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Thursday, April 16, 2015

पसेनाक धरम (अबैबला पोथी)

अगिला लघु कथा-संग्रह-

पसेनाक धरम

जल्‍दीए सोझा औत। 18 गोट कथाक संग्रह ई पोथी रहत।  जइमे 13 गोट कथा पूर्ण भ गेल अछि। जेकर विवरण निच्‍चाँमे देल अछि। ओना शब्‍दक संख्‍यामे किछु हेर-फेर माने कमी-बेसी, फाइनल प्रुफक पछाति भ सकैए। हलांकी हमर बाइनिक विचार कथाक फाइनल प्रुफ भेल अछि। भागलपुरक गोष्‍ठीमे पढ़नौं रही। नारी लेल ई कथा अपन सभ किछु अन्‍य कथासँ अलग बनेलक अछि। देखैक आग्रहक संग पोस्‍ट क रहल छी।
धैनवाद...।   

(1) नहरकन्‍हा/ 11 मार्च 2015, शब्‍द- 1211
(2) बटखौक/ 14 मार्च 2015, शब्‍द- 1267
(3) पसेनाक धरम/ 16 मार्च 2015, शब्‍द– 1256
(4) जेठुआ गरदा/ 18 मार्च 2015, शब्‍द- 1103
(5) हँसीएमे उड़ि गेलौं/ 20 मार्च 2015, शब्‍द- 1237
(6) बुड़िबकहा बुड़िबक बनौलक/ 23 मार्च 2015, शब्‍द- 1237
(7) हमर बाइनिक विचार/ 26 मार्च 2015, शब्‍द- 1177
(8) नोकरिहारा/  26 मार्च 2015, शब्‍द- 1160
(9) घसवाहि/ 28 मार्च 2015, शब्‍द– 1210
(10) तेतर भाइक कविता/ 1 अप्रैल 2015, शब्‍द– 1323
(11) छुआ/ 6 अप्रैल 2015, शब्‍द– 1223
(12) दोसराइत/ 9 अप्रैल 2015, शब्‍द– 1267
(13) लछनमान/ 13 अप्रैल 2015, शब्‍द– 1260

