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Wednesday, January 13, 2016

एगच्‍छा आमक गाछ (कथाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

एगच्‍छा आमक गाछ


सुन्‍दरपुर गाममे सोनमा बाध अछि। ओना चारू बाधक बीचमे गाम अछि मुदा दछिन-वरिया बाध माने गामक दछिन जे बाध अछि जइ बाधमे प्रवेश करिते दछिन मुँह डेग उठत, ओइ बाधमे एकटा आमक गाछ अछि जेकरा लोक एगच्‍छा सेहो कहैए।
ओना सोनमा बाध नमगर-चौड़गर अछि, नमगरे-चौड़गर नइ, ऊँचगर-नीचगर सेहो अछि। तेतबे किए, जहिना खेत-खेतक माटि एकरंगाहो अछि तहिना भटरंगाहो तँ ऐछे, तँए ने दसो-पनरह रंगक माटियो अछि आ नीचाँ-ऊपर रहने आड़ियो-सीढ़ियो तँ बनले अछि किने। खैर जे अछि मुदा एते तँ ऐछे जे गाछक कमी नइ रहितो वृक्षक कमी तँ बाधमे ऐछे, माने खेती-पथारीक तँए ऊँचगर खेत रहितो अन्नेक खेती होइए जइमे गाछियो-बिरछी तँ भाइए जाइए। से गाछी-बिरछी नहि। डेढ़ कट्ठा परतीपर मात्र एकटा आमक गाछ अछि। एकर माने ईहो नइ जे गाछ-पात नइ अछि। अन्नोक गाछो होइते छै, पातो होइते छै। तहूमे माटिक जे भटरंगीपन छै ओ तँ आरो बेसी रंगक गाछ-पात उगबैए। जँ एकरंगाह रहैत तँ किछु समटल कारोबार, माने माटिक अनुकूल उपजा रहितै, से नइ बेसी रंगक रहने बेसी रंगक होइते छै। खैर जे छै, मुदा बाधमे एकटा आमक गाछ तँ ऐछे। एकरा नकारलो नहियेँ जा सकैए।
बाधमे असगर एगच्‍छा आमक गाछ, खूब चतरलो अछि आ नम्‍हरो अछि। ओना ओ गाछ कियो रोपलक आकि अपने जनमल, से अखैन तक गौआँ नइ फरिछा सकल अछि। कियो कहै छै बाधक जे रखबार छल ओ रोपलक, मुदा ओ बुढ़बा तँ मरि गेल। रोपलाहा गाछे ने रहि गेल, मुदा से माननिहारो हुअए तब ने...।
किछु गोटे ईहो तँ कहिते अछि जे कौआ पाकल आम आनि गुद्दा खा लेलक आ आँठी-खोंइचा छोड़ि देलक, ओही आँठीक गाछ छी...। 
मुदा लोकक मनमे जे होइत हौउ, ओ परतीपर जनमल तँ ऐछे, केकरो खास जमीनमे छै नै, तँए सबहक छी, सबहक छीहे नइ सभ छाहैरमे छहरेबो करैए आ आमोकेँ चटनीसँ पाकल धरि खेबो करिते अछि। गाछो तँ सभ रंगक होइए मुदा से नइ, ओ आमक गाछ मनुखक केतेको पीढ़ी देखलक आ केते आगूओ देखत। ओना आगूक निसचित बिसवास नइ कएल जा सकैए, जेना पैछला अछि, मुदा बिसवास नहियोँ कएल जाए सेहो तँ उचित नहियेँ हएत।
ओना, जहिना सौंसे बाधमे एकटा गाछ रहने एगच्‍छा भेल, तहिना हजार बीघाक आमक गाछीमे एकटा बेलक गाछ सेहो तँ एगच्‍छा भेबे कएल। आमेक गाछी किए, तहिना फुलवाड़ियो सभमे होइते अछि...।
