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Monday, May 16, 2016

परिस्‍थिति लेखिका (कथाकार कैलाश कुमार मिश्र)

परिस्‍थिति लेखिका


राघव परेशान छला। सरिपहुँ दिल्‍लीसँ शोधक प्रक्रियामे दरिभंगा जेबाक छेलैन। दरिभंगा गेला। ओतए प्रोफेसर सुधाकर ठाकुरजीक निवासपर पहुँचला। सुधाकर पचास वर्षीय श्रोतीय ब्राह्मण छैथ, कारी भुजंग। डेढ़ आँखि। कुनो अफ्रिकन जकाँ बड़का बरी सन बिदरल ठोर। कँचियाएल नयन। तइमे बिना ढंगसँ धोल आ बिना आयरन कएल अंगा, अंगाक बाँहिक एक बटम टुटल। एक हाथमे अंगाकेँ मोड़ने आ दोसरमे बटम लगेने। पएरमे कोयला-मजदूर जकाँ गन्‍दगी सटल आ दुनू ऍंड़ीमे छँहोछित बेमाए फाटल। ऊपरसँ एकटा प्‍लाष्‍टिकबला चप्‍पल पहीरने। मुँहमे पान ठुसने। पानक दाग समस्‍त वस्‍त्रपर चकचकाइत...।
राघवकेँ भेलैन, हे भगवान! कोन मनुख-लग आबि गेलौं!! मुदा करितैथ की। लचार छला राघव। आधा मनसँ राघव प्रोफेसर सुधाकरकेँ चरण-स्‍पर्श केलैन। सुधाकर बहुत प्रसन्नतासँ राघवकेँ आवभगत केलखिन।
प्रोफेसर सुधाकरकेँ दरिभंगामे भव्‍य तीन मन्‍जिला मकान छैन। पैघ क्षेत्रमे बनल। मकानक आगूसँ पक्की-सड़क आ पाछूसँ पोखैर घेरल। प्रांगणमे प्रचुर खाली धरती, जइमे आम, जामुन आ लीचीक गाछ चतरल। घरक काते-कात गेना, गुलाब, अड़हुल इत्‍यादि फूलक अतिरिक्‍त तुलसी, पुदिना लागल। परिसरक मध्‍यमे झबड़ल नीमक गाछ जे छाहैरसँ परिपूर्ण छल।
निच्‍चासँ दू मन्‍जिल मकानकेँ प्रोफेसर सुधाकर कुनो आवासीय विद्यालयक छात्रावासक हेतु दऽ देने छेलखिन। तेसर मन्‍जिलमे स्‍वयं पत्नी-नन्‍दिता, पुत्र- अमरेश आ विमल संग रहै छला। पत्नी छेलखिन पैंतीस बर्खक। जेठ पुत्र सोलह बर्खक आ छोट तेहर बर्खक। घरमे प्रवेश करैत राघवकेँ एना बुझेलैन जे नर्कमे आबि गेलौं। घर सभ धुरा-गर्दासँ भरल। बाथरूम गन्‍हाइत। भीजल कपड़ा सभ तीन-चारि दिनसँ जेना पड़ल हो। बाथरूमक बाहर चारि-पाँचटा आँठि थारी पड़ल। थारीमे भात, तीमन आदि आँठि गन्‍हाइत, माछी भिनकैत..!
राघव एकटा कुर्सीमे बैसला। कनी कालमे प्रोफेसर सुधाकर जीक दुनू बालक आबि राघवकेँ पएर छूबि प्रणाम केलकैन। जेठ बालकक मुँह-कान कुनो रूपे एक सभ्‍य प्रोफेसर केर संतति नहि लगै छल। जेठ पुत्रक खिखिर जकाँ मुँह, ढाबूस बेंग सन पीअर-पीअर-छोट-छोट दाँत। शरीरक कांति हदसँ बेसी कमजोर। जेना यक्ष्‍मा रोगसँ ग्रसित होथि। फाटल हाफ पेन्‍ट आ नव अंगा पहीरने। गरदेन आ कनपट्टीपर मैल जमल। अपरोजकक नेता। छोट बालक मोट, मुदा मुँह-कान शोभनगर नहि। रीक्ष जकाँ झोंट। बुझाइत एना जेना कहियो कंगही आ तेलक भेँट नहि भेल होइ। दुनू भाँइमे एक अन्‍तर अबस्‍स बुझना गेलैन राघवकेँ- जेठ कनी सोझ, निश्छल तँ छोट कनी कईयाँ आ मतलबी।
एकटा पनरह बर्खक बच्‍चिया सुधाकरजी ओतए घरक-काज करै छलि, जेकर छीनकाय काया। आँखिमे काँची पड़ल। नाकपर सुखाएल पोटाक मोट मुल्‍लमा मोती जकाँ लागल। आँगुरक नह-सभमे कारी-कारी मैल भरल। ओकर नाओं छिऐ बेबी। प्रोफेसर सुधाकर बेबीकेँ कहलखिन-
बेबी, कनी राघवजीकेँ एक गिलास सुसुम पानि पीआ। फेर नेबोबला चाह बना। वेचारे थाकल छैथ। जाबेत चाह पीता, स्‍नान-ध्‍यान करताह, ओतबा कालमे भोजनक व्‍यवस्‍था कर।
प्रोफेसर सुधाकर अपन छोट पुत्रकेँ कहलखिन-
बाऊ, कनी हम्‍मर पर्ससँ बीस टाका लऽ चौकपर सँ थोरेक खीरा, चुकुन्‍दर, मुरई, धनी पात आ हरिअर मिरचाइ लऽ आउ। नेबो घरेमे अछि।
थोरबे कालमे बेबी एक गिलास सुसुम पानि लेने राघव लग आबि गेलैन। राघव तँ गन्‍दगीसँ परेशान छला, मुदा हारि मानि नाक आ आँखि मुनि पानि पीब गेला। प्रोफेसर सुधाकर केर बाथरूम भारतीय रेलक जेनरल बोगीक बाथरूमसँ कुनो दृष्‍टिकोणे नीक नहि छेलैन। मुदा मरता क्‍या नहीं करताकेँ स्‍मरण करैत राघव बिना कुनो प्रश्‍न केने बाथरूम दिस विदा भेला। स्‍नान एवं अन्‍य नित्‍य-क्रियाकेँ सम्‍पादित करबाक लेल यद्यपि राघव साबुन, सेम्‍पू, पेस्‍ट, अंगपोछा इत्‍यादि अपना अटैचीसँ निकालि ओतएसँ निकालला।  
स्‍नानादिसँ निवृत भऽ राघव बाहर एला तँ देखै छैथ जे प्रोफेसर सुधाकर केकरोसँ बात फोनपर कऽ रहल छैथ। कनी-कालक पछाइत बातकेँ विराम दैत सुधाकर कहलखिन-
राघवजी, अहाँक पत्नी सहजन्‍यासँ बात भऽ रहल छल। ओ कहै छेली जे राघव, बाहरक भोजन नहि पसिन करै छैथ आ कनी लजकोटर सेहो छैथ। भूखो लगल रहतैन तँ बजता नहि। तँए अपने हुनकर भोजनक बेवस्‍था शीर्घातिशीघ्र कऽ दियौन।
एतेक बात कहैत प्रोफेसर सुधाकर बेबीकेँ कहलखिन-
बेबी छेँ। राघवजी भूखल-पीआसल छैथ। एखनहि हिनक पत्नी- सहजन्‍यासँ फोनपर बात भेल छल। जल्‍दी-जल्‍दी भोजन तैयार कर।
ई कहैत प्रोफेसर सुधाकर अपन छोट पुत्रकेँ बजेलखिन-
विमलजी! जल्‍दी आउ आ सलादक सामग्री लेने आउ। कीचनक दछिनवरिया कोणमे तेजहा चक्कु अछि सेहो लेने आएब। जाबेत धरि बेबी भोजन तैयार करैत अछि ताबेत धरि हमरा लोकैन सलाद तैयार कऽ लैत छी।
विमल अपन पिताक आज्ञाकेँ पालन करैत सलादक सामग्रीकेँ एकटा सूपमे लऽ संगे चक्कू, थारी आदि सेहो लऽ अपन पिता लग आबि गेला।
प्रोफेसर सुधाकर सलाद काटए लगला। ओना सलादक सामग्री नीकसँ धोल नहि छेलैन। राघवकेँ मने-मन अपन सहचरी सहजन्‍यापर धोर तामस उठए लगलैन। सोचलैन-
बेकारे ऐ प्रोफेसर सुधाकरकेँ ई किएक कहि देलखिन जे राघव घरक भोजन करता? कनी-मनी खा लितौं आ बादमे चुपचाप टावर केर कुनो भोजनालयमे भोजन कऽ अपन जीवन-रक्षा करितौं। मुदा सहजन्‍या तँ सभटा चौपट्ट कऽ देली! हे भगवान, आब की हएत? चण्‍डाल सोइत प्रोफेसर भाय अपना घरक अपवित्र आ गन्हाएल भोजनसँ हमर जान लऽ लेत! दुख- हरहु हारकानाथ शरण मैं तोरी।
आ देखते-देखते भोजन तैयार भेल। सचार लगलै। संगे-संगे राघव आ प्रोफेसर सुधाकर भोजन करबाक लेल बैसला। सुधाकर अपन जेठ पुत्र- अमरेशकेँ कहलखिन-
बाऊ, जल्‍दीसँ तीन-चारि तरहक अँचार लाऊ। राघवजी छब्बीस घण्‍टासँ भूखल छैथ।
खैर! राघव नहियोँ चाहैत भोजन केला। ओना, भोजन ओतबो अधला नहि जेहेन राघव सोचने रहैथ। हँ, सुचिताक अभाव अबस्‍स रहइ। तरकारी सभमे नोन कनी अधिक जरूर रहइ। भोजन केला पछाइत राघव प्रोफेसर सुधाकरकेँ संगे एक पैघ कमरामे गेला। कमरामे ओछाइन इत्‍यादि राखल रहइ। दुनू गोरे बैसला। थोड़बे कालमे एक महिला नीक वस्‍त्र पहीरने, खुजल केसक संग ओतए पहुँचली। सुधाकर उठि एक कुर्सीपर ओहि महिलाकेँ इशारासँ बैसबाक निवेदन केलखिन। महिला प्रोफेसर साहैबकेँ इशारासँ सम्‍मान करैत एक कुर्सीपर जा सहज भावसँ बैस गेली। आब सुधाकर राघव दिस मुखाकृत होइत बजला-
राघवजी, ई छैथ नन्‍दिता। हमर पत्नी। साहित्‍यमे अभिरूचि छैन। कविता, गल्‍प्‍, उपन्‍यास आदि लिखबो करै छैथ। समाजशास्‍त्रसँ एम.ए. छैथ। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयसँ समाजशास्‍त्र विभागसँ नारी मनोदशा केर ऊपर पी.एच-डी कऽ रहली अछि। थेसिस लगभग तैयार छैन। सभ चीज ठीक रहलैन तँ दू मासक भीतर जमा भऽ जेतैन...।
महिला मुस्‍कियाइत रहली। नन्‍दिता आ राघव लगभग उमेरमे समवयस्‍की, मुदा राघव प्रोफेसर सुधाकरकेँ गुरु तुल्‍य मानैत सदिकाल हुनकर चरण-स्‍पर्श करैबला, तँए मर्यादाक पालन करैत नहियोँ चाहैत राघव उठि कऽ नन्‍दिताक पएर छूबि प्रणाम केलकैन। नन्‍दितो अदहे मनसँ अभिवादन-स्‍वीकार करैत राघवकेँ पीठ थपथपा असिरवाद दऽ अपन गुरु-पत्नी बनबाक भारसँ उरीन भेली।
मुदा नन्‍दिता देखए-सुनएमे अद्भुत सुन्नैर। छरहर देह। कारी केस जे ठेहुनकेँ छुबैत...। नन्‍दिता सफेद रंगक साड़ीमे छेली। जइमे किछु डिजाइन बनल छेलैन। कम्‍प्‍युटराइज्‍ड पेर्टन, जे साड़ीकेँ आकर्षक आओर नन्‍दिताक सौन्‍दर्यकेँ बढ़ा रहल छेलैन। नन्‍दिताकेँ देख ई लगै छल जेना नन्‍दिता सोभाव आ संस्‍कारसँ आधुनिकी छैथ। कलरलेस लीपिस्‍टिक लगेने, आँखिमे सहनाज हूसेनक काजर, आ केस कुनो महग सेम्‍पूसँ धोने। केसक चमक ऐ बातक प्रमाण छेलैन। अधकटी बेलौजसँ नन्‍दिताक काँख देखाइत रहैन आ ओकरा अकारणे नहि झाँपए चाहैथ। राघवक धियान ओइ दिस चलिये गेलैन। समुन्नत वक्षकेँ तुरत बाद काँखक हस्‍यावलोकन कनी मनकेँ झंकृत करए बला लगलैन। नन्‍दिता कुनो युक्षिणीक मूर्तिसँ कम नहि छेली। कियो नइ कहि सकै छल जे पैंतीस बर्खक भऽ गेल छैथ आ दू गोट पुत्रक माता थीकीह। अपाद्मस्‍तक सुन्‍दरताक खान बुझाइत नन्‍दिता।
बादमे प्रोफेसर सुधाकर नन्‍दिताकेँ राघवक परिचय दैत कहलखिन-
राघवजी, संस्‍कृत आ कलाक बहुत नीक विद्वान छैथ। संस्‍कृतक संग-संग हिन्‍दी, मैथिली आ अंग्रेजी साहित्‍यपर समान अधिकार छैन। समाजशास्‍त्र, नृतत्त्वशास्‍त्र, कला-इतिहास, संग्रहालय विज्ञान, पुरातत्व आ सौन्‍दर्यशास्‍त्रमे गहन अभिरूचि रखै छैथ राघवजी। बहुत नीक लिखैत छैथ आ बहुत नीक बजैत छैथ। UNESCO-UNDP आदि संस्‍थाक हेतु भारतीय संस्‍कृति केर अनेको विषयपर लिखै छैथ, डक्‍युमेन्‍टरी फिल्‍म बनबैत छैथ। कविता, गल्‍प आदि सेहो लिखैत छैथ। मैथिली संस्‍कृतिपर कार्य करबाक हेतु मिथिला आएल छैथ। UNESCO-UNDP परियोजना लेल भारत सरकारक सहयोगसँ काज कऽ रहला अछि। एतए बीस-पचीस दिन रहता। दिनमे मिथिलाक अनेक गाम जेना- सौराठ, सरिसब पाही, सतलखा, अन्‍धराठाढ़ी, पुनौराधाम आदिक भ्रमण करता आ अधिकांश दिनमे रातिक दरिभंगा अपने सभ लग रहए चलि औता। किछु-किछु गाममे हमहूँ हिनका संगे जाएब। बहुत किछु सीखबाक अछि राघवजी सँ आ भारतीय लोक संस्‍कृतिसँ।  
नन्‍दिता राघव केर प्रशंसासँ बड्ड प्रभावित भेली। राघव दिस आनन्‍दक भावसँ देखलखिन। बजलैथ-
तखन तँ हमहूँ जखन-कखनो राघव उपलब्‍ध रहता तँ अपन साहित्‍य आ साहित्‍य-लेखन केर विधापर विस्‍तृत चर्चा हिनकासँ कऽ सकै छी?”
आब राघव बजला-
किएक नहि मैडम! हम अहाँक साहित्‍य पढ़ि आ ओइपर चर्च कय अपना-आपकेँ धन्‍य बुझब! अहाँसँ बहुत किछु सिखबाक अवसर भेटत। शैली, उपमा, अलंकारक प्रयोग आ बिम्‍बक विधानक जानकारी भेटत। हम तँ सौखिया लेखन करै छी साहित्‍यमे। संस्‍कृति आ मानव विज्ञानसँ समय नहि निकालि पबैत छी। ओना ईहो बता दी जे हमरा सम्‍बन्‍धमे श्रीमान कनी अधिक बता देलाह। हम तँ कला-संस्‍कृति आ मानव विज्ञानक अति-समान्‍य छात्र मात्र छी।
अहाँसँ भेँट भेल तँ हम अपना आपकेँ उत्‍साहित बुझै छी।
स्‍वत: बजली नन्‍दिता। ई कहैत नन्‍दिता उठि कऽ अपन शयन कक्षमे गेली आ एकटा चानीक प्‍लेटमे लौंग, इलायची, सुपारी, सौंफ, नारिकेल इत्‍यादि लऽ कऽ पुन: लगमे आबि, प्‍लेट राघव दिस बढ़ा देलखिन आ पुन: अपन कुर्सीपर बैस रहली। राघव प्‍लेटकेँ प्रोफेसर सुधाकर दिस बढ़बैत बजला-
श्रीमान, पहिने अपने लेल जाओ।
प्रोफेसर साहैब हाथक इशारासँ राघवकेँ सिनेहक आदेश दैत पहिने लेबाक निर्देश देलखिन। सिनेहादेशक सम्‍मान करैत राघव प्‍लेटसँ दछिनी आ कनी सौंफ लऽ लेलैन।
थोड़े कालक बाद नन्‍दिता पुन: अपना कक्ष दिस गेली। दस मिनट लगेलैन आ आपस हाथमे पान बनेबाक तमाम सामग्री लय अनलैथ। अपन कुर्सीपर आसन ग्रहण करैत पान लगबए लगली, निपुणताक संग। राघवकेँ पुछलखिन-
केहेन पान खाएब राघवजी? कुन जर्दा एवं अन्‍य चीज? कुट्टीबला सुपारी की सरौतासँ छल्‍ला बनल?”
राघवकेँ नन्‍दिताक आवभगतक स्‍टाइल नीक लगलैन, बजला-
मैडम, हमरा क्षमा करू। हम कुनो तरहक पान नहि खाइ छी। श्रीमानकेँ दियौन आ स्‍वयं खाउ पान।
नन्‍दिता आब एक खिली पान लगा प्रो. सुधाकरकेँ दऽ देलखिन आ दोसर खिली स्‍वयं लऽ लेली। पानक डालीसँ प्रो. सुधाकर अपना हाथे कारी-पीअर रंगक जर्दा अपने इच्‍छे लऽ लेलैन। नन्‍दिता सेहो एकटा छोट खिल्‍ली अपना लेल बनेली आ बिना कथ के सुपारी एक नान्‍हिटा टुकड़ी दाँत तरमे ग्रहण केली। थोड़बे कालक पछाइत नन्‍दिता प्रो. सुधाकरकेँ कहलखिन-
बुझलौं की एगो बात?”
प्रो. सुधाकर-
की? कहू ने?”
नन्‍दिता-
ई पानक खिल्‍ली हमर जिनगीक अन्‍तिम, पानक खिल्‍ली थीक। आब हमहूँ पान नहि लेब। अगर राघवजी बिना पान खेने रहि सकै छैथ तँ हम किएक नहि?”
