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Wednesday, December 23, 2015

बाल-गोपाल संग्रहक तेसर संस्‍करणक तैयारी पूर्ण भ' गेल...। प्रस्‍तुत अछि दूटा कथा- (१) सजमैनियाँ आम (२) गरदैन‍ कट्टा बेटा

सजमैनियाँ आम







जेठ मास। हथि‍या-चि‍तरा नै बरसने आन जेठसँ शक्‍ति‍गर रौद। तीन बजे करीब बेरुका पहरमे एक चि‍ड़की मेघ उठल, ने बेसी पसरल आ ने बेसी चतरल, हवाक झोंकमे पानि‍-पाथर, ठनका सभ बरि‍स गेल। ओना वि‍हाड़ि‍सँ केते गोटेक घरो खसल आ टाटो-फरक उजरल, केतेकेँ गाछो-बेख खसल मुदा चरि‍तर बाबाक तँ नाश भऽ गेलैन‍। नाश ई भेलैन‍ जे एक तँ फूसि‍ घर तैपर घरक पजरेमे तेहेन सजमैनि‍याँ आमक गाछ लगौने छैथ‍‍ जे ऊपर ताकि‍ ठनका खसल, खसल तँ गाछक मुड़ीपर मुदा कि‍छु नि‍च्‍चाँ होइत-होइत छि‍छैल‍ कऽ घरपर चलि‍ आएल, गाछक तँ मुड़ियेटा टुटबो केलैन‍ आ जरबो केलैन‍, मुदा खढ़क घर तैपर झोंकगर हवा पाबि‍ घरक सभ कि‍छु जारि‍ देलकैन‍‍। मनुखक जान बँचलैन‍ तँए बेसी गमगीन नै भेला। हाथ-पएर रहत फेर बनि‍ जाएत। मुदा से बात नै, अपने चरि‍तर बाबा वाड़ीमे दारीम गाछक जड़ि‍ पटबैत रहैथ‍‍, प्रकाश स्‍कूलमे रहए। दुनू परानी जगरनाथ बि‍आहक नौत पुड़ए गेल रहए।
दस मि‍नट बीतैत-बीतैत सभ शान्‍त भऽ गेल! हवो-विहाड़ि‍ पड़ा गेल, पानि‍योँ पड़ा गेल आ एकेटा ठनका जे खसि‍ये पड़ल...।
चरि‍तर बाबाक घर ठनकामे खसलैन‍ आकि‍ जरलैन‍, अखन‍ धरि‍ यएह घोंघौज लोकक बीच चलैत रहए। मुदा मनुखक नोकसान नै भेल तँए सभ खुशी। घर-दुआर आकि‍ धन-सम्‍पैत‍ मनुख नै ने छि‍ऐ, तखन‍ अनेरे कानि‍येँ-खीज कऽ की हएत, तँए चरि‍तर बाबाक ठनका खसल घरपर गाममे कियो नोर बहौनि‍हार नै।
ठनकाक चर्च गाम-घरमे पसरल, प्रकाशो स्‍कूलसँ आएल। कुमरमक दि‍न रहने बेटा-पुतोहु सासुरे-नैहरमे रहल। केना नै रहैत, तीन जेठक मिलानक वि‍धो-वि‍धान ने दोसर होइ छै, जे धी-जमाए छोड़ि‍ दोसर कइए के सकैए। तँए जगरनाथ दुनू परानीकेँ अपन घर-दुआरक सुधि‍ये ने रहलै।
