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Sunday, November 2, 2014

Courtesy- Gamak Saksl-Surat by Jagdish prasad Mandal Dated the 24th October 2014

सुखाएल सूरत








कातिक मासक भरदुतिया दिन। नअ-दस बजेक बीचक समए। प्रोफेसर कालीचरण अपना बहिन ऐठाम नै पहुँच प्रोफेसर शिवचरणे बाबू ऐठाम पहुुँचला। पहुँचिते दरबज्‍जापर बैसल प्रोफेसर शिवचरण, पत्नी संग भरदुतियेक गप-सप्‍प करैत रहथि। आगूमे आबि प्रोफेसर कालीचरण बजला-
नमस्‍कार!”
नमस्‍कार सुनि शिवचरण बाबू तारतम्‍य करए लगला जे नमस्‍कारक उत्तर केहेन नमस्‍कारसँ दियनि। नमस्‍कारोक तँ भिन्न-भिन्न रूप छै। अपनासँ पैघक नमस्‍कारी, अपन बराबरीक आ अपनासँ छोटक। तैसंग ईहो तँ अछिए जे चिन्‍हरबो नमस्‍कार होइए आ अनचिन्‍हरबो। शकल-सूरत ने मनुखेक छियनि मुदा चीन्‍हिमे आबि नै रहला अछि। मुदा दरबज्‍जापर आएल अभ्‍यागतकेँ जँ कहियनि जे नै चिन्‍हलौं, तखनि ओहन घीक काजे की जे गोबरमे हराएल जाए। मुदा कालीकरण बाबू बूझि गेलखिन जे भरिसक चीन्‍हिमे नै एलियनि तँए नमस्‍कारक उतारा नै देलनि। दोसर कोनो बात मनमे नै उपकलनि। उपकबो केना करितनि, जे शिवचरण बाबू छोट भाए जकाँ जिनगीक तीस बरख संगे रहला हुनकर केहेन बेवहार रहलनि, की ओकरा झूठला देब? एहेन नै भऽ सकैए। उमेर पाबि नजरिमे चढ़ा-उतरी आबि गेल होन्‍हि से सम्‍भव अछि। तँए बिना मान-रोख रखने कालीचरण बाबू दोहरबैत बजला-
हम कालीचरण...।
कालीचरण सुनिते शिवचरण बाबू पत्नीकेँ कहलखिन-
घरैया पाहुन छथि, पहिने पएर धुआउ तखनि कुशल-छेम करब!”
चौकी तरेमे लोटामे पानि राखल, उठि कऽ कुमुदिनी लाेटा उठा आगू बढ़ौलकनि। कुमुदिनीक हाथसँ लोटा पकड़ैत कालीचरण बजला-
आइ भरदुतिया छी। पुरुख-नारीक ओहन पावनि छी जइमे भाए[1] घर औथिन आ अपने[2] घर छोड़ि बहिन ऐठाम जेता। तैबीच पएर धोइक पानियेँक कोन प्रयोजन छै। भाइयो-बहिनक बीच असीम सम्‍बन्‍ध-सूत्र सेहो अछिए। जहिना सहोदर भाए तहिना सहोदर बहिन, जहिना पितियौत भाए तहिना पितियौत बहिन, जहिना ममियौत, पिसियौत, मसियौत भाए तहिना ममियौत, पिसियौत, मसियौत बहिनक संग सामाजिक भाए-बहिन होइत अछि।
शिवचरण बाबू मने-मन विचार करए लगला जे तेहेन तेकठ जगहमे कालीचरण प्रश्न पटकलनि जे आगन्‍तु-अभ्‍यागतक यज्ञे ढंश भऽ जाएत। भरदुतिया सन पावनि, तहूमे कालीचरण अपना बहिन ऐठाम पहुँचबो ने केला, पहिने भैयारीए निमाहैत ऐठाम एला! बिना किछु सोचने-विचारने शिवचरण बाबू कालीचरणकेँ कहलखिन-
जे मन फुड़त से करब मुदा कुशल-छेम पछुआएल अछि।
पुन: पत्नी दिस ताकि बजला-
पहिने चाह-पानक ओरियान करबे ने केलौं, डाली सजेबे ने केलौं, भाउ खेलाए लगलौं।
मुदा दुनू गोरे कुमुदिनीओ आ कालीचरणो चेतलनि। पएर तँ कालीचरण नै धोलनि मुदा मुँहक पान फेकि दू बेर कुर्ड़ा फेकि लोटो भरि पानि पीब लेलनि। तैबीच आँगनमे पोती चाह बना नेने छलि। बूझि गेल छलि जे दरबज्‍जा भारी भऽ गेल तँए अपन काज अगुआ ली। थारीमे चाहक गिलास नेने कुमुदिनीक संग पोती पहुँचलि। दुनू गोरे चाहक घोँट घोँटिते घुटकैक ओरियान करए लगला। पहिल घुट शिवचरण बाबू घुटला- 
उमेर पेब नजरिओ किछु तर-ऊपर भऽ गेल अछि, मुदा ठूठ गाछ जकाँ चेहरा बूझि पड़ैए?”
