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Sunday, November 1, 2015

Khasait Gachh : Collection of Short Maithili Stories by Jagdish Prasad Mandal.

अगिला पोथी ''खसैत गाछ'' लघु कथाा संग्रह तैयार भ' गेल।

शब्‍द संख्‍या एवं कथा लेखनक तिथिक संग कथाक सत्‍तैरक विवरण निम्‍न अछि-
1. क्रियाशील- (3395) 13 सितम्‍बर 2015
2.आइ एम शॉरी- (2927) 23 सितम्‍बर 2015
3. ओऽ होऽ होऽ हूसि गेल- (1025) 29 सितम्‍बर 2015
4. मीनी भ्रष्‍टाचार- (825) 5 अक्‍टूबर 2015
5. गजपट खेती- (1171) 8 अक्‍टूबर 2015
6. समुद्री विद्या- (787) 11 अक्‍टूबर 2015
7. राकशे रहि गेलौं- (959) 12 अक्‍टूबर 2015
8. निनिया देवीक आराधना- (679) 13 अक्‍टूबर 2015
9. बताहे बताह बनौलक- (574) 15 अक्‍टूबर 2015
10. धोखा- (1172) 17 अक्‍टूबर 2015
11. खसैत गाछ- (2247) 22 अक्‍टूबर 2015
11. वेष्‍णो भगवती- (2107) 01 नवम्‍वर 2015
ऐ पोथीक लोकार्पण अगिला सगर राति दीप जरय कथा गोष्‍ठीमे हएत जे श्री कमलेश झाजीक संयोजकत्‍वमे होइबला अछि।
संग्रह एकटा कथा-
निनिया देवीक आराधना