हमर बाइनिक विचार

मास दिनसँ गाममे घोल-फचक्का होइत आबि रहल अछि। कियो बाइसम बर्खक बिआहक उमेरपर टिप्पणी करैत, तँ कियो एक सुशिक्षित महिलाक भविसक वृतान्‍त सुनबैत। इनार-पोखरिक घाट, कल-बोरिंगक घाट, दुआर-दरबज्‍जा आ चौक-चौराहापर लालमणिक बिआहक चर्च चलैत। केतौ शास्‍त्रार्थ बजड़ैत जे जहिना बारह बर्खमे ताड़क गाछक जड़ि बन्‍हाइ छै तहिना ने मनुखोमे हएत...?
मुदा मनुखो तँ मनुखे छी, केतौ कौआ छी तँ केतौ कुकुड़, केतौ हीरामन हंस छी तँ केतौ धोवि-घाटक गदहा। मुदा पोखरिक घाटपर ईहो तँ विचार चलिए रहल अछि जे महिलाकेँ जेते दिनक जनन शक्‍ति अछि ओइमे सुधार भेने सेहो लोकक बाढ़ि बन्‍हाएत। संगे ओकर शरीर सभ दिन शरीर बनल रहत। माने जनन पीड़ा पड़ा निरोग शरीर बनल रहत। मुदा तहूमे तँ बिहंगड़ा भाइए जाइए। बिहंगड़ा ई जे कोनो महिलाक समए स्‍कूल-कौलेजमे बीतैत आ कोनो महिलाक अभावक चलैत विद्यालयसँ बाहर बीतैत...।
प्रश्न अछि जे ओहन जिनगीक सन्‍तान जे विधवा माए, चाहे विधुर पिता, चाहे खगल परिवारमे पलित-पोषित हएत, आ जे भरल-पूरल परिवारमे, भरल-पूरल केर माने परिवारसँ लऽ कऽ समाजक बीच जे अपन बेवहारक पहचान बनौने अछि, तइमे पलित-पोषित हएत, की दुनू एक्के रंग खिलत-फलत...?
मास दिन बीतैत-बीतैत काल्हि धरिक सभ व्‍याख्‍यान माला तर पड़ि गेल, आ बिआह लगलगाउ भेने आइ व्‍याख्‍यान मालाक दोसर पन्ना उनटि गेल। उनटि ई गेल जे लालमणिक पिता- गिरिधर- लालमणिक बिआह तीन लाख नगदपर तँइ केलनि। मास्‍टरक बेटा एम.ए.मे पढ़ै छथि, जत्‍थो-पात नीके छन्‍हि, अपना जीविते मास्‍टर साहैब बेटाकेँ तेहेन घर बना देलखिन जे पोता-पोती धरिक पार-घाट लगि जेतनि। तेते जमा-जिगर छन्‍हि जे वएह ने सठतै। आ तैपर अदहा दरमाहा सेहो जीबैत भरि भेटबे करतनि। लालमणिकेँ कोनो अभाव सासुरमे नइ रहतै, तहूमे अपनो तेते हूनरमन्‍द अछि जे दस गोरेक परिवारक भार कन्‍हापर उठा चलैत रहत। नगदक लेन-देन लालमणिकेँ मिसियो भरि देह नहि सिहरौलक। ओना बातक क्रममे गिरधर अपन हूनरक बात बुझथि मुदा किछु विचारथि नहि।
नगद-नारायणसँ दुनू परिवार बीच बन्‍धन बन्‍हाएत। तइ बिच्‍चेमे लालमणि अपन विचारक अड़ंगा ठाढ़ केली। अड़ंगा ई जे दू परिवारक सम्‍बन्‍ध बनि रहल अछि ओइमे हमरे ने पिताक घरसँ ससुरक घर बुझियौ आकि अपन पतिक घर बुझियौ आकि अपन घर, जाए पड़त...।
मुदा लगले लालमणिक मन ठमकलनि। ठमकलनि ई जे अखन धरिक जे जन्‍मदाता-पालनकर्ता हमर छथि, हुनका समक्ष हम अपन बात राखब। हमरा प्रति पिताक विचारक धारणा की छन्‍हि सेहो स्‍पष्‍ट हएत?
मुदा लगले लालमणिक मन घूमि स्‍पष्‍ट हएबपऱ पहुँचलै। पहुँचिते पिताकेँ पुछलक-
