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Wednesday, August 12, 2015

सगर राति दीप जरय :: १९ सितम्‍बर २०१५


सगर राति दीप जरय :: १९ सितम्‍बर २०१५
मिथिलाक प्रसिद्ध साहित्‍य गोष्‍ठी- ‘सगर राति दीप जरय’क ८७म आयोजन निर्मलीमे होएत ई निर्णए तँ पछिले गोष्‍ठीमे भऽ गेल छल, जे समाचार अपने लोकनिकेँ प्राप्‍तो अछि। मुदा कहिया होएत आ निर्मलीमे केतए होएत ई साफ नइ भेल रहए, जे अझुका बैसकमे भऽ गेल।
आइ सॉंझमे निर्मलीक स्‍थानीय साहित्‍य प्रेमी सबहक बैसक भेल। जइमे श्री विनोद कुमार, श्री सत्‍य नारायण प्रसाद, श्री सुरेश महतो, श्री राजदेव मण्‍डल, श्री राम विलास साहु, श्री राम प्रवेश मण्‍डल, श्री राजाराम यादव, श्री मनोज शर्मा, श्री रामलखन भंडारी एवं श्री सुरेन्‍द्र प्रसाद यादव आदि महतपूर्ण व्‍यक्‍ति सभ रहथि।
सगर रातिक कथा गोष्‍ठीक इतिहासक संग सुन्नी-हकारक महतपर विचार-विमर्श चलल। ऐ विशेषताकेँ अक्षुण्ण राखल जाए ई बात श्री राजदेव मण्‍डलजी कहलनि। सभ कियो निर्णए लेलनि जे अगिला गोष्‍ठी ऐतिहासिक हुअए। संगे दिन-तारीख आ स्‍थानक चयन सेहो भऽ गेल जे निम्‍न अछि।
अपने लोकनि (कथाकार, आलोचक) सादर अमंत्रित छी।
दिन- शनि
तारीख- १९ सितम्‍बर २०१५
स्थान : श्यामा रेसिडेन्सी कॉम विवाह हॉल, एस.बी.आइ. केम्पस- निर्मली (सुपौल)

हाथी आ मूस
















Tuesday, August 4, 2015

शीर्षक 'जाम' (कथाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल)


''गुड़ा-खुद्दीक रोटी'' संग्रहक पछाति अगिला संग्रह हेतु लिखल ई पहिल कथा छी आ दोसर कथा काल्‍हि खतम हएत 'गण्‍डा' ओना आब आइए।

जाम



छह मास पूर्व गुणेसर काका महाविद्यालसँ सेवा-निवृत भेला पछाति थैली नेने आबि जेठ बेटाकेँ फोनसँ कहलखिन-
बौआ, महाविद्यालयसँ छुट्टी पाबि गेलौं, जे धएल-धरल छल सभ आनि लेलौं। अपना-ले पेन्‍शन राखब बॉंकी दुनू भॉंइ आबि कऽ अपन लऽ लिअ।
पिताक विचार सुनि सुधीर बाजल-
बाबू, अहाँ हमरा इंजीनियर बनेलौं, तइ कर्जक अदायगी अहॉंकेँ तखन ने हएत जखन हमहूँ इंजीनियर पोता सोझहामे ठाढ़ कऽ देब। एक तँ ओहिना अहॉंक कर्ज ऊपरमे लादल अछि तैपर सँ धएल-उसारल सेहो हमहीं लेब, ई मन नइ मानैए। अहॉंक कमाइ छी जे मन फुरए से अपन करू।
जेठ बेटाक उत्तर सुनि गुणेसर काका अवाक् भऽ गेला। फेर मनमे भेलनि जे छोटको बेटासँ किए ने पुछि लिऐ। नम्‍बर लगा मोबाइलसँ कहलखिन-
बौआ, जिनगी भरिक जे धएल-उसारल छल से थैली आनि लेलौं। अहॉं दुनू भॉंइ अपन लऽ लिअ।
इंजीनियर रणधीर जबाव देलकनि-
बाबू, हमरा लिए जहिना अहॉं तहिना भैया छथि, तँए दुनू गोरे पहिने विचारि लिअ। हम मानि लेब।
रणधीरक उत्तर सुनि गुणेसर कक्काक मनमे पिनपिनी जगलनि। पिनपिनाइत बुदबुदेला-
सभ देह छीपैए। हमरा बुते एते रूपैआ राखल हएत। घरमे राखब, चोर चोरा लेत। बैंकमे हिसावे-वाड़ी गड़बड़ाइत रहत। के अनेरे भरि बुढ़ाड़ी पाइयेक मगजमारीमे लागल रहत।
