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Sunday, March 15, 2015

अपन मन अपन धन

''अपन मन अपन धन'' कथा संग्रह पूर्ण भ' गेल। एगारहो कथाक विवरणक संग निच्‍चाँमे अन्‍तिम कथा देल जा रहल अछि- 
सादर 
जगदीश प्रसाद मण्‍डल।

अनुक्रम-
(१) चौरचनक दही- (२१०१), ३१ जनवरी २०१
(२) अपन मन अपन धन- (१५३९), फरवरी २०१५ 
(३) टुटली मरैया- (१९५७), फरवरी २०१
(४) हकार- (१९१७), ११ फरवरी २०१
(५) दहेजुआ गाए- (१९२०), १५ फरवरी २०१
(६) मेटाइत जिनगी- (२१३७), २० फरवरी २०१  
(७) धुर बुड़ि तोरा बजै ने अबै छौ!- (२००३), २३ फरवरी २०१
(८) लेहाज- (१९२७), २६ फरवरी २०१
(९) विचार हेरा गेल- (१९३०), मार्च २०१
(१०) ओ दिन- (१७८७), मार्च २०१५ 
(११) उरीन- (३२४४) ८ मार्च २०१५ 

उरीन

अदराक अमैया भार साँठिते जहिना बुधना कक्काक मन हल्‍लुक भेलनि तहिना सुधनीआंे काकीकेँ भेलनि। पछिला अखाढ़मे बेटीक बिआह भेने अमैया अन्‍तिम भार छी, जे पूरि दुनू परानी बुधना कक्काक मन हल्‍लुक भेलनि। हल्‍लुक होइते चैनिक नमहर साँस छोड़लनि। नमहर साँस ई जे बेटी बिआहक भार-दौरक प्रकरणक अाखिरी वीध-बेवहार छी। ओना भार-दौरक वीध-बेवहारक चलनि बेठेकान अछि, से दुनू परिवारक, माने बरो पक्षक आ कनियोँ पक्षक मुदा एते तँ ठेकनाएल अछिए जे काेन पावनि आकि समैक भार कोन पक्षसँ आएत-जाएत। जहिना पवनौट तहिना समैया, जे दुनू पक्षसँ सालो भरि चलिते अछि।
भार-दौर बेठेकान एना अछि जे जइ मासमे बिआहक वीध-बेवहार पूर होइए तेकर पछातिसँ भार-दौरक वीध-बेवहार शुरू होइए। ओना कुमार-भारक चलनि सेहो अछि जे बिआहसँ पहिने होइए...।
...जहिना माता-पिताक मृत्‍युक सराधक पछाति मासे-मास तीर्थानुकूल छाया होइत बरखी लग पहुँच बिसरजन करैए, तहिना बेटो-बेटीक बिआहक पछाति सालक आखिरी मास, माने जइ मासक लग्‍नमे बिआह भेल रहल तइ मासमे पहुँच बिआहक प्रकरण पूर होइए। तँए जहिना बरखी भेला पछाति अगिला बरखीक प्रकरण शुरू होइए तहिना साल बीतला पछाति दुरागमनक प्रक्रिया शुरू होइए। मृत्‍युक पछाति जहिना छायो बेठेकान अछि जे कोन माससँ शुरू हएत। तहिना बिआही भारोक अछि। बेठेकान ई जे जेना अगहनमे मृत्‍यु भेने पूससँ छाया शुरू होइए तहिना जेठमे बिआह भेने अमैया भारसँ शुरू होइए।
बुधना काका अपन तेसर बेटी, माने अन्‍तिम बेटीक बिआह पछिला अखाढ़मे केने छला, जइसँ भार पछुआ गेलनि, सएह पाँचटा भार समधियौर, जमाए ऐठाम पठा दुनू परानी- बुधना काका आ सुधनी काकी- नमहर साँस छोड़लनि। बेटीक रीनसँ अपनाकेँ उरीन पबिते मने-मन दुनूकेँ खुशी उपकलनि। खुशीओ उपकब सोभाविके छेलनि। सोभाविक ई जे जहिना माथपर भरिगर बोझ रहने देहक सभ अंग भार तर दबल रहैए मुदा नीचाँ रखिते देहक संग अंगो भार मुक्‍तऽ जाइए तहिना दुनू बेकती बुधनो काकाकेँ भेलनि। सालक भार-दौरक हिसाव जोड़ैत सुधनी काकी बजली-
