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Tuesday, July 28, 2015

सीरक गाछ (गुड़ा खुद्दीक रोटी संग्रहसँ साभार)


सीरक गाछ

जेठ मास। भिनसुरका उखड़ाहाक दू घण्‍टाक काज पुरबैत रही कि सुर्ज दिस तकलौं। दू घण्‍टाक माने खेतक काजक दू घण्‍टा, नइ कि दिनक दू घण्‍टा।
रौदाएल हवा झँटियबैत-झड़कबैत रहए। अन्‍दाजमे आएल जे एगारह बजि गेल हएत। दू घण्‍टाक हिसावसँ काजक समए पुरैत रहए। काज उसारि खुरपी-हँसुआ समेटि जखन गमछा तरक मोबाइल उठेलौं कि एगारह बजैमे पाँच मिनट पछुआएल देखलिऐ। काजक समए नष्‍ट केना करब मुदा उसारल काजकेँ पसारबोमे तँ पॉंच मिनट समए लगिये जाएत। अग-दिगमे पड़ि गेलौं।
मनमे उठल- काजोक की कमी छै जे एकटा उसरि गेल तँ दोसर नइए। दुनियॉंमे ने खेतक कमी छै आ ने बाड़ीक, ने बाड़ीक कमी छै आ ने फुलवाड़ीक, ने फुलवाड़ीक कमी छै आ ने फलवाड़ीक, तहूमे फलवाड़ीओ कि कोनो एके रंगक अछि, तीन-मसुआसँ बरह-बरखा धरि अछि।
की करी की नइ करी, बिच्‍चेमे त्रिशंकु जकॉं मन लसैक गेल। काजक पतराइत विचार समए दिस देखैक जोर मनमे मारलक। जेठ मास। केहेन जेठ? जेठो तँ जेठ होइत-होइत जहिना जठिया जाइए तहिना ने छोट होइत-होइत छोटियाइत माटि-बालुमे दबैत दबिया जाइए? जेठो कि कोनो एके रंगक होइए, पाछूसँ अबैत गाड़ी सवार जकॉं तेहेन रूप बना रंगमंचपर नचैत आबि रहल अछि, जेकरा परेखब बाल-बोधक खेल नइ। पाछूसँ जँ रौदियाएल समए अबैत रहल तँ आरो बेसी रौदिया जाएत, आ जँ से नहि कहीं पाछू बढ़ियाएल पानि जेहेन पीने रहल तेहेन हरियाएल रहबे करत किने। मुदा जँ ने बाढ़िक पानि पीने हुअए आ ने रौदियाएल हवा पीने हुअए, तेहनो जेठ तँ होइते अछि। सएह जेठ।
ओना काजक हिसावसँ जेठ घटियाएल रहए मुदा लम्‍बाइ-चौड़ाइक हिसावसँ मिसियो भरि कमी नहि। काजक समए काजक दौड़मे ठेकान-बेठेकान भऽ जाइ छै, मुदा अकाजक समए तँ विरहाएल जकॉं बेर-बेर घड़ीक सुइआ दिस तकबे करैए। सएह भेल।
फेर मोबाइल उठा समए देखलौं तँ दू मिनट बढ़ल, तीन मिनट बॉंकी अछि। माने नहाइक बेर अबैमे तीन मिनट बॉंकी अछि। आगूक रस्‍ता बाड़ीक बीचे-बीच अछि, जेतए काज करैत रही तेतएसँ आगूक बाड़ीमे वामा भाग पॉंच गाछ लताम आ दहिना भाग सात गाछ नेबो पड़ैत अछि।
नहेबोक कि कोनो समए अछि, जेकरा जखन गर लगै छै से अपना गरे नहाइक समए बना अपन काज चलबैए। तखन तँ भेल अपन जिनगीक संकल्‍पित बान्‍हकेँ निमाहब। मुदा ओहो तँ कोसिकन्‍हाक बहुआहा बाध जकॉं मनुखो आ समाजोमे तँ अछिए। जेकरामे ने कोनो आड़ि-मेड़ छै आ ने खेतक शकल-सूरत, जेम्‍हरे मन फुरए तेम्‍हरे हिया कऽ देख लिअ आ सोझहे विदा भऽ जाउ। मुदा से थोड़े अछि, तीन बजे भोरसँ नहाइक घाट शुरू होइए आ तीन बजे राति तक चलैत रहैए। बीचमे केतौ आड़ि छै जे बुझब कखन उसरैए आ कखन शुरू होइए?
