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Monday, February 15, 2016

मोहरा

मोहरा


मास दिनक पछाइत पता लगल जे कुरसोवालीक सराधो भऽ गेल। गामक ओहन काज जे एक दिनक आकि एक क्षणा नइ छी, जे चुपचाप भऽ जाएत। सराधक पाछू क्रिया-कर्मक भोज-भातक संग नह-केश अछि तइसँ पहिने तेरातिक भोजो आ छौरझँपी होइए, तहूसँ पहिने लहाश जरौल जाइए। एते नमगर-चौड़गर काज आ बुझबो ने केलौं..!
फेर अपनेपर नजैर पड़ल, नजैर पड़िते जखन मास दिनकेँ गुनलौं तँ केतौ खोंच-खरोंच नइ बूझि पड़ल। माने जहिना सभ-दिना जिनगी अछि तहिना ऐछे, तखन किए ने बुझलौं। आइ जँ केतौ मास-दिनक तीर्थ-वर्तमे गेल रहितौं आकि कोनो महानगरे घुमैले गेल रहितौं, सेहो तँ नहियेँ केतौ गेलौं हेन। मुदा मनमे ईहो जिज्ञासा तँ जगले रहए जे जे कुरसोवाली एक समए गामक रंगमंचपर मुख्‍य नचनिहारि छलि, तेकर सराध केहेन भेल?
फेर भेल जे मास दिनक पुरान गप छी तखन जँ केकरोसँ पुछबे करबैन जे कुरसोवालीक सराध भऽ गेलैन तँ ओ मुँह दुसि कहबे करत कि ने जे तूँ गाममे नइ छेलह जे देखतहक आकि सुनितहक जे पहिने सराध भेल आकि मुइल, एतबो ने बुझल छह।
कोनो गरे ने देखिऐ जे की करब। मुदा मनमे बुझैक जिज्ञासा तँ रहबे करए।
विचारलौं जे रस्‍ते-रस्‍ते दछिनवरिया बाधक खेत देखैक बहन्ने जाएब, ओही बीचमे कुरसोवालीक घर पड़ै छै, जँ कोनो सुराग बूझि पड़त तँ गप खोड़ि देबै, माने चर्चा चालि देबइ। जखने चर्चा उठत कि जहिना धिया-पुता चौमास खेतक अल्‍लू उखड़लाहा वाड़ीकेँ कियो खुरपीसँ तँ कियो ठेंठिया कोदारिसँ चलिया-चलिया किर्ड़ी तक बीछ लइए तहिना सभ बीछा जाएत...। 
यएह सोचि दछिन-मुहेँ विदा भेलौं।
संयोज नीक बैसल। कुरसोवालीक बेटा- सिंहेसरा उत्तरे-मुहेँ अबैत रहए। खुटियाएल केशो देखलिऐ आ रंग झड़ल धोतियो बूझि पड़ल। बूझि एना पड़ल जे नवका धोतीक पाइढ़ ओहिना चक-चक करैत जेहेन नव रंगलमे चक-चकाइत रहैए। लगमे अबिते मनमे भेल माइयक सराधक विषयमे सिंहेसरासँ पुछिऐ।
मुदा फेर भेल जे जँ नइ मरल होइ तखन तँ अनेरे ई कहि गरियौत जे हमरा माएकेँ जीवितेमे सराधक बात पुछैए। भाय! सरधा ने जीवितमे होइ छै मुदा सराध तँ मुइला पछातिये होइ छै। अन्‍तर एतबे ने अछि जे परक अधिकार धऽ घर चैल जाइए। आगूमे देखते सिंहेसरे बाजल–
काका, गोड़ लगै छी, माए-बापक करजासँ फारकती भेल।
माए-बापक करजा सुनि मनमे ठहकल जे निसचित माइक सराध कऽ निचेन भेल अछि। गपक पन्ना भेटल। पन्ना पकैड़ पुछलिऐ–
नीक जकाँ कर्जासँ फारकती पौलह किने?”
नीक जकाँ फारकती सुनि सिंहेसराक जेना छाती दहैल कऽ कुड़बुड़ा उठलै। बाजल-
कक्का, जिनगी भरि जेकरा सेवलक ओहो देह चोरा लेलक।
सिंहेसराक बात भाँजेपर ने चढ़ल जे की कहलक। पुछलिऐ–
से की?”
बाजल–
