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Friday, July 8, 2016

कनहा भँट्टा (जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

कनहा भँट्टा


समए रौदियाह भेने जिनगियो आ जिनगीक किरियो-कलाप रौदियाइते अछि, आ से खाली रौदियेटा मे नइ बाढ़ियो-दाहीमे होइए। ओना, दुनूक बीच विपरीत सम्‍बन्‍ध अछि, अकास-पतालक अन्‍तर अछि। मुदा जिनगीक बीच आबि दुनू एक भऽ जाइए। माने ई जे जहिना गाछो-बिरीछ आ मालो-जाल, हाल बेहाल भेने दम खींचैयो लगैए आ तोड़बो करैए तहिना बाढ़ियो-दाहीमे होइए। ओना, कहैले तँ कहले जाएत जे एकटा पानिक अभावमे मरलदोसर पानि पीबैत मरल। मुदा से जे हौउ, जिनगी तँ निच्‍चाँ मुहेँ खसबे करैए।
जखन समैये रौदियाह भेल तखन जिनगीक किरिया-कलापसँ लऽ कऽ जीवन-यापन धरि रौदिएबे करत, मकमकेबे करत। अन्नो-पानि आ तीमनो-तरकारीमे मकमकी एबे करत। रौदी भेल खेतक उपज गेल! उपज गेल, वस्‍तुक अभाव भेल! आ वस्‍तुक अभाव भेने जीवन आ जिनगी गेल..!
ओना, जइ हिसावे तीमन-तरकारीमे मकमकी आएल तइ हिसावे अन्नमे नइ आएल। मुदा नहियेँ आएल सेहो केना कहल जाएत। हँ, ई जरूर भेल जे जैठाम तीमन-तरकारीक भावमे चारि बर, पाँच बरकेँ के कहए जे अठ-अठ-दस-दस बर बढ़ल, तैठाम अन्नक भावमे डेढ़िया-दोबर बढ़बे कएल अछि। जे भाँटा पाँच रूपैये किलो पनरह दिन पहिने छल, ओ रसे-रसे बढ़ैत तीस रूपैये किलो भऽ गेल आ जे टमाटर दस रूपैये किलो छल ओ साठि रूपैये भऽ गेल। अन्न-पानिमे से नइ भेल, जे बीस रूपैये किलो छल ओ पचीस रूपैये भेल आ जे साठि रूपैये छल ओ सत्तैर रूपैये भेल। ओना, खाली खाइ-पीबैक नइ आनो-आनो वौसमे चढ़ा-ऊतरी भेबे कएल। रौदी भेने किछु चीज सस्‍तो भेल आ किछु कूदि कऽ अकासो छूलक।
तीमनो-तरकारी एके रंग नइ कुदल, जेना हरियर तरकारी कुदल तेना अल्‍लू नइ कुदल। मुदा ऐठाम तँ ईहो बात ऐछे जे अल्‍लूकेँ कोबी-भाँटा, टमाटर-साग जकाँ हरियर मानल जाए की नइ? ओ तँ ने फूल छी, ने पात आ ने ऊपरका फड़े छी। ओ तँ छी कन्‍द-मूल चाहे गॉंठ। कन्‍द-मूल आकि गाँठ रहितो अल्‍लूमे एकटा बात तँ ऐछे जे आनसँ नमहर[1] जिनगियो छै आ आन जकाँ गलनमो-सड़नमो नहियेँ अछि। ओना, सड़नमा ओहो अछि मुदा हरियरसँ कम अछि। आनक अपेक्षा बेसी खगतो पुड़बैए। माने