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Monday, January 26, 2015

लाज (एकांकी) राजदेव मण्‍डल

लाज


(एकांकी-नाटक)



राजदेव मण्‍डल







पहि‍ल संस्‍करण : २०१

सर्वाधि‍कार © श्री राजदेव मण्‍डल


अक्षर संयोजक. श्री उमेश मण्‍डल
वार्ड न. ०६ निर्मली (सुपौल)
मो. ९९३१६५४७४२



LAJ, One-Act Play by Rajdeo Mandal.


 

 



दू शब्‍द-

 
इष्‍ट-मित्रक इच्‍छा छल- नाटक खेलेबाक। हुनका सबहक आग्रहक आदर करैत एकांकी-नाटक लिखबाक प्रयास केलौं। अभ्‍यासक अभाव रहितो एकटा प्रयाय...।

-राजदेव मण्‍डल
१४ जनवरी २०१५


परिचए-पात :: राजदेव मण्‍डल



जनम : १५ मार्च १९६० ईं.मे। पिता : स्‍व. सोनेलाल मण्‍डल उर्फ सोनाइ मण्‍डल। माता : स्‍व. फूलवती देवी। पत्नी : श्रीमती चन्‍द्रप्रभा देवी। पुत्र : निशान्‍त मण्‍डल, कृष्‍णकान्‍त मण्‍डल, वि‍प्रकान्‍त मण्‍डल। पुत्री : रश्मि‍ कुमारी। मातृक : बेलहा (फुलपरास, मधुबनी) मूलगाम : मुसहरनि‍याँ, पोस्‍ट- रतनसारा,  भाया- ि‍नर्मली, जि‍ला- मधुबनी। बिहार- ८४७४५२ मोबाइल : ९१९९५९२९२० शि‍क्षा : एम.ए. द्वय (मैथि‍ली, हि‍न्‍दी, एल.एल.बी)
ई पत्र : rajdeokavi@gmail.com
सम्‍मान : अम्‍बरा कवि‍ता संग्रह लेल विदेह समानान्‍तर साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार वर्ष २०१२क मूल पुरस्‍कार तथा समग्र योगदान लेल वैदेह सम्‍मान-२०१३ प्राप्‍त।
प्रकाशि‍त कृति : (१) अम्‍बरा- कवि‍ता संग्रह (२०१०), (२) बसुंधरा कवि‍ता संग्रह (२०१३), (३) हमर टोल- उपन्‍यास (२०१३) श्रुति‍ प्रकाशनसँ प्रकाशि‍त।
अप्रकाशि‍त कृति‍- चाक (उपन्‍यास), त्रि‍वेणीक रंग (लघु/वि‍हनि‍ कथा संग्रह)।

 
पात्र परिचए :: लाज (एकांकी)


पुरुष पात्र-
१.      हरिचरण- गामक किसान
२.      धिरबा- हरिचरणक बेटा
३.      कुलानन्‍द— गामक सम्‍पन्न जमीनदार
४.      भोगेन्‍दर- कुलानन्‍दक बेटा
५.      बिसेखी- गामक एकटा मजदूर
६.      श्‍यामबाबू- शिक्षक

स्‍त्री पात्र-
१.      चनपटीवाली- हरिचरणक पत्नी
२.      सबिता- हरिचरणक बेटी

(दू-तीनटा शिक्षक, चारिटा ग्रामीण, डाक्‍टर, नर्स, दस-बारहटा छात्र एवं छात्रा।)


दृश्‍य- १



समए- दिन।
स्‍थान- हरिचरणक घर।
(चनपटीवाली भानस-भात कऽ बैसल अछि। हरिचरण अबैत अछि।)
चनपटीवाली-    क गेल छेलिऐ? खेबै की नै?
हरिचरण-      हँ... हँ। कनी हाथ-मुँह धोइ छी। धिरबा स्‍कूल गेल की नै?
चनपटीवाली-    हँ। ऊ तँ दसे बजे खा-पी कऽ चलि गेल।
हरिचरण-      ऊ छौड़ी, सवितियाकेँ नै देखै छी।
चनपटीवाली-    सबितिया तँ गाए-बकरी चरबैले बाध दिस गेल। की भेलै से?
हरिचरण-      हेतै की। बेटी-चाटीकेँ कनी दाबि-चापि कऽ राखी। देखै नै छिऐ गामक हवा।
चनपटीवाली-    हे, हमर कुल-खनदान ओहन नै अछि। जाउ अहाँ हाथ धोने आउ। 
            (हरिचरण चलि पड़ैत अछि।)
             
