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Friday, October 17, 2014

पान पराग


पान पराग





छि‍यासठि‍ बरख पुड़ैत-पुड़ैत डाक्‍टर सुनीलक पछुलका सभ नाओं या तँ हेरा गेलनि‍ या तर पड़ि‍ गेलनि‍। गाम अबि‍ते नाओंए पड़ि‍ गेलनि‍ बुढ़बा डाक्‍टर। ओना जहि‍ना बजरूआ घरक एकटा कोठलीमे पैसने कोठलीए-कोठली सभ घर टहलि‍ लि‍अ तहि‍ना बुड़हो डाक्‍टरकेँ भेलनि‍। नीक वि‍द्यार्थी आ नीक लगन रहने डक्‍टर सुनीलक पूछ आनसँ भि‍न्न, सीनि‍यरो डाक्‍टर सुनील बाउ कहैत तँ आन-आन स्‍टाफ सुनील बाबू कहनि‍, जइसँ डक्‍टर सुनील भोति‍या गेला। दस बर्खक पछाति‍ जखनि‍ वि‍भागाध्‍यक्ष भेला तखनि‍ प्रोफेसर साहैब भऽ गेला, पहि‍लुका नाओं हेरा गेलनि‍। ओना सोलहन्नी पहि‍लुका नै हेरेलनि‍ थोड़-थाड़ रहबो केलनि‍ आ थोड़-थाड़ बि‍सरेबो केला। कि‍छुए दि‍नक पछाति‍ डाक्‍टर भैया आर कि‍छु पछाति‍ डाक्‍टर काका आ सेवा नि‍वृत्ति‍क पछाति‍ डाक्‍टर काका बनि‍ दरभंगासँ गाम आबि‍ गेला। पुरनका आदति‍ सेहो शहरसँ गाम नेने एला। जेकर फल छेलनि‍ चारि‍ बजे भोरसँ पहि‍ने अपन नि‍त्‍यक्रि‍यासँ नि‍वृत्त भऽ चाह-पीब पढ़ै-लि‍खैमे लगि‍ जाइ छथि‍। ओ वेचारे अपने रहैक घर बनौता तँए मकान बनबैक सभ काज अपने वि‍चारसँ करता जे वि‍चार बेटो दैत खर्चक चि‍न्‍तासँ मुक्‍त कऽ देलकनि‍। ओना बेटा मुँह छोहनियेँ केलकनि‍, कि‍एक तँ अपनो कमाएल तेते छन्‍हि‍ जे आनक खगते ने छन्‍हि‍, मुदा तैयो बेटाक बोलसँ आरो भरोस बढ़बे केलनि‍। 


अंतिमपारा....................................



मि‍स्‍त्रीक बात सुनि‍ बुड़हा डाक्‍टर खि‍ल-खि‍ला कऽ हँसैत बजला-
अपनो ने डाक्‍टरो छी। आन रोगीक बात नहि‍योँ बुझबै कि‍एक तँ बहुत बात बहुत रोगी बाजि‍तो ने अछि‍, मुदा अपन देहक पीड़ाक अनुभव तँ अपने हएत। तइ हि‍साबसँ हि‍फाजत केने तँ काज चलि‍ सकैए। तखनि‍ तँ ई देहे काँच-माटि‍क बनल अछि‍, एकर केते बि‍सवास।  
मि‍स्‍त्री बाजल-
बाबा, अपने काजकेँ पछुअबै छि‍ऐ जेतेकाल गप-सप्‍प करबै तेते देरी हएत।¦१,७०४¦ 

२९ मार्च २०१४

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