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Wednesday, October 5, 2016

भैंटक लावा (चारिम संस्‍करण)

भैंटक लावा (चारिम संस्‍करण)
पैछला बाढ़ि मोन पड़िते देह भुटैक जाइए। रोइयाँ-रोइयाँ ठाढ़ भऽ जाइए। बाढ़िक विकराल दृश्य आँखिक आगू नाचए लगैए। घोड़ोसँ तेज गतिसँ पानि दौगैत। बाढ़ियो छोटकी नहि, जुअनकी नहि, बुढ़िया। बुढ़िया रूप बना नृत्य करैत। केकरा कहूँ बड़की धार आ केकरा कहूँ छोटकी, सभ अपन-अपन चीन-पहचीन मेटा समुद्र जकाँ बनि गेल। जेमहर देखू तेमहर पाँक घोराएल पानि, निछोहे दच्‍छिन-मुहेँ दौगल जाइत। केतेक गाम-घर पजेबाक नइ रहने घर-विहीन भऽ गेल। इनार, पोखैर, बोरिंग, चापाकल पानिक तरमे डुबकुनियाँ काटए लगल। एहेन भयंकर दृश्य देख लोककेँ डरे छने-छन पियास लगलोपर पीबैक पानि नइ भेटैत। जीवन-मरण आगूमे ठाढ़ भऽ झिक्कम-झिक्का करैत। घर खसल, घरक कोठी खसल, कोठीक अन्न भँसल। जेहने दुरगैत घरक तेहने गाइयो-महींस, गाछो-बिरीछ आ खेतो-पथारक।
घरक नूआँ-वस्तर आ बासन-कुसनक संग आनो-आन समानक मोटरी बान्हि माथपर लऽ अपनो डाँड़मे दू भत्ता खरौआ डोरी बान्हि आ बेटोक डाँड़मे बान्हि आगू-आगू मुसना आ पाछू-पाछू घरवाली-जीबछी, बेटी-दुखनीकेँ कोरामे लऽ कन्हा लगौने पोखैरक ऊँचका महार दिस चलल।
अखन धरि ओ महार बोन-झाड़ आ पर-पैखानाक जगह छल, जइमे साँप-कीड़ा बसेरा बनौने, बाढ़ि ओकरा घराड़ी बना देलक।
जहिना इजोतमे छाँह लोकक संग नै छोड़ैत, तहिना बर्खा बाढ़िक संग छोड़ैले तैयार नहि। निच्चाँ पानिक तेज गति आ ऊपरसँ बर्खाक नमहर बून। महारपर मुसनाकेँ पहुँचैसँ पहिनहि बीस-पच्चीस गोरे अप्पन-अप्पन धिया-पुता, चीज-वौस आ माल-जालक संग पहुँच‍ चुकल छल। महारपर पहुँच‍ मुसना रहैक जगह हियाबए लगल। शौच करैक ढलान लग खाली जगह देख मुसना मोटरी रखलक। मोटरी रखि‍ बिसनाइरिक डारि‍ तोड़ि खर्ड़ा बनौलक। ओइ खर्ड़ासँ खर्ड़ए लगल। एक बेर खरैड़ कऽ देखलक तँ मनमे पड़पन नइ भेलइ। फेर दोहरा कऽ खरैड़ चिक्कन बनौलक। चिक्कन जगह देख दुनू बेकतीक मनमे चैन भेलइ। मोटरी खोलि मुसना एकटा बोरा निकालि चारिटा बत्तीक खुट्टा गाड़ि, खरौआ जौड़सँ ओइ चारू खूटकेँ बत्तीमे बान्हि घर बनौलक। दोसर बोरा निच्चाँमे ओछा धियो-पुतोकेँ बैसौलक आ समानो रखलक।
चिन्तासँ दुनू परानी मुसनाक मुँह सुखाएल। एक दिस दुनू बच्चाकेँ देखए आ दोसर दिस गनगनाइत बाढ़िकेँ। माथपर दुनू हाथ दऽ जीबछी मने-मन कोसी-कमला महरानीकेँ गरियेबो करैत आ जान बँचबैले निहोरो करैत। दुनू बच्चो कखनो बाढ़ि देख हँसैत तँ कखनो जाड़े कनैत।