आसिन मासक सोल्‍हम दिनक परीव, आइए नवरात्राक कलश-स्‍थापनो हएत। ओना सालमे चारि खेप नवरात्रा होइए, जेकरा चतुरमासी कहल जाइए। ओना आसिनक नवरात्राक अपन अलग महत छै। महत्तो केना नइ रहत जिनगीक आसा-बाट पकड़ैक कलश-स्‍थापन छी किने।
ओना आसिनसँ लगले सटल मास कातिकक सोल्‍हम दिनक परीव-पखेबक रूपमे आ गोवरधन पूजाक रूपमे गोबरक बखार बना गोधन-गजधन इत्‍यादिक पूजो होइते अछि। मुदा ओ परीवक पावैन बीतल अमवसियाक सॉंझमे लक्ष्‍मीक पूजा आ रातिमे कालीक पूजा होएत।
सालक चारू नवरात्राक अपन वीध-विधान छै, जे एक-दोसरमे सम्‍मो अवस्‍थामे अछि आ बिसम्‍मो अवस्‍थामे अछि जे सोभाविको अछि। रहबो केना ने करत, जे बरसाती फूल आसिनमे अपन जुआनी पकैड़ नचैए ओ तँ माघ अबैत पतझाड़क रूपमे फूलझाड़ भाइए जाइए, तखन एक्के पुष्‍प-दलसँ पूजब कठिन हेबे करत किने।
भक्तमय संसारमे निनिया देवीक पूजामे सभ लीन। दुनियॉं लीन, गाम लीन, परिवार लीन, लोक लीन...। लेनिहारेसँ दुनियॉं भरल अछि। देनिहार मात्र एक- निनिया देवी, शक्‍तिशालिनी देवी।
अदौसँ जहिना घर-परिवारसँ देस-कोस धरिक लोक लड़ाइ करैत आबि रहल अछि तहिना देवियो-देवी आ देवो-देवता तँ लड़ाइ करिते आबि रहला अछि। तहिना पनचैतियो सभ दिनसँ यएह होइत रहल जे जे जेते शक्‍तिशालिनी आ शक्‍तिशाली ओ ओते सिरचढ़ बनि सिर चढ़ल।
ओना गाममे बहुतो देवियो स्‍थान अछि आ देवो स्‍थान, मुदा हूबा-मनसूबामे कम-बेसी तँ ऐछे, से गामोक लोको बुझिते छैथ। मुदा केतौ किछु हौउ, निनिया देवी अपन समयानुकूल रूप बदलैत अखनो सभसँ शक्‍ति-शालिनी देवीक स्‍थानमे छैथे। रहबो केना ने करती, एहेन आनन्‍द-दायिनी देवी दुनियाँमे के छैथ जेकरासँ प्राप्‍त कोनो आनन्‍दसँ कम आनन्‍द निनिया देवीक आराधनामे भेटैत हुअए। दुनियोँसँ मुक्‍त आ जिनगियोक हड़हड़-खटखटसँ मुक्‍त...।
..तेतबे नै, दिनमे पूजा करी आकि रातिमे, सॉंझमे करी आकि भोरमे तइले ने केतौ कोनो नियम-आदेशक कोनो झंझट आ ने स्‍थान-प्रवेश करैमे केतौ कपाट लागल अछि। जेहेन मन तेहेन तँ भेटबे करैए तइमे की निनिया देवी कोनो दूजा-भाव करैत दइ छथिन। ओ तँ मनसा गुण फल सभकेँ दइते छथिन। जेहेन पुरुख रहब तेहेन पुरखौट भेटबे करत...।
काल्हि सॉंझूए पहर गामक दुर्गा स्‍थानमे भगवतीकेँ नौत दैत औझुका कलशक स्‍थापनाक सभ जुति-भॉंति पूजा कमिटिक बीच निर्णए भऽ गेल। काजक बन्‍हुआ श्‍याम काका, समैसँ सभ काज करैत चारि बजे भोरे उठि परिवारजनकेँ जगबऽ लगला। केकरो फूल तोड़ैले, केकरो ऑंगन-घर नीपैले, केकरो कलशक ओरियान करैले इत्‍यादि-इत्‍यादि काजकेँ नाओंमे बान्‍हि-बान्‍हि परिवारमे छिड़ियबऽ लगला। छिड़ियेबो केना ने करितैथ, जहिना अन्न-अन्नमे खेनिहारक नाओं लिखल अछि तहिना ने काजो आ पूजो-पाठक...। बेटा-पुतोहु, पोता-पोतीसँ भरल श्‍याम कक्काक नमहर परिवारो छैन्‍हें।
ओछाइनपर नीन तोड़ि श्‍यामा काकी श्‍याम काकापर तीर छोड़ैले मने-मन विचारि रहल छेली। विचारक अनुकूल परिस्‍थितियो छेलैन। एक तँ आसिन मासक भोर, तैपर पूर्बाक लहकी भरल अमवसियाक रातिक सिहियाएल संसार...।
सुरूजक लाली पूबसँ जगि रहल छल मुदा फरीच नइ भेल रहए। दिनका काज दिनमे हएत आ रौतुका काज रातिमे। अखन तँ रातिये अछि तखन किए श्‍याम काका ठेलियबै छथिन?
..श्‍यामा काकीक मनमे उठलैन जे समधानि कऽ कहिऐन, मुदा तरङ्ल मनमे तरेगनक इजोत जकॉं उठलैन- आइ आसिनक नवरात्राक कलश-स्‍थापन छी, भोरे-भोर कहा-कही करब उचित नइ...।
मुदा लगलै मन लहैस गेलैन। लहैसते उठलैन, कहू जे के एहेन हएत जे परिवारजनकेँ सुखमय, आनन्‍दमय समए बितबैत नइ देखए चाहत?
एक तँ आसिनक मद-भरल मासक भोर, तैपर उमसाएल मनकेँ पूर्बाक लहकी मोहैन करैए, तेकरा किए श्‍याम काका अनरोखे नष्‍ट करए चाहै छथिन। परिवारजनक सम्‍बन्‍ध देहा-देही, बेकता-बेकती अछि। ओना सम्‍बन्‍धकेँ सभ रंगक विचारक पीठिपोसको सभ परिवारमे होइते अछि। एक दिस पतिक सम्‍बन्‍धसँ पत्नी तँ दोसर दिस सन्‍तानक सम्‍बन्‍धसँ माए, दादी, नानी इत्‍यादि...। सबहक अपन-अपन धरम-करम अछि।
मझधारमे पड़ल श्‍यामा काकीक मन नाह जकॉं डगमगाए लगलैन। डगमगाइत मन आड़ा लगिते बमैछ गेलैन। बमछैत पतिकेँ कहलखिन-
“भोरे-भोर एना किए अर्ड़ाइ छी?”
श्‍यामा काकीक बात श्‍याम कक्काक मनकेँ बेसी छुलकैन नइ मुदा कानमे पहुँच घुड़घुड़ा देलकैन। कानकेँ घुड़घुड़ाइत देखि धड़धड़ाइत मनमे विचार उठलैन- परिवारक तँ सिरजन अपने दुनू बेकती छी, तखन भोरे-भोर लोहैछ कऽ किए जे विचारेसँ किए ने कहिऐन।
तैबीच श्‍यामो काकी घरसँ निकैल ओसारपर एली। श्‍याम काका हाथोक इशारा आ मुहोँसँ कहलखिन-
“एम्‍हर आउ।”
लगमे अबिते काकीक मन जेना अस्‍सी मन पानिक बीच पड़ि गेल होनि, तहिना बजली-
“आइ कलस्‍थापन छी किने?”
श्‍याम काका-
“तँए ने भोरे-भोरे सभकेँ उठि-उठि संकल्‍पित हुअ कहै छिऐ।”
“दिन केतौ भागल जाइए?”
“से ते नइ भागल जाइए मुदा रातिक खेहारसँ तँ भागिते अछि किने?”
पतिक बात सुनि श्‍यामा काकी चुप भऽ गेली।¦¦
शब्‍द संख्‍या- 679, 13 अक्‍टूबर 2015



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