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Saturday, October 18, 2014

झकास


झकास






सि‍रूआ[1] पावनि‍क तेसर दि‍न, पछि‍या हवा पछि‍मसँ मेघ-बादल अनलक। ओना अपना ऐठाम बङ्गालक खाड़ीसँ बादल बनि‍ मौनसुनी बरखा होइए, कहि‍यो काल पछि‍मसँ बर्फीली हवा चलि‍ सेहो बरखा अनि‍ते अछि‍। सएह भेल, मुदा बुन्न छोड़ि‍ बरखा नै भऽ अदहा घण्‍टासँ झकसि‍ रहल अछि‍। ने सौन-भादोक बुन्न आ ने पूस-माघक पाला जकाँ, बीच-बि‍चौआ। दुआरपर बैसल घुरना काका खेती-वाड़ीक हि‍साब जोड़ि‍ रहल छथि‍। जोड़ि‍ रहल छथि‍ जे जँ अखनि‍ नि‍म्मन बरखा होइत तँ मौसमे बदलि‍ जाइत, नवका सालक खेतीमे हाथ लगि‍ जाइत; से तँ नै भऽ रहल अछि‍ मुदा तँए कि‍ अकाजक भऽ रहल अछि‍, सेहो तँ नहि‍येँ कहल जा सकैए। अनका जे होउ, अप्‍पन खेती तँ सुतरि‍ए रहल अछि‍। मन फुल-फुलेलनि‍। फुलाइते बकार फुटलनि‍-
अमृत वरि‍स रहल अछि‍।
एक बेर, दू बेर, बेर-बेर एके बात मुहसँ नि‍कलैत रहलनि‍‍-
अमृत वरि‍स रहल अछि‍!
हाइ स्‍कूलक दसम् कि‍लासमे पढ़ैत बेटा रघुवीर दलानक ओसारक दोसर भागमे कुरसीपर बैसल पि‍ताक बात बेर-बेर ‘अमृत’ सुनि‍ बाजल-
काका, देखै छी जे होइए झकास आ अहाँ कहै छि‍ऐ अमृत वरि‍स रहल अछि‍, से की? तेहेन जरल माटि‍ अछि‍, खेत-पथारक जे भीजबो ने करत।” 


अंतिम पेज......................................



पि‍ताक बात सुनि‍ रघुवीर आएल-गेल पाँति‍केँ पति‍यबैत अपन सरूप देखए लगल। मुदा जननि‍हार आ बि‍नु जननि‍हारक बीच जहि‍ना चुपा-चुपी होइ छै तहि‍ना रघुवीरो आ घुरनो कक्काक बीच चुपा-चुपी पसरि‍ गेल।¦१५८९¦
२६ अप्रैल २०१४


[1] जूरशीतल

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