जेना अपन पहिल भार पुरलौं तेना ओ कहाँ पुरा सकला।
बर-पक्षक पहिल भार दब पड़लनि...!’ पत्नीक बात बुधना काका कानसँ तँ नीक जकाँ सुनलनि मुदा मनकेँ अनसुन बनबैत बजला-
जखन दुनू परिवार एक सीमापर सम्‍बन्‍ध स्‍थापित केलौं, तखन एहेन चर्च नीक नहि।
पतिक बात सुनि सुधनी काकीक मनमे कचोट भेलनि। कचोट ई जे जखन दुनू परिवारक सम्‍बन्‍ध बनल तखन जँ सभ वीध-बेवहारपर नजरि खिड़ा मिलानी नइ करैत चलब तखन एकरसता दुनू परिवारमे केना औत। ई बात जरूर जे दू परिवारक बीच उच्‍च कोटिक सम्‍बन्‍ध स्‍थापित भेल, तँए छोट-छीन काजो आ बातोपर धियान ओही नजरिए (साधारण बूझि) देबा चाही, मुदा ओही छोट-छीन काज-विचारमे तँ पैघो-पैघो मान-समानक बीआ तँ नुकाएल अछिए...।
...मुदा मनक कचोट सुधनी काकीकेँ लगले टघैर गेलनि। टघैरिते मन घुमलनि। घुमिते बजली-
आरो जे भेल से भेल मुदा सात गंगा नहेला साफल तँ भाइए गेल।
पत्नीक मुँहक बहैत गंगा-धारमे जँ बुधना काका नइ भरि देह तँ चिड़ैओ जकाँ एको लोल जँ लूझि नै लेता सेहो केहेन हेतनि। बजला-
किछु छी तँ अपन गाम अपन गाम छी। कोनो कि टोल-टपराक बास अछि। पाँचटा अमैया भार जोड़ब, ओ थोड़े बुझत जेकरा गाममे बेसी तारे-खजूरक गाछ छै।
धारक अगिला रेतमे पतिकेँ बहैत देखि धोतीक पछिला खूट (ऐ दुआरे जे धारमे खढ़ो जखन मददगार होइ छै, तखन पतिक धोतीक खूट तँ सहजे पुरुखक खूट छी) पकड़ि दुनू पएर पाछूसँ पटकैत बजली-
पाँचो भारक पाँचो रंगक आम पाँच गामक रहितो एके गामक ने भेल। मुदा तैयो अपन गुण-धर्म तँ अछिए।
गुण-धर्म सुनि बुधना काका चौंकला। चौंकला ई जे गुण-धर्म तँ मनुखमे होइ छै, आमक नाआंे किए कहली? मुदा पति रहैत ईहो कहब नीक हएत जे हमरा नइ बुझल अछि, से कनी फरिछा कऽ बुझा दिअ। मनमे अतस्-वितस् उठलनि। मुदा लगले मन फरीच भऽ गेलनि। बजला-
जहिना-जहिना अगिला-पछिला भरियाक संग आमक भार सँठने छेलौं तहिना-तहिना ने आमो छेलै।
पतिक सह पबिते सुधनी काकी बजली-
फैजली आमक भारमे की केने छेलिऐ से अहाँ बुझलिऐ?”
पत्नीक बात सुनि बुधना कक्काक मन कहलकनि, जँ प्रश्नक उत्तरमे देरी लगाएब तँ ओ सोचल-विचारल भेल, तइमे जँ चुकब तँ गाछक बानर जकाँ डारिक चुकब हएत, आ जँ धड़फड़मे बाजव तँ ओ भेल उतरा-चौड़ी। तहूमे दुनू परानी छी, पत्नी-पति छी जँ उतरा-चोड़ी नइ करैत चलब तँ परिवारक गाड़ी गुड़कबे ठमैक जाएत। मुदा देरी देखि सुधनीए काकी बजली-
फैजली आमक भारक तऽरमे, पेनीमे सापसीन आम पसारि देने छेलएे!”
