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Monday, July 6, 2015

कनी हमरो सुनू (कथाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल)



अगिला पोथी पुन: लघुए कथाक तैयार भऽ रहल अछि। संग्रहक नाओं गुड़ा-खुद्दीक रोटी राखलौं, जइमे चारिटा कथा तैयार भऽ गेल अछि। डकरा हाल, जेतए जे हौउ, गठूलाक गारि आ कनी हमरो सुनू। पॉंचम कथा- गुड़ा-खुद्दीक रोटी- सेहो करीब आठअनासँ बेसी लिखि लेलौं अछि। कौल्हुका भिनसरमे पूर्ण भऽ जाएत। अखनि चारिम कथा अहॉं सभले-

कनी हमरो सुनू






धुरिया अखाढ़। अदरा नक्षत्र रहितो बर्खाक कोन बात जे झीसीओ-झासीक दरस नै, आ ने मेघमे केतौ मेघेक दरस अछि। ओना बूझि पड़ैए जहिना उनैस सए सरसठि-अरसठि इस्‍वीक अखाढ़केँ रंग चढ़ि गेल रहै तहिना अहूबेर अछि। मुदा ओहन तँ नहियेँ अछि।
सरसठि-अरसठिक जे अखाढ़ रहै ओ ओहन रहै जइमे पानि पड़ा कऽ पताल चलि गेल, जइसँ तीन साल बरखे ने भेल! तहिना माघक जाड़ जिद्द धऽ कऽ जे रहबो कएल तँ ओकरो कोनो दशा बॉंकी नहियेँ रहलै। माने ई जे सिरक-सलगी अलगनीए आ ऊनी कपड़ा सभ बक्‍शे-बुक्‍सी धेने रहि गेल।
ऐबेरक धुरिया अखाढ़ हथियामे जे पानि पीलक ओ अखनि तक पियासले अछि। एकर माने ईहो नइ जेना पौरुकॉं चैतो बरिसल, बैशाखो बरिसल, जेठो बरिसल आ सप्‍ताह भरिक रौद भेने रस्‍ता-पेरामे धुरा सेहो उड़ऽ लगल।
वृद्धा पेन्‍शनक फारम भरऽ ब्‍लौकपर जाएब। गामसँ डेढ़े कोसपर ब्‍लौक रहने गाड़ी-सवारीक खगतो नहियेँ अछि तँए पएरे जाएब। अहॉं कहब जे कोनो समान कीनऽ जे लोक गामोक दोकान जाइए तैयो साइकिलपर चढ़ि कऽ जाइए आ अहॉं एक तँ ब्‍लौक जाएब जैठाम हाकिम-हुक्काम रहै छथि, तैसंग गमैया रस्‍ता टपि धुराएल बगए-बानि लऽ कऽ केना जाएब। आ दोसर डेढ़ कोस पाँचो किलोमीटरसँ बेसीए भेल तेतौ जे पएरे आएब-जाएब तखन गाड़ी-सवारीक खगते की रहल।
मुदा एहेन शुरूहेसँ अभ्‍यास रहल। जखन मध्‍यमामे पढ़ैत रही, गामसँ अढ़ाइ कोस विद्यालय रहए, तखन पएरे सभ दिन आबी-जाय, आ...। एक तँ ओहुना देखै छी जे आमक जे ऑंठी होइए, शुरूमे कोइली रहैए, कोइलियोमे खिच्‍चा कोइली, चिड़ैक गेल्‍ह जकॉं, जे जुआइत-सकताइत मजगूत ऑंठी बनि जाइए।
तहिना विद्यार्थी जीवनमे जे पएरे चलैक अभ्‍यास बनल ओ अखनो अछिए। ऐसँ मनो खुशी रहैए जे अपने हाथे-पएरे अपन काज चला लइ छी। ओना, जहिना भगवान सभकेँ करैले हाथ, सोचै-विचारैले बुधि, खाइ-पीबै आ बजै-भुकैले मुँह दइ छथिन तहिना तँ चलैयोले पएर देनइ छथि।
