Pages

Wednesday, November 2, 2016

'भाइक सिनेह' (क. जगदीश प्रसाद मण्‍डल) अर्द्धांगिनी लघु कथा संग्रहक दोसर संस्‍करणसँ...

भाइक सिनेह

बारहसँ बेसी राति‍ ढहि‍ चुकल मुदा एक नै बजल छल। अगहन मासक अन्‍हरि‍याक चतुर्दशी। एक तँ डम्‍हाएल अन्‍हार तैपर झक्‍सी जकाँ ओस खसैत। आँखि‍क रोशनी एते दुबरा गेल जे अपनो देह भरि नै देख‍ पबै छेलौं। जाड़क राति‍, तँए लोक सबेरे सीरक सेरि‍या कऽ ओछाइन पकैड़‍ लइ छल। पहि‍ल नीन पूरि कऽ टुटिते शि‍ष्‍टदेवक मन छोट भाएपर पहुँचलैन। सभ तरहेँ श्रेष्‍ठ रहि‍तो आँखि‍क सोझहेमे परि‍वार टुटि‍ गेल। जि‍नगी तँ ओहन जाल नहि, जइमे ओझराएब अनि‍वार्य अछि। वि‍धाता तँ सभ कि‍छु दऽ मनुखकेँ पठबै छथि‍न तहन किए लोक मकड़ा जकाँ अपने करनीसँ ओझरा जाइत अछि! आ वि‍वेकमे केना भूर भऽ जाइ छै जे हंस नइ बनि‍ कऽ कार-कौआ बनि‍ जाइत अछि! खएर.., परिवार भलेँ फुट भऽ गेल हुअए मुदा वि‍चारनाथ तँ छोटे भाए छी, आ अपने पि‍तातुल्‍य छि‍ऐ। ई कि‍यो बुझए वा नइ बुझए मुदा अपने तँ जरूर बुझै छी। अखन धरि‍ जेते दुनि‍याँ आ उगैत सुरूजक दर्शन हमरा भेल अछि ओतेक तँ वि‍चारनाथकेँ नहियेँ भेलैहेँ। परि‍वार टुटैक दोख केकरा लगतै? पि‍तातुल्‍य तँ प‍रि‍‍वारमे अपने छिऐ। मनुखक जि‍नगीक गाड़ी समैक संग चलैत आएल अछि आ आगुओ चलि‍ते रहत...।
सोचैत-वि‍चारैत शि‍ष्‍टदेवक हृदए बर्फ जकाँ पघिल‍-पघिल‍ पानि‍ हुअ लगलैन। पि‍पनीमे अँटकल नोरक बून सरस्‍वती नदीक धार जकाँ पहाड़पर सँ समतल भूमि‍मे बहए लगलैन। नोरक संग भाइक सि‍नेह सेहो उमड़ए लगलैन। जि‍नगीक सभ बाटमे वि‍चारनाथ पाछू अछि तँए ओकर बाँहि‍ पकैड़‍ आगू खिंचब। अपना पाँच समांग कमेनि‍हारक परिवार अछि। ओ दुइए परानी अछि। घरक कोनो वस्‍तु नि‍कालि‍ कऽ देलासँ पत्नी देख‍ लेती मुदा खरिहाँनक धानक बोझ तँ नइ देखती।
बि‍नु ठेकानल राति‍मे शिष्‍टदेवे जकाँ विचारनाथक नीन सेहो टुटल। नीन टुटिते मनमे उठलै जे जइ भैयाक संग चन्‍देसर, विदेसर आ जागेसर स्‍थान संगे जाइ छेलौं आ महादेवोक दर्शन करै छेलौं, मेलौ घुमै छेलौं।  