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Saturday, October 18, 2014

चोरक चोरबती


चोरक चोरबती





ने दि‍न जकाँ आत्‍मानन्‍द बाबा दि‍न लहसि‍ते अपन काज उसारि‍, दि‍शा-मैदानसँ आबि‍ दरबज्‍जाक आङ्गनमे सोंफ बीछा बैसि‍ते रहथि‍ आकि‍ सुगि‍या दादी चाह नेने आगूमे ठाढ़ भेली। गर लगा कऽ बैसि‍ते (गरक माने ई भेल आत्‍मानन्‍द बाबा बि‍छानक एक छोरपर बैसि‍ आगू दि‍स तकैत अगि‍ला छोर बच्‍चा सभले छोड़ि‍ देलखि‍न) हाथमे चाहक गि‍लास धड़बैत दादी ई सोचि‍ ठाढ़ भऽ गेली जे कि‍छु खगता हेतनि‍ तँ बजबे करता, तइ सुनैले। मुदा सभ काजक गर देखि‍ बाबा चुपे रहला। बतलग्‍गू रोग तँ धेने नै छन्‍हि‍ जे अनका जकाँ अनेरो कि‍छुसँ कि‍छु बजैत रहलौं। ि‍कछु समए अँटकला पछाति‍ दादी बूझि‍ गेली। आङ्गन दि‍स घूमि‍ गेली। तेतबेमे टोलक स्‍कुलि‍या धि‍या-पुता एकाएकी आबए लगल। बाबाकेँ चाह पीबैत देखि‍ आगूमे, बाबा दि‍स घूमि‍-घूमि‍ बैसैत गेल। अङ्गनाक डेढ़ि‍यापर अबि‍ते सुगि‍या दादी पाछू उनटि‍ तकली‍ तँ चारि‍-पाँचटा बच्‍चा देखि‍ मन मुस्‍कीयेलनि‍‍। मुस्‍कीयेलनि‍ अपन नि‍अमि‍त काजपर। जँ कनीओं बि‍लम होइतए तँ अगि‍ला काजमे बुड़हाकेँ बाधा होइतनि‍ कि‍ने? जेकर भागी के बनैत? अपन पति‍व्रत नि‍अम मनमे जगलनि‍। जगि‍ते ठोर पटपटेलनि‍-
पति‍व्रत काजक रूपमे नै मात्र लोक शब्‍दक रूपमे बुझैए।
मुदा लगले जेना कि‍यो ठोंठ पकड़ि‍ कऽ दाबि‍ देलकनि‍, तहि‍ना ठोरक पटपटी बन्न भेलनि‍। आङ्गनक ओसारपर बैसि‍ चाह पीबए लगली।
चाह पीबि‍ते बाबाक मन खनहन भेलनि‍। खनहन मन खनखनेलनि‍-
सञ्च-मञ्च भऽ बैइसै जाह। जेकरा जे बुझैक हुअ से बेराबेरी बजै जाह।” 


अंतिम पेज..................................



गोवि‍न्‍दक जि‍ज्ञासा बाबा अँकलनि‍। आँकि‍ कऽ गुलेतीक गोली जकाँ ठि‍कि‍आ कऽ बजला-
बौआ गोवि‍न्‍द, जेते दूर तक सुजोत चलैए, तेते दूर तक कुजोतो चलैए, केतौ-केतौ बेसीओ चलैए आ केतौ-केतौ कमो चलैए, मुदा से नै। वएह सुजोत कुजोतक बती बनि‍ चोरबती बनि‍ गृहवासू भऽ गेल।
बाबाक बात सुनि‍ अपन जि‍द्दपन धेने गोवि‍न्‍द बाजल-
बाबा, अखनि‍ सुनलाहा भेल, आङ्गन जा जखनि‍ ओकरा उचारब-वि‍चारब, तखनि‍ हँ-नि‍हँस काल्हि‍ कहब।
गोवि‍न्‍दक जि‍ज्ञासा देखि‍ आत्‍मानन्‍द बाबाक मनमे हौहटि‍-कलकलि‍ कुरूऐनी जकाँ सुआस पड़लनि‍। बजला-
बाउ गोवि‍न्‍द, काल्हि‍ काल्हि‍ अछि‍। आइ ठीक छह कि‍ने?”
हँसैत गोवि‍न्‍द बाजल-
हँ बाबा।¦८८४¦

६ अगस्‍त २०१४

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