Pages

Saturday, November 22, 2014

ठकुआएल भुसवा

ठकुआएल भुसवा







छठि-परमेशरीक घाटपर सुरूजक आगमन भऽ गेल। घाटपर छिड़ियाएल बाल-बोधसँ लऽ कऽ सियान-चेतन तकक मनमे पावनिक पाबन परसाद पेबाक आशा जगल। जगबो केना ने करैत, एक तँ सरदीक सुरूजक अर्घ्‍य दोसर कुश-उपारसँ लऽ कऽ जल-अर्पण मतर-पितर भोजन दानक संग नवमी-दशमी, कोजगरा-दियारी, भरदुतियाक पतियानीक सजल छठि-परमेशरीक सतमीक सुरूजक दर्शन ने छी। एते दिन कुश अर्पणक प्रक्रिया छल मुदा आब कुशियारक प्रक्रिया ने चलत। पोखरिक चारू भीरक गाछ-बिरिछ, तलावक जलक जाठिक संग जलकर ऊपर चमचमाइत सुरूजक चमकी पसरि गेल। पसरि गेल घाटपर सजल छठिक डाली ऊपर। एकसँ एकैस सूप, डगरा, डगरी, कोनियाँ, सुपती सजल घाटपर ठकुआएल भुसवा मने-मन छगुन्‍तामे पड़ल अछि। कनकनाइत मन पटपटेलै-
कहू, एहेन हेबा चाही?”
अपने फुड़ने भुसवा बड़बड़ाइत, मुदा कियो डालमे सुनिनिहार नै। ओना रंग-रंगक वस्‍तुसँ सजल डाल। जहिना बरसा-जाड़क बीच संगमक चान-सुरूज शीतसँ शीताएल तहिना घाटपर पसरल सूप, डगरा आ कोनियाँ-सुपती सेहो। भिनसुरका अर्घ्‍यक सुरूज जकाँ उगैत आदी, हरदी, अरूआ, खमहरूआ, सुथनी माटिक तरक, माटिक ऊपर पसरल खीरा, सजमनि, नारिकेल, केरा इत्‍यादि, तहिना धरतीसँ अकास धरिक सजल आगन्‍तु   कुशियारक संग भुसवा-ठकुआ पँचमुखी दीपक आगू। मुदा छठिक सँझुका अर्घ्‍य जकाँ ठकुआक गहुमक संग तेलक सेरसोकेँ तँ जेबाक सेहो छइहे। तेतबे किए अँकुरैत अँकुरी तँ ऊपरेसँ अपन बलिदान करैले तन-फन सेहो करिते अछि। कुशियारो कौल्हमे पेराइले तैयारे अछि। जँ से नै रहत तँ मिसरी केना बनत। असगरे भुसवा बुदबुदाएल मुदा कियो ने कान देलक आ ने बेथा बुझलक। फेर ठोर पटपटबैत भुसवाक मुहसँ निकलल-
कहू! जे आगूक जनमल ठकुआ छी, तखनि केहेन कड़ुआएल बात छै जे जहिना सभ दिन गुड़कैत रहलेँ तहिना गुड़कैत रहमेँ। हमरा जकाँ तोरा आसन-बासन हेतौ।
बुदबुदाइक वेगमे भुसवा बुदबुदा तँ गेल मुदा लगले मन घुमलै। घुमिते उठलै, मनोक तँ यएह ने चालि छै, जखनि खुशी रहैए तखनि नचबो करैए, गेबो करैए। नाचियो-नाचि आ गाबियो-गाबि दुनियोँकेँ देखबैए आ दुनियोँकेँ देखैए। मुदा वएह मन जखनि कोनो बाएबे दुबराए लगैए तखनि अपनो दुबराइत रहैए आ दोसरोकेँ दुबरबिते छै। भरिसक तहिना ठकुआकेँ भऽ गेलै। आकि धन-बुबकी पकड़ि लेलकै। मुदा जहिना बिनु गाड़लो बाँसक खुट्टाकेँ जँ दुनू भाग[1] डोर पकड़ि खींचल जाइ छै तखनि असथिरसँ ठाढ़ भऽ जाइ छै। असथिर होइत अपन पुरखा दिस तकलक तँ बूझि पड़लै जे हुनकर सिरजनमे केतौ भेद-कुभेद नै भेल छन्‍हि। पृथ्वी जकाँ गोल-मोल बना गुड़काउ बनौने छथि किए केकरो ऊपर अपन पसरल भार देब, तँए कि ओकरा[2]सँ कम भारी छी। ने नै दौड़ कऽ चलल हएत, नहियोँ तँ नहियेँ चलल हएत। नै