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Sunday, January 3, 2016

...रामकृष्‍ण बाबूक विचारक सह पबैत धीरेन्‍द्र कहलकैन-
सर, अपने साहित्‍यक विद्वान विशेषज्ञ रचनाकार छिऐ, जे शैली आ जइ विषयकेँ कथा बनौलिऐ, ओ तँ ओहनो रचनाकार रचि सकै छैथ, जिनका अपने सन विशेषज्ञता नइ छैन।
धीरेन्‍द्रक विचारकेँ मोड़ैत रामकृष्‍ण बाबू बजला-
देखियौ धीरेन्‍द्र, रचना मौलिक हेबा चाही। जहिना दुनियाँ अछि, जे सभ दिनसँ अछि आ सभ दिन रहत। अहीमे सभ दिन घटनो घटैत रहैए आ घटबो करैत रहत। मुदा जे मौलिक अछि ओ मौलिक ऐछो आ रहबो करत।
रामकृष्‍ण बाबूक विचारकेँ धीरेन्‍द्र मने-मन विचारए लगला जे थोड़ेके शब्‍दमे बहुत बात बाजि गेला। मुदा सभ शब्‍दक एक लड़ी बनत तखने ने विचारक झड़ी झड़त। तेकरा जोड़ै-गुणैमे धीरेन्‍द्रक मन ठमैक गेलैन। ओना धीरेन्‍द्रक देल चारू कथा पढ़ि कऽ रामकृष्‍ण बाबूकेँ झलैक गेल छेलैन जे अपन संग्रहक प्रभाव धीरेन्‍द्रपर ओते नइ छोड़लक जेते ब्रज किशोर वर्मा मणिपद्म’, प्रभास कुमार चौधरी, रमानन्‍द रेणु, राजकमल, प्रेमचन्‍द, फणिश्वर नाथ रेणु, भीष्‍म सहनी, राजेन्‍द्र यादव, राहुल संकृत्‍यायन इत्‍यादिक छाप पड़ल छै। अपनाकेँ सम्‍हारैत रामकृष्‍ण बाबू बजला-
मणिपद्म तँ मिथिला रत्न छैथ, मुदा..?”
जिज्ञासा करैत धीरेन्‍द्र पुछलकैन-
मुदा की?”
मणिपद्मजीक प्रति रामकृष्‍ण बाबूकेँ असीम श्रद्धा छैन, श्रद्धावान पुरुखक श्रद्धावान-कृत्‍यक एको चुटकी सिमटी-बाउल भवन निर्माणमे श्रद्धावत केने तँ चानकेँ आरो चारि चान बनबैए मुदा से...।
अपनाकेँ सम्‍हारैत रामकृष्‍ण बाबू बजला-
मणिपद्मजी जिनगीक एकभग्‍गु रचैता छला।
रामकृष्‍ण बाबूक बात सुनि धीरेन्‍द्रक उत्कण्‍ठित मन चहेलैन-
से की?”    
हृदैकेँ हियासैत रामकृष्‍ण बाबू मणिपद्मजी आ प्रभास कुमार चौधरीपर नजैर फेकलैन। फेकते मनमे बरसाकालक पानिक बुलबुला जकाँ कखनो नजैर मणिपद्मपर पहुँचैन तँ कखनो प्रभासजीपर। मुदा ई तँइए ने कऽ पबै छला जे मणिपद्मजीकेँ मुँह बनाबी आकि प्रयासजीकेँ। माने ई जे मणिपद्मजी दिससँ बात चाली आकि प्रभाषजी दिससँ।
धीरेन्‍द्र हिया-हिया रामकृष्‍ण बाबूपर नजैर फेकैथ मुदा मन बजैसँ ई कहि रोकि दैन जे भरिसक कोनो गंभीर विचारक ओझराएल ओझरीकेँ सोझरा रहला अछि...।
हँ-निहँस करैत रामकृष्‍ण बाबू बजला-
मणिपद्मजी एकभग्‍गु रचनाकार छला जखन कि प्रभासजी से नइ छला।
तेहेन गोल-मटोल विचार रामकृष्‍ण बाबू धीरेन्‍द्रक आगूमे रखलैन जे धीरेन्‍द्र अकबका गेला। ई की कहि देलैन? मुदा लगले मन गवाही दैत धीरेन्‍द्रकेँ चरियौलक। चरियाइते धीरेन्‍द्र बजला-
कनी सोझरा कऽ दुनू गोरेक चर्च करियौ?”