वामा भाग दिस लतामक गाछ फड़सँ लदल, जेठ रहितो जेहने हरिअर पात तेहने हरिअर फड़सँ सजल-धजल अछि। तरकारीवाड़ीसँ आगू एक दिस फलक झाड़ी तँ दोसर दिस फलक तरूवाड़ी। दुनू फल जहिना नेबोक झड़झाड़ी तहिना लतामक तरूवाड़ी। दुनू दिस दुनू अपन मस्‍ती भरल जुआनीसँ लदल।
आगू डेग उठिते दुनू फल- माने झाड़ीक नेबो आ तरूवरक लताम- पर नजरि गेल। एकटा मीठ दोसर खट्टा, एकटा गुदगर दोसर रसगर, तहूमे दुनूक पेटमे बीआ सेहो अछिए। किछु छी तैयो तँ छी दुनू जिनगीक सिरसजमनियेँ।
ने लताम दिस डेग उठए आ ने नेबो दिस। केकरा कहबै जेठुआ जेठ आ केकरा कहबै तहूसँ जेठ। खिस्‍सा जकॉं नइ ने होइए जे एकटा रहबे करै, एकटा पहिनेसँ रहै आ एकटा तबेसँ रहै आ एकटा सभदिने रहै...।
मुदा से भेल नहि सीरबला गाछक एकटा लताम अपन पूर्ण जिनगी जीब पूर्ण स्‍वस्‍थता पाबि अन्‍तिम भेँट चढ़ैले अकास तियागि धरतीक कोरामे आबि खसल, जीव-जन्‍तुक रक्षा लेल अपन वलिवेदीपर पहुँच गेल।
धरतीपर खसल फलक अवाज सुनि हमरो नजरि ओम्‍हरे बढ़ल। फरिक्केसँ फल देख मन मोहिया मोहित हुअ लगल। आगू बढ़ि हाथसँ उठा अंत-प्रत्‍यंग निहारए लगलौं, ने केतौ कोदवाक दाग आ ने केतौ तिलबा। सजल-धजल गुण-सम्‍पन्न गुदासँ भरल सिनुराएल लताम।
लतामकेँ नीक जकॉं निहारियो ने पेने रही कि झाड़ीमे झड़झड़ाइत एकटा पाकल नेबो सेहो खसल। नेबो खसैसँ पहिने- माने जा नेबो नइ खसल छल- मनमे उठल रहए जे लतामक हाल-चाल, समए-सालक समाचार पूछि लेब। मुदा से भेल नइ, जेना दू गोरेक बीच अपन लीला देखबैक उपरौंज हुअ लगैए तहिना बूझि पड़ल। जखन नेबोओ अपन वलिदानक लेल वलिवेदीपर आबिए गेल तखन किए ने दुनूकेँ एकेठाम परीछा करी।
लतामकेँ हाथमे नेने नेबो लग जाइ आकि हँसुआ-खुरपी-मोबाइल आ गमछाकेँ गाछक जड़िमे रखि नेबोएकेँ उठा आनी? सएह केलौं- गाछ तरसँ नेबोकेँ उठा हाथमे लइते रही कि ओ चहैक गेल। रससँ भरल रूप मुदा चहकलो पछाति ऑंखिक नोर अपन ठौर धेने! एको बून नोरक दरस नहि! अही टराटकमे रही कि चहकैत नेबो बाजल-
दू रूपैआ दामक हम छी, मधुबनीक टीसन-कातक होटलमे दस टुकड़ी कटि दस गोरेक भोजनकेँ सुवादिष्‍ट करै छी मुदा तैयो लोक हमरा दुसिते रहैए जे तूँ कॉंटक फड़ छेँ तोहर कोन मोजर!”
