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Monday, May 16, 2016

दुधियाएल बरखा (टटका एवं समसामिक कथा)

दुधियाएल बरखा


बैशाख मासक अन्‍हरिया-एकादशीक अढ़ाइ बजे राति। मात्र आधा घन्‍टा बाँकी तीन बजे भोर होइमे। ओछाइनपर पड़ल दुर्वासा काका मौसमक तापसँ तपित होइत कछमछ करैथ। हवा शान्‍त, ताप तपतपाइत। तपतपेबो केना ने करैत, जहिना रेडियो तहिना अखबारो दिन-राति चिचियाइत जे केता बर्खक पछाइत एहेन टेम्‍प्रेचर मौसमकेँ चढ़ल अछि! कछमछ करैत ओछाइनपर दुर्वासा कक्काक मन उतप्‍त भऽ वौआइत-वौआइत ऐठाम आबि अँटैक जाइन जे जीब कठिन अछि। केना नइ बूझि पड़तैन जे जीअब कठिन अछि? जखैन नीने हराम तखैन लोके आकि कोनो आने पालतू-सँ-जंगली जानवर आकि माटि परहक पंछीसँ लऽ कऽ गाछ परहक पंछी धरि जीविये केते दिन सकैए? बुझले तँ बात अछि जे जखने कफ-पीत आ वात संग पकड़लक तखने औरदा खटियए लगल। जखने जिनगीक औरुदा खटियाएत आकि चौकियाएत आकि पलेगाएत तखने ने बूझि लिअ जे आब गाछी लगिचाएल..!
बेर-बेर दुर्वासा कक्काक औनाइत मनमे उठैन जे मौसमक बेतुकी गतिसँ पैछला सालक अन्‍तिम फसिल मारल गेल..! आमक दरसे ने..! पाकलक कोन बात जे टुकलाक चटनियो नदारत..! आन सालक हिसावसँ दोबर पटौला पछातियो गरमा धान पूजियोमे घाटा लगौत..! आ गहुम सहजे मारले गेल..! गहुमक गेने पैछला साले चलि डूमि गेल..! मुदा खेरही तँ ऐगला खेती छी, परिवारकेँ के कहए जे समाजसँ लऽ कऽ जिला, राज्‍य आ देशक समस्‍या दालिक छी..! केना नइ दस कट्ठा खेरही दुर्वासा काका करितैथ?
ओना धड़फड़ाएल किसान कहियौ कि औगुताएल आकि अगुआएल, सरोसत्तीए पूजाकेँ वसन्‍तक जन्‍म-दिन बूझि खेरही-बीआ आधा माघेसँ खेतमे छीटब शुरू करै छैथ, मुदा से नइ बतीस दिन पहिने दुर्वासा काका सलोहाल खेतकेँ पटा, जोति-कोरि बीआ छीटि चौकिया उन्नैत किस्‍मक अल्‍पकालिन खेरही दस कट्ठामे ई सोचि केने छला जे समुचित विधि-विधानसँ केने निसचित परिवारक साल भरिक दालिक समस्‍या मेटा जाएत। हिसावो सोझ बूझि पड़लैन। ओना चालीस किलो कट्ठा तक खेरहीक पैदावार अछि, मुदा अपने तँ ओहन किसान छैथ नइ जे ओइ ऊचाइकेँ पकैड़ पेता। मुदा एहनो तँ झड़खंडी किसान कहियौ कि अधमरू आकि पछुआएल नहियेँ छैथ जे सोलहन्नी बीओ बुड़ेता...। तँए बीच-बँचाउ करैत बीस किलो कट्ठा मानि, दू क्‍विन्‍टलक हिसावसँ खेरही-खेती केने छला। हिसाव एना सोझ बूझि पड़लैन जे सालो भरि जँ आधा किलो पाँच गोरेक परिवारमे खर्च हएत तँ सौ-ग्राम मुड़े-मुड़ भेबे कएल। ओना सबठामक अपन-अपन जरूरत छै, मुदा से अलग अछि। तहूमे दालि-दालिक अपन-अपन कद-काठी सेहो होइए। एक दिस खेसारीक कद-काठी अछि, जे दानामे अदहा खोंइचा आ अदहा दालि होइए जखन कि खेरही तइ कद-काठीक नइ छी, ओकर कद-काठी दोसर छै, किलोमे आठो सए ग्रामसँ बेसी दालि होइए। तेतबे किए, कुरथी-तेबखा आ खेरही ओहन दालि छी जेकर खोंइचो खाद्ये छी। जँ से नइ छी तँ भतउसनामे धानक चाउर कुटि कऽ आ खेरहीक दालि सौंसेक दोस्‍ती केना होइए?