सापसीन आम सुनि बुधना कक्काक मन ठमकलनि। ठमकलनि ई जे बम्‍बइ, कलकतिया, सपेताक चर्च करबे ने केलनि आ सापसीनक गप किए चालि देलनि। फेर मनमे भेलनि जे जँ अपना नीक लगल एकर माने ईहो तँ नहियेँ हएत जे पत्नीआंेकेँ नीक नइ लगनि...।
...भेल तँ जे सा-पसीन कहलनि, से जँ सपसिन कहितथि तँ बुझितौं जे अपन पसीनक विचार कहलनि। सेहो नै सा कहि देलनि! ओना अमैया समए छी आमक लग्न भेल, ऐमे जँ कथा-कुटुमैती जकाँ कूट भाषाक प्रयोग करब तँ ओ अनुचित हएत। तँए सापसीन आम भेल, जे सजमनियेँ आम जकाँ कहियौ आकि फैजलीसँ डेढ़िया-दोबर नमहर कहियौ, से तँ होइते अछि। मुदा शुरूहेसँ जे आम रोगाए लगैए ओकर अन्‍तो पीलुए भोगसँ होइ छै। तखन तँ भेल पील्‍लू भोग। मुदा छी तँ सापसीने। गृहिणीक गृह विद्यालय तँ ओहन गुरुआश्रम होइत जैठाम सिसकितो आ सिहकितो पति ज्ञान ग्रहण करैत। पतिक रूपमे बुधना काका बजला-
सापसीन आम तँ पीलुआहा आम छी, फैजली आमक तरमे किए घोंसिया देलिऐ?”
पतिक गिरगिराइत, मिरमिरइत बात सुधनी काकीक मनकेँ जेना धक्का मारलकनि। जहिना दारीम, कटहर, नेबो, शरीफा पकि कऽ फटैत-फटैत, अवाज करैत फटि जाइए तहिना फटकैत सुधनी काकी बजली-
अहाँ बुझै छिऐ जे जमैया भार छी, मुदा हम तँ समधिनियाँ भार बुझै छी, तँए रंगक संग रभस नइ होइ तखन भारे की भेल?”
पत्नीक विचारकेँ बहटारैत बुधना काका बजला-
सालक लग्‍नक आखिरी मासो छी आ आखिरी भारो छी। पार लगि गेल।
पार लगि गेल बजैक क्रममे तँ बुधना काका बाजि गेला मुदा जेना अपने मन अपना बोलकेँ रोकि देलकनि। रोकि ई देलकनि जे गाम-समाजमे बिआहक जे मान-दण्‍ड समाजमे चलैत अछि- जे दस वर्षे भवेत कन्‍या, जँ तइ हिसावे सही समैपर बेटा-बेटीक बिआह नइ भेल तँ अनेको प्रश्न समाजक बीच उठऽ लगैए। मुदा नइ होइक पाछू की कारण अछि, तइबेरमे गाम-समाज चुप भऽ जाइए...!
...एक दिस प्रश्न अछि बेटीकेँ पढ़ा-लिखा डाक्‍टर, इंजीनियर, प्रोफेसर इत्‍यादि बनाउ, दोसर दिस पनरह-सोलह बर्खक बेटी होइते, रंग-रंगक टीका-टिपणी समाजमे उठऽ लगैए। दुनूक विपरीत परिस्‍थिति छै, प्रोफेसर वा डाक्‍टर बनैमे बीस-पचीस बर्खक उमर भाइए जाइए। दुनूक बीच सामंजस केना हएत...?
...मुदा से हेबो केना करत, एक दिस समाजक अधिकार बूझि लोक बाजव उचित बुझैए मुदा जैठाम काजक प्रश्न अछि तैठाम पीठ देखा पाछू ससैर जाइए...!
...मुदा लगले बुधना कक्काक मन फरीच भऽ गेलनि। समाजसँ परिवार दिस बढ़ला। बढ़िते मनमे उठलनि, एना बेटी माए-बापकेँ भार किए बनल अछि? ओना पहिलुको दुनू बेटीक बिआहमे तवाही भेले रहए मुदा तेसरमे तँ नाको-दम भऽ गेलौं। असे ने छल जे बेटीक बिआह कऽ सकब। मुदा फेर मन घुमलनि। घुमिते बिआहक खर्चपर नजरि गेलनि। तीन लाख रूपैआक काज भेल...!

बिआहक चौदहम मासमे बैंकक लोनक तगेदाक सूचना बुधना काकाकेँ भेटलनि। जे एजेण्‍ट गाइक खटालक नाआंेपर बैंकसँ लोन दिया देने रहनि सएह पत्रक सूचना बुधना काकाकेँ देलकनि। बिआहक खुशी बुधना कक्काक मनसँ मेटाएलो ने रहनि, दोसर साल बीतिते तेसर साल दुरागमन करता, तैबीचक सभ वीध-बेवहार निमाहि बेटी-दुरागनक हीक लगले छन्‍हि जे हँसी-खुशीसँ बेटी माए-बापक परिवार छोड़ि सृष्‍टिक सृजनमे एक नव परिवार बनि जीवनक धारमे बहैत झिलहोरि खेलाइत चलैत रहत।
बैंकक नोटिस नेने बुधना काका पहुँचला। बेरुका समए। एके-दुइए बेरुका चाह केते गोटे पीबियो नेने आ केते गोटे पछुआएलो रहथि। हमहूँ पछुआएले रही। ओना बुधना कक्काक घर बेसी हटलो नहियेँ छन्‍हि, मुदा बेरुका रौदमे आएल रहथि, उनटा रस्‍ता तँए सिरचढ़ रौद। जइसँ चेहरामे मलीनता आबिए गेल रहनि। देखिते कहलियनि-
काका, गोड़ लगै छी, एते रौदमे किए...?”