पटाक्षेप।

दृश्‍य- २
स्‍थान- गामक विद्यालय।
समए- दिन।
(स्‍कूलक आगूमे तीन-चारि शिक्षक कुरसीपर बैसल अछि। आपसी गप-सप्‍प कऽ रहल अछि। किछु धिया-पुता पढ़ि रहल अछि आ किछु बाहरी भागमे खेल रहल अछि)
श्‍याम बाबू-     यौ हीरा बाबू, अहाँ जे अपना बचियाक बिआहक गप करै छेलिऐ, तइमे लेन-देन फाइनल भेल?
शिक्षक दू-     धुर की कहब। वरक माँग अलग आ वरक बापक माँग अलग। टका-पैसा लाउ। मोटर साइकिल लाउ, सोना लाउ, लैपटॉप लाउ। की कहूँ, हथियाक सूढ़ जकाँ डिमान्‍ड बढ़ले जा रहल अछि। हे यौ, जे बेटीक बिआह करैत अछि से बूझू जे जमपुरीसँ घूमि कऽ अबैत अछि।
            (एकटा छात्र लगमे अबैत अछि)
छात्र एक-      यौ मास्‍टर साहैब, ई छौड़ा हमरा गारि पढ़ै छै।
श्‍याम बाबू-     तूँ सभ गारि पढ़ैले एलही आकि पढ़ैले? (छौंकी देखबैत) हमरा सभ गप्‍प करै छी। ऐठामसँ जो जल्‍दी।
छात्र दू-       माहटर साहैब, पाँच मिनट।
(जोरदार अवाजमे कहैत विदा होइत अछि।) 
शिक्षक दू-     (छौंकी देखबैत) बैस चुपचाप नै तँ देखै छीही छौंकी।
छात्र दू-       नै जाए देबै तँ हम अहीठाम लगही करि देब।
शिक्षक दू-     पढ़ै छीही कथीले। जो ने लघीए करैत रहिहेँ। 
(शिक्षक सभ पुन: गप-सप्‍प करए लगै छथि। एकटा हरबाहा कान्‍हपर हर लेने ओही बाटसँ जा रहल अछि।)
हरबाह-        यौ माहटर साहैब, अहाँ सभ गप्‍प कटाबलि करैत रहू। बाहरमे छौड़ा सभ मारापीटी करैत अछि। अहिना चलै छै स्‍कूल यौ...?
शिक्षक तीन-    हे, अहाँ जा कऽ हर जोतू (क्रोधमे) अहाँ स्‍कूलक भाँज की बुझबै यौ।
हरबाह-        हँ हँ छौड़ा सभ तँ भैंसवार बनबे करतै। अहाँ फोकटमे रूपैआ लैत रहू। कियो कहैबला तँ अछि नै। 
शिक्षक तीन-          (छौंकी लऽ कऽ ठाढ़ होइत) कहै छी चल जाउ ऐठामसँ।
हरबाह-        यौ अहाँ छौंकी देखबै छी। हमरो हाथमे हरबाही पेना अछि। 
श्‍यामबाबू-      हे यौ की लगल छी। जाउ ऐठामसँ।
हरबाह-        हमरा थोड़े ओते फुरसत अछि। हम अपना काजकेँ भगवान बुझै छी। अहूँ सभ अपना काजकेँ भगवान बुझियौ। बेमतलबमे अबेर भऽ गेल। जाइ छी।
(हरबाहा भनभनाइत चलि जाइत अछि।)
(शिक्षक एकटा बोर्डपर लिखैत अछि संगे पढ़बैत अछि। सबिता बकरीकेँ एकटा गाछमे बान्‍हि स्‍कूलक खिड़कीसँ सभ देखि-सुनि रहल अछि।)
श्‍यामबाबू-      ई सभटा पढ़ेलहा काल्हि मुँह-जबानी सुनबौ।
(शिक्षक सबिताकेँ देखि लैत अछि। जोरसँ सोर पाड़ैत अछि)
            एमहर सोझहामे आ। के हुलकी मारै छँह?
(सबिता डेराइत सोझहामे अबैत अछि)
श्‍यामबाबू-      तोहर नाम की छियौ? केकर बेटी छँह? 
सबिता-       हम सबिता छी। हमरा बाबूक नाम श्री हरिचरण अछि।
श्‍यामबाबू-            ऐठाम कथीले एलही? 
सबिता-       यौ मास्‍टर साहैब। हमरो पढ़ऽ दिअ।
श्‍यामबाबू-      पढ़बें, ई तँ नीक गप। अच्‍छा कह, पाँच जोड़ पाँच केतेक भेलै।
सबिता-       दस भेलै माहटर साहैब।
श्‍यामबाबू-      दिमाग तेज छौ। तोराले परियास करबाक चाही। घरपर जेबौ, तोरा बापकेँ समझबैले। अखनी तूँ जो। 
            (सबिता चलि दैत अछि। बर्खाक छोट-छोट बून गिरए लगैत अछि। छात्र सभ भागए लगैत अछि।)
एकटा छात्र-    यौ माहटर साहैब। बरखा शुरू भऽ गेल। हम भागै छी। अहूँ भागू। 
(कहैत पड़ाइत अछि।) छुट्टी... छुट्टी...। 

