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Thursday, October 23, 2014

कि‍रदानी

कि‍रदानी








रामरूप प्रसाद, जे छह मास पहि‍ने लेबर कमि‍श्‍नर पदसँ सेवा-नि‍वृत भेल छला, गाम एला। नब लोकक आगमनसँ गाममे चलह-पहल शुरू भेल। जेते मुँह तेते बोल, कि‍यो ‘बौआभाय’ तँ कि‍यो ‘बौआकाका’ तँ कि‍यो ‘लालबौआ’ कहि‍-कहि‍ रामरूप प्रसादकेँ सम्‍बोधि‍त करैत। धि‍या-पुताकेँ मतलबे कोन जे, के आएल के गेल। जुआन-जहानसँ लऽ कऽ चेतन-अधवेशू धरि‍ अपन-अपन हाजरी दर्ज करबए पहुँच रहल छला। केना नै पहुँचि‍तथि‍, गामक पहि‍ल बेकती जे एते नमहर हाकि‍म छथि‍। कि‍ए बूझत जे हाकि‍मपना चलि‍ गेलनि‍, खलि‍ये रामरूप छथि‍। बेठेकानो आमक गाछपर गोला फेकि‍ पाकल आम तोड़ने तँ अनठेकानो ने ठेकाने बनि‍ जाइए, तहि‍ना अपन गामक पूबपीठि‍या देखि‍ जँ गौआँ रामरूप बाबूकेँ भेँट करए अबै छथि‍ तँ अपन समाजि‍कताे ने नि‍माहि‍ लइ छथि‍। जाबे धरि‍ कमि‍श्‍नर साहैब काज करै जोकर छला ताबे धरि‍ गाम दि‍स तकबे ने केलनि‍ आ जखनि‍ अथबल, श्रमहीन भऽ गेला तखनि‍ गाम मन पड़लनि‍। गाम कि‍ मन पड़ि‍तनि‍ मन पड़लनि‍ पि‍ताक पुश्‍तैनी भूमि‍। पुश्‍तैनी भूमि‍ तँ हजारो लाखो अछि‍ मुदा से नै, केते खेत आ ओकर केते मूल्‍य भेल। खैर, कि‍छु हुअए मुदा स्‍वतंत्र देशक नागरि‍क होइक नाते एते तँ अधि‍कार सभकेँ अछि‍ए जे जे मन फुड़ै, जेना मन फुड़ै तेना अपन सम्‍पति‍क उपयोग करए। चाहे बेल रोपए आकि‍ बगूर। मुदा एहनो की नै होइए जे अनकर गोरहा, चौमासकेँ बाँस-गाछ रोपि‍ अछाह कऽ नष्‍ट करि‍ देल जाइए?
चाह-पर-चाह, पान-पर-पान रामरूप बाबू दि‍ससँ चलि‍ रहल अछि‍, लोकक आवाजाही अछि‍ए। लोको लाज तँ ओहने ने लाज भेल जेहेन वैदि‍क लाज होइए। ओना कि‍छु गोटे जे भरि‍ दि‍न रौद-वसातमे रहैए ओकर दुनियोँ तँ अँगने भरि‍क अछि‍, ओकरा आनसँ मतलबे कोन? जेतबे अँगना रहत तेतबे पथार पसारब। मुदा फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबसँ भेँट करए एला। फुसन काका गामक ओहेन लोक जि‍नका अदहा गामक लोक फुसि‍याह झुट्ठा कहै छन्‍हि‍ तँ अदहा गामक लोक उचि‍तवक्‍तो आ ठाँहि‍-पठाँहि‍ बजनि‍हार सेहो तँ कहि‍ते छन्‍हि‍। ई तँ  अद्भुत खेल अछि‍ जे एके गोटे दुनू केना? साल-दू-साल फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबसँ जेठे रहथि‍, मुदा जेठ-छोट उमेरेटासँ नै मानल जाइए दोसरो-तेसरो कारण छै, खैर जे छै। फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबक बगलेमे बैसि‍ पहि‍ने तँ दोसर-तेसरक बात सुनलनि‍ मुदा चाह पीला, पान खेला पछाति‍ अपनो मुँह खोललनि‍। बजला-
जुगो पछाति‍ दुनू गोटे एकठाम भेलौं, सभ हरेलहा समए हेरा गेल। कि‍म्‍हर-कि‍म्‍हर उदए भेलै?” 


अंतिमसँ..................................................