दू-तीन दिनसँ मेघ असथिर हवामे रूइयाक फाहा जकाँ उड़ियए लगल, जइसँ झपन-तोपन शुरू भेल। तैसंग हवो उड़ए लगल। हवाक गतियो रसे-रसे तेज होइत गेल। ओना धरती जे तपित भऽ गेल छल आ ओकर जे तपवन उठए लगल, तइसँ वातावरणमे कोनो बेसी सुधार तँ नइ भेल छल मुदा सुधारक किछु झलकी तँ आबिये गेल छेलै। अढ़ाइ बजे रातिमे हवाक गति तेज भेल, वादल सेहो उमड़ए लगल। बुन्‍दा-बुन्‍दी पानि शुरू भेल। जे धीरे-धीरे बढ़ए लगल, जइसँ धरतीक तपित तन रसे-रसे तुषित हुअ लगल। अकास-सँ-धरती धरि मौसम समरूप तँ नइ भेल मुदा सिमैस जरूर गेल।
धरतीक तपित तापसँ औनाइत दुर्वासा कक्काक मन रसे-रसे चैन हुअ लगलैन। अखन धरि जे औनाइत मनमे वौआइत विचार उठै छेलैन आ खसै छेलैन ओ मौसमकेँ बदलैत रूप देख मौसमे-अनुकूल, अदलए-बदलए लगलैन। जहिना अदलै-बदलैबला मंडीमे शान्‍ति राखब जरूरी होइ छै, जँ से नइ राखब तँ पाइयेक हिसाव ओझरा जाएत, तहिना।
जेना-जेना दुर्वासा कक्काक मन मौसमानुकूल चैन होइत जाइन तहिना-तहिना सौन मासक पूनो-चान जकाँ अपनो चान फरीच हुअ लगलैन। जेना-जेना अपन चान फरीच होइत जाइत रहैन तेना-तेना मन चैन भेल जाइन। तीन बजे राति बीतल आ तीन बजे भोर शुरू भेल। मेघो बुनियाएब बन्न केलक। एका-एक ओते रातिमे कहियौ आकि ओते भोरमे चुट्टी-पीपरीसँ लऽ कऽ मनुख तक चल-मला गेल। मुदा दुनियोँ तँ दुनियाँ छी, जेकरा जे भवै वएह ने ओकर भावना भेल आ जेहने भावना तेहने ने बुधि, आ जेहेन बुधि हएत तेहेन काज करैमे आनन्‍दो आएत आ वएह आनन्‍द ब्रह्मानन्‍दोमे जा कऽ मिलत!
अपन रागमे दुर्वासा काका मने-मन डुबकी बजबैत रहैथ कि चिकनी काकी चिचिआइत लगमे आबि कहलकैन»
अखनो तक जे गठूला घर नै बनेलौं से देखियौ-गे सभटा गोरहाक दशा! भीज कऽ सभटा गोबर भऽ गेल! फेरसँ पाथए पड़त!”
होइते अहिना छै जे घरमे आगि लगौ आकि नहमर बिहाड़ि अबौ आकि भुमकम हौउ परिवारजन तँ अपने-अपने भवन मनसँ ने अपन-अपन जानक संग ओहू वस्‍तु आ विचारकेँ जान-बँचबैत घरसँ बहराइए जे ओकर प्रिय रहै छै। जहिना सैयो-हजारो रंगक वस्‍तु-जातसँ भरल घर-परिवारमे वएह वस्‍तु वा विचारकेँ बँचबए चाहैए आ आन वस्‍तु वा विचारक भरमार रहितो छोड़ैले तैयार होइए, तहिना चिकनियो काकीकेँ भेलैन। भेलैन ई जे जहिना गोबरधन-पहाड़ ओढ़ि ब्रजमण्‍डलवासीक जान बँचबैक पाछू कृष्‍ण भीर गेला तहिना परिवारक पहियाक चलैत घुरीक एकटा किल्‍ली जकाँ जारैनपर चिकनी काकी अपन सुरता गड़ौने छेली। वएह सुरता हुनका बुन्‍दा-बुन्‍दी छुटिते गोरहाक मचान दिस बाड़ी लऽ गेलैन, जेकर दुर्दशा देख चिकनी काकीक मन कलहैन्‍त गेल छेलैन। ओहीसँ आक्रमित भऽ दुर्वासा काका लग आबि बाजल छेली। मुदा दुर्वासा कक्काक मन बदलैत मौसम आ बदलैत जिनगीक गति-विधिपर धियान अड़कल छेलैन, जइसँ चिकनी काकीक बातक कोनो उत्तर नइ देलखिन। देबो जरूरी नइ बुझलैन। जरूरी ऐ दुआरे नइ बुझलैन जे चिकनी काकीक आद्योपान्‍त बात सुनलैन। सुनिते जखन गुनए लगला तँ बैशाखक अधमसिया बूझि पड़लैन, नइ कि मौसमक उतार बूझि पड़लैन। माने ई जे मौसमक उतार भेल गरमी मास, माने जखन बरखा मास बनए लगैए तइ बीचक समए, जे एक उतरैए दोसर चढ़ैए। मुदा बैशाख तँ से मास नइ छी, ओना एक मास जेठुआ रौद सेहो पछुआएल अछि। जइमे सालक सभसँ जुआएल रौद होइए। जुआएल कहियौ आकि जबनाएल, समए तँ सभसँ नीक गोरहा-ले भेबे कएल। तैठाम जे पत्नी माथ पटकै छैथ, यएह भेल अनेरो दुख बेसाहब...।