पटाक्षेप।

दृश्‍य- ३
स्‍थान- हरिचरणक घर।
(शिक्षक-एक जे श्‍यामबाबूक नामसँ जानल जाइत अछि, प्रवेश करैत अछि)
श्‍यामबाबू-      हरिचरणजी छी यौ। (जोरसँ चिकरैत अछि।)
हरिचरण-      (अँगनासँ बाहर निकलैत) मास्‍टर साहैब, प्रणाम-प्रणाम। आउ बैसू। कहू, हमर छौड़ा ठीकसँ पढ़ैत अछि किने?
श्‍यामबाबू-      हँ हँ, नीकसँ पढ़ैत अछि। हम दोसरो काजसँ आएल छी।
हरिचरण-      कहू ने, आओर की बात छै। (अँगना दिस तकैत जोरसँ बजैत अछि।) सुनै छिऐ सबितियाक माए। चाह बनौने आउ। (श्‍यामबाबू दिस तकैत) कहू मास्‍टर साहैब, की कहै छी?
श्‍यामबाबू-      अहाँक बेटी बड्ड संस्‍कारी अछि। बुद्धियोमे तेज। पढ़त-लिखत तँ जरूर नाम रोशन करत। काल्हिसँ अोकरा स्‍कूल भेजू। 
हरिचरण-      यौ मास्‍टर साहैब, बेटी की पढ़तै। ओकरा घर-अँगनाक काजसँ फुरसत कहाँ होइ छै। 
श्‍यामबाबू-      फुरसत देबै तब ने पढ़तै। हे यौ, ऐ देशक बेटी तँ देशसँ विदेश धरि अपन नाम चमका रहल अछि। 
हरिचरण-      हे यौ, ओहन पलिवारो रहै छै तब ने होइ छै। हमर तँ समाजो तेहेन अछि जे बेटीकेँ घरसँ निकलैत देखि खाली दोखे लगौत।
श्‍यामबाबू-      दोख लगौलासँ की हेतै। अपन-अपन चरित्र होइ छै। लोकक कहलासँ नीक बेकती अधला भ जेतै। हे यौ आब तँ सरकार, कानून सभटा ऐ दिशामे सहयोग कऽ रहल अछि।
हरिचरण-      बेटाकेँ पढ़बैमे तँ जुमबै ने करैए छी आ बेटीकेँ...।
श्‍यामबाबू-      देखियो, बेटा-बेटीमे कोनो अन्‍तर नै होइ छै। गाछ रोपबै तब ने फल भेटत। 
(हरिचरणक स्‍त्री चाह लेने आबि जाइत अछि।)
हरिचरण-      अँगनामे रहै छै तँ माइयोकेँ थोड़-बहुत काज सम्‍हारि दइ छै। असगरे तँ...।
श्‍यामबाबू-      यौ काजो करतै अा पढ़बोकरतै। खरचो बेसी नै छै। सरकारी सहयोग भेटै छै। 
चनपटीवाली-    बात मानि लियौ। माहटर साहैब अधला नै कहैत हेथिन।
हरिचरण-      ठीके छै। जँ सभ कहै छी तँ स्‍कूल जेतै। 
श्‍यामबाबू-      खुशी भेल। काल्हिसँ समैपर स्‍कूल भेजू। 
            (एक-दोसराकेँ प्रणाम करैत श्‍यामबाबू विदा भऽ जाइ छथि।) 
पटाक्षेप।