ब्‍लौकक काज सबेर-सकाल भऽ गेल, माने दस-सवा दस बजे काज भऽ गेल। बजारक कोनो दोसर काज रहए नइ तँए साढ़े दसे बजे करीब ब्‍लौकक हाता छोड़ि घरमुहॉं भऽ पौने बारह बजे घरपर आपस आबि गेल रही। ओना जेबेकाल नहा नेने रही मुदा रौदो आ रस्‍तोक झमारसँ मनो तबधि गेल आ पियासो लगिये गेल रहए। रौदाएलमे पानि पीब नीक नहि तँए पानिक तरासकेँ दाबि देलौं। खाइयो बेर भाइए गेल, मुदा तबधलमे अन्नो रूचिगर नहियेँ जकॉं लगै छै, तहूमे पियासक जोर अछि, जँ कहीं पानियेँ बेसी पिया गेल तखन तँ अन्नक रूचि आरो मरि जाएत। तँए विचार केलौं जे पहिने नहा ली। कोनो कि माघ मास छी, गरमी मास छी। एकबेरक कोन बात जे तीनियोँ बेर नहाएब अधला नहियेँ हएत। संगे देह भीजने पानियोँक तरास कमबे करत। जेते पानिक तरास कमत तेते अन्नक तरास बढ़त। तँए नहा लेलौं।
नहा कऽ दरबज्‍जापर अबिते रही आकि अँगनाक ओसारपर पीढ़ियाक अवाज सुनलौं। नीक संजोग देखि मनमे खुशी भेल। खुशीओ केना ने होइत, संजोगे ने कर्मो जोग, ज्ञानो जोग आ भक्‍तिओ जोग छी। नीक कर्मक नीक फल आ अधला कर्मक अधला फल सभ दिनसँ होइत आबि रहल अछि, आगूओ होइत रहत।
दरबज्‍जाक ढाठपर भीजल कपड़ा पसारि सोझे ओसारक पीढ़ीपर पहुँच गेलौं। पहुँचिते पत्नी परोसल थारी आगूमे रखि, कनी कात दबि कऽ ठाढ़ भऽ गेली। थारीकेँ निच्‍चॉं-ऊपर हियासि देखलौं तँ बूझि पड़ल जे जहिना झोराएल तीमन केराक तहिना तड़ुओ केरेक छी! कनी नजरि घुसकेलौं तँ केरेक लटपट तरकारीओ आ सन्नो केरेक देखलौं। फेर कनी नजरि दौगेलौं तँ लसुन देल केरे-खोंइचाक चटनीओं बूझि पड़ल।
नीचॉं-ऊपर केराक विन्‍यास देखि मन झुझुआ गेल। एक तँ जेठोसँ बेसी जुआएल गर्म समए चलि रहल अछि। कॉंच केराक गुण अछि जे पेटक बान्‍ह करैए। एक तँ ओहिना समैक चपेटमे देहक अन्नो-पानि सुखा जाइए तैपर आरो सुखबैक भोजन तँ प्राण भक्षके भऽ सकैए। ऑंखि उठा पत्नी दिस बढ़ेलौं तँ बूझि पड़ल जे एकटा ऑंखिपर साड़ीक छोर पसारने कनडेरीए ऑंखिये अपन प्रशंसो सुनैक खियालसँ आ बाहरसँ कमा कऽ आएल रही सेहो खुशनामा सुनैले मुस्‍कुराइत देखि रहली अछि। जखन कि अपने तामसे जरल रही आ ओ[1] चौअनियॉं मुस्‍की दऽ रहल छेली। मुस्‍कीओ केना ने दितथि, आने दिन जकॉं पॉंच तरहक विन्‍याससँ सजल थारी जे पतिक सोझमे रखि खाइत देखती! आखिर पत्नीक सौभाग्‍य तँ...।
ओना दुनू परानीक बीच विचारोमे कमी-बेसी रहने खटपट-लटपट होइते रहैए। मनमे उठैत रहए- गरमक समैमे केराक विन्‍यास! मुदा  पत्नी पाकल केरा आ कॉंच केराक गुणक भेदे ने बुझैत। यएह सभ सोचै-विचारैमे कनी हाथ वगा गेल। कनडेरिये ऑंखिये देखैत पत्नी पुछि देली-
हाथ किए वगने छी?”
