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Sunday, June 14, 2015

८६म सगर राति दीप जरय- लकसेना गामक गोष्‍ठीमे ''मधुमाछी'' आ ''पसेनाक धरम'', ऐ दुनू लघु कथा संग्रहक लोकार्पण होएत

पोथी- पसेनाक धरम- 
कथाकार-  जगदीश प्रसाद मण्‍डल
विधा- लघु कथा संग्रह 
प्रकाशन वर्ष- 2015
कुल कथा- 17, एवं शब्‍द- 21331.   
कथा क्रम- 
(1) नहरकन्‍हा- (1209), 11 मार्च 2015
(2) बटखौक- (1272), 14 मार्च 2015
(3) पसेनाक धरम- (1263), 16 मार्च 2015
(4) जेठुआ गरदा- (1103), 18 मार्च 2015
(5) हँसीएमे उड़ि गेलौं- (1243), 20 मार्च 2015
(6) बुड़िबकहा बुड़िबक बनौलक- (1234), 23 मार्च 2015
(7) हमर बाइनिक विचार- (1207), 26 मार्च 2015
(8) नोकरिहारा- (1146), 26 मार्च 2015
(9) घसवाहि- (1213), 28 मार्च 2015
(10) तेतर भाइक कविता- (1319), 1 अप्रैल 2015
(11) छूआ- (1223), 6 अप्रैल 2015
(12) दोसराइत- (1270), 9 अप्रैल 2015
(13) लछनमान- (1173), 13 अप्रैल 2015
(14) हमर कोन दोख- (1527), 17 अप्रैल 2015
(15) मौसी- (1393), 21 अप्रैल 2015
(16) नटकिया गति- (1313), 24 अप्रैल 2015
(17) खाए चाहैए- (1223), 27 अप्रैल 2015
पोथी- मधुमाछी-
कथाकार-  जगदीश प्रसाद मण्‍डल 
विधा- लघु कथा संग्रह 
प्रकाशन वर्ष- 2015
कुल कथा- 9, एवं शब्‍द- 18852.
कथाक्रम-   
(1) मधुमाछी- (1892), 07 मई 2015
(2) दनगर घास- (2775), 13 मई 2015
(3) सझिया खेती- (3135), 23 मई 2015
(4) मुफतिया माल- (3231), 29 मई 2015
(5) मथाहाथ- (2923), 02 जून 2015
(6) पहपटि- (1369), 05 जून 2015
(7) इजोरिया राति- (1512), 07 जून 2015
(8) तीन जुगिया भाय- (2010), 12 जून 2015
(9) अँगनेमे हेरा गेलौं- (605), 14 जून 2015
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अँगनेमे हेरा गेलौं

अँगनेमे हेरा गेलौं

कमला धारक छहर टुटने अपना गामकेँ के कहए जे समुच्‍चा इलाकामे बाढ़ि पसरि गेल। पोखरि-झॉंखरिसँ लऽ कऽ गाछी-बिरछी धरि समुद्र जकॉं एक रंग भऽ गेल। रस्‍ता-पेरा बन्न भेने अपनो आ गामोक लोककेँ चौ-अन्नीसँ बत्तीस-अन्नी धरि बैसारी भऽ गेल।
बैसारीमे गामक साहित्‍य प्रेमी सबहक विचार भेलनि जे अखन साहित्‍य सृजनक अनुकूल परिस्‍थिति अछि तँए साहित्‍यिक आयोजन गाममे हुअए। रस्‍ता-पेरा खुजल रहने ने बहबाड़ि जकॉं करैए, मुदा से तँ बढ़िसँ घेराएल अछि, तँए एकमुहरी युवजनक विचार भऽ गेल।
साहित्‍यिक आजोयजनक बीच कथा पाठ आ ओकर समीक्षाक विचार तॉंइ होइत पनरह तारीकक दिन निर्धारित भऽ गेल, जेकरा आइ सात दिन बॉंकी छै।
कोनो गाम आकि कोनो समाजमे नव काज भेने गामो आ समाजोक सभ किछु नव-नव रूप धारण करऽ लगैए जइसँ गामो नव आ समाजो नव देखैमे आबिए जाइए।
छह दिन बीतल, सातममे दिन आइ छी। आइए तीन बजे अपराहणसँ कार्यक्रम अछि। रंग-रंगक कथाकार एकठाम बैसि कथो सुनौता आ अपनो सुनता आ तैपर समीक्षा केनिहार समीक्षा करता। नवान पावनि जकॉं नवको अन्न आ पुरनो अन्न अग्‍नि-आहूत हेबे करत।
गामक जे पुरान लिखबैया छथि आ गाम-समाजमे साहित्‍यिक मञ्च नइ बनने मञ्चपर कथा वाचैक अवसर नहि भेटलनि हुनको तँ अवसर भेटबे करतनि। संगे जे नवतुरिया नानी-दादीक खिस्‍सा कागजपर कलमसँ लिखि तैयार करत ओहू नवतुरियाकेँ तँ मञ्च भेटबे करत, तँए पढ़ल-लिखल समाजमे आरो बेसी खुशी।
अपन बिआहक मरबा देखि जहिना बर-कन्‍याकेँ खुशी होइत तहिना रंगर मञ्च सजल आ सभ रंगक बेवस्‍था देखि सभ साहित्‍य प्रेमीकेँ खुशी भेलनि। जे साहित्‍यिक प्रति पगला गेल छथि सेहो पहुँचला, आ जे भाड़ा-किराया-फीस लऽ मञ्चपर जाइ-अबै छथि, सेहो पहुँचला। तहूमे बाढ़िक समए, मोटबरे ब्‍लौकेसँ राशनक उठाव भऽ गेल। तँए आमदनीओंक चकचकी रहबे करनि।