मन दुनू बेटापर गेलनि। अपन कएल कृत्‍य आगूमे अबिते मन कलशि गेलनि। कलशि ई गेलनि जे अपने जे कमेलौं, तहीसँ परिवारकेँ ने ठाढ़ रखलौं। दूटा बेटा दुनू इंजीनियर। अपने सभ दिन समाजक बीच गाममे रहलौं, अखनो छी। कहियो केकरोसँ मुहॉं-ठुठी नइ भेल। यएह ने जे बुढ़ाड़ी केना खेपब। बुढ़ाड़ी तँ मन रोग छी। जिनगी जहिना खेपैत एलौं हेन, तहिना खेपैक ओरियान बात करैत रहब, बुढ़ाड़ीकेँ ठेलैत रहब...।
गुणेसर काका संस्‍कृत महाविद्यालयसँ आचार्य केला पछाति गामसँ तीन कोस हटल संस्‍कृत महाविद्यालयक नोकरीसँ जिनगी शुरू केलनि। ताधरि माइयो-बाबू जीविते रहनि। पनरह-बीस बर्खक पछाति मुइलनि।
चारि बीघा अपन जोतत संग चारि बीघा बटाइयो खेती पिता करैत आबि रहल छेलखिन। जे हुनका परोछ भेला पछाति गुणेसर काका ओइ खेतकेँ आपस करैत अपनो खेत बटाइ लगा लेलनि। पढ़ै-लिखै दिस रूचि बेसी रहने दुनू बेटाकेँ इंजीनियरिंग तकक शिक्षा दियौलखिन।
आइ दुनू बेटा एकटा सरकारी दोसर प्राइवेट नोकरी पाबि जीवन-बसर कऽ रहल छन्‍हि।  दुनू बेटाकेँ जहिना दरमाहा तहिना उलफीओ आमदनी आ जहिना नियमित ड्यूटी तहिना उलफी ड्यूटीओ। काजक बोझक संग आमदनीओंक बोझ तर दुनू दबले। तँए विचारमे फुहरपन।
जही महाविद्यालयमे गुणेसर काका पढ़लनि तही महाविद्यालयमे नोकरीओ भेलनि। ओना जखन गुणेसर काका गामेक स्‍कूलमे पढ़ैत रहथि तखन गाछक पात जकॉं पढ़ैइयो-लिखै दिस विचार डोलबे करैत रहनि। जहिना पात डोलबो बुझैत आ असथिरो रहब, मुदा तँए कि जइ गाछक छी ओ गाछोकेँ ई बात बुझैमे थोड़े अबै छै। एबो केना करतै, पात जकॉं गाछ थोड़े असथिरो रहैए आ डोलबो करैए। ओ तँ शील-गुणसँ भरल अछि, तँए पात जकॉं डोलबे किए करत।
आने बाल-बोध जकॉं गुणेसरो कक्काक मन उमड़ि जान्‍हि, हमहूँ डाक्‍टर बनब। तँ कहियो नाटक मण्‍डलीक कलाकारकेँ देख कलाकार बनैले। तहिना आनो-आन चढ़ल-बढ़ल-ले। मुदा से सभ गुणेसर काकाकेँ हाथ नहि लगलनि। साधारण जिनगी जीनीहार पिता गामक स्‍कूल पास केला पछाति मुँह फोड़ि गुणेसर काकाकेँ कहलकनि-
जेतए तूँ पढ़ऽ चाहह, स्‍वेच्‍छासँ पढ़ि सकै छह मुदा अपन परिवारोक ऑंट-पेट देख लहक। पॉंच बर्खक बीच एक-दूटा रौदी आ नइ तँ एक-दूटा दाही होइते अछि, तेकरे पुरबैत-पुरबैत बेदम रहै छी। गामपर सँ जँ आबि-जा कऽ पढ़बह, तेते सम्‍हरि सकै छह।
मिडिल स्‍कूलसँ निकलल गुणेसर कक्काक मनमे यएह उजैहिया उठल जे आगूओ नाओं लिखा कऽ पढ़ब। गामसँ तीन कोस हटल संस्‍कृत विद्यालय, महाविद्यालय। संयोग बैसि गेलनि। गुणेसर काका संस्‍कृत विद्यालयमे दाखिल भऽ गेला।
परिवारसँ लऽ कऽ विद्यालय, महाविद्यालय तक सात्‍विकतासँ भरल। जेहने किसान परिवार तेहने शिक्षण संस्‍थान। लिखै-पढ़ैक सामग्रीक अतिरिक्‍त मात्र देहक वस्‍त्र आ पेटक भोजन दैत गुणेसर काका एके गतियो शिष्‍य-गुरु होइत गुरु-शिष्‍य बनि जिनगी जीबए लगला। ताधरि कोनो व्‍यसन औझुका पढ़ुआ जकॉं नहि। मुदा विद्यालयो-महाविद्यालयमे तमाकुल आ भॉंगक चलनि देखथि। परिवारोमे पिता सॉंझे-साँझ देहक थकान भगबैले भॉंगक गोली खाइ छेलनि। संगे तमाकुलो खाइत रहथिन। ओना दुनू बाड़ी-झाड़ीक उपजा छी, तँए समस्‍यो नहियेँ। 