दृश्‍य- ४
स्‍थान- स्‍कूल।
समए- दिन।
            (शिक्षक पढ़ा रहल छथि। छात्र आ छात्रा सभ पोथी, कौपी, लेने पाँतिमे बैसल अछि।)
शिक्षक दू-     जे सवाल बनबैले देने छियो, जल्‍दी बना कऽ ला, जे सभसँ पहिने लाबबेँ से तेजगर कहेमेँ आ जे सभसँ पाछू देखेमेँ तेकरा छौंकी लगतौं। 
सबिता-       माहटर साहैब, हम सवालकेँ हल कऽ लेलौं। 
(ठाढ़ भऽ कऽ कौपी देखबैत अछि।)
शिक्षक दू-     देखही रौ छौड़ा सभ। मेहनतक फल। किछे दिनमे सबितिया सभसँ आगू भऽ गेलौ। एकरे कहै छै कादोमे कमल फुलेनाइ।
धिरबा-        माहटर साहैब हमहूँ हिसाब बना लेलौं। 
शिक्षक दू-     बनेलेँ तँ किन्‍तु पाछूसँ। तोरा तँ पहिने एबाक चाही, तोहर बहिन तँ किछे दिन पहिनेसँ स्‍कूल आबए लगलौ। तूँ तँ कहियासँ ऐठाम पढ़ै छेँ। 
छात्र दू-       माहटर साहैब, भोगेन्‍दर हमरा बिठुआ काटि लेलक। 
शिक्षक दू-     हँ-हँ बिठुआ काटतौ। आर की करतौ। एकर बाप कुलानन्‍द बाबू तँ कहैत रहै छै जे हमरा किछोक कमी नै अछि। बेटाकेँ चारि-चारिटा टीसन धरौने छी। आ बेटा तेहेन भुसकोल छै जे पाछूमे बैसि कऽ बिठुआ कटै छै।
(मुड़ी उठा कऽ देखैत)
हे रौ भोगेन्‍दरा, ला कौपी। हिसाब बनौलेँ?
भोगेन्‍दर-      यौ माहटर साहैब, अहाँक सवाल गलत अछि। 
शिक्षक दू-     आँइ! सबाले गलत अछि।
सबिता-       यौ माहटर साहैब, ई तँ भरि दिन लोकक बाड़ीक लताम तोड़ैत अछि नै तँ परतीपर क्रिकेट खेलैत रहै छै। एकरा बुते कहूँ सवाल बनै। तँए सवालेकेँ गलत कहै छै।
शिक्षक दू-     ठीके, ई छौड़ा खचरपनी करै छै। रौ ला तँ कौपी। की गलत छै। 
भोगेन्‍दर-      हिसाब बनतै तेकर बाद देखाएब। कोनो की हम बनरनी छी जे चट दऽ कूदि कऽ देखा देब।
सबिता-       माहटर साहैब, सुनै छिऐ। हमरा बनरनी कहै छै।
भोगेन्‍दर-      लगै छी बनरनी सन। तँ कहबौ बनरनी। देखही रौ बनरनीकेँ।
शिक्षक दू-     (उठि कऽ चारि-पाँच छौंकी भोगेन्‍दरक पीठ आ बाँहिपर लगबैत)
गामोपर बदमासी आ स्‍कूलोमे खचरपनी। ऐठाम बिठुआ कटैले अबै छेँ आकि पढ़ैले? हमरो सोझहामे लुचपनी।
भोगेन्‍दर-      हे माहटर साहैब, हम कहि दइ छी। ई छौड़ी हमरा मारि खुआ रहल अछि। एकरो ठीक करि देबै। जाइ छी, बाबूकेँ सभटा गप्‍प कहबै।
शिक्षक दू-     (छौंकी उठबैत) जो, पहिने बाबूकेँ कहि आबही।
भोगेन्‍दर-      (विदा होइत अछि) कहि दइ छी, हम सभकेँ ठीक कऽ देब। हमरो नाम भोगेन्‍दरा छिऐ। (चलि दैत अछि)
(घण्‍टी टुनटुनाइत अछि।)
शिक्षक दू-     जाइ जो। टिफिन भऽ गेलौ। 
            (छात्र सभ बाहर दि चलि दैत अछि।)

