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Thursday, January 1, 2015

मनुखदेवा :: कथाकार- श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल

मनुखदेवा






जहिना रामभूमि अयोध्‍यामे रामनौमी दिन रंग-रंगक भेषधारी तहिना बिआह-पंचमीआंे आ रामनौमीआंेमे जनकपुर पहुँच एकरंगासँ सतरंगा धरि अपन पूजन करै छथि, तहिना गामो-घरमे ने गहवर अछिए। ने गुहरियाक कमी छै आ ने देवासँ मनुखदेवाक गहवरक। गामो तँ गामे छी थानाक जड़ि, जिलाक जड़ि, राजक जड़ि, देशक जड़ि...। ओना पहिलुको देवा-देवी घर नै रहने मने-मन छला आब इन्‍दिरा आवासमे घर भेटने घराड़ीओ भेटि गेलनि, तँए गहवरसँ गुहारि-स्‍थल धरि अनेको दसगरदा स्‍थल बनियेँ गेल अछि, जइसँ रंग-बिरंगक पावनियोँ-तिहार होइते अछि। गामे छी, गुहरियाक कमी रहबे करत मुदा जँ गुहारिक गहवर नै रहत तँ गुहारि केतए हएत? तहूमे तेते लोक कामाख्‍या-सीखि भऽ गेल अछि, जेकरा बिनु गहवरे बास केतए हएत। अनुकूल मौसम बनने जहिना अकासमे टिकुलीसँ लऽ कऽ चिल-चिल्होरि होइत सात जोजन देखैबला गीधोक गीत कहियौ आकि चिल्‍होरिक टाँहि कहियौ, अछिए। भलहिं भेद ई होइ जे कोनो खेत-चासै जकाँ पाहि लगा-लगा उड़ैए तँ कोनो केमहरसँ उड़त आ केमहर जाएत, तेकर कोनो ठेकान नै। मुदा साँझ-भोर बगुला पतियानी लगा पूबसँ पछिम आ पछिमसँ पूब जाइते अछि, जेबे करत। तहिना अनुकूल सामाजिक परिवेश बनने तीनटा गहवर आने गाम जकाँ हमरो गाममे अछिए। ओना हमरो गाम सन दोसर गाम सेहो अछि, आ नम्‍हरो-छोट तँ अछिए। नमहर-छोट ऐ मानेमे जे आन गाममे मनुखदेवोक गहवर केते रंगक अछि आ विसहरो वा आनो तहिना अछि। जइसँ केतौ गुण बेसी अछि तँ केतौ मात्रा बेसी अछि। मुदा अछि सगतरि, कनी कम कि कनी बेसी...।
ओना गाममे अछि तीनटा गहवर मुदा जमुना धाइमकेँ गहवर नै छन्‍हि, जैठामसँ गुहारिक डाली अबै जमुना धाइम तहीठाम जा गुहारि करै छथि। कहैले सौंसे गामक लोक कहलकनि जे सालतनी गहवर बनने बेसी लोकक गुहारि हेतइ, जैपर ओ कान-बात नै देलखिन। मनमे एकटा नान्‍हिटा कीड़ी घाेंसिया गेल रहनि..., कीड़ी ई घांेसियाएल रहनि जे जखनि ओ समरथाइ वयसमे अबैत रहथि, बिआह तँ बच्‍चेमे भऽ गेल रहनि मुदा दुरागमन हाले-सालेमे भेलनि, ...पत्नी बिमारीक चपेटमे पड़ि मरि गेलखिन। होइतो अहिना छै जे कियो, भूतक चपेटमे तँ कियो चुरीनक चपेटमे, कियो डाइनिक चपेटमे तँ कियो जोगिनक चपेटमे तँ कियो बिमारीक चपेटमे पड़ि मरिते अछि। पत्नीक प्रीत विपरीत बना देलकनि। विपरीत ई भेलनि जे मन कहलकनि- स्‍त्रीजाति बड़ टोनाह होइए, कनीआंे किछु भेल आकि टुटिए-फुइट जाइए!’ मुदा पुरुखो तँ पुरुख छी। अपन सीमा-सरहद छै, अपन इज्‍जत-आवरू छै। काल्हि दिन जँ दोसर बिआह करब आ ओहो ओहिना हुअए तखनि तँ अनेरे लोक कहए लगत जे जमुना स्‍त्रीखौक अछि! केना लोक लग मुँह उठाएब, तइसँ नीक जे ने दोसर बिआह करब जे दोख लागत तइसँ नीक असगरे रहब। जखनि असगरो रहने परिवार होइते छै तखनि अनेरे किए नून-तेलक भाँजमे पड़ि मगजमारी करब। कमा कऽ आनब, बना कऽ खाएब, चैनसँ रहब, भोरे जाएब। मुदा कलंक सँ तँ बँचल रहब...।
ओना गहवरो आ गहवरियोक चला-चलती तँ सभ मासमे रहिते छै मुदा आसीनक दुर्गापूजाकेँ किसानक अगहन जकाँ बुझैत। जहिना रंग-बिरंगक गहवर तहिना रंग-बिरंगक भगतो। कियो भगत कहबैत, तँ कियो भगता, कियो धाइम तँ कियो ओझा-गुनी। ओना आसीन मासक चला-चलतीक कारण दोसरो अछिए। ओ ई अछि जे चिड़चिड़ीक घौंदा जकाँ जहिना पावनि सोहरल अछि तहिना पितरसँ पितराइन आ देवसँ देवा-देवी धरिक आगमन सेहो होइते अछि। ओना आन मासमे वेरागने-वेरागने[1] भाउ करैत मुदा आसीनक दसमीमे कलशथापनसँ जे शुरू करैत से एकेबेर नौमी दिन विसर्जन करैत। मुदा तइ सभसँ भिन्न जमुनाक किरिया-कलाप छन्‍हि। ई आनसँ भिन्न छथि। भिन्न ई छथि जे धाइम छथि। मास-मसादि ऐ दुआरे नै करै छथि, जे अमवसिया-पर्णिमाक ठौर-ठेकान रहितो कतवाहि अछि आ संक्रान्‍ति मसांत-मसादि बीचमे अछि। तँए जखने जइ कहालीक डाली लगल तखने स्‍वीकारैत, गुहारि कऽ दइ छथिन। दोसर ईहो छन्‍हि जे आन भगता जकाँ ने वेरागनक बाट तकै छथि, आ ने जगरनथिया बेंत, ने नहा-धो पवित्र भऽ गंगाजलसँ देह सिक्‍त करै छथि आ ने दुबि, तुलसी, अच्‍छतक आशा रखै छथि...।
ओना रंग-रंगक कहालीओ तँ अछिए। कियो कोखिया गुहारिक कहाली तँ कियो सुखैनी-टटैनीक, कियो धन-वीतक तँ कियो सर-समांगक। मुदा तैसंग ईहो तँ अछिए जे कहियो-काल हवा-विहारि उठने चला-चलतीमे कमी-बेसी सेहो होइते छन्‍हि। मुदा तइ सभकेँ जमुना धाइम कतवाहि मानि अपन विचारक अनुकूल चलै छथि। मनो सदिकाल गवाही दइते रहै छन्‍हि जे जेकरा देहमे रोग रहत तेकरे ने दवाइ खाए पड़तै। डाक्‍टर अपन अनुभवक हिसाबे रस्‍ता देखा देत, मुदा दवाइओ आ पथो-परहेज तँ अोकरे ने करए पड़तै। से जँ नै करत तँ नै करह। जानत अपने बूझत अपने...।
