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Saturday, October 18, 2014

सजमनि‍याँ आम


सजमनि‍याँ आम






जेठ मास। हथि‍या-चि‍ति‍रा नै बरसने आन जेठसँ शक्‍ति‍गर रौद। तीन बजे करीब बेरुका पहरमे एक चि‍ड़की मेघ उठल, ने बेसी पसरल आ ने बेसी चतरल, हवाक झोंकमे पानि‍-पाथर, ठनका सभ बरि‍स गेल। ओना बि‍हाड़ि‍सँ केते गोटेक घरो खसल आ टाटो-फरक उजरल, केतेकेँ गाछो-बेख खसल मुदा चरि‍तर बाबाक तँ नाश भऽ गेलनि‍। नाश ई भेलनि‍ जे एक तँ फूसि‍ घर तैपर घरक पजरेमे तेहेन सजमनि‍याँ आमक गाछ लगौने छथि‍ जे ऊपर ताकि‍ ठनका खसल, खसल तँ गाछक मुड़ीपर मुदा कि‍छु नि‍च्‍चाँ होइत-होइत छि‍छलि‍ कऽ घरपर चलि‍ आएल, गाछक तँ मुड़ीएटा टुटबो केलनि‍ आ जरबो केलनि‍, मुदा खढ़क घर तैपर झोंकगर हवा पाबि‍ घरक सभ कि‍छु जारि‍ देलकनि‍‍। मनुखक जान बँचलनि‍ तँए बेसी गमगीन नै भेला। हाथ-पएर रहत फेर बनि‍ जाएत। मुदा से बात नै अपने चरि‍तर बाबा वाड़ीमे दारीम गाछक जड़ि‍ पटबैत रहथि‍‍, पोता प्रकाश, स्‍कूलमे रहए। दुनू परानी जगरनाथ बि‍आहक नौत पूरए गेल रहए।
दस मि‍नट बीतैत-बीतैत सभ शान्‍त भऽ गेल। हवो-बि‍हाड़ि‍ पड़ा गेल, पानि‍योँ पड़ा गेल आ एकेटा ठनका जे खसि‍ये पड़ल। चरि‍तर बाबाक घर ठनकामे खसलनि‍ आकि‍ जरलनि‍, अखनि‍ धरि‍ यएह घोंघौज लोकक बीच चलैत। मुदा मनुखक नोकसान नै भेल, तँए सभ खुशी! घर-दुआर आकि‍ धन-सम्‍पति‍ मनुख नै ने छि‍ऐ, तखनि‍ अनेरे कानि‍येँ-खीज कऽ की हएत, तँए चरि‍तर बाबाक ठनका खसल घरपर गाममे िकयो नोर बहौनि‍हार नै। 


अंतिम पेज.............................



परि‍वारक प्रति‍ जि‍ज्ञासा देखि‍ चरि‍तरबाबा बजला-
नमहर गाछपर ठनका खसब उचि‍ते भेल, जे दैवी भेल। मुदा समए-साल केहेन भऽ गेल अछि‍ जे देखते छहक, कि‍यो एकोटा खाए देतह? दुइओ-अढ़ाइ सए जँ फड़ि‍ जाइए तँ कहुना आमक मास आम खा काटि‍ लइ छी।
जेना ओझा-गुनी गुनगुनाइत गोसाँइ खेलए लगैए तहि‍ना दुनू गोटे प्रकाशो आ चरि‍तरो बाबा मन-मनतर पढ़ए लगला। हाइ स्‍कूलक वि‍द्यार्थी प्रकाश, नव फूल तकैक जि‍ज्ञासा। आइक युगमे ठनका खसैक ओरि‍यान लोक घरमे लगा लइए मुदा गाछकेँ तँ खाली ठनके नै, हवा-बि‍हाड़ि‍मे खसैक सम्‍भावना सेहो अछि‍।
चरि‍तर बाबा मने-मन गद-गद होइत रहथि‍, गदगदाइक कारण ई रहनि‍ जे कोढ़ि‍या बरद जकाँ हरे देखि‍ डेराएब तँ बड़का-बड़का इञ्जन के चलौत। पहाड़क दि‍न तँ वएह ने नीक जकाँ बूझि‍ सकैए जे पर्वति‍या हएत।¦६११¦

०४ मई २०१४

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