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Saturday, October 18, 2014

सुमति


सुमति




तीन माससँ किछु बेसीए दिनपर हरिनाथ भाय भेटला। ओना उमेरमे भरि‍सक चारि‍-पाँच मास छोटे हेता मुदा तेहेन लछन-करम छन्‍हि   जे छोटक कोन बात जे जेठोजन सभ भाय कहै छन्‍हि, तहिना हमहूँ कहै छियनि। नै भेँट होइक कारण ई नै छन्‍हि जे परिवारक ओझरीमे ओझरा गेल छथि आकि बेमरियाहे भऽ गेल छथि‍। आन भैयारी जकाँ सेहो नहियेँ छन्‍हि‍ जे बपौती हि‍स्‍सा-बखरा लेल कन्‍हामे झोरा लटका सरकारी दुआरि[1] धेने रहता। भेल ई छन्‍हि जे परिवारक दाब[2] कम भेने नव-नव काजो आ विचारो तेना कऽ पकड़ि लेलकनि जे पछिला[3] सभ कि‍छु तरि‍अए लगलनि अछि, जइसँ घुमबो-फीड़ब कम भऽ गेलनि। कम भेने भेँट-घाँट कमब सोभाविके अछि। दोसर ईहो जे जहिना नव-वि‍चार वि‍चरण लेल समए मगैए तहिना नव काजो माङ्गि‍‍ते अछि। दोहरी माङ्ग भेने रूटि‍ङ्ग बदलबे करत। सएह भेलनि। भेटि‍ते मनमे उठल जे आने जकाँ तँ ओहो भैयारीक बीच छथिए, तँए रामा-कठोला हेबे करतनि। मुदा मुँहक सुरखी से नै कहै छन्‍हि। आशाक ओसाएल ओसक बून जकाँ टप-टप करै छन्‍हि। ओना एहनो तँ होइते अछि जे अपन मनक बेथा-कथा अनका लग बजनै की! तँए अनेरे मुहोँ लटकाएब नीक नहियेँ होइए। मुदा से हरि‍नाथ भायकेँ नै रहनि। जेना रसे-रसे बेसियाएले जाइत रहनि। एहेन स्‍थितिमे अगुरवार कि‍छु बाजब उचित नै बूझि पुछलि‍यनि-
हरी भाय, बहुत दिनपर भेटलौं अछि। की माया-जालमे बेसी ओझरा गेल छी?” 

अंतिम पेज................................



हरी भाइक लछन-करमसँ बूझि पड़ल जे अपन अन्‍ति‍म बात कहए चाहै छथि। हूँहकारी भरलौं-
समैएपर ने नहाएब-खाएब आ सूतब नीक होइए।
सुनि जेना हरी भाइक मन फुला गेलनि। जेठ मासक रौदमे जखनि कियो छाती भरि पानिमे पैसि पतालसँ अकास धरिक बीच अपनाकेँ पबैए तहिना हरी भाय अपन बात बजला-
जखनि सुन्दरलाल आगू पढ़ैक विचार केलक, तखनि सुन्दरोलाल आ पितोक एक विचार रहनि। मुदा नै ऐ दुआरे बजलौं जे पिता आगू किछु बाजब आ जँ कहीं सुन्दरलालक मनमे होइतै जे भैये बाधा छथि, तखनि किए बीचमे बाधक बनि कलङ्क लैतौं। तँए किछु ने बजलौं मुदा ओतैसँ परिवार हूसल।
‘हूसल’ सुनि जिज्ञासा बढ़ल। पुछलियनि-
उपए?”
बजला-
जे हूसल से तँ हूसि गेल, मुदा आबो सुमति आबौ जे आगू दिन दनदनाइत चलत।¦३,०५२¦
३० जनवरी २०१४


[1] कोट-कचहरी
[2] भार
[3] जिनगीमे पहुलका

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