ऐ बातपर राघव विनम्रता पूर्वक बजला-
नहि नहि। ऐमे कुनो महानताबला बात नहि छै, मैडम। ई तँ अपन पसिन आ ना पसिनपर निर्भर करै छै। हमरा पान नहि नीक लगैत अछि तँए नइ खाइ छी।
बिच्‍चेमे प्रो. साहैब बाजि उठला-
देखू नन्‍दिता! अगर अहाँ पानक तियाग करए चाहै छी तँ अबस्‍स करू।  ई उत्तम निर्णय हएत। एहनो भऽ सकैत अछि जे किछु दिनक बाद हमहूँ पान तियागि दी।
आब राघव गद्-गद् भऽ गेला। गदगदाइत बजला-
श्रीमान आ मैडम, ओना अगर अहाँ लोकैन पान छोड़ि दी तँ नीक बात। सुपारी, जर्दा इत्‍यादिक कारणे पान आजुक युगमे माहुर बनि चुकल अछि। डाक्‍टर तँ एतेक तक कहै छैथ जे Oral Cancer केर प्रमुख कारणमे एक कारण पानो खाएब छी।
राघवक कथनकेँ स्‍वीकृति प्रोफेसर सुधाकर आ नन्‍दिता अपन-अपन गरदेन हिला देलखिन। राघवकेँ नीक लगलैन।
एकाएक नन्‍दिता राघव दिस देखैत बजली-
राघवजी, एक बातक निवेदन करी?”
राघव-
निवेदन की मैडम, आज्ञा करू?”
नन्‍दिता-
कुनो आज्ञा नहि। सिर्फ छोट-छीन निवेदन।
राघव-
कहू ने मैडम।
नन्‍दिता-
हमरा अहाँ मेडम नहि कहू। कुनो आरो नामसँ सम्‍बोधित करू। नन्‍दिता कहि सकै छी।
राघव-
नाम लऽ कऽ केना बजाउ? अहाँ गुरुपत्नी छी। 
प्रोफेसर सुधाकर निराकरण करैत बजला-
सुनू ने राघवजी। अहाँ तँ हमर छोट भाए जकाँ छी। तइ दृष्‍टिकोणसँ नन्‍दिता अहाँक भाउज भेली। अगर अहाँ चाही तँ हिनका नन्‍दिता भाभीक नामसँ सम्‍बोधित कऽ सकैत छिऐन। नन्‍दितोकेँ हमरा जनैत ई सम्‍बोधन नीक लगतैन। 
नन्‍दिता-
हँ हँ। बिल्‍कुल ठीक शब्‍दक चयन भऽ गेल। राघवजी, आब अहाँ हमरा नन्‍दिता भाभी कहि सम्‍बोधित करू। हमरा बड्ड नीक लागत। मैडमकेँ भारसँ हम दबल जा रहल छी।
मन्‍द-मन्‍द मुस्‍कीसँ मुस्‍कियाइत राधव अपन सहमति देलखिन-
ठीक छै। नन्‍दिता भाभी अहाँ लोकैनकेँ जेहेन आज्ञा हुअए हमरा स्‍वीकार्य अछि।
हलाँकी ऐ शब्‍दाबलीसँ राघव सेहो मने-मन पुलकित छला। हुनका आब लागए लगलैन जे आब कनी नन्‍दिताक साहित्‍य बिना कुनो विशेष मर्यादाक बन्‍धनसँ उवैड़ जाएब। शायद ई एक नव रस्‍ता प्रशस्‍त कऽ रहल छल। नन्‍दिताक चेहरा सेहो चमैक रहल छेलैन। हलाँकी प्रोफेसर सुधाकर कहि नहि किए, कनी परेशान भऽ रहल छला।
आब प्रोफेसर सुधाकर कहलखिन-
राघवजी अहाँ थाकल छी। पहिने कनी आराम कएल जाउ। साँझमे छह बजे धरि हमरा लोकैन बैसब आ आगाँ केना कार्य करबाक अछि। कुन गाम कहिया जेबाक अछि, किनकासँ भेँट करबाक अछि आदि विषयपर विस्‍तारसँ चर्चा कऽ सर्वेक्षण केर ब्‍लू प्रिण्‍ट तैयार कऽ लेब।
राघवजी सूति रहला...।  
साँझमे साढ़े तीन बजे राघव जागि गेला। कनी कालमे प्रो. सुधाकर केर छोट बालक विमलेश एलखिन। विमलेश राघवकेँ पुछलखिन-
ककाजी, जल लबैत छी?”
राघव गरदेन हिला स्‍वीकृति दऽ देलखिन। विमलेश पानि अनला। राघव पानि पीब लेला। पानि पीबते मन हर्षित भेलैन। विमलेशसँ स्‍कूलक पढ़ाइ आदिपर विचार करए लगला। विमलेश एक-नम्‍बर-के गपोड़ी, बात करैमे माहिर, बूढ़ जकाँ सभ बातकेँ रचिया-रचिया सुनबए लगलैन। राघवोकेँ कुनो खराप नहियेँ लागि रहल छेलैन। पनरह मिनटक बाद अमरेश सेहो ट्यूशन पढ़ि कऽ आपस आबि गेला। विमलेश आ अमरेश अपन-अपन कथा सुना कऽ राघवकेँ समय बिता रहल छेलखिन।
कनी कालक बाद प्रोफेसर सुधाकर आँखिकेँ हाथसँ पोछैत धड़फड़ाएल पहुँचला। कहलखिन-
राघवजी, उठि गेलौं? नीकसँ नीन भेल किने?”
राघव-
हँ श्रीमान, खूब सुतलौं। तमाम थकाबट दूर भऽ गेल। आब तरोताजा भऽ गेल छी। अपनेक बालक सभ बड्ड नीक छैथ। बीस-पच्‍चीस मिनटसँ हिनका लोकैनसँ वार्तालाप कऽ रहल छी। नीक लागि रहल अछि।
आब चाह आबि गेल छेलैन। चाहक संगे-संग नन्‍दिता सेहो आबि गेली। कहि नइ किएक नन्‍दिताकेँ देखते-मातर राघवमे आश्‍चर्यजनक स्‍फूर्ति अबि गेलैन। सभ कियो चाह पीलाह। राघव प्रोफेसर सुधाकरजीक संगे Fieldwork केर Blie Print तैयार करए लगला। बीच-बीचमे नन्‍दिता दिस धियान चलि जाइन। ब्‍लू प्रिंट तैयार भऽ गेलैन। निर्णए लेलैन जे ऐगला दिन सात बजे भोरमे सौराठ गाम लेल प्रस्‍थान करता।
आब राघवआ प्रो. सुधाकर बजार हेतु विदा भेला। दरिभंगामे सुधाकर राघवकेँ किछु प्रतिष्‍ठित साहित्‍यकार, इतिहासकार, संगीतकार आदि लग लऽ गेलखिन। राघवकेँ नीक लागि रहल छेलैन। जानकारी प्राप्‍त भऽ रहल छेलैन। साँझमे आबै काल जीबैत रेहु माछ कीनलाह। पैसा राघव देलखिन।
माछक पाकमे नन्‍दिता सेहो संलग्‍न भेली। प्रो. सुधाकर सेहो लागल छला। माछक मसाला पीसबाक कार्य सेविका-बेबी कऽ रहलि छलि। राघव सेहो ओतै ठाढ़ भऽ गेला। पूरा पीकनिकक माहौल बनि गेल छेलइ। विमलेश चुपेचाप राघवकेँ कानमे कहलखिन-
जनै छिऐ काकाजी, आइ मॉं पहिल बेर कीचेनमे घुसली अछि। पापा आ माँ दुनू गोरे पाक विद्यामे केतेक नीक लागि रहल छैथ।
राघव केवल एक मिसिया हँसि कऽ बातकेँ ओतै समाप्‍त कऽ देला। भोजन तैयार भेलइ। सभ गोरे संगे भोजन करै गेला। रातिमे भोजनमे सुचिता आ सचारमे श्रृंगार बुझेलैन। भोजन करै काल प्रो. सुधाकर नन्‍दितासँ कहलखिन-
आमिल केतएसँ आएल छल?”
नन्‍दिता आनन्‍दित स्‍वरमे बजली-
माँ भेजने छेली। पनरह दिन भऽ गेल। भेल जे राघवजीकेँ मिथिलामबला माछ बना कऽ खुएबैन। तँए ऐ माछमे पीऔज, लहसुन नहि देल अछि। टमाटरक बदला आमिल, पिऔज, लहसुनक बदला हींग, दही आ पुश्‍तादाना।
सुआद बिल्‍कुल अलग आ चहटगर। राघव भरि इच्‍छा भोजन केला। एहेन माछ खेबाक अवसर राघवकेँ जीवनमे पहिल बेर भेल रहैन।
भोजन केला बाद राघव सूति रहला। दोसर दिन साढ़े छह बजे प्रात: नहा-धो कऽ राघव तैयार छला। राघव आ प्रो. सुधाकर चूरा-दही-चीनीक जलपान कए सौराठ लेल विदा भेला। सौराठक यात्रा सफल रहलैन। सौराठसँ साढ़े चारि बजे साँझमे दरिभंगाक लेल विदा भेला। दरिभंगा अबिते नन्‍दिता अपनेहाथे चाह बनेली। सभ कियो संगे चाह पीला।
दोसर दिन सरिसब-पाही जेबाक छेलैन। प्रति-दिन भोरे सात बजेक यात्रा कुनो-ने-कुनो गाम लेल निश्चित रहैन। तेसर दिन प्रोफेसर सुधाकर केर एकाएक जानकारी प्राप्‍त भेलैन जे कॉपी-जाँच करबा लेल विश्वविद्यालय केर अन्‍य शैक्षणिक सहयोगी संगे हुनको बनारस हिन्‍दु विश्वविद्यालयमे पनरह दिन धरि सेन्‍ट्रलाइज्‍ड कॉपीक चेकिंगमे भाग लेबाक छैन। प्रो. सुधाकर किंकर्तव्‍यविमुढ छला। राघव सेहो परेशान छला। भेलैन, बिना प्रो. सुधाकरसँ काज केना हएत? मुदा अपन पनरह बर्खक अनुभवकेँ स्‍मरण केला पछाइत मनमे भेलैन- सभ किछु सम्‍भव छै। सोचलैन- आखिर हमहूँ तँ छी अही माटि-पानिक संतति। फेर चिन्‍ता कुन बातक? जे हेतै देखल जेतइ। हिम्‍मत देखबैत बजला-
श्रीमान् अपने अबस्‍स जाउ। हम्‍मर मार्ग प्रश्‍स्‍त भऽ गेल अछि। अहाँ सभटा दिशा-निर्देशन कऽ देने छी। हम कार्य कऽ लेब। हमरा जेबासँ चारि-पाँच दिन पहिने अपने आपस आबि जाएब। बँचल-खुचल डाटा दुनू गोरे मिल कऽ कऽ लेब।
प्रो. सुधाकर राघव केर ऐ तर्कसँ सहमत भेला आ बनारस जेबाक तैयारी करए लगलैन। ऐगला दिन भोरे सात बजे राघव कुनो गाम Fieldwork लेल गेला तँ एगारह बजे दिनमे प्रो. सुधाकर बनारस लेल दरिभंगा स्‍टेशनसँ रेल पकड़बाक लेल प्रस्‍थान केला। राघव साँझ छह बजे आपस एला। नन्‍दिता अपने हाथे चाह बनेली। एक लोटा आ एक गिलासमे जल अनलैन। राघव बिना कुनो प्रतिकारक भरि इच्‍छा जल पीला। फेर चाह पीबैले बैसला। नन्‍दिता चाह संगे भूजल चूरा तरल झींगा माछ लऽ अनलैन। थाकल राघवकेँ ई सत्‍कार गदगद कऽ देलकैन।
बृहस्‍पैत दिन रहैक तँए नन्‍दिता पीअर साड़ी पहिरने छेली। ब्‍लौज सेहो पीअर मुदा ब्‍लौज केर गला बाहिं आ वक्ष लग कारी रहइ। पीअर आ कारीक मिलान रमनगर लगैत छेलैन। नन्‍दिता सोनाक एकटा बल्‍ला एक हाथमे आ दोसरमे घड़ी पहीरिने छेली। नन्‍दिताक हाथ-पैर आदि साफ छेलैन। नन्‍दिता आ प्रो. सुधाकर केर जोड़ी देखलापर बानरक हाथमे नारिकेलबला कहबी चरितार्थ होइ छल। चाह पीबै काल नन्‍दिता राघवसँ पुछलखिन-
राघवजी, अगर अहाँ लग समए हो तँ, आइ राति किछु काल अहाँसँ साहित्‍यक चर्चा कऽ सकै छी?”
राघव बजला-
हँ-हँ नन्‍दिता भाभी, किएक नहि। हम सामान्‍यत: दिनेमे अपन लेखन कार्य सम्‍पन्न कऽ लैत छी। अपने परेशान जुनि हौउ। निश्चिन्‍तसँ कऽ सकै छी।
राघवक अश्वासनसँ नन्‍दिता बिहुँसि उठली। राघवो कुनो कम प्रफुल्‍लित नहि छला। चाह पीला पछाइत राघव पुन: किछु बाँचल कार्यकेँ सम्‍पादित कए स्‍नान केला। तेकर बाद प्रो. सुधाकर केर आवास लग एकटा सैलूनमे जा पूरा माथक मालिश, फेशियल इत्‍यादि करेलैन आ आपस आबि नन्‍दिता, अमरेश आ विमलेशक संग रात्रिक भोजन केला। रातुक भोजनमे नन्‍दिता अन्‍य भोज्‍य-पदार्थक अतिरिक्‍त काँच टमाटरकेँ आगिमे पका ओइमे पिऔज, लहसुन, आद, हरिअर मिरचाय आदि मिला चहटगर चटनी बनेने छेली। राघवकेँ चटनी बड्ड नीक लगलैन। भोजन करै काल विमलेश राघवकेँ कहलखिन-
चचाजी, टमाटरक चटनी केहेन लगल?”
राघव जबाव देलखिन-
अपूर्व! मन होइए रोटी चटनीए संग खाइ। ऐ चटनीक आगू सभ व्‍यंजन बेकार।
राघवक ऐ जबावसँ नन्‍दिता प्रसन्न भेली आ गर्वान्‍वित स्‍वरूप निखैर उठली। राघवकेँ हुनकर स्‍वरूप बड्ड सोहनगर लगलैन। मुस्‍कियाइत रहला आ चहटगर चटनीक संग रोटी खाइत रहला। आब बिमलेश कहलखिन-
चचाजी, मम्‍मी अपने हाथे अहाँ लेल ऐ टमाटरक चटनी बनेली अछि।
राघव कृतज्ञताक स्‍वरमे बजला-
नन्‍दिता भाभी, अहाँ सभ हमरा लेल केतेक कष्‍ट लइ छी? ऐ कर्जकेँ हम सातो जनममे नइ सधा सकब। बड़ा अपूर्व आ चहटगर अछि चटनी।
नन्‍दिता-
अरे राघवजी! अहाँ एना किए सोचै छी। सुधाकर नहि छैथ। बनारस जाइसँ पहिनहि हमरा कहने छला जे राघवकेँ बाहरक भोजन पसिन्न नइ होइ छैन, तँए घरेमे किछु-ने-किछु अपने हाथे बना देबैन। बेबी-हाथमे सुआद नइ छै। तँए किछु बना देलौं। अहाँ तेतेक नीकसँ भोजन करै छी जे हमरो बनबैमे आन्‍नद अबैत अछि।
आब राघव चुप्‍पे भऽ गेला। भोजन केला। हाथ धोइते रहैथ कि सुधाकरक फोर एलैन-
की राघवजी, ठीक छी किने? आजुक यात्रा केहेन रहल? बुच्‍ची किछु नव चीज बनेली की?
राघव बजला-
हँ श्रीमान्, अखने भोजन केलौं अछि। सभ वस्‍तु अपूर्व, मुदा काँच बिलौती केर चटनीक तँ जबाव नहि। मन तिरपीत भऽ गेल। कुनो दिक्कत नहि श्रीमान्। केवल अपनेक कमी खलि रहल अछि। फिल्डवर्क सेहो ठीक रहल। लोक सभ सहयोगी छला। बहुत रास जानकारी भेटल। अपने आएब तँ सभ डेटा आ आँकरापर वृहत चर्चा करब।
हलाँकि राघव जनै छला जे सभ बातमे एक बात झूठ बजला, बाजल छला जे प्रोफेसर सुधाकर केर कमी हुनका महसूस भऽ रहल छैन। राघव तँ प्रसन्न छला जे आब ओ नन्‍दितासँ मुक्त भावसँ वर्तालाप कऽ सकैत छला। राघवकेँ प्रो. सुधाकर आ नन्‍दिताक बिआहमे कुनो रहस्‍य बुझना जा रहल छेलैन।
खैर, भोजन केला बाद राघव अपन कक्षमे गेला। कनी कालक बाद, भोजन केला बाद, बेबी अपन घर चलि गेलि। आब निच्‍चाँ जा नन्‍दिता मुख्‍य द्वार बन्‍द केलैन। जखन आपस एलीह तँ राघव पुछलखिन-
नन्‍दिता भाभी, की करए गेल रही?”
नन्‍दिता जबाव देलखिन-
सुधाकर नहि रहै छैथ तखन कैम्‍पसक मुख्‍य-द्वार हमरे बन्‍द करए पड़ैत अछि। सएह करए गेल रही।
राघव बजला-
हमरा कहितौं? हम कऽ दितौं!”
नन्‍दिता-
कुनो बात नहि। हमरा आदत पड़ि गेल अछि। अहाँ चिन्‍ता नहि करू।
पुन: नन्‍दिता अमरेश आ विमलेशकेँ आदेश करैत कहलखिन-
अहाँ सभकेँ स्‍कूल जाइसँ पहिने भोरे-भोर उठि कऽ पढ़ाइ करक अछि। जल्‍दी-जल्‍दी दूध पीब लीअ आ सूति रहू।हम साढ़े चारि बजे भोरक घण्‍टी लगा दइ छी। अपने मने उठि मुँह-हाथ धो पढ़नाइ प्रारम्‍भ कऽ लेब।
दुनू बालक माताक आज्ञाकेँ सम्‍मान करैत रसोइ-घर गेला। दूध गिलासमे राखल रहैन। दूध पीला आ सुतबा लेल चलि गेला। नन्‍दिता भीतर गेली। मच्‍छरदानी लगा देलखिन। लाइट ऑफ कऽ देलखिन। जीरो पावरक बल्‍ब ऑन कऽ देलखिन आ अपन दुनू छपल किताव, डायरी, किछु सादा पन्ना आ पेन लऽ राघव बला कक्षमे आबि गेली। राघव तैबीचमे एकटा अंग्रेजी उपन्‍यास पढ़ैत रहैथ। नन्‍दिताकेँ ऐबते-देरी राघव उपन्‍यासकेँ झाँपि लेला आ कातमे रखि देलखिन आ नन्‍दिताक स्‍वागतमे उठि कऽ बैसैत बजला-
आउ नन्‍दिता भाभी।
नन्‍दिता सामनेबला कुरसीपर बैसली। अपन दुनू पुस्‍तकमे ऑटोग्राफ लिखलैन-
सिनेही राघवजीकेँ,
सिनेह आ सम्‍मानक संग
-नन्‍दिता।
राघवकेँ नन्‍दिताक ऑटोग्राफ नीक लगलैन। दुनू पोथीक पन्नाकेँ उलैट कऽ देखलाह। ओइमे एकटा पोथी काव्‍यक संग्रह रहै आ दोसर गल्‍प संग्रह। दुनू पोथीक भाषा हिन्‍दी रहैक। तमाम कथाक मुख्‍य पात्र महिला। पुरुखक प्रति महिलाक क्रोध, आक्रोश, घृणा आदि स्‍पष्‍ट परिलक्षित होइत रहइ। एना बुझना गेलैन राघवकेँ जे नन्‍दिताक महिला चरित्र बागी आ विद्रोही तेबरमे ठाढ़़ छैन। हिंसक हेबामे सेहो महिला चरित्रकेँ कुनो दिक्कत नहि छै।
आब नन्‍दिता राघवकेँ कहलखिन-
सुनू राघवजी, हम अहासँ साहित्‍यिक चर्चा करए चाहै छी। हम्‍मर पोथी बादमे अहाँ पढ़ि लेब। अखैन किछु चर्चा करी?”