बाढ़िक वेगमे एकटा घर भँसियाएल अबैत देख मुसना बाँसक टोन आ कुरहैर लऽ दौगल। पानिमे पैस हियाबए लगल जे कोन सोझे घर औत। ठेकना कऽ हाँइ-हाँइ पाँचटा खुट्टा ठोकलक। आस्ते-आस्ते घर आबि कऽ खुट्टामे अड़कल, खुट्टामे अड़ल घर देख घरवालीकेँ हाक पाड़ि कहलक-
“हाँसू नेने आउ। घरक समचा सभ उघि-उघि लऽ जाउ।
घरक ऊपरमे एकटा कुकुर सेहो भँसैत आएल। लोकक सुन-गुन पाबि कुकुर कुदि कऽ महारपर चलि गेल। ठाठक बत्तीमे जहाँ मुसना हाँसू लगौलक कि एकटा साँप लप-दे हाथेमे हबक मारि देलकै। थालमे गड़ल खुट्टा घरक भार नहि सम्हारि सकल। पाँचो खुट्टा पानिमे गिर पड़ल। घर भँसि‍ गेलइ। खूब जोरसँ मुसना कनबो करैत आ हल्लो करैत जे हौ लोक सभ, दौड़ै जाइ जा हौ, हमरा साँप काटि लेलक।
मुसनाक कानब सुनि जीबछी सेहो बपहारि काटए लगल। बपहारि कटैत घरवालीकेँ मुसना कहलक-  
“हे गइ दुखनी माए, नाग डँसि लेलकौ। छाती लग बिख आबि गेल। कनीए बाँकी अछि कण्‍ठ छुबैले। धिया-पुताकेँ हाक पाड़ि कनी मुँह देखा दे। आब नै बँचबौ।  
जीबछी हल्लो करैत आ घरबलाक बाँहि पकैड़ ऊपरो करैत। महारक किनछैरमे पहुँच‍ जहाँ ऊपर हुअ लगल कि दुनू गोरे पिछैर कऽ तरे-ऊपरे निच्चाँमे खसि पड़ल। दुनू परानी भीजल तँ रहबे करए, आरो नहा गेल। मुदा तैयो ओरिया-ओरिया कऽ ऊपर भेल।
महारपर आबि जीबछी चुनक कोहीसँ चुन निकालि दाढ़मे लगौलक। 
साँपक बिख झाड़निहार गाममे एकोटा नहि। मुदा रौदिया अही बेरक दशमीमे चनौरा गहबरमे चाटी सिखने छल। सभ कियो रौदियाक खोज करए लगल। रौदिया माछ मारैले सोहत लऽ कऽ बाध दिस गेल छल। एक गोरे ओकरा बजा अनलक। अबिते रौदिया सोहत कातमे रखि हाथ-पएर धोइ मुसना लग आबि बाजल-
“हौ भाय, हमर चाटी सिद्ध नइ भेल अछि, किक तँ हम अखन धरि गंगा स्नान नै केलौं हेन। मुदा तैयो बिसहाराकेँ सुमैर देखै छिऐ।
मुसनाकेँ आगूमे बैसा रौदिया हाथेसँ जगहकेँ झाड़ि चाटी रखलक। सभ रौदिया दिस देखैत। मुदा चाटी चलबे ने कएल। बाढ़ि दुआरे आन गामसँ झाड़निहार आ चट्टिबाहकेँ बजाएब महाग मोसकिल रहए। सभ निराश भऽ गेल। छाती पीटि-पीटि जीबछी कनबो करए आ देवी-देवताकेँ कबुलो करए। मुदा ढोढ़ साँप कटने छेलै तँए बिख लगबे ने केलइ।
गोसाँइ लूक-झूक करए लगला। गामक ढेरबा, बुढ़ आ जुआन स्‍त्रीगण सभ चँगेरियो आ चँगेरोमे काँच माटिक दियारी लऽ लऽ पोखैरक घाट लग जमा भऽ कमला महरानीकेँ साँझ दऽ गीत गाबए लगल। बच्चा सभ जय-जयकार करैत। तैबीच लुखिया कमला महरानीकेँ पाठी कबुला केलक, सुबधी एक सेर मधुर। दोसर साँझ धरि गीत-गाबि सभ घुमि कऽ आएल।
एक रफ्तारमे बाढ़ि पाँच दिन रहल। मुदा पोह फटिते छठम दिन पानि कमए लगलै। बाढ़िक पानि जहिना हुहुआ कऽ अबैए, तहिना जाइए।