दुर्वासा कक्काक मन आगू घुसैक गेलैन। घुसैक कऽ गोरहा घर कहियौ आकि जारैनक गठूला, तइमे जा कऽ अँटकलैन। अँटैकते मनमे उठलैन- एक तँ आश्रमी घरसँ आकि भण्‍डार घरसँ गठूला कद-काठीमे छोट होइए, तैसंग नीपै-बहारै आकि लेबै-मुनैक कोनो खगते ने होइए, तइले एते जे माथ-कपार पीटै छैथ से अनेरे ने! हिनके सबहक सपनामे कहियो चारि बीघाक ताज-महल औतैन..? तँए आरो अनठा कऽ दुर्वासा काका कनतोपि लेलैन।
ओना दुर्वासा कक्काक मुँह नइ खुजने चिकनी काकीक मन चिक्कन हुअ लगलैन। किएक तँ पति-पत्नीक बीच जँ पत्नीक बातसँ पति मुँहकेँ बन्न कऽ लैथ, सएह ने भेल पत्नी-लेल चिक्कन। आब कि माथपर चढ़ि टीक पकैड़ ठीक करती तखन मन चिक्कन हेतैन?
चिक्कन मन बनिते चिकनी काकीक नजैर पतिक बन्न मुँहपर पड़लैन। पहिने शंका भेलैन जे पूर्वाक लहकीमे भरिसक नीन छैथ तँए हमर बात नइ सुनलैन। मुदा गोरहा-घर आ गोरहाक दशा मनकेँ बेथित केनहि रहैन, तँए बेर-बेर मनमे विचारक झोंको उठबे करैन। मुदा असगरमे के केकरासँ पुछत आ के केकरासँ कोनो विचार लेत कि देत। तखन तँ भेल जे जे भऽ रहल अछि ओकरा छातीमे मुक्का मारि देखैत चलू। यएह सोचि अपन पनचैती अपने करैत चिकनी काकी अपन ओछाइन दिस बढ़ि गेली।
अन्‍हरिया-एकादशीक भोरक उदित चान जहिना दुधियाएल लाली नेने फरीच मौसमक बीच चौठक चान जकाँ हँसियाएल अपन रंग-रूप निहारैए तहिना दुर्वासा कक्काक मन अपन जिनगीक रंग-रूप निहारए लगलैन। मरहन्ना गहुमक खेती आ फलाएल आमक बगान बोनिआ गेने दुर्वासा कक्काक जे मनसँ भूख व्‍याकुल भऽ पड़ा लगल छेलैन ओ पुन: खेरही खेतीपर नजैर पड़िते आबए लगलैन। दालिक अभाव किए भेल? पहिल प्रश्‍न दुर्वासा कक्काक मनमे उठलैन। खैहन अन्न भेल धान, गहुम, मकइ इत्‍यादि आ दलहन भेल बदाम, केराउ, मौसुरी, खेसारी इत्‍यादि। भोजनक पहिल खगता खैहन अन्नसँ पूर्ति होइए नइ कि दलिहनसँ। दलिहन भेल खैहनक सहयोगी। ओना दलिहनोक रोटी, सतुआ आ उसनाक रूपमे खैहनक पूर्ति करैए, मुदा ओ भेल अभावक भाव। ओना दलिहनोक खेती आनो-आनो मौसममे होइए, जेना राहैर, खेरही, कुरथी आ तेबखा। मुदा राहैर, कुरथी आ तेबखा ऊँचरस जमीनक फसिल छी, जे धार-धूरक इलाका रहने मिथिलांचलमे कम अछि, तँए राहैर-कुरथी उपजै जोकर चासे कम अछि। रहल कैतका खेती, माने जाड़-मासक खेती मुदा ओ तँ जहिना खैहनक समए छी तहिना दलिहनक सेहो छी। एक तँ ओहिना धार-धूर, डोह-डाबर चौर-चाँचर, कोचाढ़ि-बीरैक गाम जइमे मध्‍यम किस्‍मक जमीन कम अछि, तैपर खैहनक बदला दलिहन अभावी लोक किए उपजेता, तैसंग ईहो भेल जे समुचित ढंगसँ दलिहनक खेतीक चलैन कमि गेल आ दलिहनक छिटुआ खेतीक चलैन जोर पकैड़ लेलक, जे करैमे असानो होइए। मुदा समुचित ढंगसँ नइ भेने तिहाइयो-चौथाइ उपज नइ होइए! अस्‍सीक दसकमे वैज्ञानिक पद्धतिसँ गहुमक खेती करैक सरकारी योजना बनल, उपजामे बढ़ौतरी भेल, दलिहन खेत गहुमक खेतमे बदैल गेल जइसँ दालिक उपज कमि गेल!