बाबूजी, रूपैआ अहाँ गनब, लेता बर पक्ष, हम तँ बीचमे छी। अखुनका माने बिआहसँ पहिलुका परिवारक पाइ सासुरक हमरे ने भेल। मुदा, जे जिनगी अखन धरिक हमर रहल ओइ जिनगीक समावेश ओइ परिवारमे केना हएत, से तँ अहींकेँ ने कहब?”
लालमणिक विचारपर अपन पित्-बलक शक्‍तिक उपयोग करब गिरिधर अनुचित बुझलनि। मन मन्‍हुआ गेलनि। मन्‍हुआएले मनमे विचार उठलनि जे लालमणिक जन्‍मदते नहि, पिता सेहो छिऐ, तैसंग अपन जे बेवस्‍थित परिवार बनल अछि तही बीच रहि ने ओहो बी.ए. औनर्स कला-संगीत शास्‍त्रक बेवहारिक अध्‍ययन केलक अछि। जइसँ नीक गबितो अछि आ लिखितो अछि। कौलेजमे कोनो साहित्‍यिक कार्यक्रम होइ छै तइमे साहित्‍यिक दुनू धाराक बीच बहैत जश-सुजश सेहो बनौने अछि। यएह ने भेलै ओकर अपन अर्जित सम्‍पति। जँ ऐ सम्‍पतिक दुरूपयोग होइ आकि दाबि कऽ राखल जाइ, तखन एकरा नष्‍ट हएब छोड़ि दोसर रस्‍ते की छै!
मनमे ग्‍लानि उझकलनि, अपसोचक विचार उठलनि जे जखन पाइए गनि बेटीक बिआह करब, तखन बेटीक अनुकूल परिवार किए ने करी। हूसल काज देखि गिरिधर लालमणिकेँ कहलखिन-
बुच्‍ची, उमेरक दोखे नइ, बेवहारक दोखे हम भँसिया गेलौं, मुदा आइ अपना परिवारेमे आँखि फुटल, तँए मन मनुआएल अछि।
पिताकेँ अनुकूल होइत देखि लालमणि मुस्‍कान भरल मुस्‍की दैत बाजलि-
बाबूजी, परिवारक सभ मिलि करी काज, हारने-जीतने कोनो ने लाज। जखने आँखि खुजए तखने दिन। अखनि बिआहक बन्‍धन-सूते तैयार भऽ रहल अछि, समाजमे एहेन-एहेन बरदात केते होइए।
लालमणिक विचार सुनि गिरिधरक टुटल साँस पुन: प्रवाहित भऽ गेलनि। बजला-
बुच्‍ची, बेस कहलह जे परिवारक सभ मिलि विचार करैत चललासँ परिवार नीके नइ नीकोत्तर सेहो होइ छै। माएकेँ सोर पाड़हुन, अखनि काजक सूत्र बहुत आगूओ नहियेँ बढ़ल अछि। ओना ईहो तँ देखिते छी जे केते बिआहक मण्‍डपसँ उठि लड़का बिआहक सूत्र भंग करैत रहल अछि।
पिताक बहैत धारमे लालमणि पानिक पलारमे हेलैत माए लग पहुँच बाजलि-
माए, बाबूजीकेँ किछु चिन्‍ता पछाड़ि रहल छन्‍हि, तेकर चिन्‍ता ओ अनेरे करै छथि। होशियारसँ होशियार आ बेकूफसँ बेकूफ लोक जखन अपन घर बनबऽ लगैए तखन जेते ओकरा डाँड़मे ढौआ रहल ओइ हिसावे बनबैए। जेकरा जेहेन सकरता रहलै, से तेहेन बनबैए से कनी जा कऽ कहुन चिन्‍ता नइ करथि।
ओना लालमणिक विचार कानसँ कामिनी सुनै छेली मुदा जहिना कानक ठेकी अवाजकेँ घेरि लैत अछि तहिना कामिनीक कानकेँ पतिक चिन्‍ता सुनिते घेरि नेने रहनि। लालमणिक संग कामिनी पति लग पहुँचिते चनिआएल चाइन देखए लगली। की चिन्‍ता छन्‍हि, वएह ने बजता, अनेरे बीचमे चुल्हि-चिनमारक बात उठा आरो माथकेँ किए भारी करबनि...।
मुदा जहिना माएकेँ बजबऽ गिरिधर लालमणिकेँ कहने रहथिन तहिना दुनू गोरेकेँ आगूमे ठाढ़ होइते बजला-
परसूका दिन मास्‍टर साहैबकेँ नगद दइक विचार केने छी, भने बीचमे जे विचारैक अछि से विचारि लिअ।