की बेटो-भातिज संगे जाएत? एहेन टूट परिवारमे केना भेल? जहि‍यासँ ज्ञान-परान भेल तहि‍यासँ जहि‍ना भैयाक संग रहैत एलौं तहिना भीन होइसँ पहिनौं धरि ओहि‍ना रहलौं। मुदा कोन रोग परि‍वारमे केमहरसँ घुसि‍ आएल जे दुनू भाँइ महींस‍क सींग जकाँ भऽ गेल छी? मुदा भैयाक दोख कहाँ केतौ छैन। दू परि‍वारसँ दुनू दि‍यादि‍नी आबि‍ दुनू भाँइकेँ दू दि‍याद बना देलक! दुनू भाँइमे जेठ-छोटक बेवहार कहाँ अछि। दुनू भाँइ तँ भैये-बच्‍चा छी मुदा दि‍यादि‍नीमे से कहाँ छइ? माए तुल्‍य भौजीक दोख केना लगेबैन‍ मुदा की ओ छोट दि‍यादि‍नीकेँ छोट बहि‍न बुझै छथि‍न‍..? मनुखोक अजीब गति‍ अछि। जाधैर‍ सम्‍मि‍लि‍त परि‍वार रहैए ताधैर‍ दुनि‍याँक सभ रोग परि‍वारकेँ पकड़ने रहै छै मुदा परि‍वार टुटिते रोग पड़ा जाइ छइ। खएर जे हौउ, जाधैर‍‍ जीबै छी ताधैर‍ भैयाकेँ भैये बुझबैन‍, भलेँ ओ जे बुझैथ‍। जहि‍ना आमक वंशकेँ बढ़ैक दू रस्‍ता अछि। डारि‍सँ गाछ जोड़ि‍ कऽ–जे कलम बनैए‍–जइमे आगूओ पुन: वएह आम रहैए‍, आ आँठीक जन्‍मल गाछ सेहो होइए जे दिनानुदिन अपन रूप बदलैत-बदलैत सभ कि‍छु बदैल‍ लैत अछि। खएर.., एक हिस्‍सा रहि‍तो भैयाकेँ पाँच गोरे खेनि‍हारो छैन आ तीनू भाए-बहिन‍केँ पढ़बैयोमे खर्च होइ छैन। हमर तँ नापल-जोखल अढ़ाइ गोटेक परि‍वार अछि। एक सम्‍पैतमे भैयाक दोबर खर्च छैन। सहोदर रहैत जँ भैयाक दुख हम नइ बुझबैन तँ आन थोड़े बुझतैन‍? जइ धरतीपर राम-लक्ष्‍मण सन भैयारी भऽ चुकल अछि, की हम ओइ धरतीपर जन्‍म नइ लेने छी?
चुपचाप ओछाइनपरसँ उठि‍ खरिहाँन जा धानक जाकमे सँ एक बोझ उठा भाइक खरिहाँन दि‍स विचारनाथ विदा भेल। तहीकाल शिष्‍टदेवो अपना खरिहाँनसँ धानक बोझ उठा‍ वि‍चारनाथक खरिहाँन दि‍स चलल। दुनू भाँइक खरिहाँनक मुँह दू दि‍स रहने कि‍छु क्षणक रस्‍ताक दूरी बनि‍ गेल। बीच बाटपर दुनू दि‍ससँ दुनू भाँइ बोझ उठौने एक दोसराक आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। मुदा अन्‍हार राति‍क दुआरे कि‍यो केकरो चिन्‍हलक नहि, दुनूक मनमे चोरक शंका भेल। मुदा हल्‍लो केना करैत, दुनू तँ छल अखन चोरे। भलेँ अपने धान किए ने छेलइ। मक्‍खन चोर कृष्‍ण तँ नै छल जे चोरा कऽ खाइयौ लैत आ झूठ बाजि‍ छि‍पाइयो लि‍तए। ..खरहोरि‍क कड़ची जकाँ दुनू भाँइ सजीव रहि‍तो नि‍र्जीव आ नि‍र्जीव रहि‍तो सजीव ठाढ़ रहल। किनको मुँहमे बोल नहि, आँखि‍मे नोर नहि। अमरलत्ती जकाँ दुनूक हृदए ओझरा कऽ लटपटा गेल। एक क्षण-ले जेना सरस्‍वती नदीक धार बहब छोड़ि‍ असथि‍र भऽ मोटाए लगल।
