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Wednesday, December 23, 2015

गामक शकल-सूरत (तेसर संस्‍करणसँ)

गामक शकल-सूरत

 






एक तँ ओहिना श्‍यामलाल बाबू पनरह मिनट बिलम भेने धड़फड़ाएल छला तैपर अपन उपस्‍थिति दर्ज करौने बिना किलासमे केना जइतैथ। ओना मनमे ईहो होइन जे अखन धरिक तँ यएह परम्‍परा अछि जे कोनो शिक्षक विद्यालय पहुँच उपस्‍थिति बोहीमे हस्‍ताक्षर कऽ अपन उपस्‍थिति दर्ज करबैत आबि रहल छैथ मुदा उपस्‍थिति केकर?
कार्यालयक मुँहपर ठाढ़ श्‍यामलाल बाबूक मनमे ईहो होइन जे किलासक पनरह मिनट कटिये गेल अदहा समए शेष अछि तँए पहिने किलासेक काज पुरा ली, पछाइत उपस्‍थिति पञ्जीमे नाओं चढ़ा लेब। तलब पढ़बैक लइ छिऐ। मुदा लगले मन उनैट ओतए चैल जानि जे एक तँ परम्‍परा मानि नेने छी दोसर जँ कियो ऊपरका पदाधिकारी आबि जेता तँ अनुपस्‍थितियो बुझता।
बेर-बेर घड़ीपर आँखि जानि। घड़ीक सुइया क्षण-पल-मिनट आगू ससरल जाइत। श्‍यामलाल बाबू ओइ ओझरीमे फँसि गेला जे पढ़बैक समए निर्धारित अछि। आगू दोसर घण्‍टीक पढ़ाइ बढ़त, काजमे कटौती भेने फलमे कटौती हएत, उत्‍पादनमे कटौती हएत। जइसँ नोकसान चाहे जेकर होइ मुदा नोकसान तँ हेबे करत। देव-मन्‍दिरक ऊपरक धुजा जेतएसँ देखि पड़ैत तेतए तक ओइ स्‍थानक महत भेल, तैठाम अखन तँ सहजे विद्यामन्‍दिरक मुँहपर छी! मनमे ऐबते बजा गेलैन-
अपन पढ़बैक समैक भरपाइ भलेँ अतिरिक्‍त समैसँ व्‍यय करब मुदा हमहूँ तँ ओही वर्गक शिक्षक छिऐ। जहिना कोनो ऑफिसक जबावदेह अफसर होथि आकि विद्यालयक प्रधानाध्‍यापक, तेकर पछाइते आन कियो कोनो-ने-कोनो किलासक वर्ग-शिक्षक हेबे करै छैथ। आबक महगीमे तँ एक-एक गोरे एके वर्गक किए सौंसे विद्यालैये-महाविद्यालयक किलासक भार कान्‍हपर लऽ चलै छैथ।
ओना बजैकाल श्‍यामलाल बाबूकेँ बजा तँ गेलैन मुदा बिनु विचारल बात बजेलैन। बजाइते कान पकैड़ मन कहलकैन-
अहूँ तँ अही विद्यालयक शिक्षक आ नवम् वर्गक वर्ग शिक्षक छिऐ। ई भेल जबावदेही, मुदा जबावदेहीक पाछू जे बेवहारिक पक्ष बाधक अछि, ओकर साधक के बनत? जहिना सरकारक गृहमंत्री तहिना ने परिवारक बीच, परिवार चलौनिहारो।
लगले मन अपन जबाव पात पकैड़ मखान वा भेँट-मलकोकाक पनिपत पकैड़, बीज लग पहुँचलैन। विद्यालयक सहायक शिक्षक तँ हमहूँ छीहे। जइ विद्यालयक बीच शिक्षककेँ रहैक बेवस्‍था नै छैन गाम-घरसँ अबै छैथ, परिवारिक-समाजिक लोक भेने बाट-घाटमे किछु विलम हेबे करतैन। तैबीच पहिने अपन उपस्‍थिति रजिष्‍टरमे दर्ज कराएब जरूरी भेल आकि नियत समैमे काजपर जाएब भेल?