चिन्‍तित पतिक स्‍वरूप जेना कामिनीक मनसँ कमि कऽ विचारैक बातपर गेलनि। अपन बेथा बेथैत बजली-
अखन धरि बेटीकेँ सभ किछु केलौं, ओहो केलक, दुनू संग मिलि सेहो करैत एलौं, मुदा बिआहक पछाति ओ ओते दूर हमरासँ चलि जाएत जे ओकर सीमामे हम पएर नइ देबै। मुदा तँए कि मनमे कोनो कुवाथ अछि? नै! आब तँ सहजे लालमणि लोकक बीच मञ्चपर ठाढ़ भऽ अपन नीक-बेजए बातो सुनबै जोकर भाइए गेल अछि।
माइक सह पबिते जेना फूलक कोनो पिआसल लत्ती पानि पीबिते हरसि जाइए तहिना लालमणिक मन हरसि गेल, बाजलि-
बाबूजी, अविवाहित कन्‍या कु-मारि[1] कन्‍या कहबैए तँए हमरा सभठाम एबा-जेबाक अधिकार अछि। अहाँ हुनका पाइ गनैक जे समए देने छियनि, से अखने फोनसँ कहि दिअनु जे अपना समैपर ओ निसचित आबथि, हम तैयार छी। ओना से जँ नइ कहबनि तँ ओ अपना हिसाबे दिन घुसका-फुसका लेता! अपन हिसाव ई जे बैंकक छुट्टी-तुट्टीक मिलानी कऽ लेता किने।
जहिना कोनो समांगकेँ काज दिस आगू बढ़ैत देखि आनो समांगक मनमे काजक ललक ललकै छै, तहिना बेटीक विचार सुनि गिरिधरक मन ललकलनि। लगले मोबाइल उठा अपना समैपर एबाक आग्रह करैत अपन तैयारीक बात मास्‍टर साहैबकेँ कहि देलखिन।
तेसरा दिन अपन समैपर मास्‍टर साहैब एकटा ड्राइवर- भातीज-केँ संग केने मोटर साइकिलसँ तीन बजे बेरू पहर गिरिधर ऐठाम पहुँचला। चीलमक सूर सारमे ड्राइवर भातीज लगसँ ससरि गेलनि, जइसँ अपनो जान हल्‍लुक भेलनि। जान हल्‍लुक ई जे भातिजे छी, चीलम पीबैए आ जँ कहीं निशाँमे छीनियेँ-तीनियेँ लेत तेकर कोन बिसवास। ओना पच्‍चीस-पचास तँ दइते रहै छिऐ।
चाहक तस्‍तरी नेने कुमारि लालमणि दरबज्‍जापर पहुँच मास्‍टरो साहैबक हाथमे आ पितोक हाथमे चाह धड़ौलक। पिजुआएल मन मास्‍टर साहैबक रहबे करनि, चाह मुँहमे लइसँ पहिने बोकरए लगला-
अखनो धरि स्‍त्रीगणकेँ सोलहो-अना उत्‍पादित काजसँ...।
...काजसँ कहि कनी रूकि गेला।
रूकिते लालमणिक डेग सेहो रूकि गेल। पाशा बदलैत मास्‍टर साहैब फेर बजला-
नोकरी-चाकरीक भीर परिवारक स्‍त्रीगण जँ गेल तँ घरक इज्‍जते की रहल!”
हाइ स्‍कूलमे संस्‍कृत-मैथिली विषयक शिक्षक मास्‍टर साहैब सभ दिन रहला, ओना होइयो स्‍कूलक शिक्षक विषयगत आचरण बनबै छथि, तँए संस्‍कृत शिक्षक आ साइंसक शिक्षकक जिनगीमे, एक दरमाहा रहितो, दूरी बनि जाइए। गिरिधर चुपचाप बैसल सुनैत रहथि। हँ-हूँ किछु ने बजथि। ऐ दुआरे जे लालमणि आगूमे अछि, बाजह।
लालमणि बाजलि-
मास्‍टर साहैब, नोकरी करैक अपनो विचार नइ अछि, तैपर जँ गारजनक रूपमे बजै छी तँ उत्तम विचार। मुदा हमर अपन जे अरजित सम्‍पति अछि, ओकर रक्षाक की उपाए हेतइ?”
मास्‍टर साहैब-
हँ हेतइ। मुदा कोन रूपमे चाहै छी से तँ खुलाशा करए पड़त?”
लालमणि-
तइले ई[2] जगह नहि ओ[3] जगह हएत।¦¦ 