डेगे-डेग मुदा गुड़कुनियाँ कटैत नै चलल हएत से केकरो कहने थोड़े हेतै, एते तँ अपनो अपन परिचए अछिए। जखनि बिनु पएरे ठाढ़ होइते छी, गुड़कैत चलिते छी तखनि किए केकरो आँखि गुरेड़ब अाँखि दबि दाबि लेब। मनक उष्‍मा  जगलै। आगू तकलक तँ केतौ किछु ने नजरि पड़लै। जखनि कि फूल-पात, तीमन-तरकारीसँ लऽ कऽ फल-फलहरी धरिसँ सजल डाली अछि। होइतो अहिना छै जे हजारो-लाखोक भीड़मे जहिना प्रेमी अपन प्रेमिका छोड़ि किछु ने देखैए तहिना भुसवाकेँ ठकुआ छोड़ि किछु ने नजरिपर एलै। खसल आँखि जहिना उठि कऽ आगू देखए चाहैए तहिना भुसवाक नजरि सेहो उठल। उठिते हिया कऽ ठकुआ दिस तकलक। तकिते देखलक जे जहिना नजरि दाबि ठकुआ बाजल छल तहिना किछु आगूओ बाजए चाहैए। जखनि आगूओ बजैले मन लुसफुसाइते छै तखनि किए ने कनीकाल बिलमि देखिए लिऐ जे की बजैए। जेहेन मुँह तेहेन बोल, आकि जेहेन मुँह तेहेन थापर, दुनूक बीच तँ समगम अछिए। जिज्ञासु नजरि भुसवा ठकुआ दिस नजरेलक। अपना ताले बेहाल ठकुआ जे बाल-बोध हुअए आकि चेतन जखने डालीक उत्‍सर्ग हएत तखने पहिल हाथ एम्‍हरे ने बढ़त। ई प्रतिष्‍ठा केकरा छै, से कियो बाँटि लेत। तँए कियो मुँहक बात छीन लेत। केहेन गबदी मारि भुसवा बजै छल, जेना बूझि पड़लै जे कियो सुनबे ने केलक। जेकर असार-पसार एते छै तेकर कान हाथी जकाँ नै तँ बिज्जी जकाँ हेतै। जेना-जेना ठकुआक मनमे भुसवा गुड़कैत रहै तेना-तेना ठकुआक रीश बढ़ल जाइ। रीशसँ रीशिया ठकुआ बाजल-
केतबो बानर जकाँ नांगरि पटैक कऽ रहि गेलेँ कहाँ एको धूर जमीन-जत्‍था अपनो पएर रोपैले भेलौं, जहिना बाप-दादा गुड़कैत एलौ तहिना गुड़कैत रहमेँ।
ठकुआक बात सुनि भुसवा मने-मन कोशाएल, बाजल किछु ने। मनमे उठलै, क्रोधमे किछु बाजब आकि करब, दुनू अनुचित हएत। मुदा लगले फेर भेलै जे एकर माने ई नै ने जे ने किछु बाजी आ ने किछु करी। फेर भेलै जे अखनि तामसमे छी अखनि ने किछु बाजब आ ने करब। जखनि मन असथिर हएत तखनि ठकुआक विदाइक विचार करब। लगले मनमे उठलै, कहू जे केहेन हरामी अछि जे जेते गुरुत्‍व  हमरा अछि तेकर अदहो हेतै कि नै हेतै। मुदा हाथीक सिकड़ी डोलबिते अछि। आब कि काेनो ओ जुग-जमाना रहल जे पौआही भुसवा आ पौआही ठकुआ लोक बनौत। आब तँ ग्रामक हिसाबसँ लोक बनबैए। मुदा ई बुझबे ने करैए जे रोट रोटी कहि देने रोट रोटी भऽ जाइ छै, रोटक अपन सभ किछु छै ओहिना ने घड़ी पावनिक परसाद छी। तेतबे किए...। सबा सेर चिक्कसक ओहन भोज्‍य भक्ष बनौल जाइए जे पावनिक पावन छी। फेर मन बदललै। बदलिते उठलै, जहिना पृथ्‍वी गोल, तहिना सूर्य-चान गोल, तही देखि कऽ ने विधाता हमरो गढ़ि गुड़का धरती दिस ढकेलि देलनि। अनेरे ठकुआक बातकेँ बतंगर बना मनकेँ ओझरौने छी। मुदा जहिना ठकुआ हमरा आँखि देखबैए तहिना तँ अनको