श्‍यामलाल बाबू समस्‍याक जड़ि तँ पकैड़ लेलैन मुदा हौहैट-कलकैल जकाँ समस्‍या विचिया गेलैन। विचियाइते उरकुसी लगल जकाँ मन चुलचुलए लगलैन। एक दिस देखैथ जे काजक दुआरे हाथ खाली अछि आ दोसर दिस देखैथ जे हाथक दुआरे काज खाली अछि। कियो मासक दरमाहा एक दिन बैसि मासो दिनक उपस्‍थिति दर्ज कऽ मासो दिनक कमाइ पबिते अछि। तैठाम उपस्‍थितिक कोन महत रहल। खैर ई जेकर भेल ओ तेकर भेल, अपन बुझह, अपन जानह। मुदा अपनो तँ किछु एहेन प्रश्‍न ऐछे। आब कहू जे विद्यालय अबै छेलौं बाटमे मोहन भाय बजारक एकटा टटका घटना सुनबैत कहलैन-
श्‍याम भाय, बिसैर जैतौं तँए अहाँकेँ कहब जरूरी अछि। अहाँ ठेकान करबै आ फेर साँझमे दरबज्‍जेपर बैसि दुनू भाँइ बतिआ लेब।
जेकर चलैत पनरह मिनट विलम भऽ गेल। फेर मन घूमि कारखाना दिस गेलैन जैठाम मिनट-घड़ी जोड़ि आवाजाहीक हाजिरी होइए। मुदा तँए कि ओहन नै अछि जे कोनोमे आइती आ कोनोमे जाइतीक हाजिरी नै होइए? सेहो तँ ऐछे! मुदा हम तँ विद्या मन्‍दिरक पुजेगरी छिऐ। विचार तँ करए पड़त। मुदा विचारो करब तँ असान नहियेँ अछि। हँ से तँ नै अछि मुदा अपनो भरि जँ नै करब तँ कोन मुहेँ धरमराज लग ठाढ़ भऽ स्‍वर्गक फाटक खोलबाएब। मुदा बाटो तँ तेहेन अछि जे भोथिआइए जाइ छी। तखन?
चोटे मन उनैट अपन पिताक चलौल परिवारपर गेलैन। घरसँ बाहर धरिक अपन समए बनौने छला जे भिनसुरका उखराहामे काजक जेते समए बाधित हएत ओकर भरपाइ बेरूका उखराहामे कऽ लेब। मुदा विद्यालय तँ से जगह नै छी दस बजेसँ चारि बजे धरिक छी।
जहिना बदाम-केराउक भूजा पथरा कऽ आरो बेसी सक्कत भऽ जाइए तहिना श्‍यामलाल बाबूक मन सेहो पथरा गेलैन। पथराइते मनमे फुरलैन, अपन मुँह तखने ऊपर उठत जखन नीक फल गाछक डारि पकैड़ उठाएब। जँ से नै उठाएब तँ काटल गाछ वा डारिक अशे केते। मन जेना थीर भेलैन। थीर होइते विचार ई भेलैन जे अखन बच्‍चा सभकेँ पढ़बैक समए छी, जँ ओकर समए ओहिना जाइ छै तँ दोखी हएब। सोचै-विचारैक सेहो अपन-अपन समए होइ छै। एकटा ओहन होइ छै जे आगूमे काज रहल ओकरा कोन जुतिये-भाँतिये करब आ दोसर होइ छै जे काज आगू औत आकि जे काज बेठेकनाएल रहत, तेकर विचार पहिने करब। ऐठाम दुनू अछि। मुदा एते तँ ऐछे जे एकटा नै केने नोकसान हएत दोसर किछु पछाइतो केने नोकसान नै हएत। मन मानि गेलैन जे पहिने पढ़बैले किलास जेबा चाही।