राघव बजला-
हँ-हँ अबस्‍स करू। अहाँक लेखनी हमरा प्रभावकारी लागि रहल अछि। पहिने अपन लिखल एक-आध मैथिली कविता सुनाउ।
नन्‍दिता राघव केर ऐ निवेदनसँ गद्-गद् भऽ गेली। अपन डायरीक पन्‍ना पलटनाइ प्रारम्‍भ करैत पुछलखिन-
प्रेम-कविता सुनाबी?”
राघव कहलखिन-
कुनो सुना सकै छी। हम अहाँक शैली आ रचनासँ अपना-आपकेँ अवगत करए चाहै छी।
आब बिना कुनो प्‍लोट बैक-ग्राउण्‍ड तैयार केने नन्‍दिता नहुँ-नहुँ अपन कविताक पाठ करए लगली। प्रारम्‍भ लघु कवितासँ केलैन। कविताक संरचना ने बड्ड नीक आ ने बड्ड अधलाहे। हलाँकि प्रेममे सेहो नारीक फ्रस्‍ट्रेशन परिलक्षित बुझना गेलैन, राघवकेँ नन्‍दिताक कवितामे। ओना, नन्‍दिताक अवाज कोइली जकाँ मधुर आ चहकैत। कविता-पाठ करैत-करैत नन्‍दिताक भाव-भंगिमा भव्‍य लागि रहल छेलैन। एक कविता पढ़ैत रूकली नन्‍दिता। राघव झट दनि पूछि देलखिन-
नन्‍दिता भाभी,एक बात पुछी?”
नन्‍दिता-
हँ-हँ पुछू ने!”
राघव-
अहाँक साहित्‍यिक कृतिमे महिला पात्र रिबेलियन किएक होइत अछि? ओना लेखन शैली हमरा बड़ प्रभावित कऽ रहल अछि।
यों ही कोई वेवफा नहीं होता
ई कहैत नन्‍दिता नमहर साँस भरलैन। फेर साँस छोड़लैन। फेर भरलैन। साँस भरब आ छोड़बक प्रक्रिया किछु काल धरि चलैत रहलैन। प्रत्‍येक साँसक संग नन्‍दिताक वक्ष ऊपर-निच्‍चाँ करैत रहल। राघव नन्‍दिताक पुष्‍ट-वक्ष गुच्‍छकेँ कन्‍हिया-कन्‍हिया निहारैत रहला। शायद ई सोचैत जे देखितो छैथ आ नन्‍दिता बुझियो नहि रहल छैथ। मुदा नन्‍दिता तँ छैथ स्‍मार्ट। भान लागि गेलैन जे राघव हुनकर यौवनकेँ तारि रहल छैन। नन्‍दिता सोचलैन : चलू राघवकेँ ऐ ख्‍वाबमे रहए दइ छिऐन जे हम किदु नइ बूझि रहल छी।
फेर नन्‍दिता बजली-
हँ राघवजी। अहाँक अवलोकन सूक्ष्‍म आ सार्थक अछि। एकर इतिहास छै। हमर जीवनक बीतल किछु एहेन घटना जे हमर साहित्‍य-सर्जनाक महिला चरित्रकेँ किछु उग्र, व्‍याकुल, प्रतिशोधी, अहंकारी बना दइ छै। ओना, कखनो काल नहियोँ चाहैत हमर सृजनमे महिला पात्र ओहन भऽ जाइत अछि। ऐपर हम काल्‍हि रातिमे अहाँक संग विस्‍तारसँ चर्चा करब। आइ अपन किछु कविता आ गल्‍प अहाँकेँ सुनबए चाहै छी। शैली, कथानक, परिवेश, उपमा, अलंकार आदिक प्रयोगपर अहाँक विचार जानए चाहै छी।
राघव बजला-
हँ-हँ नन्‍दिता भाभीजी, अहाँ अपन किछु लघु कथा आ अन्‍य कविता सुनाउ। रातिमे हम निश्चिन्‍ततासँ अहाँक पोथीकेँ समाजिक परिदृश्‍यमे समाजशास्‍त्री जकाँ पढ़ए आ समझए चाहै छी। समाजशास्‍त्रक परिदृश्‍यमे विवेचन करए चाहै छी। नारी मनोदशा, मानवीय संवेदनाक पितृसत्तात्‍मक समाज केर संरचना आ पितृसत्तात्‍मक समाज द्वारा नारीक शोषणकेँ अहाँक लेखनीक ऐनासँ बुझए चाहै छी।
नन्‍दिताक मन प्रफुल्‍लित भऽ गेलैन। साहित्‍यकारकेँ साहित्‍यकेँ सुनैबला आ साहित्‍य समीक्षाक संग ओकर प्रशंसा करैबला भेट जाए तखन मन हर्षित तँ हेबे करै छै। नन्‍दिता अपन कविताक पोथीक पन्ना चश्‍मा पहीरि पलटए लगली। तीनटा पन्नाकेँ मोड़ि लेलैन। फेर अपन कुर्सीसँ उठली आ अपन शयन कक्ष दिस बढ़ैत बजली-
राघवजी! हम कनिकबे कालमे आबि रहल छी।
राघव सोचए लगला, आखिर कुन प्रयोजनसँ नन्‍दिता भाभी अपन शयन कक्ष गेली? कुनो-ने-कुनो प्रयोजन तँ अबस्‍स हेतैन।
पनरह मिनटक भीतर नन्‍दिता पुन: राघवजीक कक्षमे हाथमे एक कलात्‍मक शीशाक ट्रेमे दूटा बाटीमे रसमलाइ लेने प्रवेश केलैन। नन्‍दिताक मन प्रसन्नचित आ संतुष्‍ट छेलैन। ट्रेकेँ टेबुलपर रखैत बजली-
राघवजी, काल्हि हमर छोट भाए राँचीसँ आएल छल। माँ ओकरे दिया ई मिठाइ भेजने छेली। छोटका रसमलाइ। एकरा रसभरी सेहो कहल जाइ छै। राँचीमे पंजाब स्‍वीट्स केर रसभरी बहुत विख्‍यात छै। बातेक क्रममे एकएक स्‍मरण आएल जे रसभरी तँ फ्रीजमे राखल अछि। सुधाकर मधुमेहक रोगी भऽ गेल छैथ ने, तँए ओ ई सभ नइ खाइ छैथ। अमरेश आ विमलेश दिनेमे खेने छला। केवल हम आ अहाँ नइ खेने रही। सोचलौं साहित्‍य सुनेबाक क्रियाकेँ आरो आगाँ बढ़ेबासँ पूर्व कनी मुँहकेँ नीक मीठाइसँ मीठ कऽ ली।
राघव मने-मन प्रसन्न भेला। नन्‍दिताक आदरमे आत्‍मिकताक भाव जगलैन। बिना किछु बजने अपना संकेता-भावसँ नन्‍दिताकेँ बहुत किछु कहि देलखिन। आब एक कटोरी राघव अपन बामा हाथमे लऽ दहिना हाथे चम्‍मचसँ रसभरी खाए लगला। बिना किछु कहने मशीन जकाँ नन्‍दिता सेहो राघवकेँ अनुशरण करैत दोसर कटोरी बला रसभरीकेँ ग्रहण करए लगली। मीठाइ खेलाक पश्‍चात् राघव अपन असलासँ दक्षिणी निकालि एक सौंस दाना नन्‍दिताकेँ आ एक स्‍वयं लेला। नन्‍दिताक हाथमे जखन राघव दक्षिणी देलखिन तँ राघवक हाथ नन्‍दिताक हाथसँ सटि गेलैन। राघवकेँ नन्‍दिताक कोमल हाथक स्‍पर्श नीक लगलैन। हाथ कनी काल सटले रहए देलखिन। कहि नइ किए, नन्‍दिता सेहो जेना चहैक उठली। चेहरापर किछु अलग तरहक उमंग नन्‍दिताकेँ राघवक स्‍पर्शसँ प्राप्‍त भेलैन।  नन्‍दिता सेहो राघवकेँ हाथक स्‍पर्शक सानिघ्‍य किछु क्षण लेल आरो प्राप्‍त करए चाहै छेली। दुनू एक-दोसरक हाथक स्‍पर्शक मुद्रामे करीब दू मिनट धरि रहलैन। आब राघवकेँ एकाएक ई भान भेलैन जे नन्‍दिता तँ हमरा इशारा कऽ रहली अछि। नन्‍दिता सुन्‍नरि आ आकर्षक छैथ। हमरो नन्‍दिताक प्रति आकर्षन बढ़ि रहल अछि मुदा नन्‍दिता तँ छैथ गुरु-पत्नी समान। कहीं हमर डेग कुनो शास्‍त्र अथबा परम्‍परा विरोधी दिशामे तँ ने बढ़ि रहल अछि..?
..एक पैघ प्रश्‍नवाचक चिन्‍ह राघवक कपारपर नाचए लगलैन। राघवकेँ स्‍थितिक भान भेलैन जे बात गलत भऽ रहल अछि। ऐ बातकेँ सोचैत राघव झट-दे नन्‍दिताक हाथसँ अपन हाथ हटा लेलैन। नन्‍दिता सेहो पुन: अपन पोथीक पन्ना उनटबए लगली।
नन्‍दिता राघवकेँ पुछलखिन-
राघवजी, अगर अहाँ कही तँ दू-तीनटा छोट-छोट कविता सुनाबी आ तेकर बाद एक या दूटा कथा सुनाबी, अहाँकेँ?”
राघव बजला-
हँ-हँ! सुनाउ ने। एकटा किए चारिटा कविता सुनाउ।
आब नन्‍दिता कविता पाठ करए लगली। जेतेक नन्‍दिताक तनक सुन्‍दरता तेतबे मनक सुन्‍दरता आ तइसँ बढ़ि कऽ बात करैक मीठाँस। राघव गद्-गद् भेल जा रहल छला। काव्‍य-पाठक क्रममे नन्‍दिताक नुआँक ऑंचर खसि पड़लैन। अधकटी आङीमे सहेजल नन्‍दिताक उन्नत वक्ष जेना कविताक धारक संग यात्रा करैत हो। उठैत-बैसैत। साँस संग नन्‍दिताक वक्ष जेना नृत्‍य करैत हो। कविताक संग-संग राघव दोग-दागमे नन्‍दिताक वक्षकेँ सेहो अवलोकन करए लगला। हुनका किछु-किछु होमए लगलैन। मन करैन जे नन्‍दिता भरि रातिअहिना आँचर खसेने वक्षक अवलोकन करबैत कविता-कथाक पाठ करैत रहथु।
मुदा ई की कुनो सम्‍भव बात छल? नहि। कदापि नहि। कविताक पाठ आ गल्‍पक वर्णन चलैत रहलै। पता नइ केना रातिक डेढ़ बाजि गेल। आब नन्‍दिताक नजैर देबाल-घड़ीपर गेलैन। झट दनि अकचकेली-
राघवजी! रातिक डेढ़ बजि गेल। अहाँकेँ भोरे-भोर फिल्‍डवर्कमे जेबाक अछि। आब ऐगला चर्च काल्हि करब। अहाँक निन्नक पूर्ति केना हएत तइ बातक चिन्‍ता भऽ रहल अछि।
राघव-
कुनो बात नहि नन्‍दिता भाभी। हमरा लोकैन ऐ तरहक गति-विधिसँ अपना-आपकेँ आत्‍मसात कऽ नेने छी। केतेक दिन तँ चौबिसो घण्‍टा काज करए पड़ैत अछि। तँए अहाँ चिन्‍ता जुनि करू। अगर इच्‍छा हुअए तँ एकटा कथा आ दूटा कविता आरो सुनाउ। अहाँक लेखनीमे चुम्‍बकीय आकर्षण अछि। कथ्‍यकेँ सपाट आ अलग अन्‍दाजमे अहाँ लिखै छी। समाजक दृढ़ मान्‍यता आ पुरुख-समाज द्वारा बनाएल गेल जंजीरकेँ तोड़ैले अहाँक साहित्‍यक नारी पात्र उद्धत रहैत अछि। परिवेशक संग कथानक सम्‍बन्‍ध स्‍थापित कऽ लैत अछि।
राघवक ऐ बातसँ प्रभावित भऽ नन्‍दिता मने-मन आनन्‍दित भऽ पुन: कुर्सीपर बैस गेली। आ अपन पोथीक पन्ना उलटाबए लगली। राघव बजला-
ओना, आब अहाँकेँ नीन आबि गेल हएत।बच्‍चा सभ सेहो असगरे सूतल छैथ। अगर चाही तँ अहाँ जा सकै छी।
नन्‍दिता झट-दे बजली-
हमरो लेल जगनाइ कुनो समस्‍या नै अछि। लेखनक कार्य अधिकांशत: हम रातियेमे करै छी। हमर दुनू पुत्र आब छेँटगर भऽ गेल छैथ। अहाँ कहि रहल छी तँ एक कथा आ तीन कविता आरो सुनबै छी।
नन्‍दिता पुन: कविताक पाठ करए लगली। नहुँ-नहुँ मुदा स्‍वर स्‍पष्‍ट आ नजाकतसँ भरल पाठ। हरेक कविताक पाठक उपरान्‍त राघव ओइ कवितापर किछु प्रश्‍नआ जिज्ञासा करैत रहलखिन। आ नन्‍दिता ओइ जिज्ञासाक उत्तर दैत रहली। अन्‍तमे नन्‍दिता एक लघु कथा अपन नाटकीय अन्‍दाजमे सुनेलैन। कथा राघवकेँ बड्ड नीक लगलैन। कथोसँ नीक नन्‍दिताक उपस्‍थिति राघवकेँ नीक लागि रहल छेलैन। आब अढ़ाइ बाजि चुकल छल। नन्‍दिता किताबकेँ सेरियबैत उठली। कहलखिन-
राघवजी, आब सूतए जा रहल छी। शुभ रात्री।
शुभ रात्री कहैत नन्‍दिता राघव दिस अपन हाथ बढ़ा देलैन। राघव कनी सह देला परन्‍तु हाथ नन्‍दिता दिस बढ़ि गेलैन। हैण्‍डसेक केलैन। हैण्‍डसेक करैत राघव नन्‍दिताकेँ शुभ रात्री कहैत बाहर धरि छोड़ए एला। नन्‍दिता अपन कक्ष दिस चलि गेली। राघव नन्‍दिताक सम्‍बन्‍धमे एक घण्‍टा धरि सोचैत रहला। अन्‍तत: साढ़े तीन बजेमे सूति रहला।
दोसर दिन भोरे राघव स्‍नान-धियान केला बाद चूरा-दहीक जलपान कऽ सीतामढ़ीक हेतु प्रस्‍थान केलैन। प्रस्‍थान करै काल नन्‍दिता दक्षिणी आ लौंग लेने ठाढ़ि छेलैन। राघव बिना किछु कहने आँखिक भाषा बुझैथ, नन्‍दिताक हाथसँ सभटा लौंग-दक्षिणी लऽ लेलैन। नन्‍दिताक आँखिसँ ई लागि रहल छेलैन जे नीक रहितैक जे राघव आइ केतौ जेबे नहि करितैथ। बिना नन्‍दिताकेँ कहने राघव हुनकर आँखिक भाषा बूझि गेला। आँखियेक इशारासँ कहलखिन-
शोधक कार्य अछि, तँए दिन भरि लेल अवलोकन हेतु जेनाइ आवश्‍यक।
राघव चलि पड़ला। जाबे धरि नजैरसँ ओझल नहि भेलैन ताबे धरि नन्‍दिता दिस राघव घूमि-घूमि तकैत रहला। नन्‍दितो एकटक भेल गेलरीमे ठाढ़ भऽ राघवकेँ जाइत देखैत रहली।
राघव भरि रस्‍ता केवल आ केवल नन्‍दिताक सम्‍बन्‍धमे सोचैत रहला। प्रेम, आकर्षण, सेक्‍स आ पाप सबहक बोध राघवकेँ एके संग हुअ लगलैन। नन्‍दिताक देहक बनाबटसँ राघव आकर्षित छला। नन्‍दिताक लेखनी सेहो अपने ढंगसँ राघवकेँ प्रभावित कऽ रहल छेलैन। नन्‍दिताक वस्‍त्र पहिरक अन्‍दाज आ सौन्‍दर्य विलास राघवकेँ कामूक बना रहल छेलैन। हुनकर मनक आ तकन कामदेव जाग्रत भऽ रहल छेलैन। मर्यादा आ अन्‍य चीज जेना विद्रोह करबाक हेतु उफान मारैत हो। भाँड़मे गेल मर्यादा आ विचारक लक्ष्‍मण-रेखा। नन्‍दिता सिनेहमणि आ कामदेवी छैथ। हुनका शायद हमरा सन युवकक आवश्‍यकता मनक आ तनक सामंजस्‍य आ अदान-प्रदानक हेतु जरूरी छैन तँ ओइमे मर्यादाक हनन केहेन? किछु एहने भावना राघवकेँ भऽ रहल छेलैन।  
फेर ई भाव कनी राघवकेँ चिन्‍तित आ ग्‍लानि-भावसँ भरि दैत रहैन जे अन्‍तत: नन्‍दिता छैथ तँ गुरुक पत्नी। अगर मर्यादा भंग भेल तँ गुरुजीक संग विश्वासघात भेल। गुरुकी सोचता! कहीं शापित कऽ देता तखन तँ..?