कहि कुरसी आगू दिस बढ़ा, बाँहि पकड़ि बैसौलियनि। थाकल-ठेहियाएल चेहरा देखि कहलियनि-
काका, चाह पीबैक समए अछि। बनि रहल अछि। तैबीच पानियोँ पीब?”
चाह-पानि सुनि बुधना कक्काक मन सिहरलनि। बजला-
तोहूँ बैसह ने, घरवारी सब चाह-पानि पीऔत कि तोहीं पीयेबह। किछु काजे एलौं हेन।
बदलैत मुहोँ आ बोलोक सुर्खी देखि मनमे भरोस भेल। मनमे ई हुअए जे भरिसक कोनो उकड़ू काजमे काका फँसि गेल छथि तँए जालमे फँसल चिड़ै जकाँ फड़फड़ा रहल छथि। दोसर दिस जखन मन बहटतनि तखन अनेरे पछिला सोग-पीड़ा कमतनि। कहलियनि-
काका, साठि बरख तँ पार कऽ गेल हेबै किने?”
हमर बात सुनि बुधना कक्काक मनमे जेना अकासक अस्‍सी मन बरखा बरिस गेल होन्‍हि तहिना विहुँसैत बजला-
निरमल, तोरासँ लाथ की, जिनगीमे कहियो डायरी नइ लिखलौं। डाइरियेक कोन बात जे पढ़ै-लिखैक लाटे टुटि गेल। मुदा गामक तँ नीक परिवारमे माने दस-पनरह बीगहाबला किसानमे सब दिन हिसाव रहल। कहियो ने कोनो तेहेन भार पड़ल आ ने बूझि पेलौं।
बुधना कक्काक दौड़ैत मन जेना परिवारमे सोन्‍हि खुनए विदा भेल होन्‍हि, तहिना बूझि पड़ल। तैबीच माए चाह नेने पहुँचलि। उठि कऽ डिसमे सँ चाह उठा हाथमे दैत कहलियनि-
चाह नइ पीआबै छी, चाहक भाँज पुरबै छी।
जेना बुधना काकाकेँ नीक लगलनि, बजला-
चाह कि भेल आ भाँज कि भेल।
कक्काक बात सुनि मन मानि गेल जे बुधना काका सोलहन्नी बाटीक पानि जकाँ थीर भऽ गेला। कहलियनि-
काका, एक गिलास चाहक दूधमे दू गिलास चाह बनल, तँए कहलौं चाह नइ चाहक भाँज पुरेलौं।
मधुशालामे जँ सवाल-जवाब नइ होइत चलत तँ ओ मधुशले की? केते कण्‍ठ फाड़ि-फाड़ि मधुमाछी सभ मधु बनबैए आ...।
...मनमे अपन विचार चलिते रहए कि बुधना काका बजला-
ई तँ भेल फुसियाही वौस। असल चाह तँ जिनगीक चाह छी।
कहि चुप्‍प भऽ गेला। चेहरासँ बूझि पड़ल काजक चिन्‍ता किछु बेसी छन्‍हि, तँए धड़फड़ी जकाँ छन्‍हि।
कक्काक डमहाएल बोली सुनि कहलियनि-
गपमे एते धड़फड़ाएब तँ गप चलत। असथिरसँ पहिने चाह पीबू, पान खाएब तखनि आगूक गप हेतै।
बुधना कक्काक उधियाइत मन तैयो उधिया जाए। चाह सधलो ने छेलनि कि बिच्‍चेमे उधैक बजला-
बौआ निरमल, यएह चाह छी जे लगले पहिने पीने रहैए ओकरा-ले किछु ने भेल, अपनो मन यएह कहतै जे गदे-पर-गद उचित नइ। मुदा थाकल-ठेहियाएलक बीच आकि जाड़-ठाड़मे पड़लाहक बीच अमृतो तँ बनियेँ जाइए।
चाह सधल, पान खेलौं। मुँहमे पान जाइते जहाँ मुँह उठा बुधना कक्काक मुँहपर देलियनि कि हुनकर नजरि अपन काजपर अँटकल बूझि पड़ल। जेबीसँ लोन-आपसीक किस्‍तक कागत देखए देलनि। कागतकेँ देखि टेबुलपर रखि कहलियनि-
काका, अहाँक कन्‍यादान सभसँ नीक ऐ साल गाममे भेल।