मास दिन तक गुणेसर काका गुन-धुनमे पड़ल रहि गेला मुदा ई नइ सोचि पेला जे ऐ थैलीकेँ की करब। अपना बेटी नहि तँए बेटी बिआहक खर्च नइ बुझल रहनि। समाजोक बेटी बिआहक काजमे कहियो अगुआइ नै केने जे तहूसँ बुझल रहितनि। घर बेटे बना नेने छेलनि। खेतोक उपजा ओते भाइए जाइ छेलनि जइसँ अन्न-पानिक कहियो असुविधा नहि भेलनि। कपड़ा-लत्ताक खर्च सेहो नापल-जोखल रहनि। माने एकदम समटल।
स्‍पष्‍ट सोच रहनि जे जैठाम एको वस्‍त्रसँ काज चलि सकैए तैठाम गाहीक-गाही आकि दर्जनक-दर्जन वस्‍त्रक कोन खगता। अनेरे पाइकेँ दुरुपयोग करब भेल। देखा-देखी पत्नीओं तहिना रहनि। तैपर सँ दुनू बेटो आ दुनू पुतोहुओ अपना-अपनी हथियबैले सेहो सभ मौसमक सभ कपड़ा ओते दाइए दइ छन्‍हि जे देख-देख दुनू परानीक मनमे सवुर बनले रहै छन्‍हि जे ऐ जनमसँ ओइ जनम धरि केतबो धाङ्गि कऽ पहिरब तैयो ने फटत-सठत।  
अखन धरि पाइक जानकारी तेना भऽ कऽ गुणेसर काका पत्नीकेँ नहि कहलखिन जे अढ़ाइ लाख टाका पछिला धएल-धरल भेटल। एतबे कहने रहथिन जे नोकरी छूटि गेल मुदा जाबे जीब ताबे दरमाहा भेटैत रहत। जइपर पत्नी अह्लादित होइत कहलखिन-
भरि दिन बोनाएल रहै छी, कखनो एतबो सोचै छिऐ जे जेकर हाथ पकड़ि घरमे रखने छी, तेकरा की भेल।
फुलतीक बात गुणेसर काका बूझि गेला मुदा मन तँ थैलीमे घुरियाएल रहनि। उतारा देलखिन-
अहींले भरि दिन रने-बने वौआइ छी आ तैपर सँ अहीं उपरागो दइ छी।
पतिक बात सुनि फुलतीक मन फुला गेलनि। भकरार फूलक पत्ती जकॉं ऑंखि निराड़ि सूरमाक सुगंधसँ अरियातैत ऑंखि पतिक पावन वनमे अँटैक गेलनि जइसँ मुँहक बोली ठमैक गेलनि। जेकर लाभ गुणेसर काका उठौलनि। लाभ ई उठौलनि जे भने बक्-झकसँ नीक जे अपन काजक बात विचारब। मुदा से भेलनि नहि। आगूसँ पत्नीक नजरि तेना नजरिमे गड़ल रहनि जे अजगर सॉंप जकॉं नजरि काते ने हुअए देलकनि। मनमे उठलनि- पत्नीकेँ किए ने पूछि लियनि जे पाइकेँ की करब। अखन तँ नजरिक सोझ वएह छथि।
फेर भेलनि जे पाइक काज अपना हाथे ओ कहियो केलनि कहॉं। दोकानक काज, बजारक काज, तीर्थो-बीर्थक काज, सभ दिन तँ सभठाम अपने हाथे केलौं। कहियो एको पाइ छुलनि कहॉं, तखन हुनका केना कहबनि जे पाइकेँ की करब?
संयोग भेल ओही रस्‍ते हमहूँ जाइत रही, जखन हुनका घरक सोझे गेलौं कि मन पड़ल जे गुणेसर काका सेवा निवृति भऽ गाम आबि गेला, तँए भेँट कऽ लियनि।
रस्‍ता छोड़ि दरबज्‍जा दिस बढ़लौं कि देखलियनि जे दुनू बेकती ऑंगनमे किछु विचारि रहल छथि। मनमे भेल से नइ तँ कनी विलमि जाइ।
मुदा से भेल नहि। डराएल खढ़िया जकाँ गुणेसर काका चारू दिस सेहो चौकन्ना होइत रहथि। ओना हम ऑंखिक सूत निच्‍चा उतारि नेने रही, तैयो अँगनेसँ देख लेलनि। बजला-
आबह-आबह बौआ जोगू आब ते तोरा सबहक बीच एलौं, तोहीं सभ ने खोजो-खबरि लेबह आ जेना रखबह तेना रहब।
एक-हरफी गुणेसर काकाकेँ बजैत देखि बिच्‍चेमे रोकि कहलियनि-
काका गोड़ लगै छी।
अपन मनक विचार रोकि गुणेसर काका असीरवाद दैत पुछलनि-
बौआ, सभ आनन्‍द छह किने?”