विचित्र स्‍थितिमे फँसि गेलौं। पत्नी अपने ताले बेताल रहथि जे जहिया कोनो तीमन-तरकारी नहियोँ रहल तहियो मिरचाइयोक पॉंच तरहक विन्‍यास- फोड़नाएल मिरचाइ, तड़ल मिरचाइ, निमकी मिरचाइ, कॉंच मिरचाइ आ नोन मिलौल कॉंच मिरचाइ- बना थारी सॉंठि अपन पॉंचो विन्‍यासक संकल्‍प पुरबिते रहलौं अछि। जखन विधेमे कोनो विधान नइ रहत तखन पतिक सोझ मुँह निच्‍चोँ उतारब तँ उचित नहियेँ भेल।
ओना हमर कड़ुआएल मन देखि पत्नीओंकेँ मन जेना कड़ुएलनि। की कड़ुएलनि से तँ ओ जानथि मुदा चेहरासँ बूझि पड़ल जे ओ मने-मन धिक्कारि रहल छथि-
ईह! दू सए रूपैआ महिना वृद्धा पेन्‍शन-ले जे रेठान केने आएल छथि! होइ छन्‍हि जे बड़का पहाड़ ढाहि कऽ आएल छी। तीन सए रूपैआ महिना चाहक खर्च छन्‍हि आ दू सए भेट गेने सभ दिन बुढ़ाड़ीमे मुरगी अण्‍डा आ दूध पीता। करनी अपाहिजक आ भरनी कमासुतक!”
विचारणीय बात अछि, जे जँ हमरा हाथे काज नइ हएत, माने हमर हाथक काजे हेरा जाएत, तखन उत्‍पादन केना हएत। आ जखन उत्‍पादने ने हएत तखन समाज आगू ससरत केना। खाली बाजब भाषण भेल मुदा काजक संग बाजब ने बाजब भेल।
अही गुन-धुनमे थारीपर बैसल हाथ वागने रही, तही बीच थारीमे परसल केराक तड़ुआ टोकलक-
हमर वलिदानकेँ अहॉं बूझि नइ पाबि रहल छी, तँए हाथ वागने छी।
पुछलिऐ-
अहॉंक की वलिदान?”
जेना केरोकेँ बूझि पड़लै जे एतेटा जिनगीमे कहियो कियो एहेन बात नइ पुछने छल। जखन पुछलक तँ हमहूँ किए ने अपन छाती खोलि उघारि कहिऐ। बाजल-
हमर दिन अदिन भऽ गेल! नइ ते हमहीं जइ गाछ सभकेँ ठाढ़ केलौं सएह बेइज्‍जत कऽ रहल अछि।
मनमे उठल- मनुखकेँ इज्‍जत-आवरूक ठेकाने ने छै आ तीमन-तरकारी एहेन बात किए बजैए? पुछलिऐ-
की गाछ सभकेँ ठाढ़ केलहक आ की बेइज्‍जत कऽ रहलह अछि?”
फनैक कऽ झोराएल केरा बाजल-
तोहीं कहह जे फल रहैत तरकारी बनल छी, से उचित भेल?”
जेते विचारकेँ सोझरबऽ चाहै छी, तेते रंग-बिरंगक ओझरीए लगि जाइए। तखन? मनकेँ थीर करैत कहलिऐ-
जखन तूँ थारीमे आबि गेल छह, दुनियॉं छुटि रहल छह तखन पहिने तोरे बात सुनि लेब, पछाति खाएब।
हमर बात सुनि थारीएमे गल-गुल हुअ लगल। निच्‍चासँ झोराएल केरा कहै- पहिने हम अपन दुखनामा बाजब, तँ तड़ुआ कहै- हम ऊपरमे छी, पहिने अपन दुखनामा हम बाजब। मुदा लगले लटपट केरा कहै- हमहूँ तँ ऊपरेमे छी तखन पहिने हम किए ने बाजब।
तहिना कातसँ पीसाएल चटनी कहै- हमरासँ मेहीं के छेँ जे पहिने बजमेँ, तँए पहिने हम बजबौ। तँ बगलमे बैसल सन्ना कहै- जहिना छोट दाना भेने मरूआ कुअन भेल अछि, तहिना तोहर कोनो मद्दी नइ। देह-हाथ मोटगर-डटगर अछि हम्‍मर आ बजमेँ तूँ। तोरासँ पहिने हम बाजब।
दुनू हाथ उठा शान्‍त-शान्‍त कहैत-कहैत सभ शान्‍त भेल। पुछलिऐ-
सभ ते कोनो ने कोनो रूपे केरे भेलह किने?”