अपन उपस्‍थिति बोहीमे उपस्‍थिति दर्ज केने बिना विद्यार्थी सबहक उपस्‍थिति बोही ऑफिसक टेबुलपर सँ उठा श्‍यामलाल बाबू किलास विदा भेला। विदा होइते मनमे उठलैन अखन जँ कियो ऊपरका पदाधिकारी आबि जाथि तँ ओ बोही देखि अनुपस्‍थिते ने बुझता? तखन हुनका लग केना अपन उपस्‍थ्‍िाति दर्ज कराएब? समैयो सहए भेल अछि जे एक दिस पैघ-पैघ योजना नष्‍ट भेल जा रहल अछि आ दोसर दिस, हरसीकार-दिरघीकार छुटने लोक जुरमाना भरि रहल अछि। बिना पाइ-कौड़ीक कोनो काज नै ससैर रहल अछि। काज करै छी दरमाहा पबै छी, परिवार चलैए। मुदा जँ अखन सए-सैकड़ाक पेंचमे पड़ि जाएब तँ ओते परिवारेक बाल-बच्‍चापर ने पड़त? आन कियो कहैथ आकि नै कहैथ आ कहबे के करता, कोन गर्ज छैन। मुदा पत्नी थोड़े मानती। ओ तँ दुसैत कहबे करती जे तेहेन कोढ़ि छैथ जे जेतबो उचित कमाइ हेतैन सेहो दण्‍डे-जुरमानामे गमबै छैथ। ओना दण्‍ड-जुरमानाक जगहो बदैल गेल। तइसँ जे जेते जुर्माना भरनिहार से तेते लब्‍धप्रतिष्‍ठ भऽ गेल छैथ।
जेतबो ऑफिससँ बोही लऽ किलास विदा होइकाल श्‍यामलाल बाबूक मन खनहन छेलैन सेहो जेना खरहरा गेलैन। खरहराइते बकार फुटलैन-
हाथक कंगना जँ ऐनासँ देखल जाए तँ ओ आँखिक देखब भेल आकि ऐनाक?”
कोठरीक मुँह लग पहुँचते छात्र सभ ठाढ़ भेल। टेबुल लग ऐबते दुनू हाथ उठा सभकेँ बैसबैत श्‍यामलाल बाबू बजला-
बाउ, रस्‍ता-बाटक घुच्‍चीमे घुचिया गेलौं तँए थोड़ समए घुचिया गेल। तइले तोँ सभ दुख नै करिहऽ। दू घण्‍टीक बीच जे समए बँचत तइमे तोरा सबहक हाजिरी बनेबऽ। आइ तँ सोम दिन छिऐ, पहिल घण्‍टी चित्रकले हेतह किने?”
एक स्‍वरमे छात्र दिससँ उठल-
हँ।
मुदा पैछला बेंचपर सँ अवाज आएल-
नीके भेल नै तँ औझुका हाजिरी कटिये जइतए।
कुरसीपर नीक जकाँ श्‍यामलाल बाबू बैसलो ने छला कि अगिला बेंचक पहिल छात्र अपन ड्रॉईंग-कॉपी नेने पहुँचल। कमल फूलक चित्र बनेने छल। ओना श्‍यामलाल बाबूक मन चौचंग रहबे करैन। चौचंगक कारण रहैन जे एक दिस समए कम देखैथ, दोसर दिस छात्रक संख्‍या बेसी देखैथ, तैपर पैछला काज सेहो बेसियाएल देखैथ। मुदा मनमे एकटा युक्‍ति फुरलैन। फुरलैन ई जे सांगोपांग निरीक्षण-परीक्षण नै कऽ देखि-देखि कऽ खाली टीक लगा देबै।
मुदा लगले भेलैन जे नीक-बेजए दुनूमे टीक लगाएब तँ आरो भयंकर गलती हएत। किछु करैत किछु नै बनैत देखि विचारलैन जे नीक हएत ओहिना एक-एक नजैर देखि आगूक सवक संगमे जोड़ि देब। तखन एतबे ने हएत जे काज दोबरा जाएत। मुदा उपैए की? ओहुना तँ लोक करिते अछि जे काज बेसी रहने देहमे पानि चढ़ा सम्‍हारैक कोशिश करिते अछि। जँ से नै सम्‍हरत तँ अगुएलहा काजकेँ सम्‍हारैत पछुएलहाकेँ खण्‍ड काटि आगू दिस बढ़बैत जाएब, जइसँ एक दिनक बदला दू-तीन दिनमे काज पुड़िये जाएत। मनमे सबुर भेलैन। नीक जकाँ श्‍यामलाल बाबू असथिरो ने भेल छला तखने अभिराम अपन ड्रॉईंग-कॉपी आगू बढ़ौलक।