गोल-मोल मञ्च सजल जेकर अगिला पतियानीमे अपनो बैसल रही। भाषासँ प्रेम रहने साहित्‍योसँ कनी-मनी लगाव अछिए। से जँ नइ राखब तँ शब्‍दक ऑपरेशन करैक अपन रोजगारे बन्न भऽ जाएत, कारखाना जकॉं कच्‍चे मालक अभाव भऽ जाएत...।
...माने ई जे पारा मेडिकल जकॉं कथाक भाषेटा केँ ऑपरेशन करैक लूरि सीखि डाक्‍टर छी। तँए मजबूरीओ अछि, दूटा बातो सुनि कथेकारक लागि-भागिमे सटल रहै छी, सटल की रहै छी जे सटाएल रहै छी।
गामक कथाकारकेँ पहिल समैक अवसर कथा-पाठ करैक भेटल। दिनेश भाय, कथा वाचन शुरू केलनि, सोझहा-सोझहीमे हमहीं पड़ैत रहियनि, तँए हमरे दिस ताकि-ताकि कथा वाचन केलनि। एक तँ गौऑं तहूमे परिवारसँ जुड़ल, केना नइ दिनेश भायकेँ हमर अपेक्षा होइतनि। कियो बाहरक होथु आकि गामेक आन टोलक, तिनकासँ तँ हम लग छेलियनि। मुदा संजोग कहू कि दुर्जोग भाषाक ताकमे शीर्षकेमे हम हेरा गेलौं। शीर्षकेक ऑपरेशन करैमे बुधि, विवेक, मन, नजरि सभ समटा कऽ ऑपरेशनक पाछू लगि गेल। ऑंखि तँ दिनेश भाइक ऑंखिसँ मिलैत रहल मुदा शीर्षकेक शब्‍दमे तेना घुरिया गेलौं जे कानसँ धियान हटि गेल।  
समीक्षकक बीच समीक्षा शुरू भेल। पहिल समीक्षक दुतकारि देने छेलनि दिनेश भाइक कथाकेँ। दोसर कनी सम्‍हारलकनि मुदा तैयो वे-सम्‍हारे बूझि पड़ैत रहनि। तेसर नम्‍बरक समीक्षक हम रही। कथा तँ सुनलौं नइ, की समीक्षा करब! ठाढ़ होइत बजलौं-
दिनेश भाय, अखनो धरि अहॉं-कथाक शीर्षकक भॉंज नइ लगल, से कनी आबो फरिछा दिअ।
अपना विचारे दिनेश भाइक कथाक जड़िकेँ हम तर तक रोपैक कोशिश करैत बाजल रही। मुदा दिनेश भाइक मन खटमिट्ठी जकॉं रहनि। गुम्‍हरि कऽ बजला-
बड़ समीक्षक बनै छथि!”
दिनेश भाइक मन रूष्‍ट बूझि पड़ल। तँए कनी पाछू हटैत चुपे ऐ आशामे रहलौं जे दिनेश भाइक तामस कमलनि कि ओहिना छन्‍हि, आकि आरो चढ़ि गेलनि। से दोहरा कऽ किछु बजता तखने बुझब।
हमरासँ पहिलुका समीक्षकक समीक्षा मनकेँ घोर बना घोड़ैत रहनि जइसँ तामस कमितनि की जे आरो तेजे होइत गेलनि। बजला-
एहेन रही ते आगूमे नइ बैसी। एकोरती तोरा ऑंखिमे पानि रहलह, ओहिना ओतेकाल ऑंखि चढ़ा ऑंखि मिलौने रहलह!”
अपन हारल रही कि हेराएल रही से निरणाइए ने कऽ पबैत रही। दिनेश भाय मुहेँ-काने बोकिया देलनि, मुदा की करितौं। चुप-चाप सभटा घोंटैत अँगनेमे हेराएल रहलौं। ¦¦


14 जून 2015, शब्‍द संख्‍या- 605

Sunday, June 7, 2015

मुफतिया माल (कथाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

हेमकान्‍त बाबू आ दिवाकान्‍त काका लङ्गोटिया संगी। ओहन लङ्गोटिया संगी नहि, जे कुश्‍तीक अखड़ाहाक होइए, आ ने वएह जे बुढ़ाड़ीमे घर-परिवार छोड़ि वा छुटि गेने लङ्गोटा धारण करैत लङ्गोटिया संगीक संग तीर्थ-व्रर्त, कीर्तन-भजनमे अपन दिवस गमबैत अछि। ओहो लङ्गोटिया संगी नहि, जे बाल-बोधकेँ बोधि माए जखन लङ्गोटा पहिरा बच्‍चाकेँ ऑंगनसँ अगुआ टोल-पड़ोसक बच्‍चाक संग खेलैले छोड़ि दइत।
हेमकान्‍त बाबू आ दिवाकान्‍त कक्काक बीच ओहन लङ्गोटिया सम्‍बन्‍ध छन्‍हि जे गामक स्‍कूलमे दुनू गोरेकेँ लङ्गोटा पहिरौने पिता दाखिला करौलखिन। तहियेसँ दुनू गोरेक बीच सम्‍बन्‍ध रहलनि। भिनसुरका समाचारमे जहिना रेडियो-टी.बी. रातुक घटना सबहक प्रसारण करैत, तहिना सौंझका समाचारमे दिनुका घटना प्रसारित करिते अछि। वएह भिनसुरका समाचार गाम-समाजक सुनै-बुझैले चाह पीब पान खा दिवाकान्‍त काका पलंगपर सँ उठि विदा होइते रहथि तखने भातीज- रवि शंकर- आबि कहलकनि-
काका, अनर्थ भऽ रहल अछि!”