26 मार्च 2015, शब्‍द- 1177



[1] अधलाकेँ मारि
[2] नैहर
[3] सासुर

Monday, April 6, 2015

भागलपुरक सगर राति दीप जरय

कथा गंगामे सगर राति दीप जरल-

सगर राति दीप जरय एक ओहन मंचक नाओं छी, जइ मंचपर सभ वर्गक साहित्‍यकार भाग लइ छथि, जाइ-अबै छथि तथा भाषा-साहित्‍यक विकासक लेल विचार-विमर्श करै छथि। तँए ई सगर राति दीप जरय मैथिली भाषा-साहित्‍यक सभसँ श्रेष्‍ठ मंच कहबैत अछि। एकर आयोजन जगह-जगह प्राय: तीन मासक अन्‍तरालपर १९९० ई.सँ होइत आबि रहल अछि।
८५म गोष्‍ठी श्री ओम प्रकाश झाक संयोजकत्‍व आ मिथिला परिषद केर प्रस्‍तुतिमे भागलपुरक द्वारिकापुरी स्‍थित श्‍याम कुंजमे आयोजित भेल जेकर उद्धघाटन वरिष्‍ठ समालोचक डॉ. प्रेम शंकर सिंह, विदेह एवं टैगोर सम्मानसँ सम्मानित साहित्‍यकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल, तिलकामाझी विश्वविद्यालयक मैथिली विभागाध्‍यक्ष डॉ. केष्‍कर ठाकुर, डॉ. शिव प्रसाद यादव एवं अवकाश प्राप्‍त शिक्षक दुखमोचन झा संयुक्‍त रूपे दीप नेसि केलनि। पछाति एक विशिष्‍ठ अध्‍यक्ष मण्‍डल एवं संचालन समितिक निर्माण करि गोसाउनिक गीत, स्‍वागत गान एवं स्‍वस्‍ति वाचनसँ साँझक छह बजे गोष्‍ठीक शुभारम्‍भ भेल, रातिक १२:३० बजे घण्‍टा भरिक भोजनावकाश भेल, जइ शुन्‍यकालमे, भोजनक पछाति, संयोजक- सह गजलकार ओम प्रकाशजी अपन नव रचित दूटा गजल सुना कथाकार सभ साहित्‍यकार-साहित्‍य प्रेमीकेँ साहित्‍य-रसमे बोरि देलनि। पुन: कथा पाठ आ समीक्षाक क्रमकेँ आगू बढ़ौल गेल। जे चलैत-चलैत भिनसर छह बजेमे आबि अध्‍यक्षीय उद्बोधनक संग संयोजकक धन्‍यवाद ज्ञापन तथा दीप-पंजीक हस्‍तांतरणक पछाति इति भेल। ऐ गोष्‍ठीमे दूर-दूरसँ आएल साहित्‍यकार-कथाकार-समीक्षक एवं श्रोताक तथा स्‍थानीय साहित्‍यकार-कथाकारक संग कथा प्रेमीक बेस जमघट ताधरि बनल रहल जाधरि अगिला गोष्‍ठीक निर्णयक संग आयोजित गोष्‍ठीक समापनक घोषणा नहि कएल गेल।
८६म आयोजन मधुबनी जिला अन्‍तर्गत फुलपरास प्रखण्‍डक महिन्‍दवार पंचायतक लकसेना गाममे होएत, जइमे पहुँचैक हकार दैत भावी संयोजक श्री राजदेव मण्‍डल रमणजी कहलनि- अधिक-सँ-अधिक कथाकार-साहित्‍यकार-समीक्षक सभकेँ लकसेना गामक ८६म कथा गोष्‍ठीमे सुआगत छन्‍हि।  
८५म गोष्‍ठीक अध्‍यक्ष मण्‍डल, संचालन समिति, कथायात्राक मादे दू शब्‍द, पोथी लोकार्पण, कथा पाठ एवं समीक्षा-टिप्‍पणीक विवरण निच्‍चाँमे देल जा रहल अछि-
अध्‍यक्ष मण्‍डल-
डॉ. प्रेम शंकर सिंह, श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल, डॉ. केष्‍कर ठाकुर, श्री विवेकानन्‍द झा बीनू श्री राजदेव मण्‍डल, श्री श्‍यामानन्‍द चौधरी।