ई जे आन तरकारीक अपेक्षा अल्‍लू बेसी बकतियारो होइए। खएर, जे होइए मुदा जखन हरियर गाछ हरियर फड़, पाँतेसँ बीछि-बीछि उखाड़ि तरकारी बनैए तखन तँ ओहो कनी-मनी गलिते अछि आ हरियर गाछक हरियर फड़ो भेबे कएल, तँए अल्‍लूक सौंसे जिनगीकेँ भलेँ हरियर तरकारी नइ मानल जाए, मुदा थोड़बो दिन तँ मानले जा सकैए।
ओना, अल्‍लूकेँ कन्‍द-मूल कहल जाए आकि गाँठ, ईहो तँ झमेल ऐछे। अल्‍हुआकेँ शकरकन्‍द कहल जाइए, जे एकटा गाछमे अल्‍लुए जकाँ घोंदा फड़ैए, भलेँ एकटा गोल आ एकटा नाम किए ने हुअए। तैसंग ईहो तँ ऐछे जे जहिना अल्‍लूमे पातर खोंइचा होइए तहिना अल्‍हुओमे अछि। ओना, नामोक दृष्‍टिसँ दुनू भैयारीए बूझि पड़ैए। तेतबे किए, दुनूमे सँ केकरो टमाटर जकाँ आकि भॉंटा जकाँ बीआ सेहो ने होइ छै। जखन एकटा गुण आकि एकटा काज मिलने दोस्‍तियारे सम्‍भव अछि, तखन तँ अल्‍लू अल्‍हुआक भैयारीमे सेहो ऐछे। मुदा केशौरो तँ मिश्रीए-कन्‍द छी, जेकरा अल्‍लू जकाँ ने कन्‍दे रोपल जाइए आ ने उला-पका खाएले जाइए। ओकर फूलमे छीमीदार फड़ होइ छै, तइमे बीआ होइ छै, ओही बीआसँ कन्‍द भेल..।
मुदा ऐठाम कन्‍दो-कन्‍दमे फन्‍दे-फन्‍द अछि। रहल जे अल्‍लूकेँ गाँठ मानल जाए की नइ?
मुदा गाँठोक तँ लीला अपार ऐछे, किछु माटि तरक गाँठ भेल तँ किछु माटिक ऊपरको। जेना, गाँठ-कोबी माटिक ऊपर होइए, किछु गाँठ एहनो तँ ऐछे जे माटिक तरोमे एकेटा होइए जे जड़ि धने रहैए। मुदा गीरह-गाँठ कहैबला हरदी-आदीक तँ से नइ अछि। भलेँ अल्‍हुआ-अल्‍लू जकाँ फुट-फुट घोंदानुमा नहि, हत्‍थे जकाँ किए ने हौउ। मुदा जे हौउ, अल्‍लूक तँ मिठाइयो, तरकारियो, अँचारो बनैए आ अल्‍हुआ जकाँ उसैन सेहो खाएल जाइए। जे अन्नक काजक पुरती सेहो करिते अछि। खएर जे से...।
पिताजी दू भाँइ। दुनू भैयारीक बीच अखन एगारह गोरेक परिवार अछि। नीक समए हौउ कि अधला, नमहर परिवारक खगता बेसी होइते अछि। गामक ओहन परिवारमे छी, जइमे नीक जकाँ माने सुपोषित भोजने ने भेटैए मुदा जैठाम भोजनोमे कोताही हएत तैठाम घर-दुआर आकि पढ़ाइ-लिखाइ वा ऐसँ ऊपरक जे खगता अछि ओ तँ कल्‍पनाश्रित छोड़ि पुर्तिये केते कऽ सकै छी। ओना, एगारह गोरेक परिवारमे खाइयो-पीबैक एक विचार नहियेँ अछि, मुदा समैक धक्का तँ विचारकेँ तोड़ि-मरोरि एकबट करिते अछि। ओना, समए बदलने फेर विचार-भिन्नता जनमैक परिस्‍थिति बनियेँ जाइए। बनियेँ ने जाइए बनितो अछि आ नहियोँ बनैए।