कक्का, तोरा सभकेँ ते बुझले छह जे माइयो आ बाबूओ दुनू परानी जिनगी भरि खुशीलाल कक्का ऐठाम खटल, जे कमाएल-खटाएल से खेलक-पीलक, हमरो पोसलक। हमरा बिआहो कऽ देलक। गाममे केते कमाइये होइ छै जे औझका लोक जकाँ गुजर कैरतौं तँए पंजाब चैल गेलौं। एम्‍हर बाबूओ मरि गेल। पनरहे दिन गेना भेल रहए, भड़ो जोकर पाइ नइ कमेने रहौं जे अबितौं, नइ एलौं। माइये आगियो देलकै आ सराधो केलकै।
सह दैत कहलिऐ–
जहिना बेटाकेँ अधिकार अछि तहिना ने माइयोकेँ अछि, नीके भेलह।
बाजल-
नीके की हएत कक्का, तखन तँ गरीब लोकक माए-बापक सराध भगवाने भरोसे होइए, सएह भेल।
झमान भऽ सिहरैत सिंहेसराक मन देख कहलिऐ-
पार-घाट तँ लगिये गेलह किने?”
झुझुआइत सिंहेसरा बाजल-
पार की लागत तखन तँ अपन हारल लोक बाजिये कऽ की करत।
जे बात बुझैक जिज्ञासा छल ओ तर पड़ि गेल। ऊपर चैल आएल पिताक सराध। माइक सराध दिस बातकेँ बढ़बैत पुछलिऐ-
माइयक कहह?”
माए सुनि सिंहेसरा विचलित होइत बाजल-
कक्का, बाउकेँ मरना थोड़बे दिनक पाछू माए दुखित पड़ि गेल। अपने गामोमे ने रही, खुशीलाल कक्का, एको दिन खोजो-पुछाइर ने केलखिन आ एक पाइक गोटीकेँ के कहए। भनसिया समाद देलक। जे पाइ कमेने रही से पठा देलिऐ, अपने जँ चैल ऐबतौं तँ ओहो कमाइ ने होइत।
बिच्‍चेमे कहलिऐ-
से ते नीके केलह।
नीक सुनि सिंहेसराक बोल ने आगू उठै आ ने पाछू होइ। हेबो केना करैत, कोनो कि समाजमे छपित बात अछि जे लोकक किरदानी भेड़िया-धसान जकाँ छै। अधलोकेँ तेते नीक कहत जे राड़ीक फूल जकाँ अपने हवामे उड़ैत अकास चढ़ि जाइए, आ अकास चढ़ल काजकेँ धकियबैत-धकियबैत खेत-कातक रस्‍ता जकाँ बहुपेड़ियाकेँ एकपेड़िया बनबैत नाओं मेटा खेते बना लइए आ जखन खोज-खबैर होइ छै ते कहैए जे सर्वेक खतियानमे ने खत्ते-खेसरा चढ़ल अछि आ ने नक्‍शामे नक्‍शे बनल अछि। मुदा सिंहेसरा से नइ केलक, अपन इमानकेँ इमनदारीसँ अङैजैत बाजल-
कक्का, तोरा लग मुँह उठबैत लाज होइए, मुदा बाप-पित्‍ती तँ तोहीं सभ ने भेलह, बेटा-भातीज जँ लगतियो करत तँ तोहीं सभ ने तेकर निमरजना करबहक।
सिंहेसराक बात सुनि जेना हृदयमे धक्का लगल। धक्को केना ने लगैत, एकटा बाल-बोध ऐसँ बेसी कहिये की सकैए। पीठ उघारि आगूमे देत जे कक्का लिअ गलती केलौं एक सए जूता मारू। मनुख विवेकी छी, लाज ओकर आभूषण छिऐ, जे अंगीकार केला पछाइत लोककेँ रहिये की जाइ छै। मनमे जेना उड़ी-बीड़ी जकाँ लगल। मुदा गुण भेल जे सिंहेसरे बाजल-
कक्का, जे बुढ़ियाक धारलिऐ, से ते करबे केलिऐ।
मुदा की धारलिऐ, की केलिऐ की नइ केलिऐ, की करक चाही, की नइ करक चाही..? एक संग अनेको प्रश्‍न मनमे नाचि उठल। नचैत मन सिंहेसराक पिता- ढोरबापर पड़ल। सुधंग लोक खुशीलालक एकटा महींसक सेवाक सोल्‍होअना भार ढोरबापर, यएह जिनगी यएह दुनियाँ। कुरसो बिआह भेल रहैन। कुरसोक जइ टोलमे बिआह भेल, ओ अगुआएल लोकक टोल, ओइमे एकघरा। पत्नीक (माने सिंहेसराक माए) चिष्‍टो-चार आ बजै-भुकैक ढंग सेहो अगुआएल। सुधंग पति पेब कुरसोवाली एक-छत्र परिवारक गारजन बनि गेलि।