एक तँ ओहुना नेबो, दारीम, बेल कँटाएल गाछक फल छी, तहूमे बेल तँ ऊपर उठि झाड़ीसँ निकलि जाइए, जँ अपनामे झाड़ी बनबितो अछि तँ जेना-जेना अकास दिस उठैत गेल तेना-तेना झाड़ीकेँ झड़ियबैत डारिकेँ सुमझबैत आगू बढ़ि बढ़ैत जाइए, मुदा नेबो तँ से नइ छी! ओकरा कँटाएल वंशक कहि बगूरो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। जँ कोनो फल-फूलमे अमृत वरिसबैक शक्‍ति अछि तँ ओ नेबोओमे अछिए।
गाछक जड़िमे नेबोकेँ खसल रहने, ओरिया कऽ देह समटैत हाथ बढ़ा जड़ि लगसँ नेबो निकालने रही। कॉंटक झाड़ीक फल हाथमे अबिते मनमे खुशी जगले रहए। मुदा चहकल दू फॉंक जकॉं भेल नेबोकेँ देखि मनमे भेल जे जँ फटबो कएल अछि तँ ओकरा ओरिया कऽ उपयोग केलासँ कोनो फरक नै, किएक तँ ऊपरसँ खोंइचा ने फटलै, रसक बखारी तँ ओहिना समटल छै।
अपन विचारमे विचरण करैत विचारैत रही तँए नेबोक चहकबपर धियान नइ अँटैक ओकर गुणक उपयोगक विचारमे पहुँच गेल। मुदा तँए कि नेबोक तमतमी कमल रहै, मने-मन तमतमाइते रहए। ओना मनमे ईहो बात उठैत रहए जे दू-चारि ठोप रस जँ अमृते रहत तइसँ की लोकक दिन गुदस जेतै? असल अमृत तँ अन्न-पानि होइए। मुदा किछु बाजी नै चुपे रही, तमतमीओं तँ तखन तमतमाइ छै जखन ओकरा संग खट-समाद होइ छै।
नेबोकेँ नेने लतामक गाछक छाहरिमे बैसि लतामक संग सजबए लगलौं कि बिच्‍चेमे नेबो टभकि गेल-
हम आगूमे बैसब, नइ तँ अगिलाक गप-सप्‍प सुनैमे समए ससरि नहाइबेर भऽ जाएत आ हमरा बेरमे खेले उसरि जाएत।
अखन धरि लताम अपन मुँह समेटने सभ किछु देख-सुनि रहल छल। ओना नेबोक फटफटी सुनि लतामकेँ तामसो उठै मुदा अपन दरबज्‍जापर देख बरदास करैत रहए। खाली मंचपर वक्ता जहिना भरि पोख बजै  छथि, आ श्रोता भरि कान सुनै छथि तहिना एकतर्फा नेबो अपन भाषण-पर-भाषण ठाढ़ करैत रहए। मुँह कखनो सापुट नै लइ, खाली मंच देखि नेबो फेर बाजल-
भाय साहैब, अमरीत बरसा करैबला फल हम छी, अपन दियादवाद झाड़ीक फड़ कहि हमरा बोकियबैत रहैए आ आन-आन अपनाकेँ तरवर कहि मोजरे ने दइए।
लतामक नजरिसँ बूझि पड़ल जे तामसे जरल जाइए मुदा बीचमे हमरा देखि अपन मुँह बने केने छल। ओना तरे-तरे ओकर टीक तामसे ठाढ़ भेल जाइत रहै, मुदा लाजक पछे दरबज्‍जापर किछु ने बजैत रहए। कोनो कि औझुका दरबज्‍जा छी, सभ दिनसँ एहेन होइत आबि रहल अछि जे कोनो दरबज्‍जापर अमृत-पान भेटैए तँ कोनोपर विष-पान। मुदा अमृत-विषक सीमेपर ने नेबो सेहो ठाढ़ अछि।
ऑंखि उठा लतामपर देलिऐ तँ बूझि पड़ल जे किछु बाजए चाहैए। आँखिक टुसकी देलिऐ। टुसकी पबिते बमछैत नेबोकेँ कहलक-
तखनिसँ तोरा देखै छियौ जे बड़े फट-फट बजै छेँ जे हमरा मोजरे ने दइए।  
लतामक बातकेँ बिच्‍चेमे रोकि, जहिना एक सेना दोसर सेनाकेँ अकास-पताल धरिक सभ रस्‍ताकेँ रोकि बजैए तहिना नेबो बाजल-
कोन बेजए बात बजलौं जे तोरा एना तामस उठै छह? तोहीं  मोजर दइ छह?”