दिवाकान्‍त काका तीन साल पहिने कौलेजसँ सेवा निवृत भेल छथि, भातीजक बातक कोनो अरथे ने लगलनि। अर्थो केना लगितनि, जे शब्‍द अपने अनर्थ अछि ओकर अर्थे की हएत। तैबीच रवि शंकर ऐ ताकमे दिवाकान्‍त दिस ऑंखि उठा-उठा तकैत जे काका अकचकाइत किछु बजता, मुदा से किछु ने देखलक। देखबो केना करैत काका अपने अथाहमे उगऽ-डुमऽ लगला। तखन केना केकरो घटना सुनि अकचकेबे करितथि। मुदा से भेल नहि। खगेन्‍द्र जकॉं खगक भाषा बुझैक खियालसँ दिवाकान्‍त काका पुछलखिन-
बौआ, रातिमे कोनो तेहेन घटना केतौ भेल?”
घुमौन बात बजैक कारण रवि शंकरक रहै जे दुनू गोरे माने हेमकान्‍तो बाबू आ दिवाकान्‍तो कक्काक बीच घनिष्‍ठ सम्‍बन्‍ध, तँए परदाक बीच अपन विचार रखने छल। मुदा घटना तँ घटना छी। ओना घटनोक प्रसारण केते ढंगसँ होइते अछि, केतौ तिलकेँ तार बना प्रसारण होइत तँ केतौ तारकेँ तिल बना देल जाइए, तँए तिलकेँ तिल आ तारकेँ तार कहि प्रसारित नइ होइए, एहनो तँ नहियेँ अछि, सेहो तँ होइते अछि। कनी आगू ससरैत रवि शंकर बाजल-
काका, अहॉंक संगीकेँ तँ...?”
कहि रवि शंकर चुप भऽ गेल। संगी सुनि दिवाकान्‍त काकाकेँ मन आगू बुझैक हुलास जगलनि। बजला-
बौआ, एना तम्‍माक मुड़ी छोपि कऽ नइ बाजह।
ओना रवि शंकरो बुझैत जे तेलिया-फुलिया लगा दिवाकान्‍त काका ने अपने बजै छथि आ ने अनके मुँहक नीक लगै छन्‍हि। मुदा बुझैक जिज्ञासा तँ छनिहें। रवि शंकर बाजल-
काका, हेमकान्‍त काकाकेँ बेटा कपार फोड़ि देलकनि।
बेटा कपार फोड़ि देलकनि सुनिते दिवाकान्‍त कक्काक माथमे कठझालि जकॉं झन्न दऽ उठलनि। रवि शंकरोक मनमे भेल जे भरिसक संगीक कपार फुटब सुनि काका बेथा गेला, बेथापर बेथा लादब नीक नहि। तँए जान छोड़ा घसकिये जाएब नीक हएत। बाजल-
काका, कनी दूध-ले जाएब, परसुका नोत अछि, जाइ छी।
हँ-हूँ दिवाकान्‍त काका किछु ने बजला। रवि शंकर चलि गेल।
एक संग अनेको प्रश्न दिवाकान्‍त कक्काक मनमे सिनेमाक रील जकॉं नाचए लगलनि। ऐ अवस्‍थामे बेटा कपार फोड़ि देलकनि! ओना रेडियो-अखबारमे एहेन समाचारक कमी नहियेँ रहैए मुदा लगक लोक सभ दिन हेमकान्‍त रहला। जखन समाचार कानमे पहुँच गेल तखन जँ खोज-पुछारि नइ करियनि, जिज्ञासा नइ करियनि सेहो केहेन हएत। मुदा खोजो-पुछारि करै-करैमे भेद तँ अछिए। नीक काजक खोज-पुछारि आ अधला काजक खोज-पुछारिमे अन्‍तर तँ अछिए। अधला काजक खोज-पुछारिक एकटा माने ईहो तँ अछिए जे व्‍यंग्‍य-स्‍वरूप खोज-पुछारि करऽ आएल छथि! 
मुदा लगले मनमे उठि गेलनि जे हमरा कान तक समाचार आबि गेल से हेमकान्‍त केना बुझता जे हमर आशा भेँट करैक वा जिज्ञासा करैक हेतनि। फेर लगले मनमे उठि गेलनि जे ई तँ भेल अपन मुँह नुकाएब। नीक आकि बेजए ओ केलनि, बेटा हुनका कपार फोड़लकनि, आ मुँह नुकाबी हम, ईहो तँ नीक नहियेँ हएत। असमंजसमे पड़ल दिवाकान्‍त काकाकेँ ने अक् चलनि आ ने बक्। मुदा लगले भेलनि जे रवि शंकर तँ एतबे बाजल जे बेटा कपार फोड़ि देलकनि। किए फोड़लकनि, केना फोड़लकनि से तँ नहि बाजल तँए धड़फड़ा कऽ पहुँचबो आ जर-जिगेसा करबो जरूरी नहियेँ अछि। कोनो कि हम डाक्‍टर छी जे मलहम-पट्टी करबनि। मन थीर भेलनि। थीर होइते मन नचलनि। मन नचलनि ई जे धड़फड़मे हेमकान्‍तक ऐठाम जाएबो नीक नहियेँ, दुनू बापुतक बीचक बात छी। जखने एक दिस जाएब तखने दोसर दिससँ जाएब।