सत्तैर-अस्‍सीक दशकमे मिथिलांचलमे भूमि आन्‍दोलन जोरपर छल। आने गाम जकाँ हमरो गाममे पहीपट्टीबलाक आधासँ बेसी जमीन। बटेदार जगि कऽ बटायदारी आन्‍दोलन केलक। ओना गामबलाक खेत नहि मुदा बहरबैयाक प्रलोभन जे अहीं सभकेँ सभटा खेत सुमझा देलौं, ऐ लोभमे गामक लोक संग भऽ गेल। जमीनेक लोभ कुरसोवालीकेँ सोझहामे रखि, नेता बना टोलमे ठाढ़ कऽ देलक। बुझलो बातमे कुरसोवाली लोभा गेली। बुझल बात ई जे जे खेत बटाइ करैए ओकर तँ हक बनिते छै। मुदा मुफ्तक माल केकरा गाड़ा लगै छै जे कुरसोवालीकेँ लगैत, ओ ओइ आन्‍दोलनमे चारित्रिक गुण[1] बिसैर ओइ बटाइ जमीनपर अपन हक बनबैले छोट-छोट खोपड़ीनुमा घर बनबा, ओइमे आगि लगबा, गामक तीस-पैंतीस गोरेक बीच ओइ अगिलग्‍गी केसमे हमरो नाओं घोंसिया देलक। वएह कुरसोवाली जे मोहरा बनि गाममे एते भारी फसाद केलक। तेकरे सराधक चर्च छी।
निरीह, निरदोस सिंहेसराकेँ पुछलिऐ-
बुढ़ियाक मृत्‍यु नीक जकाँ भेल किने?”
हमर बात जेना सिंहेसराक मनकेँ बेध देलकै। ओकरो अपन माइयक किरदानी मनमे ठहकैत रहइ। जहिना विश्वमोहिनी लग नारद बाबाक बगलेमे शिवजीक दूत देख बानरक मुँह बनौने रहैत तहिना बूझि पड़ल। मुदा आब उपाइये की अछि। यएह ने जे ओ गामक इतिहासक एक अंश भेल।
मृत्‍यु सुनि सिंहेसरा बाजल-
कक्का, हम जे दू सालसँ पंजाब जाए लगलौं हेन, तेकर माक खुशीलाल काकाकेँ भऽ गेलैन। ई बिसैर गेलखिन जे सरकारो नोकरीबलाकेँ जनम भरि पार लगबै छै।
सिंहेसराक बात सुनि बूझि पड़ल जे माइक पीड़ा ओकरा सता रहल छै। कहलिऐ-
से की?”
सिंहेसरा बाजल-
कक्का, जखन माए दुखित पड़ल, अपने गाममे नइ रही, घरवालीक समाद गेल, जे रूपैया रहए से पठा देलिऐ। जँ अपने गाम चैल ऐबतौं ते ओहो आमदनी केतएसँ आनितौं।
बजलौं किछु ने मुदा मुड़ी तँ डोलाइये देलिऐ। डोलैत मुड़ी देख जेना सिंहेसराकेँ सह भेटलै। बाजल-
कक्का, बेमारी आगू हम सभ सकबै, केते कमाइये अछि। बुढ़ियाक दवाइ छुटि गेलइ। पछाइत बहीन आबि अपना ऐठाम लऽ गेलै। ओहो ते हमरे जकाँ अछि। ओहो नइ सकलै। बेमारी बैढ़ते गेलइ। ओतै मरि गेल। ओतै जराओलो गेल।
जेना साँस छुटल, कहलिऐ-
तँए ने बुझने छेलौं।
भोज-भात नीक जकाँ केलहक किने?”
सिंहेसराक आँखि ढबढबाएल। बाजल-
केकरा नइ माए-बापक सेवाक लिलसा रहै छै, मुदा ओते वैभवो रहत तखन ने पार लागत।
कहलिऐ-
अखन काजक बेर अछि, तोहूँ जाह अपन काज देखहक आ हमहूँ खेत देखैले जाइ छी।
शब्‍द संख्‍या : 1227, तिथि : 15 फरवरी 2016


[1] क्‍लास कैरेक्‍टर

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