शिवचरण बाबूक बात सुनि कालीचरण बाबूक मनमे भेलनि, जाबे कौलेजमे दुनू गोरे संगे नोकरी करै छेलौं, ताबे भैयारी जकाँ हब-गब करै छेलौं। मुदा अखनि तँ दू गामक दूरीक बीच छी, तहूमे अपन गाम नै कुटुमक गाममे। केना अपन समाजक हीनताइ बाजि समाजकेँ हीन बनाएब। चौताला हँसी हँसि कालीचरण बाबू बजला-
आब जे कहबै जे जुआन छौड़ाक चेहरा भऽ जाए से थोड़े हएत। मनुख तँ चालिसे बर्खक पछाति ने घपचालीस हुअ लगैए। तैठाम तिरसठि बर्खमे कौलेजसँ रिटाइरो केना केते दिन भऽ गेल।  
बजैक सूढ़िमे कालीचरण बाजि गेला मुदा पछाति अपने मन हाँटए-दबाड़ए लगलनि जे जे आदमी कौलेजमे जीविका दिऔलनि, हुनके लग अपनाकेँ चोरा रहल छी, छिपा रहल छी। शिवचरण बाबू कौलेजक फाउण्‍डर शिक्षक, तँए विभागाध्‍यक्ष सेहो रहथि। चारि सालक पछाति जखनि कौलेज आगू मुहेँ ससरल तखनि दोहरी शिक्षकक खगता भेल। बहालीक वएह प्रक्रिया रहै जे एक सदस्‍य युनिवर्सिटिक, एक सदस्‍य स्‍थापित आ एक सदस्‍य विभागीय शिक्षक। कौलेजक पढ़ाइ-लिखाइक नीक बेवस्‍था भेने कौलेज आगू मुहेँ ससरल। जे सफलता संस्‍थापित सदस्‍य देखि अपनो अधिकार शिक्षकेकेँ ई सोचि देलखिन जे जहिना किसानक परीछा उपज छी तहिना ने शिक्षकोक परीछा छात्र छी। जे सफल देखलनि। ओही बहालीमे शिवचरणबाबू कालीचरणकेँ संग देने रहथिन। पछिला ओ चमक दुनूक आँखिमे चमकलनि। चमकिते जेना कालीचरण बाबूक नजरि नीचाँ झूकलनि। मुदा शिवचरण बाबूक नजरि ओहिना रहलनि, ने ऊपर गेलनि आ ने नीचाँ गेलनि। बजला-
जाबे दुनू भाँइ कौलेजमे एकठाम छेलौं ताबे जहिना मन्‍दिरक आगू सदति रामधुन होइत रहैए तहिना दुनू गोरे जनम दिन भजै छेलौं। साले-साल मासे मास। मासे-मास ई जे केते मास नोकरीमे कमल आ केते घटबी बढ़ल। मुदा आब तँ उमेरो भेल आ आठ-दस बरख रिटाइरो केना भऽ गेल, बिसरि गेलौं जे दुनू गोरेमे उमेरक केते कमी-बेसी अछि।
शिवचरण बाबूक प्रश्नक उत्तर दइमे कालीचरण थकथका गेला। थकथका ई गेला जे अपनो चेहरा जखनि अपना ऐनामे देखै छी तखनि ठीके पनरह-बीस बरख आगूक झखड़ल चेहरा बूझि पड़ैए! तैठाम जँ शिवचरण बाबू कहलनि तँ कोनो अनुचितो तँ नहियेँ कहलनि। जखनि भैयारी जकाँ किछु दिन पूर्ब तक एकठाम खेनाइ-पीनाइ सभ किछु संगे छल तैठाम अपन बात नुकबैक कोन प्रयोजन अछि। मुदा जीता-जी हारिओ मानब नीक हएत? केना बाजी जे, जहिना कोनो गाछ डारि कटिते ठूठ भऽ जाइए तहिना भऽ गेल छी! ठूठो गाछक हिसाब फलन्‍ती-फुलन्‍तीमे हएत? फलन्‍ती-फुलन्‍ती मनमे अबिते गनगुआरि जकाँ कालीचरण गेरुली मारैक ओरियान करए लगला। गेरुली ई जे जहिना माटि परहक साँप होउ आकि गाछ परहक गनगुआरि, गेरुली जोड़िते नांगरि-मुँहक दूरी कम भऽ जाइ छै, ओना जखनि चलंत बेर रहै छै आकि चलंतक सूर-सार रहै छै, तखनि मुँह आ नांगरि दुनूक दू ध्रूव दू दिशामे रहै छै, मुदा साँझ-भोर होउ आकि निसभेर राति, गायित्री मंत्र जकाँ तँ बन्‍धन करिते अछि! मनमे अबिते जेना कालीचरणक मन भन-भनेलनि। भनभनेलनि ई जे गाछो-बिरिछ मरै उमेरकेँ के कहए जे ठूठ सीलो जँ जीवित रहै छै तँ तहूमे मोजर निकलि फड़ि जाइ छै! तखनि ओकरा ठूठ केना कहबै? हँ! तखनि बेसीसँ बेसी यएह ने कहल जाएत जे डारि-पात