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Saturday, October 18, 2014

सनेस


सनेस




तुलसी बाबा जहि‍ना हलसि‍ कऽ रामायण गढ़ि‍ तूल देलनि‍ जे “हरि‍ अनन्त हरि‍ कथा अनन्‍ता” तहि‍ना ने “मनु अनन्‍त मनुआँ अनन्‍ता” सेहो होइ छै। एहने अनन्‍तमे पण्‍डि‍त कक्काक जि‍नगी सेहो वौआ गेलनि‍। जेकर ओरे-छोर ने रहत तइमे लोक ने हेराएत तँ हेराएत कइमे। तहूमे जे हेराइबला रहैए ओ तँ हेराइते अछि‍। घरोमे लोक हेरा जाइए। मुदा बि‍नु ओर-छोरक जे अछि‍ तइमे लोक हेरेबो केना करत। हेराइते बेर ने हरण होइ छै। जँ सीते नै हेरैतथि‍ तँ हरण कि‍ए होइतनि‍। ओ जँ केतौ बौआइत रहत तँ ओही अनन्‍तमे कि‍ने। तखनि‍ ओ हेराएब केना भेल। हेराइ तँ लोक ओतए अछि‍ जेतए एकसँ दोसरमे चलि‍ गेल, रामक सङ्ग छोड़ि‍ सीता जेना रावणक सङ्ग गेली। मुदा एक छोड़ि‍ दोसर जेतए अछि‍ए नै तेतए लोक जाएत केतए। ओहीमे ने जहि‍ना सभ अछि‍ तहि‍ना ओहो अछि‍। पण्‍डि‍त काकाकेँ सेहो तहि‍ना भेलनि‍। बच्‍चेसँ चन्‍सगर रहथि‍, पढ़ै-लि‍खै दि‍स मन झूकलनि‍। पढ़ै-लि‍खैक एकछाहा भाषो आ वि‍षयो, तँए पण्‍डि‍त काका संस्‍कृते वि‍द्यालयमे नाओं लि‍खौलनि‍। ओना पनरह आनासँ बेसीए लोक पढ़ै-लि‍खैसँ दूर हटल अछि‍। धरतीसँ अँकुरि‍ भाषा-साहि‍त्‍यक गाछ बनल अछि‍। जइमे गमैआ वैद जकाँ, जे अमेरि‍का, इंगलैंडक दवाइसँ उपचार नै करि‍, बोन-झार, खेत-पथारक जड़ी-बुटी चुनि‍ औषध बना रोगक उपचार करै छथि‍, जे एक धारा बनि‍ धरतीकेँ सींचैए तहि‍ना संस्‍कृतो भाषा-धारा छी। तेतबे नै अदौक धार छी, जे अखनो बहैए। मुदा कोनो धारा ताबे तक अपन समुचि‍त गति‍ए प्रवाहि‍त होइत रहैए जाबे तक ओकरा अनुकूलता भेटैत रहै छै। जेना इति‍हासक मध्‍य कि‍छु राजो शासनक अछि‍। तँए ओइ कालखण्‍डमे भाषो-साहि‍त्‍य फुलाएल फड़ल। मुदा धरतीपर बहैत धारक धारा आ वि‍चारक दुनि‍याँमे बहैत धाराक बीच दूरी तँ कि‍‍छु भाइए जाइ छै, मुदा ओ दूरी पाटत के

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बि‍च्‍चेमे सारि‍ आबि‍ एक चुटकी अबीर पण्‍डि‍त कक्काक आगूमे उड़ि‍या गेली। शान्‍त जगह देखि‍ पण्‍डि‍त काका साढ़ूक बेटाकेँ पुछलखि‍न-
बौआ, की नाओं छी?”
श्‍याम सुन्‍दर।
कोन कि‍लासमे पढ़ै छी?”
दसमामे।
सुनि‍ पण्‍डि‍त काका बजला-
बौआ, जि‍नगी भरि‍क काजक मोटरी छी। अहीं सन लोकक खगता अछि‍, काजो-एहेन अछि‍ जे अहूँकेँ नीक आ हमरो नीक हएत।
दुनूक नीक सुनि‍ चकोना होइत श्‍याम सुन्‍दर बाजल-
से की?”
‘से की’ सुनि‍ पण्‍डि‍त कक्काक हृदैमे हि‍लकोर उठि‍ गेलनि‍। बजला-
बौआ, जँ बच्‍चा बच्‍चेसँ काजक लूरि‍केँ कन्‍हि‍यबैत चलए तँ ओ माए-बापक भारक मोटा कम करैत अपना ऊपर ठाढ़ भऽ जाइए। श्रवण कुमारक कथा सुनने हएब। केना सीक-पटैपर माए-बापकेँ कन्‍हेठ, चारू-धाम करए वि‍दा भेला। तँए अहूँ कि‍ताबो बेचू आ पढ़बो करू। काजसँ लजाउ नै जखने काजसँ लजाएब तखने लजबि‍जी जकाँ लाज-बीज रहि‍तो अकाजक दुनि‍याँक खाधि‍मे खसब। जेकरा काँटक दुआरे ने माल-जाल खाइए आ ने हाड़-गोड़ दुआरे लोके पुछै छै।
पण्‍डि‍त कक्काक वि‍चार सुनि‍ श्‍याम सुन्‍दरक हृदए सि‍हरि‍ गेल। सि‍ससि‍राइत बाजल-
मौसा, अहाँक वि‍चारसँ जेना देहक खून फनफना रहल अछि‍, अपनोसँ भेँट-घाँट करैत करब। अखनि‍ अपनेक वि‍चार शि‍रोधार अछि‍।¦२६५४¦ १६ अगस्‍त २०१४

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