संचालन समिति-
श्री दुगानन्‍द मण्‍डल, श्री पंकज कुमार झा एवं उमेश मण्‍डल।
कथायात्राक मादे दू शब्‍द-
प्रो. केष्‍कर ठाकुर, पो. प्रेम शंकर सिंह, श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल, श्री विवेकानन्‍द झा बीनू
गोसाउनिक गीत-
श्रीमती निक्की प्रियदर्शनी आ स्वीटी कुमारी।
स्‍वस्‍ति वाचन-
श्री शिव कुमार मिश्र।
पोथी लोकापर्ण-
अपन मन अपन धन (लघु कथा संग्रह) जगदीश प्रसाद मण्‍डलक
उकड़ू समय (लघु कथा संग्रह) जगदीश प्रसाद मण्‍डलक
लोकार्पण कर्ता-
डॉ. केष्‍कर ठाकुर
डा. प्रेम शंकर सिंह
पहिल सत्रमे कथा पाठ-
(१) लगक दूरी- निक्की प्रियदर्शनी
(२) गहींर आँखिक बेथा- ओम प्रकाश झा
(३) डोमक आगि- रामविलास साहु
(४) शिवनाथ कक्काक डायरी- अखिलेश मण्‍डल।
समीक्षा-टिप्‍पणी, पहिल सत्रक-
डॉ. शिव कुमार प्रसाद, उमेश मण्‍डल, डॉ. शिव प्रसाद यादव एवं श्री नन्‍द विलास राय।
दोसर सत्रमे कथा पाठ-
(५) हमर बाइनिक विचार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल
(६) प्राश्चित- गौड़ी शंकर साह
(७) मजाकेमे चलि गेलौं- लक्ष्‍मी दास।
समीक्षा-
श्री राम सेवक सिंह, प्रो. केष्‍कर ठाकुर, श्री श्‍यामानान्‍द चौधरी, डॉ. प्रमोद पाण्‍डेय।
तेसर सत्रमे कथा पाठ-
(८) जीन्‍स पेन्‍ट- नन्‍द विलास राय
(९) लाल नुआँ- शम्‍भु सौरभ
(१०) धोइते-धोइते भगवान बना देबइ- उमेश मण्‍डल
(११) धर्म आ धार्मिक- दुख मोचन झा
समीक्षा- 
श्री ओम प्रकाश झा, डॉ. प्रेम शंकर सिंह, डा. शिव प्रसाद यादव, श्री राजदवे मण्‍डल।
चारिम सत्रमे कथा पाठ-
(१२) अनमेल बिआह- शिव प्रसाद यादव
(१३) मुरझाएल फूल- कपिलेश्वर राउत
(१४) पुत्रक कर्तव्‍य- नारायण झा
(१५) भूख- पंकज कुमार झा
(१६) बेसी भऽ गेल आब नहि- हेम नारयण साहु।
समीक्षा-
श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल, श्री विनोदानन्‍द झा बीनू’, डॉ. शिव कुमार प्रसाद।
पाँचिम सत्रमे कथा पाठ-
(१७) भीखमंगा- प्रकाश कुमार झा
(१८) भोला- ललन कुमार कामत
(१९) विधवा बिआह- बेचन ठाकुर
(२०) होटलमे पुकार- दुखन प्रसाद यादव
(२१) चोंचाक खोंता- उमेश नारायण कर्ण
समीक्षा-
श्री श्‍यामानन्‍द चौधरी, डॉ. शिव कुमार प्रसाद, राजदेव मण्डल रमण
 छठिम सत्रमे कथा पाठ-
(२२) अपन घर- राजदेव मण्‍डल 
(२३) चीफ गेष्‍ट- शिव कुमार मिश्र
(२४) मायाक तागत- राजदेव मण्‍डल रमण
(२५) आमक ठाढ़ि- शिव कुमार प्रसाद
(२६) हेराएल कोदारि- शिव कुमार प्रसाद
(२७) डिजाइनवाली कनियाँ- शारदा नन्द सिंह
समीक्षा-
उमेश मण्‍डल, नन्‍द विलास राय, श्‍यामानन्‍द चौधरी एवं हेम नारायण साहु।
समाद-

उमेश मण्‍डल।