कहि पत्नीकेँ कहलखिन-
जुग बदलि गेल, आब जे तकै छिऐ बदामक पनिसल्‍ला, गुड़क गोली आ पानिसँ अभ्‍यागतक आकि गौओं-घरूआक सुआगत करब, से आदति छोड़ि दियौ। जाबे जुआन छेलौं ताबे जे मन फुरल से केलौं। आब एक उमेरपर आबि गेलौं, तँए समए देखि संग चलू। पहिने चाह बनाउ। चुल्हिये लग सभ बैसि गपो-सप्‍प करब आ चाहो पीब।
सएह भेल। ओसारेक चुल्हिपर फुलती काकी चाहो बनबए लगली आ दुनू गोरे माने हमहूँ आ गुणेसरो काका पीढ़ियापर बैसि गप-सप्‍प शुरू केलौं। पुछलियनि-
काका, सोल्‍होअना चलि एलौं आकि नाङ्गरि-ताङ्गरि लसकले अछि।
अकचका कऽ गुणेसर काका बजला-
से की कहलह, बौआ?”
कहलियनि-
सेवा-निवृतिक पछाति जे किछु जमा-जिगिर भेटैए, तेकर कागजे ऑफिसमे तेना ओझरा जाइ छै जे जेते भेटैए तइसँ बेसी चलिए जाइए। दौड़-बरहा तेते होइए जे सभ ठेही मेटा जाइए। यएह भेल लसकब। जेकरा ऑफिसबला सभ लुक्‍खीक नाङ्गरि जकॉं तेना सुररि लइए जे पछाति बुझिए ने पड़ैए जे लुक्‍खीक नाङ्गरि छी।
नमहर सॉंस छोड़ैत गुणेसर काका बजला-
से सभ सगुन नीक रहल। कौलेजक एकटा किरानी सभ काज कऽ देलनि। सेवा-निवृतिक तेसरे दिन सोलहन्नी फारकती पाबि चलि एलौं।
पुछलियनि-
केते जमा भेटल?”
केते सुनि गुणेसर काका सकपकेला। सकपकेला ई जे पाइ-कौड़ीक बात छी। केते राजा-महराजा माटिमे गड़ल मुदा चोरी-चपाती होइते आबि रहल अछि। तँए पाइ-कौड़ीक बात अनका लग बाजब खतरासँ खाली नइ अछि।
परिवारमे अखन धरि जे पाइक मोल, बेटासँ लऽ कऽ पत्नी धरिक रहलनि ओ गुणेसर कक्काक मनमे लगल जामकेँ किछु कम केलकनि। संग-संग अपन वृत्ति जे रहलनि ओ कहियो झूठ-फूस, लाथ-कुलाथक नहि रहलनि तँए मनमे शक्‍ति-शिरोमणिक अंकुर रहबे करनि। बजला-
बौआ, अढ़ाइ लाख जमा भेटल।
कहलियनि-
बहुत रास भेटल, भगवान बेटो तेहेन देलनि जे पाइक धार फोरबे करता।
हमर बात सुनि जेना गुणेसर कक्काक ऑंखिक धारमे शुभ्रता एलनि। ओना अखन धरि अशुभ्रतो नहियेँ आएल छेलनि, मुदा ओहन शुभ्रता एलनि जइमे फरिचपन बेसी होइ। तहूमे पाइक धार सुनि गुणेसर काका पाइयेक धारमे भँसि गेला। भँसैत-भँसैत बजला-
बौआ, पाइकेँ की करब से किछु फुरबे ने करैए।
गुणेसर कक्काक बात सुनि अचम्‍भामे पड़ि गेलौं जे ई की कहि देलनि। पाइयेक पाछू लोक पागल भेल अछि। एको बीत जगह आकि एकोटा एहेन काज बॉंकी नइ अछि, जैठाम पाइक झीका-झीकी नइ भऽ रहल अछि। तैठाम गुणेसर काका एहेन बात कहलनि जे पाइकेँ की करब!