देखौतै, एका-एकी आकि एकेबेर देखा तँ सभकेँ सकैए। मुदा से देखेबो केना करत, जेते जगह ठकुआ पकड़ने अछि तइसँ बेसी माटिओ तरक छी तैयो अरूआ तँ पकड़नहि अछि। तहिना सजमैनो आकि नारिकेलो कम छेकने अछि। मुदा अपनो दादा[3] तँ धरतीसँ अकास धरि पकड़नहि अछि, तँए अपन बेथा अपने घर किए ने राखब जे अनेरे चौगामा बान्‍हब। चाउरक संगी विधाता गुड़केँ मिला पठौलखिन तहिना ने ठकुओकेँ गहुमक चिक्कसक संग गुड़ो आ चिकनैओ मिला देलखिन। अइमे ठकुआक अपन गलती नै विधाताक चाकक दोख भेल। तइले अनेरे किए मन मर्दन करब। मुदा चुपचाप सहियो लेब नीक हएत? सहबो तँ लोक ओइ पावनिमे करैए जइमे फल-फलहरी पबैए! तखनि? तखनि यएह नीक जे डालीक सभकेँ अनेरे किए बुझारतमे बरदेबै, अपन वंशक कुशियार भेला, किए ने ओहए ठकुओकेँ अा हमरो बुझा-सुझा कऽ मेल-मिलान करा देता। कोनो एक दिनक नै ने छी, जे झगड़ा करि कऽ चाहे तँ गामे छोड़ि देब आकि गामे छोड़ा देबै। तइसँ तँ पावनियेक नोकसान हएत। साले-साल संग मिलि रहैक अछि, जखनि केकरो कमाएल कियो ने खाइए तखनि किए केकरो कियो आँखि बरदास करत। किए ने अपना आँखिए अपन रस्‍ता देखैत डेग उठौत। नीक सएह हएत, कुशियारो दादा की कम बुझनुक छथि, हुनका कि नै बुझल छन्‍हि जे केना नेना-भुटकाक स्‍कूलमे, आ तिला संक्रान्‍तिमे चाउरक संग बँटेला। जखनि पिसाएलो ने छेलौं, तहियेसँ संगी छथि। आब तँ सहजे तेना मिलि गेल छथि जे विलगाएबो कठिन अछि। फेर ललका चीनी बनैत, गुड़क सुआद कम करैत उजरा चीनीबनि, रंग-रंगक मिठाइ बनैत मिसरी गोला बनि देवालय पहुँच गेला, आब तँ सहजे जुग बदलल, जमाना बदलल, जइसँ वेचारा मिसरीओ गोलासँ टूटि मोटका चीनी-दाना जकाँ सुपारी-टुक भऽ पान-फूल भऽ गेला। मुदा तँए कि छठि-परमेशरीक घाटपर ओधिक िसर सहित फुनगीक गोभ धरि धाट नै धड़ै छथि? धड़िते छथि। अखनो गंगा-घाटमे साइयो बोझ कुशियार तँ छठिक घाट छेकिते अछि। ई दीगर भेल जे गुड़ बनि जखनि ठकुआ संग रहए लगला तखनि फेँट-फाँट शुरू भऽ गेल। कियो गुड़ घाउ दुआरे गुड़ छोड़लनि तँ कियो डोमीन कहि-कहि छोड़ि उजरा चीनीसँ चिनराबए लगला। मुदा तँए कि मिसरीक उसरन भऽ गेल, भलहिं कतरा सुपारी जकाँ किए ने बनि गेल हथु।
छठि पावनिक प्रेमी मनमोहन कौलेजक छुट्टी पेब गाम आएल। ओना गाम ई अजमा कऽ आएल जे नीक जकाँ छठिक सँझुका-भोरूका अर्घ्‍य  दानक दर्शन करब। धड़फड़ीमे एक दिन पहिने आबि खरना दिनक रबाइस-फटाकाक अवाज सुनि मन बहमि गेलै। मुदा दिल्‍लीक लड्डू जकाँ ने छोड़ने बनत आ ने खेने बनत। जेते पोखरि-झाँखरि चिक्कन करै छी तइसँ बेसी हवामे भोक्कन सेहो करिते छी। छठिक अर्घ्‍य उठैसँ घण्‍टा   भरि पहिने मनमोहन घाटपर उपस्‍थिति दर्ज करेबा लेल तैयार भऽ दरबज्‍जापर बैसल। रबाइस-फटाकाक अवाजसँ मन दलमलित भऽ गेलै, आँखि