लतामक भक्क जेना खुजि गेल रहै तहिना कनी पाछू हटैत नेबोकेँ कहलक-
हम तरूवरक फल छी से ते मोजरे ने अछि आ तूँ ते सहजे झाड़ीक फड़ छिऍं।
झाड़ीक फड़ सुनि नेबोकेँ मने-मन होइ जे मरि जाएब तँ मरि जाएब मुदा एहेन बातकेँ आगू नइ बढ़ऽ देब। बाजल-
पहिने तूँ अपन अधखड़ुआ बात पुरा करह, पछाति जँ कोनो बात छूटि जाएत तखन हम बजबह।
नेबोक मनमे होइ जे गाछक फल रहनौं लताम देखैमे तँ हमरे जकॉं अछि। साइजक हिसावे एके रंगक छी, मुदा लताम तँ गुदगर होइए, अपने रसगर छी। संगे ओकर बीआ मात्र सृष्‍टिकर्तेटा नहि अमृत वरसक सेहो अछि, तैठाम अपने तँ कनाहे छी। तेतबे किए, ओकरा लोक हबैक कऽ चाहैए आ जँ हमरा हबकत तँ से हेतइ! नेबो सहमि गेल।
नेबोकेँ समहल देखि लताम कहलकै-
भाय नेबो, तोरा कि कोनो हम आन बुझै छिअ जे कानमे झड़ पड़ेबह, कहै छहक जे हमरा मोजरे ने अए। हमरे कोन मोजर अछि। जहिना तोहूँ फूलेसँ फड़ै छह तहिना हमहूँ फूलेसँ ने फड़ै छी, तूँ फड़ भेलह हम फल भेलौं सहए ने। आम जकॉं थोड़े मोजरै छी अपना सभ जे मोजर हेतह।
बैसल-बैसल दुनूक बकठॉंइ सुनि किछु फुरबे ने करए। कनी कम कि कनी बेसी कहै तँ दुनू नीके बात। यएह ने होइ जे खटाएल मुहेँ नेबो कनी बेसी खटगर बजइ।
दुनूकेँ बीच बँचाउ करैत कहलिऐ-
भाय जेहने लताम भेलह तेहने नेबो भेलह। दुनूक मुहोँ-कान आ रंगो-रूप मिलै छह, तँए आगू बैसब कि पाछू बैसब एकरा छोड़ह। दुनू अमृत छिअ, तँए अपन-अपन अमृतत्‍वक गुणकेँ बुझह।
मुड़ी डोला नेबो मानि गेल जे खाइकाल सभ अगुआएल बनल रहैए हम पछुआएल बनै छी सएह ने, मुदा पहिल कौरमे तँ हमहूँ साझी रहबे करै छी किने। 
सुनि कऽ मानि तँ दुनू लेलक मुदा बजैसँ परहेज करैत मुहेँ बन्न कऽ लेलक। अपन मन रहए जे किए ने दुनू अपन विचारकेँ अपनेमे समेटि लिअए। मुदा आगू बढ़ि बजैले कियो तैयारे ने अछि! जखनि कि अखने दुनू रक्का-टोकी करै छल!