सभसँ नीक भेल सुनि बुधना कक्काक मन मौलाए लगलनि। जिनगीमे चारू भागसँ जेना अपनाकेँ घेराएल बूझि पड़लनि। एक दिस अछैते कमासुत परिवार रहितौ रंग-रंगक बाधा परिवारमे उपस्‍थिति भऽ गेल अछि। बेटीक बिआह कऽ अपनाकेँ बेटीक रीनसँ उरीन भेलौं, मुदा बिआहक मोटाक भार तँ ऊपरमे अछिए। दुनू बेटा अपनामे अराड़ि ठाढ़ कऽ आरो फसाद परिवारमे लादि देने अछि। मुदा अपनाकेँ सम्‍हारैत बुधना काका बजला-
अपना केने थोड़े भेल, समाजक केने ने भेल। चारू दिससँ सोंगर लगा, सोंगरेपर घर ठाढ़ कऽ देलक, पछाति...।
पुछलियनि-
काका, कर्ज किए लेलौं?”
कर्ज किए लेलौं! एकरा सभ अधला बुझैए। मुदा परिस्‍थितिक सामना लेल कर्जक खगता लोककेँ भाइए जाइ छै। सामंजस करैत बुधना काका बजला-
बौआ, करजे ने रीन छी। मुदा जहिना माए-बापक श्राद्ध-क्रिया तक पार लगा बेटा उरीन होइए तहिना ने बेटीओ बिआह रीन छी, ओकरा केला पछातिए ने ओइ रीनसँ उरीन हएब। कोनो कि खाइ-पीबैले लोन लेलौं।
बुधना कक्काक दु-दिसिया प्रश्नक बीच भोथिया गेलौं। भोथिया ई गेलौं जे परिवारमे ओहन बहुतो रीन अछि, जेकरा चुकताएब कर्तव्‍यक सीमामे अछि। पाशा बदलैत पुछलियनि-
काका, दुनू भाँइकेँ[1] नोकरीमे बचत नै छन्‍हि जे बहीनक बिआह निमाहितथि।
हमर बात जेना काकाकेँ नीक लगलनि। बेटाक बेवहारसँ मन एते खिन्न गेल छेलनि जे बेकाबू भऽ गेला, मुदा अपनाकेँ सम्‍हारैत बजला-
की बाजू बौआ, नइ बाजू तैयो गेलौं! बाजू तैयो गेलौं! हाथक कोनो ओंगरी कटने घा अपने हएत!”
टोकारा देलियनि-
से की काका!”
बुधन काका बजला-
बौआ, तेसर बेटीक बिआह, अन्‍तिम कन्‍याँदान छल। पहिल कन्‍याँदानमे समए एते नइ कुदल छल तँए बेसी भारी नहियेँ भेल। दोसर कन्‍याँदानमे दुनू भाँइ, माने दुनू बेटा अपन बहिन बूझि सब काज केलक। नीक खर्चो भेल आ कुटुमैतीओ नीक भेल। मुदा...!”
मुदा कहि कक्काक बोल रूकि गेलनि। जेना कियो पाछूसँ पकड़ि पाछुए दिस खिंचए लगलनि तहिना। एकाएक बीचमे बोली बन्न होइते मनमे शंका भेल जे किए बिच्‍चेमे काका रूकि गेला। मुदा रूकैयोक केते कारण होइ छै, जँ किछु बीचक बात बिसरि गेलौं...। चाहे जँ कोनो एहेन बात सोझमे अाबि जाए, जइसँ विचारेमे टकराहट आबि गेल...। एहनो भऽ सकैए जे बिच्‍चेमे पानि पीबैक इच्‍छा जगि गेल, कण्‍ठे सुखए लगल...। एहनो भऽ सकैए जे मुँहमे किछु पड़िए गेल...। अनेको कारण अछिए। तँए कनी अपनो बजैसँ परहेज केलौं।
जहिना उफनाएल पानि धरियाइत-धरियाइत असथिर होइत-होइत शान्‍त भऽ फरीच हुअ लगैए तहिना बुधना कक्काक मन सेहो फरीच भेलनि। फरीच होइते बजला-
बोआ निरमल, बड़का तीन-तसियामे परिवार फँसि गेल अछि।
परिवार सुनि मन ठमकल। ठमकल ई जे कियो अपने कुचालि चलने फँसि जाइए, जेकरा सुचालि बनबैमे केतौ-केतौ विचारकेँ तोड़ए पड़ै छै आ केतौ-केतौ बदलैयो पड़ै छै। अपने अही घुरछीमे घुरियाएल रही, कि बिच्‍चेमे बुधना काका बजला-
बौआ निरमल, दुनियाँमे कियो केकरो ने!”