बेर झुकैत-झुकैत घर-अँगनाक पानि निकैल गेल मुदा थाल-खिचार रहबे करए। सातम दिनसँ लोक घर ठाढ़ करए लगल। बाढ़ि सटैकते लोक परदेश दिस पड़ाए लगल। गाममे ने एक्कोटा धानक गब बँचल आ ने खेत रोपैले बीरार। नारक टाल सभ केतए भँसि कऽ गेल तेकर ठेकान नहि। गहुमक भुस्सी भुसकाँड़ेमे सड़ि-सड़ि गोबर बनि गेल। मनुखसँ बेसी दिक्कत माल-जालकेँ भऽ गेलइ। आमक पात, बाँसक पात आन-आन गाछ सबहक पात काटि-काटि माल-जालकेँ लोक खुबए लगल। आन-आन गामसँ नार, भुस्सी कीनि-कीनि आनए लगल। मुदा माल-जाल तैयो अनधुन मुइलै। जे बँचल रहै, ओहो सुखा कऽ संठी जकाँ भऽ गेलइ। तैपर सँ रंग-बिरंगक बेमारी सभ सेहो आबि गेलइ। केकरो खुरहा तँ केकरो पेट-झर्ड़ी। ..किछु गोरे अपन सभ मालकेँ कुटमैती सभमे दऽ आएल। 
चारिक अमल। पिसुआ भांग पीब श्रीकान्त मैदान दिससँ आबि दलानपर बैस चाह पिबैत रहैथ। सोगसँ अधमरु जकाँ भेल श्रीकान्‍त मने-मन सोचैथ जे महाजनी तँ चलिए गेल जे आब अपनो साल भरि की खाएब..! अगते धान सबाइ लगा देलौं। बड़ पैघ गलती भेल जे एक्को बखाड़ी पछुआ कऽ नै रखलौं। मुदा एक बखाड़ी रखनहि की होइत। के केकरा मदैत करत। ठीके कहब छै जे सभकेँ अपना भरोसे जीबा चाही। भने दुआर परहक बखाड़ीक धान सठि गेल। कियो दरबज्जापर औत तँ देखा देबइ। मुदा अपनो तँ जरूरत ऐछे, से केतएसँ आनब? लऽ दऽ कऽ घरक कोठीमे जे चाउर अछि, ओतबे अछि। एक्को धूर धान नै बँचल जे अगहनोक आशा हएत। आब अवादो तँ नहियेँ हएत, आगू रब्बीएक आशा रहल। जे सभ दिन कीनि-बेसाहि कऽ खाइए ओकरा तँ किछु नहि, मुदा हमरा लोक की कहत..?
चाह पिबते-पिबते श्रीकान्तकेँ चौन्ह आबए लगलैन। मन पड़लैन- बाबा कहने रहैथ जे दरबज्जापर जँ कि‍यो दू-सेर वा दू-टका मांगैले आबए तँ ओकरा ओहिना नै घुमबिहक। ओइसँ लछमी पड़ाइ छथिन।
जीबछीकेँ अबैत देख श्रीकान्त हाक पाड़लखिन। सालो भरि जीबछी हुनके कुटाउन कऽ गुजर करै छल। चाउर-चूड़ा कुटैमे जीबछी गाममे सभसँ बेसी लूरिगर।
श्रीकान्तक लग आबि जीबछी हँसैत कहलकैन-
“एते किए सोगाएल छैथ‍ काका! हिनका एते छैन‍‍ तहन‍ एते दुख होइ छैन‍‍, हमरा तँ किछु ने अछि तँए की मरि जाएब।
जीबछीक बात सुनि भखरल स्वरमे श्रीकान्त बजला-
“जहिना सभ किछु बाढ़िमे दहा गेल तहिना जँ अपनो सभ तूर भँसि जइतौं, से नीक होइत। जाबे परान छुटैत, तेतबे काल ने तकलीफ होइत मुदा आगू तँ दुख नै काटए पड़ैत। 
मुस्‍कियाइत जीबछी कहलकैन- 
“एक्केटा बाढ़िमे एते चिन्ता करै छैथ‍ काका! कनी नीक आकि कनी अधला, दिन तँ बितबे करतैन।
चीलम पिबैत मुसना ओसारपर बैसल। कसि कऽ सोँठ मारि‍ मने-मन सोचए लगल- अगहन-पूस-दुनू मास मुसहैन खुनि-खुनि गुजर करै छेलौं। दस सेर जमो भऽ जाइ छल आ गुजरो कऽ लइ छेलौं। ओहो चलि गेल। ने एक्को गब केतौ धान बँचल आ ने गाममे एकोटा मूस..!