बन्न कऽ साहोर-साहोर करए लगल। लोको तँ लोके छी एकटा बीत भरिक ठण्‍का डरे तँ गाम-गाम लोक साहोर-साहोर करैए आ जैठाम ठण्‍केक बाढ़ि आबि रहल छै तैठाम जँ ओछाइन धएल बुढ़-बुढ़ानुस पावनि बिगाड़िए देता तँ तइमे हुनकर कोन दोख। मुदा तैयो गारि-फज्‍झति तँ सुनबे करता जे ढंश कऽ देलक। ओही अवाजमे मनमोहन अकानए लगल जे अखनि तक कोनो घाटक ढोलक अवाज कहाँ कहै छै जे ठकर-ठकर ठकुआ द दे। ओ तँ अर्घ्‍य दानसँ पहर भरि पहिने अवाज दिअ लगै छल। ओह, भरिसक अखनि देरी अछि। मने-मन विचारिते रहए कि अंग्रेजी बाजाक अवाज एकटा घाट दिससँ उठल। ओना जेबिए-जेबी मोबाइलोक उठिते छल। ढोलियाक केतौ दरस नै पाबि मन आगू बढ़लै, बढ़िते उठलै छठि-सतमीक सुरूजक अर्घ्‍य। आइ डुमैत सुरूजक अर्घ्‍य  दान हएत आ काल्हि उगैत सुरूजक। मुदा की सतमीए सुरूजक अर्घ्‍य   छठिक साँझमे पड़ल आकि एक दिन पहिलुका? छठि-सतमीक बीचक बोनमे मनमोहनक मन उमड़ए-घुमड़ए लगल। उमड़ैत-घुमड़ैत एकटा गाछ तर पहुँचिते देखलक जे अदौसँ मिथिलाक चलनि रहल जे दरबज्‍जापर आएल पाहुनकेँ अबितो आ जाइतो मधुर मुस्‍कानसँ काजक महिमाक संग नमस्‍कार-पाती होइत अाबि रहल अछि। जनमो सोहर मरनो साेहर। मुदा पहिने एबा काल अबैक सोहर होइ छै पछाति जेबाक कालक। तैसंग ईहो तँ अछिए जे छठियेक सतमी होइ छै। भूते-वीर्तमान आ वर्तमाने भविस। विचारमे डुमल मनमोहनक भक्क तखनि खुजल जखनि घाटसँ घुमल डाली आँगन पहुँच गेल। सेहो कि ओहिना खुजलै? नै! जखनि अँगनाक धिया-पुता ठकुआ-केरा ले काँइ-किच्‍चरि करए लगल। भक्क टुटिते हरेलहा लोक जकाँ मनमोहन उठि कऽ लगले आँगन दिस जाए तँ लगले दरबज्‍जापर आबए, बाजए किछु ने। अपन हारल के बजैए जे मनमोहन बाजत। मुदा मनमे कचोट तँ उठिते रहै जे केतए एलौं तँ केतौ ने। मुइला पछाति जहिना लोक बुझैए। से जहिएसँ ज्ञान-परान भेल तहिएसँ मनमे छल जे छठि-परमेशरीक घाटक अर्घ्‍यक दर्शन करब। फेर मनमे भेलै जे दुनू साँझक अर्घ्‍यक अपन-अपन महत आ महिमा छै। कूर चढ़ल चौमुखी, पँचमुखी दीपक रोशनीक रोसनाइ जेहेन छठिक घाटक हएत तेहेन सतमी-घाटक थोड़े हएत। कियो भरि दिन हेराएल साँझमे पहुँच गृह विश्राम करैए तँ कियो भरि राति हेरा भोरमे पहुँच गृह विश्राम करैए। भेल तँ एके स्‍वर, एकटा भेल भरि राति आ एकटा भेल भरि दिन। तैसंग पहुँचबो एके भेल, मुदा भेल संधिस्‍थलपर। हारि-जीतक बीच संधियो तँ दोहरी अछिए, एकटा अछि भिनसुरका आ दोसर अछि सँझुका। ओना भलहिं किछु काज भिनसुरकामे बरजित अछि तँ किछु सँझुकोमे तँ अछिए। तँए एकनाम संधिभूमि रहितो दुनू एक्के रंग घटकेँ घटवार बना घाट थोड़े पार करत। एकटा असीम इजोत तँ दोसर असीम अन्‍हार। अन्‍हार-इजोतक बीच अबिते मनमोहनक मन हटैक गेल। ने आगू डेग उठै अाने पाछू। एक दिस अकास