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Friday, October 17, 2014

दनि‍याँ डाबा


दनि‍याँ डाबा






जुड़शीतलक सात दि‍नक पछाति पंडि‍ताइन काकी भोरे-भोर जोर-जोरसँ बाजए लगली। बजैक कारण छेलनि‍ पछि‍ला समुद्री लहरि‍‍क झटकमे मालो घर आ एकटा आषर्मीओ खसि‍ पड़लनि‍। छोट परि‍वार, बेटा-पुतोहु दि‍ल्‍लीएमे घर बना रहै छन्‍हि‍, अनठा देलकनि‍। मालक घरेटा, माल-जाल नै, पोसबो के करतनि‍, आब कि‍ ओ जमाना रहल, आब तँ सभ अपन-अपन जाति‍क पुरहि‍ताइ करि‍ते अछि‍। एहेन लहकी छोड़ि‍ अनेरे गाइक गोबरसँ हाथ महकाएब! आब कि‍ सतयुग रहल जे सत्यक युग रहि‍तो, भुत-प्रेत आ अप्‍सरा-परीक नाच हएत। पंडि‍त काकाकेँ से सुतरलनि‍, सात गाम बीच दुइए गोटेकेँ टो-टा कऽ संस्‍कृत पढ़ल अबैत तँए दुनूक बहाली गामक पुरहि‍ताइमे भऽ गेलनि‍। मुदा खेलो बढ़बे कएल। खेल ई बढ़ल जे सात गाममे सत्तरि‍टा बि‍आह हएत, बि‍आह करौनि‍हार दू गोटे भेला। सत्तयुगि‍या मनुख बनैक लूरि‍ नै। लूरि‍ ई नै जे जहि‍ना घोड़ो अपना पाँखिए उड़ै छल तहि‍ना मनुखो उड़ै छल। खैर! जे भेल आकि‍ होइए से सभ जानए।
गाम-गाममे परदेशि‍याक बाढ़ि‍, तँए सभ सालसँ बेसी जुड़शीतलमे डाबा दान भेल। रंग-रंगक, केते गोटे शहरेसँ अनने। लि‍खल-पढ़ल, रंगल-ढौरल। एकेटा घर पंडि‍त काकाकेँ, अँगनामे दनि‍याँ डाबाकेँ केना कुम्‍हारक आवा जकाँ लगौता। तँए सभटा घरेमे तरे-ऊपरे ढेरि‍याएल। पंडि‍ताइन काकीक चोरबत्ती राति‍मे बड़बे ने केलनि‍, भकुआएल रहबे करथि‍, माथमे ऊपरका डाबा ठेकि‍ गेलनि‍। जाबे काकी बुझती-बुझती ताबे 


अन्‍तिम पेज............................



ढेरीए ढनमना गेलनि‍। ई तँ गुण रहलनि‍ जे खापड़ि‍क ढेरी नै छल ने तँ चानि‍ बि‍ना टुटने नै रहि‍तनि‍। ओना डबोक चोटसँ चानि‍ दगाइए गेलनि‍।
वएह भोरुका चानि‍क चोट पंडि‍ताइन काकीकेँ छेलनि‍, तँए जोर-जोरसँ पंडि‍त काकापर बजै छेली।
एक तोर पंडि‍ताइन काकीकेँ काका बाजए देलखि‍न। दालि‍क आकि‍ भातक उघि‍याएल फेनकेँ फेकबे नीक, बजैत-बजैत काकीक जखनि‍ दम खड़ेलनि‍ तखनि‍ थोड़े स्‍पीड कमलनि‍। धि‍यान लगौने पंडि‍त काका काग-भुसुण्‍डीक जप करैत रहथि‍। दम खड़खड़ेने धि‍यान टुटलनि‍। छन्‍दक मात्रा गड़बड़ाइत देखला। पुछलखि‍न-
अनेरे भोरसँ आफन तोड़ने छी, बाजू! असथि‍रसँ बाजू! भगवान केकरो अधला ने सोचै छथि‍न आ ने करै छथि‍न। जँ केतौ अधला देखब आकि‍ सुनब तँ जा कऽ कहबनि‍।
कक्काक मधु-कैटब बोल सुनि‍ काकी दुनू हाथसँ छातीकेँ दाबि‍ असथि‍र केलनि‍। छातीक धुक-धुकी जहाँ असथि‍र भेलनि‍ आकि‍ बजली-
देखू, जजमानकेँ कहि‍ दि‍यौ जे जँ दान करैए तँ ओहन दान करह जे दानीकेँ दाताक फल भेटै, ई जे माटि‍क डाबासँ चाइन तोड़ाएब! एहेन दान नै लेब।
काकीक अल्‍लुक चोखा जकाँ चोखाएल बात सुनि‍ पंडि‍त काका बजला-
अहाँक कहब नीक अछि‍ मुदा निर्णए तँ वएह तीनू- ब्रह्मा, वि‍ष्‍णु, महेश- ने करता। हुनका तक सवाल पठा दइ ि‍छयनि‍।
कक्काक मधु अमृत पीब पंडि‍ताइन काकी काकाकेँ पठबैक तैयारीमे जुटि‍ गेली। आब हुनकर दोख थोड़े हेतनि‍, जेते जल्‍दी तैयार करि‍ वि‍दा करबनि‍, तेते जल्‍दी ने घरसँ नि‍कलता।¦४०९¦

२२ मई २०१४  

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