Pages

Thursday, October 23, 2014

करि‍छौंह मुँह

करि‍छौंह मुँह










बरखा मौसम अबैसँ पहि‍ने हल्‍ला भऽ गेल जे ऐ बेरक समए रौदि‍याह हएत। माने भेल जे उचि‍तसँ कम बरखा हएत। केते कम हएत से तँ समैए कहत। ओना पतराबला सबहक वि‍चार अलग छन्‍हि‍। हुनका सबहक वि‍चारे अस्‍सी बि‍सबा पानि‍ हएत। जइसँ धनमण्‍डल हएत। मुदा रेडि‍यो टी.बी.सँ तेते हल्‍ला भेल जे पतराबला सबहक वि‍चार दबि‍ गेलनि‍। दबबो केना ने करि‍तनि‍, एक तँ एक-आध पतरा देखि‍नि‍हार गामे-गाम छथि‍, तैपर मुँहक बोल मशीनक आगू केना बढ़त।
पनरह दि‍नक बरखा गामे उजाड़ि‍ कऽ देलक। बाधक-बाध डूमि‍ गेल। तहूमे भादोक डूमल। अहुना कहबी छै जे भादव धोइ कि‍छ-कि‍छ होय। सेहो पानि‍सँ ऊपर हएत तखनि‍ ने। जँ पानि‍क तरमे रहत तँ गलबे करत कि‍ने। बाध दि‍स टहलैले पनरह दि‍नसँ नै गेल छेलौं। जेबो केना करि‍तौं टहलैए बेर बरखा हुअ लगै छेलै। मुदा सोलहम दि‍न उगरास केलक। रौद भेल। रौद देख दछि‍नवरि‍या बाध दि‍स वि‍दा भेलौं। अपना टोलसँ नि‍कलि‍ते दोसर टोलक मुहेँपर गेलौं आकि‍ सुवधी काकीक घर टगल देखलि‍ऐ। चोंगरा सभ लागल रहै। ओसाराक टाट खसल रहै। रस्‍तेपर सँ हि‍या कऽ देखैत रही आकि‍ सुवधी काकीपर नजरि‍ पड़ल। आगू दि‍स ओहो बढ़ली आ हमहूँ बढ़लौं। घरक कोनचर लग पहुँचि‍ते सुबधी काकीक चेहरापर आँखि‍ पड़ल। करि‍छौन मुँह देखि‍ पुछलि‍यनि‍-
काकी, कहि‍या घरक ओसारी खसल?” 


अंतिम पेजसँ.....................................................



हम पुछलि‍यनि‍-
काकी, बि‍लटि‍ केना गेल, देखै छी छागर जीवि‍ते अछि‍।
काकी बजली-
ओसारीक टाट तेना खसल जे छागरक टाँगे टुटि‍ गेल। अवाह छागर थोड़े कि‍यो चढ़बैले लेत।
ई गप सुनि‍ अपनो बुझाएल जे ठीके कहै छथि‍...। मुदा कि‍छु तँ बजि‍तौं, कहलि‍यनि‍-
अपन जान आ बकरीक जान बँचल तँ आगू केते छागर हएत, तइले दुख कि‍ए करै छी।
काकी बजली-
एकेटा दुख नै ने अछि‍, आमद चलि‍ गेल, आ खरचा बढ़ि‍ गेल। घर दुरूश ओहि‍ना हएत। बि‍ना बोइनक के घर मरम्‍मत करि‍ देत।¦३१८¦
२४ अगस्‍त २०१४

No comments:

Post a Comment