पटाक्षेप।

दृश्‍य- ५
स्‍थान- स्‍कूलक बाहरी भाग।
समए- दिन।

            (शिक्षक सभ स्‍कूलसँ बाहर सड़क दिस जा रहल अछि। हरिचरण अपना बेटी सबिताक संगे दोसर दिससँ अबैत रहैए। ओकरा पाछू एकटा ग्रामीण बिसेखी अछि। सबिताक कपड़ा-लत्ता फटल अछि।)
हरिचरण-      प्रणाम, मास्‍टर साहैब। (सबिता कानि रहल अछि।)
श्‍यामबाबू-      प्रणाम, हरिचरणजी। सबिता किए कानि रहल अछि? की भेल?
हरिचरण-      हम तँ ओही दिन कहने छेलौं जे अपना बेटीकेँ नै पढ़ाएब। अहाँ हमरापर बड्ड जोर देलिऐ। तेकर फल देखि लियौ।
श्‍यामबाबू-      गप कहबै तखनि ने बुझबै। भेलै की?
हरिचरण-      हेतै की। गरीबक धिया-पुताकेँ पढ़बाक एहेन अधिकार छै। जे देखि लियौ। कुलानन्‍द बाबूक बेटाक किरदानी। ओ हमरा बेटीकेँ मारैत-मारैत बाटमे खसा देने छेलै।
श्‍यामबाबू-      कोन गपक झगड़ा भेलै?
हरिचरण-      सुनै छी, जे कुलानन्‍द बाबूक बेटाक बारेमे सबितिया किछो बजल रहै। तही कारणे अहाँ ओकरा मारने रहिऐ।
श्‍यामबाबू-      कम्‍पलेन केने रहै। सबितियाक बातो साँचे छेलै। ऊ छौड़ा ठीके बदमाश अछि।
हरिचरण-      बदमाशी केनाइ तँ धनिकक धिया-पुताक सिंगार छिऐ।
श्‍यामबाबू-      ई कोन गप भेलै। अधला गपक तँ विरोध हेबाक चाही। 
हरिचरण-      देखै नै छिऐ। हमर बेटी विरोधमे बजलै तँ केहेन दशा भेलै। मास्‍टर साहैब, नीक होइतै जे हम अपना बेटीकेँ नै पढ़बितौं एकरा कपड़ा-लत्ताक हालत देखियौ।
(आँखिमे नोर भरि जाइत अछि।)
की हेतै पढ़ा क?
श्‍यामबाबू-      एहेन गप नै बाजू। नीक काजमे अहिना अड़चन होइ छै। अहाँ अपना बेटीकेँ पढ़ाउ। हम कहै छी- अहाँक बेटी नाम रोशन करत।
हरिचरण-      केना पढ़ेबै यौ मास्‍टर साहैब?
श्‍यामबाबू-      अहाँ िचन्‍ता नै करब। हम कुलानन्‍द बाबूसँ भेँट करैले जाइ छी। चलू यौ बिसेखीजी, हमरा संगे।
बिसेखी-       हँ-हँ चलू। (सभ कियो विदा भ जाइ छथि।)

पटाक्षेप।

दृश्‍य- ६


स्‍थान- कुलानन्‍दक घर।
समए- दिन।
(कुलानन्‍द अपन दरबज्‍जापर असगरे कुरसीपर बैसल छथि। कनेक हटि क दूटा हथटुट्टा, पुरान कुरसी रखल अछि। शिक्षक श्‍यामबाबूक संग बिसेखी प्रवेश...।
श्‍यामबाबू-      प्रणाम यौ कुलानन्‍द बाबू।
कुलानन्‍द-      (मुड़ी उठा क देखैत) प्रणाम मास्‍टर साहैब। प्रणाम-प्रणाम!!
(व्‍यंग्‍य करैत) वाह! बिसेखीओकेँ देखै छी। हे रौ बिसेखी! कनी कुरसी ला ओमहरसँ। मास्‍टर साहैब बैसता।
(बिसेखी कुरसी आनि कातमे ठाढ़ भ जाइत अछि।)
श्‍यामबाबू-      हमरा सभ एकटा विशेष काजे आएल छी।
कुलानन्‍द-      बिना कारणे टिटही थोड़े लगै छै। हम बुझै छी। रौ बिसेखिया मुँह किए तकै छेँ, बाज ने की बात छिऐ?
बिसेखी-       की कहब मािलक। अहाँक भोगेन्‍दर बदमाशी केलक। ओ हरिचरणक बेटीकेँ बड्ड मारि मारलखिन।
कुलानन्‍द-      हे रौ हमर बेटा कोनो बताह छै। जे बिना कारणे केकरो पीटतै। ओकरो बेटी खचरपन्नी केने हेतै।
श्‍यामबाबू-      ओ तँ सिरिफ भोगेन्‍दरक कम्‍पलेन केने रहै। 
बिसेखी-       धिया-पुताकेँ हाँटि-दबाड़ि देबाक चाही। एनामे धिया-पुता मनबढ़ू भ जाइत अछि।
कुलानन्‍द-      तू हमरा सिखबै छेँ। ऊ स्‍कूल हमरा जमीनपर ठाढ़ छौ। हम मदति केलियौ तँ स्‍कूल बनलौं। आइ हम अपने धिया-पुताकेँ मारि-पीट क भगा देबै!!!
श्‍यामबाबू-      भगबैले कहाँ कहै छी। कनी समझा-बुझा देबै तँ नीक रहतै।
कुलानन्‍द-      हमर गाम छी। हम नीक-अधला बुझै छिऐ। हरिचरणा बेटाकेँ तँ पढ़ाइए ने सकैए आ बेटीकेँ केतएसँ पढ़ाएत। ओकरा कारणे हम भोगेन्‍दरकेँ मारबै? ईह! बड़ छोट से उनचास हाथ!!
बिसेखी-       कनी बेसी गलती भ गेलै मालिक। मारैत-मारैत सबितियाकेँ सभटा कपड़ा-लत्ता फाड़ि देने छै।
कुलानन्‍द-      ओ, आब बुझलौं। कपड़ा-लत्ताकेँ हमरा दाम लगत! सएह ने रौ?
बिसेखी-       से हम कहाँ कहै छी। 
कुलानन्‍द-      तूँ की कहै छेँ से हम बुझै छिऐ। दुआरिपर आबि क उपराग देलेँ। मास्‍टर साहैबक सोझहामे की कहबौ। यौ मास्‍टर साहैब हमर गाम छी। हम सभ गप बूझि-समझि लेबै। अहाँ सभ ऐठामसँ अखनि चलि जाउ।
            (मास्‍टर साहैबक संग बिसेखी चलि जाइत अछि।)