मुड़ी उठा शि‍ष्‍टदेव अकास दि‍स तकैत उतरे-दछिने डगहरकेँ देखैत माथसँ थोड़ेक नि‍च्‍चाँ सतभैंयाकेँ पच्‍छिम दि‍स हिया-हिया कऽ देखए लगला। सतभैंयापर सँ नजैर‍ नि‍च्‍चे ने उतरैत रहैन। तैकाल उतरबरि‍या गाछपर चकबी-चकेबाक झूण्‍ड देह डोलबैत भोरक इशारा करैत बोली देलक। चकवीक अवाज सुनि‍ते शि‍ष्‍टदेवक मनमे उठलैन- हो-ने-हो कहीं पत्नी जागि‍ ने गेल होथि! हाँइ-हाँइ मुड़ी निच्‍चाँ करैत शिष्‍टदेवक मुहसँ फुटलैन-
के?”
बोलीक अवाज अकाइन विचारनाथ बाजल-
हम।
हम सुनि शि‍ष्‍टदेवक मन कहलकैन- ई तँ वि‍चारनाथ छी!’ मुदा तर्क कहलकैन- एत्ती राति‍मे बोझ उठौने केतए जाइए? ताड़ियो-दारू तँ नहियेँ पीबैए जे पसिखन्नो जाएत कि‍ भट्ठीखाने जाइत हएत। सामंजस करैत शिष्‍टदेवक मुहसँ जहिना निकललैन-
बौआ!”
तहिना विचारनाथक मुहसँ बहराएल-
भैया!”
बौआ भैयाक पछाइत दुनूक मुँह एक्केबेर बाजल-
हँ!”
शि‍ष्‍टदेव बजला-
एहेन काजर सन कारी राति‍मे बोझ केतए नेने जाइ छहक?
जहिना सि‍नेह अपना हृदैसँ लगा कारीखमे चमक आनि दैत अछि, आ आँखिक गुण बढ़बैत अछि तहिना विचारनाथक हृदए-आँखि चमकल-
भैया, अहाँक खर्च देख‍ मन कहलक जे पाँच बोझ धान दए अबहुन
दुनू भाँइक मनमे उठल-
भीन किए..?
जाधैर‍‍ सदनदेव आ श्रद्धावती जीबैत रहैथ‍ ताधैर‍ स्‍वर्गक परि‍वार छेलैन‍। अपन अमलदारीए-मे सदनदेव दुनू बेटाकेँ गामक स्‍कूल धरि‍ पढ़ा बि‍आह-दुरागमन करा जि‍नगीक लीलासँ नि‍चेन भऽ गेल छला। सोलह बीघा जमीनक कि‍सान परि‍वार, बाढ़ि‍-रौदीक बीच रहि‍तो दोसराक सेवाकेँ कर्ज बुझि‍‍ अपन परि‍वारकेँ सालक आमदनीक भीतरे खर्च कऽ रखि‍ उगरल आमदनीसँ काति‍क मास भागवत-कथाक संग भोज कऽ अगहनसँ नव जि‍नगीमे पएर रखै छला। ने बेटाकेँ कि‍छु अढ़बैत रहथिन आ ने पत्नीकेँ। अढ़बैक प्रयोजने नइ रहैन। परि‍वारकेँ संस्‍था बुझि‍‍ अपन-अपन समैक उपयोग अपना-अपना शक्‍ति‍क अनुकूल सभ कि‍यो काजमे लगबैत रहै छला। अपने अनुकूल परि‍वार देख‍ सदनदेव दुनू भाँइक बि‍आह केने छला। शि‍ष्‍टदेवक बि‍आह बीस बीघाबला लालबाबूक परि‍वारमे आ वि‍चारनाथक बारह बीघाबला श्रमदेवक परि‍वारमे भेलइ।
