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Thursday, October 23, 2014

रेहना चाची

रेहना चाची











दि‍न लहसैत कि‍शुन भाय लौफा हाटसँ घुमती बेर जखनि‍ दीप पहुँचला तँ बाटपर ठाढ़ रेहना चाचीपर नजरि‍ पड़लनि‍। कोराक बच्‍चा-प्रपौत्रकेँ रेहना चाची बाजि‍-बाजि‍ खेलबैत रहथि‍। रेहना चाचीक ‘अवाज’ सुनि‍ते कि‍शुन भायकेँ सात-आठ बरख पहि‍लुका बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा सत्तरि‍ बर्खक झूर-झूर भेल शरीर, धँसल आँखि‍, आमक चोकर जकाँ मुँहक सुरखी देखि‍ शंको भेलनि‍। ओना सात-आठ बर्खसँ कि‍शुन भाय रेहना चाचीकेँ नै देखने रहथि‍ तँए हँ-नै दुनूमे मन फँसल रहनि‍। फँसबो उचि‍ते छेलनि‍। एक दि‍नमे तँ राज-पाट उनटि‍ जाइए, सात-आठ बरख तँ सहजे सात-आठ बरख भेल। मुदा तैयो मन तरसैत रहनि‍, तरंगी होइत रहनि‍ जे रेहना चाचीक अवाज छी। लग्‍गा भरि‍ हटि‍ बाटेपर साइकि‍ल दहि‍ना पएरक भरे ठाढ़ केने, रेहना चाचीपर आँखि‍ गड़ौने मने-मन वि‍चारि‍ते छला आकि‍ अनायास मुँह फुटलनि‍-
रेहना चाची।
‘रेहना चाची’ सुनि‍ चाची बच्‍चापर सँ नजरि‍ उठा चारू दि‍स खि‍रौलनि‍। दछि‍नवारि‍ भाग साइकि‍लपर ठाढ़ भेलपर नजरि‍ पड़लनि‍। चेहरासँ चि‍न्‍ह नै सकली। मुदा कानमे कि‍शुनक अवाज ठहकलनि‍। अवाज ठहकि‍ते बोल फुटलनि‍-
बौआ, कि‍शुन।” 


अंतिम पेजसँ....................................................


कि‍शुन भायक झाँपल-तोपल बात सुनि‍ रेहनो चाचीक मनमे उठलनि‍, जेते अल्‍ला-मि‍याँ परि‍वार सभकेँ झाँपन-तोपन दैत रहथि‍न तेते नीक। भगवान सभकेँ नीक करथुन। बजली-
कि‍शुन बौआ, देखि‍ते छह जे अथबल भेलौं। चलै-फि‍ड़ै जोकर नै रहलौं, मुदा पोताक बि‍आह देखैक मन तँ होइते अछि‍, से...।
रेहना चाचीक बात सुनि‍ कि‍शुन भाय गुम भऽ गेला। गुम ई भऽ गेला जे की रेहना चाचीकेँ यज्ञ-काजमे लि‍यनु करा लऽ जा पएब? की समाज एकरा पसि‍न करत? जे दुरकाल समए बनल जा रहल अछि‍ ओ भरि‍याएल जरूर अछि‍। मुदा जात तर पड़ल ओंगरी जँ नि‍कालि‍ नै लेब, तँ जातक काजे केना चलत। कोनो एकेटा ने हएत या तँ पीसि‍या हएत वा ओंगरी पि‍साएत। मुदा भवि‍स...।¦१,३०७¦

९ जुलाई २०१४

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