धीरेन्‍द्रक बात जेना रामकृष्‍ण बाबूकेँ नीक लगलैन। सोझरा कऽ कहियौक मतलब धीरेन्‍द्रक रहैन भाषाक स्‍तरपर चर्च।  
रामकृष्‍ण बाबू बजला-
मणिपद्मजी केँ जिनगीक तीन चौथाइ आर्थिक भार माने खेनाइ, पीनाइक संग आरो सभ खर्च-बर्च सभ दिन हुनकर पिता जुमबैत रहलैन। मुदा अपना जिनगीक अमलदारीमे अपन केते रचना प्रकाशित करा, केते लोकक बीच पहुँचला?”
बजैत-बजैत रामकृष्‍ण बाबू गंभीर भऽ गेला। जेना अपन जिनगी अपना सोझमे नाचए लगलैन। नाचए ई लगलैन जे अपनो तँ दू संग्रह जोकर कथा, एक संग्रह जोकर कविता लिख कऽ राखल अछि। जखन कि मोट दरमाहाक नोकरी रहल! विचारकेँ आगू नइ बढ़ा बातकेँ मोड़ैत बजला-
धीरेन्‍द्र, रचना आ रचनाकार दुनू दू धुरी छी। ऐ धुरीक बीच अनेको दशा-दिशा अछि। मुदा जँ रचनाकार स्‍वयं रचित भऽ किछु रचैथ आ तहूसँ कनी आगू बढ़ि जँ शब्‍दक संग रचैथ तँ दुनूमे किछु-ने-किछु कमी एबे करत...।
धीरेन्‍द्र-
सर, नीक जकॉं नइ बूझि पेलौं?”
रामकृष्‍ण बाबू-
सत्‍य ओतइ अकाट् अछि जेतए शब्‍द नइ पहुँच पबैए। मुदा रचना-ले तँ शब्‍दे संगी हएत। नइ तँ एक-दोसराक बीच विचार बढ़त केना
किरिण डुबि गेल। मुदा अन्‍हार नइ पसरल, कनी-मनी जाड़क हल्‍फी सेहो हफुअए लगल...।
रामकृष्‍ण बाबूकेँ धीरेन्‍द्र कहलकैन-
सर, औझका जे गप-सप्‍प भेल ओ अविस्‍मरणीय रहत। समए भेटलापर फेर दोसर दिन...।
धीरेन्‍द्र उठि कऽ ठाढ़ भेला। ओना रामकृष्‍ण बाबू एकबेर आरो चाह पीबैले कहलखिन मुदा चाहकेँ टारैत धीरेन्‍द्र कहलकैन-
सर, चाहक पाछू पड़ने अन्‍हारमे पड़ि जाएब।
रामपुरक सीमान टैपते धीरेन्‍द्रक मनमे उठलैन। करीब दस बर्खसँ रामकृष्‍ण बाबूसँ सम्‍बन्‍ध बनल अछि, आबा-जाही अछि। मुदा सम्‍बन्‍धमे जे प्रगाढ़ता एबा चाही से कहाँ आबि रहल अछि...। मन ठमकलैन। ठमकल ई जे सम्‍बन्‍धक प्रगाढ़ताक जे दिशा अछि तइमे कमी भऽ रहल अछि तँए नै प्रगाढ़ता आबि रहल अछि। की कमी? ओना अखन तक कृष्‍णपुरक कार्यक्रमक पछाइत तीनटा आरो कार्यक्रममे दुनू गोरे संग छेलौं। मुदा आबा-जाहीमे एकभग्‍गुपन तँ ऐछे। हमरा हिसाबे रामकृष्‍ण बाबूकेँ सवाड़ियोक सुविधा छैन्‍हे। ओना जे दूरी दुनू गोरेक गामक आकि घरक अछि, तइले सवाड़ीक खगतो ने छै, मुदा किछु अन्‍दरूणी विचारोक सम्‍भावना तँ ऐछे...।
सम्‍बन्‍धमे प्रगाढ़ता अनैले तँ सम्‍बन्‍धिक बीच दुनू दिससँ आबा-जाहीक जरूरत होइए। से जखन हएत तखने ने सम्‍बन्‍धमे प्रगाढ़ता आएत। ओना रामकृष्‍ण बाबू कौलेजमे कार्यरत छैथ, तँए समैयोक अभाव तँ छैन्‍हे। मुदा ई तँ गाम-घरक बात छी।
  
शब्‍द संख्‍या : 2091, तिथि : 06 दिसम्‍बर 2015























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