फेर मनमे उठल, तामसे ठोर बन्न केने ने मुँह बन्न छै, मुदा मनमे तँ ओहिना तामस पजरले हेतै। तँए कनी खोंरना चला दिऐ। खोरियबैत बजलौं-
भाय नेबो-लताम, दुनू भैयारी भेलह मुदा अपन-अपन वंश तँ दुनूक अलग-अलग छह, से पहिने फरिया लाए।
राम दरबारमे जहिना छोट-छोट बानर किछु सुनि एक-दोसरक मुँह ताकऽ लगै छल तहिना लतामो आ नेबोओ एक-दोसरक मुँह ताकऽ लगल। मुहोँ केना ने तकैत, कोनो कि ओकरा टिपनि माए-बाप देने रहइ। बानर जकॉं करहर उखाड़ि माथपर रखैत गेल, डुमैत गेल, भँसियाइत गेलइ...!
दुनू दुनूक मुँह तकैत मुदा बजैत कियो ने किछु। फेर दोसर खोरनि चलेलौं-
भाय, घरक चारमे खोंसल टिपनि नइ छह तँ नइ छह, मुदा ई तँ बुझल छह किने जे धरतीपर केना एलौं?”
लतामक चुपी देखि नेबोकेँ तामस उठल, बाजल-
हम पनियाह छी मुदा तूँ ते थलियाह छह किने, तखन पहिने तूँ ने बजबह। हमरा ते पानियेँमे घोरि कऽ लोक पीब जाएत मगर तोरा जँ पानि सेने कियो पीतह, तेकरा तूँ बिना कफ-ठेँर, सरदी-बोखार उतारने छोड़बहक, बाजह।
नोवोक बोकिएलो पछाति जेना लतामकेँ सस नइ ससरइ। हिया कऽ देखै तँ बूझि पड़ै जे बोनो-झाड़क नेबो हमरासँ छोट कहॉं अछि। देखै छिऐ जे कनियेँ ठरिया कऽ गछिया टाभ नेबो तेहेन होइए जे हमरा वंशमे अखनि तक ओहन भेबो ने कएल हेन।
लतामक चुप्‍पी देखि नेबोकेँ बूझि पड़लै जे भरिसक हमर विचारक असरि लतामोकेँ भेल।
असरि पाबि नेबोक मनमे भेल जे जखने केकरो आइन-पीड़ा, दुख-बेथाक असरि होइ छै तखने ने ओकर मुँह खुलै छै। तँए आब देखिऐ जे लताम की बजैए।
मुदा जेना लतामकेँ किछु फुरबे ने करइ। दुनूमे देखिऐ जे नेबो तँ किछु बजितो अछि मुदा लताम तँ सोलहन्नी गुमकी लाधि देलक। कहलिऐ-
भाय, एना नइ हेतह पहिने ई कहह जे तूँ ऐ धरतीपर केना एलह?”
सातो गाछ नेबो एकठाम बैसि अपन परिचए-पात कऽ नेने रहए, तँए सबहक बात सभकेँ बुझल रहइ। सीरक गाछक सिरगर फल दइबला सीरजन फल जहिना लताम तहिना नेबोओ। दुनू अपन बुढ़ाड़ीक रंगमे रमल-रंगल। जिनगीक सभ तीत-मीठक अनुभवी दुनू...।
नेबो बाजल-
हमर तीन वंश अछि, बीआसँ गाछ होइ छी, डारिमे कलम लगौलासँ होइ छी आ गाछक सीर कटलासँ सेहो होइ छी। हम अही वंशक सीरक गाछ छी।
नेबोक सुगंध भरल रस पीबिते मन वौआ गेल। मुहसँ खसि पड़ल-
आमकेँ मोजर होइए, तँए कि तोरा फूलक मोजर नइ भेल, से तँ भेबे कएल, तइले अनेरे ने तामसे फटै छह।
अनेरे तामसे फटै छह सुनि आकि की, जहॉं मुँह बन भेल कि नेबो झपाटा मारलक-
जहिना आम अपनाकेँ मोजर दइए तहिना हमहूँ अपन फूलकेँ मोजर बुझै छी, ककोड़बो बिआन ओकरो छै जे घोदा घोदे फड़ैए आ हमरो तँ से अछिए। तखन जे आम बढ़ि-चढ़ि कऽ बाजत से मानबै।  
अपना ताले-वेताल भेल नेबो। की बजैए नइ बजैए से किछु बुझबे ने करिऐ। एतबे अन्‍दाज आबए जे रसिया कऽ कसिया गेल अछि। कहलिऐ-
सुनै जाह, एना जे एकहरफी तामस झाड़ै जेबह से नीक नइ हेतह। तँए फुटा-फुटा कऽ बाजह। तोराले हम किए झूठ बाजी।
झूठ किए बाजी सुनि नेबोक मन शान्‍त भेल। मुदा तैयो मन उझैक गेलै। आम दिस इशारा करैत बाजल-
भाय साहैब, हम सीर-वंशक छी, ओ बिनु सीरक अछि। बीआसँ कहियौ आकि ऑंठीसँ से होइए, चाहे कलम लगा कऽ होइए जे दुनू तँ हमरो होइते अछि। मुदा तेसर रंगक जे सीरसँ गाछ होइ छै जे हमरा तँ होइए मुदा आमकेँ से कहॉं होइ छइ?”