होइते छै जे दू गोरेक झगड़ामे जखने एकसँ कियो गप करैए तखने दोसर बुझैए जे किछु सिखा-बुधी कऽ रहल अछि। दिवाकान्‍तकेँ फेर भेलनि जे हेमकान्‍ते बाबूटा हमरा अपन संगी नइ बुझै छथि, से नइ ने अछि। गामक के कहए जे कौलेजोक चिनहरबा, अड़ोसो-पड़ोसीओ आ गौऑं-घरूआ तँ बुझिते अछि। से नइ तँ पहिने नीक जकॉं घटनाक घटित घटक बूझि कऽ जाएब वा नइ जाएब से विचारब। संगबे रहला तँ स्‍कूल-कौलेजक पढ़ाइ आ नोकरी धरिक रहला, एकर माने ई नइ ने भेल जे जइ घटनामे हेमकान्‍तक कपार फुटलनि तइमे हम हुनकर संग रहियनि। जाइ कि नइ जाइ, तेकर हँ-निहँस दिवाकान्‍त काका काइए ने पाबि रहल छथि। मनमे उड़ी-बीड़ी तँ लगले छन्‍हि।
फेर भेलनि जे दोसर-तेसरसँ पुछि कऽ पहिने भँजिया ली आ पछाति जाएब आकि नइ जाएब से विचार कऽ लेब। मुदा लगले भेलनि जे गामोक लोक तँ बेसी तीन-तसिये अछि, कियो हेमकान्‍त दिससँ बाजत तँ कियो शिलाकान्‍त दिससँ, जइसँ नीक जकॉं भॉंजो लगब तँ कठिने अछि। दिवाकान्‍त कक्काक नजरि घुमैत-फिड़ैत उमाकान्‍तपर पड़लनि। उमाकान्‍ते गाममे एहेन लोक अछि जे दूध-पानि बेड़ा कऽ बजैए। जइसँ सत् बात बुझैमे आबि जाएत।
मुदा लगले फेर भेलनि जे जँ कहीं उमाकान्‍तोकेँ अपन देखल-सुनल नइ होइ आ उहो उड़न्‍तीए कहि दिअए तैयो तँ भॉंज नहियेँ पएब। फेर भेलनि जे हाथ-पर-हाथ रखि चुपचाप बैसबो तँ नीक नहियेँ हएत। से नइ तँ उमाकान्‍ते ऐठाम पहुँच भॉंज लगाएब नीक रहत। तहूमे वेचारा जँ अपने काने सुनने हएत सेहो कहिये देत आ जँ केकरो आनक मुँहक सुनने हएत सेहो कहिये देत। किछु अछि उमाकान्‍त तँ बागर धान जकॉं आनसँ नमहर तँ अछिए। सेठ-साहुकार जकॉं लौली-बाजी दइ बला नहियेँ अछि...। यएह सोचि दिवाकान्‍त काका उमाकान्‍तसँ भेँट करऽ विदा भेला।      
संयोग कहियौ आकि घटना, उमाकान्‍तो हेमकान्‍ते बाबू ऐठामसँ अबैत रस्‍तेमे रहए कि दिवाकान्‍त कक्काक नजरि पड़लनि। कोनो नीक बोल सुनैले वचनामृतक खगता होइते अछि। दिवाकान्‍त काका बजला-
उमाकान्‍त, तोँ बड़ भाग्‍यशाली छह, बहुत दिन जीबह!”
दिवाकान्‍त कक्काक आसिर वचन सुनि उमाकान्‍तोक मन ठनकल, ठनकल ई जे एना अगुरवारे तँ दिवाकान्‍त काका कहियौ आसिर-वचन नहि कहै छला, आइ किए...? फेर लगले उमाकान्‍तक नजरि दुनू गोरे- दिवाकान्‍त-हेमकान्‍त-क सम्‍बन्‍धपर पहुँच गेल, बाजल-
काका...!”
काका कहि उमाकान्‍त चुप भऽ गेल। उमाकान्‍तकेँ चुप होइत देखि दिवाकान्‍त कक्काक मन तर-ऊपर हुअ लगलनि। जँ नीक समाचार रहैत तँ ढोल पीट-पीट बजैत, मुदा बकार बन्न भऽ गेलै! जरूर किछु तेहेन बात अछि जे बजै ने चाहैए। दिवाकान्‍त काका कहलखिन-
उमा, तोँ अपनाकेँ आन किए बुझै छह। बेटा-भातिज भऽ कऽ एना धखाइ किए छह?”
दिवाकान्‍त कक्काक विचार उमाकान्‍तक मनकेँ उत्‍साहित केलक। उत्-सुक मने उमाकान्‍त बाजल-
काका, बजैत लाज होइए, तँए...।
तँए सुनि उमाकान्‍तकेँ हड़बड़बैत दिवाकान्‍त काका कहलखिन- 
कनीको रखि-जोगा कऽ नइ बाजह। तोरा धाख कथीक होइ छह।
उमाकान्‍त बाजल-
काका, हेमकान्‍त कक्काक पत्नी आठ-नअ बरख पहिने मरलखिन से तँ बुझले अछि।
हँ-हँ किए ने बुझल रहत। हुनकासँ एक साल पहिने हमरो पत्नी मुइली। दसम बरखी एक मास पहिने केने छेलियनि। हिनकर दस तँ हुनकर नअ बर्ख भेबे केलनि।
दिवाकान्‍त कक्काक बहैत मनकेँ अपना दिस मोड़ैत उमाकान्‍त बाजल-
[1] केहेन धुड़फन्‍दा लोक छथि से तँ बुझले अछि।
धुड़फन्‍दा सुनि दिवाकान्‍तो कक्काक मन धुड़खेल खेलऽ लगलनि। बजला-
बौआ उमाकान्‍त, तोरा बुझल हेतह की नइ, हम ओइ बिआहोमे बरियाती रही, राज मोरंगमे की-की भेल से की कहबह।
कहि काका विस्‍मित हुअ लगला। दिवाकान्‍त काकाकेँ विस्‍मित होइत देखि उमाकान्‍तोक जिज्ञासा जगल। बाजल-
काका, एना किए अदहे मुहसँ निकलल आ अदहा मुहेँमे रहि गेल?”