हाथमे कॉपी लैत श्‍यामलाल बाबू निहारए लगला। चित्रक बगलमे कमल फूल लिखल। मुदा चित्र देखि मन नाचि उठलैन। नाचि ई उठलैन जे कमलो फूल तँ रंग-रंगक होइए। एकटा ओहन होइए जइमे पंखुरी-दल कम होइए, दोसर एहनो तँ होइते अछि जे कोनो शत कमल तँ कोनो सहस्र कमल सेहो होइत अछि। तैसंग ईहो तँ होइते अछि जे कोनो शुभ्र कमल तँ कोनो लाल कमल तँ कोनो नीलो कमल तँ होइते अछि। तेतबे किए! कमला धारो तँ बहिते अछि। पानिक कमल एकरंगा होइए मुदा ऐठाम तँ से नै बेराएल अछि। सोझहे कमल फूल लिखि देने अछि। ई तँ फुटौने नै अछि जे जलकमल छी आकि थलकमल छी? दुनू कमल रहितो चालि-प्रकृतिमे अन्‍तर छइहे। अन्‍तर ई छै जे जलकमल जँ एकरंगा होइए चाहे उज्‍जर, लाल नीले किए ने हुअए, मुदा थल कमल तँ तीनरंगो होइते अछि। ओना तीने रंग किए कहबै, बहुरंगो तँ कहले जेतै। बहुरंगा ई जे जखन भोरमे थलकमल कलीसँ कलियए लगैए तखन उज्जर रंग धारण केने रहैए मुदा जेना-जेना सुर्जक किरिण आगू मुहेँ ससरैए तेना-तेना ओकर उज्जरपनोमे लाली आबए लगै छै। बाल-किरिण जकाँ बाल-रंग अबैत गढ़ियए लगैए। हल्‍लुक लाल, गुलाब लाल अड़हुल लाल आ आल लाल होइत लाल कमल भाइए जाइए...।
एक तँ ओहुना कोनो ओझरीमे पड़ने मनक रस्‍ता ओझरा जाइ छै तैपर तँ आरो श्‍यामलाल बाबूक मन ओझराइते रहलैन। कॉपी देखि किछु बजला नै। बजैक पाछू दोसर-तेसर सवाल उठैक डर भेलैन। डरो केना ने होइतैन, कम समैमे अधिक काजक तँ सूत्रे बदैल जाइ छै।
अभिरामकेँ कॉपी बढ़बैत कहलखिन-
बौआ, चित्रकारी तँ नीक केने छह, मुदा जइ ढंगे केने छह, ओकर बारीकी देखैक अखन समए नै अछि, तँए एकरा राखह। निचेनमे देखबह।
कॉपी लैत अभिराम अपना जगहपर आबि बैसल। दोसर कॉपी शरबनक, हाथमे लैत श्‍यामलाल बाबू निहारए लगला। अपराजित फूल बगलमे लिखल। फूल देखिते मन नचलैन। नचलैन ई जे अपराजितो तँ केते तरहक होइए। एकमुखी, तीनमुखी, पँचमुखी। तैसंग उजरो होइए आ कारियो होइते छै। जहिना अभिरामक कॉपी देखि श्‍यामलाल बाबू बाजल छला तहिना शरबनोकेँ कहलखिन-
बौआ, चित्रक तँ नीक चित्रण केने छह मुदा ओते परखैक अखन समए नै अछि, अखन राखह दोसर दिन देखबह।
कॉपी लऽ शरबन अपन जगहपर बैसलो ने छल आकि तेसर- गिरधरक कॉपी श्‍यामलाल बाबूक हाथ पड़लैन। विचित्र रूप बनल चित्र। पँजरामे लिखल गामक शकल सूरत।
शीर्षक पढ़ैथ आ देखैथ तँ कोनो ताले-मात्रा ने मिलैन। शीर्षककेँ नीक मानि लेलैन मुदा वेदरंग वेदचित्र देखि मनमे उठलैन जे जहिना कोनो गरीब लोक[1] अपना बेटीक नाओं लछमी आ बिनु पढ़ल-लिखल लोक अपन बेटीक नाओं सरस्‍वती रैख लइए, तहिना अछि। घड़ी दिस नजैर देलैन तँ समए ससरल देखलैन। मुदा जाबे घण्‍टी नै बजल ताबे तक तँ समए ऐछे। नजैर खिड़ा देखलैन तँ बूझि पड़लैन जे केतौ ढिमका-ढिमकी अछि तँ केतौ चौरस, केतौ खादि जकाँ अछि तँ केतौ डाँरि खींचल। खेतक आड़ि-धुर छी आकि कोनो धार-धुर?