तइ समए महि‍ला शि‍क्षा अवैध रहने कैकेयी सेहो नि‍अमक पालन करैत रहली। जइसँ पि‍तो–लालबाबू–खुश भेला। माल-जाल पोसैले एकटा नोकर छेलैन आ खेती जने-हरबाहक हाथे होइन। अँगनाक मालि‍क पत्नीए रहथिन। खाइ-पीऐक चहैट‍ पत्नीकेँ नैहरेसँ लगल रहैन जइ दुआरे बेटी-पुतोहुकेँ रहि‍तो भानस अपने करै छेली। खाली गठुलासँ बेटी जारैन‍ आनि‍ दइ छेलैन‍ आ घरसँ बरतन-बासन आनि‍ पुतोहु चूल्हि‍‍‍ लग दऽ दैन। अपने तँ तरकारीए बनबए, चाउरे फटकए आ दालियेक खोंइचा बीछैमे पसेना पोछैत रहै छेली। चूल्हि‍‍‍क एक भाग पुतोहुकेँ आ दोसर भाग बेटीकेँ बैसा बीचमे अपने बैस‍ सभ दि‍न नैहरक खिस्‍सा सुनबैत रहली जेकरे चलैत ने बेटी परबाबाक नाओं आ ने ददि‍या ससुरक नाओं पुतोहु बुझै छेलैन‍।
बाढ़ि‍क उपद्रवसँ परि‍वार चलब कठि‍न बुझि‍‍ श्रमदेव पितियौत भायकेँ सातो बीघा खेत सुमझा परिवारक संग कलकत्ता चलि गेल। माए-बापक संग साते बर्खक दमयन्‍ती सेहो चलि गेली। रि‍सरा जूट मि‍लमे श्रमदेव नोकरी ज्‍वाइन केलैन। पक्का आठ घन्‍टाक ड्यूटी रहैन। रस्‍ताक समए श्रमि‍कक। डेराक बगलेक स्‍कूलमे दमयन्‍तीक नाओं लि‍खा देलखिन। संगी-साथी सभसँ पँइच रूपैआ लऽ कऽ दस कि‍लो दूधवाली गाए कीनि‍ पत्नी-ले सेहो काज ठाढ़ कऽ लेलैन। बच्‍चेसँ माने साते बर्खसँ दमयन्‍ती थैर-गोबर करैत‍-करैत‍ गाए पोसनि‍हारि‍ भऽ गेली‍। आठ बरख नोकरीक उत्तर मि‍लमे वेतन-ले श्रमि‍क सभ हड़ताल केलक। मिलमे ताला लटैक‍ गेल। नोकरीक डगमगाइत स्‍थि‍ति‍ देख‍ श्रमदेव अपन अरजल सभ कि‍छु बेच‍ पुन: घर घुमि‍‍‍ एला। सस्‍त जमीन रहने पाँच बीघा जमीनो आ तीनटा गाइयो कीनि‍ दोहरी काज ठाढ़ केलक।
..समैक संग चलि‍ दुनू भाँइ शि‍ष्‍टदेव सेहो परि‍वारक गाड़ीकेँ पटरीपर चढ़ा अपन गति‍ए चलबैत रहला।  
अँगनाक मालि‍क कैकेयी आ सहयोगीक रूपमे दमयन्‍ती रहए लगली। जेठ होइक नाते कैकेयी मुँहक बले जुइतो चलबए लगली आ हाथ-पएरकेँ अरामो दिअ लगली। वएह अराम काल भऽ भीन करौलकैन..! मुदा दुनू भाँइक बीचक सि‍नेह पुन: एकाकार कऽ देलकैन।
¦¦
शब्‍द संख्‍या : 1201

No comments:

Post a Comment