एक तँ ओहिना दिवाकान्‍त काका, जहियासँ कौलेज छोड़लनि तहियासँ वतरसिया[2] भऽ गेल छथि तैपर उमाकान्‍तक मोलामा पाबि दिवाकान्‍त काका बमैक कऽ उगलऽ लगला-
उमा बौआ, हेमकान्‍त बेटाक बिआहक बात-चीत पक्का केलनि। तेरह लाख नगद, अतिरिक्‍त आधुनिक वस्‍त्र-जात आ तीन सए बरियातीक बेवस्‍था। कन्‍याँगतोक मनमे मस्‍ती चढ़ले रहै, हरे-हरे सभ किछु गछिए नै लेलकनि जे अगुरवारे दाइओ देलकनि। बरियातीमे हमहूँ रही।
उमाकान्‍त-
तखन तँ अहॉंकेँ सभ बात बुझले अछि।
जहिना रटल बात उझकी मारि-मारि मुहसँ निकलऽ चाहैत तहिना दिवाकान्‍तो कक्काक मनमे उझकी उठैत रहनि, ओना तेरह लाख रूपैआ सुनि उमाकान्‍तकेँ अपन समाचारक सत्‍यापन भऽ गेल। सत्‍यापन ई जे वएह रूपैआ कपार फोड़ै-फोड़बैक कारण छल। मुदा आरो बेसी भॉंज लगबैक जिज्ञासा उमाकान्‍तक मनमे जगले रहइ। जागल लोक जहिना ऑंखि उठा-उठा चारूकात तकैत तहिना उमाकान्‍तो आगूक बात बुझैक कोशिशमे पियासल बटोहीक नजरि गढ़ि, दिवाकान्‍त काकापर समधानल तीर छोड़लक। तीर जेना दिवाकान्‍त कक्काक बीचला छातीमे लगल होन्‍हि तहिना छातीक पीड़ासँ पीड़ित होइत बजला-  
बौआ उमा, छाँह-छूँहमे बात बुझिये गेलौं, मुदा तेकरा अखन रहऽ दहक, बूढ़-पुरान भेलौं, कखन छी कखन नइ रहब, तेकर कोनो ठीक अछि।
आगूक बात दिवाकान्‍त कक्काक मनेमे रहनि आकि तइ बिच्‍चेमे अपन गोटी लाल होइत देख उमाकान्‍त बाजल-
काका, अहूँ जँ तगेदे भरोसे रहब जे उमाकान्‍त फल्‍लाँ-फल्‍लॉं बात पुछत तखन ओकरा बुझा कऽ कहबै से अहीं कहू जे अहॉं सन भेल?”
ओना दिवाकान्‍त काका दृष्‍टिकूटो आ चिक्कारीओ भाषाक अनुभवी शिक्षक कौलेजमे बुझल जाइ छला, मुदा विद्यालय आ समाजमे की दूरी बनल अछि सेहो तँ बुझिते छथि। तँए सेवा निवृतिक पछाति दिवाकान्‍त काका कौलेजक विषयकेँ कौलेजेमे निवृत कऽ समाजमे सामाजिक विषय धारण कऽ अपन बदलैत परिवेशमे अपनोकेँ समावेश काइए रहल छथि।
अहीं कहू जे अहॉं सन भेल?’ पछिला बातक फल-फूल भेल। दिवाकान्‍त कक्काक मनमे भेलनि जे ठीके उमाकान्‍त बाजल। किछु छी तँ बेटा-भातीज छी जँ ओकरा पुछै भरोसे रहब आ जँ ओकरा ओ बात बुझले ने होइ, तखन की पुछत। तेतबे किए जँ ओकरा बुझले रहितै तँ अनेरे दोहरा कऽ अपन समए किए दुइर करैत...।
...रेही चलैत मटकूरमे जहिना पानि-मक्‍खन चारू दिस पेनी-सँ-छिप्‍पी धरि नचैत रहैए तहिना दिवाकान्‍त कक्काक मन नचलनि। नचिते बजला-
बौआ, धड़फड़ाएल नै ने छह?”
उमाकान्‍त अपन सुतरैत लक्ष्‍य देखि गुलेतीमे गोलीक निशान साधि बाजल-
काका, अधपोखरियामे जहिना जुड़शीतलक दिन थाल-कोदो आ पानि एकबट्ट भऽ जाइए तहिना ने आइ समाजक पोखरिमे भऽ गेल अछि! भरि दिन कोनो आन काज करैक मन थोड़े हएत।
श्रोता-वक्ताक अनुकूल वातावरण होइत देखि दिवाकान्‍त काका बजला-
बौआ, तोहर घर जँ लग रहितऽ तँ तोरे ऐठाम जेतौं, चाहो पीबितौं आ गपो-सप्‍प करितौं। मुदा अखन तँ हमरा डेढ़िये पर छह, तँए दलानेपर चलह। चाहो-पान खाएब पीब आ अपन अनुभवक किछु किछु बातो कहबह।
पिपाशु लोक उमाकान्‍त, तँए समाजक काजक बात-विचार सुनै-करैक समैकेँ अधला नहि बूझि उपयोगीए बुझैत अछि। तैसंग मनमे ईहो उठि गेलै जे अपन दरबज्‍जापर लोक भरिमुँह बजैए, सेहो गर देख उमाकान्‍त बाजल-
बहुत दिनक पछाति दुनू बापुतक बीच गप-सप्‍प हएत काका। तँए जहॉं धरि पार लगत तेते गप काइए लेब।
एक तँ भिनसुरका उखड़ाहाक नरमाएल मन, तैपर जराएल समाचार सुनि दिवाकान्‍त कक्काक मन इनहोर पानि जकॉं खौलैत रहबे करनि। बजला-
बौआ, आगि-छाइ कि अगुतेने मानत, ई नइ अबिसवास करह जे चाह नइ पीब। ओना आनक पुतोहु जकॉं हमर पुतोहु बतकेहलि नइ छथि, ओ बूझि गेली। तैबीच अपना सभ मुँह चुपे किए राखब।
नोइसिक शीशीक मुन्ना खोलि दिवाकान्‍त काका नाकमे भिड़ौलनि। भिड़बिते छीका भेलनि। छीका होइते बजला-
बौआ, औझुका बात ताबे तरमे रहऽ दहक, अपन इस्‍कूलेक जिनगी लगसँ पहिने पछिला बात सुनबै छिअ।
हेमकान्‍त बाबू आ दिवाकान्‍त कक्काक गाम सटले। आन गामक टोले जकॉं, मुदा दुनू वित्तीय गाम तँए दूटा नाम तँ अछिए। ओना नाम दू रहितो दिनानुदिनक किरिया-कलाप दुनू गामक एकरंगाहे अछि। एकबधू खेत, जोड़ल सड़क आ जोड़ल स्‍कूल तँ अछिए।  दुनू गोरे एके जातिक सेहो छथिए। मुदा एक जाति रहितो दुनूक कुल-मूलमे कनी तरपट, तँए सामाजिक भोजो-भात आ कुटुमो-कुटमारक सम्‍बन्‍ध नहियेँ होइत अछि। मुदा केतबो दूरी किए ने होइ, व्‍यक्‍तिगतो सम्‍बन्‍ध आ आन-आन तरहक काजो उदेमक सम्‍बन्‍ध तँ छनिहें।
दिवाकान्‍त काका तेज गतिये बाजथि, तँए उमाकान्‍त पजरल चुल्हिक खोरनी जकॉं बीच-बीचमे खोरनी चलाएब नीक बुझलक। ओना खोरनी चलबैक पाछू उमाकान्‍तक मनमे ईहो रहै जे धाराक प्रवाहमे केते झूठो बात खढ़-पात जकॉं अलगि जाइए, सेहो हएत। बाजल-
नमहर जिनगीक नमहर खेरहा हएत, तँए कनी...?”