पटाक्षेप।

दृश्‍य- ७



स्‍थान- हरिचरणक घर।
            (हरिचरण अपना साढ़ू संगे दुआरिपर बैसल अछि। साढ़ू रघुवीर घड़ीमे समए देखैत अछि।)
रघुवीर-       साढू! हम तँ किछुकालक बाद चलि जाएब। एकटा गप कहबाक छल।
हरिचरण-      हँ-हँ- कहू की बात?
रघुवीर-       हमर पत्नी तँ बेमार रहैत अछि। आ अखनि गर्भवती अछि। असगरे बेचारीकेँ बड्ड दिक्कत होइ छै। हम सरकारी सेवामे छी। कखनि घरपर आएब तेकर कोनो ठेकान नै। एहेन परिस्‍थितिमे...।
हरिचरण-      अहाँ की कहए चाहै छी?
रघुवीर-       अहाँ छोटकी बचियाकेँ हमरा घरपर जाए दैतिऐ तँ पत्नीकेँ सहारा भ जइतै।
हरिचरण-      ओ तँ पढ़ै छै। (निसाँस छोड़ैत) ओना लड़कीकेँ पढ़ौनाइ बड्ड कठिन छे। मुदा सबिताकेँ पढ़बए पड़तै। किए तँ ओ तेजगर छै।
रघुवीर-       तेकर चिन्‍ता अहाँ नै करू। हमहूँ सर्विस करै छी। शहरमे पढ़ौनाइ असान छै। टाइमपर पढ़बो करतै आ अपना मौसीकेँ देख-भालो करतै। पत्नीआंे असगर नै रहतै। अनमना लगल रहतै।
हरिचरण-      कहै तँ छी ठीके किन्‍तु अपन धिया-पुता अपने लग ठीक रहै छै। पढ़ाइमे खरचो तँ लगै छै।
रघुवीर-       खर्चाक िचन्‍ता नै करू साढ़ू। हमरो किछोक अभाव नै अछि। सबिता जेते धरि पढ़तै सभ खर्च-वर्च हमर।
            (हरिचरणक पत्नी चाह लेने अबैत अछि। ठमकि क सभ सुनि लैत अछि।)
पत्नी-         आब एतेक जिद्द करै छथिन तँ जाए दियौ सबितियाकेँ। सुनने नै छिऐ जे माए मरे आ मौसी जिऐ।
            (सबिता ओनएसँ दौगल अबैत अछि। हरिचरण ओकरा रोकैत अछि।)
हरिचरण-      सबिता एमहर सुन! मौसा संगे गाम जेबही? (सबिता किछु ने बजैत अछि।)
            तोहर मौसा ओहीठाम स्‍कूलमे पढ़ैक बेवस्‍था लगा देतौ। 
सबिता-       हँ जेबै। मौसी संगे रहबै आ ओहीठाम पढ़बै। 
हरिचरण-      लिअ साढ़ू। अहाँक समस्‍याक समाधान भ गेल।
रघुवीर-       ठीक छै। तैयार होउ। दू घण्‍टा बाद गाड़ीसँ चलब।

