अभिनव अनुभव
अपने
अनचोकेमे लाल बाबा ऐ दुआरे रहला जे गंगाकातक नवका परोड़ कीनि आँगन पठा कहने छेलखिन-
“नव बर्खक नव तरकारी छी, तँए थोड़े तड़ि
लेब, थोड़केँ रसदार तरकारी बना लेब, तहूमे अखनि नवका संगी अल्लू आबि गेल अछि,
अँचार तँ चटपटमे नै बनि सकत, मुदा पका कऽ आकि उसनि कऽ सन्ना-चटनी तँ बनि सकैए।
सन्ना चटनी ऐ दुआरे जे बिना लोढ़ी सिलौटसँ नै बनत। सन्ना तँ सानि कऽ, गुड़ि कऽ
हाथसँ बनौल जाइ छै।”अंतमे...........................
दादीकेँ
पुछलियनि-
“दादी, बाबा किए एना अनचोकेमे मरि गेला?”
बजली-
“यएह नै बुझै छी जे एहनो मरब होइ।”¦३२६¦
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