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Thursday, October 23, 2014

बुधनी दादी

बुधनी दादी











बारह-चौदह आना बढ़ला पछाति‍ जहि‍ना गाछ-बि‍रि‍छक रूपकेँ देखि‍ अनुमानि‍त हुअ लगैत जे फूल-फल लगै जोकर भऽ गेल। जेहने गाछ तेहने ने डारि‍ओ-पात आ फूलो-फल हएत। ओना बुधि‍यार बाबाक उमेर बेरानबेरम बरख टपि‍ गेलनि‍, मुदा बुधनी दादीक नबे पुड़ि‍ एकानबेमे प्रवेश करबे केलकनि‍, तइ बि‍च्‍चेक कथा छी। मुदा जहि‍ना बारह-चौदह आना पूर भेने आशाक फल फड़ै छै तहि‍ना बारह-चौदह आना नै भेने तँ नि‍आशे कहल जेतै। खैर जे से। पचीसम दि‍न बुधि‍यार बाबाकेँ जेठका बेटाक फोन अबि‍ते मने चमैक‍ गेलनि‍। मन चमैक‍ गेलनि‍ ई जे जेठ जन कहलकनि‍-
बाबूजी, मझि‍लो, सझि‍लो आ छोटो जनक ि‍वचार अछि‍ जे आब सभ कि‍यो गामेमे रहब। सबहक बीच वि‍चार उठल जे काल्हि‍ए चलू, मुदा रहैक घरक बेवस्‍था पहि‍ने करए पड़त। चारू भाँइक रहै जोकर घर तँ बनबए पड़त।
जेठ जनक बात सुनि‍ बुधि‍यार बाबाक मनमे उठलनि‍ जे ई गप पत्नीकेँ कहि‍यनि‍ आकि‍ नै कहि‍यनि‍? अखनि‍ मोबाइलेक गप छी, राता-राती लोक राखी काटि‍-काटि‍ करोड़ोक वेपार ठाढ़ कऽ लेलक। भाय, मोबाइलेक कोन दोख छै, दोख तँ छै मोबाइल केनि‍हारक। मुदा ओकरे कोन दोख छै, जेना-जेना मन उनटै-पुनटै छै तेना-तेना अपनो उनटि‍-पुनटि‍ गेल। तत्-मत्-मे पड़ल बुधि‍यार बाबा बुधनी दादीकेँ ऐ दुआरे नै कहथि‍न जे स्‍त्रीगणेक मुँह छी, एके धुनमे रामो आ राक्षसो कहैए। जँ कहीं गपेक लहकीमे ओहो अनधुन कि‍छुसँ कि‍छु बाजि‍ जाथि‍ तँ अनेरे एकटा झमेल ठाढ़ हएत, तइसँ नीक ने जे जे बेटा हमरा कहलक ओ माएकेँ कि‍ए ने कहत जे अनेरे हम भार उघू। मुदा जहि‍ना रसे-रसे राही, बाते-बात बतही, घाटे-घाट घटवार आ धारे-धार धारा चलैए तहि‍ना बुधि‍यार बाबाक वि‍चार चलि‍ते रहनि‍ आकि‍ बुधनी दादीकेँ सेहो जेठकी पुतोहु उपराग दैत फोन केलकनि‍। पुतोहुक उपरागक भारसँ दबाइत बुधनी दादी पुतोहुकेँ कहलखि‍न-
कनि‍याँ, कनी थम्‍हू। बुड़हाकेँ सेहो सुना दइ छि‍यनि‍।” 


अंतिम पेजसँ.......................................................



अचरजि‍त होइत कहलकनि‍-
बाबूजी, अहाँकेँ सभ बात तँ बुझले अछि‍ जे कोन धरानी बेटा-बेटीकेँ पढ़ेबो-लि‍खेबो केलौं आ बि‍आहो-दान केलौं। जि‍नगी भाड़ा घरमे बि‍तेलौं, आगुओ बि‍ताएब। मुदा जखनि‍ सबहक बेटा-पुतोहु छोड़ि‍-छोड़ि‍ पड़ेलनि‍, आ सेवा-टहलक कोन बात जे कि‍यो भरि‍ मुँह बोलो सुननि‍हार नै रहलनि‍ तखनि‍ मन पड़लनि‍ भाए-भैयारी, माए-बाप आ सर-समाज।
गौड़ीक बात सुनि‍ बुधि‍यार बाबा चुपी लाधि‍ देलनि‍। मुदा बुधनी दादी थोड़े से मानलखि‍न। पजेबा, सीमेंट खसा चारि‍ बजे साँझमे घरक न्‍योँ  लेबे करती। भोरेसँ कखनो कि‍छु तँ कखनो कि‍छु जोगाड़मे लगले रहती। भाय! दुइए दि‍नक ने जि‍नगी भेल अगि‍ला आ पछि‍ला। जइमे पछि‍ला कटिए गेल अगि‍ला बनबे करत कि‍ने।¦१,२५६¦

११ जुलाई २०१४

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