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Thursday, October 23, 2014

सए कछे

सए कछे











अबेर तक ओछाइनेपर पड़ल रही। भारी बरखा तँ नै मुदा हल्‍लुक मझोलका बरखा होइत रहै। दुपहर आकि‍ बेरूपहर जेहेन बर्खाक मद्दी लोक नै दइए, अपन काज-उदम करि‍ते रहैए, मुदा ओहेन बरखा भि‍नसरू पहरकेँ गरूगर लगैए, सएह भेल रहै। छह बजेक समाचारक समए भेने रेडि‍यो खोललौं। खोलि‍ते समाचार आएल जे कमलाक छहर टुटि‍ गेल, केते गाममे बाढ़ि‍क पानि‍ पसरि‍ गेल। अगि‍ला समाचार की भेल से सुनबो ने केलौं, काने जेना भथा गेल। भथा ई गेल जे दस दि‍न पहि‍ने तक रौदी-रौदीक घोल यएह रेडि‍यो करै छल, जे आन सालसँ कम बरखा हएत। कम ऐ मानेमे जे बरसाती खेतीले जेते पानि‍क खगता होइ छै तइसँ कम बरखा हएत, तँए समए रौदि‍याह हएत। नमहर कि‍सान तँ नै मुदा छोट-मोट कि‍सान तँ छीहे। वैज्ञानि‍कक वि‍चार केना नै मानि‍तौं। मानैक माने ई भेल जे जे जेतइ काज करै छथि‍ ओ ओतइ ने अपन योजनाक कार्यक्रम ओइ हि‍साबे बनौता, तहि‍ना हमहूँ केलौं। बरसातमे जे खेत धानक होइए वएह खेत कम बरखा भेने तरकारीक वा कम पानि‍क खगताबला अन्नोक खेतीले अनुकूल भऽ जाइए। कि‍यो अपन योजना अनुकूलते हि‍साबे बनबै छथि‍। यएह सोचि‍ धानक खेती कम केलौं। नहि‍येँ जकाँ भेल। नवका धानक बीआ कीनि‍ कऽ अनने छेलौं, जे बीस-पचीस दि‍नमे रोपल जाइए ओ बीरारे ने बुड़हा गेल। बुड़हेबो केना ने करैत, अगता सौनक रोपक खि‍यालसँ बागु केने छेलौं। धुरि‍या सौन भऽ गेल। अपना बोरिंग नै, आँड़ि‍-पाटि‍मे जे बोरिंगो अछि‍ ओ पछि‍ला भोँटसँ कटा-कटी भऽ गेल। कटा-कटी होइक कारण भेल जे भोँटक गरमा-गरमीक बहसमे झंझटि‍ भऽ गेल, जइसँ कोट-कचहरीक पेँचमे पड़ि‍ गेलौं। टटका दुश्‍मनी तँए खेती नै भेल तँ नै भेल मुदा मुँह खोलि‍ खुशामद केना करि‍ति‍ऐ। जखनि‍ अन्न खाइ छी, पानि‍ पीबै छी तखनि‍ जँ आइन-अपगराइन मनमे नै रहत तँ अनेरे कि‍ए दुनू (अन्न-पानि‍) केँ दुख दइ छि‍ऐ। मनमे सएह रहए तँए धानक खेती नै भेल। मुदा अन्‍ति‍म भादोमे डूमा बरखा आ बाढ़ि‍ एने मन सि‍हरैत रहए। सि‍हरैत ई रहए जे जहि‍ना कोनो मनुखोकेँ आ मालो-जालकेँ, आ गाछो-बि‍रि‍छकेँ होइ छै जे शुरूमे बाँझ जकाँ रहैए आ पछाति‍ ढेनुआर भऽ जाइए तहि‍ना मेघोकेँ भेल अछि‍। हथि‍या तक बरि‍सत आकि‍ चि‍तरा तक बरि‍सत तेकर कोनो ठेकान छै, तहूमे तेहेन-तेहेन गोलगर बुन्नक बरखा होइए जे जँ आगूओ तक धेने रहल तँ अगि‍लो खेती खेबे करत। मन बि‍साइन-बि‍साइन होइत रहए।
चाह नेने माए आबि‍ बाजलि‍-
कि‍ए अखनि‍ तक मुहोँ-कानमे पानि‍ नै लेलह।” 


अंतिम पेजसँ...............................................................  



अपना केनादन लागल। झूठ बाजि‍ माएसँ जँताएब उचि‍त नै बूझि‍, उठि‍ कऽ बैसि‍ झूठकेँ सत् बनबैत कहलि‍ऐ-
माए, कौल्हुका चालि‍क माने तँू बीतलाहा काल्हि‍ बुइझ गेलही। ओते तँ सभ दि‍न चलि‍ते छी, तइसँ की देह-हाथ दुखाएत। आगूक काल्हि‍क चालि‍क बात कहलि‍यौ।
जेना पहि‍नेसँ माएकेँ जबाव तैयारे रहै तहि‍ना धाँइ दऽ बाजलि‍-
रौदीसँ दाही सए कछे नीक होइ छै।
माइक बात सुनि‍ मन आरो औना गेल। चुपचाप चाहक गि‍लास उठा चाह पीबए लगलौं।¦४८८¦

१९ अगस्‍त २०१४ 

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