फेर आधुनिक विचार कहैन- जे हेतै ओ देखल जेतइ। नन्‍दिता किछु उलझनकेँ आइ राति जरूर बतेती। फेर अन्‍तिम निर्णए लेब जे की करब।
पूरा दिन कार्य करैमे चित्त नै भवैत रहैन, राघवकेँ। जेना नन्‍दिता हुनकर मनोवृतिकेँ एरेस्‍ट कऽ नेने होनि। मुदा कार्यक सम्‍पादन करब हुनकर शैक्षणिक आ प्रोफेशनल जबाव-देही छेलैन। तँए कार्यकेँ सम्‍पादन केला। कनी जल्‍दी समाप्‍त कऽ दरिभंगाक लेल विदा भेला। शनि दिन रहइ। रस्‍तामे जीबैत कबइ माछ भेटलैन। लगभग दू किलोक कुड़ी। राघव हुण्‍डे कीन लेला। मलाहिनसँ कुनो मोल-भाव नहि केला।
हाथमे माछ नेने राघव तीव्र गतिसँ प्रो. सुधाकर केर मकानक प्रांगणमे प्रवेश केला। आशाक विपरित नन्‍दिता नहि छेली। नन्‍दिताक जेठ बालक अमरेशसँ पता चललैन जे नन्‍दिता रेडियो स्‍टेशनपर अपन एक लघु कथाक प्रसारण हेतु गेल छैथ। राघव माछक झोरा अमरेशकेँ दऽ देलखिन। बेबी इन्‍होर पानि देलकैन। राघव पानि पीलाक बाद मुँह-हाथ धोलैन। बाहर एला तँ बेबी नेबोबला चाह दऽ गेलैन। राघव चाह पीबैत रहला आ नन्‍दिताकेँ एबाक इन्‍तजार करैत रहला।
लगभग अदहा घण्‍टामे नन्‍दिता एली। ऐबते राघवसँ पुछलखिन-
कखन एलौं राघवजी?”
राघव-
अदहा घण्‍टा भेल।
नन्‍दिता-
चाह इत्‍यादि भेटल की नइ?”
राघव-
हँ-हँ। सभ किछ भेटल। गर्म पानि आ चाह दुनू। आइ कनी जल्‍दी आबि गेलौं। अमरेश कहलैन जे अहाँ दरिभंगा रेडियो स्‍टेशन कुनो कथाक प्रसारण हेतु गेल रही।
नन्‍दिता-
हँ। प्रति मास दरिभंगा रेडियो स्‍टेशनसँ हमर एक कथा प्रसारित होइत अछि। अही बहाने रचना करैमे आ साहित्‍य सर्जनामे नीक लगैत अछि।
ई कहैत नन्‍दिता अपन कक्ष दिस विदा होइत बजली-
राघवजी, कनी हम दस मिनटमे अबै छी। फेर बैस कऽ निश्चिन्‍त भऽ गप करब।
राघव गरदेन हिला हँ कहि देलखिन।
दस मिनटक भीतर नन्‍दिता फ्रेश भऽ राघव लग आबि एक कुर्सीपर बैस गेली। राघवकेँ कहलखिन-
जीबैत कबइ माछ केतए भेट गेल राघवजी?”
राघव-
रस्‍तामे एक मलाहिन बेचैत छलि। सोचल कीन लइ छी।
कनी कालक बाद नन्‍दिता अपनेसँ भीतर जा चाह बना कऽ अनलैन। राघवकेँ आगूमे चाहक ट्रे दैत बजली-
लीअ राघवजी, एक बेर पुन: चाह पीबू। हमरो चाह पीबाक इच्‍छा भऽ रहल अछि।
चाह संगे किछु नमकीन सेहो परोसल गेल रहइ। राघवकेँ सेहो चाह पीबाक इच्‍छा भेलैन। दुनू गोरे चाह संगे पीला।
रात्रिक भोजनक पश्चात नन्‍दिता पुन: राघव लग आबि साहित्‍य चर्चामे लगि गेली। आइ नन्‍दिता कारी रंगक नुआँ पहीरिने छेली। नुआँक खोंछि नाभिसँ निच्‍चेँ। नाभी स्‍पस्‍ट देखाइत रहैन। नुआाँ पहीरबाक एहेन स्‍टाइल जे पूरा पेटक संग नाभीक सौन्‍दर्य प्रस्‍फुटित भऽ रहल छेलैन। दुधिया गोराइ चाम नन्‍दिताकेँ काम सुन्‍दरी बना रहल छेलैन। राघव ओइ सौन्‍दर्यमे डूमि गेला। मन बहकए लगलैन। पहिल बेर राघवकेँ ई एहसास भेलैन जे नारीक शरीरक सभसँ उत्तेजक आ कामुक अंग नाभि होइ छै। सुडौल पेट, तरीकासँ नुआँ धारण करबाक अन्‍दाज ओकरा आरो उत्तेजक बना दइ छै। बहुतो स्‍त्रीगणकेँ बच्‍चा भेला बाद पेटक नाभि फाटि जाइ छै आ पेट, नाभि आ नाभिसँ निच्‍चाँबला प्रदेशकेँ छितीर-बितीर कऽ ओकर सौन्‍दर्यकेँ स्‍वाहा कऽ दइ छै। नन्‍दिता यद्यपि भागवन्‍त छेली। हुनकर पेट आ नाभि प्रदेशमे एकौटा दागक लेश नहि छेलैन। नाभि तक पेट देखाइत रहैन। के कहैत अछि जे नुआँ कामोत्तेजक नइ होइत अछि। राघव जखन नन्‍दिताक सौन्‍दर्यक सर्वेक्षक नुआँमे केलैन तँ लगलैन जेना नारी सभसँ सुन्नरि, चहटगरि, कामोत्तेजक नूएँमे लागि सकैत अछि। नुआाँकेँ नाभिसँ निच्‍चाँ पहीरक अन्‍दाज नन्‍दिताकेँ यक्षीबला प्रतिमासँ कनीकबो कम सुन्नर नहि बना रहल छेलैन। ईहो सम्‍भव भऽ सकैत अछि जे राघव नन्‍दिताक प्रति आकर्षित छला तँए हुनका नन्‍दितामे दोदारगंज यक्षीक सौन्‍दर्य तकै छला। अन्‍तत: सौन्‍दर्यक तँ बखान करएबला पर निर्भर करैत अछि जे गुण विद्यमान छै। खैर, अखनुक मोटा-मोटी स्‍थिति ई छल जे राघवकेँ नन्‍दिता बड्ड सोहनगर-रमनगर आ कामुक नारी लगै छथिन।
नन्‍दिता सेहो कुनो कम पारखी थोड़बे ने छेली। मने-मन आँकि लेलैन, राघवक मनोदशाकेँ। बुझना गेलैन जे ओ स्‍वयं कुनो बड्ड सुन्‍दर आ सुगन्‍धमयी फूलल फूल तँ राघाव ओइ फूलक मकरन्‍दकेँ चुसएबला भमरा छला। यद्यपि नन्‍दिताकेँ राघव रूपी भमराकेँ चुसए देमएमे कुनो आपैत नहि छेलैन। हँ, कनी एक-आध दिन आरो परैख लेमए चाहै छेली।
नन्‍दिता राघवकेँ ड्रीम-वर्ल्‍डसँ जगबैत पुछलखिन-
की राघवजी, आइ हम अपन कवितासँ प्रारम्‍भ करी अथबा गद्यसँ?”
राघवकेँ ने गद्यसँ मतलब छेलैन आ ने पद्येसँ। हुनका मतलब छेलैन तँ सिर्फ आ सिर्फ नन्‍दितासँ। झट-दे उत्तर देलखिन-
नन्‍दिता भाभी, हमरा वएह पसन्‍द अछि जे अहाँ सुनाबी। अहीं कहू की सुनबए चाहै छी?”
नन्‍दिता बजली-
एक बात कही?”
राघव-
हँ-हँ कहू! की कहए चाहै छी?”
नन्‍दिता-
हमर इच्‍छा अछि जे आइ सर्वप्रथम हम अहाँकेँ अपन लघु हिन्‍दी उपन्‍यास मधुमय आकाशक किछु-किछु प्रेरक आ महत्वपूर्ण प्रसंग सुनाबी।कुनो हर्जा तँ ने?”
राघव-
हर्जा किएक? अबस्‍स सुनाउ।
आब नन्‍दिता अपन हिन्‍दी उपन्‍यास मधुमय आकाशक पन्ना पलटए लगली। पन्नो सभमे अनेक कथनीय पाँतिकेँ अण्‍डरलाइन पेन्‍शिलसँ केने छेली। पेन्‍शिलसँ रेंखांकित पंक्तिक एक-एक शब्‍दकेँ पढ़ए लगली। उतार-चढ़ाव नीक जकाँ मेन्‍टेन करैत रहलैन। कखनो प्रत्‍यंचा चढ़ैत कखनो प्रेमाधिक्‍यक आवेगमे प्रस्‍फुटित चेहरा आरो सौन्‍दर्यकेँ बिखेरब प्रारम्‍भ कऽ दैन। राघव भाव-विह्वल होइत नन्‍दिताक उपन्‍यासक अंश नन्‍दिताक मुहसँ भाव-विभोर होइत सुनैत रहला। बीच-बीचमे कखनो गरदेन हिला, कखनो मुखाकृतिकेँ गम्‍भीर कऽ तँ कखनो जिज्ञासा प्रवृतिसँ प्रश्‍न कऽ तँ कखनो मुक्‍त-कण्‍ठसँ प्रशंसाक शब्‍दाडम्‍बरसँ नन्‍दिताकेँ उत्‍साहित करैत रहलैन। उपन्‍यास कम प्रेरक नहि रहइ। एक एहेन किशोरीक कथा जे भावावेशमे आबि अपन जेठ बहिनक देबरसँ प्रेम-विवाह कऽ लैत अछि। बादमे प्रतारना, शोषण, अत्‍याचार, भावनात्‍मक दोहनक शिकार भऽ आत्‍म-ग्‍लानि आ अपन निर्णएपर पश्चाताप करैत ओ किशोरी आत्‍म-हत्‍या करबा लेल विवश भऽ जाइत अछि। आत्‍म-हत्‍या कैयो लैत अछि। उपन्‍यासक उतार-चढ़ाव भावनाक प्रबलता आदि नीक जकाँ प्रदर्शित केने छेली। नन्‍दिता समस्‍त चीज एकीकृत भाव आ स्‍वरूपमे राघवकेँ नीक लगलैन।
बीच-बीचमे राघव कनखी दोगे नन्‍दिताक नाभि आ खुजल पेटक दर्शन करैत रहला। नन्‍दिता कखनो नाभि लग हाथ राखि लथि तँ कखनो फुजल छोड़ि दैत छेलखिन।
राघवक दृष्‍टि यदाकदा नन्‍दिताक समुन्नत वक्ष दिस सेहो जानि। राघवकेँ होनि- ठीके नन्‍दिता भाभी बानरक हाथमे नारिकेल जकाँ छैथ। प्रोफेसर सुधाकर हिनकर सौन्‍दर्यकेँ भला की बूझि सकै छैथ?  
नन्‍दिता अपन उपन्‍यासमे से एक घण्‍टा धरि उद्धधरण पढ़ैत रहली। राघव सुनैत रहला। अन्‍तमे उपन्‍यासक अन्‍तिम तीन पन्ना नन्‍दिता भाव-विभोर भऽ पढ़लैन। आब राघव दिस गम्‍भीर होइत बजली-
कहू राघवजी, उपन्‍यास पसिन आएल?”
राघव-
हँ-हँ, खूब पसिन आएल।पते नहि चलल जे समए केना निकैल गेल। भावमय, भावनामय सभ तरहेँ नीक रचना। एकरा एन्‍थोपोलोजी ऑफ इमोशन कही तँ कुनो अतिशियोक्‍ति नहि। अहाँ तही मनोदशाक चित्रण अपन खॉंटी अन्‍दाजमे करैत छी। अहाँ परिवेश, बिम्‍ब इत्‍यादिक विधन अपना तरहेँ करै छी। नारी विशेष रूपे मिथिलाक मैथिल ब्राह्मणक तथाकथित सभ्रान्‍त नारीक मनोदशा आ पुरुखक नारीक प्रति विचार-संस्‍कार आ बेवहारक वर्णन आ विवेचनमे अहाँ बेजोड़ छी। अहाँक शैली आ अहॉंक रचनाक प्रचार हेबाक नितान्‍त आवश्‍यकता अछि। अहाँक जिह्वापर ओ सरस्‍वती बैसल छैथ जे सत्‍यकेँ बिना कुनो भय आ धोखें-निर्भिक रूपे लीखै छैथ। ओ सरस्‍वती बैसल छैथ जे पागधारीक, कुकृत्‍यकेँ ताल ठोकि कहै छैथ। ओ सरस्‍वती बैसल छैथ जे तथाकथित इलीट या सम्‍य समाजक अधार कऽ पुरुख समाजक भीतरक निर्लज्‍जता आ स्‍वांगसँ संसारकेँ परिचित करबै छैथ।
राघवसँ अपना बारेमे ऐ तरहक बात सुनि नन्‍दिता गद्-गद् भऽ गेली। कनी भावनात्‍मक सेहो भेली।
राघव दिस गम्‍भीर होइत नन्‍दिता बजली-
एक बात कही, हमर परिस्‍थिति हमरा लेखिका बना देलक राघवजी। की सोचने रही आ की भऽ गेल! देखैत-देखैत जीवनक तमाम अरमानमे जेना अगराही लागि गेल! आब जीवनमे कुनो इच्‍छा नहि अछि। एकेटा इच्‍छा अछि जे अपना संग घटल आ अपना आँखिक समक्ष घटल सभ परिस्‍थिति-परिवेश आ घटनाकेँ बेलाग लिख पाठकक समक्ष लऽ आबी। आइ ने काल्हि कियोक तँ पढ़तै आ सत्‍यक अन्‍वेषण हेतइ? वो सुबह कभी तो आएगी?”
राघव गम्‍भीर भेला। जिज्ञासा बढ़लैन। मन भेलैन नन्‍दिताक वेदना आ इतिहासकेँ कुरेदी। मन भेलैन कनी साहित्‍यसँ खिसकी आ सत्‍यक अन्‍वेषण करी। बिना किछु कहने जिज्ञासाक मूद्रामे नन्‍दिता दिस तकला राघव। नन्‍दिता बूझि गेली राघवक मनोदशा आ बातकेँ आगाँ बढ़ौलैन।
गम्‍भीर होइत बजली नन्‍दिता-
राघवजी, अहाँकेँ लागल हएत जे हम प्रोफेसर सुधाकरकेँ किएक नहि सम्‍मान करैत छिऐन?”
राघव-
एहेन बात नहि छै नन्‍दिता भाभी। कनी ऐ बातक आभास हमरा अबस्‍स भेल जे अहाँ आ प्रोफेसर साहैबमे किछु मत-भिन्नता अछि। विचार द्वन्‍द्व तँ सभ पति-पत्नीमे होइत छै। हमरो सहजन्‍याक संग अछि। मुदा हमरा लोकैनमे सामंजस्‍य अछि। मतभिन्नता बहुत नाजी अछि। प्रखर तखने रहैत अछि जखन केवल हमहीं दुनू गोरे रहैत छी। एकर विपरीत अहाँ आ भाइ साहैब केर मतभिन्नता जेना केकरो लग दृष्‍टिगोचर भऽ जाइत अछि? आ आब अहाँक साहित्‍यक श्रवण केलासँ ई स्‍पष्‍ट भऽ गेल जे ई मत-भिन्नता आ अहाँक वैचारिक विद्रोह अकारण नहि भऽ सकैत अछि।
राघवक ई बात सुनिते जेना नन्‍दिता भावावेशमे आबि गेली। आँखिसँ नोर मोती जकाँ झहरए लगलैन। आब राघवोकेँ नइ रहल गेलैन। उठला आ नन्‍दिताक माथकेँ अपना एक हाथसँ पकैड़  दोसर हाथसँ रूमाल निकालि हुनकर नोर पोछए लगला। नन्‍दिता आरो भावुक भऽ गेली। नोर आरो तीव्र गतिसँ बहए लगलैन। कुहेस फाटए लगलैन। राघव नोर पोछैत रहला आ नन्‍दिता नोर चुआबैत रहली। ओना नन्‍दिताक आँखि आ गालक स्‍पर्शसँ राघवक मन दोसरे रंगक हुअ लगलैन। लाल-लाल कोमल गाल। क्रीम इत्‍यादि लगलाक कारणे चिक्कन। फूलल-फूलल गाल। नोर पोछबाक क्रमे समस्‍त गाल आ गरदेनक स्‍पर्श अनेको बेर राघवकेँ भेलैन। नन्‍दिता सेहो नहि रोकलखिन। शनै: शनै: राघव नन्‍दिताक गालकेँ सहलबए लगला। नन्‍दिता चुप रहली। राघवकेँ मोन भेलैन जे नन्‍दिताकेँ चुमि ली। मुदा मनकेँ थीर केला। हलाँकि एक आँगुर नन्‍दिताक ठोर लग लऽ गेला। आँगुर कॉंपैत रहलैन। कॉंपैत आँगुरकेँ एकाएक पाछू लऽ गेला। कनियेँ कालक बाद फेर हिम्‍मत केलैन। ऐबेर ठुड्डी तक आँगुरकेँ लऽ गेला। हाथ अखनो काँपि रहल छेलैन। कनी कालक बाद हाथकेँ संयमित केला आ ठुड्डीकेँ सहलबए लगला। तीन मिनट धरि सहलबैत रहला। आब राघव धीरे-धीरे नन्‍दिताक कुर्सीक पाछाँ जा ठाढ़ भऽ गेला। फेरो अपन आँगुरक हरकतकेँ बढ़बए लगला। आँगुर आब नन्‍दिताक रसगर-रमनगर ठोर दिस यात्रा प्रारम्‍भ केलकैन। पूरा शरी घामसँ अनेरे भीज गेलैन। राघवकेँ हाथ फेरो काँपए लगलैन। हाथ फेर ठुड्डी दिस लऽ एला। बीच-बीचमे रूमालसँ नन्‍दिताक नोर सेहो पोछैत रहला। आब अन्‍तिम प्रयास केलैन आ आँगुरकेँ नन्‍दिताक ठोरपर राखि देलखिन। नन्‍दिता जेना स्‍वप्‍नसँ जगली तहिना तुरन्‍त अपन हाथसँ राघवक आँगुरकेँ हटा देलखिन। मुदा राघवक आँगुर फेर हरकतमे आबि गेलैन आ नन्‍दिताक ठोरपर आबि थमि गेलैन। आब हिलनाइ कम भऽ गेल छेलैन। ऐबेर नन्‍दिता सेहो प्रतिकार नहि केलखिन। राघव नन्‍दिताक निच्‍चाँ-ऊपरक ठोर सहलबैत रहलाह। नन्‍दिता आ राघव दुनू गोरे चुप छला। राघव केर हाथ आ नन्‍दिताक ठोर अपन हरकतमे व्‍यस्‍त छल। आकर्षण आ मनोभावक मिलन। आब राघव दोसर हाथसँ नन्‍दिताक गालकेँ सहलबए लगला। ई क्रम पाँच मिनट धरि चलल। राघवक हिम्‍मत बढ़ैत गेलैन। आब हाथ नहि काँपि रहल छेलैन। राघव आब कनी हिम्‍मत करैत नन्‍दिताक केसकेँ माथ लग चुमि लेला। नन्‍दिताक फेरो कुनो प्रतिकार नहि केलखिन। मुदा राघव कनी सोचमे जेना पड़ला। अन्‍तत: नन्‍दिताक संग हुनकर ई बेवहार केतेक उचित छेलैन? मुदा एकै क्षणमे राघव जाग्रत भेला आ सोचलैन- ऐमे पाप केहेन? नन्‍दिता भाभी तँ सिनेहक पियासल छैथ। पियासलकेँ पानि पीयाबएमे कुन पाप? ई सोचि राघव नन्‍दिताकेँ जोरसँ पकड़ैत हुनकर ओंठपर अपन ओठ पाछाँ देने लऽ एला। नन्‍दिता आँखि झाँपि लेली। राघव चुम्‍बनक प्रहार-पर-प्रहार करए लगला। फेर अपना मुहमे नन्‍दिताक ओंठ लऽ चूसऽ लगला। नन्‍दिता सेहो राघवक संग देमए लगली। दुनू नैसर्गिक लोकमे विचरण करए लगला। वातावरण सरमणीय चिन्‍ता मुक्‍त, भय मुक्‍त भऽ चुकल छल। हँ, राघव आ नन्‍दिता जोर-जोरसँ आ जल्‍दी-जल्‍दी साँस लैत छला। राघवकेँ इच्‍छा भेलैन जे नन्‍दिताकेँ वक्ष अपन छातीसँ सटा ली। अपन वाहपासमे समेट ली। हाथ एक क्षणक हेतु वक्ष दिस बढ़लैन मुदा कहि नहि किएक हाथ आपस खींच लेलैन। राघव नन्‍दिताकेँ छोड़ि पुन: अपन स्‍थानपर आबि गेला। नन्‍दिता पाँच मिनट धरि पाथरक मूर्ति जकाँ बैसल रहली। फेर उठली। अपनाकेँ ठीक केलैन। राघव दिस देखैत बजली-
हम पाँच मिनटमे वापस अबै छी।
दस मिनटमे नन्‍दिता राघव दिस आबि गेली। राघवक सामने बैसैत कहलखिन-
राघवजी, अगर अहाँ लग समए हो तँ हम अपन जीवनक वृतान्‍तक किछु विशेष घटनाक यर्थाथ अहाँ संगे बाँटए चाहै छी?”
