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Friday, October 17, 2014

फोंक मकड़


फोंक मकड़





कि‍शोर आ कि‍सलय मि‍थि‍ला युनि‍वर्सिटीक एम.ए.क छात्र। भूगोलक छात्र कि‍शोर आ संस्‍कृत साहि‍त्‍यक कि‍सलय। एके कौलेजक दुनू छात्र। छह सालक बीच दुनूमे एहेन सम्‍बन्‍ध बनि‍ गेल जे जाति‍-पाँजि‍ बुझैक खगते ने रहलै। एक कोठरीक बास, एक वर्तनक बनल भोजन, एक सुराहीक पानि‍ सम्‍बन्‍धकेँ आरो गति‍गर बना देने। जइसँ आन तँ आने जे अपनो दुनूक बीच गाम-घर हेरा जाइ। ओना दुनूक घर गंगाक दुनू भाग, एक मि‍थि‍लांचल दाेसर मगह मुदा सम्‍बन्‍ध तेहेन बनि‍ गेल जे उत्तर-दछि‍नक बान्‍ह ढील भऽ गेल। साले-साल दुनू गोटे बेरा-बेरी अपन-अपन इलाकाक दर्शनीय जगह सेहो देखैत आएल, जइसँ देवघरसँ राजगीर आ जनकपुरसँ कोसी-कमला घाट तकक भ्रमण संगे कऽ नेने छल। साइओ छात्रक बीच दुनूक अपन सम्‍बन्‍ध बनल छल, तँए दोसरकेँ बेसी खाेदो-वेद करैक खगता नहि‍येँ जकाँ छल। रहबो कि‍ए करतै, सभकेँ अपन-अपन जि‍नगी छै, जि‍नगीक लीलसा छै आ लीलसाक काज छै। जँ से नै रहत तँ खाली टोंटाक छुच्‍छे अवाजसँ कथी‍ हएत। 


अंतिमपारा....................




माएक नाओं सुनि‍ राधा जि‍द्द करैत बाजलि‍-
अपना टोलक बहुत गोरे मेला जाइले रहथि‍, जखनि‍ भाँज लगलनि‍ जे कौल्हुका फोंक जाएत, तखनि‍ अगि‍ला मकड़ देखैक वि‍चार केलनि‍।
कि‍सलय-
कि‍शोर भाय, अहि‍ना धोखा-धोखी होइ छै। एलहाक चि‍न्‍ता छोड़ू। जँ जि‍नगी बँचल रहत तँ केते अवसर भेटत।
प्रात भने दुनू गोरे दरभंगा वि‍दा भऽ गेल।¦१,७५५¦ 

१० अप्रैल २०१४ 

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