कियो काटि देलकै, या तँ रोग-पीड़ासँ डारि सुखि गेलै? मन ठमकलनि। ठमकलनि ई जे हम तँ सेहो ने छी। दुनू परानी तेहेन अथबल भऽ गेल छी जे जेतबोसँ अपनो ठाढ़ रहब तेतबोमे, करै दुआरे कटौती केने छी, तैपर आगू बढ़ि परिवार आकि समाजमे डेग उठा किछु करब से पार लगत? हीय-हीन हृदैमे हिहियाइत दिआरीक इजोत जकाँ जोति निकललनि। निकललनि ई जे मनुख कि गाछो-बिरिछसँ निठल्‍ला भऽ सकैए? प्रश्न मनमे अबिते विचार-बिन्‍दुक बीच तूफान उठलनि। एक मन कहनि जे पढ़लो-लिखल मनुख भऽ कऽ ऐ बातकेँ नै बूझि पेलौं जे मनुखक कर्तव्‍यक समए भगवान[3] सभकेँ एहेन शक्‍ति संचार करै छथिन जे धरतीक सभ सर्जक बनल रहए, मुदा से भेल कहाँ? कारणो तँ सोझहेमे अछि जे चारिटा बेटा-पुतोहु आ पाँचटा पोता-पोतीक ओहन परिवार रूपी फुलवारी रहैत जइमे बारहो मास फूल फुलाइत रहैत। तैठाम सात बेटा रामकेँ, एको ने कामकेँ भऽ गेल अछि! मनमे अबैत-अबैत विचार थकथका गेलनि। थकथकाइते जेना थाकल बटोही भूख-पियाससँ तृषित रहितो, मुहमांगसँ परहेज रखए चाहैए मुदा शरीरक ताप मनकेँ तपा विचारोकेँ मोड़ए लगै छै, तहिना कालीचरण बाबूकेँ भेलनि। मुदा लगले मन फुदकलनि, फुदकलनि ई जे बाल-बच्‍चाकेँ जनमसँ पढ़बै-लिखबैसँ बिआह-दान करै तक दुनू गोटे- शिवचरण बाबू आ कालीचरण बाबू-क विचार एके रंग छल। रहबो केना ने करैत, जखनि दुनू गोरेकेँ एके रंग दरमाहा भेटै छल, तखनि परिवारक विचार-विनिमय नै करितौं, से केहेन होइतए? मनक सह पाबि कालीचरण बाबू बजला-
भाय, समैयो तेहेन दुरकाल भऽ गेल अछि जे जेतबो जीब लेलौं तेकरो धन्‍य बुझै छी, ने अपने जीबैक मन होइए आ ने परिवारे-समाजे जीबए दिअ चाहैए!”
टुटल मनक कँप-कँपीक बीच कालीचरण बाबू पड़िते विचारक बेठेकान भऽ गेला। जे कालीचरण बाबू कौलेजक पढ़ौनीमे क्रमबद्धता रखै छला ओ अपनो बुझलनि, मुदा एक संग अनेको प्रश्न मनमे उठिते शिवचरण बाबू ओझरा गेला। कहू जे ई केहेन भेल, जे एक दिस समए दोखी, दोसर दिस अपन जिनगीक विरक्तता, तँए नै रहैक इच्‍छा, तेसर परिवारो आ समाजो दोखी जइसँ अपन दोख केतौ ने। दोख तँ अपन केतौ ने मुदा दोखीक दुख[4] केकरा भोगए पड़ै छै! जेकरा हाथे-पएर ने छै ओ हमर की करत, एतबे ने करत जे जिनगी देत जिनगी जीबैक शक्‍ति देत? हँसैत-खेलैत जहिना संग नेने आएल तहिना पार-घाट लगबैत गंगा सागर टपा देत, तेतबे ने करत। कालीचरणक बौड़ाएल मनक वौआएल विचार सुनि शिवचरण बाबू बूझि गेला जे कालीचरण धक्कासँ धकियाइत जिनगीक फेड़मे पड़ि गेल छथि तँए मन डोल-पत्ता कऽ रहलनि अछि। विचारकेँ सुतियबैत कहलखिन-
कालीबाबू, आब अपना सभ केते दिन ऐ धरतीक अन्न-पानि खा-पी गंदा करैत रहब, तइसँ नीक...?”
कहि शिवचरण बाबू कालीचरणक विचार जानए चाहलनि जे जिनगीक भारसँ केते दबल छथि। ओना शिवचरण बाबू अपने मुहेँ अपन बात कालीचरणक सुनए चाहै छला मुदा खसैत जिनगीक चालि गैंचियाह भाइए जाइ छै। मुदा तैयो अपन बात-विचार सोझ करैत कालीचरण कहलकनि-
भाय, समरथाइमे की मनोरथ छल आ केतए आबि लसैक गेलौं, से थाहे-पता ने चलि रहल अछि!”
कालीचरणक सुतियाएल मनक सूत पकड़ि शिवचरण बाबू बजला-
जेठका बचबाकेँ तँ आब नोकरी लगिचा गेल हएत किने?”