दुर्वासा कक्काक मन आगू घुसकलैन। आगू ई घुसकलैन जे जखन एहेन स्‍थिति बनि गेल अछि तखन कि लोक दालिये खाएब छोड़ि दिअए? कनीकाल-ले महगक दुआरे छोड़ियो देत मुदा अदौरी-बरीक कोन दोख भेल जे गाम छोड़ि पड़ा जाए? जाड़क हिस्‍साबला समए जे गहुमकेँ छोड़ि दइ छिऐ, तैयो ओइमे गरमा दालि माने खेरही-तेबखा तँ कएल जा सकैए? तइले दुनूक समैक अँटाबेश करब अछि। मुदा अँटाबेशक पाछू पैछला मौसमक प्रभावो-दुष्‍प्रभाव तँ ऐछे? जँ खेत बिलैम कऽ उखड़त- माने खेतीक अनुकूल बनत- तखन खेतीमे बिलम हएत। जखने खेतीमे बिलम हएत तखने फसिल आगूक समए पकड़त। जखने आगूक समए पकड़त तखने ऐगला फसिल प्रभावित हएत..?
दुर्वासा कक्काक मन आगू घुसैक अपन देश-कोस दिस बढ़ि गेलैन। कहू जे दुनियाँ भरिमे अपना सबहक भोजनक जे सचार-विचार अछि, ओ दुनियाँमे केतए अछि? ओना चाउर-दालि सभ देशक भोजन छी, मुदा जइ सचार-विचारसँ हम सभ खाइ छी ओ केतए अछि? भातक पहिल संगी दालि छी, से आन थोड़े बुझैए..?
आब दुर्वासा कक्काक नजैर अपन खेरही-खेतीपर एलैन। खेतमे बीआ देना बतीस दिन भऽ गेल। सत्तैर दिनक पछाइत फड़ ललियए लगत। पचहत्तैर-अस्‍सी दिनमे खेरही खस्‍सी बनि आगूक भोज्‍यमे शामिल भऽ जाएत। जहिना नख-सिखक वर्णन तहिना सिख-नखक वर्णन सेहो होइते अछि। एकेबेर दुर्वासा कक्काक मन हहैर कऽ बतीस दिन पाछू घुसैक ओइ दिनपर गेलैन जइ दिन खेतमे खेरही बीआ बौगु केने छला। बौगु करैसँ चारि दिन पहिने पटौने छला, धरती एते तबैध गेल छल जे सलोहाल पटौल खेत चारिये दिनमे उखैड़ गेल, माने खेती करै जोकर भऽ गेल। डकरा हाल खेतमे रहने भुआ जकाँ गाछ जनमल। बीआक उपचारक संग जोतो आ खादो अनुकूल भेल। जइ गतिये फसिलक बढ़बारि हेबा चाही ओइमे मिसियो भरि कोताही नइ भेल। जहिना अपन कर्तव्‍यमे कमी नइ भेलैन, तहिना खेरही सेहो अपन चालि-ढालि आ रंग-रूप पकड़ने दुधिआइत-दुधियाइत फुलिआइपर पहुँच गेल अछि..!