पहि‍ल साँझ। सूर्यास्‍त भऽ गेल मुदा दि‍न जकाँ। प्रकाशकेँ स्‍कूलसँ अबैमे बि‍लम भेल। बि‍लमो केना ने होइत एक तँ गरम समए दोसर झाँट-विहाड़ि‍क सम्‍भावना। स्‍कूल तँ स्‍कूले छी, जहि‍ना नियमि‍त जि‍नगीक सूत्रधार डाक्‍टर अपने अनियमि‍त जि‍नगी जीब‍ बाहवाही करै छैथ‍‍ तहि‍ना ने वि‍द्यालयोक वि‍द्याध्‍ययन अछि‍। कोन समए केते गरमी पड़ै छै तइले थर्मामीटरक खगता होइते छै। आँगनमे बाबा आ पोता अपन बेथा-कथाक चर्च शुरू केलैन‍...।
प्रकाश कहलकैन‍-
बाबा, ई केना भेल जे थोड़बे दूर गाममे पानि‍ भेल, विहाड़ि‍सँ घर-दुआर आनो गाममे उजरल मुदा ठनका अपने घरपर कि‍ए खसि‍ पड़ल?”
पोताक प्रश्‍न सुनि‍ चरि‍तर बाबा मि‍सि‍ओ भरि‍ वि‍चलि‍त नै भेला, मनसँ तेना हटि‍ गेल रहैन‍ जेना कि‍छु भेबे ने कएल। जेठ मास छि‍ऐ, लोक गाछो-बिरीछक तरमे आ दुबि‍योपर दि‍वस गुदस काइए लइए, तइले अनेरे मनकेँ रोगाएब नीक नै...।
चरि‍तर बाबा बजला-
बौआ, ओना मेघ केते रंगक अछि‍ मुदा अखन‍ से नै दुइए रंगक मेघक बात बूझह, एकटा होइ छै सघन, जे दूर-दूर तक पसरल रहल। दोसर होइ छै कोदारि‍ कट्टा, जे रूइयाक फाहा जकाँ टुकड़ी-टुकड़ी बनैए। ओहू एक-एक टुकड़ीमे एहेन शक्‍ति‍ छै जे जँ ओकरो अनुकूल समए भेट‍ जाए तँ सभ कि‍छु कऽ सकैए। सएह भेल। एक चि‍ड़की मेघ उठल। देखलि‍ऐ। मुदा बि‍सवास नै भेल जे बरि‍सत। जेठुआ समए, रंग-रंगक तँ हवा-विहाड़ि‍ चलबे करत। जँ बि‍सवास होइत तँ पटैबतौं कि‍ए। मुदा जेते दूरक गड़े उठल तइमे अपने सजमैनि‍याँ गाछ नमहर छल, ओकरे ठनका लपैक‍ लेलकै। ओ तँ आगि‍ छीहे, सभ कि‍छु जरि‍ गेल।
प्रकाश-
एहेन गाछ घर लग कि‍ए रखने छी?”
परि‍वारक प्रति‍ जि‍ज्ञासा देख‍‍ चरि‍तर बाबा बजला-
नमहर गाछपर ठनका खसब उचि‍ते भेल, जे दैवी भेल। मुदा समए-साल केहेन भऽ गेल अछि‍ जे देखते छहक कि‍यो एक्कोटा खाए देतह? दुइयो-अढ़ाइ सए जँ फड़ि‍ जाइए तँ कहुना आमक मास आम खा काटि‍ लइ छी।
जेना ओझा-गुनी गुनगुनाइत गोसाँइ खेलए लगैए तहि‍ना दुनू गोटे अपन-अपन मन-मनतर पढ़ए लगला...।
हाइ स्‍कूलक वि‍द्यार्थी प्रकाश, नव फूल तकैक जि‍ज्ञासा। आइक युगमे ठनका रोकैक ओरि‍यान लोक घरमे लगा लइए, मुदा गाछकेँ तँ खाली ठनके नै हवा-वि‍हाड़ि‍मे खसैक सम्‍भावना सेहो अछि‍!
चरि‍तर बाबा मने-मन गद-गद होइत रहैथ‍, गदगदाइक कारण ई रहैन‍ जे कोढ़ि‍या बरद जकाँ हरे देख‍‍ डेराएब तँ बड़का-बड़का इञ्जन के चलौत..?
पहाड़क दि‍न तँ वएह ने नीक जकाँ बूझि‍ सकैए जे पर्वति‍या हएत।¦¦