दोसर दम घिंच धुआकेँ घोटिते मनमे एलै- मूसक तीमन आ धुसरी चाउरक भात जँ जाड़क मासमे भेटए तँ ऐसँ नीक दोसर की हएत। एहेन खेनाइ तँ रजो-महरजोकेँ सिहिन्ते लगल रहतैन। ओ-हो-हो! भगवान गरीबेक सुख छीनि लेलैन..!
मुसनाक पहिलुका नाओं मकसूदन छल। मुदा मूस आ मुसहैनसँ बेसी सिनेह रहने लोक मुसना कहए लगलै।
जीबछी आँगनक चुल्हिपर रोटी पकबैत। इनारपर हाथ-पएर धोय मुसना लोटामे पानि नेने आँगन आबि जलखै करैले बैसल।
टिनही छिपलीमे रोटी-नून लऽ जीबछी पतिक आगूमे देलक। अँगनामे दुखबाकेँ नइ देख मुसना जोरसँ शोर पाड़लक।
पिताक अवाज सुनिते दुखबा दौगल आबि धुराएले हाथे-पएरे आबि खाइले बैस रहल। दुनू बापूत खाए लगल। चुल्हिये लगसँ मुस्‍कियाइत जीबछी बाजल- 
“केकरो किछु हौउ मुदा जेकरा लूरि‍ रहतै ओ जीबे करत। ऐठाम देखै छिऐ जे एक्के दहारमे किदैन बहारक खिस्सा अछि। सभ हाकरोस करैए!”  
मुँहक रोटी मुसना हाँइ-हाँइ चिबा जीबछी दिस देखैत बाजल-
“तेते ने माछ भँसि-भँसि आएल अछि जे खत्ता-खुतीमे सह-सह करैए। कनी पानि तँ कम हौउ। जखने पानि कम भऽ उपछै-जोकर भेल आकि मछबारि शुरू कऽ देब। खेबो करब आ बेचबो करब। हरिदम दू पाइ हाथेमे रहत।
अपन नहिराक बात मन पड़िते जीबछी बाजए लगल-
“हमरा नैहरमे पच्‍छि‍मसँ गंडक आ पूबसँ कोसीक बाढ़ि सभ साल अबै छेलइ। तैबीच जे धार अछि ओकर पानि तँ घुमैत-फिरैत रहिते छल। सगरे गाम साउनेसँ जलोदीप भऽ जाइ छेलइ। टापू जकाँ एकटा परती-टा सूखल रहै छेलइ। ओइपर सौंसे गामक लोक बरसाती घर बना रहै छल। कातिक अबैत-अबैत खेत सभ जागए लगै छेलइ। तेकर पछाइत‍ लोक खेती करै छल। गहिंरका खेत आ खाधि-खुधिमे भैंटक गाछ सोहरी लागल जनमै छेलइ। अगहन बितैत-बितैत ओ तोड़ैबला हुअ लगै छेलइ। हम सभ ओइ भैंटकेँ तोड़ि-तोड़ि आनी, ओकरे दाना निकालि सुखा कऽ लावा भूजी। तेते लावा हुअए जे अपनो खाइ आ बेचबो करी। ..काल्हि गिरहत काका ऐठाम जाएब आ कहबैन जे चौरीमे जे मनसम्फे भैंट जन्‍मल अछि, ओ हमरा दऽ दिअ।
अखन धरि दुनू परानी मुसना, चाउर आ चूड़ाक कुट्टी करै छल, सेहो ढेकीमे। किएक तँ गाममे एक्कोटा छोटको मशीन धनकुटियाक नै छल। अधिकतर परिवार अपन-अपन ढेकी-उक्खैर रखै छल। मुसना सेहो कुट्टी दुआरे अपन ढेकी-उक्खैर रखने अछि। नीक चाउर बनबैमे जीबछीकेँ सभ लोहा मानैए। ऐ बेर तँ धनकुट्टी चलत नहि। मुदा बाढ़िमे आन गामसँ तेते भैंट दहा कऽ चौरीमे आएल जे सापरपिट्टा गाछ सौंसे चौरीमे जनैम गेल अछि। तँए जीबछी मने-मन चपचपाइत। दोसरकेँ भैंटक भाँज बुझले नहि।