घुड़छीमे श्‍यामलाल बाबूक मन घुड़िछिआ गेलैन। फेर लगले मनमे भेलैन जे आन गोरे फूल, पात, फल इत्‍यादिक चित्र बनबैए आ ई किए एहेन गामेक शकल-सूरतक चित्र बनौलक! अपनो तँ कहियो एहेन बात बजलो ने छेलौं तखन किए बनौलक?
पुछलखिन-
बौआ, एहेन चित्र बनाएब केना सीखलह?”
जेना गिरधरक ठोरेपर रहै तहिना बाजल-
सरजी, परसू रातिमे बाबा कहलैन।
बाबाक नाओं सुनि श्‍यामलाल बाबू तरतम्‍य करए लगला। तरतम्‍य ई करए लगला जे ने कोनो संगी-साथीक नाओं बाजल आ ने दोसर-तेसर शिक्षकक। बाबाक नाओं कहैए!
तैबीच घण्‍टी बजल। हाँइ-हाँइ कऽ रजिष्‍टर खोलि हाजिरी लिअ लगला।
साढ़े चारि बजे जखन विद्यालयसँ श्‍यामलाल बाबू घर दिस विदा भेला तखने मनमे गिरधरक बात एलैन। मनमे ऐबते सोचलैन जे जँ पहिने अपना घरपर चैल जाएब तखन दोसरो-तेसरो एहेन काज उपस्‍थित भऽ जाएत जे फेर ई काज पछुआ जाएत। तइसँ नीक जे पहिने गिरधरेक घरपर पहुँच बूझि लेब नीक हएत। घरक रस्‍ता छोड़ि गिरधरेक संग विदा भेला।
गिरधरक बाबा- सुबल लाल- दरबज्‍जेपर रहथिन। श्‍यामलाल बाबूकेँ देखिते गिरधरकेँ कहलखिन-
बौआ, पहिने आँगन जा माएकेँ चाह बनबए कहुन आ अपने लोटा-गिलास अखारि कलक टटका पानि नेने आबह।
अपन आगत-भागत देखि श्‍यामलाल बाबूक मनमे उठलैन जे धड़फड़ा कऽ पहिने अपन प्रश्‍ने नै राखब। कुशल क्षेम हेबे करत, ताबे गिरधरो निचेन भेल रहत। ओकरे अगुआ किए ने प्रश्‍न उठाएब। दू गिलास पानि एक गिलास चाह पीला पछाइत श्‍यामलाल बाबू गिरधरकेँ कहलखिन-
बौआ, कनी अपन ड्रॉईंग-कॉपी लाबह ते।
अपन ड्रॉईंग-कॉपी गिरधर आनि आगूमे रैख देलकैन। ऊपरका पन्ना उल्‍टा, सुबल लालक आगूमे रखैत श्‍यामलाल बजला-
बच्‍चा एहेन चित्र बनौने अछि जे नीक जकाँ अपनो ने बूझि पाबि रहल छी।
पोताकेँ अपन कहल बात सुबल लालकेँ मन पड़लैन। कॉपी उठा देखलैन तँ बूझि पड़लैन जे जहिना कहने छेलिऐ तहिना हू-बहू चित्र बनौने अछि! मन खिललैन। खिलते विहुँसलैन। विहुँसिते बजला-
मास्‍सैव, केहेन बढ़ियाँ तँ चित्र सचित्र बनले अछि तखन विचित्र की?”
