Pages

Thursday, October 23, 2014

मनकमना

मनकमना









रामखेलौनकेँ अपन तेहेन भीठगर एको धूर खेत नै मुदा बच्‍चेसँ लोकक देखसीसँ सेहन्‍ता लगल रहै जे अपन एक बीट केरा आ कलमी-सरही मि‍ला पाँचटा आमक गाछ होइतै। पाँचटा ऐ दुआरे जे केरा एकोटा बीट रहने सालमे पान-दसटा घौर हेबे करत, मुदा एकटा आमक गाछसँ मन छुछुआइते रहत। छुछुआइत ई रहत जे कलमी रहल तँ रसगर सरही-ले आ सरही रहल तँ गुदगर कलमी-ले। तेतबे कि‍ए, केरा जकाँ कि‍ आम थोड़े होइए जे नि‍श्‍तुकी मोजरबे-फड़बे करत। गोटे साल मोजरबे ने करत, तँ गोटे साल बि‍जलोकेमे जरि‍ जाएत, गोटे साल रौदीमे सुर्ड़े लगि जाएत तँ गोटे साल बिहाड़ि‍मे फड़लाहा डारि‍ए टूटि‍ कऽ खसि‍ पड़त। एक तँ गामेक तकदीर फुटल जे जेहो चौथाइ (२५ प्रति‍शत) हि‍स्‍सा  भीठगर जमीन छेलै ओहो कोसीक बान्‍ह टुटने गामे देने धारक नासी फोड़ि‍ ओहो भीठका जमीनकेँ चौरीओसँ नीचाँ उतारि‍ देलक। जइसँ गामे चोकर आम जकाँ चोकरा गेल। मछबड़बा सबहक पतरा कहै जे गामे कि‍ए गामक लोकोक भाग जगलनि‍। तेते ने गहींर जमीन गाममे भऽ गेल जे एकरे बान्‍हि‍-छेकि‍ लोक अपना-अपना खेतमे माछ-मखान उपजौत तँ गामक के कहए, अमेरि‍का-इग्‍लैंडक वेपारी पहुँच-पहुँच कीनत। जइसँ बड़का-बड़का होटल, नीक सड़क बनि‍ नीक-नीक गाड़ी दौड़ए लगत। जेहने पूजाक परसाद मखान तेहने मनुखक परसाद माछ भेल। मुदा वैष्‍णव सभ गाम छोड़ि‍ वृन्‍दावनक बास करैक वि‍चार करए लगला। मन दुतकारए लगलनि‍ जे गामे मछाह भऽ गेल। लंकाक वि‍भीषण थोड़े छी जे मन-चीत मारि‍ रावणसँ अराड़ि‍ केने रहब। अपने ने माछ पोसब आ ने खाएब मुदा जखने गेनहारी-पटुआ साग जकाँ वाड़ी-झाड़ीमे माछे उपजत तँ सहरगंजा लोक खेबे करत। बड़बढ़ि‍याँ खाएत तँ अपना मुहेँ खाएत, मुदा रन्‍हि‍तो काल आ कलपर धोइतो काल जे गंध पसरत तेकरा केना पेटमे जाइसँ रोकब। चाहे मुँहक माध्‍यमसँ जाए आकि‍ नाकक माध्‍यमसँ, जाएत तँ पेटेमे। पेटमे नै जाए, तेकरे ने संकल्‍प लऽ कण्‍ठी बान्‍हि‍ वैष्‍णव भेलौं। गामक पानि (कलक पानि‍) गंधक दुआरे ढठा जाएत, अपन कल छोड़ि‍ केकरो कल पानि‍ पीबैबला रहत? सबहक कलक पानि‍ इछाइन-मछाइन महकत कि‍ने। ओहन छुतहरो तँ नहि‍येँ छी जे लगले दुधि‍या घरहर बनि‍ जाएब आ लगले गोबराह बनि‍ छुतहर भऽ जाएब। जइसँ कण्‍ठी तोड़ि‍ आन-आन जकाँ मछखौक बनि‍ खत्ता उपछए लगब। मुदा गाम छोड़ि‍ पड़ेबो केना करब? अपन बाप-दादाक खति‍आनी जमीनक हि‍स्‍सा सभ दि‍नसँ रहल तेकर ति‍यागो केना करब? केकरो हाथे बेचि‍ लेब आकि‍ ओहि‍ना छोड़ि‍ कऽ चलि‍ जाएब, मुदा जे कीनत आकि‍ ओहि‍ना दफनौत, करत तँ अपना मने। जँ कहीं खाधि‍ (कोचाढ़ि‍, डबरा) खुनि‍ माछे पोसए लगत तखनि‍ तँ आरो घि‍नमा-घीन हएत। तैसंग ईहो तँ लोक कहबे करत जे फल्‍लाँ वंशमे फल्‍लमा तेहेन बतौर भऽ गेल जे अपने तँ केतए-कहाँ वौआ-ढहना भीख मंगि‍ते अछि‍ जे बापो-दादाक नाक-कान कटा जनम धरतीओकेँ मेटा लेलक‍। जखनि‍ जनम-डीहे नै रहत तखनि‍ मरन-मरौसी केतए रहत।