भोजनकेँ जीवनक मुख्‍य खगता बूझि परिवारक सभ कियो एकठाम बैस विचार केलौं जे जिनगी-ले सुपोषण जरूरी अछि, तँए चारि साए ग्राम हरियर तरकारी जरूरी अछि। माने, जहिना अन्नक उचित मात्रा जरूरी अछि तहिना हरियर साग-सब्‍जी सेहो जरूरी अछि। दस बर्खसँ कम उम्रक परिवारमे कियो ऐछे ने जइसँ घटी-बढ़ी हएत। ओना, एक विचार भेलो पछाइत करिया काका अपना जिद्दपर ठाढ़े रहि गेला। हुनकर जिद्द छैन जे भात हुअ कि रोटी अढ़ाइ साए ग्राम अल्‍लूक चोखा हेबे करए...।
करिया काकाकेँ अल्‍लूसँ कोन प्रेमक प्रगाढ़ता छैन से तँ ओ जानैथ, मुदा अन्नक पछाइत अल्‍लू छोड़ि दोसरकेँ ओते मोजर नइ दइ छथिन जेते अल्‍लूकेँ। फलो सोझेमे छैन जे मोटैनी बेमारी पकैड़ नेने छैन, मुदा तैयो सूर्यवंशी जकाँ प्राण जाए मुदा विचार नइ जाए..।
ओना, परिवारमे करिया काकाकेँ छोड़ि दसो गोरे ऐ विचारकेँ राजी-खुशीसँ मानि अमल करै छी जे चारि साए ग्राम हरियर साग-सब्‍जी प्रतिदिन परिवारमे हेबक्के चाही, से ऐछो। जहिना कहल गेल अछि जे कनही गाइक भीने बथान सेहो ऐछे। खाइक मामलामे करिया काका दसो गोरेसँ भिन्न छैथ। आ से घरेटा मे नइ, गामोमे निमाहिते छैथ। समाजमे भोज-काज भेने भोजनक खुशी लोककेँ होइते छै, मुदा से करिया काकाकेँ नइ होइ छैन। किएक तँ भोज-काजमे अल्‍लूक चोखा नइ भेने केतौ खाइयो-ले नहियेँ जाइ छैथ। आ जँ कहियो केतौ जाइतो छैथ तँ अल्‍लूक चोखा दुआरे अजश दाइये दइ छथिन। ओना, समाजक भोज-काजमे जश-अजशक आनो-आन कारण अछि, मुदा करिया कक्काक अजशक कारण अल्‍लूए-चोखा रहैत अछि।
ओना, समाजिको भोजमे आ परिवारोमे आन सब्‍जीक अपेक्षा अल्‍लूक महत बेसी ऐछे। तेकर कारणो अछि जे चोखा, तरूआ, भुजुआ, भुजिया, अचार सहित आनो विन्‍यास अल्‍लूक जेते बनैए तेते दोसरकेँ नहियेँ बनैए। भोज तँ ओहन भोजन छी जइमे बेसी-सँ-बेसी विन्‍यास बनैए। बनबो केना ने करत, भोज तँ आवश्‍यक भोजनसँ आगू बढ़ि विशेष भोजन छीहे, तैठाम जँ विशेष विन्‍यास नइ बनइ, तखन ओ विशेषे केना भेल? आ जखन आनसँ बेसी विशेषता नइ रहत तखन ओ विशेषाधिकार प्राप्‍ते केना कऽ सकैए?
