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Thursday, October 23, 2014

पुरनी नानी

पुरनी नानी











तीन माससँ पुरनी नानी ओछाइन पकड़ने छथि‍। अपने तँ नै बूझि‍ पाबि‍ रहली अछि‍ जे आब ऐ दुनि‍याँ सँ ‘चलचलौ’ भेल जा रहल छी। मुदा गाममे सबहक बीच चर्च होइत जे ‘पुरनी नानी आब जे दि‍न छथि‍ से दि‍न छथि‍।’ अपने ऐ दुआरे नै बूझि‍ पाबि‍ रहल छथि‍ जे बुझि‍नि‍हार तँ ओ ने जि‍नका अपन जनम कुण्‍डली आकि‍ जनम दि‍नक कोनो लि‍खल सबूत होइ। से तँ पुरनी नानीकेँ छन्‍हि‍ नै। भऽ सकैए जनम पतरी होन्‍हि‍। ओना सबूतो सभटा पकि‍ये होइए सेहो बात नै छै। सबूतो कचिया होइए। कोनो केसक ‘कचि‍या नकल’ थानामे भेटैए। ओना थानोकेँ दोख लगाएब बेइमानी भेल, जेकरा पकि‍याक अधि‍कारे ने छै ओकर तँ कचि‍ये ने पकि‍या भेल। असल कचि‍या-पकि‍या तँ ओइठाम होइए जैठाम नोकरी दुआरे कि‍यो, बि‍आह करै दुआरे कि‍यो आकि‍ अपन अरुदा छि‍पबै दुआरे कि‍यो जनम कुण्‍डलीक ति‍थि‍ आ वि‍द्यालयक ति‍थि‍मे घटी-बढ़ी कऽ लइए। मुदा सेहो नै, असलमे पुरनी नानीकेँ उमेरक ठेकाने ने रहलनि‍। रहबो केना करि‍तनि‍ बेवहारक इति‍हासक तारीक घटनाक हि‍साबे लि‍खल जाइए, मुदा वैदि‍क वि‍धि‍-बेवहारक तारीकक पता केना लागत। जहि‍ना अधला बढ़ैत-बढ़ैत ढेर लगि‍ जाइए तहि‍ना ने नीकोक छै। नीक तँ नीके भेल, तँए बेवहारो नीक बनैत जाइए। पुरनीओं नानीकेँ सएह भेलनि‍। तँए कि‍ ओ अपन जन्‍मक आड़ि‍-धूर नै देने छथि‍ सेहो बात नहि‍येँ कहल जा सकैए। केतौ नापि‍ कऽ कि‍लोमीटरक पाथर गाड़ल जाइए, केतौ ठेकानि‍ए कऽ बूझल जाइए, ठेकानोसँ तँ बुझले जाइए। पुरनी नानीक आड़ि‍-धूरक ठेकान ई छन्‍हि‍ जे पछि‍ला ‘भुमकम’ मन छन्‍हि‍ जइमे नअ बर्खक रहथि‍ जे माए कहने रहनि‍। कहने ऐ दुआरे रहनि‍ जे जखनि‍ भुमकममे घर खसि‍ अँगना-वाड़ी सभ एकबट्ट भऽ गेल रहनि‍, आ माएकेँ सोगाएल बैसल देखि‍ पुरनी भुमकमक उथल-पुथल देखि‍ हँसैत आबि‍ बाजल-
माए, आब की हेतै?” 


अंतिम पेजसँ......................................................




एहनो तँ होइते अछि‍ ‘जे बात’ लोक नै बुझैए ओकरा गोपलखतामे दऽ दइए। तहि‍ना पुरनी नानीक बातकेँ जि‍ज्ञासा करैवाली गोपलखतामे फेक, बाजलि‍-
बुढ़ाड़ीमे अहि‍ना लोकक मन भऽ जाइ छै, जे अनेरो कि‍म्‍हरोसँ कि‍म्‍हरो मन छि‍ड़ि‍यए लगै छै। नानीक माया छूटि‍ रहल छन्‍हि‍। आब हि‍नकर बात असीरवाद बूझि‍ सि‍र चढ़ा लि‍अ।
मुदा नानीक नै बूझल बातकेँ प्रश्न बूझि‍ सुलक्षणी ‘बारहो मास’ दि‍स तकलक। तीन सए पैंसैठ दि‍नक बरख होइए मुदा तँए कि‍ ‘दूटा दि‍न’ एक रंग होइए आकि‍ दू रंग। तही बीच पछुआएल जि‍गेसा केनि‍हारि‍ सभ पहुँच गेली। बैसल जमात नानीक पएर छूबि‍-छूबि‍ वि‍दा भेली। मुदा सुलक्षणीक मन ठमकि‍ गेल। ठमकला पछाति‍ मन कबुला करा लेलक जे बि‍नु प्रण-पणक जि‍नगी, केरा, अनरनेबाक फल जे उच्‍च कोटि‍क फल तँ छी मुदा आमक गाछ सन छाती थोड़े हेतइ? तखने मनमे उचरलै गोबरे गोइठा बनि‍ आगि‍क रक्षा करैए! आकि‍ मुहसँ हँसी फुटलै। मने-मन संकल्‍प केलक, ‘अगि‍ला पाठ कौलेजमे पढ़ब।’¦१,३०४¦

२७ जुलाई २०१४

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