जँ एहेन प्रश्‍न उठैए तेकर माने तँ यएह ने हएत जे कोनो सामाजिक काजमे खर्च करए चाहै छथि, जँ अपन व्‍यक्‍तिगत काज रहतनि तँ की अनका देहक नापसँ कुरता आकि पएरक नापसँ जूता कीनैक विचार करितथि।
ओना गुणेसर कक्काक जीवन पठने-पाठनक रहलनि, जइसँ जिनगीमे मीठास आबि गेल छेलनि। मीठास ई जे कटु शब्‍दक जगहपर मधुआएल ओहन शब्‍दक प्रयोग करै छथि जे कटुओ मधुर जकॉं बूझि पड़ैए। तैठाम हमरा सन छौड़ा-माड़ए विचारक होन्‍हि, ई केते उचित हएत? मुदा जँ पुछलनि तखन जँ किछु नहियोँ कहबनि तैयो तँ मनमे शंका हेबे करतनि। तेतबे नइ, पाइ-कौड़ीमे चुप्‍पी लाधब षडयंत्रो भऽ सकैए, जे खतरनाक भेल...।
किछु फुरबे ने करए जे की कहियनि। फेर मनमे भेल जे दूटा बेटो छन्‍हि, दूटा पुतोहुओ भेलनि, तैपर सँ पत्नीओं छन्‍हि, हमरा-हिनका बीच समाजी-परिवारी सम्‍बन्‍धो अछि, तैबीच हमरो परिवारजन छथि आ हिनको छन्‍हि। कहलियनि-
काका, जे पाइ सेवा-निवृतिक पछाति भेटल ओ तँ परिवारक भेल, तैबीच काकीओ छथि, तँए हुनकेसँ पहिने विचार किए ने लेल जाए।
परिवार सुनि गुणेसर कक्काक मन विचलित भऽ गेलनि, बजला-
विचार ते अपनो सएह छल मुदा दुनू बेटा ऐ पाइसँ देह छीप लेलक।
बेटा देह छीप लेलकनि सुनि छगुन्‍तामे पड़ि गेलौं। छगुन्‍ता ई जे अही पाइ दुआरे बाप-बेटामे कपर-फोरौबलिसँ लऽ कऽ केस-मोकदमाक संग अनुकम्‍पाक नोकरी दुआरे जहर-माहूर तक बेटा-पुतोहु दइले तैयार भऽ जाइए, आ तैठाम एहेन बात! छुब्‍द भऽ गेलौं।
लगले मनमे उठल जे ई तँ परोछा-परोछीक बात भेल किने। मुदा पत्नी तँ लगमे छथिन किए ने अपने मुहेँ पुछियनि। पुछलियनि-
काकी, काका थैली लऽ कऽ एला से की करब?”
जिनगी भरि ओहन संगी जकॉं फुलती काकी रहली जे पतिसँ कहियो परिवारक आमद-खर्चक बात नहि पुछने रहनि, तैठाम थैली सुनि...।
बजली-
थैली थैलीबलाक छियनि आकि हमर छी। अपन थैली धरममे लगबथि आकि कुधरममे, ई तँ ओ जानथि जे पूजामे लगाएब आकि रण्‍डी नचाएब। हुनका पाछू हम वौआइले जाएब। जहिना सभ दिन पदमिनी भेल घरमे रहलौं, तहिना रहब।
काकी बाजि कऽ चुप भऽ गेली। मुदा पदमिनी सुनि हमरो मन विहुँसल आ गुणेसरो काका ठोर पटपटबए लगला-
भवति कमल नेत्रा...।
जेना अपन विचारकेँ प्रश्‍न बना गुणेसर काकाकेँ पुछने होथि। तेहने स्‍थिति बनि गेल।
एक तँ ओहिना गुणेसर काका अपने बेथे बेथाएल रहथि तैपर एकटा बेथा आरो चढ़ने मन झूकि गेलनि। एक बेर हमरा दिस तकथि आ दोसर बेर पत्नी दिस। चकोना होइत देखि कहलियनि-
काका, अपना जीविते दुनू परानी अपन श्राद्ध ऐ पाइसँ कऽ लिअ।
जहिना धारक मुँहकेँ नवका पेट वा मुँह भेटने ओम्‍हरे धारा तेज भऽ जाइए तहिना गुणेसर काकाकेँ भेलनि। बजला-
बौआ, जिनगीक अन्‍तिम चरणमे आबि गेलौं, बहुत लोकक श्राद्ध देखलिऐ। केकरो जशो भेल, केकरो अजशो भेल, मुदा दुनूक फल की भेल से अखनो धरि नइ बूझि पेलौं हेन। तैपरमे तूँ तेहेन विकट बात कहि देलह जे...।
कहि गुणेसर काका चुप भऽ गेला मुदा तूँ विकट बात कहि देलह सुनि हमरो गर भेटल। पुछलियनि-
की विकट बात, काका?”
गुणेसर काका बजला-
बौआ, जिनगी भरि व्‍याकरणे आ साहिते पढ़बो केलौं आ पढ़ेबो केलौं, मुदा...।
प्रश्‍नसँ हटैत गुणेसर काकाकेँ देखि पुछलियनि-
एकरा के काटत, काका?” 
हमरा बातसँ गुणेसर काकाकेँ जेना सह भेटलनि तहिना आगू बढ़ैत बजला-
बौआ, अपन श्राद्ध अपने केना करब?”
कहलियनि-
जहिना आन-आन जे जीवितेमे भोज कऽ लइ छथि तहिना अहूँ अपन करब।
वामी-दहिनी मुड़ी डोलबैत गुणेसर काका बजला-
देखहक, जेकरा श्राद्ध बुझै छहक, ओइमे दूटा काज अछि। एकटा अछि भोज आ दोसर अछि कर्म। जे कर्म मुइला पछातिक अछि ओ जीवितमे केना हएत?”