जेना कोनो झगड़ाक पछाति आकि किछु बजला उत्तर कनी टिफीन करैक मन होइए तहिना सभ केरोकेँ भेल। सभ सबहक मुँह ताकऽ लगल जे के की बजैए। जखन सभ एके छी तखन जँ फुटा कऽ कोइ अपना-ले बाजत तखन ने कहबै- तूँ स्‍वार्थी छेँ, लोभी छेँ जे सबहक बात नहि बाजि, अपन बात फुटा कऽ बजै छेँ।
मुहेँ तका-तकीमे सभ चुप भऽ  गेल। अपनो भूखो लगल रहए आ पियासो रहबे करए, ओना पियास तँ तरसाइत तरसा गेल रहए मुदा थारीमे पड़ल वलिवेदीकेँ रोकलो तँ नहियेँ जा सकैए। ओ तँ कण्‍ठे लग अँटैक कऽ गरगट मचा देत। जखन केरा दिससँ कोनो प्रश्‍न नहि उठल तखन कहलिऐ-
देखह भाय, तूँ सभ एकमुहरी भऽ अपन विचार राखह।
मुहसँ प्रश्‍न खसिते बीचमे एकटा टभकल-
पहिने ई कहू जे देवस्‍थानमे चढ़ैबला परसाद थारीक कँचका सन्ना बनल छी, से उचित भेल?”
उचित की भेल, अनुचित की भेल ई तँ पछाति बूझल जाएत मुदा एना भेल किए? ऐ प्रश्‍नमे ओझराएले रही कि आरो प्रश्‍न मनमे उठि गेल- जेतए मालदह आकि पाकल बम्‍बै आम आगूक थारीमे रहत तेतए पाकल केराकेँ के पूछत?
मुदा आमोकेँ बलउमकी तँ नहियेँ छै। वेचाराक मास-डेढ़ मासक औरुदामे धार जकॉं उजैहिया चढ़ल छै, फेर सालो भरि हेराएल रहत। मुदा केराकेँ तँ से नहि अछि। बारहो मासक औरुदा छै...!
किछु फुरबे ने करए जे की जबाव दिऐ। मुदा ओकरा सबहक जे मुँहक रोहणि देखलिऐ तइसँ बूझि पड़ल जे हाथ वागने देखि जनु ओकरो सभकेँ खौंझ  उठि गेलइ, तँए एना बजैए। कहलिऐ-
भाय, तोँ सभ ते अपने बरहबट्टू भऽ गेल छह, ठौर-ठेकान छहे ने जे कोन मास बच्‍चा जनमाबी जे माघक जाड़ खेप सकए, सालो भरि कच्‍चे-बच्‍चे वृद्धि करैत रहै छह, जइसँ भरण-पोषणमे कोताही हेबे करतह। अखनि हमहूँ भुखाएल छी, तोरा सभसँ समए लइ छिअ, खेला-पीला पछाति निचेनसँ गप करब।
मुदा से सभ मानि गेल। पत्नीकेँ कहलियनि-
तीमनक रस आ चटनी रहऽ दियौ बॉंकी सभ चीज थारीसँ हटा लिअ। दालि जकॉं झोर आ तरकारी जकॉं चटनी तँ भाइए गेल।
पत्नीक मनमे यकायक जेना कोनो झटका लगलनि तहिना झटैक बजली-
की करितौं, बाड़ीमे जुआएल केरा देखलिऐ, आमक मास एकरा के पुछैत। अपने आम खाएब आकि केरा, तहूमे छोट-छीन घौउरौ नहियेँ छल तँए ओकरे काटि कऽ आनि तीमन-तरकारी, तरूआ-चटनी सभ किछु बनेलौं।
बजैत-बजैत पत्नीक मन चनकऽ लगलनि। चनकबो केना ने करितनि। एक दिस पतिव्रत धर्मक हनन होइत देखथि तँ दोसर दिस भूखल पतिकेँ थारीपरसँ उठैत...। केतए गेल दिन भरिक श्रम, जखन कोनो ओकर उपयोगे नहि!
मुदा एना भेल किए से बुझिए ने पाबि रहल छेली। बुझबो केना करितथि। अपनो तँ कहियो मौसमक अनुकूल केराक उपयोग नहियेँ कहने छेलियनि...?