रौदियाह समए भेने अपन कोन चर्च जे गामेसँ हरियर तरकारी अलोपित भऽ गेल अछि। सबहक बाड़ी-झाड़ी ओहिना बिनु उपजाक मर्र-मर्र करैए। मुदा भोजन-ले तँ तरकारीक जरूरत ऐछे। जखन अपन चास-बासमे हरियर तरकारी नइ अछि तखन तँ हाटे-बजार दिस ने जाए पड़त।
ओना, गामक चौबगली आन सभ गाममे हाट अछि जे सपताहमे दू-दू दिन लगैए। बजार जकाँ भरि-दिना नइ, खाली बेरुका उखड़ाहा भरि मात्र लगैए। जे करीब-करीब चारि घन्‍टा रहैए। गमैया हाट छी तँए गामे-घरक हटवारो रहल। ओहीमे किछ किनवारो आ किछु बेचवारो रहल। तैसंग किछु एहनो कीनवार-बेचवार होइए जे बेचबो करैए आ कीनबो करैए, मुदा से कम रहैए। अधिक बेचवार ओहन रहैए जे अपन खेत-पथारसँ उपजल वौस हाटपर आबि बेचैए।
गामसँ बेसी दूर तँ नइ मुदा चौवगली गमैया-हाटसँ कनियेँ आगू झंझारपुर हाट अछि। बगलेमे बजारो छै। ओना, गामक चौबगली-गमैया हाटसँ झंझारपुर-हाट नव अछि। माने आन हाटक अपेक्षा झंझारपुर हाट पछाइत लागब शुरू भेल, मुदा अनुकूलता पौने सभ हाटसँ बेसी जगजियार तँ ऐछे। अनुकूलतोक अनेक कारण अछि। जइमे प्रमुख अछि- प्रतिक्रिया स्‍वरूप हाट लागब। माने, झंझारपुर-हाट महरैल हाटक प्रतिक्रियामे लागब शुरू भेल। जे एक जातिक अधिकारक हाट छल। समाजमे दबंगता छेलैहे। हाटक वेपारियो आ खरीदवालोक संग ज्‍यादती भरपुर करै छल। संजोग भेल किछु वेपारियो आ खरीदवालोमे आक्रोश बढ़ल, सरकारी कार्यालयसँ हटल रहबे करए। माने, थाना-ब्‍लौक सँ दूर छेलै महरैलक-हाट, तँए जेहेन निगरानी सरकारक हेबा चाही से नहियेँ रहइ।
झंझारपुर बजारक लाट सेहो रहबे करइ, जइसँ बजरूआ वेपारी सेहो आक्रोशितक संग भेल। झंझारपुर-हाट लागब शुरू भेल। महरैल-हाट रसे-रसे घटए लगल आ अखन ओ गमैया हाट बनि ठाढ़ अछि, जइमे गामेक बेचवालो आ लेवालोमे समटा गेल अछि। ओना, महरैलक बरदहट्टा सेहो टुटल, मुदा अनुकूलता नइ रहने झंझारपुरोमे नइ लगि सकल। तेकर कारण भेल अछि जे इलाकामे गाए-बरदक उपटान जकाँ सेहो भाइये गेल अछि।
झंझारपुर हाटकेँ तेजीसँ उठैक कारण सरकारीकरण सेहो भेल, आ लगमे बजारो आ सरकारियो कार्यालय रहने सभ रंगक लेवालो आ बेचवालोक समावेश भाइये गेल अछि। तैसंग चौबगली दूर-दूर तक सड़क आ सवारीक सुविधा भेने अन्‍तर्राज्‍यीय वेपारी सेहो पहुँचए लगल, जइसँ हाटक चुहचुही दिनानुदिन बढ़िते गेल अछि।
दियादीमे तँ नइ मुदा भैयाक संगी भेने लाल भाइक परिवारसँ विशेष सम्‍बन्‍ध ऐछे। लाल भाय नोकरी करै छैथ। ओना, गामेसँ जाइ-अबै छैथ, मुदा कर्तव्‍यनिष्‍ट लोक रहने आठ घन्‍टा ड्यूटी पुरबैमे अपने भरि दिन लगि जाइ छैन। जइसँ हाट-बजारक काज पत्नियेँ, माने लाले भौजी करै छथिन।
अपने साइकिल रखने छी, जइसँ झंझारपुर जाइ छी, पाँचे किलोमीटरपर झंझारपुर-हाट अछि, टेम्‍पूक सुविधा गामसँ सेहो छइहे तँए स्‍त्रीगणो सभ हाट-बजार करिते छैथ।