गुणेसर कक्काक विचार बूझिए ने पाबि रहल छेलौं। गाममे केतेको गोरे अपना जीविते श्राद्धक भोज कऽ नेने छला, जे बुझल छल, तइ हिसावसँ कहने छेलियनि। बजलौं-
कनी अपना बातकेँ सोझरा कऽ कहियौ।
कहलनि-
देखहक, श्राद्धक कर्म प्राण छुटला पछाति शुरू होइए। कियो-कियो श्रद्धा-पूर्वक नत-मस्‍तको होइ छथि। मुदा प्राण निकलला पछाति कन्ना-रोहटसँ प्रकिया प्रारम्‍भ भऽ जाइए। बॉंस काटल जाइए, कपड़ा बजारसँ आनल जाइए, बॉंसक चचरी बनौल जाइए इत्‍यादि...; चचरीपर उठा असमसान घाट गेला पछाति लहास जरबैक प्रक्रिया शुरू होइए। से केना जीवितेमे हएत?”
गुणेसरे कक्काक विचारक धारमे हमहूँ बोहि गेलौं। कहलियनि-
से केना हएत।
गुणेसर कक्काक मन अपन विचारक सफलता देखि उत्‍साहित होइत रहनि। कनी अँटैक बजला-
आब लए भोजक।
कहि फेर चुप भऽ गेला। मने-मन जेना किछु विचारए लगला तहिना बूझि पड़ल। मुदा कनियेँ काल जखन ऑंखि-पर-आँखि देलियनि कि जेना किछु मन पड़लनि। बजला-
बौआ, साहितक विद्यार्थियो रहलौं आ विद्यार्थीकेँ पढ़ेबो केलौं। से कोनो साल-दू-सालक समाज साहित्‍य नहि, हजारो-हजार बर्खक। सभ दिन समाजकेँ एक नजरिसँ देखैत एलौंहेँ, मुदा...।
मुदा कहि गुणेसर काका चुप भऽ गेला। जेना बीचक कोनो बात बिसरि गेल होथि। टोकारा दैत कहलियनि-
काका, एना जे मुड़ी छोपि कऽ तम्‍मासँ सिदहा लगाएब तखन तँ भेल।
हमर बात गुणेसर कक्काक मनक विचारकेँ जेना खोंचारि देलकनि तहिना खोंरनी नेनहि विचार जगलनि। बजला-
बौआ, समाजकेँ जे भोजो खुएबनि, से समाजो की समाज रहल। रंग-रंगक समाज बनि गेल अछि। ई जाति, उ जाति! ई दियाद, उ दियाद! ई टोल, उ टोल! ई गाम, उ गाम...! केते कहबह।
जेना हमरो भक् खुजल। कहलियनि-
हँ, से ते ठीके।
ठीके सुनि जेना गुणेसर कक्काक विचारमे सकताहट एलनि तहिना बूझि पड़ल। बजला-
बौआ, नाङ्गरि-बिनु-नाङ्गरिक, पूछ-बिनु-पूछक, पुछड़ी-बिनु-पुछड़ीक..., तेते रंगक ने लोक भऽ गेल अछि जेकरा समेटब असाध अछि। जेकर पुछड़ी छोट तेकर दैछना नमहर! आब तोहीं कहह जे एक तँ भोज खाइमे बिहंगरा ठाढ़ करत, जे कियो कहत भत-भोज करू, तँ कियो कहत भाते ने खाएब। तैपर सँ ई कहत जे खेबो करब आ दैछनो लेब। एक गोरेकेँ दैछना देबै आ दोसर गोरेकेँ नइ देबै से मन मानत?”
कहलियनि-
बड़ ओझरी बूझि पड़ैए, काका। तखन अपने मुहेँ बाजू जे अपन अभ्‍यंतर की कहैए?”
अपन अभ्‍यंतर सुनि गुणेसर काका ओहिना जिनगीक पोखरिमे डुमकी मारलनि जहिना कियो पोखरिक जाठि लग डुमकी लगा माटि उखारि ऊपर उठि जाठिक रोइयापर लगा अपनाकेँ धन्‍य बुझैए। अभ्‍यंतरक आत्‍माराम रूपमे बजला-
बौआ, ऐ दुनियॉंमे मनुखक जँ कोनो सम्‍पति अछि तँ ओ छी साहित, मुदा एतबे बुझल अछि।
कहि गुणेसर काका दुनियॉंक बोनमे हेरा गेला। जहिना हजारो-लाखो रंगक नीक-सँ-नीक फल दइबला बोनक गाछ जे फलसँ लदल किए ने रहौ, मुदा अनाड़ीले ओ बोनफड़ भेल जे लोक नइ खाइए, तहिना दुनियॉंक सघन बोनमे गुणेसर काका मात्र एकटा साहित्‍यिक बात बुझै छथि। सेहो किताबक। समाजमे माने मनुखक बीच साहित्‍य कोन रूपे जोड़ल अछि वा जोड़ल जा सकैए, ई बात काका नइ बूझि पाबि रहल छथि।
ओना व्‍याकरणक सन्‍धि-विच्‍छेद आ समास सेहो मनमे नचैत रहनि जे एकटा टुकड़ी करैबला आ दोसर टुकड़ीकेँ जोड़ैबला छी, मुदा तेकरा ओ व्‍याकरणक मात्र अंग बूझि-मानि बुझैत एला अछि। मुदा ओ तँ अक्षरक विन्‍यास भेल, मनुखक विन्‍यास तँ ओइसँ भिन्न छै, तैठाम गुणेसर काका हेरा जाइ छला।
लूटमे चरखा नफा। विचारक दुनियॉंमे जँ कियो बानर जकॉं चढ़ल होथि तखन जे गाछपर चढ़ल बानर जकॉं निच्‍चासँ खोंचार देबइ तँ नइ मनुख जकॉं तँ बानरो जकॉं तँ खबखबेबे करता...।
कहलियनि-
काका, अहॉं कनारि असुल रहल छी?”