...कहबो केना करितियनि, कोनो कि बुझल छेलए जे एना हएत। एना भऽ आमो कहॉं कहियो फड़ल देखलिऐ। जेना 1962 इस्‍वीमे फड़ल छल तहिना फड़ि गेल। ओना अखनि तक जे थारीमे हाथ वागि तीमन-तरकारीसँ गप करै छेलौं से पत्नी नइ सुनली। नइ सुनैक कारण छेलनि जे मन घुरिया गेल छेलनि जे भरिसक गिरगिट-तिरगिट ने तीमनमे पड़ि गेल छन्‍हि, आकि मकड़े-तकड़ा ने तड़ुआ संगे तड़ा गेल। मुदा किम्‍हरो ते एके भाग ने भेल हएत, या तँ तीमनमे गिरगिट पड़ल हएत या तड़ुआमे मकड़ा, तइले बॉंकी विन्‍यासक की दोख भेल जे हाथ वगने छथि? भूखल-पियासल मनुखकेँ देख केकर मन नइ चहकतै, तहूमे जे परिवारक कर्ता-धर्ता छी।
ऑंखिपर सँ साड़ीक कोर सरका पत्नी ओइ अपराधी जकॉं याचना करए लगली जे निर्दोष अछि। बजली-
हमरासँ की कसूर भेल?”
यकायक जेना घरक सीकपर सँ कोनो वौस खसने छहोंछित भऽ छिड़िया जाइए तहिना मन छिड़िया गेल। बजलौं-
सचार लागल थारी आगूमे अछि, अहॉंक चूक केतौ ने अछि। अहीं की करितौं, केराकेँ जँ काटि तरकारी बना नइ खा लेब तँ ओकर जिनगी गलिये-पचिये ने जाएत।
जेना हमर बात सुनि पत्नी साँस छोड़लनि। अपना बूझि पड़ल जे कितावक एक पराग्राफ भरिसक पढ़ि लेली तँए किछु विचार छुलकनि अछि। आस्‍तेसँ सहटैत कनी आगू बढ़ि लगमे आबि अपन सुखाएल धारक रूप साजि ऑंखि मिड़मिड़ेली। बूझि पड़ल जे मोती झहरि रहल छन्‍हि। ओ मोती नोरक छियनि आकि मतिक से तँ ओ जानथि, मुदा अपना बूझि पड़ल जे किछु बुझैक, सुनैक आ जनैक जिज्ञासा मनमे उठि रहल छन्‍हि। 
हिया कऽ चारू दिस देखलौं तँ मौसम अनुकूल बूझि पड़ल। अनुकूल ई जे एहेन गर्म समए- जइमे पतालोक पानि थस लऽ लइए, तखन साढ़े तीन हाथक मनुखक हीरकेँ सोंखब तँ अनुकूले अछि, तैठाम ब्‍लॉटिंग पेपर जकॉं कॉंच केराक विन्‍यास तँ अनेरे पथसँ कुपथ भेल!
किछु फुरबे ने करए। एके वस्‍तु एकठाम पथक काज करैए तँ दोसरठाम कुपथ भऽ जाइए। पत्नीकेँ कहलियनि-
ओना अखन जँ थारीमे देखाइयो-देखाइयो गुण-अवगुण कहब,से अहॉं थोड़े देखबै। तँए अखनि जे मन मानैए खाए दिअ। खेला-पीला पछाति ओछाइनपर दुनू गोरे बतिया लेब।
मुदा तैयो पत्नीक मन झुझुआइते रहलनि। झुझुआइत ई रहलनि जे एते हरानसँ जइ पति-ले सेवा-श्रम केलौं, तैयो जखन हुनका पइठ नइ भेलनि तखन हमर धरम की भेल?
पत्नीक मनक चढ़ा-ऊतरी देखि कहलियनि-
अहॉं अनेरे आइन-पीड़ा मनमे अनै छी, जेते थारीमे आन दिन भात सॉंठि कऽ अनै छेलौं, तेते ते अननहि छी किने, से जखन हम सठाइये लेब तखन भूखल केना रहलौं, तइले अनेरे मन अनोन-विसनोन केने छी।
जेना अखाढ़मे रंग-रंगक बीआ-बाइल नैहरसँ सासुरक आबा-जाही शुरू करैए तहिना पत्नीओंक मनमे विचारक आबा-जाही शुरू भऽ गेलनि। बजली-
अखन जे मन मानैए से खा लिअ। मुदा खेला पछाति बिसरब नइ, बुझा देब। अखन अहॉं संग हमहूँ सभ विन्‍यास वागि लेब, सएह ने?”
हँसैत बजलौं-
हँ तँ सहए ने ते और की।¦¦

शब्‍द संख्‍या- 1983, 29 जून 2015


[1] पत्नी                                   
                          
 

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