मुख्‍य सड़कसँ उतैर जखने हाटक बाट धेलौं कि लाल भौजीकेँ टेम्‍पूपर सँ उतरैत देखलयैन। मनमे भेल जे टोकयैन, परिवारिक सम्‍बन्‍ध ऐछे। मुदा फेर भेल जखन भौजियोक नजैर पड़बे केलैन आ किछ ने बजली तखन जँ अपन-अपन काज अपने सम्‍हारि चली, यएह ने भेल अपना भरोषे चलब। ओना अनभुआर जगहपर आकि गामसँ बाहर जँ गौआँ-घरूआ भेट जाए तँ मनसूबा बढ़बै करै छै, हमरो बढ़ल। लाल भौजीकेँ बढ़लैन कि नइ बढ़लैन से तँ ओ जनती, मुदा अपना बूझि पड़ल जे मन चुहचुहा जरूर गेलैन।
थोड़ेक आगू बढ़ि परतीपर साइकिल लगबए बढ़लौं। हाटक मुहेँपर लाल भौजी जेना ठमैक गेली। जनु हमर बाट ताकए लगली कि की से तँ ओ जानैथ मुदा जेते-कालमे साइकिल लगेलौं तेते-काल तक ओ ठाढ़ रहली। ओना, पुराने साइकिल अछि, ताला बिनु लगेनौं काज चलैबला अछि, मुदा से नइ तलो ऐछे। ताला जखन लगबए लगलौं तखन एक नजैर तालापर देलिऐ आ दोसर लाल भौजीपर। तालापर नजैर पड़िते एकटा गौआँ मन पड़ल। केते लक्कर-झक्करसँ वेचाराकेँ महिना दिन पहिने बिआहमे साइकिल देने रहइ। आठम दिनका हाटमे एतै केदैन चोरा लेलकै! वेचारा घूमि कऽ गाम गेल, तखन आबि कऽ दरबज्‍जापर बैस गेल। कनी-कालमे जखन एलौं तँ पुछलिऐ»
किए बैसल छह?”
असथिरेसँ पुछने रहिऐ। ले-बलैया! ओ तँ कानए लगल! मने-मन सोची जे की भेलैए! परिवारक तँ ने कियो किछु कहलकैए? हुचकैत बाजल»
झंझारपुर-हाट गेल छेलौं से साइकिले चोरा लेलक!”  
मन असथिर भेल जे अपन परिवारक नइ अन्‍तुका बात छी। कहलिऐ»
केना चोरेलकह। ताला नै लगेने छेलह?”
डाँड़मे बान्‍हल कुन्‍जी खोलि कऽ देखबैत बाजल»
देखै छिऐ, कुन्‍जी संगेमे अछि। खूब कटकटा कऽ लगा देने छेलिऐ।
कहलिऐ»
बुझल नइ छेलह जे सभ हाटमे दस-बीसटा साइकिल झंझारपुरमे चोरि भाइये जाइ छै, तखन सचेत भऽ कऽ ने कोनो चिन्‍हारक दोकान लग साइकिल लगैबतह। ऐठाम किए छह। गामपर जा।
ओ बाजल»
अहाँ कनी संगे चलू, घरवालीकेँ बुझा-सुझा देबै, नइ तँ ओ घरेसँ भगा देत।
बड़ आश्‍चर्य भेल जे महिने दिन पहिने बिआह भेलै, तखन एहेन शिकाइत पत्नीक किए करैए! जिज्ञासा बढ़ल। पुछलिऐ»
अखन तँ महिनो दिन बिआह केना नइ भेलह हेन तखन एहेन बात किए बजै छह?”
जेना मनक हूबा जगलै। बाजल»
रूपैआकेँ लोक उनटा-पुनटा चिन्‍हैए मुदा लोककेँ लोक तँ लोलेक बोलसँ ने चिन्‍हैए।
की करितौं, कोनो कोट-कचहरीक लफड़ा थोड़े छी जे बेसी समए लगैत। भेल तँ घरपर जा सभकेँ कहि देबै जे चोर-ले ताला की आ बेइमान-ले केबाला की। सएह केलौं।
साइकिल लगा जखने घुमलौं की लाल भौजी सेहो डेग बढ़ेली। आगूए-आगू तरकारी दोकानपर पहुँचली। अपनो तँ वएह काज रहए। जा हम पहुँची ता भौजी दोकानक आगूमे बैस तरकारी सभपर नजैर दौड़बैत रहैथ। पहुँचते दोकानदारकेँ पुछलिऐ»
भँट्टा की दर?”
