Pages

Saturday, October 18, 2014

सि‍रमा


सि‍रमा






ङ्गालक शान्‍ति‍ नि‍केतनसँ तीन दि‍न पहि‍ने आएल‍ बारह बर्खक मुरारी बाबा-जगदम्‍बक सङ्ग तेना घूलि‍-मि‍लि‍ गेल जेना बाँसक पोर मि‍लल रहै छै। ओना गाममे बाबा छोड़ि‍ दोसर कि‍यो नै, कारण रहै बङ्गालमे रहने जहि‍ना घेरामे पड़ल गाछ ओतबे दूर कुदै-फनैए, तहि‍ना मुरारीकेँ अनभुआर समाजक बीच सेहो गामे अनभुआर भऽ गेल रहै। सात बर्खक पछाति‍ मुरारी माए-बापक सङ्ग गाम आएल। बाबा लेल देहक वस्‍त्रक सङ्ग ओछाइन-बि‍छाइन सेहो अनलक अछि‍। सि‍रमाक सङ्ग चद्दरि‍, जाजीमक मोटरी नेने मुरारी जगदम्‍ब लग पहुँच बाजल-
बाबा, पुरनाकेँ बदलि‍ दि‍यौ, सभ कि‍छु नवका अनलौं अछि‍।
‘पुरनाकेँ बदलि‍ दि‍यौ नवका अनलौं।’ सुनि‍ जगदम्‍बक मन ठमकलनि‍। की नवका अनलौं? रूइयाक मोटका सूत बदलि‍ मेही-चि‍क्कन सूतक वस्‍त्र आकि‍ पेट्रोलि‍यमक? मुदा एक तँ गामक अपरि‍चि‍त बच्‍चा, दोसर दायि‍त्‍वो तँ बनि‍ते अछि‍ जे जे नै बुझै छै ओ बुझा दि‍ऐ। मुदा बुझबैओक तँ दू रस्‍ता छै, एकटा छै जे मुँह-मुँह मुख बनबैत मुखधारा जकाँ बोहि‍ जाइए, आ दोसर अपन इति‍हास तँ सभ अपना पेटमे रखने अछि‍। तहूमे सि‍र तरक सि‍रमा। जगदम्‍ब बजला-
बाउ मुरारि‍, अपना जनैत तँ नीके जानि‍ अनने छह, तँए बदलबे करब। मुदा...?” 


अंतिम पेज..............................




जगदम्‍बक पछुलका इति‍हास मुरारीक मनकेँ झि‍कझोड़ि‍ रहल छल। शि‍ष्‍टाचारक लगाम ऐ तरहेँ कसि‍ रहल छेलै जे कि‍छु बाजि‍ नै पाबि‍ रहल छल। मुदा बि‍नु मुँह खोलनौं तँ अपन मनक फल खाइओ केना सकै छी। तइले तँ वि‍चारक बात बाजए पड़त। ततमताइत मुरारी बाजल-
बाबा, जखनि‍ चद्दरि‍-धोतीक बात कहि‍ए देलि‍ऐ तखनि‍ लुङ्गीओं-गमछाक कहि‍ दि‍यौ।
मुरारीक बात सुनि‍ जगदम्‍बक मन आरो-पतालक पानि‍ जकाँ शीतल-स्‍वच्‍छ-सुअदगर बनि‍ गेलनि‍। लुङ्गी-गमछाकेँ सङ्गे उठबैत बजला-
बौआ, ईहो जहलेक छी। अपन कीनल लुङ्गीक सि‍रमाक खोल छी आ जहलक लुङ्गीकेँ पेटभर देने छि‍ऐ।
सि‍रमा खोलसँ लऽ कऽ पेटभर धरि‍क सि‍नेह सि‍क्‍त इति‍हास सुनि‍ मुरारी थकथकाइत बाजल-
बाबा, नवका सि‍रमा नै लेबै?”
पोताक टुटल आस देखि‍ जगदम्‍ब बजला-
हँ हौ, कि‍ए ने लेब मुदा चारूक एक-एकटा कोन काटि‍ नवकाक पेटमे भरि‍ दहक, जाबे जीबैत रहब ताबे माथ टेकने रहब।¦७६०¦ 

३१ मार्च २०१४

No comments:

Post a Comment