जहि‍ना सभकेँ अपनो, अपन बालो-बच्‍चा आ परि‍वारोक प्रति‍ कि‍छु ने कि‍छु मनोरथ होइते छै, जैपर चढ़ि‍ मन जीवन-यात्रा करैत रहै छै, तहि‍ना रामखेलौनोकेँ खेनाइ-पीनाइक आशा तँ बोइन-बुत्तापर छेलैइहे मुदा फल-फलहरीक मनोरथ मनमे रोपनै छल। गाम देने बड़का सड़क बनने, सड़कक कातक जमीन जहि‍ना आन-आन दफानलक तहि‍ना रामखेलौनो दस धुर भीठ जमीन पकड़लक। ओ जमीन पहि‍ने गौंऐक रहै जे सड़क बनौनि‍हारक हाथे बेचि‍ लेलक, जइसँ केकरो कोइ वि‍रोध नै केलक। मुदा ई तँ खतरा रहबे करै जे आगू जहि‍या सड़कपर माटि‍क काज हेतै तइ दि‍न ओही सभमे सँ उठौल जाएत। घरे सोझे कनीए हटि‍ कऽ दस धुर चौमास रामखेलौनकेँ क्षणि‍क नसीव भेल। खेत अड़ि‍येबि‍ते बि‍सरभोर भऽ गेलै जे (जमीन) केकरो अनकर थोड़े छि‍ऐ ई अपन भेल, जेना जे मन फुरत, तेना से करब। अपनेमे तेना मन मोहि‍या गेलै जे रंग-रंगक वि‍चार मनमे जागए लगलै। बि‍सरि‍ गेल रामखेलौन जे जे जमीन क्षणि‍क हाथमे आएल ओकर केते भरोस। जेतबे भरोस तेतबे ने लाभो हएत। जेकर छि‍ऐ ओ केते काल रहए देत, तखनि‍ तँ ई भेल जे सालक अनुमान कऽ‍ लेब आ तइ हि‍साबसँ जेतबे आशा तेतबे आशा। मुदा से रामखेलौनक मनमे एबे ने कएल। एबो केना करि‍तै जेते पानि‍मे बुधि‍ ठाढ़ छेलै ओतबे तकक ने थाह छेलै। मुदा प्रश्न तँ गहींर पानि‍क अछि‍ जे रामखेलौन सन-सन लोक लेल अगम भेल। अगममे बेसी लोककेँ डुमैक सम्‍भावना रहै छै, हेलि‍ कऽ ऊपर होइक कमे रहै छै, जेना गंगा स्‍नान सभ करए चाहै छथि‍, करि‍तो छथि‍ मुदा कि‍यो माटि‍क बीचक घाटपर बैसि‍ लोटामे भरि‍-भरि‍ करै छथि‍ तँ कि‍यो घुट्ठी भरि‍ पानि‍मे, कि‍यो जाँघ भरि‍ पानि‍मे, कि‍यो छाती भरि‍ पानि‍मे तँ कि‍यो माथ डुमा डुमकीओ लगा करि‍ते छथि‍। तखनि‍ तँ भेल जेते पानि‍ तेहेन स्‍नान आ जेहेन स्‍नान तेहेन मन-मनोरथक फल।
कि‍रि‍ण उगि‍ते जेना कि‍यो अपन दि‍नुका काजे बि‍सरि‍ जाइए, तहि‍ना रामखेलौनोकेँ बि‍सरभोर भऽ गेल। भेल ई जे शुरूहेसँ मनोरथ रहै जे एक बीट केरा आ पाँचटा आमक गाछ होइतए। मुदा खेत (जमीन) अड़ि‍अबि‍ते मन तेना उड़ि‍ गेलै जे बि‍सरि‍ गेल पछि‍ला मनोरथ। मुदा तैयो जेना जमीन जी घीचने होइ तहि‍ना भोरे सुति‍-उठि‍ घरवालीकेँ रोबमे कहलक-
हमरा अबेर भेल जाइए, एको क्षण रूकने काज गड़बड़ाएत।” 