राघव तँ ऐ बातक इन्‍तजारे करै छला। झट-दे कहलखिन-
हँ-हँ किएक नइ। अबस्‍स सुनाउ।
नन्‍दिता-
भऽ सकैत अछि सभटा वृतान्‍त कहैत-कहैत भोर भऽ जाए। ऐ स्‍थितिमे अहाँ की करब? फेर भोरे-भोर अहाँ केतौ केना जाएब? अरामो करब तँ आवश्‍यक ने?”
राघव-
अहाँ चिन्‍ता नहि करू। जेतेक समए लेबाक अछि लीअ। हमरा एतेक दिनक बहुत रास बात सभकेँ लिखबाक अछि। काल्‍हि केतौ ने जाएब। अहाँसँ वार्तालापक पश्चात तीन-चारि घण्‍टा सूतब तत्‍पश्चात लिखनाइ प्रारम्‍भ करब।
राघवक बातसँ नन्‍दिता आश्वस्‍त होइत बजली-
निश्चिन्‍तसँ पलथी मारि कऽ बैस जेबाक इच्‍छा अछि। ऐसँ कथा निधोख कहि सकब।
राघव उठला आ नन्‍दिताकेँ हाथ पकड़ैत कहलखिन-
ठीक छै तखन पलंगपर पलथी मारि बैस जाउ। मच्‍छरदानीक भीतर बैसब तँ मच्‍छरो ने काटत।
नन्‍दिता राघवकेँ आग्रहक सम्‍मान करैत पलंगपर मच्‍छरदानीक भीतर बैस रहली आ कथा प्रारम्‍भ केली। नन्‍दिताक दुनू पुत्र अलग कक्षमे निनभेर छला। राघव केबाड़ीकेँ सटा अपनो मच्‍छरदानीमे आबि गेला आ नन्‍दिताकेँ पकैड़ हुनका माथकेँ अपन पलथीपर राखि लेलैन। नन्‍दिता कुनो प्रतिकार नहि केली। राघव नन्‍दिताक केस सहलबए लगला आ कथा प्रारम्‍भ करबाक इसारा केलैन।
नन्‍दिता कथा कहब आरम्‍भ केली-
हमर पिता एक सभ्रान्‍त अभियन्‍ता छला आ बिहार सरकारमे पैघ ओहदापर छला। हम सभ दू बहिन आ एक भॉंइ छेलौं। सभसँ पैघ हम। हमरासँ तीन बर्खक छोट हम्‍मर बहिन। आ छह बर्खक छोट भाए। हम्‍मर माता-पिता हमरा सभ संग कुनो विभेद नहि केलैन। हम तीनू भाए-बहिन कन्‍वेन्‍ट स्‍कूलमे पढ़लौं। हमरा लड़का सभसँ मित्रता छल आ ओइ लेल कुनो परिवारसँ कुनो पावन्‍दी नहि। जखन पॉंचमी कक्षामे गेलौं तँ बाबूजी साईकिल कीन देलैन। एक मासक भीतर साईकिल चलाएब सीख गेलौं। स्‍कूल आ बजार इत्‍यादिमे साईकिलसँ जाए-आबए लगलौं। चूकि हमर बाबूजी आ माँ लम्‍बा छला। तँए हमहूँ तीनू भाए-बहिन कद-काठीमे छरहरगर आ गोर-नार रही। जखन हम दस बर्खक भेलौं तँ लोककेँ बूझि पड़िऐ जे चौदह बर्खक छी। सुन्नैर तँ रहबे करी। पिताजीक आमदनी अगाध रहैन तँए कुनो तरहक दिक्कत नहि छल। जखन कखनो कुनो चीज, खेलौना, वस्‍त्र, भोज्‍य पदार्थ आदिक जरूरत भेल, हमर माता-पिता तुरन्‍ते आनि दइ छला। ऊपरसँ जेठ सन्‍तान हेबाक फायदा अलग छल।  हम अपन माता-पिताक प्रथम सन्‍तान रही। आ हमर माथ हमर नाना-नानीक कपार...।
इम्‍हर राघव, नन्‍दिताक कखनो केस तँ कखनो ओठकेँ सहलबैत रहैन। कखनो काल राघवक हाथ नन्‍दिताक गरदेन धरि चलि जाइन। मुदा राघव अपना-आपकेँ गरदेन धरि सीमित रखला। हँ, बीच-बीचमे ठोर, आँखि आ कपारपर चुम्‍बन करैत रहला। नन्‍दिता प्रतिकार नहि करथिन। ओइसँ आरो हरियर होइत उर्जावान भऽ अपन कथाक बखान करैत रहली नन्‍दिता।
नन्‍दिता-
हमर पिताक एक संगी पटना विश्वविद्यालयमे इतिहासक प्रोफेसर छेलखिन। जखन हम मैट्रिकक परीक्षा दऽ देलौं, तहिया पनरह बर्खक रही। पिताक प्रोफेसर मित्र हमरा ओतए एला। हमर माता-पिता हुनकर नीक आव-भगत केलखिन। हम हुनकर पएर छूबि कऽ प्रणाम केलिऐन। ओ हमरा पुछला, की करै छी बुच्‍ची? हम जबाव देलिऐन- हम ऐबेर मैट्रिकक परीक्षा देलौं अछि। ओ प्रसन्न भेला। ओही बातक क्रममे हमर बाबूजी प्रोफेसर साहैब लग निवेदन केलखिन, कनी बुच्‍ची लेल योग्‍य बर देखू ने प्रोफेसर साहैब? प्रोफेसर साहैब बजला- कनी समए देल जाउ, हम अबस्‍स नीक बर तकबाक प्रयास करब। हमर पिताजी हुनकर आश्वासन सुनि गद्-गद् भऽ गेला। हमर बाल-सुलभ मनकेँ ई प्रपोजल नीक नहि लागल।  
नन्‍दिता बजैत रहली आ राघव सुनैत रहला। एककेँ कथा सुनेबाक आतुरता तँ दोसरकेँ कथा सुनबाक जिज्ञासा। दुनूक मनमे एक-दोसराक मानसिक आ शारीरिक प्रेमकेँ प्राप्‍त करबाक उत्‍कट अभिलाषा आ इच्‍छा। मुदा ऐ इच्‍छाकेँ केवल कामेक्षा कहनाइ उचित नहि। राघवक हाथ आब कनी मर्यादाकेँ भंग करैत गरदेन आ बाँहि लग आबि गेलैन। हाथ पुन: काँपए लगलैन। मुदा हिम्‍मत नहि हारला। धीरे-धीरे राघवक हाथ नन्‍दिताक वक्षकेँ स्‍पर्श करए लागल। पहिने एक आँगुर, फेर दोसर ऑंगुर आ बादमे सम्‍स्‍त हाथ...।
नन्‍दिता आनन्‍दित भेली। मुदा कथाक्रमक प्रवाहकेँ रोकलैन नहि। कथा चलिते रहल।
..नन्‍दिता-
जखन प्रोफेसर साहैब चलि गेला तँ हम अपन माएसँ लड़ए लगलौं, जे अखन नहि करक अछि विवाह। पहिने पढ़ब। एम.ए. करब। कुनो कौलेजमे नौकरी करब। फेर देखल जेतइ। माँ अहाँ पिताजीकेँ कहि दियौन जे अखन हम्‍मर विवाहक सम्‍बन्‍धमे नहि सोचैथ आ ने केकरोसँ जिक्र करैथ।”
“..मुदा माए छेली बुझनुक आ परम्‍परासँ बान्‍हल। झट-दे बजली, अहाँ चुप रहू ने बुची। कुनो आइये लड़का तका गेल? जहाँ धरि पढ़बाक बात छै तँ पढ़ैवाली लड़की बिआहक बादो पढ़ि सकैए। अहाँक काज अछि पढ़ब आ घरक काजमे दक्षता प्राप्‍त करब। बिआहक निर्णए बाबूजीपर छोड़ि दियौन। जहाँ धरि प्रोफेसर साहैबक बात छैन तँ ओ बड्ड नीक लोक छैथ। केतेको नीक कन्‍यादान आ बरदान करा चुकल छैथ। ऊपरसँ अहाँक बाबूजीक बालसखा सेहो छैथ, जे करता से नीके करता।
“माइक मनमे प्रोफेसर साहैबक प्रति अटूट बिसवास देख हमहूँ कनी निश्चिन्‍त भेलौं। आ एकबेर पुन: मस्‍तीक जिनगी जीबाक प्रयास करए लगलौं। मुदा मस्‍तीबला दिनमे जेना ग्रहण लागि गेल हमरा! तीन मासक भीतर, रबि दिन प्रोफेसर साहैब बिनु बजाएल आ नौतल पाहुन जकाँ हमर आवासपर एक आरो मित्रक संग पहुँचला। संजोगसँ पिताजी घरेपर छला। प्रोफेसर साहैबकेँ नीक जकाँ आव-भगत आ स्‍वागत-सत्‍कार कएल गेल...।”
“..चाह इत्‍यादि ग्रहण करला बाद प्रोफेसर साहैब अपन अटैची खोलला आ एकटा पोस्‍टकार्ड साइजक ब्‍लेक एण्‍ड व्‍हाइट फोटो निकालि पिताजीकेँ देखबैत कहलकैन जे ई लड़का बड़ संस्‍कारी छैथ। बी.ए. आ एम.ए. दुनूमे गोल्‍ड मेडल भेटल छैन। पी.एच-डी.क थीसीस तैयार छैन। एक मासक भीतर जमा भऽ जेतैन आ छह मासक अभियन्‍तरे पी.एच-डी.सँ अवार्डेड भऽ जेता। थोड़बे दिनमे लेक्‍चरर भऽ जेता। हँ, उमेरमे करीब चौदह-पनरह बर्खक अन्‍तर अबस्‍स छैन।”
“..हमर बाबूजी गम्‍भीर होइत फोटो देखए लगला। जखन लड़काक सम्‍बन्‍धमे सभ जानकारी भेटलैन तँ हँ कहि देलखिन। पंजिकार लग अधिकार मालाक परिक्षण भेल आ विवाह तँइ भऽ गेल। भेलै जे एक मासक भीतर विवाह हेतइ। हम चिन्‍तामे मग्‍न भऽ गेलौं। आब की करूँ, की नहि? हमर आयु पनरह बर्खक आ हमर होमएबला पतिक आयु तीस बर्खक!!”
“..एकेटा आस लागल जे माए लग जाइ आ हुनकेसँ बात करी। माए लग गेलौं। कहलयैन- ई की भऽ रहल अछि? तैपर माए बजली- देखू बुच्‍ची जे हेतै से नीके हेतइ। अहाँक पिता अहाँ लेल कुनो गलत निर्णए थोड़े ने लेता। लड़का विद्वान छै। एकर फायदा अहाँकेँ भेटत। अहाँ असानीसँ एम.ए; पी.एच-डी. इत्‍यादि कऽ सकब। ई लड़का अहाँकेँ ऐ दिशामे उत्‍साहित करता आ सभ तरहक मदैत देता। तँए, अहाँ चिन्‍ता जुनि करू। हमहूँ तँ अहाँ बाबूजी सँ तेरह बर्खक छोट छी। कुन समस्‍या अछि हमरा? कहू ने?”
“..आब हम मानि लेलौं जे हमर समस्‍याक कुनो निदान नहि अछि। आत्‍म समर्पन मात्र बॉंचल छल। एक मासक भीतर हमर विवाह भऽ गेल। विवाहक रातिमे वीध-बेवहार करैत-करैत चारि बाजि गेल। हमरा ईहो नहि बुझल छल जे विवाहक पश्चात वर-कनियाँ आपसमे बात करै छै। अगर दुनूमे सामंजस्‍य हौउ तँ शारीरिक सम्‍बन्‍ध सेहो स्‍थापित कऽ सकैत अछि। हम विधकरीक बगलमे विवाह भेलोपरान्‍त भेर नीनमे सुति रहलौं। शायद सुधाकरकेँ ई बात नीक नहि लगलैन। भिनसरमे करीब साढ़े दस बजे, कोहबर घरमे हमरा असगरमे बजा पुछलैन- बुच्‍ची, रातिमे अहाँ हमरा लग किए ने एलौं? तैपर हम कहने रहिऐन- नीन आबि गेल छल। सुति रहलौं। तखन ओ कहने छला- ठीक छै आइ दिनमे हमरा लोकैन गप करब। कहलयैन- ठीक छै।
“..मुदा कहि नहि किए हम अपन सहेली सभ संग बात-चीतमे लागि गेलौं। सुधाकर लग नहि जा सकलौं। पाँच बजे साँझमे सुधाकर हमरा बजेला। हम सहज भावसँ हुनका लगमे गेलौं। ओ तामसे घोर छला। हमरा घरमे प्रवेश करिते-मातर कहलैन, अहाँ किए ने ऐलौं आइ दिनमे?”
हम कहलयैन-
“बिसरा गेल। सखी-बहिनपा संगे बैसल रही।”
सुधाकर-
“बुच्‍ची अहाँ बीस बेर कान पकैड़ कऽ उठू-बैसू। ई हमर आदेश अछि।”
“हम कहलयैन- किएक? हम नै उठब-बैसब। नहि आबि सकलौं तँ ऐ लेल कान पकैड़ कऽ उठ-बैस करबाक की प्रयोजन?”
“..हमर ई जबाव सुनि सुधाकर चप्‍पल लऽ हमरा दिस बढ़ला। हमरा भेल ई आब हमरापर प्रहार करता। एकर प्रतिकार करी। जँ नहि करब तँ जिनगी पर्यन्‍त हिनकर कोपभाजन बनए पड़त। ई सोचि हमहूँ अपन पेन्‍सिल हिलबला सैण्‍डल हाथमे उठेलौं आ चिचियाइत बजलौं, खबरदार जे हमरा मारलौं। अगर हमरा मारब तँ हमहूँ चप्‍पलसँ अहाँकेँ कपार फोड़ि देब।”
“सुधाकर बूझि गेला जे हम हुनका केवल गीदर भभकी नहि देखा रहल छेलिऐन अपितु अगर ओ हमरा लग एला तँ हमर पेन्‍सिल हिलबला चप्‍पलसँ...। सुधाकर ठमैक गेला। हाथसँ चप्‍पल निच्‍चाँ राखि देलैन। हमहूँ अपन पेन्‍सिल हिल सैण्‍डलकेँ निच्‍चाँ राखि देलौं। आब सुधाकर किछु अभद्र गारिक प्रयोग करए लगला। हम फेरो शेरनी जकाँ चिचिएलौं, खबरदार जे अभद्र भाषाक प्रयोग केलौं आ गारि पढ़लौं हमरा! अहाँ एकटा गारि पढ़ब तँ हम दसटा गारि पढ़ब। एहेन बेवहार हमरा लग नहि चलत।”
“..सुधाकर अपन मन मसोसि कऽ रहि गेला। केवल एतबे बजला जे रातिमे गप करब, अखन अहाँ जाउ..।”
“..हम चोटे कोहबर घरसँ बाहर भऽ गेलौं। ओना ई निश्चित भऽ गेल जे ई आदमी विद्वान कम आ राक्षस बेसी अछि। एकरा पत्नी नहि एक सेविका अथबा दासी चाही। मुदा हम दासी थोड़े ने रही?”
“..रातिमे सभ वीध-बेवहारक बाद पाँचटा गीतहारि विद्यापतिक गीत-
सुन्‍दरि चलली पहुँ घर ना
चहु दिस सखी सब कर धरा ना रे
घरबा मे जाइते परम डर ना रे
जइसे रहु डर शशी कापे ना रे...।”
“..गबैत हमरा कोहबर दिस लऽ गेली। हमर स्‍थिति जैसे रहू डर शशी कांपे ना रे बला छल। पनरह बर्खक जीवनमे पहिल बेर डरक अनुभूति भेल छल। खैर! भीतर प्रवेश केलौं। ओछाइनपर चम्‍पा फूल छिड़ियाएल। इत्रसँ समुच्‍चा कोठली सुगन्‍धित। सुधाकर चुपचाप एक मोट पोथी पढ़बामे तल्‍लीन छला। हम जखन भीतर गेलौं तँ कहलैन- आउ बैसू बुच्‍ची। हम बैस रहलौं। सुधाकर ठाढ़ भेला। घरक केबाड़ भीतरसँ बन्‍द केला। आ हमरा लग आबि कहलैन- बुच्‍ची, आइसँ हम आ अहाँ पति-पत्नी छी। ऐ बातक एहसास अहाँकेँ अछि ने?”