कक्काक दार्शनिक बात सुनि अपनो मन जागल। पुछलियनि-
से की काका?”
जेना कियो ठोहि फाड़ि कनबो करैए आ बजबो करैए तहिना बुधना काका ठोहि फाँड़ि बजला-
बौआ! बेटी हमर छी, मुदा बहिन तँ ओही दुनू भाँइक छिऐ! जे बहिन अपन बपौती सम्‍पति हँसी-खुशीसँ भाए-भौजाइले छोड़ि जाइए...!
...आ ओही बहिनक बिआहमे अपन मुड़ी छिपैत भाए, हँसी-खुशी घरसँ बहिनकेँ विदा नै कऽ भगबैक भाँज लगा दइए!”
एक संग बुधना काका केते बाजि गेला। जँ सभ बातकेँ पकड़ि आगू बढ़ब तँ सम्‍भव अछि जे काजेक गप पछुआ जाए वा छूटि जाए आ अकाजेमे समए चलि जाए। तँए प्रश्नक जड़िकेँ पकड़ि पुछलियनि-
काका, एना सोझरा कऽ कहू जे छोटकी बेटीक बिआहमे दुनू बेटामे सँ कियो मदति नहि केलनि?”
मदति सुनि जेना बुधना कक्काक दुनू बेटा परहक तम-तमी आरो चढ़ि गेलनि। बजला-
पाँच भाए-बहिनमे जँ एक रंग-के जमीनक हिस्‍सा बाँटि दिअए तँ दस बीघामे चारि बीघा दुनू भाँइकेँ हेतै। बाँकी छह बीघा तँ ओही तीनू बहिनक होइतै जे छोड़ि ओ सभ सवुर केने अछि, मुदा भाए सबहक एहने किरदानी होइ जे अपन रूपैआ बैंकमे रखने अछि आ अपने बैंकक लोनसँ बेटीक बिआह केलौं।
बुधना कक्काक भँसैत विचार देखि, मोड़ैत पुछलियनि-
काका, छोटकी बहिनक बिआहमे दुनू भाँइमे सँ कियो ने आएल? आ ने किछु उचितो-उपकार केलक?”
अपन हारल जहिना बजैए तहिना काका बजला-
नहि।
कक्काक बात सुनि मनमे भेल जे एहेन तँ ने भेल छन्‍हि जे दुनू बेटा एक विचार बना हिनके ने तँ धकिया देने छन्‍हि। मुदा से बूझब केना। पुछलियनि-
काका, एना किए दुनू भाँइ एकमुहरी मुँह घुमा लेलनि?”
एकमुहरी सुनिते जेना दुनू बेटा-बीचक बुधना कक्काक मनमे पन्ना उनटलनि। निधोख बजला-
बौआ, दुनू एकमुहरी कहाँ अछि, दू-मुहरी अछि आ दुइए-मुहरी की कहबै, बहुमुहरी अछि!”
एक-मुहरी, दू-मुहरी आ बहु-मुहरीक बीच ओझरा गेलौं। पुछलियनि-
एना नइ बुझब, कनी सोझ-साझ करि कऽ बजियौ, तखन बुझब।
हमर बात बुधना काकाकेँ नीक लगलनि। बजला-
दुनू भाँइमे भैंसा-भैंसीक भिरंत भीतरे-भीतर भीतरघात केने छै। जेकर फल हमरेटा किए परिवारोकेँ भोगए पड़ि रहल छै।
पुछलियनि-
से की?”
बजला-
जड़िएसँ कहै छिअ। मैझली बेटीक बिआहमे दुनू भाँइ, बहिनक बिआह बूझि जी-जानसँ यज्ञ सम्‍हारलक। जे करीब दस बरख भऽ गेल हएत। दुनू भैंआंे आ दुनू दियादिनीआंेमे खूब मेल-मिलान रहै। मुदा...!”