पटाक्षेप।


दृश्‍य- ८



स्‍थान- गामक चौक।
            (तीन-चारिटा ग्रामीण सड़कक कातमे गाछतर बैसल अछि। चबूतरापर गप-सप्‍प क रहल अछि।)
ग्रामीण एक-    (गाछ दिस इशारा करैत) देखियौ, ई गाछ केतनेटा रहै। देखिते-देखिते केतेक विशाल भ गेलै।
ग्रामीण दू-      एकरा रोपनिहार तँ जुआन भ गेलै। समए बितैत कोनो देरी होइ छै। 
ग्रामीण तीन-    हँ यौ, ऐ स्‍कूलक धिया-पुता सभ एकरा रोपने रहै।
ग्रामीण चारि-    देखै नै छिऐ, धिरबा, सबितिया, भोगेन्‍दर सभ धिया-पुता आब जुआन भ गेलै।
ग्रामीण एक-    सुनै छिऐ, सबितिया शहरक स्‍कूलमे पढ़ि क बड़का डागदरनी भ गेलै। हरिचरणकेँ नाम रोशन क देलकै।
ग्रामीण चारि-    धुर हरिचरण बुते थोड़े होइतै। ई तँ ओकर साढ़ू पढ़ाइक खरचा देलकै तब भेलै।
ग्रामीण तीन-    हँ यौ ऊ बगलक शहरमे अस्‍पताल चलबैत अछि। हमर काकी तेतेक बीमार रहै जे नै जीबितै। सबितेक दवाइसँ बँचि गेलै।
ग्रामीण दू-      तब तँ नामी डाक्‍टर अछि यौ।
ग्रामीण एक-    अच्‍छा गामकेँ ऊँच केलक।
            (कुलानन्‍दक बेटा भोगेन्‍दर दारू पीने आ अड़-बड़ बजैत, गारि पढ़ैत, लड़खड़ाइत जा रहल अछि।)
भोगेन्‍दर-      ओऽऽऽ सा... ले... तेरी... माँ... के... छोड़बौ नै। (लड़खड़ाइत अछि।)
ग्रामीण एक-    के छी यौ? एना गारि पढ़ैत किए जाइ छी?
ग्रामीण दू-      पियक्कड़ छथि। भोगेन्‍दरा। माए-बापक नाम रोशन क रहल छथि।
            (भोगेन्‍दर उनटि क ग्रामीण-दू केँ पकड़ि लैत अछि।)
भोगेन्‍दर-      रे सार तूँ हमरा गारि देलही। तोरा हम आइ बापसँ मोलाकात करबा देबौ।
            (ग्रामीण तीन दुनूकेँ बीच होइत झगड़ाकेँ छोड़बैत अछि।)
ग्रामीण तीन-    एना नै करू। ई किछु नै बजला। अहाँ बेकारमे झगड़ा नै करू। जाउ, ऐठामसँ।
भोगेन्‍दर-      ई तोरा बापक जगह छियौ जे चलि जेबौ, ऐठामसँ।
            (भोगेन्‍दर गारि पढ़ैत-पढ़ैत बोकरए लगैए।)
ग्रामीण एक-    बाप रे बाप! ई तँ खून बोकरै छै। की भ गेलै यौ। सोर पाड़ू कुलानन्‍द बाबूकेँ। एकर हालत बड़ खराप छे! (ग्रामीण चारि कुलानन्‍दकेँ सोर पाड़ए जाइत अछि। भोगेन्‍दर बेहोश भ गिर पड़ैत अछि।)
ग्रामीण तीन-    एकरा जल्‍दी शहरक अस्‍पताल नै ल जेतै तँ परान बँचाएब मोशकिल भ जेतै।
ग्रामीण दू-      एकरे कहै छै- कर्मक फल। दुनू बापुत समाजमे कुकरम करैत रहै छेलै। डरसँ के बजतै? सभ किच्‍छो बरबाद क देलकै। आइ देख लियौ फल।
ग्रामीण एक-    एकरे डरसँ हरिचरण अपना बेटीकेँ साढ़ू संगे भेजि शहरमे पढ़ौलकै। आ शहरक नामी-गिरामी डाक्‍टर बनल छै।
            (कुलानन्‍द अबै छथि। अपना बेटाक हालत देखिते आँखिसँ नोर खसए लगै छन्‍हि।)
कुलानन्‍द-      आब कोन उपाय करबै हौ। केना परान बँचतै हौ। हौ भाय, हमरा एकेटा बेटा अछि हौ।
ग्रामीण एक-    यौ कुलानन्‍द बाबू, एकरा शहरक अस्‍पताल ल चलू। अपने गामक बढ़ियाँ डाक्‍टर अछि ओइठाम।
कुलानन्‍द बाबू-   के हौ?
ग्रामीण एक-    हरिचरण बेटी डा. सबिता कुमारी। केहेन-केहेन बीमारीकेँ ठीक क देलकै। एकरो ठीक करतै।
कुलानन्‍द बाबू-   (मुड़ी झूका लैत अछि।) हौ सुनने तँ छिऐ, मुदा की कहबै? अपने कएल किरदानी। सोझहामे केना जेबै?
ग्रामीण तीन-    अहाँ कोनो चिन्‍ता नै करू। ल चलू। हमहूँ सभ संगे चलै छी। सभ ठीक भ जेतै। एकरा उठाउ। चलै चलू।
            (भोगेन्‍दरकेँ उठाबए लगैत अछि।)