सभ दिन नहाइ बेरमे जीबछी चौरी जा भैंट देख-देख अबैत। चौरगर-चौरगर पात सौंसे चौरीकेँ छेकने। थोड़बे दिनमे गोटि-पँगरा फूल हुअ लगलै। फूल देख जीबछीक मनमे होइ जे एतेटा फुलवाड़ी इन्द्रो भगवानकेँ हेतैन की नहि...।
पाँचे दिनमे सौंसे चौरी फूल फुला गेल। अगता फूलक पत्ती झड़ि-झड़ि खसए लगल, फूलमे नुकाएल फड़ निकलए लगल। गोल-गोल, हरि‍अर-हरि‍अर। फड़ देख जीबछी आमदनी बुझि, चौरीक कातमे बैस नव-नव योजना मने-मन बनबए लगल, ऐ बेर एकटा खूब निम्मन महींस कीनब। जँ महींस-जोकर आमदनी नै हएत तँ दूटा गाइए कीनि लेब। अप्पन तँ सम्‍पैत भऽ जाएत। ओकरे खूब चराएब-बझाएब। ओहीसँ तँ चारू परानीक गुजर चलत। जिनगी भरि तँ कुटाउने करैत रहलौं मुदा ऐ बेर कमलो महरानी आ कोसियो महरानी दुख हइर लेलैन।
मने-मन जीबछी कोसी-कमलाकेँ गोड़ लगलक। गोड़ लगिते मनमे उठलै- अपन धन हएत, तैपर सँ मेहनत‍ करब तँ कोन दरिदराहा दुख आबि कऽ हम्मर सुख छीनि लेत। मजगूत घर बान्हब, बेटा-बेटीक बिआह करब। नाति-पोता हएत, बाबा-दादी बनि कऽ जेते दिन जीबी ओ की देवलोकसँ कम भेल। अहीले ने सभ हरान अछि। केलासँ सभ किछु होइ छै, बिनु केने पतरो फुसि।
घनगर गाछ देख जीबछीक मनमे एलै, बीच-बीचमे सँ जँ गाछ उखारि देबै तँ सौरखियो करहर भऽ जाएत आ छेहर गाछ रहने फड़ो नमहर हएत आ दन्नो नीक। अखनेसँ आमदनी शुरू भऽ जाएत।
उत्साहित भऽ जीबछी भैंटक कमठौन शुरू केलक। मुदा करहर उखाड़ैमे तेते डाँड़ दुखाइ जे हूबा कमए लगलै। कमठौन छोड़ि देलक। देखते-देखते फड़मे लाली पकड़ए लगलै।
अगता फूल अगता फड़ भेल। नमहर-नमहर, पोछल-पोछल, गोल-गोल पुष्ट, रंगल फड़ देख जीबछी बुझि गेल जे आब ई तोड़ैबला भऽ गेल। दोसर दिनसँ फड़ तोड़ैक विचार जीबछी मने-मन कऽ लेलक।
दोसर दिन भोरे जीबछी रोटी पका, दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी खेनाइ खा प्लास्टिकक बोरा लऽ फड़ तोड़ैले विदा हुअ लगल कि धक-दे मन पड़लै, बोरामे तँ फड़ राखब मुदा पानिमे तोड़ि-तोड़ि कथीमे रखब। फड़ तोड़ैले तँ झोरा नीक जे अपना अछि नहि! आब की करब?