मुदा कहि फेरि बुधना काका रूकि गेला, जेना हरक नाश कोनो बुट्टीमे लगि गेलापर बरद ठाढ़ भऽ जाइए तहिना बोलती बन्न कऽ लेलनि। हरवाह जहिना बरदक नाङ्गरि पकड़ि बोली दइए तहिना बोली देलियनि-
काका, अहूँ केकर दिनक पइर करै छी, पहिरै जोकर धोती जहिना फटऽ लगैए तहिना सुनै जोकर बात जखन मनमे भेल कि चुप्‍पे भऽ गेलौं।
हमर बात सुनि काकाकेँ जेना हूबा जगलनि, बजला-
दुनू भाँइक बीच किए गरमेल अछि आ की भेलै से तँ ओ सभ जानए, मुदा गामक आवा-जाही दुनू बन्न केने अछि। ने कोनो खोज-पुछारि कियो करैए आ ने...।
कहलियनि-
तखनि तँ अहाँकेँ आरो नीक भेल किने। मारे खेत-पथार अछि, बेच-बेच खूब खाउ-पीबू। जे मन फुड़ए, जेना मन फुड़ए से करू।
ओना उत्‍साहित होइ दुआरे कहलियनि मुदा काजक घुरछीमे काका तेना ओझरा गेल छथि जे उत्‍साहे टुटल छन्‍हि। बजला-
बौआ, दुनू भाँइ भैयारीक झगड़ा तेना कपारपर पटैक देने अछि जे कोनो सशे-वश ने चलैए।
पुछलियनि-
से की?”
बजला-
दुनू भाँइ कोर्टसँ नोटिस करबा देने अछि जे बिना कोर्टक आदेशे सम्‍पतिकेँ किछु ने कऽ सकै छी। तँए ने, ने तँ दस कट्ठा खेत बेचि कऽ बेटीक बिआह कऽ लइतौं, आ जहिना ओकरा सबहक मुँह-कान घुमल छै तहिना अपनो घुमा लइतौं।
मुहसँ तँ किछु ने निकलल मुदा मुड़ी डोलबैत कक्काक विचारकेँ सूहकारि लेलियनि। ओना कक्को बजैत-बजैत चुप भऽ गेल छला, तैबीच अपनो आगू किछु सुझबे ने करए जे किछु पुछितियनि। किछु समए दुनू गोरेक बीच गुमा-गुमी रहल। तैबीच माए सेहो दोहरी चाह नेबोबला बनौने आएल। चाह देखि बुधना काका बजला-
नेबो देल चाह तँ चाहे होइ छै।
चाहक प्रशंसो आ मनक खुशीओ देखि पुछलियनि-
काका, बैंकसँ लोन केना भेटल?”
हमर बात जेना बुधना काकाकेँ नीक नइ लगलनि। बजला-
से सभ नइ पुछऽ! ई तँ धैनवाद कुमुदेकेँ दिऐ जे वेचारा तीस-चालीस हजार अपन संगसँ खर्चा कऽ तीन लाख रूपैआ गाइक खटालक नाआंेसँ लोन दिआ देलक। जइसँ बेटीक बिआह पार लागल।
ओना हमर पुछैक मतलब रहए जे बेटी-बिआहक दहेजक नामे तँ बैंकसँ लोन नइ भेटै छै, सुधंग लोक बुधना काका छथिए, तखन केना भेटलनि? मुदा अपन सभ बात झँपैत-तोपैत बुधना काका बजल छला। फेर मनमे भेल, हमरा बूते जे मदति हेतनि सएह ने करबनि। जमीनक बौण्‍ड बनले हेतनि, तैपर बेटा सभ सेहो सम्‍पतिकेँ न्‍यायालयक मुँह देखा देलकनि। दू-दिससँ कानूनी पकड़मे काका आबि रहल छथि। लौनो चुकताएब हुनके छन्‍हि, तैसंग अपन ओहन नगदी आमदनी नइ छन्‍हि जइसँ नगदीमे चुकौता। बेटा सभ सहजे अतिक्रमण कऽ देने छन्‍हि। अतिक्रमण ई जे जाधरि पिता जीबै छथिन ताधरि वंशगत रूपे हुनकर सम्‍पति छियनि। दियादी-बँटवारा आकि भैयारी-बँटवारा तँ आगूक सीढ़ीक भेल। मुदा एकरो तँ नहियेँ नकारल जा सकैए जे जाबे लोक अपने नइ जीबऽ चाहत आ जीबैक लूरि नइ बना लेत, ताबे दोसराक भरोसे केते दिन जीब सकैए। पुछलियनि-
काका, अपन मन की कहैए जे केना पार-घाट लगत?”