पटाक्षेप।

दृश्‍य- ९



स्‍थान- अस्‍पतालक बरामदा।

            (तीन-चारिटा ग्रामीण बेंचपर बैसल अछि। डाक्टर सबिता आ नर्स सभ एमहरसँ ओहमर आबि रहल अछि आ जा रहल अछि। कुलानन्‍द भीतरसँ निकलैत अछि।)
ग्रामीण एक-    यौ कुलानन्‍द बाबू! आब तँ अपना सभकेँ गाम दिस चलबाक चाही। कोनो तरहेँ भोगेन्‍दरक जान बँचि गेल।
कुलानन्‍द-      कोनो तरहेँ की कहै छी। ई कहियौ जे डाक्‍टरनी सबिताक कृपासँ परान बँचि गेल।
ग्रामीण दू-      से तँ ठीके। मुदा डागदरनीकँ धैनवाद देलिऐ?
कुलानन्‍द-      की कहब यौ। हमरा तँ सबिताक सोझहोमे जाइत लाज होइत अछि। हमर बेटा ओकरा मारि-पीट क सकूलसँ भगा देने रहै। तइ कारणे ओकरा गामसँ बाहर रहि पढ़ए पड़लै। वएह आइ हमरा बेटाक जान बँचौलकै। ओइ दिन मास्‍टर साहैब हमरा उपराग देबाक लेल गेल रहै। मुदा हमहूँ किछो नै केलिऐ। उनटे मास्‍टर साहैबकेँ डपटि क भगा देलिऐ। हम दुष्‍ट लोक छी। (आँखिमे नोर आबि जाइत अछि।)
ग्रामीण दू-      दुखित नै होउ। अपसोच नै करू।
कुलानन्‍द-      अपसोच तँ हेबाक चाही। गलतीकेँ स्‍वीकार करबाक चाही। अहूँ सुनि लिअ- समाजक धिया-पुता पढ़ैत-लिखैत हो वा कोनो नीक काज करैत हो तँ ओकरा सभकेँ सहयोग करबाक चाही। कोनो सुआरथक गप नै सोचबाक चाही।
ग्रामीण एक-    सबिता हरिचरणक बेटी नै अछि। समूचा समाजक बेटी अछि। अपना गामक डंका शहरमे बजा रहल अछि।
            (सबिताक संगे भोगेन्‍दर प्रवेश करैत अछि। भोगेन्‍दर मुड़ी झूकौने अछि।)
सबिता-       आब अहाँसभ गाम जा सकै छी।
(भोगेन्‍दर दिस इशारा करैत)
हिनकर स्‍थिति गाम जेबाक योग्‍य भ गेल छन्‍हि। बीमारी कन्‍ट्रोलमे अछि। मुदा ठीक समैपर दवाइ दैत रहबनि आ पुन: आबि क चेक करबा लेब।
ग्रामीण एक-    (हाथ जोड़ैत) अहाँ धन्‍य छी- सबिताजी।
सबिता-       (ग्रामीणकेँ प्रणाम करैत) अहाँ सभ हमरा असीरवाद दिअ जे अहिना हम अहाँ सबहक सेवा करैत रही।
ग्रामीण एक-    चलै चलू।
            (कुलानन्‍द संगे ग्रामीण सभ हाथ जोड़ने विदा भ जाइत अछि। भोगेन्‍दर ठाढ़े रहि जाइत अछि। सबिता लगमे अबैत अछि।)
सबिता-       हमर देल किरिया-सप्‍पत मन राखब। कहियो दारू-शराब नै पीअब आ ने हाथसँ छूअब। दवाइ टेमपर खाइत रहब।
            (भोगेन्‍दरक आँखि नोरा जाइत अछि। नोराएल आँखिकेँ पोछए लगैत अछि।)
भोगेन्‍दर-      हम अपराधी छी। हमरा गलतीकेँ माफ क दिअ।
            (हाथ जोड़ैत विदा भ जाइत अछि।)
           
पटाक्षेप।
समाप्‍त।