लगले जीबछी पुरना साड़ीकेँ फाड़ि दूटा झोरा सीलक। झोरा सीबि बोरो आ झोरोकेँ चौपेत एकटा झोरामे रखि, दुनू बच्चो आ दुनू गोरे अपनो, चौर दिस विदा भेल।
फड़क रूप-रंगसँ जीबछीक मन गदगद। मुदा अनभुआर काज बुझि मुसना तर्क-वितर्क करैत। चौरक कात पहुँच‍ ऊपरका खेत जे सुखाएल छल तइमे दुनू बच्चो, बोरो आ रोटियो-पानिकेँ रखि‍ दुनू परानी भैंट तोडै़ले पानिमे पैसल।
पानिमे पैसते जीबछीक नजैर भैंटक फड़क ऊपरे-ऊपर नाच लगलै। जहिना केकरो रूपैआक थैली भेटलासँ खुशी होइ छै, तहिना जीबछीक मनमे भेलइ। एक टकसँ देख जीबछी दुनू हाथे हाँइ-हाँइ फड़ तोड़ए लगल। खिच्चा फड़ देख जीबछी पतिकेँ कहलक- 
“जुएलके फड़टा तोड़ब, अजोहा अखन छोड़ि दियौ। पछाइत‍ तोड़ब।
झोरा भरिते जीबछी ऊपर आबि-आबि बोरामे रखैत। मुसनो सएह करैत। दुनू बोरा भरि गेल। ऊपर आबि जीबछी पतिकेँ कहलक-
“कनी काल सुस्ता लिअ। पानिमे निहुरल-निहुरल डाँड़ो दुखा गेल हएत। अहाँ एत्तै रहू, हम एक बेर अँगनासँ रखने अबै छी।
जीबछी एकटा बोरा उठा आँगन विदा भेल‍। एक तँ पानिक भीजल, दोसर ओजनगर वस्‍तु। मुदा जीबछी भारी बुझबे ने करए। किएक तँ सम्‍पैत‍क मोटरी रहै किने! आँगन आबि ओसारपर बोरा रखि‍ पुनः जीबछी चौर दिस रमकल विदा भेल। लग आबि पतिकेँ कहलक-  
“हम बोरा लइ छी, अहाँ दुनू बच्चो आ डोलोकेँ सम्हारने चलू।
दुनू बच्‍चाक संग एक हाथमे डोल नेने आगू-आगू मुसना आ माथपर बोरा नेने पाछू-पाछू जीबछी विदा भेल। थोड़े दूर बढ़लापर जीबछी पतिकेँ कहलक-
“भगवान दुःख हइर लेलैन।
मुदा स्‍त्रीक बात सुनि मुसनाकेँ ओ खुशी नहि एलै जे जीबछीकेँ रहए। आँगन आबि जीबछी पहिलुके बोरा लग दोसरो बोरा रखि‍ भानसक ओरियान करए लगल।
चारिम दिन पहिलुके खेप भैंट तोड़ै काल मुसनाकेँ एकटा ठेंगी बाँहिमे पकैड़ लेलकै। जे शुरूमे नै बुझलक। मुदा जहन‍ ठेंगी भरि पोख खून पीब भरिया गेल, तहन‍ नजैर पड़लै। ठेंगीकेँ देखते मुसनाक परान उड़ि गेलइ। थरथर काँपए लगल। खूब जोरसँ घरवालीकेँ कहलक- 
“बाप रे बाप! देहक सभटा खून ठेंगी पीब लेलक। कोन पाप लागल जे ऐ मौगिया भाँजमे पड़लौं। एक तँ बाढ़िक मारल छी जे भरि पोख अन्न नै होइए, सुखा कऽ संठी भेल छी। तैपर जेहो खून देहमे छेलए सेहो ठेंगीए पीब गेल। झब-दे आउ नहि तँ हम पानियेँमे खसि पड़ब।
पतिक बातकेँ अनठबैत जीबछी हाँइ-हाँइ फड़ो तोड़ैत आ मने-मन बजबो करैत- 
“जेना नाग डँसि नेने होइ तहिना अर्ड़ाहैए। भभटपन ने देखू! एहने-एहने पुरुख बुते परिवार चलत!” 
दुनू झोरा भरिते जीबछी मुसना लग आबि हाथेसँ ठेंगी पकैड़ एकटा चिचोरमे बान्हि देलक। मुदा जैठाम ठेंगी धेने रहै तैठामसँ छर्र-छर्र खून बहैत। अपन दहिना औंठासँ जीबछी दाबि देलक। कनीए कालक पछाइत‍‍ खून बन्न भऽ गेलइ। जीबछी फेर फड़ तोड़ैले पानिमे पैसल। मुसना बैसले रहल। थोड़े कालक पछाइत जीबछी बाजल-
“आउ ने, आब किछु ने हएत।
जीबछीक बात सुनि मुसना आँखि गुड़ैर कऽ बाजल- 
“ई मौगिया, जान मारैपर लगल अछि! होइ छै जे कहुना मरि जाए। कोनो कि दुनियाँमे सँएक कमी छइ, दोसर कऽ लेत।” 
दुनू बच्चा दिस देखैत मुसना फेर बाजल-  
“मुदा ऐ टेल्हुक सबहक की हेतइ। बिलैट कऽ मरत की नहि?”  