ठेकल पहाड़ तँ दोसर दिस पताल टुटल समुद्रमे वौअए लगल। मुदा मनुखो तँ मनुखे छी जेहने ओकरा-ले पहाड़ तेहने पहाड़ो आ पहाड़क किनछरिक बोनो। तहिना समतल भूमिओ आ डोहो-डावरक संग पोखरिओ-झील, सरोवर, नाला, नाली, मुइल-जीत धार-धुरक संग पताल टुटल समुद्रो! मनमोहनक मन ठमकि गेल। ठमकिते मन ठनकलै। ठनकलै ई जे औझुका नीक-बेजए केलहाक काजो तँ भुताइए जाएत, मुदा जाइके तँ अछि काल्हि दिस। फेर मन भोथियेलै। भोथियेलै ई जे हमहींटा एहेन भोथियेनिहार छी कि आरो लोक अछि? ओना केकरो अपन दिन-रातिक काज-भार थोपल छै मुदा भोथियेलहोक बोन तँ छोट-छीन नहियेँ अछि। भोथियाएबो कि एक्के रंगक अछि। एक रंगक रहैत तँ मौसमक अनुकूल ओ उपटियो सकै छल माने ई जे अपना ऐठाम मालदह आम साइवेरियामे थोड़े हएत, मुदा एकर माने ई नै ने जे साइवेरियाबलाकेँ आम सन फल नै भेटैत होइ। मनमोहनक मन फेर भटकल। भटकलेपर ने कियो हेराइतो आ भोथियाइतो अछि। फेर भेलै जे अनेरे दुनियाँ दिस तकै छी। अपन घर इजोते ने, आनक इजोत करब। ई बात जरूर जे बोनमे हमरा सन बहुत भोथियाएल हेराएल अछि, जखने डेग उठाएब आकि भोथियेलहा भेटए लगत। अनेरे तँ दुनू गोरे संगी हएब। जखने संगी हएब तखने दू-दूटा हाथ-पएर, आँखि, कान, नाक भेटत, मुँह ने एकेटा भेटत, तइले की हेतै, बेरा-बेरी दुनू गोरे बाजब। बेरा-बेरीक माने ई थोड़े हएत जे ओ किछु बाजत आ अपने किछु बाजब। काेनो चीजकेँ ओकरो आँखि देखतै, कान सुनतै आ अपनो तँ देखबे-सुनबे करब। ओकरे जड़ि पकड़ि दुनू गोरे गप-सप्‍प करब। जखने दुनू गोरे अपन-अपन विचार व्‍यक्‍त करब तखने ने दुनूकेँ मेदहा भऽ जाएत। फेर मन ठमकलै। ठमकलै ई जे एक गोरे ओहेन होइए जे काजक भीरे ने जाइए, मुदा अपन तँ से नै भेल। कौलेजमे अही[4] निविते छुट्टी भेल, हमरेटा-ले नइ, सभले भेल। मुदा भेटलै तँ ओकरेटा जे छठि-परमेशरीक सँझुका अर्घ्‍यक दर्शन केलक। मुदा हम तँ नियारिते रहि गेलौं, देख नै पेलौं। आखिर एना भेल किए? उपासककेँ अपन उपासक संग संकल्‍पो करए पड़ै छै। संकल्‍पे व्रती बनबै छै, जइसँ व्रत उपास करैए। हम तँ ओहन हेरेनिहार भऽ गेलौं जे जखनि हाथमे घड़ी, मोबाइलमे घड़ी, रेडियोमे घड़ी, टाबरक ऊपर घड़ी छल मुदा तखनो समए ससरि गेल आ बूझि नै पेलौं! किछु हएत तँ दीयाक ज्‍योति जे सँझुका घाटकेँ ज्‍योतिर्मय करत ओ भिनसुरका थोड़े करत! करबो केना करत? कोनो वस्‍तुक आनन्‍द ओकरा बेसी भेटै छै जेकरा अभाव छै। मुदा हूसल-बीतल कालपर बेसी अपसोचो करब आकि कानबो-खिजबो करब सेहो तँ बेसी नीक नहियेँ हएत, मुदा घड़ी-पहर देखि कऽ घाटपर पहुँचब अछि, जँ आनक आशा-बाट देखए लगब तँ अपनो आशक-बाट भटैक जाएत। मनमोहन मनमे रोपि लेलक जे समए-पहर देखि भोरमे घाटपर जरूर पहुँचब।
