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Sunday, November 1, 2015

Thooth Gachh : A Maithili Novel by Jagdish Prasad Mandal.

वर्तमानमे उपन्‍यास ''ठूठ गाछ'' लिखि रहलौं अछि। दू अंक लिखियो लेलौं जे निम्‍न अछि... 

1.




सॉंझ पहरक बढ़ैत सियाही अन्‍हराए लगल, जेना-जेना सियाही करियाएल जाए तेना-तेना दिनक इजोत कमैत गेल। सड़कसँ बीघा पचासे हटि बाधमे एकटा गाछ। इजोतमे गाछक सभ सिरखार रस्‍तेपर सँ चलनिहार देखैत मुदा सॉंझक पछाति, माने जेना-जेना अन्‍हार पसरैत जाए तेना-तेना गाछोक रूप बदलऽ लगइ। पहिल सॉंझ सौंसे गाछक पात ऑंगनक बिछान जकॉं बिछाएल बूझि पड़ैत मुदा कनियेँ सियाही बढ़ने पातक पता नइ रहैत संगे गाछक डारियो अन्‍हारमे हेरा ठूठ जकॉं किछु समए देख पड़ैत पछाति ओहो हेरा जाइत।
झंझारपुरसँ अबैत रही, रस्‍तासँ कनी हटि प्रोफेसर रामकृष्‍ण बाबूक घर छैन। घरक पछुऐतपर नजैर पड़िते नबे-एकानबे बर्खक रामकृष्‍ण बाबूपर गेल जे आइ ठूठ गाछ जकॉं भऽ गेला अछि।
1925 इस्‍वीमे रामकृष्‍ण बाबूक जन्‍म ओहन परिवारमे भेलैन जे परिवार राज-परिवारसँ जुड़ल जमीन्‍दार रूपमे छल। देशमे अजादीक लड़ाइ[1] पसैर धाराक रूपमे प्रवाहित हुअ लगल, किसानक देश, गामक देश भारत। भारतक मूल पूजी खेत, जैपर देश ठाढ़ अछि। गुलामीक हजारो बर्खक इतिहास ऐठामक गाम आ गामक पूजीकेँ पाछू धकेलैत पछुएने रहल। जइसँ गमैया जिनगी टुटैत-टुटैत एतेक टुटि गेल अछि जइसँ चीन-पहचीन मेटाएल जा रहल अछि।
प्रगतिशील विचारक सभ मंचपर आबि चुकल छला। ओ सभ जमीनपर एला जे देशक मूल पूजी- माने किसानक देश, गामक देश- गाम छी तँए बिना गामक विकास भेने देशक विकास सम्‍भव नइ। गाम रज-रजबारसँ लऽ कऽ जर-जमीनदारक संग रूढ़िसँ सेहो जकैड़ गेल अछि, ओ सुधरने बिना गामक सुधार सम्‍भव नै। जमीनक प्रश्‍न उठने देशमे पसरल रज-रजबार आ जर-जमीनदारक बीच खलबली उठल। खरीद-बिकरी संग उधार भेटने जमीनदारक संख्‍यामे बढ़तियो भेल आ घटबियो भेल।
ओना, गाम-गामक लोकक दशा एहेन भऽ गेल जे उपास करैले कोनो पावैनक प्रतीक्षा नै रहल।
जँ कोनो गाम हजार घरक अछि तँ नअ सएसँ ऊपरे परिवारकेँ अपन घराड़ियो नै। मनुख तँ केतौ घरेमे रहत। ओना तइसँ किछु दिन पहिने रेण्‍ट-मुक्त बास भूमि भेट चुकल छल, मुदा हजारो बर्खक गुलामीक शिकार लोककेँ पड़ाइत-पड़ाइत कोनो कर्म बॉंकी नै रहि चुकल छल। केकरो कोनो गाममे घराड़ी छल, मुदा पेटक दुआरे पड़ा दोसर गाम बसल तँए ओ फेर बिनु घराड़ियेक होइत रहल।
जखन अधिवेशन सभमे आजादीक वृहद आकारक अवाज उठल तखन रजो-रजबार आ जरो-जमीन्‍दारक पेटक पानि डोललैन। जइसँ पसरल खेतक लत्तीकेँ समटऽ लगला। ओना गामो-गामक लोकक आचार-विचारमे किछु-ने-किछु अन्‍तर होइते छै, जे सोभाविको अछि। बौद्धिक स्‍तरक हिसाबसँ विचारो आ काजोक स्‍तर बदलै छै।