एक तँ ओहिना श्‍यामलाल बाबूक मन चित्र देखि चितराएल रहैन तैपर सुबल लालक समर्थन देखि आरो चितिर-बितिर भऽ गेलैन। मनमे घमर्थन जगलैन। घमर्थन ई जे सुबल लाल साधारण पढ़ल-लिखल गिरहस्‍थ छैथ, मुदा अपने तँ से नै छी, एक तँ बी.ए. पास केने छी तैपर दिनचर्यो तँ पढ़ले-लिखलक अछि, केना बाजब जे नीक जकाँ नै बुझलौं। अपनाकेँ समगम करैत श्‍यामलाल बजला-
किछु तँ नजैरपर चैढ़ रहल अछि, मुदा किछु चैढ़े ने रहल अछि।
बजैक वेगमे श्‍यामलालक विचार भँसियाइत जहिना कोनो वस्‍तु धारामे भँसि जाइए तहिना आगू बढ़ि गेलैन मुदा लगले बाजबक प्रवाहकेँ मनक छोड़सँ खिंचलैन। छोर खिंचैक कारण भेलैन जे जँ कहीं सुबल लाल पुछि दथि जे की सभ नजैरपर चढ़ल आ की सभ नै चढ़ल। तखन तँ आरो जड़ि-तड़ि मुसरा नेने उखैर जाएब! मनमे ऐबते जेना मुँहक सुरखी विधुआ गेलैन। मुदा संयोग नीक रहलैन जे सुबल लाल से नै पुछि, बजला-
मास्‍सैव, पहाड़, समुद्र, धरती, पताल, अकास सभ मिलि जे एकटा विराट सूरत बनल अछि, सएह तँ छी।
जहिना पोखैर वा धारक अथाह पानिमे खेलाड़ी उगी-डुमी खेल खेलैए, आ जखन उगि पकड़ा जाइए आ डुमबए लगै छै तखन डुमैसँ नीक हरदा बाजि अपने चोर बनि जाइए तहिना श्‍यामलालक मनमे भेलैन। मुदा लगले मन कहलकैन अनेरे मनकेँ हारि मनबा रहल छी। ई विचारक दोख छी। नान्‍हिटा बात अछि जे सुबल लाल हमरासँ जहिना उमेरमे बेसी छैथ, तहिना जिनगियोक भिन्न आनन-कानन तँ छैन्‍हे। जेहेन जिनगी रहत तहने ने नन-नन्‍दन बोन-झाड़ हएत। जे सोभाविको ऐछे। तहूमे ऐठाम कियो तेसर थोड़े अछि जे अनका देखि संकोचो हएत। बजला-
चाचाजी, हम भलेँ शिक्षक छी, वृत्तिये शिक्षा-दीक्षासँ जुड़ल छी, मुदा कहलो तँ जाइते छै जे जेतए ने जाए रवि, तेतए जाए कवि आ जेतए ने जाए कवि, तेतए जाए अनुभवी। जहिना गिरधरकेँ कथारूपमे गामक शकल-सूरत बुझा देलिऐ, तहिना एकबेर आरो दोहरा दियौ।
श्‍यामलाल बाबूक जिज्ञासा देखि सुबल लालक मनमे उठलैन, जे जिज्ञासा श्‍यामबाबूक छैन ओकरा मुहोँमुह[2] पुराएब कठिन अछि। दू मुँहक बात आ दू मनक विचार छी। एके जिज्ञासाक भिन्न-भिन्न रूप होइ छै। एक भूख ओहन होइ छै जखन जठराग्‍नि आत्‍मा जरबए लगै छै, आ दोसर एहनो तँ होइते छै जैठाम खानापुरी होइए। मुदा लगले मनमे उपकलैन जे एक-एक रेखा आ रेखासँ रेखाएल शकल-सूरतक चर्च करैत चलब, जेतए बुझैमे नै औतैन तेतए प्रश्‍न उठौता, जँ से नै उठौता तँ बूझब जे जिज्ञासाक अनुकूल मन मन्‍दिर भऽ रहल छैन।
चित्रकलाक कॉपी दुनू गोरेक बीचमे पसारि आँगुरसँ देखबैत सुबल लाल बजला-
ई समुद्र भेल, समाज रूपी समुद्र। अथाह जलराशिक भण्‍डार। अहूमे जुआर उठै छै, जे हवा-पानिकेँ अपना पेटसँ निकालि अकासमे पसारैए, जइसँ बर्खाक संग तूफानो उठै छै। जइसँ पानि आ हवासँ धरती भरि जाइ छै।
आगूक बात सुबल लालक पेटेमे रहैन आकि बिच्‍चेमे श्‍यामलाल बाबू दोसर रेखापर आँगुर रखैत पुछलखिन-
?”