उमाकान्‍तक इशारा दिवाकान्‍त काका बूझि गेला। बजला-
बौआ, हेमकान्‍तो आ हमहूँ दुनू गोरे संगे गामक स्‍कूलमे भर्ती भेलौं। शुरूहेसँ ओ चङ्गला, चङ्गलाक माने- झूठ-सत् आ सही-गलतकेँ ओइ रूपे मिश्रण करैत भषो आ काजो बना लइत जेकरा बूझब-परिखब भारी अछि। हमरा सन-सन अनेको ओहन छथिए जे नइ बूझि पाबि रहला अछि। हमहूँ कि भॉंज बुझितौं, गुण भेल जे दृष्‍टिकूटो आ चिक्कारीओ भाषा कनी पढ़ि लेलौं।
दिवाकान्‍त कक्काक खुलल छाती देखि उमाकान्‍त बूझि गेल जे कक्काक बातपर कनी-कनी जँ ऊपरसँ पानिक छिच्‍चा जकॉं दैत रहबनि तँ अनेरे ने सोगर बनल रहता। बाजल-
काका, धिया-पुता गपक अखन कोन बजैक खगता अछि...।
वतरसिया दिवाकान्‍त काका छथिए, चौकियेक ओछाइनपर दुनू ठेहुन सोझ करैत मुस्‍की दैत बजला-
ई तँ पेनी कहलियह उमा, अइमे एतबे बूझह जे जहिना लोअर प्राइमरी स्‍कूलसँ हाइ स्‍कूलक दसमा धरिक विद्यार्थीक रिजल्‍ट सिरिफ परीक्षेक कॉपी जॉंचि टा शिक्षक नइ दइ छथिन, किलासमे प्रश्नोत्तरक संग विद्यार्थीक लगनो देख दइ छथिन, तँए दसमा तक नीके-ना रहलौं। मुदा मैट्रिकक परीछामे हमरासँ पनरह-बीस नम्‍बर ओकरे बेसी रहइ। ओना फस्‍ट डिवीजन दुनू गोरेकेँ भेल, तँए ओइपर कान-बात नइ देलिऐ।
उमाकान्‍तक मनक ब्रह्म जगल। जेना ओ बूझि गेल जे किछु रहस्‍यक बात छिपल अछि, जे खोलए चाहै छथि मुदा खोलि नइ पाबि रहला अछि। पोखरिक घाटपर पानिकेँ धफाड़ि जहिना फरिच बनाएल जाइए तहिना उमाकान्‍त बाजल-
काका, जखन बचपनेक बात उठेलौं तखन तेना कऽ कहिऔ जे दोहरा कऽ पुछऽ नइ पड़ए।
तैबीच पुतोहु चाह नेने आबि गेलनि। शराबक शीशी देखिते पिआककेँ जहिना मन चटपटाए लगै छै तहिना दिवाकान्‍तो कक्काक मन चटपटेलनि। बजला-
बौआ उमा, दुनियॉंमे भगवान केकरो पुतोहु देलखिन तँ हमरो देलनि। हमर चौबीसो घण्‍टाक खटनी हिनका बुझल छन्‍हि। कखन चाह पीब, कखन पानि, आ कखन खेनाइ खाएब तइ सबहक हिसावे अपनाकेँ परिवारमे ठाढ़ रखने छथि।
सोझहामे बजलासँ जँ बड़प्‍पनक भाव अबैत अछि, तँ की सत्‍-बातक भाव नइ औत? एबे करत...।
...चाहक घोंट लइते  जेना दिवाकान्‍त कक्काक कण्‍ठ सर्ड़ास भेलनि। बीचमे टभकि पड़ला-
बौआ, लगला सूरमे एकटा आरो बात सुनि लैह, बिनु कहने जँ आगू बढ़ि जाएब तँ ओ बिच्‍चेमे हेरा जेतह।
दिवाकान्‍त कक्काक मनक उत्‍फुल विचार देखि उमाकान्‍त बाजल-
काका, अहॉंकेँ कि मुँह रोकने छी। हमहूँ कियो आन छी जे...।
सह पाबि सहटि दिवाकान्‍त काका बजला-
बौआ, जइ दिन मैट्रिकक सर्टिफिकेट लइले गेलौं, तखन जे हेमकान्‍तक डेट ऑफ वर्थ मिलेलौं तँ हमरासँ चारि बरख कम रहइ।
बीचमे टोन दैत उमाकान्‍त बाजल-
नइ बुझलौं, काका?”