प्रोफेसर रामकृष्‍ण बाबूक पिता गोरख बाबू चारि भॉंइक बीच जेठ, तँए जहिना माता-पिताक सिनेह तहिना भाए सबहक आदर। जइसँ सुसम्‍पन्न परिवारक जे गुण-धर्म होइ छै तइसँ सम्‍पन्न परिवार। आगत-भागतसँ लऽ कऽ गीत-संगीत, साहित्‍यिक चर्चासँ मंच जकॉं सजल परिवार।
संस्‍कारी परिवारमे आने काज[2] जकॉं पढ़ाइयो-लिखाइ। जइसँ स्‍कूल जाइ जोकर जखने रामकृष्‍ण भेला कि स्‍कूलक बाट पकैड़ लेलैन। गामक स्‍कूलसँ हाइ स्‍कूल तक रामकृष्‍णक जिनगीमे कोनो हवा-विहाड़ि नइ लगलैन। बच्‍चेसँ जे नीक रिजल्‍ट होइत आबि रहल छेलैन ओ मैट्रिक तक बरकरारे रहलैन।
चालीस इस्‍वीक पछाति अजादीक लहैर जोर पकैड़ नेने छल। तेजीसँ उथल-पुथल हुअ लगल। जेना आसमान फाटि  जाइ छै तहिना रामकृष्‍णोक परिवारमे भेलैन। चारू भॉंइक बीच भिनौज भेने, परिवारक सम्‍पैत चारि भागमे बँटेने अखन धरिक रचल-बसल परिवार एकेबेर ढनमनाएल। खेत-पथारक बिकरी परिवारमे बढ़ल।
ओना परिवारक अखन धरिक जे हित-अपेक्षित, कुटुम-परिवार, सर-समाजक जे सम्‍बन्‍ध रहलैन ओ खर्च तँ ओहिना रहलैन मुदा आमदनीमे धक्का लगबे केलैन। किछु दिनक पछाति, माने जखन रामकृष्‍णकेँ कौलेजमे प्रवेश केला साले भरि भेलैन कि पिता मरि गेलखिन। अपन भाए-बहिनक बीच रामकृष्‍ण सभसँ जेठ रहबे करैथ। पिताकेँ मुइने परिवारक बोझ माथपर आबि गेलैन। अपनासँ छोट पॉंचो भाए-बहिनक पढ़ौनाइ-लिखौनाइसँ लऽ कऽ विधवा माइक भार सेहो पड़लैन। कहुना-कहुना आइ.ए. पास कऽ लेलैन।
खेत-पथार रहितो रामकृष्‍णकेँ ने खेतीक करैक लूरि आ ने इच्‍छा। होइतो अहिना छै जे नीक विद्यार्थीक मनमे सदैत यएह रहैए जे केतौ शिक्षक बनि जीवन-जापन करी। मुदा शिक्षकक खगता स्‍कूल-कौलेजमे रहत तखने ने हएत। से तँ गनल कुटिया आ नापल झोर जकॉं स्‍कूल-कौलेज! केतौ खाली नै! मुदा इलाको तँ सभ रंगक अछि। कोनो कोसीक उपद्रवी क्षेत्र अछि तँ कोनो भुतही-कमलाक। ओना जइ इलाकामे रामकृष्‍णक घर छैन ओ धारक उपद्रवसँ सुरक्षित अछि। अपन इलाका छोड़ि रामकृष्‍ण कोसी क्षेत्रक हाइ स्‍कूलमे शिक्षक बनि जिनगीक शुरूआत केलैन।
हाइ स्‍कूलक शिक्षक सभकेँ ओहन दरमहो नहियेँ भेटै छेलैन। जे परिवारकेँ हाइ-फाइमे रखितैथ। ओना ई जरूर भेल जे टुटैत-टुटैत परिवार एक सीमापर आबि अँटैक गेलैन। जेकरा रामकृष्‍ण बुझलैन। जइसँ आमदनीक बीच परिवारकेँ चलबैक विचार सोचि लेलैन। बाहर रहने बाहरक खर्च हेबे करत, संगे गामोक परिवारक भार तँ ऐछे। श्रवण कुमार जकॉं रामकृष्‍ण परिवारक बेटा बनि भार अपन कन्‍हापर उठा लेलैन। रेलगाड़ीक सुविधा रहने चारि-पॉंच घण्‍टामे गाम पहुँच जाइ छला, जइसँ अठबारे शनि-रबिकेँ आबा-जाही स्‍कूल आ गामक बीच रखने छला।