कनारि सुनि चकोना होइत गुणेसर काका बजला-
से की, से किए उपराग दइ छह- बौआ?”
कहलियनि-
काका, अहॉंक विद्यालयमे हम नइ पढ़लौं तँए अहॉं अपन विद्यार्थी नहि बूझि छिपबै छी।
गुणेसर काका ठमैक गेला। ऑंखि उठा हमरोपर दथि आ निच्‍चो खसा लथि। मने-मन सोचए लगला जे जइ विद्यार्थीकेँ पढ़ेलियनि ओतबे ने हमर गुण लेबो केलनि आ पेबो केलनि, मुदा जे ऐसँ बाहर रहला, हुनका हम की देलियनि आ ओ हमरा किए चिन्‍हता? पढ़ल-लिखल रहितो हम कोन काजमे हुनकर सहयोगी भेलियनि? जखन सहयोगी बनबे ने केलौं, तखन सहयोगक केते आसा कएल जाए...?
...आखिर एना भेल किए? साहित्‍य तँ सबहक छी, सभ-ले अछि। हम साहित्‍यक उपदेश करैबलाक जिम्‍मामे छी, तखन किए ने बूझि पाबि रहल छी जे जेतबे लोक विद्यालय-महाविद्यालय देखलक तेतबे लोकक छी आ बॉंकी लोकक नइ छी। तखन? जरूर केतौ साहित्‍य आ समाजमे खाधि अछि जइमे ई दूरी बनि गेल अछि। मुदा आब काइए की सकै छी। आब तँ ने ओ देवी रहल आ ने ओ कराह!
हारल सिपाही जकॉं गुणेसर काका बजला-
बौआ, लोक उमेरे नइ जेठ होइए, बुधिये जेठ होइए। एकटा विचार पुछै छिअ।
पुछै छिअ कहि गुणेसर काका चुप भऽ गेला। हमरो कोनो गरे ने लगए जे किछु पुछितियनि। की पुछता की नइ पुछता से पेटक बात केना बुझब? जँ बाते ने बुझब तखन कहबनि की!
नजरि उठा ऑंखिपर देलियनि तँ बूझि पड़ल जे मनमे किछु खुर-खुरा रहलनि हेन। नजरि निच्‍चॉं करिते रही कि बिच्‍चेमे गुणेसर काका बजला-
बौआ, पाछू उनटि तकै छी ते बूझि पड़ैए, दुनियॉंमे केतौ कियो ने अछि। पत्नीकेँ देखै छियनि तँ बूझि पड़ैए जे सोल्‍होअना देह ऊपरमे खसौने छथि। बेटा सभ सहजे देह छिप फुह खेलाइए। समाजमे केकरो कोनो एकटा बोलोसँ, उपकार नइ केलिऐ तँ किए ऐ बुढ़ाड़ीक भार अपना कपार लेत।
गुणेसर कक्काक विचार सुनि बूझि पड़ल जे संयासीक अवस्‍थामे पहुँच रहला अछि। कहलियनि-
काका, अहॉं तँ संयासीक ओइ सीढ़ीपर पहुँच गेल छी जेतए लोक दुनियॉं-ले जानो-परान दइए आ दुनियॉंकेँ गरियेबो करैए जे दुनियॉं झूठ छी।
हमर बात गुणेसर काकाकेँ नीक लगलनि। जिज्ञासु बनि बजला-
बौआ, आब आगू की करी से कनी तोहीं कहह?”
पानिक धार निच्‍चॉं मुहेँ ने तेज गतिये चलैए, हवा तँ नइ छी जे जेमहर मन फुरतै तेम्‍हरे दौड़ो जाएत आ असथिरोसँ चलत। मनमे उठल, सभ दिन गुणेसर काका शिक्षकक रूपमे रहला, आइ अपने शिक्षकक खगता भऽ गेलनि! चेतन अवस्‍थामे नइ छथि सेहो बात नइ अछि। मनक आगूमे विचारक पट बन्न छन्‍हि जे खुलि नै रहलनि अछि, तँए खटखटबै छथि मुदा पट खुलिए ने रहलनि हेन!