हारि-थाकि मनमोहन अन्‍तिम विचार कऽ लेलक जे नियत समैपर घाटपर पहुँचब अछि, ओना जे पहिने गेनिहार रहत ओ तँ रहबे करत, पछुएलहा ने पाछूकेँ जाएत मुदा अपनेने उजगुजेलहा जकाँ नै ने पहिने पहुँचल रहब, तइसँ की हेतै, समैपर पहुँचला जकाँ सभ कथुक दर्शन तँ हेबे करत।
सुतैबेर रातिमे जखनि मनमोहन सिरमापर मुड़ी रखलक आकि भुक दऽ भोरका काज मनमे उचरि गेलै। उचड़िते ठेकनबए लगल जे तीन बजे भोरमे घाटपर पहुँचब अछि। जाबे पहुँचब नै ताबे कौलेजसँ एलहा फल की भेटत। मुदा तीन बजेमे नीन टुटत? ओ तँ असली सुतै बेर छी! ओही कालमे ने वसन्‍ती राग चलै छै, विराग चलै छै, अनुराग चलै छै, चिराग चलै छै, नै जानि आरो की सभ चलै छै। फेर मन ठमकलै। ठमकलै ई जे अनेरे अखनि मन-मर्दन करब तँ मने उजगुजा जाएत जइसँ नीने ने औत, जँ कनी-मनी भको लगत तँ चहाएल मन चहा-चहा उठत। जखने से भेल तखने आाँखि कड़ुआ जाएत, भोरमे जे घाटपर पहुँचबो करब तँ यएह ने हएत जे कड़ुआएल नजरि नजरा करिया सियाही पकड़ा देत। ओह! तइसँ नीक जे मन मारि अखनि आँखि मूनि ली। अन्नक निशाँ चढ़बे करत, नीन एबे करत। मुदा अधनीनाकेँ कहि देबै जे भाय, तीन बजे घाटपर जाइके अछि, कनी-काल अङ्गोछो-मङ्गोछोमे लगत, तँए अढ़ाइ बजे तूँ हटि जाइहऽ। जान छोड़ि दीहऽ। कौलेजसँ छुट्टी अही दुआरे भेल अछि।
ओना घड़ीओमे आ मोबाइलोमे एलार्म भरि देलक, मुदा अढ़ाइ बजेमे जखनि घड़ीओ आ मोबाइलोमे घड़ी-मिनट बाँकीए रहै आकि नीनियाँ देवी अपने ससरि गेलखिन। ससरिते घड़ीओ बाजल आ मोबाइलो बाजल। एक तँ मनक घड़ी-घण्‍ट दोसर घड़ीक घोल आ तेसर मोबाइलिक घोल। मनसँ मशीन तक अनघोल कऽ उठल। समए पेब मनमोहन फुड़-फुड़ा कऽ उठल। काजक रूटिंग दिस तकलक तँ बूझि पड़लै जे नीन हटला पछाति पहिने लेटरीन जाइ छी, हाथमे ब्रश नेने जीह-दाँत मजैत चारि डेग टहलि अबै छी, तखनि कुर्ड़ा-आचमन कऽ लोटा भरि पानि पीबै छी, चाह पीबै छी, पान खाइ छी, तखनि ने कोनो काज दिस तकै छी। मुदा अाइ तँ काज दिस ताकब नै, दर्शन करब अछि। तँए रूटिंग बदलब जरूरी अछि, दरसनियाँ घाटपर बिना मुँह धोने केना जाएब। लेटरीन समैमे चारि घण्‍टा देरीओ अछिए। सहए केलक। चारि मज्‍जन कऽ मुँह-हाथ धोइसँ निवृत होइत असगरे घाट दिस मनमोहन विदा भेल। दरबज्‍जासँ उतरिते कानमे ढोलक अवाज एलै। ढोल छी आकि ढोलक? जँ ढोल हएत तँ छठिक घाटक हएत नै जँ ढोलकक हएत तँ केतौ नाच-तमाशाक हएत। ओना छठियो घाटपर नाच-तमाशा सेहो होइते अछि। जे दरसनियाँ छल से देखनियाँ भऽ गेल। मुदा जेतए जे भेल से होउ, अनेरे मनकेँ मरूअबै छी। कानक पाछू हाथ रखि देवालय स्‍थानक अवाज अकानलक तँ बूझि पड़लै जे ढोलेक अवाज छी। एक लय एक सूर, अष्‍टयामक राम-धुन जकाँ अछि। ठकर-ठकर ठकुआ दे। ठकुआ मगैए पूरी नै। तहूमे पूरी तँ आरो गजपट भऽ गेल अछि, केतौ चीनियाँ पूरी, तँ केतौ गुड़िया पूरी, तँ केतौ दलिया संग नोनपुरिया बनि गेल अछि, मुदा ठकुआ अखनो अनोना रवि जकाँ नोनसँ परहेज केने अछि। ओ ठकुआ। वएह-वएह पौआही, जे झँप्‍पासँ नापल रहैए। मनमोहनक मन मानि गेलै जे घाटक ढोल बाजि रहल अछि। आकि तही बीच बड़का रबासिक अवाज उठलै। एक-घाट, दू-घाट, पोखरिक चौबगली घाटपर। दूषित घुआँ गाम भरिमे अपन महक पसारि रहल छल। छठिक डाली पसरल परसादक सुगंध नै, बारूदक गंध। मुदा मनमोहनक मनमे रमल नै। रमबो केना करैत, जखनि एक रसक रसिक रसिया रास करत तँ ओ वृन्‍दावन छोड़ि जाएत केतए। जेतए वृन्‍दावनेश्वरी छोड़ि दोसरक बास नै होइ।
घाटपर पहुँचिते मनमोहन महारसँ ससरि पानिक किनछरिमे डाला-डाली सजल देखि सहजि गेल। चौमुखी-पँचमुखी दीप-कूरपर अनहरिया पखक तिरोदसीक चान सन मलिन होइत दीयाकेँ देखि अपनो मन मलिन हुअ लगलै। मुदा पानिक बीच तँ देखि पड़िते रहै। सुपती-कोनियाँ बदलि, पित्तरिबला कोनियाँ घाट पकड़ि रहल अछि, भलहिं अगहनक धानसँ भेँट हुअए आकि नै मुदा सूप-कोनियाँ तँ नीक भाइए गेल अछि, जइसँ जिनगी भरि चलैक आशा तँ अछिए। हाथीओ जेना हहरि गेल। ओ तँ राजा-रजवारकेँ हहरने भरिसक हहरल। मुदा केराक घौड़ आ कुशियारक मन मुस्‍की मारिए रहल अछि। केना ने मुस्‍की मारत, जहियासँ छठि आएल तहियाक संगी दुनू अपन साम्राज्‍य सेहो भकराड़ बनौनहि अछि, तँए दुनूक मन खुशी। जे केरा एक छीमी, एक छीमी करि कऽ कुरबा, कोशियामे परसाएल रहै छल से अपन साम्राज्‍य बढ़ा छीमीक संग सौंसे घौरे पकड़ि लेलक। तहिना कुशियारो अपन गृहवासू जकाँ टोनीक संग अपनो अकास पकड़ने ठाढ़ अछि। तैसंग गुड़ बनि भुसवा-ठकुआ पकड़ि चीनीक खाजा, लड्डू धरि पकड़नहि अछि तँए खुशी अछिए। मुदा भुसवापर नजरि पड़िते देखलक जे रूष्‍ट भेल भुसवा चुपचाप एकवाहि भेल गुड़कि कऽ कतवाहि धेने अछि। मुदा मन तम-तमाइते छै। ओना कुशियारकेँ पंच मानि ठकुआपर पनचैती बैसेबे करत। एक टकसँ मनमोहन भुसवाकेँ देखि अँकुरी सभ दिस नजरि बढ़ौलक तँ बूझि पड़लै जे अपने मोने सभ मगन अछि, कियो केकरोसँ लागि-भागि नै रखने अछि, सभ शरणागतिक अवस्‍थामे पवनियाँ-मनकमना पुरबै पाछू लगल अछि, केकरा एते छुट्टी छै जे गामे-गाम पनचैती केने घुरत। एक दिस बेटीकेँ बापक सम्‍पतिमे हिस्‍सेदारी छै, तँ दोसर दिस सासुरक दहेज बाधित छै! केना ओझरी छूटत। कियो पिता अपना बेटीकेँ जेते अधिक पढ़बै पाछू समए आ पाइ खरच करै छथि तेते ओ नै बुझै छथिन जे दहेजो ओते बेसी दिअ पड़त। जइ जमाएकेँ पढ़ल-लिखल कन्‍या भेटल, तैसंग ओकातिक हिसाबसँ दान-दहेज भेटल, शुरूसँ अन्‍तिम समए-बिआह धरि जेकर सेवा पाछू माता-पिता अपन शक्‍ति लगौलनि तइ बेटी-जमाएसँ माता-पिताकेँ की भेटलनि? लगले मनमोहनक मन हटकल। हटकिते भुसवापर नजरि गड़ौलक। वेचारा किए रूष्‍ट अछि?