ओना शिवचरण बाबू बातकेँ झाँपि-तोपि बजला मुदा कालीचरणक धक्का खाएल मन, परोसैकाल थारीक धक्कासँ जहिना भाते आकि दालियेक बटलोही आेंघरा, छिड़िया जाइ छै तहिना भेलनि। निधोक बजला-
बाल-बच्‍चाकेँ पढ़ाएबे अनुचित भेल, जे बुढ़ाड़ीमे आहि अबैए।
जिनगीक धकियाएल मन कालीचरणक, जखनि कौलेजमे शिक्षक छला, तखनि हित-अपेछितक बीच भोज-भातक एहेन चसक लगि गेल छेलनि जे पाँच किलो माछ आकि दू सए रसगुल्‍लाकेँ एको बेर पेटमे सगबगाइओ ने दइ छेलखिन। हँसी-खुशीक जिनगी, बेटो-बेटीकेँ नीक शिक्षा देलखिन। आइ ओ सभ विदेशमे छन्‍हि। गाममे मात्र दू परानी रहि गेल छथि। एक सम्‍पन्न परिवारक ई गति...!
कालीचरणक भँसियाइत विचारकेँ शिवचरण बाबू जेते सुढ़िया कऽ पकड़ए चाहै छला तइमे झोली-आगिक लुत्ती जकाँ उड़ि जाइ छेलनि। असथिरसँ कालीचरणक मनकेँ शिवचरण बाबू पकड़ि बजला-
ऐ गाम तँ बहुत दिनक बादे एलौं हेँ?”
गामक नाओं सुनि कालीचरण बाबूक मन थीर भेलनि। थीर होइते बजला-
बहुत दिन पिसिऔतो बहिनसँ भेँट भेना भऽ गेल छेलए, दुनू भाए-बहिन बच्‍चामे संगे बहुत दिन रहलौं, आ अहूँ दे जिज्ञासा छल जे केना कि चलि रहल छथि।
कालीचरण बाबूक बात सुनि शिवचरण बाबू, हँ हूँ किछु ने बजला। नै बजैक कारण भेलनि जे जइ दशा-दिशासँ अपने धकिया कऽ खसि पड़ल छथि, तइ खसबक चर्च टारि विचारकेँ बहटारि रहल छथि। ओना दू गोटेक बीच बाता-बाती सेहो होइए। बाता-बाती ई जे जेना-जेना मनमे बात उठैत गेल तेना-तेना बजैत गेलौं, जेकर ने ओर-छोर अछि आ ने ठौर-ठेकान। लगले गाम-घरक चर्च लगले देश-दुनियाँक चर्च चलए लगैए। मुदा जखनि समाजक प्रबुद्ध दू गोटे एकठाम बैसि विचार कऽ रहल छी तखनि जँ जिनगीक सच्‍चाई रूपमे विचार नै करब तखनि विचारक महते की? नजरि पाछू दिस ससरलनि। ससरैत प्रोफेसरी जिनगीक शुरूक समए लग जा अँटकि गेलनि। अँटकिते मनमे उठलनि, शुरूमे जँ अपने नै चेतल रहितौं तँ आइ हिनके[5] जकाँ ने अपनो गति रहैत। जहिना जिनगीक पहिल पक्षक नीक काज, राजवेला सदृश जहिना सघन फूल तहिना सुगंधो, पछाति िजनगीमे महमही अनैए आ अधला काज अधला, तहिना ने दुनू गोटेक बीच भऽ गेल अछि। शिवचरण बाबू चेतल ई रहथि जे जखनि गामक किसान परिवारसँ उठि पढ़ल-लिखल समाजक बीच पहुँचला तखनि परिवारक संग समाज सेहो बदललनि। जहिना छठि पावनिमे डाली सरोवर, झील, सरिता-समुद्रक घाटपर चौमुखी-पँचमुखी दियारीक प्रकाशमे पसरल रहैए आ हाथ उठौनिहारि एका-एकी डाली उठा-उठा सुरूजक अर्घ दइ छथि, तहिना ने नीक-अधला दुनियाँक घाटपर परसल जिनगीओ अछि। जेकरा जइ रूपमे जे जेहेन अर्घ दान करैए ओ ओहेन फलो पबैए। दुनियाँ तँ दुनियाँ छी, जहिना सभ किछु नीके छै तहिना सभ किछु अधलो तँ छइहे। जँ से नै छै तँ केकरो नीक केकरो अधला किए लगै छै। तेतबे किए, एके वस्‍तु एककेँ नीक दोसरकेँ अधलो तँ लगिते अछि।
नोकरीक शुरूमे शिवचरण बाबू सेहो नब समाजमे रंगि नब जिनगीक रूप-रेखा बनबए लगला, जइसँ मासो दिन केतौ-ने-केतौ भोजे-भात आकि चाहे-पार्टीमे शामिल होइत रहला। समाजो नमहर, नमहर ई जे एक दिस संगी-साथी- कौलेजक शिक्षकगण-क ऐठाम कोनो ने कोनो पारिवारिक काज जेना मुड़न, बिआह इत्‍यादि-इत्‍यादि होइते अछि तहिना पावनि-तिहारक संग पारम्‍परिक काज-उदेम सेहो होइते अछि, जइमे खाइ-पीबैक संग-संग समैओक छति होइते अछि। हाथसँ समए ससरने जिनगीक क्रिया-कलापमे धक्का लगिते अछि। धक्काे केना ने लगत, मनुख