तिथि : 04 मई 2014, शब्‍द संख्‍या : 611


गरदैन‍ कट्टा बेटा







आमक गाछीसँ घूमि‍‍ आबि‍ लाल भौजी ओछाइनपर पड़ल बेटाकेँ कहलखि‍न-
गरदैन‍ कट्टा कहीं-के, सबेर उठि‍ गाछी-कलम जेता से नै तँ दुखताह जकाँ ओछाइनपर पड़ल छैथ‍‍!
माइक बात सुनि‍ ललबबुआक तँ नीन टूटि‍‍ गेल, मुदा मन भकुआएले रहइ...।
भकुआएले मोने बाजल-
कथी ‘गरदैन‍ कटलियौ’ जे भोरे-भोर बजै छँह?”
ओना ललबबुआ गाढ़ नीनमे सूतल जहि‍ना कि‍यो माया वि‍हीन आत्‍मा-परमात्‍मासँ साक्षात्कार करैत मगन होइए, तहि‍ना छल।
लाल भौजीकेँ अन्‍दाज भेलैन‍ जे जेठ मासक पुर्बाक लहकीमे दि‍न-दुनि‍याँ बि‍सैर‍ ‘पड़ल’ अछि‍...।
मुदा से नै, ललबबुआ ‘पड़ल’ नै छल गाढ़ नीनमे ‘सूतल’ छल। जे माइक कर्कश अवाज सुनि‍ उठल।
लाल भौजीक तुरुछल मन आरो बेटाक बात सुनि‍ मुरैछ‍ गेल! मुरछैक कारण भेल जे गाछीक जे आम खसल से सभटा आन बीछि‍नि‍हार सभ बीछि‍ लेलक। गोटि‍-पंगरा गुलाबखासमे तोड़ियो नेने छेलै। ओना अपना मनमे ईहो उठैत रहैन‍ जे जेना भोरगरे नीन टुटल तेना जँ गाछीए गेल रहि‍तौं तँ एना नै होइत, मुदा मनक जवाब मनेमे उठलैन‍, सुति‍ उठला पछाइत‍‍ लोक अपन आ अँगना-घरक काज सम्‍हारि‍ गाछी-बि‍रछी, बाध-बोन दि‍स जाइए आकि‍ पहि‍ने घरक देवता छोड़ि‍ बाहरे पूजए जाएत...।
बेटाक जवाब सुनि‍ लाल भौजी बजली-
हमर की‍ गरदैन‍ कटलेँ, कटै छेँ अपनो आ दुनि‍योकेँ!
माइक पहि‍ल प्रश्‍न ‘गरदैन‍ कट्टा’ सुनि‍ ललबबुआकेँ जेते तामस ओछाइनपर पड़ल-पड़ल भेल तइसँ बेसी दोसर प्रश्‍नसँ उठलै। उठबो उचि‍ते छेलै, गरदैन‍ कट्टा तँ लोक ऐछे। कि‍यो धानक गरदैन‍ छोपि‍ अनैए तँ कि‍यो घासक, तइले कि‍यो दुखे कि‍ए करत। मुदा ‘हमरो-अपनो आ दुनि‍योँक कटै छीही’ सुनि‍ ललबबुआ ओछाइनेपर उठि‍ बैसैत बाजल-
सबहक नाओं जे कहै छँह, से सबहक गरदैन‍ हमरे हाथमे अछि‍ जे कटै छि‍ऐ?” -बजैत आँखि‍ मीड़ैत उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल।
बारह बर्खक ललबबुआ, जुआन तँ नै भेल, ओ तँ चौदह बरख पुड़ला पछाइते हएत, मुदा ढेरबा तँ भाइए गेल अछि‍। ओना, पोखैरमे रंग-बि‍रंगक माछ रहि‍तो जहि‍ना घाटपर डेढ़बा माछ आबए लगैए, से तँ भाइए गेल अछि‍।
पैछला साल पतिक‍ मुइला पछाइत‍‍ लाल भौजीक मन टुटैत परि‍वार आ घटैत दि‍न देख‍‍ कि‍छु कड़कड़ा तँ गेबे कएल छैन‍, जइसँ ‘नीक-बेजए’ वि‍चारैमे कि‍छु आगू-पाछू भऽ जाइ छैथ‍‍, पति ‍तुल्‍य बेटाक धुआ-काया देख‍‍ मन भ्रमि‍त भाइए जाइ छैन। तहूमे दस सालक गुलाबखास आमक गाछमे नि‍चला आम टूटि‍‍ गेल छेलैन‍। घरक काज सम्‍हारैमे देरी भेने अपने जाइमे पछुएली जइसँ आन बीछि‍नि‍हार तोड़ि‍ नेने छेलैन‍। जाबे पति‍ जीबै छेलैन‍, ललबबुआ बेटाकेँ कोनो धनि‍-फि‍कि‍र रहबे ने कएल। सबेरे उठि‍ अपने गाछी दि‍स चलि‍ जाइ छला।
ढेरबा ललबबुआकेँ ठाढ़ देह देख‍‍ जेना लाल भौजीक मन पसीज गेलैन‍। बजली-
बौआ, आब घरक पुरुख तँ तोहीं ने भेलह। तोरे ने सबेर उठि‍ बाग-बगीचा, बाध-बोन देखए पड़तह?”
माइक बात सुनि‍ ललबबुओक मन सहमल। मुदा, मनक प्रश्‍न, ‘गरदैन‍ कट्टा’ मनमे हूमैर‍ते रहल। सुति‍ कऽ उठि‍ते जँ मन ओझरा गेल तँ‍ भरि‍ दि‍नक काज केहेन हएत! मुदा दोहरा कऽ कि‍छु बाजल नै।
लाल भौजीकेँ मन पड़लैन‍ जे बेटाक प्रश्‍नकेँ जँ सेरि‍या कऽ बुझा नै देब तँ अखुनका उमेरक ठेकाने कोन। केमहर वौआ जाएत तेकर कोन ठीक अछि‍। कहलखि‍न-
बौआ, जाबे बाबू छेलखुन ताबे ओ घरक-बाहरक काज सम्‍हारै छेलखुन आ हम अँगना-घरक सम्‍हारै छेलौं। मुदा आब कि‍ कोनो ओ छैथ‍‍, जि‍नका भरोसे जीबह। आब जँ अपने नै करबह तँ काज गि‍रैत जेतह।
‘काज गि‍रैक’ अर्थ ललबबुआ नै बूझि‍ पेलक। बाजल-
की घरक काज गि‍रत?”
लाल भौजी बजली-
बच्‍चा, जइ घरक काज जेते आगू हएत ओ ओते आगू मुहेँ ससरत आ जइ घरक काज जेते पछुआएत ओ ओते पाछू मुहेँ ठसकत। ऐ वि‍चारकेँ नै बुझबह तँ जि‍नगीक पार लगतह। दुनि‍योँक आ मनुखोक जड़ि‍ एतै अछि‍। जँ नीक करबह तँ अपनो, परि‍वारो, समाजो आ दुनि‍योँक नीक हएत, जँ नै करबह आ अधला करबह तँ घरसँ बाहर धरि‍ सबहक गरदैन‍ कटत।¦¦
तिथि : 10 मई 2014, शब्‍द संख्‍या : 571

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