एगच्‍छा रहितो ओ आमक गाछ बुर्ड़ाक तँ ऐछे। अपन चालि-बाइन धेनहि अछि। बुर्ड़ाक ई जे अनरनेबा आ धात्री जकाँ बिनु जोड़े[1] जीबैक आशो नहियेँ रखने अछि, सेहो बात नहियेँ अछि। असगरे बाधमे अछि, फड़बो करैए, मोजरबो करैए, हरियेबो करैए, फतझड़ो होइए, मुदा जीबठ बान्‍हि जीबो तँ करिते अछि। नइ-ते असगरे जेना बाधमे अछि तेना अनरनेबा आकि धात्री जकाँ वंशो उपैट गेल रहितै। सभ बबाजीए बनि गेल रहितै। होइतो अहिना छै जे जे समैक मुकावला नइ करैए ओ मेटा जाइए। ओकर वंशक बाढ़ि रूकि जाइ छै, मटियामेट भऽ जाइ छै। पंचतत्वमे विलीन भऽ जाइए। 
द्वापर युगीन एकलव्‍य जकाँ ओ एगच्‍छा आमक गाछ अपनाकेँ बुझैत। जहिना शक्‍त-शील एकलव्‍य अपनाकेँ शक्‍तिवान बनबैले शक्‍तिशालिनीक आराधना केलैन तहिना ओहो आमक गाछ असगरे बाधक नीचला डेढ़-कट्ठबा परतीपर ठाढ़ भेल अपनाकेँ बुझैत। गाछो-बिरीछक दुनियाँ तँ ऐछे। हजारो-लाखो रंगक गाछ-बिरीछक बोनाएल दुनियाँमे की सबहक वंशो आ वंशवृद्धियो एके रंगक थोड़े अछि। कोनो बीआसँ जनमैए तँ कोनो फूलसँ, कोनो पत्तासँ जनमैए तँ कोनो गाछक सीरसँ...। केकरो सिर माटिक तरमे रहै छै तँ केकरो पानिक तरमे। केकरो डारियेमे सिर होइ छै तँ केकरो फुनगीपर...।
वेचारा आमक गाछकेँ मन ठहिअए लगलै। ठहियाइते मनमे उठलै अनेरे दुनियाँक बोनमे मनकेँ वौआबै छी। तइसँ नीक जे अपन दिन-दुनियाँक बात बजबो करब, करबो करब आ जीबो करब। मन फेर ठमैक गेलइ। मुदा ठमैकते जेना तीन-बट्टीपर दिशांश लगितो छै, जइसँ पूब-पछिम भऽ जाइए आ पछिम पूब, तहिना दिशांश, छुटबो करै छै, जइसँ उत्तर-दछिनक बोध हुअ लगै छै। जे केमहरसँ एलौं आ केमहर जाएब। तहिना आमोक भक्क कनी खुजल। खुजल ई जे अपनामे अनरनेबो आ धात्रियोसँ बेसी शक्‍ति ऐछे। ओकरा दुनूकेँ जे जोड़ नइ भेटतै तँ छेहा नंगा बबाजी जकाँ भऽ जाएत, वंशो रूकि जेतै आ दुनियोँ ओकरा बिसैर जेतइ। मुदा अपना तँ से नइ अछि, सभ किछु अछि...।
सभ किछु मनमे ऐबते एनामे जेना अपन मुँह अपने देखाइत तहिना अपन शक्‍ति अपना शकलमे देखलक।
अपना धुनिमे गाछ धुनियाँक धुनकी जकाँ जिनगीक रूइयाकेँ धुनए लगल। हजारो-लाखो रंगो, भटरंगो आ चितकाबरो वंशक गाछ सभ तँ ऐछे, तहीमे ने हमहूँ एकटा भेलिऐ। जखन एकटा भेलिऐ, तखन एकेटा ने भेलिऐ। तखन दोसराइत जे ताकब से अपने दोसराइतमे किए ने इजोते-इजोत जाएब...।
जिनगीक ओ बटोही जे नमहर जिनगीक बाट टपि आबि असोथकित भऽ जाइत तहिना वेचारा आमक गाछक मन असोथकित होइत ठमकल। देहमे शके ने बूझि पड़ै जे ठाढ़ रहत। हब टुटु साइकिल जकाँ मनक चक्का ने आगूए घुसकै आ ने पाछूए ससरै। जेना आइ ओ जिनगीक हारि कबूल कऽ लेत। मुदा से भेल नइ, भेल ई जे हुब टुटू मन बाजल-
आब, ई दुनियाँ देखब कठिन भऽ गेल।
पजरेमे हूब घटू बाजल-
बुड़ि कहीं के रे! ब्रह्मा सन-सन केते ब्रह्माकेँ देखनिहार लोमस बाबा लोहिया ओढ़ि कऽ देखलैन आ तूँ एतबेमे धौना फेड़ै छेँ। एकटा पएरबला कनी नेंगरा कऽ चलत, मुदा चलत किए ने। कोनो कि लोथ छी।