निच्‍चाँ-सँ-ऊपर लाल भौजी नजैर केलैन। दोकानदार बाजल»
तीस रूपैये किलो।
दामक हिसाबे दोकानक वस्‍तुक चुहचुही नइ बूझि पड़ल। ओना हाटेक चुहचुही रौदियाएल बुझाइत रहइ। एकटा नमरी जेबीमे रहए। घरपर तँ बूझि पड़ल रहए जे परिवारक हिसाबे दू दिनक तरकारी हएत, मुदा से भेल नइ। मने-मन हिसाव बैसेलौं तँ नब्‍बे रूपैआमे तीन किलो भँट्टा हएत, दस रूपैआमे चाहो-पान भाइये जाएत। दू-चारि जँ संगमे नइ राखब तँ पुरान साइकिल अछि जँ केतौ पनचर हएत कि भाल्‍टुए फटि जाएत, तखन तँ पएरे ने जाए पड़त..!
तीन किलो भँट्टा कीनि झोरामे लऽ लेलौं। नमरी देलिऐ, दस रूपैआ घुमा देलक।
जहिना स्‍टेशनमे ऐगला यात्रीकेँ टिकट होइते दोसर यात्री अपन टिकटक आदेश दइए तहिना दोकानपर पाइ सम्‍हारिते रही कि लाल भौजी कनहा भँट्टाक ढेरी देखबैत पुछलखिन»
ओइ ढेरीक की दर रखने छी?”
असथिर चिते तरकारी दोकानदार बाजल»
कोनो कि भाव छीपल अछि। नीकक अदहा कनहा होइए।
लाल भौजी मने-मन हिसाव जोड़ली। हुनको नमरीए रहैन। पनरह रूपैयेक हिसावसँ छह किलो, दोकानदाकेँ कहलखिन जोखू।
ओना लाल भौजीक नजैर जेतए रहल हौनु मुदा हमरा हँसी लगि गेल। हँसी ई लगल जे जखन भँट्टा सड़ले छै तखन अनेरे किए कीनि रहली अछि? मुदा लाल भौजीक मुँहमे मलिनता नइ रहैन। ओ भँट्टाकेँ देख हिया कऽ हियाइस नेने छेली जे दस प्रतिशतसँ पच्‍चीस प्रतिशत नोकसान अछि, बाँकी पचहत्तैर प्रतिशतसँ ऊपरे नीक अछि। कहुना-कहुना तँ चारि किलोसँ ऊपरे हएत। पाँचो किलो भऽ सकैए। जखन रौदियाह समए अछि, महगी पकड़बे करत। तैठाम जँ जान बँचा नइ चलब तँ दोख केकर हेतइ।
नब्‍बे रूपैआमे छह किलो भँट्टा लाल भौजी लेली। दस रूपैआ हुनको दोकानदार घुमा देलकैन। ओहो मने-मन टेम्‍पू-भाड़ा बैसा लेली। दुनू गोरे दोकानपर सँ विदा भेलौं। भाय, हाट-बजार छिऐ, सभसँ सभ पुछ-आछ करिते अछि। मनमे कनहा भँट्टा घुरियाइते रहए। कहलयैन»
भौजी, जुआनीक सनकी हाटो-बजारमे चढ़ले रहैए?”
ओना हम कनहा भँट्टा-दे ठिकिया कऽ बाजल रही मुदा से लाल भौजीक नजैरपर नइ चढ़लैन। हुनका मनमे दोसरे-तेसरे बात नचलैन। बजली»
से की?”
कहलयैन»
पाइ कुट-कुट कटै छेलए जे सभटा सड़लाहा भँट्टा कीनि लेलौं?”
ओना हम भौजियेक पक्षक बात बाजल रही मुदा भौजीक मनमे से नइ भेलैन। विपक्षेक बात बूझि पड़लैन। जखन कि प्रश्‍न तँ कनहा भँट्टा सम्‍बन्‍धित अछि। नीक-अधलाक बीच पक्ष-विपक्ष हएत। जे बात भौजीक मनमे नचलैन। नचिते मुस्‍कियेली, मुदा मुँह बन्ने रहलैन। मुस्‍की देख अपन मन खसए लगल। खसए ई लगल जे हमर विचारकेँ भौजी कोन रूपे बुझली?