ओना शिक्षा-बेवस्‍थामे सेहो जुग परिवर्तन होइए मुदा केहेन परिवर्तन होइए ऐपर तँ सभकेँ नजैर रखऽ पड़तैन। नजैरक माने, कोन मुहेँ आकि केकरा दिस ओ लत भेल। मुदा से जइ जुगक उपज रामकृष्‍ण छला ओ समयानुकूल छेलैन। शिक्षा पद्धतिमे अखुनका विद्रूपता नइ आएल छल। ग्रामीण परिवेशमे चाहो-पानक चलैन अखुनका जकॉं नइ छल। ओना पानक प्रशस्‍ति मिथिलांचलमे अदौसँ रहल मुदा आम-जनक बीच समटा ओ विशेष माने खास-खास उत्‍सवमे अँटैक गेल छल। ओना एकटा प्रश्‍न तँ उठिते अछि जे आधुनिक वैज्ञानिक परिवेशमे पानक महत् की अछि। जेहेन परिवारक रामकृष्‍ण बाबू छला ओइ परिवारमे सभ कथुक चलैन छेलैन। मुदा परिवारसँ हटल रहने अपन जीवनकेँ सॉंचामे ढालैक तँ अवसर भेटबे केलैन।
मौकाकेँ लाभमे बदैल रामकृष्‍ण अपन जिनगीकेँ अपना ढंगे निरमाएब शुरू केलैन। एक तँ ओहिना छोट-भाए बहिनक बीच एहेन विचार अखनो तँ गाम-परिवारमे ऐछे जे मते-पिता नइ अपनो भाए-बहिन आ समाजोका भाए-बोहिनक बीच बेवस्‍थित रूपमे सम्‍बन्‍ध ऐछे जे बेसीमे नइ तँ कमोमे जरूर चलि रहल अछि। तैसंग विधवा माइक जिनगी परिवारक जिनगीकेँ सात्‍विकता दिस बढ़बैत रहलैन। भूखे सहब आ कोनो संकल्‍प-व्रते सहब, दुनू सहबे भेल मुदा दुनूमे अन्‍तरो तँ ऐछे। एक सहब भेल भरलपर आ दोसर भेल जरलपर, जइसँ ईहो तँ हेबे करत जे भरलकेँ पाचक हएत आ जरलकेँ घातक! घातक ई हएत जे हाड़-मांसक संग हड्डियो सुखाएत! 
आने-आन मनुख जकॉं रामकृष्‍णक जिनगीकेँ कहियौन आकि दुनियॉंकेँ, बीचमे आबि ठाढ़ भऽ गेल रहैथ। विचारक धारमे अपना बुधिये रामकृष्‍ण अपनाकेँ जुड़शीतलक माल-जाल जकॉं छोर पकैड़ हेलौलेन। दुनियॉं तँ दुनियॉं छी, बहुरंगी। केतौ बालु भरल अछि तँ केतौ सोना, केतौ पाथर भरल अछि तँ केतौ बोन-झार, केतौ पानि भरल अछि तँ केतौ माटि...। माटियो तँ माइटे छी, केनो उस्‍सर अछि तँ केनो केशौर केसैर उपजबैक शक्‍ति रखने अछि।
अथाह दुनियॉंक थाह पकड़ब असम्‍भव नइ तँ कठिन तँ ऐछे। दसो दिसामे दुनियॉं बँटाइत बँटाएल अछि, तहूमे तेते कोण-काण बनि गेल अछि, जँ किछु डेग केम्‍हरो उठबौ चाहब तँ कोनो कोणेमे कोणिया जाएब आ कोणियेला पछाति केम्‍हर मुहेँ चलि जाएब, से ठेकान करब अथाह नइ तँ अगम तँ ऐछे। जहिना अगमो पानिमे हेलिनिहार सभ रंगक होइ छैथ, कियो एहनो होइ छैथ जे अगम बूझि माने माटिक ऊपर एते पानि अछि जइमे डूमि जाएब। पानिमे डूमने हवाक प्रवेश रूकै छै तँए बिनु हवे अपनो हवे जकॉं उड़ि जाएब! मुदा तँए कि एहेन हेलिनिहार नइ छैथ जे समुद्र सन पानिमे हेलै छैथ जइमे माटिक ठेकाने ने छै।