अंतमे.........................................................




मन छह आकि‍ बि‍सरि‍ गेलह हौ रामखेलौन?”
बि‍सरब सुनि‍ रामखेलौन बाजल-
कोन गप, भाय साहैब कनी आगूसँ कहि‍यौ ने।
तेसर साल जे माघक शीतलहरीमे बारह बजे बोरिंगक पानि‍क नम्‍बर बोरिंगबला देलक, आ दुनू गोरे चोरबत्ती हाथे खेत पटेलौं की छोड़ि‍ देलि‍ऐ।
वि‍मल भायक बात सुनि‍ जेना रामखेलौनक काज मनकेँ हुमचलक। हुमैचि‍ते जेना पुरुखपना जगलै। बाजल-
पुरुख बनि‍ जखनि‍ काज करए डेग उठेबै तखनि‍ माघक शीतलही हउ, आकि‍ हथि‍याक झटकी, बि‍ना केने घूमि‍ जाएब।
रामखेलौनक जगैत पुरुखत्‍वकेँ आँकि‍ वि‍मल भाय अपना दि‍स अनलनि‍। बजला-
वाड़ी-झाड़ीक की हाल-चाल छह?”
अपन गोटी ससारैत रामखेलौन बाजल-
भाय साहैब, नौउए-कौउए कऽ दस धुर चौमास वाड़ी नसीब भेल, तइमे कथीक खेती करब से बुझि‍ए ने पाबि‍ रहलौं हेन? अपना मनमे बहु दि‍नसँ सि‍हि‍न्‍ता लगल अछि‍ जे एक बीट केरा आ पाँचटा आमक गाछ होइतए।
रामखेलौनक मनक मुरादक समए नै। भदवारि‍मे केराक खेती करब जहि‍ना वर्जित अछि‍, तहि‍ना आमोक अछि‍। आमक उपयुक्‍त समए चैत होइत, जे गाछ लगि‍ते कलशि‍ जाइत। अखाढ़ छी पानि‍ पछुआएल अछि‍ तँए ने, नै तँ आद्रा अन्‍ति‍मपर अछि‍, लगले मनमे भेलनि‍ जे सभ बात कि‍ए ने कहि‍ दि‍ऐ। बजला-
रामखेलौन, दस गाछ बैगन लगा लि‍अ, घेरा-सजमैन लगबैले मचान बनबए पड़त। केरा-आम अखनि‍ नै लगाउ। आसीनमे जखनि‍ दुर्गा महरानी औती तखनि‍ दसो दुआरि‍ खुजत। अन्न-तीमन, फल-फलहरी, सभ कि‍छु लगबैक समए औत। ओहो लगा लेब।
वि‍मल भायक बात सुनि‍ रामखेलौन बाजल-
गेल माघ उनतीस दि‍न बाँचल, भाय एतेटा जि‍नगी सबुरे केलौं तीन मास कोन पहाड़ भेल। जे कहलौं सएह करब।¦६११८¦
१९ सि‍तम्‍बर २०१४

No comments:

Post a Comment