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Thursday, October 23, 2014

अपन सन मुँह


अपन सन मुँह







रेलबे स्‍टेशनक प्रतीक्षालयक कुरसीपर बैसल वि‍ष्‍णुमोहनक मनसँ अनायास खसलै-
जहिना अपन सन मुँह लऽ कऽ आएल छेलौं तहिना अपने सन नेने जाइ छी।
मनसँ खसिते विचारक रस्‍ता बुधि पकड़लक। रस्‍ता पकड़िते मुहसँ खसलै-
कोन मुहेँ आएल छेलौं आ कोन मुहेँ जाइ छी। हे स्‍टेशनक वि‍श्रामालय अंति‍म प्रणाम!

रोपट्टामे बड़ी लाइनक गाड़ी आ बिहारकेँ महानगरसँ जुड़ैक बाटक चर्च सुनिते लोक, सूतल गाए जकाँ कान पटपटौलक। एन.एच.५७क दूरबीनक काज शुरू होइते अन्नक संग कुअन्नो सौनक मेघ जकाँ सिसकए लगल। दूरबीनसँ देखिनि‍हार इंजीनि‍यर सभसँ गामक लोक सभकेँ भेँट भेलै। जहिना साँपक मुँह साँप चटैए तहि‍ना लोक पुछब शुरू केलक। गामक लोको तँ बुधि‍क बखारीए छी, मरूआक छी आकि तीसीक, धानक छी आकि‍ चाउरक से बुझैक काजे कोन छै। सरकारी छी सरकार बनबैए। कमीशनक कारोबार हेबे करतै। जहि‍ना सीढ़ीनुमा ढाल अछि‍ तहि‍ना कमीशनो चढ़बे करत। मुदा से बि‍नु चाह-पान खुऔने थोड़े हएत। भाइ! मि‍थि‍ला छि‍ऐ, हमरा गाम अहाँ काज करए एलौं आ कुशलो-छेम नै पुछी, चाहो-पान नै कराबी तखनि हमरा सबहक सेखीए की रहत। बहरवैया इंजीनि‍यर मि‍थि‍लाकेँ पवि‍त्र भूमि‍ बुझबे करैए। भाषा नै बुझैए तँ नै बूझह मुदा पवि‍त्र बूझि पावन तँ करबे करत। सोझ मतिये बजबो करैत-
वि‍देशी पूजीक सहयोगसँ बनि‍ रहल अछि, पाइक कमी नै छै, इलाका धुधुआ जाएत।” 


अंतिम पेजसँ.........................................................



विष्‍णुमोहनक बात सुनि सूर्यमोहन बजला-
ई तँ अहाँक बात भेल। इन्‍द्रमोहन अहाँ बुझा दिअनु।
इन्‍द्रमोहन-
पहि‍ने तँ परि‍वार बुझए पड़त। अखनि धरिक जे परिवार रहल ओकर संचालन तँ हमहीं करैत एलि‍ऐ। जहियासँ वि‍ष्‍णुमोहन गाम छोड़लक तहि‍यासँ एक्को पाइक सहयोग नै केलक। बाढ़ि-रौदी, भुमकमक झमार हमरा लगल। खेतमे मोनि फोड़ि देलक तेकरा खेत बनेलौं, भुमकममे घर चि‍ड़ीचोंत भऽ गेल, तेकरा बन्‍हलौं, कुटुम-परि‍वारकेँ जिआ कऽ रखने छी तखनि हि‍स्‍सा कथीक आ हि‍स्‍सेदारी कथीक?”
जलाएल प्रश्न देखि सूर्यमोहन बजला-
हम समाज छी कखनो नै चाहब जे समाजकेँ नोकसान होइ।
सूर्यमोहनक विचार सुनि इन्‍द्रमोहन बाजल-
एक तँ सबा करोड़ रूपैआ भेटल तइमे घराड़ी कीनि‍ घर बनेलौं। घरो देखते छी जे केतबो परि‍वार बढ़त तैयो पचास बरख अभाव नै हएत। एते करैमे सभ रूपैआ सठि‍ गेल।
बमकि कऽ विष्‍णुमोहन बाजल-
अहाँ झूठ बजै छी? पाँच करोड़ रूपैआ भेटल?”
सूर्यमोहन-
केना बुझै छी?”
जानकारी भेल।
विष्‍णुमोहनक बेवहार सूर्यमोहनकेँ नीक नै लगलनि। बजला-
जखनि गाम छोड़ि अनतए चलि गेलह, तखनि गामक सम्‍पति अनतए जाइ! ई हम कखनो नै कहबह। एक तँ ओहिना रंग-बिरंगक जालक माध्‍यमसँ गामक सम्‍पति जाइए रहल अछि, तैपर सोझहा-सोझही भैयारीक जाए, ई कखनो उचित नै भेल। तहूमे जखनि भैयारीक वि‍भाजन नै भेल अछि तखनि लेनी-देनी कथीक। परि‍वार ठाढ़ भऽ चलैत रहत तखनि ने समाज ठाढ़ हएत।
आशा तोड़ि विष्‍णुमोहन बाजल-
तखनि हम गामसँ चलि जाइ?”
सूर्यमोहन-
से किए कहबह। तँू तँ अपने छोड़ि कऽ चलि गेलह।
तेसर दिन विष्‍णुमोहन भोपाल विदा भेल।¦५६९६¦
२५ जनवरी २०१४




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