सतमीक सुर्ज पूब दिस उगि गेल। सुर्जेक रोशनीक रोशनाइक रंगमे गाम डूमि गेल। बच्‍चासँ सियानो आ घरसँ गामो एके रंगमे रंगि गेल। घरे-घरक नेना-भुटका फुलडालीमे फूल लोढ़ि, गोबर-माटिसँ घर-अँगनाक संग देवो-स्‍थान[2] नीपै-पोतैमे बेहाल। मन्‍दिरक पुजेगरी फूल-पात जोड़ियबैमे बेहाल, कनीकालक पछाति बेलतोरीक प्रकरण शुरू हएत, पहिने डाली साजि, बेलक गाछ पूजि बेल तोड़ता, जइसँ भगवतीकेँ डिम्‍हा  मूर्तिकारक हाथे पड़तनि। जहिना भगवती स्‍थानक जयन्‍ती पीड़ितसँ हरित दिस बढ़ैत तहिना गामक घरे-घरे सेहो बढ़िते अछि। घरे-घरे, परिवारे-परिवार फूल-पातक पूजनक संग गुग्‍गुल-सरड़-धुमन-अगरवत्तीक सुगंधसँ गामे महमहए लगल। 
मुदा गामक गहवर सबहक रंग-रूपमे फीकापन आबि गेल। तेकर कारण भेल जे गनि-गूथि तीनिएटा गहवर गाममे, तोहूमे एकटा भदवरिया बाढ़िमे खसि पड़ल जे दोसर बनबे ने कएल, दोसरक भगते बेमार भऽ लहेरियासराय-अस्‍पताल धेने अछि अा तेसर कोखिया गुहारिक भाँजमे पुलिसक डरे गामे छोड़ि पड़ा गेल अछि। मुदा जमुना धाइमिक कारोबार पुरवते छन्‍हि। ओना जमुना धाइमिक चालियो-ढालि आ किरियो-कलाप आनसँ भिन्न छन्‍हिहेँ।
अस्‍पताल जकाँ सभ रंगक कहाली जमुना धाइम ऐठाम अबितो ने छन्‍हि। गनल-गूथल कहालीक आगमन होइ छन्‍हि। मुदा से नै भेल, ऐबेर सतमी दिन तेते कहालीक आगमन भऽ गेलनि जे मजबूड़न अपने ऐठाम बेवस्‍था करए पड़लनि। देवी-देवताक आगमन तँ देहपर नै होइ छन्‍हि मुदा मनुखदेवाक आगमन तँ होइते छन्‍हि। किरिण लहसि गेल, किछुए पछाति गुहारिक बेर हएत। जहिना जमुना धाइम अपने गुहारि करैक जोगारमे लगल तहिना कहालीओ सभ अपन कुहारि अगुआइ दुआरे पहुँच गेल।
दरबज्‍जाक आगूमे बैसि जमुना काका पतियानी लगा कहाली सभकेँ देखलनि। तीन खाड़ीक कहाली बूझि पड़लनि। किछु दैहिक, किछु दैविक, किछु भौतिक। ओना दैहिक आ दैविक कहाली पतराएल रहनि, मुदा भौतिक बेसी रहनि।
पहिल कहाली कहलकनि-
धाइम काका, घरमे उड़ी-बीड़ी लागल अछि। दिन-राति खटै छी, मुदा...।
यमुना धाइम-
अपन काजमे खटै छह कि अनका हाथे काज बेचने छह?”
कहाली अवाक भऽ गेल। धाइमिक बात बुझबे ने केलक जे अनका हाथे काज केना बेचने छी। मनमे होइ जे भरि दिन काज करिते छी, दिनक-दिन बोइन होइते अछि, तखनि बेचने केना छी।
गुनधुनमे पड़ल देखि यमुना धाइम पुछलखिन-
चुप किए छह, छुटि गेलह की?”
कहाली बाजल-
कनी कए मन हल्‍लुक लगैए।
धाइम बाजल-
अहिना हल्‍लुक होइत-होइत हल्‍लुक भऽ जेबह। हँसी-खुशीसँ जाह। ¦१०१६¦  
२२ दिसम्‍बर २०१४


[1] सोम, बुध, शुक्र
[2] सार्वजनिक स्‍थन

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