फोंक मकड़
किशोर आ किसलय मिथिला युनिवर्सिटीक एम.ए.क
छात्र। भूगोलक छात्र किशोर आ संस्कृत साहित्यक किसलय। एके कौलेजक दुनू छात्र।
छह सालक बीच दुनूमे एहेन सम्बन्ध बनि गेल जे जाति-पाँजि बुझैक खगते ने रहलै। एक
कोठरीक बास, एक वर्तनक बनल भोजन, एक सुराहीक पानि सम्बन्धकेँ आरो गतिगर बना
देने। जइसँ आन तँ आने जे अपनो दुनूक बीच गाम-घर हेरा जाइ। ओना दुनूक घर गंगाक दुनू
भाग, एक मिथिलांचल दाेसर मगह मुदा सम्बन्ध तेहेन बनि गेल जे उत्तर-दछिनक
बान्ह ढील भऽ गेल। साले-साल दुनू गोटे बेरा-बेरी अपन-अपन इलाकाक दर्शनीय जगह सेहो
देखैत आएल, जइसँ देवघरसँ राजगीर आ जनकपुरसँ कोसी-कमला घाट तकक भ्रमण संगे कऽ नेने
छल। साइओ छात्रक बीच दुनूक अपन सम्बन्ध बनल छल, तँए दोसरकेँ बेसी खाेदो-वेद करैक
खगता नहियेँ जकाँ छल। रहबो किए करतै, सभकेँ अपन-अपन जिनगी छै, जिनगीक लीलसा छै
आ लीलसाक काज छै। जँ से नै रहत तँ खाली टोंटाक छुच्छे अवाजसँ कथी हएत।
अंतिमपारा....................
माएक
नाओं सुनि राधा जिद्द करैत बाजलि-
“अपना टोलक बहुत गोरे मेला जाइले रहथि, जखनि भाँज लगलनि जे कौल्हुका
फोंक जाएत, तखनि अगिला मकड़ देखैक विचार केलनि।”
किसलय-
“किशोर भाय, अहिना धोखा-धोखी होइ छै। एलहाक चिन्ता छोड़ू। जँ जिनगी
बँचल रहत तँ केते अवसर भेटत।”
प्रात
भने दुनू गोरे दरभंगा विदा भऽ गेल।¦१,७५५¦
१० अप्रैल २०१४
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