“..हम चुपचाप रही। सुधाकर बजैत रहला- अहाँकेँ बुझल अछि जे आब हमर शरीरपर अहाँक अधिकार अछि आ अहाँक शरीरपर हमर। आइसँ हम सभ एक-दोसरक, शरीरक स्‍पर्श आ प्रयोग करब। ई कहैत सुधाकर हमरा लग आबि हमर गालकेँ चुमि लेला। हुनकर मुखसँ जर्दा पानक गंध अबैत छल, जे हमरा नीक नहि लागल। ऐसँ पूर्व स्‍त्री-पुरुखक बीच यौन सम्‍बन्‍धक नाम अबस्‍स सुनने रहिऐक मुदा केना होइ छै, की सभ होइ छै, की प्रक्रिया छै, तइमे स्‍त्री केर भूमिका की होइ छइ आ पुरुखक भूमिका की होइ छइ, तइ सब बातक ने तँ कुनो जानकारी छल आ ने कुनो अनुभवे। हम एही गुण-धुनमे रही। मुदा सुधाकर निर्लज्‍ज बनि अपन वस्‍त्र हमरा समक्ष खोलए लगला। कनी काल तँ हम चुप रहलौं मुदा जखन ओ लगभग निर्वस्‍त्र भऽ गेला तँ बाजि उठलौं- ई की कऽ रहल छी अहाँ? निर्लज्‍जताक पाराकाष्‍ठा पार कऽ रहल छी। ई नीक बात नहि। उघारे देहे ओ थेथर जकाँ दाँत निपोरैत हमरा दिस बढ़ला। हुनकर भावना हमरा विध्‍वंसक लागि रहल छल। हम पलंगपर सँ उठि कऽ बाहर भगबाक निरर्थक प्रयत्न केलौं। मुदा बेकार। पाछाँसँ हमर झोंट पकैड़ सुधाकर हमरा ओछाइनपर अनला आ सीधे हमर वक्ष पकैड़ लेलैन। हम हाथ छोड़ेबाक यत्न करए लगलौं। मुदा बेकार। हमहूँ जल्‍दी हारि मनबाक लेल तैयार नहि। सुधाकरक दहिना हाथक आँगुरकेँ दाँतसँ हम काटए लगलौं। आब सुधाकर तामसे प्रचण्‍ड भऽ एक घूसा हमरा मुँहपर मारलैन। लागल जेना आँखिक आगू अन्‍हार पसैर गेल। हम लाचार भऽ गेलौं। बलिष्‍ठ राक्षस लग एक पनरह बर्खक बच्‍ची भला की टीक सकै छलि। सुधाकरकेँ तामस कम नहि भेलैन। हमरा  ओ तीन चमेटा आरो मारलैन। फेरो हमर समस्‍त कपड़ाकेँ खोलि निर्वस्‍त्र कऽ दरिंदा जकाँ हमर अंगक संग खेलए लगला। हब्‍सी जकाँ हमर वक्ष, दरदेन, पीठ, नितम्‍ब आदिपर दाँत कटलैन। आ हमरा संगे बलात्‍कार केला। एक ओहन बलात्‍कार जेकरा सामाजिक मान्‍यता प्राप्‍त छै। एक ओहेन बलात्‍कार जइमे बलात्‍कारीकेँ लड़कीबला सभ भगवानक दर्जा दइ छइ आ प्रति दिन बलात्‍कार करबा लेल अवसर प्रदान कऽ अपना-आपकेँ धन्‍य बुझैत अछि। एहेन बलात्‍कार जइमे लड़कीकेँ माए, बहिन, भाऊज, सखी एवं अन्‍य महिला सभ सजा कऽ, संवारि कऽ उत्‍सवक माहौल बना गीत-नाद गबैत श्रृगार कए बलात्‍कारीक कक्षमे असगरे छोड़ि अबैत छै। ओइ अभागिनक वेदना, दर्दकेँ के बुझत? नारीक जनम नहि दिअए विधाता..!”
विधाता कहि नन्‍दिता थोड़े कालक लेल जेना ठमैक गेली। मुदा ओ पुन: ओही क्रममे आबि बाजए लगली-
“..हमरा बीचमे दाँती लगि गेल। हमर कानबक अवाज नहि छिड़िअए तइले एक हाथसँ हमर मुँहकेँ दबने रहला सुधाकर। जखन दाँती लागलतँ पानिक छींच्चा मारि दाँती छोड़ाबैथ। हम आब अपना-आपकेँ सरेण्‍डर कऽ देलौं। भरि राति चील आ नढ़िया जकाँ सुधाकर हमर मांस नोचैत रहला। तीन बेर बलात्‍कार केलैन। भोरे साढ़े पाँच बजे कहलैन जे आब बाहर जाउ। हमर पएर डगमगा रहल छल। आँखि झँपा रहल छल। समुच्‍चा शरीर गुड़-घा जकाँ दर्द करैत रहए। गुप्‍तांगक दर्दक की चर्चा करी। नहि बाजी सएह नीक। पहिल बेर ई अनुभूति भेल जे बेटी बनि कऽ रहनाइ केतेक कष्‍टमय छै। बरामदाक कातमे अखरे चौकीपर बेहोशीक हालतमे पड़ि रहलौं।”
“..थोड़बे कालक बाद हमर भाभी एली आ पुछलैन- बुच्‍ची पाहुन पसिन एला? हम तामसे धोर होइत जबाव देलिऐन- भाभी एखन जाउ! हमरा असगर सुतए दिअ।”
“..पछाइत माए एली। हमर माथ सहलबैत पुछलैन- बुच्‍ची, मुँह-हाथ नहि धोब? मौहकक बेर भऽ गेल अछि। पाहुन इन्‍तजार कऽ रहला छैथ। हमर कुहेस फाटि गेल। हम माएकेँ भरि पाँज पँजिया पकैड़ भोकासि पाड़ि कानए लगलौं। संयोगसँ ओतए कियो नहि छल। तैयो माए दोसर घरक भीतर लऽ गेली। हम कानि कऽ सभ बात कहलयैन। हम कनैत रहलौं आ माए हमरा अपन करेजसँ सटेने रहली। भेल सभ दिन अहिना माइक छातीसँ सटल रही।”
“..माए गम्‍भीर होइत बजली- बुच्‍ची की करबै एकरे कहै छै नारी जीवन! समझौता सबतरि सभ परिस्‍थितिमे स्‍त्रीगणेकेँ करए पड़ै छै। अहाँकेँ नहि बुझल अछि जे हम अहाँक पिताक संग केतेक समझौता केलौं अछि। अहाँ पाहुन संगे मिल कऽ रहू। दुनू गोरेमे समझौता भऽ जाएत तँ जीवन स्‍वर्ग भऽ जाएत। प्रारम्‍भमे कनी दिक्कत सभकेँ होइ छै। अहाँ चिन्‍ता जुनि करब।”
“..भेल जेना माय सेहो हमर दर्दकेँ नहि बूझि सकली। नीक ई रहैत जे ऐ नृशंसकारी दुगुना उमेरक कारी भुजुंग डेढ़ आँखिक विद्वानक बदला हमरा सिनेह करएबला, हम-वयस्‍क कमे पढ़ल आ सुन्‍दर युवक हमर पति रहैत। मुदा बाबूजीक पागक  रक्षाक लेल आ सगा-सम्‍बन्‍धी लग अपन शेखी बघारबा लेल बाबूजी हमरा राक्षक संग बान्‍हि देला। ई चण्‍डाल हमरा लेल कसाइ अछि।”
“..जीवनक यएह नियति छै, ई हमरा ज्ञात भऽ गेल छल। लेकिन हम ऐबातक निर्णए अबस्‍स लऽ नेने छेलौं जे कुनो परिस्‍थितिमे सुधाकरकेँ अपनापर आक्रमण नहि करए देबैन। आब अगर हमरा ओ मारता तँ चोरा कऽ माहुर खुआ जान मारि देबैन।”
“..ऐ दृढ़ प्रतिज्ञा आ आत्‍म विश्वासक संग माइक संग हम पएर-हाथ धो मौहक करए हेतु चलि गेलौं।”
“..दोसर रातिमे हमर रूप रनचण्‍डीबला छल। हम घरमे प्रवेश करिते सुधाकरकेँ कहि देलिऐन, देखू! हम अहाँक पत्नी छी। वेश्‍या नहि। हमरासँ शारीरिक सम्‍बन्‍ध चाहैत छी। राखू। मुदा हमरा संगे भविसमे मारि-पीट नहि करू। अगर ई स्‍थिति भेल तँ हमरासँ खराप कियो ने हएत। केतेक मारब घरमे अहाँ। बाहर निकलैत देरी हम चप्‍पल, ईंटा कुनो वस्‍तुसँ सबहक समक्ष प्रहार कऽ देब। तैयो नहि मानब तँ थाना जा एफ.आई.आर. दर्ज करा देब। अगर अहाँ सम्‍मान करब तँ हमहूँ सम्‍मान करब आ चुप रहब।”
“..हमर ऐधमकीसँ सुधाकर काँपि गेला। भेलैन इज्‍जत मटिया-मेट भऽ जाएत। ऐबेर ओ किछुनहि बजला। यद्यपि ओ ओइ रातिमे तीन बेर हमरा संगे यौन सम्‍बन्‍ध स्‍थापित केलैन- बलात् आ हमरा इच्‍छात विपरीत। हम सोचि लेलौं जे ई मनुख हमर तनक भूखल अछि। मनक भूखल नहि अछि। हमहूँ एकरा संग मनसँ प्रेम आ स्‍नेहालिंगन तँ नहि कऽ सकैत छी। फेर कऽ लीअ जेतेक हमर शरीरक उपयोग करत। हम जड़ बनल रहब...।
विवाहक पाँच बर्खक पश्चात हमर प्रथम पुत्र अमरेश जीक जन्‍म भेलैन। तीन बर्खक बाद बिमल भेला। तेकर बाद कुनो बच्‍चा नहि होमए देलिऐ। जड़वत जीवन चलैत रहल। सुधाकर आ हम दू विपरीत बाटक बटोही। हम सुधाकर संगे केतौ सभा, कार्यक्रम, विवाह-दान इत्‍यादिमे नहि जाइ छी। विवाहक दोसरे दिनसँ बाबूजीकेँ टोकनाइ तक छोड़ि देल। अबैत छैथ तँ यंत्र जकाँ प्रणाम कऽ लइ छिऐन। एकर अतिरिक्त किछु नहि।
विवाहक तीन बर्खक वाद एक घटना घटल,जे हमर परिवारकेँ झँककोरि देलक।
राघव-
से की?”
नन्‍दिता-
हमर छोट बहिन रागिनी हमरा ओतए आएल छलि। करीब पाँच मास एतए रहल। कहि नहि केना ओकरा सुधाकर केर छोट भाए प्रभाकरसँ प्रेम भऽ गेलइ। एक मासक बाद हमरा रागिनी ऐ बातक जानकारी देलक। हम मना केलऐ मुदा दुनू एक-दोसरक प्रेममे पागल। एक-दोसरक संग मरबा आ जीबाक सप्‍पत खेबाबला। यद्यपि सुधाकर सेहो ऐ प्रेम-प्रसंगसँ प्रसन्न नहि छला। हम्‍मर माता-पिता सेहो दुनूकेँ बुझेलखिन। मुदा बेकार। एक दिन दुनू अपन हाथक नस काटि लेलक। जखन पता चललै तँ डाक्‍टरकेँ बजाएल गेल। दुनू परिवार रागिनी आ प्रभाकरकेँ प्रेम लग झूकि गेल। विधिवत् विवाह भऽ गेलइ। रागिनी विवाहक पश्चात् जमशेदपुर चलि गेली। जमशेदपुरमे प्रभाकर अंग्रेजीक लेक्‍चरर छला।
तीन बर्ख धरि तँ बड्ड नीक रहलै, एकटा बेटा सेहो जन्‍म लेलकै मुदा बेटाक जन्‍म होइते-मातर दुनूमे खट-पट प्ररम्‍भ भऽ गेलइ। मारि-पीट प्रारम्‍भ भऽ गेलइ। स्‍थिति बद्-सँ-बदतर होइत रहलै। एकबेर तँ रागिनी तलाक तक लेबाक लेल मन बना लेलैन। मुदा हमर बाबूजी, सुधाकर, हमर ससुर कहियो चाहे रागिणीक ससुर, सभ मिल कऽ रागिणीकेँ सम्‍बन्‍ध विच्‍छेद नहि करए देलखिन प्रभाकरसँ। किछु दिनक बाद रागिणी पुन: जमशेदपुर गेली। छह मास धरि ठीक रहलैन। सातम माससँ वएह रामा वएह खटोला। फेर मतभेद-मनभेद प्रारम्‍भ। फेर मारि-पीटक सिलसिला। रागिणी जखन तंग भऽ जाथि तँ हमरा फोनपर गप करए लगैथ। हम तँ अपने लाचार छेलौं। की कऽ सकै छेलिऐन। खाली एतेक कहि दइ छेलिऐन जे हम तँ मना केने रही ने रागिणी? ई सभ तँ राक्षसक परिवार अछि। ई सभ शेरक खालमे नढ़िया अछि। रागिणी किछु नहि बाजैथ। केवल हिचुकि-हिचुकि कऽ कानैथ। फेर कहैथ- बहिनदाइ! हमर दिने खराप छल। ई राक्षस दारू पीब जरैत सिगरेटसँ हमर जाँघ आ कनपट्टी जरबैत रहैए। कामातुर भऽ विपरीत तरहक सेक्‍स लेल हमरा बाध्‍य करैत अछि। एकर शरीरसँ विचित्र तरहक गन्‍ध अबै छै। एकरा की कएल जाए?”
रागिनीक प्रश्‍न छोट मुदा हमरा लेल यक्ष प्रश्‍न छल- अनुतरित।
आ अन्‍तमे जीबनक कष्‍ट आ प्रभाकर केर शारीरिक आऔर मानसिक यातनासँ तंग आबि कऽ रागिणी असगरेमे अपन दहिना हाथक नश काटि लेली। घरमे कियो ने रहइ। जखन रातिमे साढ़े दस बजे प्रभाकर एला तँ देखै छैथ जे शोनितक धार बहैत आ रागिणी बेसुधि भेल पड़ल। प्रभाकरकेँ किछु ने फुरलैन। उठा-पुठा कऽ नर्शिंग होम लऽ गेला। डाक्‍टर कहलखिन सभ किछु समाप्‍त भऽ गेल। रागिणी आब जीबैत नहि छैथ। आ ऐ तरहेँ एक जीवनक दुखद अन्‍त भऽ गेल। रागिणीक आत्‍महत्‍याक पश्चात हमर बाबूजी केँ दिमाग खुजलैन। आब ओ बुझलखिन जे समाजिक मर्यादा, लोकाचार आ सोतियानाक नामपर केना महिलाकेँ शोषण आ दोहन कएल जाइत अछि। देखू रक्षसबा प्रभाकरकेँ? आब ओ अनेरे नोर चुअबैत रहैए। असगरेमे मध्‍य–रात्रिमे रागिणी अहाँ केतए चलि गेलौं? आदि-आदि चिचिआइत रहैए। लेकिन आब की। चिचिएने की हएत? रागिणी तँ उड़ि गेली पिजरासँ। अजाद भऽ गेली। नीके भेलइ। सभ दिनका झंझट, शोषण, मार-पीटसँ नीक वेचारी दुनियाँ छोड़ि चलि गेल।
रागिणीक कथा कहलाक बाद नन्‍दिता जोर-जोरसँ साँस लेमए लगली। छातीक धड़कन बढ़ि गेलैन। मनमे अकुलाहट उठए लगलैन। राघव सेहो द्रवित भऽ गेला। प्रोफेसर सुधाकर प्रभाकर एवं सुधाकरक प्रति घृणा आ आक्रोश भरि गेलैन। नन्‍दिताक प्रति सिनेह आ संवेदना बढ़ि गेलैन। नन्‍दिताक आँखिमे नोर छेलैन। गालपर सेहो नोरक टघार आबि गेल रहैन। राघव अपन रूमालसँ नन्‍दिताक नोर पोछलैन। नन्‍दिता राघवक पलथीपर सँ माथ हटबैत बैसली। अपन कक्ष दिस विदा भेली। राघव चुप छला। दस मिनटक भीतर नन्‍दिता तरोताजा भऽ मुँह-कान धो, क्रीम इत्‍यादि लगा पुन: राघव केर कक्षमे प्रवेश केलैन। राघवक मन हर्षित भेलैन। नन्‍दिता राघव लग आबि बिना किछु कहने पुन: राघवक पलथीपर माथ राखि लेट गेली। राघवक हाथ अनायास नन्‍दिताक माथपर चलि गेलैन। आ राघव नन्‍दिताक रेशमी केशकेँ सहलबए लगला।
नन्‍दिता कथाकेँ आगू बढ़ेनाइ शुरू केलैन-
राघवजी, आब कहू ई सभ सम्‍मानक पात्र छैथ?”
राघव-
नहि नन्‍दिता भाभी नहि। ई सभ तँ कसाइ छैथ। हिनका लोकैनकेँ अपन डिग्री आ शिक्षाक तमाम कागजातकेँ आगिमे जरा कऽ सुड्डाह कऽ लेबाक चाही। एहेन शिक्षाक की प्रयोजन जे मनुखकेँ जानवर बना दिए?”
नन्‍दिता-
देखू राघवजी, अखन डेढ़ राति भऽ गेल अछि। अगर काल्‍हि अहाँ केतौ बाहर नहि जाइ तँ हम चारि-साढ़े-चारि धरि अपन जिनगीक वृतान्‍त अक्षरसह सुनबए चाहै छी। अगर बाहर जेबाक विचार अछि तँ ऐतै विराम दइ छी?”