लाल भाय पंचायत सेवकक नोकरी करै छैथ। मैट्रिक पास छैथ। लाल भौजी पढ़ल-लिखल नइ छैथ, मुदा गृहिणीक सभ लूरिक बोध रहने परिवारमे कहियो कोनो काजक आकि विचारक टकराहट दुनू परानीक बीच नइ होइ छैन। लालो भाय गाममे रहितो, परिवारसँ मुक्ते छैथ। सोझ-मतिया चाइलिक लोक रहने जहिना मासक दरमाहा उठबै छैथ तहिना सभ रूपैआ नेने आबि दुनू परानी परिवारक महिनो दिनक हिसाव बैसा खले-खल रूपैआकेँ बाँटि काज करै छैथ।
खसैत मने बजलौं»
भौजी हमर बात अहाँ कोन रूपे लेलिऐ?”
ओना भौजीक मन खुशीमे दहलाइत रहैन। होइतो अहिना छै जे एके प्रश्‍नक उत्तर मन-मनक विचारक अनुकूल शब्‍दमे होइते छै। शब्‍दो तँ शब्‍द छी, एके शब्‍द केतौ मारक होइए आ केतौ तारक सेहो होइए। ओना बजैक क्रममे भौजी बजली»
कोनो अहाँ अधला बात कहलौं जे अधला लागत?”
अपनो गर भेटल। कहलयैन»
तखन चुपे-चाप किए रहि गेलौं, हँ-हूँ किछ किए ने कहलौं?”
हमर बात भौजीकेँ अधला नइ लगलैन। मुस्‍कियाइत बजली»
अहाँ कौलेजमे पढ़ै छी की खेल करै छी?”
मनमे भेल जे एना किए भौजी बजली! ऐमे कोन पढ़ै आ खेलैक बात अछि? पुछलयैन»
ऐमे की खेल अछि?”
मुस्‍की भरैत भौजी बजली»
यएह दुनियाँक खेल छी। दुनियॉंमे ने किछ अधला अछि आ ने नीक। देखै-करैक नजैर आ लूरि चाही।
लाल भौजीक बात नीक जकाँ नइ बूझि पेलौं। मुदा छी तँ झंझारपुर-हाटक रस्‍तापर ठाढ़। तहूमे रौदियाह समैक रौद सेहो अछि। मुँह फोरि बजलौं»
भौजी अहाँक चिक्कारी हम नइ बुझै छी। मुँह खोलि बाजू।
बजली»
कौलेजमे पढ़ै छी आ एतबो ने बुझै छिऐ जे सभ किछुमे परिस्‍थिति-बस पील फड़ैए। चीजक कोन बात जे लोकक देहोमे फड़ै छै। मुदा जेकरो देहमे फड़ै छै ओहो पीलुआ छाँटि जीबए चाहैए की नइ?”
बिच्‍चेमे बजा गेल»
हँ से तँ चाहिते अछि आ जीबो करैए!”
भौजी बजली»
जेना वौसमे महगी आबि गेल अछि तेना नोकरीबलाकेँ दरमाहा थोड़े बढ़ि जाएत। मुदा परिवारक खर्च तँ हेबे करत।
कहलयैन»
हँ से तँ हेबे करत।
बजली»
तखन तँ हमरा सन लोककेँ दुइयेटा उपाय ने अछि जे चाहे दू-कौर कम खाउ चाहे दब समानक उपयोग करू।
कहलयैन»
हँ से तँ करै पड़त।
भौजी बजली»
नबे रूपैआमे अहाँकेँ तीन किलो भँट्टा भेल आ हमरा कहुना चारि किलोसँ ऊपरे, सड़लाहा छाँटि कऽ, हएत। अहीं कहू जे की नीक भेल?”
भौजीक बात सुनि अवाक् भऽ गेलौं।    
शब्‍द संख्‍या : 2537, तिथि : 30 जून 2016


[1] अधिक दिन रहैबला