दुनियॉंक बीचमे ठाढ़ रामकृष्‍ण अप्‍पन दुनियॉं दिस नजैर देलैन। अपन दुनियॉं तँ वएह ने भेल जइमे रहैक अछि। एकरो ने दसो दिशा छै आ सैयो कोणो-काण छै। अपन जिनगीकेँ थाह पबिते रामकृष्‍णक मनमे तोष-संतोष जगलैन। जगलैन ई जे मनुखो तँ मनुखे छी जे कारखानाक आगिक चिमनियोँ लग जिनगी बितबैए आ साइबेरियाक काइ-लीचेन गाछो तर। तही बीचमे ने हमहूँ केतौ छी...।
अपना जिनगीक आड़ि-धुरकेँ रामकृष्‍ण बिटिया लेलैन। बिटियैबते भक खुजलैन- सभ किछु अपने करए पड़त। अहीमे धरम-करम सभ नुकाएल अछि। जँ देह-हाथ नइ चलाएब, उपार्जन नइ करब तँ माता-पिताकेँ खाइले की देबैन, धिया-पुताकेँ पढ़ाएब-लिखाएब केना? तँए अपना जिनगी-ले अपने उपैत करए पड़ै छै, हमरो करैक अछि।
दोहरी संकल्‍पक संग रामकृष्‍ण शिक्षकक जिनगी शुरू केलैन। पहिल संकल्‍प केलैन जे अपनो प्रोफेसर बनैक अछि आ परिवारमे छोट-भाए-बहिनक निमरजना ओते तँ करबे अछि जेते पिताजीक समैमे भेलैन। तइसँ जेते अगुआ करब वएह ने अपन सृजन हएत।
ओना आर्थिक दृष्‍टिये दुनू-बापूतक जिनगीमे अकास-पतालक अन्‍तर आबि गेल छेलैन। पिताक जिनगी मझोलका जमीन्‍दारक रहलैन जखन कि रामकृष्‍णक जिनगी ओइसँ बदैल एक साधारण शिक्षकक भऽ गेलैन। संकल्‍पकेँ खण्‍डित करैत माने छोट-छोट टुकड़ी बना रामकृष्‍ण अपन मन असथिर केलैन जे पिताजी जेते पढ़ेलैन, तेते छोट-भाइक प्रति अपनो दायित्‍व बनैए, ओना तइसँ कम-बेसीमे पढ़निहारोक विचार तँ ऐबते छै। जँ नइ पढ़ऽ चाहत तँ परिवारक बीच, समाजक बीच, किए ने अपन प्रायश्चित करा लेब। जँ पढ़निहार रहत तँ अपन ओकाति भरि सहयोग करब दायित्‍वक संग कर्तव्‍यो तँ बनिते अछि। ऐठाम आबि रामकृष्‍णक विचार ठमैक गेलैन। किछु समए ठमकला पछाति रामकृष्‍णक नजैर अपनापर पड़लैन। परिवारक खर्चमे सिर्फ भोजने-वस्‍त्र आ अवासेटा नइ अछि। लिखब-पढ़ब आ बेर-कुबेरमे दवायो-दारूक जरूरत तँ पड़िते अछि। ओना विद्यालयक संग ट्यूशन करब, तइसँ किछु आमदनी बढ़त मुदा घटो तँ लगबे करत ने जे अपन पढ़ैक समए वेरबाद भऽ जाएत। जखन समैए ने बँचत तखन आगू बढ़ि केना सकब। बाल-बोधक खेल पढ़ब-लिखन नइ ने छी, ओ जिनगीक साधना छी जेकरा साधने बिना जिनगीकेँ आगू मुहेँ बढ़ाएब कठिन अछि। ओना साधनो केते रंगक होइए। मुदा से सभ नइ, जेते साधक जरूरत रहए आ साधैक साधन रहए, बस तेतबे।
रामकृष्‍णकेँ जेना भक् खुजलैन। भक् खुजिते नजैर मान-इमान आ सम्‍मानपर गेलैन। ओहो तँ बीज-रूपमे अँकुर, गाछ बनि जिनगीकेँ गछाड़ैत फुनगी धरि पहुँच जाइए। ओतै जा कऽ ने गाछोक फूल फुला-फुला अकास दिस तकैत तरेगन, सप्‍तर्षि सप्‍तऋृर्षि गनैए आ तहिना ने मानो-इमान इज्‍जत बनि इजोरिया राति जकॉं भगवतीक आराधनाक मुहूर्त बनैए...।
रामकृष्‍णक मन अपना दिस घुमलैन। घुमिते उपकलैन जे जैठाम जिनगीमे आबि अँटैक गेल छी तैठाम इज्‍जत-इमान की भेल आ तेकरा केना बँचा कऽ रखि सकै छी...?
