजलौं-

“गोपी, अपने तँ अनुभव करैत हेबह ने जे एना किए पछड़लौं?”

हमरा पुछैसँ पहिनहि गोपीलालक मन बेसी बेथित रहै आकि पुछला पछाइत भेलै, ई गोपीलाले जानत, मुदा तैयो हुब-हुबाइत बाजल-

“भाय साहैब, जखन पुछलौं तँ सभ बात कहिये दइ छी।”

बजैत-बजैत बिच्चेमे पत्नीपर गरैज उठल-

“भाय साहैबकेँ एक घन्टासँ बेसी एना भऽ गेलैन आ हिनका चुल्हिकेँ लोहारक लोहा छुबि देने छैन!”

हमरा रोचे आकि घरबलाक रोचे बेचारी नातिनक हाथे लगले दू कप चाह पठा देली।

एक घोंट चाह पीब गोपीलाल अपन दहीन हाथ देखबैत बाजल-

“भाय साहैब, ऐ हाथसँ बहुत काज जिनगीमे केलौं।”

काजक चर्च होइते बजा गेल-

“वाह, वाह बहादुर।”

पहड़िया बहादुर बुझि आकि अपन बहादुरी बुझि गोपीलाल बाजल-

“जहिना बाबू पनरह रूपैआक नोकरीक संग परिवारो देलैन तहिना हमहूँ आइ धरि निमाहैत एलौं। भाय सभ छँटगर होइत गेल, परिवार अलग करैत गेल। पाँचटा अपनो बेटा-बेटीकेँ पोसि-पालि, बिआह-दान करा देलिऐ।”

बजलौं-

“यएह सभ ने परिवारकेँ जीवित रखैक जीवन देब भेल। अही जीवनसँ ने परिवारक संग समाजो जीबैए, जैपर समाजक नींव सेहो ठाढ़ होइए।”

गोपीलाल पाशा पलैट बाजल-

“भाय साहैब, जहियासँ नोकरी शुरू केलौं, तहियासँ कि कोनो एक्केटा हुज्जैत भेल, बुझि पड़ैए जेना गाममे सभसँ हुजतिया हमहीं छी। जेना हम सभ आन देशक लोक होइ तहिना ने अपनो देशमे गुलामीक गनजन होइते अछि।”

गोपीलालक विचारधारा देख मनमे भेल जे भरिसक गोपीलालक सभ रोग छुटि गेल अछि। बजलौं-

“से की?”

गोपीलाल बाजल-

“पनरह रूपैआक नोकरी आइ पनरह हजार भेल, से कि अहिना भेल। नीक जकाँ ते मन नइ अछि मुदा सात-आठ बेर जहल जरूर गेल हएब। ओना जहलोमे कम दुर्गैत भेल सेहो नहि। जहिना नरकोमे ठेलम-ठेल होइए तहिना जहलोमे भेल। चिन्हरबा चोर सभकेँ जखैन सोझा पड़ियै आ कि चारिटा गारि ओहो पढ़ए आ चारिटा हमहूँ पढियै।”

बजलौं-

“एक्के घरमे सभ रहै छेलहक?”

गोपीलाल बाजल-

“सरकारक ने जहल छी, सभकेँ ने एक्के रंग अधिकार अछि।”

गोपियेलालक बातकेँ उनटबैत बजलौं-

“गोपी, ई नहि बुझि पेलौं जे किए कहलह जे किछु ने फुरैए?”

जेना गोपीलालो अपन बात कहैले तैयारे रहए तहिना बाजल-

“भाय साहैब, ऐ बातक जवाब पछाइत देब, पहिने दोसर सुनि लिअ।”

हुँहकारी भरैत बजलौं-

“बड़बढ़ियाँ बाजह।”

एकाएक जेना गोपीलालक चेहराक रंग उतरए लगल। जेना ट्यूवेल वा बोरिंगक पाइप धरतीमे गाड़ैकाल तर मुहेँ सरसराइतो आ केतौ-केतौ ठमैकतो बढ़ैए तहिना गोपीलालक मन सेहो अपन बेमारी दिस बढ़ए लगल। बाजल-

“भाय साहैब, तीन सालसँ जहिना दरमाहा बेसी भेल तहिना दुनू परानी तेना रोगा गेलौं जे खरचे बेसिया गेल। मुदा संतोख अछि जे कर्जा-बर्जा नइ होइए, कहुना काज ससारैत चलै छी।”

बजलौं-

“यएह ने भेल तोरा सन काबिल लोकक काज।”

‘काबिल’ सुनि जेना गोपीलालक कबिलैती घोंसरए लगलै तहिना बाजल-

“भाय साहैब, दरमाहा लोभे नोकरी नइ छोड़ै छी, तीन सालसँ दवाइयो चलैए आ ड्यूटियो करै छी। मघारिमे केहेन शीतलहरी भेल से ते देखले अछि। सात दिनक ड्यूटी एनएचपर भऽ गेल। तेहेन ठंढी लागल जे जान बँचब कठिन भऽ गेल। तखन पटना गेलौं, ओतुके इलाजसँ अखनो जीबै छी।”

बजलौं-

“बेटाकेँ किए ने नोकरी दऽ दइ छहक?”

गोपीलाल बाजल-

“तीनटा बेटा अछि। भैयारीमे हम जेठ छेलिऐ तँए बाबू हमरे नोकरी देलैन आ हमहूँ भाय सभकेँ परिवार ठाढ़ कऽ देलिऐ।”

बजलौं-

“ई की कोनो चोरौल बात अछि।”

‘चोरौल बात’ सुनि जेना गोपीलाल हिया हारि देलक तहिना बाजल-

“बाबूक अमलदारीमे चारू भाँइ एकठाम छेलौं, तँए बँटवारामे कोनो राहु-केतु नइ लागल। मुदा अपन तीनू बेटा भीन अछि! अखन काजुल छी तखन तँ कियो देखते ने अछि आ काज छुटलापर के देखत।”

वजनदार विचार गोपीलालक बुझि पड़ल। मुदा जँ कहीं नोकरीक बिच्चेमे मरि गेल तखन तीनू बेटाक बीच की हएत? बजलौं-

“नीक हेतह जे अपना जीविते तय-तसफिया कऽ लेबह।”

गोपीलाल बाजल-

“तही ओझरीमे तेना ओझरा गेल छी जे किछु फुरबे ने करैए।”


शब्द संख्‍या : 2091, तिथि : 12 नवम्बर 2017


[1] भोजपुरवाली, सुपौलवाली

[2] छुतहा रोगक माने संक्रामक रोग।