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Thursday, October 23, 2014

अलपुरि‍या बरी

अलपुरि‍या बरी


अलपुरि‍या बरी 




फागुनक लहकी लगनक धुमसाही, बटोहीसँ बाट बोनाएल रहैए। फगुआ मनबए दि‍नेश भाइ काल्हि‍ साँझू पहर गाम पहुँचला। लगनक धुमसाही देखि‍ अपने फुड़ने बजला-
अखनि‍ तकक जि‍नगीमे दुइयेटा घरदेखि‍या भोज पइर लगल अछि‍।
अकछाइत पुछलि‍यनि‍-
एना कि‍ए सुमारक होइए, दि‍नेश भाय?”
‘सुमारक’ सुनि‍ सुमरला-
पहि‍ल पइर लगल पचही आ दोसर पइर लगल अलपुरा।
बजैक फुड़फुड़ी देखि‍ टोनि‍ देलि‍यनि‍-
मने-मन गुर-चाउर फँकै छी आ...।
एतबे सुनैत बजला-
घरदेखि‍या भोज कहै छेलौं, घरदेखीमे अपनैत चलै छै जइमे लोक जमाए-वर्गसँ ममि‍औत तक पुरा लइए। मुदा तेतबे से थोड़े अछि‍।
टोकारा देलि‍यनि‍-
से की?”
बजला-
जाति‍-जाति‍ बीच समाज बनि‍ टुकड़ी-टुकड़ी टूटि‍ रहल अछि‍, मुदा गुण अछि‍ जे केकरोसँ दोस्‍तीए ने अछि‍।” 



अंतिम पेजसँ्.्.्.्....................................................


मकै लाबा जकाँ हँसैत भड़भरेला-
दोसर खेप अलपुरि‍या बरीसँ भेँट भेल। गोलगर-गोलगर, फुलल-फुलल। पछि‍ला भोज धक दनि‍ मन पड़ि‍ गेल। बरीक संग बर। भरि‍सक तहि‍ना फुलल-फुलाएल अछि‍। मुदा ले बलैया अँठि‍याएल रसगुल्‍ला जकाँ तरमे आँठी बूझि‍ पड़ल। भोजपुरि‍या लि‍ट्टी जकाँ, मुदा सेहो कहाँ भेल, ओ सूखल जि‍नगी जीबैए। बड़ हएत तँ ओ जलखै हएत मुदा ई कल्लौ भेल।¦२८७¦ 
१२ मार्च २०१४

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