कहलियनि-
काका, अपने तँ साहित्‍यसँ जिनगी भरि सटल रहलौं, मुदा तखन समाजसँ हटि गेल छी, यएह बीचमे...।
हमर बात सुनि गुणेसर काका चौंकैत बजला-
ठीके कहै छह, बौआ। सभ दिन किताबकेँ साहित्‍य बुझैत एलिऐ मुदा समाजे साहित्‍य छी।
हलसैत-कलशैत गुणेसर काकाकेँ देखि कहलियनि-
काका, पाइकेँ अही काजमे लगा दियौ।
विचारक धारमे गुणेसर काका बोहिते रहथि, बजला-
बेस कहलह, बौआ।
पॉंचम मास। गुणेसर कक्काक मन असथिरसँ मानि गेलनि जे अपन जिनगी भरिक जे धएल-धरल अछि ओ समाजक हितमे लगा देब। जइसँ पाइयोक कल्‍याण हएत। जँ नीक काजमे नइ लगत तँ अनेरे गलि-पचि कऽ नष्‍ट हएत।
पॉंच मास पूर्वक गुणेसर काका आब ओ नइ रहला जे छला। खोज करैत-करैत एला, हमहूँ हुनके ऐठाम जाइले तैयार होइत रही। कहलनि-
बौआ, आइ सभ काजक अन्‍तिम विचार कऽ लइक अछि।
कहलियनि-
लिखा-पढ़ीक काज अछि, ऐठाम असुविधा हएत।
दुनू गोरे विदा भेलौं।
फुलती काकी पहिनेसँ चाहक ओरियान केने रहथि। पहुँचिते तीनू गोरे चाह पीलौं। चाह पीला पछाति कहलियनि-
काका, अपने ते सब दिन समाजकेँ एक नजरिये देखलिऐ।
कहलनि-
हँ।
कहलियनि-
गामक जन-जनक मन-मनक विचार मंचपर आबए, ऐ ढंगसँ कार्यक्रमक तैयारी हेबा चाही। बेटा सभ की कहलनि?”
हँसैत गुणेसर काका बजला-
दुनू भॉंइ कहलक हेन जे अहॉं नीक कार्यक्रमक योजना बनाउ। सात दिन पहिने हम सभ आबि जाएब।
सोचैत-विचारैत सात दिनक कार्यक्रम बनल। गामक एक-एक जनकेँ सुनबो-ले आ बजबो-ले सभकेँ समए भेटनि। जइमे छह दिनक बारह बैसार भेल। अड़ोस-पड़ोसक जे साहित्‍य प्रेमी छथि, हुनको आमंत्रित कएल जान्‍हि। आ अन्‍तमे दिल्‍लीक डाक्‍टर त्रिलोकी चरणक साहित्‍य पाठसँ सातम दिन समापन कएल जाए। सएह भेल।
काल्‍हि छह दिनक बारहो बैसार समाप्‍त भऽ गेल। आइ अन्‍तिम सातम दिन त्रिलोकी चरणक कार्यक्रम छन्‍हि। दिल्‍लीसँ पटना हवाइ जहाजसँ औता आ पटनासँ चरिचकिया गाड़ीसँ दू बजेक कार्यक्रममे पहुँचता।
कार्यक्रम शुरू भेल। गामसँ अड़ोस-पड़ोसक सभ साहित्‍य प्रेमीक जुटान रहबे करए। मंच गनगनाइत। डा. त्रिलोकी चरण पटनासँ गामक रस्‍ताक जाममे फँसि गेला। मोबाइलसँ बेर-बेर खबरि होइत रहए जे जाममे त्रिलोकी बाबू फँसल छथि।
जाममे फँसल त्रिलोकी बाबू मने-मन सोचैत रहथि जे केतौ भाषाक जाम, केतौ विचारक जाम, केतौ बेवहारक जाम अछि। समाज तँ जाममे फँसि गेल अछि। कथीक जाम छी, मनमे उठिते त्रिलोकी बाबू एक गोरेकेँ पुछलखिन-
कथीक जाम छी?”
ओ कहलकनि-
एकटा पाथरक मुरती उखरल जे दूधो पीबैए आ बजबो करैए। तेकरे देखैले परोपट्टाक लोक उनटि कऽ जा रहल अछि। तेकरे जाम छी।
जहिना थोपड़ीक गड़गड़ीसँ मंच सजल तहिना थोपड़ीक गड़गड़ीसँ उसरियो गेल।
आठ बजे रातिमे डा. त्रिलोकी चरण पहुँचला। पहुँच तँ गेला मुदा एहलो बाधित भऽ गेलनि आ आपसीक सभ कार्यक्रम सेहो बाधित भऽ गेलनि।¦¦  

शब्‍द संख्‍या- 3363, 29 जुलाई 2015