बनैले चौदहो भुवन भ्रमण करैक अछि, जे काजेक दौरमे भ्रमित होइत अछि। जइ धक्काक अनुभव शिवचरण बाबूकेँ शुरूहेमे भऽ गेलनि आ कालीचरण बाबूकेँ नै भेलनि। कोदारिक छबे-छबे जहिना खेत बढ़ैए तहिना कोरे-कोरे पेट बढ़ैए। जे कालीचरण बाबूकेँ बेसम्‍हार भऽ गेलनि। ओना सम्‍बन्‍ध बनैकाल शिवचरणो बाबू नै बूझि पेला, बुझबो केना करितथि, नब समाजक नब बेवहार तँ बनबए पड़ै छै। दाेसर, आकर्षणो होइते छै। रंग-रंगक बोली-चालीक संग नब सम्‍बन्‍धो। तहूमे पढ़ल-लिखल समाजसँ जँ हटि कऽ रहब सेहो नीक नहियेँ भेल। अनेरे ने मुँह फुल्‍ला-फुल्‍लीक वातावरण बनैए। मुदा जखनि अपना दिस पाछू उनटि कऽ तकलनि तँ बूझि पड़लनि जे अपन जिनगी तँ अपने ठाढ़ केने ठाढ़ो हएत आ अपने गतिए चालिओ चलबे करत। तखनि जँ पानि जकाँ समैकेँ बहा देब, तखनि तँ जिनगीओ बहि जाएत। जखने जिनगीक पूर्ब पक्ष बहि जाएत तखने पछातिक माल गाड़ी डिब्‍बा जकाँ ढकर-ढकर करैत इंजिन पाछू दौगैत रहत! यएह सोचि अपन जिनगीकेँ शिवचरण बाबू बन्‍हलथि। ओना बन्‍हैमे बाधा भेबे केलनि। बाधा ई भेलनि जे जँ कियो आग्रह करै छथि तँ ओकरा छोड़बो नीक हएत? मुदा एहेन विषम परिस्‍थितिकेँ सम केना बनाएल जाए, ईहो तँ प्रश्न अछिए। युक्ति फुड़लनि। युक्ति ई फुड़लनि जे दिन भरि तँ घरसँ कौलेज धरिक काजमे ओझराएल रहै छी, तँए दिन खटि जाइए। मुदा रातिकेँ बँचा जँ अपन जिनगीक दिशा-दशा सुधारि चलब तँ जिनगीक दिशा जरूर सुधरत। यएह सोचि बहाना ठाढ़ केलनि। बहाना ई ठाढ़ केलनि जे जे कियो आग्रही आग्रह करता तँ कहबनि जे यौ भाय, डेरा डेरामे असगरे पत्नी रातिकेँ रहए नै चाहै छथि। ओ कहै छथि जे तेहेन भुताहि जगहपर डेरा रखने छी जे साँझ पड़िते भुतो-प्रेत आ चोरो-डकैत उपद्रव करैए। मुदा से सुतरलनि। सुतरलनि ई जे रसे-रसे भोज-भातक समाजसँ अपनाकेँ अलग कऽ लेलनि। जे अपनो किरिया-कलाप आ परिवारोक भरण-पोषणमे सहयोगी बनलनि। जे खर्च डाली-पातीमे होइ छेलनि से अपना खर्चक सहयोगी बनलनि तँए ने पाँचो किरिया-कलापसँ बिनु ऋृणक उऋीण भेला। तीन बेटा दू बेटीक पढ़ाइ-लिखाइक संग बिआह-दान नीक जकाँ मनोनुकूल पार लगलनि। ओना जीवन-संगिनी जकाँ पत्नीओं कर्तव्‍य निमाहलनि।
शिवचरण बाबू आ कालीचरण बेवसाइओसँ एक छला, आ आमदनी सेहो एक छेलनि। एके रंगक पुश्‍तैनी परिवारक सेहो छला, मुदा जहिना शिवचरण बाबूक पत्नी जिनगीमे संयुक्‍त रूपे संग देलकनि तहिना कालीचरण बाबूक पत्‍नी सेहो देलकनि। मुदा दुनूक पत्नीक चालि-ढालि नैहरेसँ बदलल। शिवचरण बाबूक सासुरक गाममे ने एकोटा ताड़-खजूरक गाछ आ ने तेतैर-अमराक। जँ अनेरूआ गोटे जनमियोँ जाइ तँ जेतए जनमइ तेतै ओकरा तोड़ि देल जाइ छेलै। मुदा कालीचरण बाबूक सासुरक गाम से नै छल। एक तँ गाममे ताड़-खजूरक बोन तैसंग तेतैरो-अमराक गाछक कमी नै। लोक ओकरा भोजनक विन्‍यास बूझि सेवा भक्‍ति करिते अछि। कालीचरण बाबूक पत्नी जेहने तेतैरिक प्रेमी तेहने अमराक। एके घरमे पाँचटा लोक रहने पाँच रंगक मनोवृतिओ होइते छै। कालीचरण बाबूक पत्नी सिनेही जेहने पढ़ै-लिखैक सिनेही तेहने विन्‍यास बना ओकर रस चुसैक सिनेही। तँए जहिना तेतैर-अमराक अध्‍ययन नीक जकाँ केने, तहिना विन्‍यास बनबैक विशेषज्ञता नैहरेसँ हाँशिल केने आएल रहनि। सासुर आबि पतिकेँ चारिम दिनक शास्‍त्रार्थमे भोज-विन्‍यास बनबैक कलामे परास्‍त कऽ चुकल छेली। जहिना तेतैरिक चटनी, नोन देल बनबैमे माहिर तहिना