सौनक मेघ जकॉं मन गुम्‍हरलैन। गुम्‍हरलैन ई जे जइ काजक भार माथपर आएल अछि ओकरो जँ नीक जकॉं माने इमानदारी पूर्वक निमरजना करब, तखन तँ...। जखन कि तहीसँ ने इमानो-इज्‍जत चलत। जइ बच्‍चाकेँ पढ़बैक भार कन्‍हापर आएल अछि, तहूमे ओअर प्राइमरी स्‍कूल आकि मिडिल स्‍कूलमे नै छी, हाइ स्‍कूलमे छी, ऐठामसँ निकलला पछाति कियो आगूओ पढ़ैले कौलेज जाएत आ केते पढ़ाइ छोड़ि अपन जिनगी बनबैक किरियामे लागत। एहेन धरतीपर जँ अपना जिनगीमे जीवन्‍तता नइ रहत तखन केतौ-ने-केतौ किछु-ने-किछु कमी औत। मुदा ओ जीवन्‍तता औत केना?
रामकृष्‍ण अपन आमदनी आ अपना काजकेँ समैमे बान्‍हि चलब मनमे रोपि लेलैन। समए निश्चित अछि, आमदनी निश्चित अछि जँ एकरा काजक निश्चितता नइ देब तखन पछड़ैक सम्‍भावना बनियेँ जाइए। आमदनीक खर्च अपन जिनगीक संग परिवारक जिनगी चलाएब अछि। अपन जिनगीक खर्च जे अछि ओइमे भोजन प्रमुख अछि। जँ हम बजार दिस जाइ छी तँ निसचित रूपे अधिक खर्च हएत, मुदा जँ ओकरा अपन दिनचर्यामे लऽ आनब तँ अदहोसँ बेसीक बँचत हएत। रामकृष्‍णक मन मानि गेलैन।
आगू पढ़ैपर नजैर गेलैन। भाइयो-बहिन परिवारमे रहि मैट्रिक तक तँ घरेपर सँ पढ़ि सकैए। अपन जे हिस्‍साक जमीन अछि, ओकरो उपजबैक परियास करब, नइ जँ तइ सभसँ खर्च नइ पुड़त तँ थोड़-थाड़ बेचियो लेब। मुदा जँ खर्चक दुआरे अपने आकि परिवारेक बाल-बोधकेँ जिनगी बाधिक केने रहब तखन तँ जिनगी कोणाह बनि जाएत।
बी.ए.मे रामकृष्‍ण नाओं लिखा, छह मासक पछाति कौलेज छोड़ने रहैथ, किताब सभ कीनि नेने रहैथ। सोझे बैचमे फारम भरि बी.ए. कऽ लेलैन। बी.ए. केला पछाति विद्यालयमे स्‍तरो बढ़लैन आ दरमहोक बढ़ोत्तरी भेलैन। तैसंग नीक रिजल्‍ट पढ़ैक मन सेहो जगा देने रहैन। प्राइवेट विद्यार्थीकेँ युनिवर्सिटीसँ परीक्षा-ले परमीशन लिअ पड़ै छै। मनमे अराधि लेलैन जे जखने अवसर भेटत तखने एम.ए. कऽ लेब। मुदा ओइले अखनेसँ कनखड़ऽ पड़त।

शब्‍द संख्‍या : 1787, तिथि : 25 अक्‍टूबर 2015  


2.




