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Thursday, October 23, 2014

अउतरि‍त प्रश्‍न

अउतरि‍त प्रश्‍न











अधकैत‍का समए जकाँ मासक रोहानी भऽ गेल। ओना संक्राँति‍क हि‍साबसँ अदहासँ बेसी टपि‍ गेल, मुदा पूर्णिमाक हि‍साबे अदहासँ पछुआएल, तँए दि‍यावाती पावनि‍ परसू हएत। हँसौना-खेलौना समए देखि‍ दरबज्‍जापर बैसल कि‍शुन भाय मने-मन छगुन्‍तामे पड़ल रहथि‍। जे एहेन समैकेँ कोन समए कहबै, सालक अगता बरखा बेसी भेल, कम दि‍नुका आ कति‍का धान तँ अदहा-छि‍दहा सुतरल मुदा अगहनी धान- सतरि‍या, तुलसीफूल, कनकजीर, वासमती, बाँसफूल इत्‍यादि‍ पानि‍क अभावमे बौक भऽ गेल, भने नीक भेल, जानए जओ आ जानए जत्ता। बैसि‍ले-बैसल समतल मन कि‍शुन भायक गामक चि‍मनीपर गेलनि‍। ओना गामेमे चि‍मनी अछि‍ आ चि‍मनी मालि‍कसँ नीक लाट-घाट सेहो अछि‍, मुदा बाढ़ि‍क हि‍लकोरमे जहि‍ना हलुकाहा बाैस सभ ऊपर फेका जाइए तहि‍ना फेका गेल छी। परि‍वारि‍क नीक सम्‍बन्‍ध छन्‍हि‍हेँ। गाममे उद्योग लागत, ओकाति‍क हि‍साबे जे सहयोग हेबा चाही से परि‍वारसँ भेलो रहनि‍, तँए जन्‍मौटी सम्‍बन्‍ध जकाँ सम्‍बन्‍ध बनल छन्‍हि‍हेँ। पचता बरखा‍ नै भेल जइसँ रौदि‍याहक लक्षण समए पकड़ि‍ लेलक। कोन घर कानए कोन घर गीत। अगता कि‍सान गीत गबै छथि‍, पचता पावनि‍ओ लेल हाक्रोश करै छथि‍। समैक नारी पकड़ि‍ चि‍मनी माि‍लक फूलबाबू गोटी सुतारलनि‍। अगते उत्तर प्रदेशक मजदूरकेँ बजा लेलनि‍। मि‍थि‍लांचलक श्रम-शक्‍ति‍ तँ तेना चूड़ा-दहीमे सना गेल अछि‍ जे नीन कहि‍या पतरेतै तेकर ठेकाने ने। मनसूबा रहबे करनि‍ जे अगते काति‍कसँ कारोबार करब। काति‍कक अन्‍त होइत जँ दू बेर भट्ठा फुका गेल तँ गोटी लाल हेबे करत। भाय तीनफुके तँ माटि‍ओ सोना भऽ जाइ छै, चि‍मनीक तँ पाकल माटि‍ छै। मेहनती श्रमि‍क पाबि‍ फूलबाबूक मन चपचपाइते छन्‍हि‍, काजो तेज हएत आ नीक चीजो बनत। काति‍कक दि‍यावाती लछमी दि‍न छी, ओना कालीओ दि‍न छीहे, मुदा लछमी दि‍न मानि‍ फूलबाबू चि‍मनी फूकता। पहि‍ल फूक तँए शंखा जकाँ फुकैमे कि‍छु कण्‍ठ सर्ड़ास करैमे सेहो जेबे करतनि‍। काँच पजेबाक पथार, पथेरी लगौने। तैबीच तेहेन बरखा भेल जे बलुआहा महादेव जकाँ पजेबा ढहि‍-ढूहि‍ गेल। कि‍शुन भाय चि‍मनीक जि‍गेसा जरूरी बूझि‍ पत्नीकेँ कहलखि‍न-
भि‍नसुरका समए छी, चाहक बेर अछि‍, तँए चाह पीयाउ। फूलबाबूक चि‍मनी देखए जाएब। काज अगते शुरू केने छला, की भेलनि‍ की नै।” 


अंतिम पेजसँ............................................................


ओना फति‍माक बात कि‍शुन भायकेँ कण्‍ठसँ नि‍च्‍चाँ नै उतरलनि‍ कि‍एक तँ मन ठमकि‍ गेलनि‍। गाम बनौनि‍हारे जँ गाम छोड़ि‍ दि‍अए तँ गाम केना बनत। मुदा जि‍नकर बात सुनै छी, ओ तँ सुनए पड़त। बजला-
परि‍वारमे के सभ छथि‍?”
बेटी सासुर बसैए, अपने दुनू परानी भेलौं आ बेटा-पुतोहुक संग दूटा पोता-पोती अछि‍।
बेटा की करै छथि‍?”
ओ अरबमे नोकरी करैए। आठ बर्खक करार छै, पछाति‍ गाम औत।
कते महि‍ना कमाइए?”
अपन रूपैआ अस्‍सी-पचासी हजार।
‘अस्‍सी-पचासी हजार’ सुनि‍ कि‍शुन भायक मन तड़पि‍ गेलनि‍। बजला कि‍छु ने, वि‍दा भऽ गेला। सड़कपर अबि‍ते मनमे अनेको प्रश्न उठि‍ गेलनि‍- जाबे परि‍वार असथि‍र भऽ बास नै करत ताबे परि‍वारक सुरक्षो आ बालो-बच्‍चाकेँ सम्‍हारि‍ पएब अकास कुसुम सदृश आइक सामाजि‍क परि‍वेशमे जि‍नगी चुनौती बनि‍ गेल अछि‍।¦१,२२९¦

१४ जुलाई २०१४

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