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Thursday, October 23, 2014

पाइक मोल

पाइक मोल
 पाइक मोल




हथिया नै बरसने बाड़ी-झाड़ीक काज अगते शुरू भऽ गेल। काल्हि‍ कोजगरा छी। ओना समए रौदि‍याह जकाँ भऽ गेल अछि‍। मुदा समैओक (मासोक) तँ अपन गुण-धर्म होइ छै। चटाएल ओस रहि‍तो जमीनमे ठंढ़ तँ पसरि‍ए गेल अछि‍। भोरुका सुरूजक जे सोहनगरता एबा चाही से तँ आबिए गेल अछि‍। बाध-बोनमे भलहिं रौदी बूझि पड़ैए, मरहन्ने-मरहन्ना देखि‍ पड़ैए मुदा बोन-झाड़क रूप तँ ओते नहियेँ बि‍गड़ल अछि‍। तहूमे जाड़क उसरन थोड़े छी जे पालाक पल्‍ला पड़ि ठि‍ठुरल रहत, वरसातक ने उनाड़ी छी! सरलो भुन्ना तँ रहुक दुना! लत्तीओ-फत्ती आकि‍ झाड़ो-झूड़ जे अगते अर्थात् वरसातसँ पहिने पुरना वस्‍त्र बदलि‍ नव वस्‍त्रक संग नव कलशक नव मुड़ीमे नव फूलक संग नव फलोक जोरन तँ जोरनाइए गेल अछि‍। नव सुरूजक संग रवि‍कान्‍त नव दि‍नक नव काज दि‍स नजरि‍ उठौलनि‍ तँ देखि‍ पड़लनि‍ जे दारीमक बाड़ी जाएब जरूरी अछि‍। केते रंगक कीड़ी-मकौड़ी, उपद्रव शुरू कऽ देने हएत। बि‍ना कि‍म्‍हरो तकने ओ दारीमक बाड़ी वि‍दा भेला। बाड़ीक मुहाँनीबला गाछपर नजरि‍ पड़ि‍ते दीपकक चि‍ट्ठी मन पड़लनि‍। मन पड़लनि‍ दुर्गापूजाक छुट्टीमे आएल सि‍नेहकान्‍त। कलशथापने दि‍न चि‍ट्ठी देने छल। जइमे लि‍खल छेलै जे ‘बीसम दि‍न परीछाक फारम भराएत, कौलेजक पछि‍लो बाँकी जे अछि‍ सेहो लागत।’ नाओं लि‍खौला पछाति‍ एको-पाइ देनौं ने छेलि‍ऐ। दारीमक बाड़ीसँ चोटे घूमि‍ रवि‍कान्‍त दरबज्‍जाक चारक ओलतीक बत्तीमे खोंसल चि‍ट्ठी नि‍कालि‍ दोहरा कऽ पढ़लनि‍। परीछाक फारम भराएत तइले पाइक ओरि‍यान करब छेलनि‍। ईहो लि‍खल छेलनि‍ जे दीपक अपने गाम आबि‍ मात्रि‍कक कोजगरो पूरि‍ लेत आ तेसर दि‍न आपसो भऽ‍ जाएत। ओना केते पाइक ओरि‍यान करब अछि‍ से स्‍पष्‍ट नहि‍येँ अछि‍ मुदा बेटाक पढ़ाइक अंति‍म घड़ीमे कि‍छु बजलो तँ नहि‍येँ जा सकैए। तहूमे कौलेजक आखि‍री परीछा छि‍ऐ। अंति‍म परीछा मनमे अबि‍ते रवि‍कान्‍तकेँ खुशी उपकलनि‍। बेटाक स्‍नातक भेने परि‍वारक अगि‍ला सीढ़ीक एकटा पजेबा जोड़ाएत। एक पजेबा जोड़ेने एक सीढ़ीक रूप बनि‍ जाइए। तेतबे कि‍ए, ई की नै भेल जे साधारण पढ़ल-लि‍खल बाप, बेटाकेँ स्‍नातक बना दुनि‍याँक बीच ठाढ़ सेहो करत। स्‍नातक तँ स्‍नातक होइए। जेकरा राज-काज चलबैक बुधि‍ भऽ जाइ छै। ख्‍ाैर जे होउ, जेहेन मन पकड़ि मेहनति‍ करत तेहेन बनत। अपन जे कर्मक संकल्‍प दुनि‍याँक संग छल से तँ अबस्‍से पूर्ति हएत। जि‍नगीमे सभकेँ अपन-अपन दायि‍त्‍व होइ छै, तेकरा जे जेहेन संकल्‍पक संग पूर्ति करैए से तेहेन बनि‍ ठाढ़ होइए।
कोजगरा दि‍नक सुरूज उठि‍ कऽ एक बाँस ऊपर भेला, करीब आठ बजैत। दीपक रेलबे स्‍टेशनसँ गामपर पहुँचल। जहि‍ना दीपकक मनमे तेल-बातीक जोगाड़क वि‍चार मर्ड़ाइत तहि‍ना रवि‍कान्‍तोक मनमे ओही तेल-बातीक चि‍ड़ै चकभौर लैत रहनि‍। दीपककेँ देखि‍ते रवि‍कान्‍त बजला-
बाउ, तोरे बात मनमे घुरि‍-फीरि रहल अछि‍ बहुत दि‍न जीबह।” 