पति दिस देख जीबछी मुस्‍कियाइत बाजल- 
“नइ तोड़ब तँ नइ तोड़ू। ओतै बैस बच्चा सभकेँ खेलाउ।
दुनू बोरा भरि कऽ जीबछी आँगन अनलक। सभकेँ सम्हारने मुसनो आएल। आँगन आबि जीबछी चुल्हि पजारि भानस कऽ दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी खेलक। खा कऽ हाँसू लऽ भैंटक फड़ चीरि-चीरि दाना निकालए लगल। लाल-लाल, गोल-गोल दाना। मुसना सेहो दाना निकालए लगल। दुनू बच्चा दुनू भाग बैस दूटा फड़केँ गुड़कबैत खेलैत।
दानाकेँ एकटा चटकुन्नीपर थोपि-थोपि रखैत जाए। मुदा कनीए कालक पछाइत‍‍ मुसनाकेँ चीलम पीबैक मन भेलइ। उठि कऽ चुल्हि लग जा आगियो तापए लगल आ चीलमो पीबए लगल। दानाक ढेरी देख जीबछी गर अँटबए लगल जे एते राखब केतए। गुनधुन करैत। एकाएक नैहरक बात मन पड़लै। मन पड़िते मुहसँ हँसी फुटलै।
जीबछीकेँ हँसैत देख मुसना अह्लादित भऽ पुछलक- 
“अँइ गइ, कोन सोनाक तमघैल तोरा भेट गेलौ हेन जे एना खिखिआइ छेँ? 
मुदा पाशा बदलैत जीबछी बाजल- 
“अखन तँ अन्हार भऽ गेलै, काल्हि भोरे एकटा खाधि अँगनेमे टाट सटा कऽ खुनि देबइ।
भोरे उठि मुसना ढक जकाँ गोल-मोल खाधि खुनलक। जीबछी दुलेब कऽ लेब सुखौलक। ओइमे भैंटक दाना सुखा-सुखा रखैत गेल। ऊपरसँ टाटक झँपना बना मुसना झाँपि देलक।
मास दिनक मेहनतसँ जीबछीक आँगन भैंटक दानासँ भरि गेल। अनभुआर चीज तँए चोरी-चपाटीक कोनो डरे नहि। ..भरल आँगन देख जीबछीक मनमे समुद्रक लहैर जकाँ खुशी हिलकोर मारए लगलै। कनडेरिये आँखिए मुसना दिस देख मुस्कियाए लगल। घरवालीक मुस्की देख मुसना खिसिया कऽ बाजल- 
“हमरा देख-देख तोरा हँसी लगै छौ। हँसि ले, जेते हँसमेँ से हँसि ले। जाबे जीबै छियौ ताबे। भगवान केलखुन आ मरलियौ तहन‍ तोहर हँसी नगरक लोक देखतौ।
मुदा जीबछी-ले धैनसन। किएक तँ खुशीसँ मन एते भरल रहै जे घरबलाक बात ओइमे पैसबे ने केलइ।
मने-मन जीबछी लावा भुजैक विचार करए लगल। लावा भुजैले एकटा नमहर खापैड़ चाही। बाउल रखैले एकटा कोहा चाही। लाड़ैन तँ अपनो खड़हीसँ बना लेब आ बाउलो नदी कातसँ लऽ आनब। जहन‍‍ कुमहैन ओइठाम जाएब तँ कँचकूह ताकि कऽ एकटा नमहर तौला लऽ आएब। ओकरे खापैड़ बना लेब। बाउल धिपबैले मझोलको कोहासँ काज चलि जाएत। एकटा सरबा सेहो चाही। किएक तँ बाउल जे देबै से तँ हाथसँ नै हएत। ओइमे एकटा बत्तीक डाँट लगबए पड़त। लगा लेब। मुसनाकेँ कहलक- 
“लावा भुजैले जारैन सेहो ओरियाबए पड़त।
लावाक नाओं सुनि मुसनाक मनमे खुशी भेलइ। मुस्‍कियाइत बाजल-
“अखन‍ टेंगारी सुढ़िया लइ छी। बेरू-पहर गिरहत कक्काक गाछीसँ बाँझियो आ सूखल ठौहरियो सभ आनि देब।
भरि दिनमे दुनू परानी जीबछी सभ कथूक ओरियान कऽ लेलक।