विचार रूपमे रामकृष्‍णक मनमे रोपा गेल रहैन जे एम.ए. करब। मुदा घड़ी-मिनट दिन-मास गुजैर गेल, अखनो धरि रामकृष्‍णक मनमे काज रूपमे नइ रोपाएल छेलैन। ओना विद्यालयमे सेहो साहित्‍येसँ जुड़ल रहला मुदा ओ पूर्वपीठिका भेल। तेकर कारण रहै जे सभ दिन साहित्‍य विषय दिस रहला। ओना साहित्‍योमे गणित नइ अछि सेहो बात नइ, गणित तँ ओहूमे अछि मुदा ओ नमहर अछि, तँए छोट जिनगीमे ढीलढीला भऽ जाइए। जिनगीक लेल तँ जरूरत अछि अर्थशास्‍त्रक संग ओकर स्‍टैटिक्‍सकेँ बुझब, तइमे हजारो कोस दूर हटल रामकृष्‍ण, तँए समए बीतए लगलैन मुदा निर्णएपर पहुँचिये ने पाबि रहल छला। केतौ बाजब नीक नइ, एकर अनेको कारण अछि मुदा से नइ, रामकृष्‍णक मनमे उठलैन जे असम्‍भव काजकेँ सम्‍भव बनबैक प्रक्रिया छी, तँए काजक बिसवासू दू दिस बढ़त। एक दिस काजक लेल जिनगी भेल आ दोसर जिनगी-ले काज भेल। मुदा पुरुखकेँ तँ अपन पुरुषत्‍वोमे बिसवास करबाके चाही। मुदा नजैरमे जेना नचि गेलैन- कंगनक लेल आरसी की आ पढ़निहार लेल फारसी की।
रामकृष्‍णक मनमे जेना जेठुआ नमी जगलैन। जेठुआ नमीक माने भेल, जमीनमे ठण्‍ढपन आएब। मुदा से नै नमी तँ जमीनमे सभ दिन रहिते अछि, भलेँ कहियो जले-प्‍लावित भऽ जाए, कहियो कण्‍ठे सुखए लगए। मुदा सृजन शक्‍तिमे कमी-बेसी रहै छै। जइमे जेठुआ नमी जे समुद्र-धारसँ लऽ कऽ जमीन धरिमे बेसिया जाइए। माने समुद्रोमे माछ अण्‍डा छोड़ैए आ जमीनोमे रौदमे तपि बीआ आरो सक्कत भऽ हाल पबिते धरतीकेँ फाड़ि कलश उठौने दुनियॉंक बीच अपन पहचान बनबैत अपना वंशो आ अपनो नामकरण करैए। जँ से नइ करैत तँ सभ धान धाने छी आ सभ मान माने छी जकॉं ने भऽ जाएत...।
जेठुए हाल जकॉं रामकृष्‍णक मनमे अपन जिनगीक गणित जगलैन- साहित्‍यो गणितसँ आ अर्थशास्‍त्रो गणितसँ फड़कैत बूझि पड़लैन। जेना कानमे किछु भेने कुकुऐ लगैए, ऑंखि मिड़मीड़ए लगैए, पीपनी फड़कए लगैए तहिना रामकृष्‍णोक मन फड़फड़ेलैन। फड़फड़ाइते दुनू हाथे दुनू ऑंखि मीड़ि कागज-कलम उठा जिनगीक केलकुलेशन करए लगला। एक दिस सोझ बाट देखैथ जे आठ सए नम्‍बरक- माने आठ विषयक- एम.ए.क कोर्समे छह सएक परीछा उतीर्ण भाइए गेल छी- माने आनर्स कोर्समे छह सएक छह विषय- मात्र दू सएक झमेल अछि। मनमे चपचपी एलैन जे बढ़ि-बढ़ि ठमैक जानि। ठमैक ऐ दुआरे जानि जे अपन बुझल बात माने हाथी पियासल, घोड़ा पियासल, दल-दल पानि, थलथल वाणि पथपल मानि।
रामकृष्‍णक आगूमे रकशाएल मन ऊकवाती नेने रस्‍तापर ठाढ़ भऽ दीवाली पावैनक ऊक जकॉं परीछा घड़ी..; परीछा घड़ी..; पढ़ैत रहैन। जइसँ रामकृष्‍ण ठमैक गेला।