नइ बुझलौं सुनि दिवाकान्‍त कक्काक मनमे भेलनि जे भरिसक मोटगर शब्‍दक प्रयोग भऽ गेल तँए उमाकान्‍त नइ बूझि पेलक। सिलौटपर जहिना कोनो वस्‍तुक चटनी हलसँ पीस हल्‍लुक बनौल जाइए, जइसँ ओ चाटै जोकर भऽ जाइए, तहिना दिवाकान्‍त काका मेहियबैत बजला-
उमेरक चोरीमे कि-कि फड़ै छै से भरिसक उमा तोरा नजरिमे नइ छह। खैर छोड़ह नइ छह तँ नइ छह, मुदा एते बूझि कऽ ऑंखिक मोटरी बान्‍हि रखिहऽ जे ओइ-गाछ[3]मे नोकरीक अन्‍तिम ओ समए नुकाएल अछिए जइमे उच्‍च कोटिक दरमाहाक संग उच्‍च पद सेहो नुकाएल अछि। तैसंग नुकाएल अछि, एकसँ अनेक बिआह, तैसंग छिपल अछि कम उमेरमे पैघ बात बुझैक श्रेय।
बिच्‍चेमे उमाकान्‍त बाजल-
काका, एना नइ घुरिया कऽ कहियौ सोझका बात कहियौ।
समगम होइत दिवाकान्‍त काका बजला-
बौआ उमा, जाधरि केकरो अपन उचित उमेर रहल ताधरि ओ बढ़ैत-बढ़ैत फुनगी तक पहुँच गेल। ओतैसँ माने फुनगीए-परसँ चोरौलहा उमेर आबि खसैए आ पदो-प्रतिष्‍ठा आ दरमहो पबैत रहैए।
बिच्‍चेमे उमाकान्‍त टोकारा भरलक-
ओऽ  ऽ ऽ!”
उमाकान्‍तक सुनि दिवाकान्‍तकेँ जेना अपन जगलनि तहिना बजला-
बौआ, अखन तूँ दुनियॉंक छकल-बकल नइ बूझि रहलह अछि, तँए अन्‍हराएल बूझि पड़ैत हेतह। मुदा से नइ, लोको ते लोको छी किने, केतौ मरद लोक बनल रहैए आ केतौ घरवाली बनि मौगी बनि जाइए। जखने मौगी बनैए तखने ने ओ मौगियाह पुरुख बनि, एकसँ अनेक बिआह करैए।
बिच्‍चेमे उमाकान्‍त टिपलक-
काका, कनी दोहरा कऽ कहियौ, नीकसँ नइ बुझलौं।
धारक बहैत पानि जहिना पोखरि-इनारक असथिर पानिक सुधि बिसरि गंगा सागर दिस बढ़ैत रहैए तहिना दिवाकान्‍त काका दुनियॉंक सभ सुधि बिसरि बजला-
बौआ, बेसियो उमेरबला सभ पाकल केश रंगा, पाथरक दाँत बना मोछ कटा कऽ नव कवरिया जकॉं अपनाकेँ जुआन कहि केतेको बिआह कऽ लइए।
मुस्‍की दैत उमाकान्‍त बाजल-
बेस बात काका कहि देलौं।
अपन विचार जहिना दोसर बूझि कऽ मानि लइए, तैकाल जे खुशी बजनिहारकेँ होइ छै तहिना दिवाकान्‍तो काकाकेँ भेलनि। अठनियॉं हँसी हँसैत बजला-
बौआ, उमेर चोरा लोक कमे उमेर कहि बड़का उमेरबलाक कान काटि कहिते अछि किने जे हम एतबी उमेरमे एते पढ़ि-गुनि नेने छी। उमेर रहत पचास बर्खक आ कहत जे बारहे बर्खमे माता सरस्‍वती हमरा सपनौती विद्या देने छथि।
किछु खेलाक पछाति आकि पीलाक पछाति जहिना मन भरि जाइ छै, अघा जाइ छै तहिना उमाकान्‍तोकेँ भेल। बाजल-
काका, जलखै बेर भऽ गेल। भुखक तरास जगि रहल अछि। दोसर दिन आरो सुनब।
दुनू हाथसँ उमाकान्‍तकेँ असथिर करैत दिवाकान्‍त काका कहलखिन-
जलखै-बेर भऽ गेल तँ की हेतै, हमहूँ सभ अन्ने खाइ छी।
पुतोहुकेँ सोर पाड़ि कहलखिन-
जलखैयोक ओरियान करब।
दिवाकान्‍त कक्काक आग्रह सुनि उमाकान्‍त बाजल-
काका, जखन अहॉं अपन पेटक बात कहऽ चाहै छी तँ हमहूँ कहै छी दोहरा कऽ समए नै लगाएब, सभ बात बुझिए लेब।
दिवाकान्‍त कक्काक मनमे अगिला बात जेना उत्फाल मचबऽ लगलनि तहिना भेलनि। बजला-
आलतू-फालतू बात छोड़ह अगिला बात कहै छिअ।
अगिला बात सुनि उमाकान्‍तो अपन पियासल ऑंखि दिवाकान्‍त कक्काक ऑंखिपर देलक। ऑंखि-सँ-आँखि मिलिते दिवाकान्‍त काका बजला-
पड़ोसिया गामक भाग्‍य जगल। एकटा कौलेज खुगल। ता हेमकान्‍तो आ हमहूँ- दुनू गोरे एम.ए. पास कऽ नेने रही। हेमकान्‍त धुड़फन्‍दा लोक सभ दिनक, अगुआ कऽ कौलेजक हेड प्रोफेसर भऽ गेल। पाछूसँ हमरो बहाली भेल। सातम नम्‍बरक प्रोफेसर हमहूँ भेलौं। भगवानो ओकरे दहिन भेलखिन। दरमाहाक संग मुफतिया मालक जोगार सेहो कऽ देलखिन। उमेर तीन साल घटाइए नेने रहए, अपन सिहन्‍ता हम मनेमे मारि लेलौं, जे ई जिनगी इन्‍चार्य बनै जोकर नइ अछि। तरे-तर मनक त्रिवेणी-घाट मरने-घाट बनि गेल।