चीनी दऽ बनबैमे सेहो। जखनि की तैतरि-अमरा तरकारीकेँ बनबै-बिगाड़ैमे सेहो तेहने सहयोगी। कोनो वस्‍तुक सुआद बढ़ा दैत तँ कोनोकेँ घटा दैत। जहिना दहीक मटकूरमे होइत। अमौट घौरैक लूरि सेहो भरपूर रहबे करनि। तँए कि परास्‍त भेलो पछाति कालीचरण बाबूक जीवन-संगिनीमे कमी थोड़बे रहलनि। अर्जुनक तीर जकाँ एके वाणमे समुद्रमे पुल बनबैक शक्‍तिक आभास तँ कालीचरण बाबूकेँ भाइए गेल रहनि। जेकर जरूरतो बूझि पड़लनि आ अपन वर्चस्‍व बनबैक आभास सेहो भेलनि। वर्चस्‍वक ई आभास जे केतौ पत्नी लगा अपने बाजि पत्नीक गवाह बनि, मुहसँ कहबा दइ छेलखिन जे तेतैरिक खट-मट्ठी नीक नै बनल। भात-दालिक अजश तँ गाम समाजकेँ घिना दइ छै, मुदा चटनी-अचार तँ चटनीयेँ-अचार भेल। जे साहित्‍यकारक बीच सेहो होइए। वएह आग्रह जेहने मनही पेट कालीचरणकेँ बनौलकनि सएह सिनेहीकेँ सेहो बना पैंसइठ बर्खक अवस्‍थामे ठाढ़ कऽ देने छन्‍हि। आब जखनि समुद्रमे विवेकानन्‍द स्‍थान पहुँच तकै छथि तँ बूझि पाबि रहल छथि जे भरिसक डुमनाइ छोड़ि दोसर बाट नै अछि। जइसँ बुधि-विवेक सेहो विचलित भऽ गेल छन्‍हि! जे बात शिवचरण बाबू आँकि लेलनि। मुदा जिनगीक बाल-शखा जँ बौरा जाए तँ ओहेन शखाकेँ बौराइत छोड़बो तँ उचित नहियेँ। मुदा बौरेनिहारो तँ ओते बौरा गेल छथि, जे सम्‍हारमे आबि नै पौत। मुदा दरबज्‍जापर ओहन शखाकेँ कनाएबो उचित नहियेँ। मुदा हँसाएबो तँ बाल-बच्‍चाक खेल नहियेँ छी। घुनी लगा बैसल वस्‍त्रहीन बबाजी माघक जाड़केँ जहिना घूर लगा बैसि आगिकेँ चुट्टासँ आ जारनिकेँ हाथसँ घुमा हथियार बना रणभूमिमे डटि बजैए, तहिना शिवचरण बाबू बजला-
भाय, समए ने केकरो संग छोड़बैए आ ने संग दइए। अपन चालिए लोक समैक चालि संग चलिआइए।
कहि कुमुदिनीकेँ कहलखिन-
ओना कातिकक उतार मास छी, मुदा तेना भऽ कऽ जरकल्‍ला  नै आएल अछि, दिनक रौद तँ तीख अछिए। कागजी नेबो देल एक गिलास मीठ आ एक गिलास नमकीन, शर्बत पिआ दियनु। बहुत दिनक गप-सप्‍प दुनू भैयारीक छूटल अछि। कनी निचेनसँ गप करब।
शिवचरण बाबूक बात सुनिते, जेना माघमे नहाएब मनमे उठिते देह भुटकए लगैए तहिना कालीचरण बाबूक मन सेहो भुटकलनि! बजला-
भाय, जखनि अपनो सभ जिनगीकेँ नै पकड़ि सकलौं तखनि दुनियाँमे के पकड़त? सुबुध-प्रबुध तँ अपने सभ ने भेलिऐ।
कालीचरण बाबूक बात सुनि शिवचरण बाबूक मन मिसियो भरि मलिन नै भेलनि। एको मिसिया ऐपर नजरि नै देलनि जे अपनो सभ किए कहलनि। बजबोक एहेन आदति तँ लोककेँ होइते छै जे अपना संग अनको लपेटि लइए। मन गवाही दैते रहनि जे पोसपूतो तँ पूते ने होइ छै जे अपना अछि हिनका छूटि गेलनि। केते सुन्नर परिवार आ जिनगी अछि जे जहिना बच्‍चामे अधिक समए पठन-पाठनमे लगेलौं जे फड़ैत-फुलाइत पैंतीस साल शिक्षक रूपमे जुआनी गुजरल। अखनो कौलेजमे जिनगी जकाँ रेडियो सुनिते छी, अखवार पढ़िते छी। तैसंग जहिना तीन-चारि घंटा कौलेजमे पढ़बै छेलौं तहिना कौलेजेक पोता-पोतीकेँ पढ़ैबितो छी। जहिना सभ दिनसँ खाइत-पीबैत एलौं, तहिना खाइतो-पीबितो छीहे, तखनि...? मुदा मन ईहो कहलकनि जे जिनगीक डारिक चुकल बानर सदृश कालीचरण भऽ गेल छथि। जेकरा खसैकाल चारू चांगुरो समटा कऽ पेटमे सटि जाइ छै, जइसँ बिना कोनो डारिपर लसकने-फसकने धरतीपर धाँइ दे खसैए, तहिना भेल छन्‍हि। तही बीच कुमुदिनी लोटा-गिलास नेने पहुँचली। मुदा मन तँ कालीचरण बाबूक चढ़ले रहनि, बजला-
पहिने नोनगर नीक आकि मिठगर?”