हूब घटूक हब टुटु विचारकेँ वेचारा आमक गाछ विचारणीय बूझि विचारए लगल। मनमे एलै- गाछ-बिरीछक बोनाएले दुनियाँमे एकटा हमहूँ छी। रंग-रंगक रूप, रंग-रंगक चालि-ढालिक जिनगी सभकेँ अपन-अपन छै। कियो बीआसँ गाछ होइए, तँ कियो फूलसँ...।
फूलोसँ गाछ मनमे ऐबते एगच्‍छा आमक गाछ ठमैक गेल। ठमकल ई जे अपन वंशक रस्‍ता की अछि। एकटा भेल पाकल आमक सक्कत आँठीसँ, दोसर भेटबे ने करइ। मनमे उठै जे हमर वंश कि एक भग्‍गुए रहि गेल...। आगू-पाछू किछु भेटबे ने करइ। भेटबो केना करितै, अखन तकक नजैर बीये-बाइलिक देखल-सुनल छेलै। मुदा नजैर जखन आगू बढ़लै तखन बूझि पड़लै जे नै हमरो उपैतक दोसरो रस्‍ता अछि। ओ अछि बच्‍चा गाछक छातीसँ कलशल डारि सटा देने नव गाछ बनि नव जीवन सेहो तँ ऐछे। तखन जिनगीसँ निराश किए हएब। मुदा जिनगी लेल जे समए-शक्‍तिसँ मुकावला करए पड़ै छै ओकर अनेको रूपमे दूटा कारण प्रमुख अछि। एक अछि समए-शक्‍ति जइमे जिनगी निहीत अछि आ दोसर अछि दानब-मानब वृति...।
एका-एक ओइ एगच्‍छा आमक गाछक मन फुला गेल। फुलाइते अठ्लाइत बाजल-
हम लाल छी।
जुहियाइत जूही बाजल-
जेहने सतरंगी रंग तेहने सतरंगी चालियो ने छौ। मरदक लाल जहिया बनमेँ, तहिया बुझबौ।
मनमे उठैत खौंझकेँ रोकैत गाछ विचारए लगल। भाय सात अरब लोकमे केकरो एते फुरसैत छै, जे दोसरो दिस ताकत आकि देखत। बाप भरि दिन बेटा-ले पसेना छोड़बैए ओकरा तँ एते फुरसैते ने छै जे अपना बेटाकेँ कम-सँ-कम अपनो वंशक इतिहास आ समाजिक सरोकार बुझा सकत आ अनका कोन मतलब छै।
जहिना कोनो हरेलहा बात, सोचै-विचारै काल जखन मन पड़ै छै, तखन अनेरे अपनो मनमे फुलाइत हँसी उठै छै तहिना ओइ एगच्‍छा आमक गाछकेँ सेहो भेल। मन पड़लै अपन लगौनिहार रखबार, केना असकरे बाधमे ठाढ़ छी, जहिना सभ-ले अन्‍हर-विहाड़ि, झाँट-पाथर छै तहिना ने हमरो-ले अछि...।
एगच्‍छा आमक गाछक आगू घुसलक मन बुदबुदाएल-
अपन सर्वांग जिनगीक रक्‍छा अपने करैक लूरि-बूधि हएत तखन ने रकछित रहि सकै छी।
लगले दोसर मन टोकलक-
मातृभूमि केकरा कहै छै, ओकर रकछक के छी?”
अउत्तरित प्रश्‍न आमक गाछक मनमे उठए लगल। मुदा कलशक डारिक नव गाछक रोहानी देख मन रहैम गेलइ। रहैमते फुला गेलइ। फुलाइते उठलै-
अदौसँ जीव-जन्‍तुक संग रमैत एलौं अछि आ आगूओ अहिना रमता जोगी बनि रमैत एगच्‍छा नइ सत्-गच्‍छा बनि इन्‍द्रधनुष जकाँ अकासमे फुलाएब।
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शब्‍द संख्‍या : 1167, तिथि : 31 दिसम्‍बर 2015



[1] प्राग क्रिया

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