अही झीका-तीड़ीमे रामकृष्‍णक साल भरि समए निर्णए करैसँ पहिने चलि गेलैन। विद्यालयमे हेड मास्‍टर एम.ए. रहथिन, मुदा कुर्सियो तँ कुर्सी छी, ने धाके कहियो विचारैक बात सोचलैन आ ने कहियो उपकैरो कऽ हेडमास्‍टर साहैब जीवनक सम्‍बन्‍धमे पुछलकैन। ओना बेक्‍तिगत गुण आ पद प्रतिष्‍ठाक गुण दुनू दू भेल। नियमानुसार दुनूक पालन हेबा चाही मुदा ओकर तँ समए-स्‍थान निर्धारित अछि। खैर जे से...। 
सोचे रामकृष्‍ण हेडमास्‍टर साहैबसँ एम.ए. करैक गप नइ चलौलैन। पाछू उनैट तकैथ तँ सभ शिक्षक नव कि पुरान मुदा रहैथ तँ सभ आइ.ए.-बी.ए. पासे। जैठाम आइ.ए. बी.ए. पास तैठाम एम.ए. तँ भुताहि भेबे कएल। भुतही गाछीसँ आगू बढ़ि रामकृष्‍ण जखन विद्यार्थी दिस बढ़ैथ तँ देखैथ जे ई तँ भेल पूर्वपीठिका माने बच्‍चाक ज्ञानभूमि! ऐठामसँ आगू बढ़ैत ने कियो एम.ए.क चोटीपर पहुँचैए आकि पहुँचत। मुदा ऐमे तँ चुम्‍बकक सम्‍बन्‍ध छै जे एक सिरा दोसरकेँ नचबैए।
तेसर साँझ। कोसीक किनछेर, माने भेल धारक लगक जमीनपर देने जे चलैक रस्‍ता रहैए ओ। ओही रस्‍ता होइत रामकृष्‍ण टहलैत बहुत दूर चलि गेला। अपने पढ़ैक विचार मनकेँ दबने रहैन, इजोरिया पख रहबे करइ, सुर्ज अपन बोरिया-विस्‍तर समैट सुतैले चलि गेला मुदा ठहाका मारि इजोरिया अन्‍हारकेँ घेरैए ने दइ, अही धोपचटमे रामकृष्‍ण तीन कोस आगू धरि टहलैत गेलापर मनमे होश एलैन जे सौंझका समए छी, केते दूर चलि एलौं! घुमि कऽ आबि अपन ओसारक कुरसीपर बैसिते मनमे उठलैन, पहिने हाथ-पएर धोइ चाह बना पीब ली। पछाति बैस विचारि लेब जे हमरा की करक चाही। विचारक दुइए पक्ष होइए। हँनइ। पछाति हँओमे हजारटा डारि छिटकैए आ नहियोँमे।
चाह पीला पछाति मनमे चेनियत ऐबते अपन विचार- माने संकल्‍पक विचार, जे आइ हँ-निहँस कैये लेब- जेना पूर्वाक लहकीमे भँसिया पछिम दिस डोलि गेने आ धारक पानि जकॉं विचारोक लाट धेने दोसर विचार सेहो बहैत रहैए, तहिना लाटे-लाट साहित्‍यक धारमे रामकृष्‍ण फँसि गेला। आऽ हाऽ हाऽ! केहेन सुन्नर सुन्‍दरी अछि जे एक घड़ी आधो घड़ी, आधोमे पुन आध! मने-मने रामकृष्‍ण विस्‍मृत भऽ गेला। विस्‍मृत एहेन भेला जे जहिना घड़ी-घण्‍ट बजैत देवालयक मुहथैरपर ठाढ़ भऽ पूजाक शंख फूकैत होइत। मनमे हलचल उठलैन। मुदा लगले दोसर धुन ससैर कऽ आबि सवार भऽ गेलैन। ओ धुन छल आध जनम हम नीन गमाओल! दुनियॉं केतेटा आ जिनगी केतेटा...? तइले लोक अनेरे हाय-हाय किए करत?
ओना हाथोक घड़ी रामकृष्‍ण रखने छैथ मुदा देवालोमे घण्‍टीबला-घड़ी रखनहि छैथ। होइतो अहिना छै जे केकरो घड़ी समए बतबै छै तँ कियो घड़ीकेँ समए बतबैए। यएह तँ भेल दुनियॉंक खेल। कियो मिनट-पल समए पकैड़ नचैत तँ कियो कटल-खोंटल चान जकॉं जिनगी देख झुझुआइत!