राघव-
आगू अपन वृतान्‍त पूरा करू। हम काल्‍हि केतौ ने जाएब। आगूक वृतान्‍तसँ सेहो हम बहुत किछु सीखब। समाजक एहेन चीजकेँ जानि रहल छी जेकरा सम्‍बन्‍धमे कल्‍पना तक नहि केने रही।
राघवक ऐ आश्वासनसँ नन्‍दिता निश्चिन्‍त भऽ गेली। राघवकेँ हाथ पकैड़ अपन वक्ष लग लऽ जा बजली-
राघवजी, आइ पहिलबेर विवाहक बाद कुनो पुरुखक प्रति सिनेह उत्‍पन्न भेल अछि हमरा। हम तँ सुधाकर आ प्रभाकरक किरदानी देख ई मानि नेने रही जे सभ पुरुख घटिया आ स्‍त्रीगणक चामक भूखल अछि। हमरा होइत छल जे पुरुखकेँ केवल अपन दंभ, लोक-लाज, समाजिक मर्यादासँ मतलब रहै छै। स्‍त्रीगणक मान, मर्यादा स्‍वाभिमान, भावना भॉंड़मे गेल, तइसँ पुरुखकेँ की प्रयोजन? लेकिन अहाँक विचार हमर मान्‍यताकेँ बदैल रहल अछि। जइ तरहेँ प्रति दिन अहाँ अपन पत्नी सहजन्‍यासँ फोनपर बात करै छी। हरेक निर्णएमे हुनकर भागीदारीकेँ सम्‍मान करै छी, तइसँ ई स्‍पष्‍ट अछि जे अहाँ स्‍त्रीकेँ सही अर्थमे सहचरी मानै छी।
राघव-
अहाँ ठीके कहै छी नन्‍दिता भाभी। ओना, एक बात स्‍पष्‍ट कऽ दी जे जइ परिवारमे हमर जन्‍म भेल अछि तइमे महिलाक स्‍थान सर्वोपरि छै। हमर पिता बिना हमरा माएकेँ पुछने कुनो कार्य नहि करै छैथ। परिवारक संचालनक तमाम जिम्‍मेवारी माइक छैन। पिताजीक कार्य केवल अर्थोपार्जन छैन। केतेक निर्णए हमर माए असगरे लैत छैथ। हमर पिता कखनो ओइ निर्णएपर अथबा माइक निर्णए क्षमतापर प्रश्‍न नहि करैत छैथ। यएह स्‍थिति हमरो अछि। बजारक खरीददारी, गृहकार्यक निर्णए, नौत-हकार, कुटुम-परिवार सम्‍बन्‍धी तमाम निर्णए सहजन्‍य अपने हिसावे करै छैथ। वेतनउठा हम हुनका दऽ दइ छिऐन। बाँकी कुनो चीजसँ हमरा लेना-देना नइ अछि। आइ धरि हम कहियो सहजन्‍यासँ कुनो तरहक हिसाव नहि लेलिऐन। हुनकर आलमारी आ लॉकर खुजले रहै छैन, मुदा कहियो हम ओकरा नहि छुबै छी। यएह शायद हमरा दुनूक बीच असली प्रेमक गाँठ अछि। सहजन्‍याक माता-पिताकेँ हम अपन माता-पिता जकाँ सम्‍मान करै छिऐन। एकर फायदा हमरा ई भेटैए जे सहजन्‍या सेहो हमर माता-पिताकेँ बड्ड सम्‍मान आ सेवा करै छैथ। हमरा हमर सासुरक लोक सभ कहै छैथ जे अहाँ अलग-तरहक लोक छी। अन्‍यथा पत्नीकेँ माता-पिताक प्रति केकर धियान जाइ छै- मिथिलामे।
राघवक बात सुनि नन्‍दिता भावुक भऽ गेली। राघवक प्रति प्रेममे हुनका आरो बृद्धि भऽ गेलैन। राघवक हाथकेँ जोरसँ पकैड़ अपना छाती लग सटेलैन। राघवक हाथक पृष्‍ठ भाग आब नन्‍दिताक वक्षक अनुभव कऽ रहल छल। राघव ऐ अनुभवमे मग्‍न छला। धीरे-धीरे हिम्‍मत कऽ राघव अपन हाथकेँ सोझ केला आ आब अपन दुनू हाथ सोझे-सोझ नन्‍दिताक वक्षपर रखि ओकर आङीक ऊपरसँ दबाबए लगला। नन्‍दिता चुप रहली। कुनो प्रतिकार नहि..। थोड़बे कालक पछाइत राघवक हाथ नन्‍दिताक आङीक भीतर प्रवेश कऽ अपन आनन्‍दक हरकतमे संलग्‍न भऽ गेल। आनन्‍दित नन्‍दितो। पहिल बेर नन्‍दिता स्‍त्री आ पुरुखक सामंजस्‍यक प्रेमक अनुभूति जे कऽ रहल छेली। आब जखन प्रोफेसर सुधाकरक यर्थाथक ज्ञान भऽ गेलैन तँ राघवक मनक अपराधबोध सेहो खतम भऽ गेलैन। नन्‍दिताकेँ शारीरिक आ मानसिक सहयोग देनाइ निश्चित रूपे राघवकेँ परमार्थक कार्य अथबा ई कहू जे मानबाधिकारक रक्षा करब बुझना गेलैन।
नन्‍दिता आनन्‍दित होइत बिना राघवकेँ हाथ हटेने अपन वृतान्‍तकेँ आगू बढ़बैत जारी रखली-
आ तही दिनसँ हम यन्‍त्रवत रहए लगलौं। जीवनक उत्‍साह खतम भऽ गेल। बचपनेमे अपना-आपकेँ बूढ़ बुझए लगलौं! जखन दुनू बच्‍चा कनी नमहर भऽ गेला आ स्‍कूल जाए-अबए लगला तँ पढ़नाइ प्रारम्‍भ केलौं। हलाँकी खेनाइ बनाएब, घरक काज सम्‍हारब इत्‍यादि ऐ सभमे हम कहियो रूचि नहि रखलौं। सुधाकर चेरी इत्‍यादिक बेवस्‍था केलैन। आर्थिक सहयोग सुधाकरसँ नहि भेटल।पिता हमर माइक माध्‍यमसँ किछु टका इत्‍यादि हमरा लेल भेज दइ छला। बादमे हमरा भेल जे स्‍वयंसिद्धा बनी। पढ़ाइ प्रारम्‍भ केलौं। बी.ए; एम.ए. केलौं आ आब पी.एच-डी. केर थीसीस जमा होबएबला अछि। आशाक प्रतिकूल सुधाकर शिक्षाक क्षेत्रमे अपन प्रभुत्तवक कारणे हमरा एम.ए. आ पी.एच-डी.मे नीक मदैत केलैन। फेर कथा लिखनाइ प्रारम्‍भ कएल। प्रारम्‍भमे मैथिलीमे आ बादमे हिन्‍दीमे सेहो। आब दुनू भाषामे एक प्रवाह, प्रभाव एवं अधिकारक संग लिखै छी। जखन एक आध रचना छपल तँ लिखैमे आरो मन लागए लगल। हमर साहित्‍य सही अर्थमे हमर जीवनक आगू-पाछू घुमैत रहैत अछि।
नन्‍दिता बजैत रहली। राघव सुनैत रहला। बीच-बीचमे राघवक हाथ नन्‍दिताक आङीक भीतर किछु अलग तरहक क्रीड़ामे व्‍यस्‍त छल। नन्‍दिता हाथक क्रीड़ासँ आनन्‍दित होइत रहली। राघव नन्‍दिताक वृतान्‍त सुनबामे मस्‍त आ नन्‍दिताक संग क्रीड़ा करबामे मस्‍त। नन्‍दिता राघवकेँ अपन वृतान्‍त सुनबैमे आ राघवक हाथक चहलकदमीकेँ अपन आङीक भीतर आन्‍नद लेमएमे व्‍यस्‍त आ प्रसन्न...।
नन्‍दिता-
एकटा बात तँ हम रागिनीक सम्‍बन्‍धमे नहि बतेलौं। सहज मनक रागिनी आत्‍महत्यासँ पहिने प्रभाकर हेतु एक कविताक निर्माण हिन्‍दीमे केली। हुनकर लाश लग एक पन्नामे मोचरल किछु शोणितक बुनक छिट्टासँ भरल ओ कविता लोककेँ भेटलै। ओ कविता हमरा दुइये बेर पढ़ला बाद कंठस्‍थ भऽ गेल अछि। राघवजी, अगर अहाँ कही तँ हम ओइ कविताकेँ सुनाऊ?”
राघव-
हँ-हँ। अबस्‍स सुनाउ नन्‍दिता भाभी। हमहूँ तँ बुझी जे आत्‍महत्यासँ ठीक पहिने रागिनीक मनोदशा की छेलैन आ प्रभाकरजीक प्रति हुनकर सोच की छेलैन।
आब नन्‍दिता आँखि मुनि कऽ रागिनीक अन्‍तिम कविताक पाठ करए लगली-
तुम्‍हारा दिया धोखा
मैंने उठाकर वहीं रख दिया है
जहाँ बहुत संभाल के रखती थी
तुम्‍हारा प्‍यार..!

तुम्‍हारी सूरत में
कहाँ छिपी थी ये फ़रेब की लत
और ये दिलों से खेलने की फ़ितरत
अन्‍दाज तुम्‍हारा
अभी तो सदमा है
गहरी नीन्‍द से मानो किसी ने
जबरदस्‍ती उठा दिया हो झिंझोड़ कर
ये भी टूटेगा

ठीक वैसे ही
जैसे तोड़ दिया तुमने यकीन
और अधबने मिट्टी के धरौंदे
दिल भी हमरा

कभी जो सोचू
तो एक लहर सी उठती है
बहुत तेज दर्द की, जैसे खंजर ही
तुमने दे मारा

डूबने से पहले
एक झलक सी दिखी थी
तुम्‍हारी शहद सी आँखों की
और राज तुम्‍हारा

अब तो यूं है
के होश आया है जैसे
मीलों चले गहरी बेहोशी में
ये कदम आवारा

अब तो न मैं हूँ तुम्‍हारो साथ
न मेरी जिद न जजबात
बस एक निशानी बाँकी
जो अब है तुम्‍हारा

चली मैं दूर गगन की ओर
न मेरा कोई ओर न ही छोर
सम्‍हालना बेसक लोक लाज के भय से हमको
यही अन्‍तिम परिणाम हमारा।

थोड़े कालक पछाइत नन्‍दिता पुन: बाजए लगली-
राघवजी बीचमे ई प्रसंग बाँकी रहि गेल छल। एकाएक स्‍मरण आबि गेल तँ सोचलौं जे अहाँकेँ सुना दी। रागिनीक ई पत्र अपना-आपमे बहुत बात कहैत अछि।
रागिनीक कवितासँ राघव सेहो भावुक भऽ गेला। अपन नोर नहि रोकि सकला।
कनी कालक बाद नन्‍दिता एकबेर पुन: अपन जीवन वृतान्‍तकेँ सुनाएब प्रारभ केलैन। नन्‍दिता गम्‍भीर भेली आ बाजए लगली-
राघवजी, कहि नहि किए हमरा अपना-आपकेँ श्रोतीय ब्राह्मण परिवारमे जन्‍म लऽ एना बुझना जा रहल अछि! बुझना जा रहल अछि जेना पूर्वजन्‍ममे सहस्‍त्रो गाइक बध केने रही। आ तेकरे फल भोगि रहल छी। ओना तँ अपना-आपकेँ श्रोतीय सभ सर्वश्रेष्‍ठ मानैत अछि मुदा जहाँधरि महिलाक स्‍थिति छइ तँ महिलाकेँ अमानवीय ढंगसँ शोषण ई समाज कऽ रहल अछि। कथा हमरा आ रागिनीक जीवन आ शोषणसँ अन्‍त नहि होइत अछि। असंख्‍य रागिनी आ नन्‍दिता ऐ तथाकथित सर्वश्रेष्‍ठ ब्राह्मणक वितंडावाद आ कर्मकाण्‍डक नाओंपर कुल, जाति, मूल आ परोपट्टाक नाओंपर अभिशप्‍त भऽ तप्‍त नोर झहरबैत अपन जिनगीकेँ बिता रहल छैथ। केतेक रागिनी या तँ विवश भऽ आत्‍महत्‍या कऽ लइ छैथ, चाहे मारि देल जाइ छैथ। की कहलैन यात्रीजी-
अगराही लगौ बरू बज्र खसौ
एहेन जातिपर बरू धसना धँसौ
भूमिकम्‍प हौ या फटौ धरती
माँ मिथिला रहिये कऽ की करती?’
..हम मानि लेलौं जे किछु नहि बाजब। हँ, सुधाकरकेँ ई भान अबस्‍स करा देलिऐन जे जँ ओ हमरा शरीरपर प्रहार करता तँ हमहूँ नहि छोड़बैन। सुधाकर ऐ बातकेँ बूझि गेला। हम कुनो सभा, संस्‍कार, गोष्‍ठी, उत्‍सव आदिमे सुधाकरक संग नहि जाइ छी। सुधाकरकेँ एतेक अबस्‍स बता देलिऐन जे हमरा संसर्गसँ पूर्व ओ नीक जकाँ साबुन तेल आदि लगा स्‍नान ध्‍यान कऽ लेथि। अन्‍यथा हमरा लग नहि आबथु। सुधाकर ऐ बातकेँ स्‍वीकारि लेलैन। हमर यातना, हमर विद्रोह, हमर अरमानक टुटब, रागिनीक प्रेम-विवाह, विवाहेत्तर शोषण आत्‍महत्‍या सभ हमरा लेल साहित्‍य सृजनक आधार आ सामग्री बनि गेल। हम लिखैत रहलौं। तीन विधामे- कविता, कहानी आ उपन्‍यास। दुनू भाषामे- मैथिली आ हिन्‍दी। जखन किछु कविता आ गल्‍प छपए लागल तँ आरो उत्‍साहित भेलौं। बादमे रेडियोसँ सेहो हमर कथा आ कविताक प्रसारण नीज वाणीमे हुअए लगल।
..जनै छी राघवजी! हमरा सभसँ संतुष्‍टि ऐ बातसँ होइए जे लोक आ समाजआब नहु-नहु हमरा अपन साहित्‍य लेखनक कारणे जनैत अछि। हम प्रो. सुधाकरक पत्नी या चीफ इन्‍जीनियर केर बेटीक रूपमे अपन परिचय समाजमे नहि जानबए जाहै छी। मनक आर सभ अरमान तँ ध्‍वस्‍त भऽ गेल मुदा अपना कृतिक कारणे आइ अबस्‍स जानल जाइ छी। पैछला मासमे हमर एक कथा सरिता आ एक कथा हंसमे छपबा लेल स्‍वीकृत भऽ गेल अछि। एक छोट कविता कादम्‍बनीक नव अंकमे छपल अछि। ऐ सभसँ हमरा आत्‍मिक संतुष्‍टि भेटैत अछि।
आब अहाँसँ भेँट भेलापर हम पुरुषक प्रति अपन नजरिया बदलबाक प्रयास करब। जनै छी, जखन हम किशोर वयमे एलौं तँ मनक अनन्‍त अरमान छल। अपन सम-कक्ष तथा सिनियरो लड़का सभ हमरा बड़ गौरसँ देखैत छल। कतेक लड़का सभ हमरा सुना-सुना कऽ कहैत छल- की चीज अछि नन्‍दिता! जेकर कनियाँ हेतै ओ बड्ड भाग्‍यशाली हएत। एकर घरबला तँ एक साल धरि एकरा छोड़ि केतौ निकलबे ने करत। आदि-आदि। ई बात सभ सुनि हम बड्ड आनन्‍दित होइत रही। परीक देशमे विचरन करए लगी। भेल जे दुनियाँक सभसँ सुन्‍दर, सिनेही आ रमनगर लड़का हमर जीवन-साथी बनत। मुदा हाय रे भाग्‍य..!
हे देव तूँ ई की केलह?
हमर भाग्‍यमे की लिख देलह?