पहिने सुबल लाल रेखाक सूरत देखलैन फेर श्‍यामलालक सूरत मिलौलैन, अपन सूरत मिलबैत बजला-
ई धार भेल। जेकरा जीवनो-धार कहि सकै छिऐ, जे वैदिक धार कहियो कल-कल हँसैत, प्रवाहित होइ छल ओ आब मरण भऽ गेल। तँए पानिक जगह बाउल उड़ैए।
पानि-बाउल सुनि श्‍यामलाल बाबूक मन सुमैर-धुमैर कऽ घुमड़लैन। कॉपीपर सँ नजैर उठा सुबल लालक नजैरपर फेकलैन। विहुँसैत मन खिलैत रंगाएल चेहरा देखि बजला-
पानियेँ सँ बाउल आ बाउलेसँ ने पाइनो होइए।
श्‍यामलाल बाबूक प्रश्‍न सुनि सुबल लालक मन एक डेग आगू बढ़लैन। बढ़िते बजला-
यएह तँ दुनियाँक चकरचालि छी जे एक दिस वएह बाउल पानिक सतह बनि ऊपर जल बरसन करैए जइसँ धरतीक कोखि जुड़ाइ छै आ दोसर दिस धरतीकेँ मरू बना मरूआ उपजबैए।
सुबल लालक बात सुनि श्‍यामलाल बाबू ठहाका लगा हँसला। जहिना कनितोकाल मन बजैए, तहिना ने हँसितोकाल बजैए। श्‍यामलाल बाबूक हँसी बाजल-
ई तँ भेल धरती, समुद्र। मुदा दुनूक जे जोड़ अछि से...?”
श्‍यामलाल बाबूक बात पकड़ैत सुबल लाल बजला-
जहिना अकासमे चन्‍द्रमुखी, सुर्जमुखी फूल फुलाइए तहिना धरतियोमे ज्‍वालामुखीक लावो-फूल तँ फुलाइते अछि। जेहेन फूल फुलाएत तेहने ने गामक शकल-सूरत बनत।
जहिना पेट भरलापर ढकार बनि हवा निकलैए, श्‍यामलाल बाबूक मन तहिना भरि मन ढकरलैन। बजला किछु ने, सूर्यास्‍तक समए सेहो भऽ गेल छल। मुदा जहिना अर्द्ध-लघुक अवस्‍था, अर्द्ध-कथाक अवस्‍था आ अर्द्ध-गीतक विरह अवस्‍था होइए तहिना श्‍यामलालो बाबूकेँ भेलैन। मुदा घरोपर, परिवारोमे तँ आन दिनक अपेक्षा अनदेशा होइते हेतैन।
मनमे ऐबते बजला-
अबेर भऽ गेल, दोसर दिन फेर गप-सप्‍प हेतइ।
अपन मर्यादा निमाहैत सुबल लाल बजला-
आब तँ बाट-बटोहीकेँ ठौर पकड़बा बेर भऽ गेल, तखन जाएब केना?”
मुस्‍की दैत श्‍यामलाल बाबू बजला-
केतौ अनतए जाएब जे हराइ-भोथियाइक सम्‍भावना रहत। अपन घर छी, कनी अबेर-सबेर पहुँचब सएह ने।¦¦  
20 अक्‍टुबर 2014, शब्‍द संख्‍या- 2596


[1] खगल लोक
[2] उपोउप, लबालब

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