घड़ी बाजल, साढ़े आठ। रामकृष्‍णक भक्क टुटलैन। भानसक समए भऽ गेल। हाथक घड़ीपर नजैर रखि पैछला समए (माने बैसैकालक समए) सँ मिलौलैन तँ डेढ़ घण्‍टा घण्‍टीए डोलबैमे चलि गेल। हाइ रे बा! नान्‍हिटा विचार करए बैसलौं, सेहो छुटिये गेल! आइक लेल जे काज अछि, आकि विचार अछि ओ औझुका भेल, काल्हि-ले काल्हि छै। तखन तँ काजे छुटि गेल। अच्‍छा! भानस करै बेर विचारि लेब। मुदा विचार आइये करैक अछि।  
सम्‍पन्न परिवारमे रामकृष्‍णक जन्‍म भेने गीत-नादक परिवार भेटले रहैन, जइसँ बच्‍चेसँ किछु-किछु साजोपर हाथ देने आ मीठ अवाज रहने अवाजोक साधना रहबे करैन। जे अखनो पछुऐबते छैन, जइसँ असगर रहने तबला-मजीराक हाथ तँ छुटि गेलैन मुदा हारमोनियम रखनहि छैथ। ओहो नियमित समए खाइते छैन। असगरे गौनिहार, असगरे बजौनिहार-सुनिनिहार, आन कियो ने! तखन...?
चुल्हि लग बैसिते जेना मन फुड़फुड़ेलैन। फुड़फुड़ाइते पहिने निर्णैये कऽ लेलैन जे एम.ए. करब, प्रोफेसर बनब। काजक इच्‍छा तँ करैक शक्‍ति मंगै छै। से शक्‍ति रामकृष्‍ण संचित करैक दिशामे अखनेसँ भीड़ गेला।
तेसर साल एम.ए.क परीछा दइक अछि। काल्हिये युनिवर्सिटीसँ सिलेवश आनि, आठो विषयक खण्‍डवाइज किताब सेहो कीनि लेब। किछु-किछु समैक कटौती सभ काजमे करैत दू घण्‍टा समए निकालि काजमे हाथ लगा देब।
जिनगीक टपान टपैक दुर्ग बाटपर ठाढ़ भऽ रामकृष्‍ण चुल्हि लगसँ आगू देखऽ लगला। मनक संग देहोमे चुलबुली आबि गेलैन। समयानुकूल भोजन बना, भोजन करैत रामकृष्‍ण निर्णए केलैन जे ओछाइनपर निचेनसँ औरो नीक जकॉं विचारि लेब। 
ओछाइन सेरिया जखन ओछानिक सिरमापर मुड़ी खसौलैन कि धक्-दे विधवा माइक संग भाए-बहिनपर मन उड़ि गेलैन। दिनो-दिन माइक देहक दशा खसि रहल अछि! देहक दशा खसैक कारण दुइएटा भऽ सकैए। देह आ दैहिक। ओना उमेरो पचास टपि गेल मुदा सएक नापमे तँ अधडरेर भेल, अखन किए देह खसतैन। साठिक बाद ने खसैक सम्‍भावना जगैए। ओना खाइ-पीबैमे कोनो तेहेन अभाव तँ नहियेँ हुअ दइ छिऐ, जेहेन हजारो-लाखो परिवारमे छै। नइ! जरूर मानसिक पीड़ासँ पीड़ित अछि। की एहेन उमेरमे जँ पति-विहीन लोक भऽ जाए, बाल-बच्‍चा छोट रहै ओहन लोकक इज्‍जत-आवरू एहेन समाजमे बँचि सकैए जेहेन समाज बनि गेल अछि आकि बनि रहल अछि आकि बनौल गेल अछि। की माए-बापक धर्म बाल-बच्‍चाक सेवा करब नइ छी? बहिन बिआहे जोक र भऽ गेल अछि, ओ तँ माइयेक सोझमे अछि, की ओकरा मनमे सन्‍ताप नइ जगैत हेतइ?
रामकृष्‍णक हँसी-खुशीक मनक नीन पड़ा कऽ दूर भागि गेलैन। कछ-मछ करैत ओछाइनपर पड़ल माएपरसँ भाए-बहिनपर नजैर उतड़लैन। दू-दूटा भाएकेँ कौलेजक खर्चा जुटाएब बाल-बोधक खेल नइ ने छी। मुदा ईहो तँ दायित्‍व बनियेँ जाइए किने जे जहुना अपने राम कृष्‍ण कौलेज मधुबनीमे पढ़लौं, तहुना तँ पढ़ा दिऐ। मुदा छोड़लो तँ नहियेँ जा सकैए। तखन तँ भेल अपन जिनगीक संग परिवारक जिनगीकेँ अपन कमाइमे अँटावेश करब। जे अँटावेश करए तँ अपने पड़त।

शब्‍द संख्‍या : 1207, तिथि : 29 अक्‍टूबर 2015


[1] अंग्रेजक खिलाप
[2] घरेलू काज 

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