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Friday, October 17, 2014

अभि‍नव अनुभव


अभि‍नव अनुभव





अनचोकेमे लाल बाबाक प्राण छूटि‍ गेलनि‍, मरि‍ गेला। अपनो अनचोकेमे रहला आ परि‍वारोक सभ सएह रहल। बाधमे रही, गहुमक जजात देखि‍ मन झुझुआ गेल रहए। झुझुआ ऐ दुआरे गेल रहए जे पौरु साल अगते नवम्‍बरमे हाइब्रि‍ड बीआ, नीक खाद भेट गेने, गहुम उपजबैक पुरस्‍कार अनुमण्‍डलमे भेटल रहए मुदा ऐबेर बि‍तैत काति‍क तेहेन बर्खा भेल जे पछि‍ला हालकेँ तीन मास आरो बढ़ा देलक। कि‍सान छी गहुमक खेती नै करब तँ अपने की खाएब आ गाए-बरद लेल भुसी केतएसँ औत। अचताइत-पचताइत पूसमे गहुम बागु केलौं, शीश नि‍कलि‍ते तेहेन पछि‍या रमकल जे दूधे सुखि‍ गेल, दाना भरबे ने कएल।

अपने अनचोकेमे लाल बाबा ऐ दुआरे रहला जे गंगाकातक नवका परोड़ कीनि‍ आँगन पठा कहने छेलखि‍न-
नव बर्खक नव तरकारी छी, तँए थोड़े तड़ि‍ लेब, थोड़केँ रसदार तरकारी बना लेब, तहूमे अखनि‍ नवका संगी अल्‍लू आबि‍ गेल अछि‍, अँचार तँ चटपटमे नै बनि‍ सकत, मुदा पका कऽ आकि‍ उसनि‍ कऽ सन्ना-चटनी तँ बनि‍ सकैए। सन्ना चटनी ऐ दुआरे जे बि‍ना लोढ़ी सि‍लौटसँ नै बनत। सन्ना तँ सानि‍ कऽ, गुड़ि‍ कऽ हाथसँ बनौल जाइ छै।

अंतमे...........................




दादीकेँ पुछलि‍यनि‍-
दादी, बाबा कि‍ए एना अनचोकेमे मरि‍ गेला?”
बजली-
यएह नै बुझै छी जे एहनो मरब होइ।¦३२६¦ 

१६ अप्रैल २०१४

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