कटा-कटी
चैत
मासक बेरुका समए। आने दिन आ आने जकाँ कामिनी काकी अँगना-घरक काज सम्हारि घासक
बेर होइत जाइत देखि धड़फड़ाएल छथि। जाइक समए भेल जा रहल छन्हि। बेटी कबुतरी दिस
तकलनि, तकलनि ई जे आन दिन ओसाराक छाहरि देखि अपने रस्तापर पहुँच
धूरा-गरदाकेँ चिक्कन बना, टोलक आनो-आन बच्चाक संग सभ दिन खेलाइए। आइ किए ने
ससरि रहल अछि, मुँह फुलौने बैसल अछि। लगमे पहुँच कामिनी काकी बजली-
“कानिनी दायकेँ, आइ किए ने अँगनासँ आसन टुटै छन्हि। कखनि आसन-बासनक
ओरियान करती।”
धनियाँ-मिरचाय
संग पीसल मसाला जहिना चुल्हिक ताैपर लोहियामे पड़िते आँखिमे कुट-कुटा कऽ लगैत
तहिना बाल-बोध कबुतरीकेँ माइक बात कुट-कुटा कऽ धेलक। बाजल-
“खेलाइ ले नइ जाएब। कटा-कटी कऽ देलक।”
‘कटा-कटी’
बजिते जेना कबुतरीक वृन्दावन दहलि उठल। ठुनकए लगल। जेना केते भारी राज-पाट कबुतरीक
छीना गेल होइ तहिना ठुनकी भरैत गेल। दुदिसिया माए कामिनी, आब की करती। बच्चा जखनि घरसँ निकलि खेलाइले चलि जाइए आ टोलक
बच्चाक संग साँझ धरि किशुन-कन्हैया जकाँ खेलाइत रहैए, तखने हमरो बाध-बोन जाइक
समए भेटैए। बाध-बाेन नै जाएब से बनत, बाध-बोन जिनगी देने अछि तेकरा केना छोड़ि
देब। मुदा जखनि हँसैत बच्चा अँगनासँ निकलि रस्तापर खेलाइले जाइए तखनि ई कहाँ
बुझैए जे माए आँगनमे नै अछि। तँए बच्चाकेँ बिना बौसने कामिनी काकी केना निकलती।
बजली-
“दाइकेँ की भेलनि जे एना फुफुआइ छथिन?” अंतिम पेजसँ...........................................................
माटिएक
भात-दालि-तरकारी हाथसँ उठा-उठा नीचका दाढ़ीमे भिरा-भिरा निच्चेमे रखि भोजक
जश दैत सभ पंच एक मुहेँ बाजल-
“घरबैयाकेँ धैनवाद।”
दिन
खसल। कामिनी काकी बाधसँ आबि घूर पजारि रहल छेली, तखने कबुतरी पहुँच बाजल-
“माए, भोजमे खूब जश भेल।”
कबुतरीक
खुशियाएल मन देखि कामिनी काकीक मन सेहो खुशियेलनि।¦१,१४०¦
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