नेबोक विचारमे तेना बोहिया गेलौं जे बजा गेल-
हँ, से तँ होइते अछि।
शतरंजक सह जकॉं नेबोकेँ सह भेटल। एके-बेर तीन घर टपि बाजल-
आमकेँ हम बिनु सीरक गाछ बुझै छी, तँए ओ बिनु माथक भेल, जखन माथे ने छै तखन ओ समाजक तीत-मीठ केना बुझत।
नेबोक सन-सनीसँ बूझि पड़ए जेना भोजनक सभ विन्‍यासमे सनाएल हुअए! कहलिऐ-
देखह भाय नेबो, एकटा तोरे फटफटेने तँ नइ ने हएत, लतामोक वंश ने बुझबहक?”
मने-मने लताम सेहो अपन वंश-वृक्ष गुनि नेने रहए। अत्‍मामे बिसवास बनि बसि गेल रहै जे हमरो वंश तीनपुरिया तँ अछिए। जहिना नेबो बीओसँ, डारियोसँ आ सीरोसँ वंश सिरजैए तहिना तँ हमरो वंश अछि। आमकेँ छै कि नइ छै से ओ अपन बुझत, तइले हमर छाती किए फटत। डँटैत नेबोकेँ लताम कहलक-
तोरा ढेरीए छौ तइसँ अनका की, ओ अपन बाँहिक बुते कमा खाइए आकि तोरे ढेरीए जीबैए। तइले तोहर छाती किए चहकै छौ?”
लतामक बात सुनि बूझि पड़ल जे नेबो किछु बजैले लुसफुसा रहल अछि। एकरा सबहक लपौड़ीमे अपन नहाइयोक बेर उनहि रहल अछि। मुदा एकरा सभकेँ छोड़ि नहाइयो-खाइले केना जाएब। दुनू दुनूपर तमसाएल अछि। बीचसँ उठि कऽ चलि जाएब आ जँ कहीं दुनू अपनामे पटका-पटकी करए लगए तखन ते खेनाइयो ने गरगट हएत। तइसँ नीक जे कनी नीक आकि कनी अधला, टटके फरिछौट कऽ दिऐ। टटका फरिछौट बेसी नीक होइतो अछि। कहलिऐ-
दुनू भैयारी सुनह, दुनू गोरे शिवलिंग जकॉं बीचमे आड़ि दऽ दहक जे अपन-अपन दुनूक सीमा भेलह आ ओइ सीमाक भीतर अपन दुनियॉं भेलह।
बिच्‍चेमे नेबो बाजि उठल-
हमरा दिससँ कोनो इतराज नइ मुदा लतामोसँ से पूछि लियौ।
हाथक इशारा दैत नेबोकेँ कहलिऐ-
भाय नेबो, जखन दुनू गोरेकेँ एक्के ऑंगनक धरतीपर रहि दिवस गुदस करैक छह तखन अनेरे लड़ैत-झगड़ैत किए रहबह, मेले-मिलानसँ किए ने रहबह।
नेबोकेँ जेना अपन जिनगीक किछु कटु अनुभव रहै तहिना मनमे धकमकाइत रहइ। ओना धकमकीक दोसरो कारण रहै जे सीमा कातमे- माने जैठामसँ एक दिस नेबोक बगान रहै आ दोसर दिस लतामक, तैठाम आड़िक कातमे लतामक गाछ नेबो गाछकेँ कोनो कर्म बॉंकी नइ रहऽ देने रहइ- से देखल-भोगल रहबे करइ।
नेबोक मनक गम्‍भीरता आ लतामक चुप्‍पी देखि मनमे उठल- नहाइयो-खाइक बेर हूसल जा रहल अछि आ कोनो काज ससरिये ने रहल अछि, अनेरे समए उनहि जाएत...।