पराते भने जीबछी लावा भुजब शुरू केलक। दू चुल्हिया चुल्हि। एक मुँहमे खापैड़, दोसरमे कोहा। खापैड़मे भैंटक दाना भुजैत आ कोहामे बाउल धीपबैत। पहिल घानी भुजि जीबछी एक चुटकी चुल्हिमे दऽ दोसर घानी भुजब शुरू केलक। दोसर घानीक लावा देख जीबछीक मन तर-ऊपर हुअ लगलै। पहिलुका घानीक लावा चँगेरीमे लऽ दुनू बच्चो आ घरोबलाकेँ आगूमे देलक।
आगूमे लावा देख मुसना मने-मन सोचए लगल, ई मौगिया बड़ लूरि‍गर अछि। एहेन स्‍त्री भगवान सभकेँ देथुन। कहू जे अखन तक हम जे बुझितो ने छेलौं से आइ खाइ छी। धिया-पुताकेँ पोसब कोन बड़का भारी बात जे समाजो-ले लोक बहुत किछु कऽ सकैए।
लावाक गमक पुर्बा हवामे मिलि सौंसे गामकेँ सुगन्‍धित कऽ देलक। सुगन्‍ध पाबि टोलोक आ गामोक स्‍त्रीगण सभ लावा किनैले एक्के-दुइए जीबछीक आँगन आबए लगली। मुदा एक्केटा जवाब जीबछी सभकेँ दैत- 
“पहिने गिरहत काकाकेँ खुएबैन, तहन‍‍ केकरो देब।
भरि दुपहर जीबछी लावा भुजलक। दू छिट्टा भेलइ। दुनू छिट्टा लावा घरमे रखि‍ ओइमे सँ एक मुजेला लऽ साड़ीसँ झाँपि जीबछी मुसनाकेँ कहलक- 
“हम गिरहत काका ओइठाम जाइ छी। अहाँ अँगनेमे रहब।
कहि जीबछी माथपर मुजेला नेने श्रीकान्त ऐठाम विदा भेल।
जीबछीक माथपर मुजेला देख श्रीकान्त गौर करैत मुस्‍किया कऽ पुछलखिन-
“बड़ खुशी देखै छी लछमी महरानी। मुजेलामे की चोरा कऽ अनलौं हेन। कनी हमरो देखए दिअ?”
अनसुनी करैत जीबछी मुस्‍कियाइत आँगन जा गिरहतनीक आगूमे मुजेला रखि‍ कहलकैन- 
“काकी, थोड़ेकेँ लाइ बना लिहैथ आ अखन कनीमे नोन-मरीच-तेल मिला कऽ दौथ, जे काकाकेँ दऽ अबै छिऐन।
छिपलीमे लावा नेने जीबछी दरबज्जापर जा श्रीकान्तक आगूमे देलकैन। ओ छिपलीमे उज्जर-उज्जर रमदाना-लावा जकाँ लावाकेँ निंगहारि-निंगहारि देखए लगला। जीबछी कहलकैन- 
“काका, की निंगहारै छथिन, पहिने एक मुट्ठी मुँहमे दऽ कऽ देखथुन ने। भैंटक लावा छिऐ।
एक मुट्ठी उठा श्रीकान्त मुँहमे लेला। लावाक कोमलता आ सुआद पाबि‍ श्रीकान्त खुशीसँ पत्नीकेँ हाक पाड़ि कहलखि‍न- 
“एते सुन्नर वस्तुकेँ अखन धरि जनितौं ने छेलौं। धन्य अछि जीबछीक ज्ञान आ लूरि‍ जे एहेन सुन्नर हराएल वस्‍तुकेँ ऊपर केलक। साक्षात् देवी छी जीबछी। जाउ, सन्दूकसँ एकजोड़ साड़ी आ आँगी निकालने आउ। जीबछीकेँ अपना ऐठामसँ पहिरा कऽ विदा करब। गरीब-दुखियाक देवी छी जीबछी।
सभ दिन जीबछी लावा भुजैत आ अँगनेसँ लोक सभ कीनि-कीनि लऽ जाइत। पनरह दिनक जमा कएल रूपैयो आ फुटकुरियो जीबछी मुसनाकेँ गनैले आगूमे देलक।
पाइ देख मुसनाक मन उड़ि गेल। मुहसँ ठहाका निकलल। एक टकसँ मुसना जीबछी दिस देख कैंचा गिनए लगल।
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शब्‍द संख्‍या : 3100

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