दुर्वासा कक्काक मन हलसैत-कलशैत ओइ अवस्‍थामे पहुँच गेलैन जेतए जिनगीमे मोड़ अबैए आ दुधिआइत देहमे फुलिआइत मन नचैए। नचैत दुर्वासा कक्काक मनमे जेना घुरमी लगलैन। होइतो अहिना छै जे नचैत-नचैत जखन देहमे घुरमी लगै छै तखन ओ नचैत-नचैत धरतीपर या तँ बैस जाइए वा खसि पड़ैए। घुरमी ई लगलैन जे दालिक उपटान केना किसानक बीच आएल? मुदा से अखन नइ। अखन एतबे जे जहिना चाउरक हिसावे दू सेरक बदला तीन सेर धान भिनसुरका उखड़ाहाक[1] बोइन छल तहिना चाउरेक हिसावसँ दू सेर दालियो बोइन छल। एकर माने ई नइ जे मिथिलांचल दालि-दलिहनक भण्‍डार छल। हँ, एते जरूर छेलै जे किछु किसान परिवार एहेन छला जिनका अपना परिवारसँ फाजिल दालि होइ छेलैन, जे बोइनोमे दइ छेलखिन। एकर माने ईहो नइ जे दालिक प्रचूरता छल। जे किसान निम्न-मध्‍य परिवारक छला ओ धानक अभावमे सेहो दालिये बोइन दइ छेलखिन। ई तँ भेल भिनसुरका उखड़ाहाक बोइन। मुदा बेरुका उखड़ाहाक[2] सबा सेर चाउरक हिसावसँ दू सेर धान जहिना बोइन छल, तहिना सवा सेर दलिहन सेहो छल। एकर माने ई नइ बूझब जे बोनिहारकेँ तीन सए पैंसैठो दिन काज लगै छेलैन, भरि साल कमाइ छला, बेरोजगारी नइ छल। नइ छल कि छल से तँ सबहक सोझहेमे अछि। 
अधरतिया बीतल, बरखा सेहो बन्न भेल। पूर्वा हवाक लहकीमे अकासमे पसरल वादल सेहो छँटि गेल। जहाँ करिया मेघ परीच भेल कि भुक-भुक तरेगनो आ भकजोगनियोँ सभ भुकभुकाए लगल। अन्‍हारिया-एकादशीक भोरक चान हँसिया-सदृश हँसिआइत पूब दिशामे उगल। बदलैत मौसमक अखड़ेहे ने अखार भेल जँ से नइ भेल तँ किए कालीदासकेँ कहए पड़लैन- आषाढ़स्‍य प्रथम दिविशे:..!” जँ पूर्णिमा आ सकराँतिक हिसावसँ मास चलैत तँ किए लिखए पड़ितैन? सोझ-साझ पूर्णिमा आकि सकराँतिक हिसावसँ सीमापर खुट्टी गाड़ि मासकेँ खुटिया दितैथ..!
आन दिनक अपेक्षा जेना आइ दुनियाँक सभ किछु भोरे जगि गेल तहिना दुर्वासा काकाकेँ बूझि पड़लैन। आन दिन तीन बजे भोरमे पौड़कियेटा बोली दइ छल, से आइ धरतीक धोंघा-सितुआसँ लऽ कऽ गाछ परहक चिड़ै-चुनमुनी सहित बोली दिअ लगल! गाए-महींस घरसँ बहार होइले डिरिया लगल अछि। दुर्वासा काका ओछाइनसँ उठि ओसारपर आबि चिकनी काकीकेँ कहलखिन»
दुनियाँक सभ किछु जगि गेल आ अहाँ ओछाइने धेने रहब?”
ओना चिकनी काकी अपने बेथे बेथाएल अखनो छैथे, जइसँ कखनो बरखाकेँ झड़कौआ कहि गरियबै छथिन तँ कखनो अपन कपारकेँ दोख लगबै छैथ, तँ कखनो पतिकेँ अपन कपार बूझि अपनाकेँ कोसबो करै छैथ जे केहेन कपारमे बेथाएल छला! मुदा सभकेँ समटैत चिकनी काकीक मन गवाही देलकैन, भोरका समए छी, सभ अपन-अपन भरि दिनक सगुन बनबैले हँसैत उठैए, तैठाम जँ मरियाएल-कड़ुआएल उठब से नीक नहि। मनकेँ बदलैत ओछाइनसँ उठि चिकनी काकी ओसारपर आबि बजली»
आइ भोरे नीन बिला गेल।
मुस्‍की दैत दुर्वासा काका बजला»
बिलाएल कहाँ बिलाइ जकाँ दूध-फूल तकैए..!”
शब्‍द संख्‍या : 2059, तिथि : 11 मई 2016


[1] माने बारह बजे तकक
[2] माने बेरसँ साँझ धरि-

1 comment:

  1. bdd sunnar umesh ji .. jena ankhik aagu sakar bh gel hoi, badhai gajendra ji ke seho jinka karan ek se ek sahitykara sn parichay bhel ..

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