अंतिम पेजसँ................................................


संतोख होइ छै ओ वएह उत्तर लदलासँ कम होइ छै, तँए दीपककेँ बुझा देब रवि‍कान्‍त जरूरी बुझथि‍ तँ दोसर दि‍स जि‍नगीक एक सीढ़ी टपैक काज देखथि‍। दुनूमे सँ कोनो छोड़बैबला नै। कारण, जँ समैपर पाइक ओरि‍यान नै हएत, फारम नै भराएत तँ परीछा केना देत? तहूमे अपना हाथमे पाइ कम अछि‍ कोनो ब्‍यौंत करए पड़त। अनका हाथक काजक ठेकाने केते। मुदा दीपको तँ परीछामे बैसैबला वि‍द्यार्थी छी, अखनि‍ जेते ओकरा बरावरीकेँ भरल जेतै, तेते ने परीछामे असान हेतै। ताल-मेल बैसबैत रवि‍कान्‍त बजला-
बौआ, कि‍सानी जि‍नगीमे कि‍सानसँ लऽ कऽ काज केनि‍हार धरि‍ अगहनमे धान घर अनैए। चाहे खेतक उपजा होइ आकि‍ बोइन आकि‍ आरो-आरो उपए, जेना-जेना अगहनक पछाति‍ समए आगू बढ़ैए तेना-तेना खर्च होइत जाइ छै। घटबी होइ छै। भदबारि‍मे जे भदइ-धान आकि‍ मरूआ होइ छै ओकरा पावनि‍-ति‍हारमे अशुद्ध मानल जाइ छै! दोसर दि‍स आसीनक पनरह दि‍न खएन-पीअनि होइ छै आ अगि‍ला पनरह दि‍न दुर्गापूजासँ कोजगरा धरि‍ होइ छै। तहि‍ना कोजगरा प्रात जे काति‍क चढ़ैए, ओकरा धर्ममास मानि‍ अनेको तीर्थ-व्रत आ पावनि‍-ति‍हार होइ छै। एहेन स्‍थि‍ति‍मे की कएल जाए। मुदा अखनि‍ बेसी कहैक समए नै अछि। केकरो हाथे बच्‍छा बेचि‍ पहि‍ने तोहर काज आगू बढ़ा देबह पछाति‍ कहि‍यो नि‍चेनसँ आगूक बात कहबह।
पति‍क बात सुनि‍ते चन्‍द्रावतीकेँ जेना कोजगराक पुनोचान आ दीपककेँ दि‍वालीक ज्‍योति‍ जगि‍ गेलनि‍।¦२४१२¦

२२ दिसम्‍बर २०१३

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