शिवचरण बाबू बूझि गेला जे शर्बतक सिरसिरीसँ मन शान्‍त नै भेल छन्‍हि। हाथमे कालीचरणकेँ गिलास पकड़िते शिवचरण बाबू बजला-
भाय, शर्बत जे अहाँ पत्नीक हाथक होइ छन्‍हि, ओ लूरि हिनका[6] सभकेँ जिनगीओ भरिमे कहाँ भेलनि, ओहेन पत्नी तँ अहीं सन भागशाली सभकेँ हाथ लगै छन्‍हि।
शिवचरण बाबूक बात अन्‍तो ने भेल छेलनि आकि बिच्‍चेमे कालीचरण बाबू बजला-
भाय, आन जे भेल, मुदा पत्नी तँ पत्नीए छथि।
कालीचरणक मुहसँ पत्नीक बराइ सुनि शिवचरण बाबूकेँ पत्नीपर झटहा फेकैक गर भेटलनि। गर ई भेटलनि जे अपन पत्नीकेँ झटहा बना फेकब। बजला-
भाय, से कि कोनो नै बूझल अछि जे केना तीस-तीस, चालीस-चालीस कटोरीक पथार खाइ काल लगबै छथि। पत्नी छथि हमर जे थारीमे साँठि कऽ नेने औती, आगूमे रखि बजती जे कनी एकटा काज उसकौने अबै छी।
आन पत्नी जकाँ कुमुदिनीक जिनगी नै, जे बमकि उठितथि। असथिर मने विचारए लगली। ओना किछु दिन पूर्ब तक लगसँ कुमुदिनी सिनेहीकेँ देखने, मुदा जहिना निरोगो देहमे बिमारी नुकाएल रहै छै आ लोक नै बूझि पबैए, तहिना तँ ने सिनेहीकेँ सेहो भेलनि। मुदा लगले भेलनि जे जहिना बोन राखए सिंह आ सिंह राखए बोन, जे अनीति देखि अपन माइओ-बाप आ धियो-पुतोसँ लड़ि या तँ अपने भगैए चाहे मरैए, तहिना ने परिवारो-समाजमे जरूरत छै। मुदा ओ के करत? अपने बेथे-बेथाएल कुमुदिनी मलिन भेल बगलमे बैसल कखनो पति दिस देखथि तँ कखनो कालीचरण दिस। जहिना ऐना घुसकौने चेहराक रूपो घुसकि जाइए तहिना तीनूक तीनू चेहरा घुसक-फुसक करए लगल। कालीचरणक लटकल मुँह देखि शिवचरण बाबू बजला-
भाय, दुनियाँ दिस तकैसँ पहिने नीक हएत जे अपना दुनू गोरे उमेरक मिलानी कऽ ली। जँ से नै कए नेने रहब तँ भैंसुर-भावोक ठेकान नै रहत।
उतरल जिनगीक संग उतरल कालीचरणक मन, अकास-पतालक बीच बसल धरतीपर पएर रोपि बजला-
भाय, लिखल-पढ़ल सभ किछु हेरा गेल, तखनि ठेकना कऽ कहै छी। चालीस बरख पहिने एम.ए. केने रही।
चालीस बरख सुनिते अपन मिलानी करैत शिवचरण बाबू बजला-
हमरो मन पड़ल। पैंतीस बरख पहिने हमहूँ एम.ए. पास केने रही। हँ, भरिसक पाँच बर्खक जेठाइ-छोटाइ दुनू गोटेक भेल।
कालीचरण बजला-
पाँच बर्खक पछातिए ने हमरो नोकरी भेल। जइमे अपने जे संगी बनि उपकार केलौं, ओ जिनगीमे थोड़े बिसरब। मुदा भाय! बाल-बच्‍चाकेँ पढ़ाबैयो-लिखबैमे आ आ बिआहो-दान करैमे तँ दुनू गोरे एकेठाम विचार केने रही, तखनि...?”
कालीचरणक बात सुनि शिवचरण ठमकला। ठमकला ई जे मिसियो भरि असत् नै बजला अछि। मनमे ईहो भेलनि जे भरिसक विचार जगहपर आबि गेल छन्‍हि, तँए विचारक चोर पकड़ैक अनुकूल समए अछि। मुदा कृष्‍णोलीला तँ लीले भेल, तहूमे जखनि चित्तचोर बनि चोरि करै छथि।
आगूमे कालीचरण बाबूक सिहरैत चेहरा देखि शिवचरण बाबू बजला-
भाय, बाल-बच्‍चा सबहक नजरि केहेन अछि?”
