Pages

Friday, October 17, 2014

अर्जुन रोग


अर्जुन रोग





जि‍नगीक अधडरेरपर पहुँचि‍ते सुचि‍त भायक मनमे ओहेन रोगक प्रवेश सहे-सह हुअ लगलनि‍ जेहेन घैलचीक घैल पानि‍क रस पीबैत-पीबैत रसा जाइ छै। ओना बि‍तल चालीस बर्खक जि‍नगीमे केते रंगक रोग-सोग, वर-वि‍याधि‍सँ गुजरि‍ चुकल छला, जे कहि‍यो दवाइक गोली तँ कहि‍यो इन्‍जेक्‍शन तँ कहि‍यो सीरपक उपयोगसँ नीक होइत आएल छला, मुदा ऐबेरक रोग छूटतनि‍ कि‍ नै छूटतनि‍ से मन कबूले ने कऽ रहल छन्‍हि‍। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत डाक्‍टर ऐठाम जेबाक वि‍चार केलनि‍।
ओना रोगीक भीड़ डाक्‍टर ऐठाम, मुदा सुचि‍त भायकेँ पहुँचि‍ते, एक नजरि‍ डाक्‍टर साहैब देखि‍ लेलनि‍। देखि‍ते मनमे हि‍लकोर उठलनि‍, कि‍यो पानि‍क रोग पनि‍दूदूरसँ सहजे ग्रसि‍त भऽ फुइल‍ जाइए, तँ कि‍यो पाण्‍डु  रोगसँ पीड़ि‍त भऽ पीड़ा जाइए, तँ कि‍यो लोहुक रोगसँ लोहि‍त भऽ जाइए, मुदा सुचि‍त भायमे तइ सबहक कोनो लक्षण डाक्‍टर नै देखलखि‍न।
रोगीक भीड़मे सुचि‍त भायक नम्‍बर नवम् रहनि‍। आठो रोगी नि‍कलला पछाति‍ सुचि‍त भाय आगूमे राखल स्‍टुलपर बैसला। ओजारक जाँच-पड़ताल करैसँ पहि‍ने डाक्‍टर साहैब रोगक प्रभावक जाँच शुरू करैत पुछलखि‍न-
की सभ होइए?”
‘की सभ होइए’ सुनि‍ सुचि‍त भाय थकमका गेला। थकमकेला ऐ दुआरे जे अखनि‍ जे होइए से कहबनि‍ आकि‍ पहि‍ने जे सभ रोग भेल छल सेहो कहैत, कहबनि‍। दुवि‍धामे पड़ल सुचि‍त भायक मुँह बन्ने छेलनि‍। चुप देखि‍ डाक्‍टर साहैब ससरैत समए देखि‍ झटकि‍ बजला-
कि‍ए मुँह बन्न केने छी। स्‍पष्‍ट बाजू। डाक्‍टरसँ रोगक बात छि‍पौला आ ओकीलसँ घटनाक बात छि‍पौलासँ नीक परि‍णामक आशा क्षीण भऽ जाइ छै। तँए जे होइए खोलि‍ कऽ बाजू।” 


अंतिममे................................






सुचि‍त भायक प्रश्न सुनि‍ डाक्‍टर साहैब अपन पाशा बदलैत बजला-
जखनि‍ हमहूँ कौलेजमे पढ़ैत रही तखनि‍ अहि‍ना भऽ गेल रहए।
केना छूटल?”
पहाड़पर पहाड़ी बाबा छथि‍, हुनके लग गेलौं ओ कहलनि‍ जे अर्जुन रोग भऽ गेल अछि‍। अखनि‍ महाभारत उनटबैक समए नै अछि‍। वएह कृष्‍णोषधि‍क एकटा जड़ी देलनि‍। सात दि‍न पीसि‍-पीसि‍ पीलौं। साते दि‍न महि‍ना, साल बूझि‍ पड़ल। नीक भऽ गेलौं। अहूँ ओत्तै चलि‍ जाउ। मधुसूदन धरमशालामे जनारदन रहै छथि‍। ओतए रहि‍ दवाइ पीब, साते दि‍नमे नीक भऽ कऽ घूमब।¦१,००३¦
७ मई २०१४

No comments:

Post a Comment