ओह! अनेरे सभ दम तोड़ै छी। नेबोकेँ कहलिऐ-
नेबो भाय, एना रग्‍गर केने नइ हेतह, सभकेँ सभपर बिसवास करए पड़तह, तखन ने काल्हि दिन निचेनसँ रहबह।  
नेबोक मनक तामस दोसरे रंगक रहइ। जेना होइ जे जखन सभ जाने मारै आ जिनगीए लइ पाछू लगल अछि तखन किए ने हमहूँ मुहेँपर कहिऐ...।
नेबो बाजल-
भाय साहैब, अहॉं पुरुख भेलौं आ हम जड़ि भेलौं।  अहॉं हमरा जिनगीसँ प्रेम करै छी तँए हमहूँ जिनगी देने छी। मुदा जहॉं-धरि बिसवास करैक बात अछि तइमे हम मनुखेपर नइ बिसवास करै छी।
नेबोक बात सुनि मनमे भेल जे जाबे एहेन विचार दुनूक नइ रहत ताबे दुनूकेँ दुनूपर सँ अबिसवास नइ हटतै आ जाबे एक-दोसरपर बिसवास नइ जगतै ताबे नेबोक मन असथिर नइ हेतइ। एकरा के नकारि सकैए जे मिथि-मालिनीक सेवा कएल वन-उपवन झाड़ी-फुलवाड़ीक देश हमर मिथिला छी। जैठाम एक दिस धारक कटानसँ फल-फलहरीक खेती उपैट रहल अछि आ दोसर दिस तइसँ कनियोँ कम गामसँ उपटनिहारक कमी सेहो नइ छन्‍हि...!
सामंजस्‍य करैत लताम-नेबो दुनूकेँ कहलिऐ-
जे दिन बीत गेल ओ धरतीसँ उड़ि मनाकासमे बसि गेल मुदा काल्हि दिन-ले तँ सभकेँ अपना-अपनी सोचए पड़तह किने?”
नेबोक मन जेना समटा कऽ गाढ़ रस बनि गेल होइ तहिना बूझि पड़ल। ओना बूझि पड़ल जे खटरसमे मीठरसक प्रवेश भऽ रहल छै। तैसंग ईहो बूझि पड़ल जे जँ मुहसँ किछु खसि पड़ल तँ नेबो जहिना कटाएलपर छनछना कऽ लगैए तहिना फेर ने कहीं लगि जाए। मुदा जाबे नजरि-नजरिक मिलानी नइ हएत ताबे प्रेमसँ काल्‍हि दिन चलब तँ कठिन अछिए...। कनडेरीए ऑंखिसँ नेबोओ दिस ताकी आ लतामो दिस।
नेबोक मन जेना-जेना शान्‍त होइत जाइत देखिऐ तेना-तेना लतामक मन संताप दिस बढ़ल जाइत देखिऐ। असथिरसँ जखन नजरि उठा लतामपर देलिऐ कि नजरि मीलिते लताम बोम फाड़ि कानए लगल। ठोर बिजका-बिजका तेना ने कानि-कानि अपन बेथा-कथा कहए लगल जे किछु-किछु बुझबो करिऐ आ किछु नहियोँ बुझिऐ।
तैबीच नेबोक मुँह बजैले लुसफुसए लगलै। नेबोकेँ लुसफुसाइत बजैक मुँह देखि मनमे खुशी उपकल। खुशी ई उपकल जे भने प्रति-उत्तरमे लतामो किछु बजबे करत, तहूमे कनैए। जँ हँसैत रहैत तँ पहाड़ो तोड़ैक झगड़ा होइत मुदा कननीमे तँ अपनो जान भौर भेल रहै छै।
नेबो बाजल-
भाय, जहिना तूँ तहिना तँ हमहूँ छीहे, तखन तूँ कनै किए छह?”
मनमे भेल जे भने एक जिनगी जीनिहार दुनू अछि आ दोसर संगजीवी वा सहजीवी जीनिहार सेहो अछिए तँए ओकर दोस्‍ती बेसी गाढ़ हेतइ। तही बीच हुचकैत-हुचकैत लताम बाजल-
देव, दानव, मानव सब बेपीरित भऽ गेल! रहब केतऽ!”
लतामक बात नेबोकेँ जँचल मुदा उत्तर फुराइते ने रहइ। नीक जकॉं बेथाक कथा बुझबे ने करइ। पाछू हटैत नेबो बाजल-
भाय, एना नइ बुझबह, जखन तोरे जकॉं हमहूँ छी तखन केतऽ गड़बड़ छह से फरिछा कऽ बाजह?”
लताम बाजल-
भाय, पहिल आफत तँ ई आएल अछि जे कोसी-कमला धारक बाढ़ि जेमहर जाइए तेमहर खाइए, दोसर बसबैबला अपने बहरवास भेल जा रहल अछि तखन तोहीं कहह जे अदौसँ आएल बाप-दादक वंश केना बँचत?”
बिच्‍चेमे नेबो बाजल-
ई सभ ते हमरो भाइए रहल अछि तइले तूँ कनै किए छह? जँ औरुदा लऽ कऽ आएल हएब तँ केकरो मेटेने मेटेबै।
लताम बाजल-
भाय, तूँ ऊपरे- घारे मुँह तकै छह, तइसँ नइ ने काज चलतह।
ऊपरे-घारे सुनि नेबोक मन कनी पिनपिनेवो कएल मुदा लगले भेलै जे जखन परिवारोमे रंग-रंगक समस्‍या अबै छै, तैठाम तँ हम दोसर समाजक भेलौं, भऽ सकैए जे ओकर बात नइ बुझल हुअए। बाजल-
भाय, कनी फरिछा कऽ बाजह। नजरि ओमहर नइ जाइए।
लताम बाजल-
जहिना मिथिलांचलक फल लताम छी सेव नहि! मुदा?”
लतामक प्रश्‍न सुनि मन ठमैक गेल। नजरि उठा जखन नेबो दिस देलौं तँ बूझि पड़ल जे भरिसक ओहो अपन जिनगीक रागमे विराग भऽ रहल अछि।
नेबो दिससँ नजरि उठा जखन लतामपर देलिऐ तखन बूझि पड़ल जे लतामक धौना जेना टुटि गेल होइ तहिना मुँहक बिजकी देखै छी। मुदा एहनो तँ दुनियॉंमे अछिए जे लोक अपन शीलक गुणे धो-पोछि कऽ चाटि लइए।
लताम अपन बेथा ऐ दुआरे ने बजै जे मनुख लग बाजी आ ओ आरो विसविसा कऽ धऽ लिअए। तखन तँ जेहो दू-चारि साल जीबै छी जीबै छी। अनेरे किए परान गमाएब। मुदा लतामक मन कलैप-कलैप विवेककेँ कहै-
पुश्‍तैनी फल सभ गुण-सम्‍पन्न छी, मुदा परदेशी सेव केना हमरा समदिया बौहु जकाँ धकेल कऽ निकालि रहल अछि। संस्‍कार कहिया अण्‍डा देत।¦¦  
शब्‍द संख्‍या- 3071, 13 जुलाई 2015

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