हमर बात जेना कक्काक छातीक ओइ निरजन निरजल स्‍थानपर पहुँच बेधि देलकनि जैठामसँ मनमे कछमछी उठलनि। चाैवगलीसँ घेराएल बुधना कक्काक मन, ओइ अपराधी जकाँ बूझि पड़नि जेकरा दर्जनो सिपाही दर्जनो हथियारसँ घेरि पकड़ने रहैए। डोलैत मन टुटैत िवचारक संग बुधना काका बजला-
बौआ, आरो जे भेल से भेल, मुदा जहिना माता-पिताक रीनसँ उरीन भेलौं तहिना धियो-पुताक रीनसँ उरीन भाइए गेलौं। तँए बहुत कचोट मनमे नहियेँ अछि, मुदा...।
कक्काक मनक खुशीसँ अपनो मनमे खुशी जगल, पुछलियनि-
मुदा की?”
बजला-
मुदा यएह जे जेतबो औरदा बँचल अछि तेतबो दिन निचेनसँ केना जीब, तेकर उपाय कहह।
एक संग केतेको उलझन छन्‍हि! तैबीच चैनसँ जीबऽ जाहै छथि, समस्‍या छोट नहियेँ अछि। मुदा छोट हुअए कि नमहर, बिनु समाधाने चैनसँ रहबो तँ कठिन छन्‍हिए। तँए नीक हएत जे एक-एक समस्‍याकेँ सोझरा दियनि। जखने समस्‍या सोझरा जेतनि तखने जिनगी सोझरा जेतनि, आ जखने जिनगी सोझरा जेतनि तखने निचेनी आबि जेतनि। कहलियनि-
काका, बैंकक लोनक तगेदाक प्रक्रिया सेशन कोर्ट जकाँ लगले-लगले नइ होइ छै, एते चूक तँ भेबे कएल जे ओ वेपारी लोन छिऐ, जेकर लाभ वेपारे केनिहारकेँ होइ छै, से नइ भेल। मुदा बेटीओक बिआह तँ मान-सम्‍मान, इज्‍जत-प्रतिष्‍ठा बँचा पार लगाएब साधारण नहियेँ अछि। तखनि तँ भेल भीख मांगि भीख बाँटब, चाहे देब।
हमर बातसँ जेना बुधना कक्काक मन फुनगुनेलनि, बजला-
गाममे देखै छिऐ बैंकक सिपाही अबै छै अा लोककेँ घरसँ पकड़ि लऽ जाइ छै, तेकर डर होइए!”
कहलियनि-
जहिना बेटा सब तीन-तसिया चालि मारि अहाँकेँ ओझरा देलनि हेन तहिना ओकरो सबहक ऊपरमे भार दिअ पड़त कक्का।
बिच्‍चेमे बजला-
से जँ होइ तँ घीवोसँ चिक्कन।
बुधना कक्काक चपचपाइत मन देखि पुछलियनि-
काका, आबो कहू जे अपन मन की अछि।
जेना बुधना कक्काक मनमे विचारले रहनि कि की, तहिना धाँइ दऽ बजला-
बौआ, साँपो मरि जाए आ लाठीओ ने टुटए, तेहेन जँ भऽ जाए तँ सभसँ नीक। किछु छी तँ परिवारे छी किने, केना अपना अाँखिए ओइ गाछ जकाँ देखब जे या तँ बँझिया गेल अछि या गराड़-पील्‍लूसँ जकड़ि गेल अछि या जेकर सुखाएल, ठुठियाएल डारि सभ भऽ गेल छै।
बजैत-बजैत जेना बुधना कक्काक मन उमड़ि गेलनि। मुँहक बकार बन्न मुदा धारक पलाड़ी जकाँ परिवारक धार हृदैमे बहऽ लगलनि।
कहलियनि-
काका, सभ किछ ठीक भऽ जेतै! खाली मनकेँ चैन कऽ चेन जकाँ रस्‍ता बना अगिला डेग उठबए पड़त, तहीसँ सबटा बेचैनी मनसँ पड़ा जाएत।
विहुँसैत बुधना काका बजला-
बौआ, जहिना अबैकाल रस्‍ता चोन्‍हिआइ छल से आब परीच बूझि पड़ैए। अखनि जाइ छी, फेर निचेनमे आगूक गप करब।
कहलियनि-
बड़बढ़ियाँ।¦¦
मार्च २०१, शब्‍द- ३२४४


[1] दुनू बेटाकेँ