सूपमे राखल सीम जकाँ नै, गोलका भाँटिन जकाँ भुसवा गुड़ैक कऽ सूप-कोनियाँमे कोणसँ कनखियाइत डालीमे रखल कुशियारक टोनीकेँ पकड़लक। पकड़िते बाजल-
भाय, तोरे खनदानक हमहूँ छी आ ठकुओ अछि...।
बिच्‍चेमे कुशियारक टोनी समर्थन दैत बाजल-
एकरा के काटत, सभकेँ बूझल छै।
कुशियारक सह पाबि भुसवाक मनमे जगल, नीक संगी भेटल। अपन नचारी सुनबैत भुसवा कुशियारक टोनीकेँ कहलक-
भाय, अपनैती बात छी, बदना हाल बदनियाँ जानए आ बदनियाँ हाल बदना जानए।
फेर सह दैत कुशियार बाजल-
तेहेन समए-साल भऽ गेल अछि जे अपनामे मीलि कऽ नै रहब तँ दोसर भगाइए देत।
कुशियारक तोष-तुष्‍टि देखि भुसवाक सम्‍बन्‍ध आरो बढ़ल। प्रेमी प्रेमिकाक पहिने जहिना मनक टोबनियाँ करैत, तहिना आसे-आसे मन घुसकबैत भुसवा बाजल-
भाय की कहबह, अपन मारि खाएल केकरा कहबै, आ जँ नै कहबै तँ मनक रोग छी, मनरोग भेल जँ कहीं मृत्‍यु भेल तँ नरक छोड़ि सरग जा हएत?”
भुसवाक बातक भाँज कुशियार बुझबे ने केलक। बिनु बूझल-गमल बातक उत्तर देब अनुचित छी। मुदा ईहो जँ खोलि कऽ बाजब जे भाय, तोहर बात नीक नहाँति नै बुझलिअ, कनी नीक जकाँ बुझा दैह। मुदा एते सुनै अा बुझैक पलखति अछि, कनी कालमे घाट उसरत। सबहक अपन-अपन दुनियाँ छै, अपन-अपन संगी छै। पान-सात बर्खक धिया-पुता भुसवा-ठकुआ पकड़त आकि नमहर देखि कुशियारक टोनी पकड़त। मुदा बेरादरीक बात छी, केना मुँह फोड़ि कहबै जे तूँ कष्‍टमे पड़ल रहऽ। बाजल-
भुसवा भाय, अहाँ कनै किए छी, बड़का भैया[5] ठाढ़े छथि, हुनका अखनि कियो छूतनि, जखनि डालीक सभ सठि जाएत तखनि हुनकर भाँज औतनि, तँए हुनका बेसी पलखैतियो छन्‍हि, चलू हुनकासँ भेँट करा हमहूँ अहाँ दिससँ समर्थन कऽ देब। ओ निवटा देता।
भुसवाक मन दस-आना-छह-आना हुअ लगलै। तेहेन समाजमे पड़ि गेल छी जे के केकर सुनत। अपने बेथे बेथाएल अछि। मुदा तँए कि हमर हक-हिस्‍सा नै अछि। छठिमे ठकुआ भलहिं आँखि देखबए मुदा दुरगमनियाँ कनियाँ संग महिना-दू-महिना हमरा छोड़ि कऽ जीवि सकैए। फेर मनमे भेलै जे अपनापर नै नितराइ। ई कि कोनो झूठ छिऐ जे आब दुरागमने ने अछि तँ तेकर साँठ-उसार कथी हएत। मनमे उठिते भुसवा ठकुआ गेल। ठकुआइते नजरि ठकुआपर पड़लै। मनमे खुशी भेलै, जे जेहने गति हमर भेल जाइए तेहने तँ अोकरो भेल जाइ छै, तखनि रूआबे केते दिन चलतै। मुदा लगले मनमे उठलै, जहिना हम तहिना ठकुआ लोकक हाथक बनौल छी। विचार बदलतै हाथ बदलतै, हाथक बौस बदलतै। मुदा हमरे सन गुणगर वेचारा शरीफा किए घाट छोड़ि देलक? छठि घाटक डालीक तँ फल छी शरीफा? भुसवाक मन शरीफाक दुर्दिनपर गेल। जँ छठिक घाटक फलक अधिकार केकरो छै तँ शरीफोकेँ छै। जेठक तपल कलशक फूलक फल छी शरीफा। बच्‍चामे जे रौद-तपलक बरसातक झाँट-पानि सहलक, शरद पबिते सरदिया अपन जुआनी निखारि रंग-रूप सुआद, सभ किछुसँ भरि लेलक। ओ केतए चल गेल? की शरीफा सन फल धरोहर नै छी?
छठि-परमेशरीक कथा भेल। अँकुरी छीटान भेल। बिसर्जनक छिट्टा सजल। सभ घरमुहाँ भेल।¦३३५६¦
१३ नवम्‍वर २०१४



[1] नीक-बेजाए
[2] ठकुआ
[3] कुशियार
[4] छठि पावनि
[5] कुशियारक छड़

No comments:

Post a Comment