कादम्‍बरीक वाण रामरूप बाबूक छातीमे बेधि‍ देलकनि‍। बजला-
मन कि‍ खनहन रहत, मुदा खरहर तँ अछि‍ए। वएह सोचि‍ रहल छी, अनेरे बेसी देरी कि‍ए करब। काल्हि‍ए-परसूसँ कि‍ए ने काजमे हाथ लगा दि‍ऐ।
‘हाथ लगाएब’ सुनि‍ कादम्‍बरी सहमली। सहमली ई जे वि‍चार देब आ वि‍चारकेँ हाथक काजसँ मि‍लबैत चलब तँ भीन बात भेल! तखनि‍? तखनि‍ तँ यएह ने जे ओ पति‍ छथि‍ जेना संग दइले कहता तेना देबनि‍। ई बात अछि‍ए जे दुनू परानी बूढ़ भेलौं, मुदा ईहो तँ आशा अछि‍ए कि‍ने जे जँ रस्‍ता-पेरा मन झूकत तँ दोसरक आशासँ ठाढ़ हेबे करब कि‍ने। धनक लोभ छी, मुइलो अछि‍यापर सँ उठि‍ कऽ अबि‍ लोक लाठी भाँजैए। छोड़बो नीक नहि‍येँ हएत। बजली-
हम तँ जीवनसंगि‍नी भेलौं, कर्ता-धर्ता तँ अहीं भेलौं, तखनि‍ जे जेना सामर्थ्‍य रहत से तेना भाँज पुड़ैत रहब।
कादम्‍बरीक आस भरल आसक वि‍परीत दि‍शामे रामरूप बाबूकेँ आस लगि‍ते मन बढ़लनि‍। मन बढ़लनि‍ ओइ दि‍शामे जैठाम अपनाकेँ समाजक ओहेन लोक जे सभसँ बढ़ल-चढ़ल अपनो बुझै छथि‍ आ समाजो मानै छन्‍हि‍, जे दोसराक लेल की केलखि‍न? कोन मुँह लऽ कऽ समाजक बीच जाएब। मुदा सोझहामे कादम्‍बरी, तँए बात बदलि‍ बजला-
गामक लोक बड़ टेढ़ होइए, अनेरे कहत जे अहाँ बाबरी कटबै दुआरे केशकट्टा दि‍याद छोड़लौं आ आइ मरै बेरमे समाजक आगि‍ए संस्‍कार चाहै छी। तखनि‍ की कहबै?”
रामरूप बाबूक वि‍चार कादम्‍बरी नै परेखि‍ पौली। बजली-
केकरो अनकर सम्‍पति‍पर जाएब जे कि‍यो मुँह दुसत? अपन सम्‍पति‍ छी। चाहे मन्‍दि‍र बनाँउ, आकि‍ असमसान, अपना वि‍चारे कि‍यो करैए। तैठाम गौआँ कि‍ए बाजत?”
कादम्‍बरीक बोल जेना रामरूप बाबूक मनमे बलबोल जकाँ बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा बजला कि‍छु ने। जि‍नगीक रक्‍छा केना कएल जाए, तेकरा खेल बुझै छथि‍। हँ एहेन गाम-समाज अखनो अछि‍ जे अति‍थि‍ सत्‍कारक वि‍धि‍-बेवहार बँचा कऽ रखने अछि‍। रामरूप बाबू समाजक बेटा नै बनि‍ पेला, ई दोख अखनो केकर कलंक भेल। काल्हुक लेल कोन अंक निर्धारि‍त हएत। मुदा कादम्‍बरी तँ गामक पुतोहु भेलखि‍न। जखने गाम पएर देथि‍न तखने समाजक बाल-अबाल सभ अड़ि‍याइत कऽ अँगने लऽ जेतनि‍। ओइ संग अपनो रहैक ठौर-ठेकान बना नै चलब तँ समाजक कोनो ठेकान छै। एकटा मारि‍-पीटि‍ भेने सौंसे गामक लोक जहि‍ना नि‍पत्ता  भऽ जाइए तहि‍ना मारि‍-पीटि‍ करैकाल सेहो तँ गोलि‍याइते अछि‍। निर्णए केलनि‍ जे समाजक नीक-अधला समाजक भेल, अपने केना ओइमे प्रवेश करब, ई अपन काज भेल। बजला-
तीन दि‍न मािन कऽ चलू। तीन दि‍न रहैक खेनाइ-पीनाइक फास्‍ट-फुड ओरि‍यानक संग रहैक घरक जोगार सेहो केने चलब।
हँ मोटा-मोटी दू गोटेक बोझहा भेल। मुदा आब तँ गामे-गाम सवारीओ जाइते अछि‍। काल्हि‍ए भोरक प्रोग्राम रखू।¦५२९६¦

१४ जुन २०१४

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