माथ ठोकि कालीचरण बजला-
भाय, जखने प्रोफेसरक बेटा इंजीनियर भेल आकि इंजीनियरक बेटा प्रोफेसर, तखने छोर-तोर नेने महिंस पानिमे गेल!”
दलकैत कालीचरणक मन देखि शिवचरण बाबू पुछलखिन-
बेटा सभ अपना लग रखैयो नै चाहै छथि?”
बेटाक नाआें सुनि कालीचरणकेँ झड़कल चिड़ै जकाँ मन चुनचुनेलनि। अपन बेटा-पुतोहुक खिधांस केना करब? किछु छी तँ मिथिलाक माटि-पानिपर जीबै छी। मुदा लगले मन उनटलनि। उनटलनि ई जे अपने ने ऐठामक माटिपर पएर रोपने छी, मुदा ओ तँ ऐठाम नै अछि जे लाज-संकोच हएत। ओ तँ दूर देश, पर-देशमे अछि तखनि किए ने मुँह झाड़ि बाजब! बजला-
भाय, की कहब! अपन हारल के बजैए, मुदा अपन बेथा जे कहबो ने करब, सेहो नीक हएत। जेते ऐ धरतीपर केलिऐ आ भोगलिऐ से तँ सबहक सोझहेमे अछि। जँ सभटा खाइए-पीब गेलिऐ तँ एते ऊपर धरि परिवारकेँ पहुँचौलिऐ केना, मुदा...?”
मुदा लग अँटकिते शिवचरण बाबू बूझि गेला जे भरिसक बाटपर धारक मोइन जकाँ आगूमे पड़ि गेलनि। टोकारा दैत शिवचरण बाबू बजला-
भाय, कियो तेसर थोड़े अछि जे सुनत तँ अोंगरी बतौत। बाल-बच्‍चाकेँ पढ़ाइ-लिखाइसँ लऽ कऽ बिआह-दान करैत परिवार ठाढ़ केलौं, मुदा तइ परिवारमे एहेन गंजन हुअए जे पुतोहुक मुहेँ ओ बात बड़ खाधुर छथि सुनि मुँह दाबि जीबी। जँ अोहन परिवार लगसँ हटले रहए सएह ने नीक।
ठमकल मन कालीचरणक ठमकले रहलनि, बजला किछु ने। चुपचाप उठि कऽ चलैक उपक्रम केलनि। मुदा लगले मन रोकलकनि। रोकलकनि ई जे अखनि तक शिवचरण बाबूक परिवारक हाल-चाल तँ बुझबे ने केलौं! पुन: दोहरा कऽ कुरसीपर बैसैत कालीचरण बजला- 
ओ बच्‍चियाकेँ नै चिन्‍ह सकलौं?”
शिवचरण बाबू कहलखिन-
पोती छी। पोता-पोती दुनू एतै रहैए। चारि गोटेक परिवार अछि, निचेनसँ परिवारमे जहिना सभ दिन रहलौं तहिना छी।
शिवचरण बाबूक बात सुनि कालीचरणक मन सुकपाक करए लगलनि। मुदा मन ईहो कहनि जे एना दुनू गोरेक दू-दिसिया जिनगी बनि केना गेल! बजला-
भाय, जहियासँ बेटा-पुतोहु घर छोड़ि बहराएल तहियासँ खोजो-पुछाड़ि छोड़ि देलक। जाबे नोकरी करै छेलौं, ताबे काजक अनमेनामे लगल छेलौं, नीक दरमहो छल जइसँ ओते नै बूझि पड़ै छल, बान्‍हल जिनगी बन्‍हाएल गति छल, मुदा नोकरी छूटला पछाति सोलहन्नी निठल्‍लो बनि गेल छी आ रोगो-वियाधिक घर बनि गेल छी।
आगू बजैले कालीचरणकेँ रहबे करनि आकि बिच्‍चेमे कुमुदिनी टोकलकनि-
किए ने बेटाकेँ कहै छियनि जे जाबे जीबै छी ताबे मनुख जकाँ केना जीब?”
कुमुदिनीक बात सुनि कालीचरणक मन जेना चहकि गेलनि। जइसँ आगू बजेक साहसे ने होन्‍हि। कालीचरणक बेथाएल मन देखि शिवचरण बाबूक मनमे भेलनि, जँ आगूक जिनगीक काेनो बात उठाएब तँ आरो चिरक्का लगि-लगि टुटि-टुटि टुकड़ी-टुकड़ी भऽ छिड़िया जेता। तइसँ नीक जे अो पन्ने उनटा दियनि। बजला-
भाय, आब तँ सहजे पाकल आम भेलौं। जे दिन छी से दिन छी। तइले अनेरे सोग-पीड़ा करब नीक नै।
शिवचरणक बातमे कालीचरणकेँ गर भेटलनि, गर भेटिते बजला-
भाय, अखनि जाइ छी, घुमैबेर भेँट करैत जाएब।
विदा करैत शिवचरण बाबू बजला-
जरूर, जरूर भेँट केने जाएब।¦३६९५¦  
३० अक्‍टुबर २०१४



[1] पत्नीक
[2] पति
[3] प्रकृति
[4] सजाए
[5] कालीचरण
[6] अपना पत्नी दे (कुमुदिनी)

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