कारी वर्ण, डेढ़ आँखि, हमरा उमेरसँ पनरह बर्खक अधिक आयुक वर! ओहो निरंकुश, मिथ्‍याभिमानी, नारीक शोषक, संस्‍कारहीन, आ मचण्‍ड! एहेन राक्षस जे सोलह-सतरह बर्खक लड़कीक भावनाकेँ नहि बूझि सकै छल! भॉंड़मे जाए ओकर शिक्षा आ समाजशास्‍त्रक ज्ञान। भाँड़मे जाए मर्यादा आ लोक-लाजक दीवार। दुर्भाग्‍य हमर ई छल जे हमरा सासुओक सुख नहि भेटल! जखन सुधाकर इण्‍टरमिडिएटमे पढ़ै छला, तखने माए मरि गेलखिन। कियो हमर भावनाकेँ बुझिनिहार नै।
नन्‍दिता राघव दिस देखैत बजली-
राघवजी, आब तीन बजि गेल। अहाँकेँ निन्‍द आबि गेल हएत। दिन भरिक थाकल छी। अहाँ अराम करू, हम जाइ छी।
राघव-
कुनो एहेन बात नइ छै नन्‍दिता भाभी। अहाँकेँ संगति हमरा नीक लगैए। किछु आरो बात करू। काल्‍हि तँ आब केतौ नहियेँ जाएब।
ई कहि राघव नन्‍दिताकेँ पूरा अपना-आपसँ सटा लेलैन। राघव नन्‍दिताक आङीकेँ लगभग खोलि देलखिन। हाथ नाभीसँ निच्‍चाँ जा चहलकदमी करए लगलैन। प्रारम्‍भमे नन्‍दिता राघवक हाथकेँ रोकलखिन। राघव नहि मानला। नन्‍दितो छोड़ि देलखिन। दुनू एक दोसरक देहक अनुभूति आ विलक्ष्ण आन्‍नदमे मग्न भऽ गेला। दू शरीर एक आत्मा बनि गेल। ई क्रिया करीब बीस मिनट धरि चलल। नन्‍दिताक गौर वर्ण आ राघवक श्‍यामल शरीर एक अलग रंग-रभसक संजोग बना रहल छल। नन्‍दिताकेँ आइ एना बुझा रहल छेलैन जेना ओ राघव संगेअपन हनीमून मना रहल होथि। आब नन्‍दिताकेँ एहसास भेलैन जे सुहागराति की होइ छै। आब ओ बुझली जे शारीरिक सुख अगर स्‍त्री-पुरुखक मिलाप आ आपसी सहयोगसँ होइ तँ ओ सुख सर्वाधिक सुन्‍दर सुख छी। राघव पागल जकाँ नन्‍दिताक प्रत्‍येक अंगकेँ अपना वसमे केने जा रहल छला। नन्‍दिताकेँ अपनामे समेटने जाइत छला आ नन्‍दिता राघवक प्रेममे मिश्री जकाँ घुलल जा रहल छेली। सभ मर्यादा खतम भऽ गेल छल। दुनू एक-दोसराक प्रत्‍येक अंगकेँ प्राकृतिक रूपे दर्शन केलैन, भोगलैन आ तिरपित-तिरपित भऽ गेला। ने धोख ने लाज। केवल आ केवल शारीरिक आ मानसिक प्रेम आ समर्पण। दुनू ब्‍याहल मुदा दुनूक प्रेमकेँ निश्‍छल आ प्रथम प्रेमक अनुभूति कहल जा सकैत छल। अन्‍तमे कामोत्तेजनाक अधिक आवेशसँ राघव आ नन्‍दिता घामसँ तरबतर भऽ गेला। राघव हाफए लगला। नन्‍दिता झट-दनि अपन वस्‍त्र सम्‍हारए लगली। राघव सेहो अपन वस्‍त्र आ ओछाइनकेँ सेरियाबए लगला। नन्‍दिता ठाढ़ होइत बजली-
आब तीन बाजि कऽ पच्‍चास मिनट भोर भऽ गेल। बीस मिनटमे बच्‍चा सभ उठि कऽ पढ़ब शुरू करता। आब अहाँ सुतू। हमहूँ जाइ छी।
राघव एकबेर पुन: नन्‍दिताक हाथ पकैड़ हुनका अपन हृदयसँ सटेलखिन आ अनेको बेर अनेको स्‍थानपर चुमि लेलखिन। नन्‍दिता राघवक ऐनूतन प्रयोगसँ गद्-गद् भऽ गेली। आब नन्‍दिता अपन कक्षमे प्रविष्‍ट भऽ गेली।
राघव नन्‍दिताक सम्‍बन्‍धमे सोचए लगला। एकबेर भेलैन जे की ओ अपन अपन पत्नी- सहजन्‍याक संग धोखा तँ ने कऽ रहला अछि? एक मन ईहो भेलैन जे कदाचित राघव अपन ऐ कृत्‍यसँ प्रोफेसर सुधाकर-संगे बिसवाघात तँ ने कऽ रहला अछि? फेर भेलैन जे नहि नन्‍दिताक समस्‍त वृतान्‍त बुझला बाद शायद राघव आ नन्‍दिताक बीच जे किछु भेल ओ निश्चित रूपेण सर्वथा धर्मक कार्य छी। यएह बात सभ सोचैत-सोचैत राघव नीनभेर भऽ गेला।
प्रात: नियत समैपर राघव उठि गेला। आश्चर्यक बात ई जे नन्‍दिता सेहो चहकैत उठली। हुनकर सौन्‍दर्यमे आइ एक नैसर्गिक रोहानी झलकैत छल। समुच्‍चा शरीरक पोर-पोर जेना प्रेम-प्रसंगक अनुभूतिसँ खिल रहल छेलैन। नन्‍दिता बेबीक आबैक प्रतिक्षा नहि केली। सीधे रसोइ कक्षमे गेली। सर्व प्रथम राघव लेल इन्‍होर पानि, तत्‍पश्चात नेबोबला चाह लऽ कऽ आबि गेली। नन्‍दिता आ राघव संगे-संग चाह पीलैन।
राघव स्‍नान-धियान केला बाद घर बन्‍द कऽ दू घण्‍टा सुति रहला। तकर बाद दू घण्‍टा धरि अपन फिल्‍ड डायरी लिखलैन। आब भोजन तैयार छल। राघव आ नन्‍दिता संगे भोजन केला। भोजनक बाद नन्‍दिता बेबीकेँ दस टका आ गहुम दैत कहलखिन-
बेबी, जो गहुम पीसेने आ। आइ-काल्‍हि मीलबला दोसर चीज मिला दइ छै, तँए अपना सामनेमे गहुम पीसा कऽ चिक्कस नेने आ।
बेबी नन्‍दिताक आज्ञाक पालन करैत गहुम पीसबैले विदा भेल। आब समए दू बजि कऽ पच्‍चीस मिनट भऽ रहल अछि। नन्‍दिता राघवक कक्षमे प्रवेश करैत बजली-
राघवजी, आब ऐ घरमे मात्रहम आ अहाँ छी। हमर दुनू बालक साढ़े चारि बजे साँझमे स्‍कूलसँ विदा हएत।
राघव नन्‍दिताक इसारा बूझि गेला आ झट-दनि घर बन्न कऽ लेलैन। आब नन्‍दिता आ राघव भयमुक्‍त वातावरण पाबि कामदेवक आगोशमे मग्न भऽ गेला। करीब एक घण्‍टा धरि दुनू एक-दोसरामे पूर्ण रूपेण समर्पित भऽ गेला। हरेक दैहिक सुखक बाद दुनू आर उत्‍साही आ स्‍फूर्तिवान भऽ जाइत रहैथ। दुनूक चेहरापर एक फराक चमक झलैक रहल छेलैन। लगभग चालिस मिनटक पछाइत नन्‍दिता राघवकेँ कहलखिन-
राघवजी, आब घरक केबाड़ खोलि दियौ। बेबी कुनो क्षण आबि जाएत। बेबी आ हमर दुनू बालक सुधाकरक गुप्‍तचर अछि। हिंगसँ हरैद तक सभ बात सुधाकरकेँ बतबैत रहै छैन। एकरा सभ लग एक बातक धेयान अबस्‍स रहए जे हमरा लोकैन कुनो ओहन हरकत नहि करी जइसँ एकरा सभकेँ कुनो आभाष लगइ।
राघव गरदेन हिला नन्‍दिताक बातकेँ समर्थन केलैन।
आब सभ राति नन्‍दिता अपन नव रचनाक डायरीमे आबि राघवक कोरामे माथ रखि अपन साहित्‍यक चर्चाक संग-संग प्रेम-प्रसंग आ देहक संसर्ग सेहो चलैत रहलैन। आब दुनूक मध्‍य मानसिक, साहित्‍यिक आ शारीरिक समन्‍वय परिपक्‍व भऽ रहल छेलैन। दुनू एक-दोसरक प्रति समर्पित एना जेना राघव अठारह बर्खक होथि आ नन्‍दिता सतरह बर्खक। आ उमहर ऐ सभ घटनासँ बेखबर प्रोफेसर सुधाकर बनारसमे कॉपी जँचबामे मग्न...।
जखन राघवकेँ दिल्‍ली जेबाक पाँच दिन शेष रहि गेलैन तहिया प्रो. सुधाकर आबि गेला। दोसर दिन बिहार बन्‍द रहइ। कारण बसबला आ टैक्‍सीबला बन्‍दक आह्वान केने रहै, तँए राघव फिल्डवर्क लेल केतौ ने गेला। इमहर प्रो. सुधाकरकेँ चलि एबाक कारणो रातुक साहित्‍य श्रवण आ रंग-रभस सेहो समाप्‍त भऽ गेलैन। दिनेमे दस-पनरह मिनट लेल नन्‍दिता प्रो. सुधाकर केर समक्षमे राघवसँ किछु पुछि लइ छेली। आब स्‍वतंत्रता समाप्‍त भऽ चुकल छेलैन। दोसर दिन हड़तालक कारणे राघव केतौ नहि गेला। नन्‍दिता प्रसन्न छेली। ओना राघव आ नन्‍दिताक प्रसन्नता कइयेक गुणा बढ़ि गेलैन जखन प्रो. सुधाकर राघवसँ कहलखिन-
राघवजी! आइ हम विश्वविद्यालय जा रहल छी। विभागमे रिसर्च कमिटिक मिटिंग तीन बजेसँ अछि। ओइसँ पहिने हमरा लोकैनकेँ किछु दस्‍तावेज इत्‍यादि ठीक करक अछि। हम पाँच बजे साँझ धरि फ्री हएब। जखन आएब तँ निश्चिन्‍तसँ गप करब।
ई कहि आधा घण्‍टाक भीतर प्रो. सुधाकर घरसँ बाहर निकैल गेला। कनियेँ कालक बाद नन्‍दिता स्‍नान-धियान करक बास्‍ते विदा भेली। बारह बजैत-बजैत राघव आ नन्‍दिता संगे भोजन केला। भोजनक तुरंत बाद बेबी सेहो खेलक। नन्‍दिता बेबीकेँ कहलखिन-
जो बेबी अपन माएसँ भेँट केने आ। पाँच बजे धरि चलि अबिहेँ।
बेबी नन्‍दिताक कृपा बूझि गद-गद भऽ गेलि। पाँच मिनटक भीतर कैम्‍पससँ बाहर भऽ गेलि। आब नन्‍दिता आ राघव सबा चारि बजे धरि स्‍वतंत्र...।
नन्‍दिता अपन साहित्‍यक डायरी लऽ राघवक कक्षमे प्रवेश केली। राघव गद्-गद् भऽ गेला। नन्‍दिता अपन साहित्‍य-चर्चा प्रारम्‍भ केलैन। आधा घण्‍टाक बाद राघव उठला आ नन्‍दिता सहज भावसँ बिहुसैत आ मने-मन गदगदाइत राघवक कोरामे बैस गेली। आब एक दिस नन्‍दिता अपन साहित्‍य सुना रहल छेली आ दोसर दिस राघव नन्‍दिताक संग छेड़खानीमे व्‍यस्‍त आ मस्‍त छला।
ई क्रम चलैत रहलैन। एकाएक करीब पौने दू बजेमे प्रो. सुधाकर किछु कार्यसँ घर आबि गेला। नन्‍दिता झट-दनि राघवक कोरासँ निच्‍चाँ उतैर गेली। बिना सुधाकरकेँ देखने नन्‍दिता अपन घर दिस विदा भेली। प्रो. सुधाकरक आँखि क्रोधे आगि उगैल रहल छेलैन। हलाँकी सुधाकर ने तँ राघवकेँ किछु कहलखिन आ ने नन्‍दितेकेँ।
आधा घण्‍टाक पछाइत सुधाकर किछु फाइल लऽ पुन: विश्वविद्यालय दिस विदा भेला। जाइ काल राघवकेँ कहलखिन-
राघवजी, अहाँ अपन समान लऽ ग्राउण्‍ड फ्लोरमे एकटा छोटका रूम अछि तइमे रखि लिअ आ हमरे संगे विश्वविद्यालय चलू।
राघव समान लऽ निच्‍चाँ चलि एला। घरमे ताला लगेला आ सुधाकर संगे विश्वविद्यालय दिस विदा भेला। भरि रस्‍ता सुधाकर राघवकेँ किछु नहि कहलखिन। राघवो सहमल छला। भेलैन अगर सुधाकर अपमानित करितैथ तँ की होइत..?
खैर, राघवकेँ पुस्‍तकालयमे बैसा प्रो. सुधाकर अपन विभागमे चलि गेला। राघव पुस्‍तकालयमे तीन चारि गोट पोथी लऽ एकठाम बैस पढ़ए लगला। यद्यपि पढ़ैमे मन नै लगलैन। हलाँकी राघवकेँ अपन कृत्‍यपर कुनो पश्चाताप नहि छेलैन। आब हुनकर मनमे प्रो. सुधाकरक प्रति कुनो सम्‍मान नहि रहि गेल छेलैन। नन्‍दिताक कथा सुनला बाद सुधाकरमे ओ एक निहायत राक्षसकेँ देखए लगला। मुदा राघवकेँ अपनासँ बेसी नन्‍दिताक चिन्‍ता छेलैन।
प्रोफेसर सुधाकर छह बजेमे राघव लग पुस्‍तकालय एला आ दुनू गोरे संगे विदा भेला। सुधाकर रस्‍तामे राघवसँ कहलखिन-
राघवजी, अहाँ नन्‍दिताक बातमे समए बरबाद नहि कऽ अपन कार्यपर धियान केन्‍द्रित करू। हुनका कथा लिखबा आ सुनेबाक अतिरिक्‍त कुनो काज नहि छैन। हमरा अहाँ सबहक बात बेवहार नीक नहि लागल। तँए निच्‍चाँ लऽ एलौं अहाँकेँ। निच्‍चोमे सभ बेवस्‍था छै। हमहूँ अहीं लग बातचित करबा लेल चलि आएब। केवल भोजन लेल ऊपर हमर निवासपर जेबाक अछि।
राघव गरदेन हिला प्रो. सुधाकरकेँ अपन स्‍वीकृति दऽ देलखिन। दुनू गोरे गन्‍तव्‍यपर पहुँचला। राघव ऊपर नहि गेला। निचला कमरा बहुत छोट आ तीतर-बीतर रहइ। मकराक झोलसँ भरल। किछु किताब अबस्‍स राखल रहइ। राघवकेँ भेलैन जे एतए रहनाइ सम्‍भव नहि अछि। मुदा राति भऽ गेल रहइ। सोचलैन राति भरि कहुना रहि जाइ छी। साढ़े आठ बजे दिवाकर आबि कऽ कहलकैन-
भोजन तैयार अछि चचाजी। चलू करबा लेल। पापा आ मम्‍मी दुनू अहाँक इन्‍तजार कऽ रहल छैथ।
राघव आधा मनसँ विदा भेला। प्रो. सुधाकर आ नन्‍दिता डायनिंग टेबुलपर बैसल छला। प्रो. सुधाकर राघवकेँ अपना लग बैसक इशारा केलखिन। राघव हुनकर आज्ञाकेँ सम्‍मान करैत हुनके लग बैस गेला। नन्‍दिता कनी परेशान अबस्‍स छेली। मुदा ओतबो नइ जेतेक राघव सोचै छला। खैर, सभ गोरे भोजन केला। नन्‍दिता राघवकेँ लौंग आ इलायची तथा प्रो. सुधाकरकेँ पान बना देलखिन। नन्‍दिता सेहो स्‍वयं इलायची खेली। पान छोड़ला आइ छठम दिन छेलैन नन्‍दिताकेँ। आब प्रो. सुधाकर आ राघव निच्‍चाँ दिस विदा भेला। राघवक मनमे रातिक वार्तालाप नहि होमाक कचोट तँ बहुत छेलैन मुदा की कऽ सकै छला। राघवक कक्षमे आबि प्रो. सुधाकर हुनकासँ परियोजना सम्‍बन्‍धी बात बहुत काल धरि करैत रहला। लगभग एगारह बजे रातिमे प्रो. सुधाकर सुतैले गेला। ऐ घरमे राघवकेँ भरि राति नीन नइ भेलैन। ऐगला दिन भोरे राघव कुनो गाम लेल प्रस्‍थान केलैन। बहुत देर धरि कार्य केला बाद आपसीमे दरिभंगाक नै आबि अपन गाम चलि गेला। दू दिन अपने गामसँ अलग-अगल स्‍थान जाथि। दोसर दिन भोरे-भोर प्रो. सुधाकर फोन केलखिन तँ राघव कहि देलखिन जे ओ अपन वृद्ध माता-पितासँ भेँट करक हेतु अपन गाम चलि एला। राघव ईहो कहलखिन जे दिल्‍ली जाइसँ एक दिन पूर्व ओ दरिभंगा जेता आ विस्‍तारसँ चर्च करता। नन्‍दितासँ सेहो राघवकेँ फोनपर बात होइ छेलैन।
कार्यक समाप्‍तिक बाद राघव दरिभंगा गेला। तखन प्रो. सुधाकर घरपर नहि छला। नन्‍दिता निच्‍चाँ एली आ कहलखिन जे प्रो. सुधाकर लहेरियासराय कुनो मित्रकेँ कुनो नर्सिंग होममे देखबा लेल तुरंते गेल छैथ। राघव हाथ-पएर धोलैन। तैबीच नन्‍दिता स्‍वयं चाह बना लऽ अनली। राघव चाह पीबैत बजला-
नन्‍दिता भाभी, हमरा कारणे अहाँकेँ बहुत दिक्कत भऽ गेल?”
नन्‍दिता-
अरे! बेकार अहाँ किए चिन्‍ता करै छी राघवजी? सुधाकर अपने-आप ठीक भऽ जेता। हिनका हमर कुनो पुरुखसँ बातचित आ आत्‍मियता नहि पसिन छैन। हमरा दुख केवल ऐ बातक अछि जे अहाँकेँ निच्‍चाँ आबए पड़ल!”
राघव-
नहि! ऐसँ हम परेशान नइ छी। हमरा केवल अहाँक चिन्‍ता भऽ रहल छल। कहीं भाइ साहैब मारि-पीटपर ने उतरल होथि?”
 नन्‍दिता-
ओते हिम्‍मत नहि छैन। हमरापर जहिया हाथ उठा देता तहिया हमहूँ औकात देखा देबैन।
ई कहैत नन्‍दिता राघव दिस बढ़ली आ राघवजीक कपार चूमि लेली। राघव पुन: उत्‍साहित भेला। कक्ष बन्‍द केलैन आ दुनू गोरे आनन्‍दलोकक अनुभव करैत रभसमे लागि गेला। एना लगैत छल जेना नन्‍दिता सिर्फ आ सिर्फ राघव लेल बनल होथि। राघव नन्‍दिताक शारीरिक सानिघ्‍य पाबि तृप्‍त छला। नन्‍दितो तहिना छेली। करीब चालिस मिनटक पछाइत दुनू अपन-आपकेँ ठीक केलैन आ घरक दरबज्‍जा नन्‍दिता खोलली। फेर गप करए लगला। थोड़े कालक बाद नन्‍दिता ऊपर जाए लगली। राघव एकबेर फेर भरि पाँज-के पकैड़ नन्‍दिताकेँ चुमए लगला। नन्‍दिता सेहो प्रत्‍युत्तरमे सएह केलखिन।
आब राघव अपन डायरीमे छुटल बात सभ लिखए लगला। कैमराक चीप निकालि फोटो सभकेँ लैप-टॉपमे डाउनलोड केलैन। फेर थीमक अनुसारे ओकर अलग-अलग फोल्‍डर बना ओइमे रखला। ताबे प्रो. सुधाकर आबि गेलखिन। दुनू गोरेमे बहुत देर धरि गप भेलैन। नन्‍दिता बीचमे बेबीकेँ भेजलखिन। बेबी आबि कऽ बाजलि-
चाह लाबी की?”
प्रो. सुधाकर जबाव देलखिन-
हँ-हँ, चाह बना। कनी चूरा सेहो भूज। हम सभ ऊपरे आबि रहल छी।
आब राघव आ प्रो. सुधाकर ऊपर एला। बेबी चूरा भुजए लगल। सुधाकर अपन पुत्र दिवाकरकेँ दोकानसँ पकौड़ा लाबए कहलखिन। सभ गोरे भूजल चूरा आ गरम-गरम पकौड़ा खेलैन। नन्‍दिता सेहो संगे बैसल छेली। राघव आ प्रो. सुधाकर फेर निच्‍चॉं आबि गेला आ सभ डाटापर चर्च प्रारम्‍भ केलैन। साढ़े दस बजे रातिमे कार्यक समाप्‍तिक बाद सभ गोरे भोजन केला। राघव अपन कक्षमे आबि किछु आरो बचल बात सभ लिखलैन आ सूति रहला।
दोसर दिन राघव स्‍नान-धियान केलैन आ छह बजे भोरे प्रो. सुधाकर स्‍वयं हुनका ऊपर लऽ गेलखिन। चूरा-दही-चीनी परोसल छेलैन। नन्‍दिता कीचनमे व्‍यस्‍त छेली। जखन राघव जलखै कऽ लेला तखन नन्‍दिता कीचनसँ बाहर एली। एकटा टीफीन राघव लेल तैयार छेलैन। राघवकेँ दैत कहलखिन-
राघवजी, अहाँक पत्नी सहजन्‍या सुधाकरकेँ कहने छेलखिन जे अहाँ बाहरक वस्‍तु यात्राक अवधिमे नइ खाइ छी। तँए थोड़ेक पुरी, पड़ोरक दू फँक्का आ थोड़ेक खजुरिया बना देलौं अछि। एकरा खाइत जाएब भरि रस्‍ता...।
राघव लग कृतज्ञताक कुनो शब्‍द नहि छेलैन। राघव आब प्रो. सुधाकरकेँ चरण स्‍पर्श केला। सुधाकर पीठ ठोकि असिरवाद देलखिन आ हृदयसँ लगेलखिन। आब राघव नन्‍दिताक चरण छुला। नन्‍दिता अपन हाथ राघवक पीठपर देलखिन। नन्‍दिताक हाथक स्‍पर्शसँ राघव धन्‍य भऽ गेला। नन्‍दिता आ हुनकर दुनू बालक राघवकेँ निच्‍चाँ धरि छोड़ि एलैन। राघवक संगे प्रो. सुधाकर सेहो रेलबे स्‍टेशन धरि विदा भेला।
स्‍टेशनपर गाड़ी आबि गेल रहइ। राघव गाड़ीक प्रथम ए.सी. कोंचमे बैस गेला। प्रो. सुधाकर सेहो कोच धरि गेलखिन। आब ट्रेन पाँच मिनटमे खुजत। ई जानि राघव पुन: प्रो. सुधाकरकेँ चरण स्‍पर्श करैत कहलखिन-
श्रीमान, आब अहाँ उतैर जाउ।  
प्रो. सुधाकर गाड़ीसँ निच्‍चाँ उतैर गेला।
ट्रेन खुजि गेल। राघव एकबेर पुन: नन्‍दिताक सम्‍बन्‍धमे सोचए लगला। मनमे एलैन, केना परिस्‍थिति मनुखकेँ की की बना दइ छै। नन्‍दिताक परिस्‍थिति हुनका लेखिका बना देलकैन- परिस्‍थिति लेखिका।
                                                                   शब्‍द संख्‍या : 13,664