मनक उमकी उमाकान्‍तक जगि गेल। बाजल-
काका, अनेरे केहेन लोकक जड़ि बीटियबै छी! छोड़ू, औझुका बात सुना दइ छी।
दुनू हाथसँ उमाकान्‍तकेँ रोकैत दिवाकान्‍त काका बजला-
भने अखनि तोहूँ छहे, विचारेक बात अछि। ई कहऽ जे खोज-पुछारि करऽ जाइ की नइ। अपराधीक हार होउ कि जीत, खोज-पुछारि की करत से के कहलक।
विचार सुनि उमाकान्‍त ठमकऽ लगल। उमाकान्‍तकेँ ठमकैत देखि दिवाकान्‍त काका बजला-
बौआ, बरियातीक बात कहि दइ छिअ।
उमाकान्‍तक मनमे भेल जे भरिसक फेर रजनी-सजनीक खिस्‍सा जकॉं सात दिन लगौता। तँए बिच्‍चेमे बाजल-
बरियातीक बात छोड़ि दियौ काका, अगिला कहियौ।
उमाकान्‍तकेँ बिच्‍चेमे अँटकबैत दिवाकान्‍त काका बजला-
बौआ, हेमकान्‍तक दोसर बिआह केना भेल से बुझल छह?”
ई प्रसंग सुनि उमाकान्‍तक जिज्ञासा जगल। बाजल-
बेसी तेलिया-फुलिया कहैमे नइ लगाएब। सोझ-साझ कहियौ।
खखास करैत दिवाकान्‍त काका कहऽ लगलखिन-
बिआह होइले गेल शिलाकान्‍तक आ भऽ गेल शिलाकान्‍तक बापक।
कहि देवाकान्‍त काका मुस्‍कुराए लगला। मकै आकि धान जहिना खापरिमे पहिने चनकैए तखन दोसर-तेसर रूप बदलि लाबा बनैए तहिना दिवाकान्‍त कक्काक चनकी उमाकान्‍तक मुँहकेँ लाबा बना देलक। हँसैत उमाकान्‍त बाजल-
काका, कुमरम किनकर भेल रहनि?”
जहिना हँसी उमाकान्‍तक तहिना बतीसो दॉंतक बतीसो आना हँसैत दिवाकान्‍त काका कहलखिन-
कुमरमेटा केँ की कहै छहक जे तेरह लाख रूपैओ बेटेक नामसँ बैंकमे जमा भेल।
तेरह लाख रूपैआ सुनि जेना उमाकान्‍तक मनमे औझुका घटना नाचि उठल। बाजल-
ई केना भेल?”
दिवाकान्‍त-
ई भेल जे सिनूरदानक समए शिलाकान्‍त रूसि रहल। सिनूरदान करैले तैयारे ने भेल। हेमकान्‍तकेँ बजा ऑंगन लऽ गेलनि। चालू-पुरजा लोक हेमकान्‍त सभ दिनक, सिनूर उठा कन्‍याक माङ्गमे लगबैत बाजल-
बेटा नइ सिनूरदान करत तँ बेटाक बाप करत!’
...अपन चलाकी सुतारै दुआरे हेमकान्‍त जोर-जोरसँ चारि-पॉंच बेर बाजिते रहल।
छुब्‍ध होइत उमाकान्‍त बाजल-
काका, कनी सोझरा कऽ कहियौ।
अपन भारीपन देखि दिवाकान्‍त काका आगूक बात बाजऽ लगला-
बौआ, ओना हम सभ कौलेजक आठ-नअटा शिक्षक एकठाम बैसकखानामे रही। ऑंगनमे गल-गूल भेल। किछु गोरे, शिक्षकोमे सँ आ किछु परिवारो-समाजक बरियाती ऑंगन गेला,एक स्‍वरसँ सभ कहि देलखिन जे बिआह हेमकान्‍तेक भेलनि। कोनो पहिलुका रचल रचना छलै कि अनहोनी से अखनो धरि नहि बूझि पेलौं अछि।
जिज्ञासा करैत उमाकान्‍त बाजल-
लड़की केना राजी भेलनि?”
दिवाकान्‍त-
लड़कीकेँ कि विचारैक पलखैत भेटल। तीन-चारि दिन विधि-बेवहारक होहामे बीति गेल। जाबे कन्‍याक मन थीर भेलनि, ताबे तँ शीलहरण भेल कन्‍याक विचारो-हरण ने भऽ जाइए।
नमहर साँस छोड़ैत उमाकान्‍त बाजल-
काका, वएह तेरह लाख रूपैआक लेनी-देनीक झंझट दुनू बापूत- हेमकान्‍त-शिलाकान्‍तक बीच भेल। धचगर बेटा एक्के बॉंसक टोन तेना कपारपर मारलकनि जे बिच्‍चे–बीच ढाहियो देलकनि आ तरे-तर थौकचो केने छन्‍हि।
नमहर निसाँस छोड़ैत दिवाकान्‍त काका बजला-
जेकरा खोज-पुछारि करऽ जाएब ओ तँ भाइए गेल। केते दिन जीब, आब किए मन मोलि करब।¦¦   
29 मई 2015, शब्‍द संख्‍या- 3231


[1] हेमकान्‍त
[2] वात रोगसँ पीड़ित
[3] उमेरक चोरिक गाछ